स्त्री की बौद्धिकता पर एक ख़ुफ़िया बहस

SHARE:

-अभय कुमार दुबे समाज में जब किसी मुद्दे पर बहस बहुत तेज़ हो जाए तो समझ लेना चाहिए कि वह बदलाव की पेशबंदी कर रहा है. इस समय सबसे ज्यादा तीखा व...




-अभय कुमार दुबे

समाज में जब किसी मुद्दे पर बहस बहुत तेज़ हो जाए तो समझ लेना चाहिए कि वह बदलाव की पेशबंदी कर रहा है. इस समय सबसे ज्यादा तीखा विवाद मैरिट पर है, और संदर्भ पिछड़ी जातियों के आरक्षण का है. ज़ाहिर है कि सतह के ऊपर द्विज बनाम शूद्र का द्वंद्व है, पर मैरिट का कम से कम एक आयाम ऐसा भी है जिस पर की जा रही बहस का मुख्य रूप अफ़वाहबाजी का है, और उसकी प्रकृति फेंटेसीनुमा है. यह पहलू है स्त्री की मैरिट का.

सरगोशियों, लंतरानियों, शाम को होने वाली नशीली अड्डेबाजियों और गॉसिप कॉलमों के गुप्त मैदानों में होने वाला यह वाद-विवाद आजकल तय करने में लगा हुआ है कि स्त्री जो बोलती है, स्त्री जो लिखती है और समाज में अपने लिए बौद्धिक प्रगति के जो मौक़े संघर्ष करके हासिल करती है, क्या वास्तव में उसे उसका एकांत श्रेय दिया जाना चाहिए? हिंदी पब्लिक-स्फेयर के इस भूमिगत माहौल से अल्बर्टों मोराविया की एक कहानी याद आ जाती है. मोराविया की यह नायिका रचनाकार बनना चाहती है. लेकिन, जब वह अपनी रचना लेकर एक वरिष्ठ साहित्यकार से मिलती है, तो किसी अंधेरी गली में खड़ी कार के भीतर खुफिया तौर पर बैठा वह पुराना पापी वैकल्पिक रचना लिख कर उसे थमा देता है, बदले में उसका सानिध्य मांगता है. उस स्त्री के साथ ऐसा कई बार होता है. साहित्य का मूल्यांकन करने वाले पुरुष को लगता है कि या तो स्त्री की रचना में बहुत से संशोधन होने चाहिए या उसे फिर से लिख डालना चाहिए. और, इस सेवा के बदले उनका उस स्त्री पर स्वाभाविक हक़ बन जाता है. उस छोटी-सी कहानी का क्लाइमेक्स बड़ा वीभत्स है; आत्महत्या की कगार पर पहुंच चुकी वह स्त्री अचानक तय करती है कि वह सिर्फ़ एक देह बन जाएगी. फिर वह स्त्री लिपिस्टिक लगाती है, और शहर की सड़कों पर संभवत: वरिष्ठ साहित्यकारों की खोज में निकल पड़ती है. ज़ाहिर है कि मोराविया का ज़माना बहुत पीछे छूट चुका है.

स्त्री द्वारा रचा गया साहित्य और विमर्श-विमर्श सांस्कृतिक उत्पादन की प्रक्रिया को एक नए पायदान पर पहुंचा चुका है. स्त्री की रचना को किसी पुराने पापी की बदरंग चिप्पी नहीं चाहिए.
यह कामयाब स्त्री वह नहीं है जो हर सफल पुरुष के पीछे खड़ी रहती है. सफल पुरुष और पृष्ठभूमि में खड़ी स्त्री का आपसी संबंध कुछ ज्यादा ही सुपरिभाषित और सुनिश्चित क़िस्म का हो चुका है. चर्चा में कम आने वाली वह औरत या तो कामयाब मर्द की पत्नी है या फिर उसकी मां है. मां के रूप में या तो उसने पुरुष को ककहरा सिखाया है या फिर वह उसकी कुछ नैसर्गिक प्रवृत्तियों की जिम्मेदार है. पत्नी के रूप में वह उसकी पोशाक, कॉफी, लंच, डिनर या दोस्तों की आवभगत का कौशलपूर्ण बंदोबस्त करने के साथ-साथ यौन-सुख की नियमित सप्लाई का स्रोत है. इसके बदले में वह मंडन मिश्र अपनी एक किताब उसे भेंट कर देता है, या अन्य पुस्तकों के आभार प्रदर्शन की आख़िरी पंक्ति उसके लिए सुरक्षित कर दी जाती है. इस पंक्ति का पैटर्न भी तयशुदा है : 'और अंत में मैं भारती का शुक्रिया अदा किए बना नहीं रह सकता क्योंकि अगर वे मुझे धीरज और उत्साह न बंधातीं तो यह बौद्धिक परियोजना शायद अपने अंजाम तक न पहुंच पाती.' किसी भी मशहूर किताब का आभार प्रदर्शन पढ़ लीजिए, उसके आख़िर में यह पंक्ति किसी न किसी रूप में मिल ही जाएगी.

पृष्ठभूमि में खड़ी स्त्री को आभार प्रदर्शन के ज़रिए निबटा देने के बाद अब बहस इस बात पर है कि जब मंडन मिश्र ने शास्त्रार्थ में अपनी पराजय स्वीकार की ही नहीं, न ही पृष्ठभूमि में खड़ी पत्नी को मोर्चा संभालने की जिम्मेदारी थमाई, तो फिर यह स्त्री कहां से आ गई जो आगे निकलकर अपनी बौध्दिकता की स्वतंत्र दावेदारी कर रही है? यह स्त्री अजीब सी है. मंडन मिश्र ने इसे इतिहास के किसी पृष्ठ पर नहीं देखा. क्योंकि यह उपन्यास लिखती है, कविताएँ लिखती है, लेख लिखती है, आलोचना लिखती है, स्तंभ लिखती है, खूब लिखती है, टाइम पर लिखती है, लिखे हुए पन्नों की लाइन लगा देती है, ऊपर से जगह-जगह भाषण देते घूमती है, रिसर्च करती है, सिगरेट पीती है, शराब पीती है, कॉफी बनाती है और अक्सर सिर्फ़ अपने लिए बनाती है, गोष्ठियों में बिंदास जाती है, खुलकर हँसती है, इसका उच्चारण स्पष्ट है, और सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह स्त्री सामाजिक रूप से सुपरिभाषित जीवन भी जी सकती है, और अगर मन चाहे तो पिता द्वारा आयोजित स्वयंवर के बिना स्वयंवरा भी हो सकती है.

मंडन मिश्र न तो इस स्त्री की शिनाख्त अपनी मां के रूप में कर पा रहे हैं, न पत्नी के रूप में. तो फिर वह कौन है? विवाह या दूसरे संस्थानों में सुरक्षित बैठी शीलवती सन्नारियां इसे 'शी-ड्रैकुला' का नाम देती हैं. वस्तुत: चूंकि इस विकट प्रश्न का उत्तर खोजने में वे नाकाम हैं, इसलिए उन्होंने पुरानी कहावत को नया रूप दे दिया है. इसीलिए स्त्री की बौध्दिकता पर होने वाली खुफिया बहस के केंद्र में यह कहावत रख दी गई है कि हर सफल स्त्री के पीछे एक पुरुष होना लाज़मी है. ध्यान रहे कि पहले पृष्ठभूमि में खड़ी स्त्री की आकृति साफ़ थी, पर पीछे खड़े इस पुरुष की अस्मिता अनाम है. अगर वह वास्तव में पीछे खड़ा होता तो उसे खुद को धन्यवाद देने की क्या ज़रूरत होती. उसे धन्यवाद स्त्री देती, वह भी उसके लिए एक अच्छी-सी पंक्ति गढ़ लेती. पीछे दिखाई दे रही वह भुतहा आकृति सफल स्त्री के प्रेमी की भी नहीं हो सकती. क्योंकि अगर वह प्रेमी होता तो फिर प्रेमिका के बारे में अफ़वाह उड़ाने की ज़रूरत क्या पड़ती!

हिंदी के पब्लिक स्फेयर पर कुछ ऐतिहासिक कारणों से अधिकांशत: साहित्य और कुछ-कुछ पत्रकारिता की छाया रहती है, इसलिए बहस के औज़ारों द्वारा सबसे ज्यादा शल्यक्रिया जिन स्त्रियों की होती है, वे अक्सर साहित्यकार ही होती हैं. अगर उन्हें कोई मामूली-सा भी पुरस्कार मिला है तो उनकी कामयाबी के पीछे मौजूद पुरुष भूत पुरस्कार की निर्णय कमेटी का सदस्य निकल आता है. और, अगर वह निर्णय कमेटी का सदस्य नहीं भी है और पुरस्कार बहुत मानिंद क़िस्म का है तो हवाओं में घूमने वाली सरगोशियां खोज निकालती हैं कि पुरस्कृत कृति के पीछे अमुक की डायरी है. शाम की गोष्ठियों में यह गोपनीय तथ्य कुछ इस तरह परोसा जाता है कि जैसे जब वह डायरी उपन्यास के रूप में टीपी जा रही थी तो कोई चश्मदीद गवाह वहां साक्षात् मौजूद रहा होगा. माना जाता है कि स्त्री साहित्यकारों की हर कृति कोई न कोई वरिष्ठ पुरुष साहित्यकार ही दुरुस्त करता है, या फिर उसका पुनर्लेखन करता है, या किसी न किसी प्रकार उसे प्रस्तुति योग्य बनाता है. और, कोई स्त्री उस समय तक किसी पत्रा-पत्रिका में स्तंभ नहीं लिख सकती जब तक कल्पना की उड़ानें किसी न किसी प्रकार उसका संबंध संपादक के साथ न जोड़ दें. इसके साथ ही यह अनकही धारणा अपने आप जुड़ जाती है कि बदले में उस पुरुष ने स्त्री रचनाकार का अगर दैहिक नहीं तो रागात्मक साहचर्य अवश्य प्राप्त किया होगा. ये सब बातें हिंदी के पब्लिक स्फेयर में एक ओपन सीक्रेट की तरह की जाती हैं कि अमुक स्त्री साहित्यकार अमुक के साथ फिट है.

कई वर्षों से चल रही इस साहित्यकार का संबंध उन प्रकाशकों से भी जोड़ा जाने लगा है जो उनकी रचनाएं प्रकाशित करते हैं. चर्चाएं सुनने में आती हैं कि हिंदी का एक बड़ा प्रकाशक आजकल किसी कवि-कवि या किसी कहानीकार-कहानीकार पर ख़ासतौर से मेहरबान है. यानी इस अफ़वाहबाजी के मुताबिक स्त्री ज्यादा से ज्यादा अपनी रचना का रफ़ ड्राफ्ट ही बना सकती है जिसे लेकर पहले उसे अपनी कामयाबी के पीछे खड़े भुतहे पुरुष के पास जाना होगा, रचना ठीक करवानी होगी, बदले में उसे कम से कम रागात्मक साहचर्य का आश्वासन देना होगा, और फिर उसे प्रकाशक या संपादक से निबटना होगा जो इस पितृसत्तात्मक फेंटेसी का नया किरदार है.

बहुत दिन से हिंदी का पब्लिक-स्फेयर इन बातों को अफ़वाहों या प्रवादों की श्रेणी में डालकर अपना काम चला रहा है. लेकिन, अब इससे कतराने का वक्त निकल चुका है. अब भारतीय समाज उस मुकाम पर पहुंच गया है जहां समुदायों की मैरिट के मानक तय हो रहे हैं. बेहतर होगा कि इसी दौर में स्त्री की मैरिट के मानक भी तय हो जाएं. आख़िरकार स्त्री समुदायों का समुदाय है. उसकी मैरिट का सवाल उठाने का सबसे बड़ा फ़ायदा होगा कि मैरिट के नए मानक किसी महा-आख्यान के बोझ तले दबने से बच जाएंगे. हम जानते हैं कि अभी तक समाज में मैरिट का महा-आख्यान द्विज जातियां, खासकर ब्राह्मणों द्वारा सूत्रबद्ध किया जाता रहा है.

अब पिछड़ी जातियां, दलित और आदिवासी समुदाय उसे नए सिरे से परिभाषित करने की कोशिश में हैं. महिलाएं और उनके पैरोकार इस मौक़े का लाभ उठा सकते हैं. वे इस क़िस्म की अफ़वाहबाजी को पितृसत्ता के विकराल तर्क के रूप में पेश करके कह सकते हैं कि पिछले बीस वर्षों से हिंदी साहित्य में स्त्री रचनाशीलता का जो उन्मेष हुआ है, उसे अब स्वतंत्र और स्वायत्त मान्यता मिलनी ही चाहिए. पहले यह काम केवल हंस जैसी पत्रिका ही करती थी, पर स्त्री द्वारा रचे गए साहित्य और स्त्री के विमर्श पर विशेषांक निकालने की दौड़ में आज तक़रीबन हर पत्रिका शामिल हो चुकी है.

जहां तक प्रकाशकों का सवाल है, हर प्रकाशक मुनाफ़ा कमाना चाहता है. अपनी इसी नैसर्गिक वृत्ती के आधार पर वह जानता है कि हिंदी में इस समय सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों में या तो दलित विमर्श की किताबों का शुमार है, या फिर स्त्री विमर्श की किताबों का. स्त्री पर या स्त्री द्वारा लिखी गई किताबें छापना किसी भी प्रकाशक का स्वार्थ ही हो सकता है, अपनी व्यक्तिगत रागात्मक संतुष्टि के लिए किया जाने वाला चुनाव नहीं.

स्त्री की बौध्दिकता पर होने वाली यह बहस अब अफ़वाहबाजी के भूमिगत दायरों से निकाल कर ज़मीन से ऊपर लाई जानी चाहिए. स्त्री कृतियों की आलोचना की कसौटियां अलग से तय की जानी चाहिए. उसका सौंदर्यशास्त्र लाज़मी तौर पर पुरुषों द्वारा रचे गए साहित्य जैसा नहीं है. उसकी भाषा, उसका तर्क विन्यास, उसकी कहानी का क्रम, उसकी निरंतरताएं और विच्छिन्नताएं अगल क़िस्म की हैं. इस बहस का फ़ैसला अनिवार्य तौर पर भारतीय स्त्री की बौध्दिकता के सच्चे और स्वायत्त सूचकांक की निर्मिति के तौर पर होगा. और जैसे ही यह सूचकांक बनकर तैयार हो जाएगा, वैसे ही कामयाब स्त्री के सामाजिक चित्रा की पृष्ठभूमि पर छाई हुई वह

भुतहा पुरुष आकृति तिरोहित हो जाएगी, जो आज उसकी मैरिट पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है.
**-**

संपर्क : 07, सनब्रीज अपार्टमेंट, टावर-ए, सेक्टर-5, वैशाली, ग़ाज़ियाबाद-201010
****-****

चित्र - रेखा की कलाकृति - कागज पर पेंसिल से रेखांकन

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: स्त्री की बौद्धिकता पर एक ख़ुफ़िया बहस
स्त्री की बौद्धिकता पर एक ख़ुफ़िया बहस
http://photos1.blogger.com/blogger/4284/450/320/rekha%20003.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2006/06/blog-post_21.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2006/06/blog-post_21.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content