ये सीडियाँ और ये पत्नियाँ

SHARE:

दो व्यंग्य रचनाएँ ये सीडियां - आर.के.भंवर वे चरित्रवान थे, तो थे। इसमें वाकई और गैरवाकई का सवाल ही नहीं उठता था। मुहल्ले से चौरा...


दो व्यंग्य रचनाएँ

ये सीडियां

- आर.के.भंवर

वे चरित्रवान थे, तो थे। इसमें वाकई और गैरवाकई का सवाल ही नहीं उठता था। मुहल्ले से चौराहे तक, कल्लू चायवाले से मंगतू की पान की दुकान तक, उनके चरित्र के किस्से सभी की जुबान पर थे। उनके चरित्र का पैरामीटर शार्टकट था। कुल मिलाकर उनका चरित्र नारी की नखशिख सुषमा के प्रस्तुतीकरण के विरोध में उभरा था।

गोया वो बात अलग थी कि वे इसके विरोध में भी काफी रस ले लिया करते थे, पर ये अंदर की बात थी। वे सदैव चरित्र की परिभाषा इससे आगे ले ही नहीं गये। जब इसी से काम चलाया जा सकता है तो आगे जाने में क्या समझदारी ? आल औलाद तो थी नहीं। थे खानदानी रईस। दिन भर उनके पास कोई काम धाम भी न होता लिहाजा घर के आसपास मंडराने वाले मनचलों के लिए वे कालभैरव हो जाया करते। उनको देखते ही लड़के दांये बांये कहीं छिप जाया करते थे। और वे ...... जिसको पा भर जाते तो समझिये उसकी शामत। चरित्र के जितने भी फलसफे बयान करते थे उसका मुख्य विषय होता सुंदरियों के बदन पर कपड़ों का अकाल।

उस दिन वे काफी जोश में थे। सुबह-सुबह जो उनसे टकरा जाता उसको पकड़ लेते और चाय पिलाते । चाय पीने वाले दंग कि आखिर हो क्या गया । जो आदमी दूसरों की चाय कैसे पी सके इस पर वे न केवल रिसर्च बल्कि प्रैक्टिकल करते रहे हो, वही अचानक बुलाबुला कर , चाय पिला रहा हो, कुछ रहस्य की बात तो थी ही।

बाद में पता चला कि वह एक ऐसे आंदोलन को चलाने की फिराक में है जिससे समाज चरित्रवान बनता हो। योजना यह थी कि दुकानों पर मिलने वाली नीली तस्वीरों वाली सीडी नष्ट कर दी जायें, स्कूलों के आसपास अश्लील पोस्टर हटा दिये जायें। यह भी तय किया गया कि यह आंदोलन सुबह नौ बजे शुरू किया जायेगा और सूर्यास्त से पहले समाप्त हो जायेगा। चाय-पियक्कड़ों में कुछ लोग तो कार्य योजना सुनते ही इतने उत्साहित हो गये कि क्यों न इसे आज और अभी से शुरू कर देने की सोचने लगे। उनमें कुछ ज्यादा चरित्रवान लोग दूसरे चरित्रवानों को कटखनी नजर से देख रहे थे। कुछ तो होड़ में थे कि उन सबमें कौन ज्यादा चरित्रवान है। इस बात से वे बेहद चिंतित थे कि उनका चरित्र तो इन सबके चरित्र के सामने ढाई सौ ग्राम हो रहा था। इसके अलावा वे इस बात पर भी चिंतित थे कि एक मुहल्ले में इतने अधिक चरित्रवान नहीं होने चाहिए थे, अकेले वे ही पर्याप्त थे। तो तय यह हुआ कि दूसरे दिन रामभरोसे की दुकान के काउंटर की तलाशी ली जायेगी क्यूं कि वहीं ये अश्लील सीडियां रखी जाती थी। वह जब-जब उस कुर्सी से उठता था तब-तब ग्राहक का मन जीतने के लिए अगरबत्ती सुलगाता था। तो राम भरोसे की कुर्सी समेत सभी चीजें जब्त कर ली गई। पूरे उत्सव के मूड में आकर सभी चरित्रवानों ने उन अश्लील सीडियों को चटाक से तोड़ डाला।

सिलसिला आगे बढ़ा। ब्लू फिल्म की सी.डी. खोज खोज कर दुकानदार के सामने ही तोड़ दी जाती थी। सभी समाज के गिरते चरित्र के स्तर को उठाने में हाथ पांव धो कर लगे थे, यह बात अलग थी कि सभी का मन होता था कि सी.डी. को नष्ट करने से पहले देख भी लेते । पूरे दिन सभी के मन में ये जानने की ललक रहती थी। कैसी होती हैं ये सी.डी., क्यो दीवाने है लोग इनके। एक बोला कि अभी अभी जो सीड़ी तोड़ी थी, उसके रैपर पर जानवरों और महिलाओं में परस्पर प्रगाढ़ प्रेम दर्शाया गया था। दूसरा बोला कि अबे तोड़ने से पहले बताया क्यों नहीं।

एक दिन शाम को एक दुकान से कुछ सी.डी. हाथ लग गई। एक ने कहा कि अब नियम कायदे (सूर्यास्त हो रहा था) के मुताबिक इसे रख लिया जाए और कल इसका क्रियाकर्म किया जाए। यह अब तक का पहला ऐसा प्रस्ताव था जो सर्वसम्मति से पारित हो गया। यक्ष प्रश्न यह था कि यह सी.डी. किसके यहां रखवाई जाए। वे इस बाबत शान्त थे, चूंकि यह आंदोलन उन्हीं के दिमाग की उपज थी , इसलिए वे चाहते थे कि सारी सी.डी. उन्हीं की निगरानी में रखी जायें। यही फांस थी। इस मुद्दे पर सारे चरित्रवान एकमत नहीं थे। उन्होंने अपनी छठी इंन्द्रिय का इस्तेमाल किया, पकड़-पकड़ कर चाय पिलाने का वास्ता दिया। अंतत: वे ही जीते। और सर्वसम्मति से सभी सी.डी. उन्हीं के कब्जे में रहीं।

वे बहुत प्रसन्न थे। सी.डी. के प्रति उनका व्यामोह किसी भी चरित्रवान से उन्नीस न था। उसे देखने का वे अपना लोभ रोक नहीं पा रहे थे। रात जैसे ही नियराई कि वे सी.डी.प्लेयर के सामने पूजा-भाव से बैठ गये और उसे अंदर धंसा दिया। पूरी रात देखते रहे। क्या-क्या बीती उन पर। गूंगे केरी सरकरा खाये अरू मुस्काय।

इस क्षण के बाद सभी चरित्रवानगण उन लूटी गई सी.डी. को तोड़ने या नष्ट करने का साहस न जुटा पाये। बड़े नियोजित और मर्यादित ढंग से सी.डी. देखने का कार्यक्रम सभी चरित्रवानों में परवान चढ़ने लगा।

कुछ दिन बाद पता चला कि वे अब ऐसी ही संकलित (लूटी गई) सी.डी. किराये पर चला रहे थे, पर बड़े चरित्रवान ढंग से, नियोजित तरीके से।

----------------------

ये पत्नियां

- आर.के.भंवर

' मिलिये ये है मेरी धर्म पत्नी ` - एक समारोह में ऊपर से नीचे तक भद्रता के आवरण में ढके हुए एक श्रीमान ने अपनी पत्नी का परिचय कराया। परिचय ले रहे व्यक्ति ने तपाक से विनोदी अंदाज में पूछा - ' तो महाशय ! पत्नी तक की बात तो समझ में आ रही है, पर धर्मपत्नी की बात गले नहीं उतर पा रही है।` अनसुलझे कश्मीर विवाद की तरह यह बात जस की तस रही। पत्नी के धर्मपति, पति की धर्मपत्नी, यह चलन कहां से शुरू हुआ, इस विषय पर बड़े बड़े ज्ञानी मौन है। पत्नियां धर्मरती है। इस पर रत्ती भर संशय नहीं है। सप्ताह का कोई दिन ऐसा बचता हो जिस दिन वे अपने किसी न किसी नाम का उपवास न करती हों। उपवास वाले ऐसे स्वर्णिम दिन होते है जब पति के सेवाभाव की परीक्षा सही अर्थों में होती हैं। पति की पात्रता परखने का यही दिन होता है। पड़ोस में एक ऐसे सज्जन हैं जो अपनी पत्नी के उपवास पर रहने पर अपने आफिस जाते ही नहीं। समूचे दिन अगाध निष्ठा, असीमित प्रेम व निष्काम सेवा भाव से वह अपनी पत्नी के हित साधन में लगे रहते थे। वैसे यह विषय अन्य अकड़ू टाईप वाले पतियों के लिए ईर्ष्या का विषय हो सकता है।

ये पत्नियां बड़ी विचित्र होती हं। इनके दिल और दिमाग दोनों में एक ही समय में भयंकर विरोधी कार्यविधियों का तूफान उठा करते है। एक समय में वे क्रूर है तो दूसरे ही क्षण घोर दयालु भी। प्रलोभी हैं तो त्यागी भी। आक्रामक हैं तो रक्षात्मक भी। संचयी है तो खर्चीली भी। प्रेरणा है तो संहारक भी। इन सबमें एक सर्वाधिक विशेष गुण यह है कि ये शक्की मिजाज की जरूर होती हैं। शंका साहित्य में दसवां रस है। अपवाद यह कि शक रस सिर्फ पत्नियों में ही पाया जाता है। वे शंका की दरियाव होती हैं और उसी में रहना, मचलना, उत्पात उत्पन्न करना अपनी नियति बना लेती है।

ये पत्नियां बड़े काम की भी होती हैं। घरेलू बंदोबस्त में ए से जेड तक वही ही हैं। वे अगर श्रमजीवी हैं तो भी अपना गृह कार्य किसी दूसरे के सहारे नहीं छोड़तीं। पति बाहर की दुनिया में रहता है तो ये अंदर-बाहर सभी जगह रमती हैं। घरेलू प्रजाति होने के बावजूद ये अनुमान से ही बाहर की बात को पकड़ लेती हैं। अपनी जवान हो रही बेटियों से भी फैशन से अपने समय के फैशन को लेकर कभी-कभी ईर्ष्यालु हो जाती है। पड़ोस में बढ़ने वाली संसारी सम्पदाओं पर उसकी खुफिया नजर और रात्रि के दूसरे पहर में पतियों को उनसे मिलने वाली उलाहना जैसी बातें पतियों को कहां पहुंचा देती है, यह किसी से नहीं छिपा। फिर पतियों की यात्रा कहां से और किस जुनून से प्रारंभ होती हैं, यह भी किसी से नहीं छिपा है। इन मामलों में ये पतियों की उत्प्रेरक होती हैं। पर आज तक इनके चंगुल में इसी भावभूमि पर फंसा पति कभी भी वाल्मीकि नहीं बन पाया। उसकी वजह साफ है तब के वाल्मीकि के घरवालों ने बड़ी सफाई से कह दिया था कि तुम जो कर रहे हो उसमें हमसे क्या लेना देना ? पर आज के समय में इतना साफ-साफ कहां चलता है। चढ़ जा सूली पे बच्चा भली करेंगे राम और राम ने मानो भली करने का कोई ठेका ले रखा हो।

पत्नियां गरीबी की प्रबल विरोधी है, गरीब की नहीं। इसके विपरीत ये अमीरी से प्रेम करती हैं और उसके स्थायित्व के लिए सदैव अगरबत्तियां सुलगाती है। कुल मिलाकर दुनिया में भारतीय पत्नियों का जलवा बढ़ रहा है। वे विदेशों की किसी पत्नी से उन्नीस नहीं है। पति भले कितना ही पढ़ा लिखा हो, पर वास्तविक डिग्री पत्नी को ही मिलती है। जैसे : पांच साल में डाक्टरी पास करने वाले की बीबी मात्र सात फेरे में ही डक्टराईन हो जाती है। ऐसे ही वह मस्टराईन, अफसराईन, कलेक्टराइन न जाने क्या-क्या हो जाती हैं।

दिन भर खटर खटर करते रहना इनकी आदत होती हैं। इस कारण से तथा शंकाओं में जीने से कभी कभी तनाव में रहती हैं। संसद में एक विधेयक लाया गया था कि इन्हें सप्ताह में एक दिन का अवकाश दिया जाए। बड़ी गहरी सोच इस विधेयक में थी, पर ये पारित नहीं हुआ। पास भी कैसे होता, ये यदि एक दिन अवकाश पर चली भी जाती तो पतियों को बारह बजे दिन में भी तारे नजर आते।

एक शुभचिंतक ने पति-पत्नी के मध्य उपजने वाले विवाद को सुलटाने के वास्ते बताया - जब भी कोई पति अपने दफ्तर से घर की ओर प्रस्थान करें तो अपने घर में गेट से जैसे ही घुसे वैसे ही अपनी कल्पना से गेट पर एक खूंटी बना ले, और लम्बी सांस भर कर जब उसे छोड़े तो कल्पना करें कि उसका (पति का) दिमाग बाहर निकल कर कल्पना से बनायी गयी खूंटी पर टंग गया और अब बचा सिर्फ दिल। इस बचे दिल को लेकर आप घर के अंदर दाखिल होईए। घर के अंदर दिमाग सिर्फ एक ही का चलेगा, वह भी आपकी पत्नी का। अब आप अपने घर में दिलदार पति है और आपका दिमाग गेट की खूंटी पर टंगा हुआ है। अब पत्नी कहे कि सूरज पश्चिम से निकलता है तो ठीक निकलता है, पश्चिम से। आखिर उसे निकलना तो है ही । अब पूरब से निकले या पश्चिम से। क्या फर्क पड़ता है। अब वह बोले कि निरा मूर्ख हो अपनी चड्ढी-बनियान नहीं खोज पा रहे हो, तो दिलदार पति का यह कहना कि ठीक फरमाया मेरे बाप भी यही कहते थे कि मैं वाकई मूर्ख हूं। अब आप बताईए कि क्या आप की सेहत पर इससे कुछ फर्क पड़ेगा। नहीं न दृ। पत्नी यह कहे कि खाना बनाना सीख लो मर जायेगे तो कौन खिलायेगा, तो दिलदार पति यह कहे कि तुम्हारे साथ मैं भी सता हो जाऊंगा, साथ ही ऊपर चलेंगे। दो टकी की जबान हिलाने में कुछ घिस जाता है, आपका। पर जब आप घर से अपने दफ्तर के लिए निकले तो खूंटी पर टंगे दिमाग को लम्बी सांस से यथास्थान धारण करिये और दिल को, बाहर छोड़ने वाली लंबी सांस के सहारे उसी खूंटी पर टांग दीजिए। बाहर की दुनिया में दिमाग रखिए, पर घर की चौखट पर उसे खूंटी पर ही टांग दे। अब आप बताइए इसमें कोई बुराई है, भला।

ये पत्नियां जितना जैसा भी दिमाग रखती है, वह आपके हिस्से व आपके हित के वास्ते ही रखती है। भले ही वह आपकी सोच के मुताबिक न हो। पर आपके वास्ते रखती तो है। वह आपकी शुभचिंतक हैं। घर-मंदिर की देवी हैं। भावना(दिल) के फूलों से उसकी आराधना करिए और दिमाग रूपी रावण को बाहर की लंका में विचरण करने दीजिए। ये सहनशील और सहृदय होती हैं और सहनशीलता और सहृदयता की अगरबत्ती भाव भावना से ही सुलगती है। इसलिए घरों में दिल का काम होता है, दिमाग का उतना नहीं। इसीलिए बाबा कबीर का कहना है कि शीश उतारै भुइं धरै, तो पैठे घर मांहि।

-----------------

रचनाकार परिचय:

आर. के. भंवर : व्यंग्य-श्री एवं सम-सामयिक व्यंग्य लेखन के पुरोधा श्रीयुत श्रीलाल शुक्ल जी के श्री-चरणों में बैठ कर साहित्य साधना करने वाले श्री आर.के.भंवर हिन्दी के नवोदित व्यंग्यकार है। श्री भंवर के अब तक हिन्दुस्तान, स्वतंत्र भारत, जनसत्ता, जागरण जैसे अनेक समाचार पत्रों में व्यंग्य रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं। उनका एक व्यंग्य संकलन ' अथ रिश्वतमेव जयते` प्रकाशनाधीन है।

श्री भंवर की रचनाएं सम-सामयिक विशयों पर होती हैं तथा पूरे परिवेश को रेखांकित करती है। 'मुनाफा फिर कमा लेंगे`, दंगा, ये पत्नियां, आईडेंटिटी क्राईसिस, ये सीडियां, गुरू फंसें, आदि रचनाएं व्यक्ति को सोचने पर विवश करती हैं। अभी उनकी दो रचनाएं 'मुर्गा और आदमी` तथा 'चिंता जिन करियो हम हूं न ..` वेब मैंगजीन 'सृजनगाथा` में आई हैं।

श्री भंवर एक सर्जनात्मक व्यंग्यकार है। उनकी रचनाओं में भाशा का चमत्कार न होकर उसकी सहजता दम भरती है।

डॉ० कौशलेन्द्र पाण्डेय,

साहित्यकार व कथाकार

लखनऊ

-----------------

सम्पर्क:

आर. के. भंवर

पता :

'सूर्य सदन`,

सी-५०१/सी, इंदिरा नगर,

लखनऊ(उ०प्र०)-२२६०१६

फोन नं० - ०५२२-२३४५७५२

मोबाईल नं० : ९४५०००३७४६

-------------------

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: ये सीडियाँ और ये पत्नियाँ
ये सीडियाँ और ये पत्नियाँ
http://bp0.blogger.com/_t-eJZb6SGWU/Rsk2P2qOgEI/AAAAAAAABOg/OG5HL3IsodY/s400/cdrom.png
http://bp0.blogger.com/_t-eJZb6SGWU/Rsk2P2qOgEI/AAAAAAAABOg/OG5HL3IsodY/s72-c/cdrom.png
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2007/08/blog-post_20.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2007/08/blog-post_20.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content