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August 2005
अक्षय जैन की व्यंग्य कविता : राजा चुन कर तुम्हीं ने भेजा...
राजा चुन कर तुम्हीं ने भेजा *-*-* नहीं लिखा है भाग में तेरे एक वक्त का खाना जी राजा चुन कर तुम्हीं ने भेजा तुम्हीं भरो हर्जाना जी अबके बर...
कालीचरण ‘प्रेमी’ की कविता : नभ समाधि
*-*-* नभ समाधि *-*-* इतनी ऊँचाई पर न चढ़ो कि पृथ्वी दिखने लगे एक गेंद की तरह और सागर का विस्तार सिमट जाए एक धब्बे में और आदमी हो जाए लापता...
संत शेख़ सादी की कुछ कहानियाँ
शेख़ सादी की कुछ कहानियाँ -*-*- चुग़लख़ोर *-*-* “गुरुजी, मेरा सहपाठी मुझसे जलता है. जब मैं ‘हदीस’ के कठिन शब्दों के अर्थों को बताता हूँ तो व...
कहानी : वाइफ स्वैपी
-चित्रा मुद्गल सामने बैठे मेजर अहलूवालिया सुधीश के गोल्फ की तारीफ कर रहे थे, “अब भी खेलता है...” “फुरसत गोल्फ के मैदान में ही गुजरती है...
आलेखः तहज़ीब की पहली पहचान
-स्वामी वाहिद काज़मी **-** दिल्ली से एक पाठक ने किसी आवश्यकतावश पत्र लिखा और इस प्रकार चार-छः पत्रों के आदान-प्रदान का सिलसिला रहा. मैं उन्ह...
कहानीः राजू का साहस
कहानीः राजू का साहस -*-*- - शरतचन्द्र ---*--- उन दिनों मैं स्कूल में पढ़ता था. राजू स्कूल छोड़ देने के पश्चात् जन-सेवा में लगा रहता था. ...
आलेखः कार्य का आनंद
आलेखः कार्य का आनंद *-*-* - विक्रम दत्ता *-*-* महाविद्यालय की पढ़ाई पूरी करते-न-करते छात्र-छात्राओं के सामने उचित रोजगार चुनने का संकट खड़ा...
कहानीः बहाने से
कहानीः बहाने से · संजय विद्रोही सड़क से देखने पर लगता था कि दूर कहीं आसमान से थोड़ा नीचे एक ऊंची-सी चीज के बदन पर एक जुगनू चिपक कर टिमटिमा...
व्यंग्य: हांका और आखेट
*-*-* - चार्वाक आजकल लोक में बहुत संभावनाएँ हैं. हमेशा ही रही हैं. मड़ई और चौमासा जैसी पत्रिकाओं को देखकर उत्तर प्रदेश के एक विश्वविद्यालय...
देवेन्द्र आर्य की दो ताज़ा ग़ज़लें
देवेन्द्र आर्य की दो ग़ज़लें *-*-* मैं तवायफ़ हूँ, बेहया तो नहीं थोड़ी मोहलत दे, बच्चा सो जाए। ग़ज़ल 1 *-*-* पास पास थे चुभे, गड़े। दूर ...
कहानीः दत्तक पुत्र
*-*-* - मीरा शलभ --- बड़े भैया. आप क्या कल सवेरे ही चले जाएंगे? छोटी गुड़िया ने जानते हुए भी यह प्रश्न किया था. “हां” – बड़े भैया ने एक लम...
रमेशचंद्र शाह की लंबी कविता
---*--- आठवां दशक ------.------ अस्सी का यह दशक आयु का – किंतु पांचवाँ जाने क्यों कतरनें छांटकर अखबारों की रख लेने की पड़ी टेव थी जैसै –...
सरिता सुराणा ‘जैन’ की कविता : गांधी एक बार फिर आओ
*-*-* गांधी एक बार फिर आओ राह भूले पथिक को मंजिल तक पहुँचाओ। भटकी नैया पाल लगाने तुम दीप स्तम्भ बन आओ। गांधी ... सुन मानवता का करूण क्रन्...
देवेन्द्र आर्य की दो ग़ज़लें
ग़ज़ल 1 --.-- बुजुर्गी बचपना काला न कर दे। कहीं गंगा हमें मैला न कर दे। अंधेरे को ज़रा महफ़ूज रखिए ये मनबढ़ रौशनी अंधा न कर दे। सफ़र दुश्...
लंबी कहानीः लिफ़ाफ़ा
-चित्रा मुद्गल वह जाग रहा है. तड़के ही उसकी नींद खुल जाती है. रात चाहे जितनी देरी से घर लौटा हो, चाहे जितनी देरी तक पढ़ता रहा हो, सुबह अपन...
लघुकथाः श्रद्धांजलि
-पुष्पा रघु आज बाबू जी की तेरहवीं है. शामियाना लगा है. मेज पर बाबू जी का फ्रेम किया हुआ चित्र रखा है – ताजे गुलाबों की माला से सुशोभित. धूप...
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