हेरॉल्ड पिंटर: एक सदी के अमर्ष की आवाज

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(हेरॉल्ड पिंटर - चित्र : साभार नोबेल प्राइज डॉट ऑर्ग) आलेख -विजय शर्मा हेरोल्ड पिंटर नाम है उस शख्सियत का जो अपने देश के प्रधान मंत्री...

(हेरॉल्ड पिंटर - चित्र : साभार नोबेल प्राइज डॉट ऑर्ग)

आलेख

-विजय शर्मा

हेरोल्ड पिंटर नाम है उस शख्सियत का जो अपने देश के प्रधान मंत्री टोनी ब्लेयर को उसकी गलतियाँ गिनाते हुए बेवकूफ कहने की हिम्मत रखता है. यह वह शख्सियत है जो आज के सर्वाधिक शक्तिशाली राष्ट्रपति जॉर्ज बुश को खुलेआम हत्यारा कहता है. यह वह शख्सियत है जिसने अपनी किशोरावस्था में राजाज्ञा का उल्लंघन किया और खुले तौर पर युद्ध में भाग लेने से इंकार कर दिया और जेल जाने के लिए तैयार रहा तथा जिसने सजा के तौर पर जुर्माना भरा. यह वह शख्सियत है जिसने 1966 में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधान मंत्री जॉन मेजर के द्वारा नाइटहुड देने की पेशकश को ठुकरा दिया, जो मागरेट थेचर की दक्षिणपंथी नीतियों का कटु आलोचक है. यह वह शख्सियत है जो आज के दौर का इंग्लिश भाषा का सबसे चर्चित नाटककार है, जिससे इंग्लिश भाषा को नए शब्द मिले. यह वह शख्सियत है जो नाटककार होने के साथ-साथ कवि, पटकथा लेखक, अभिनेता, और निर्देशक है. यह वह शख्सियत है जिसने छोटेबड़े उन्तीस नाटक और करीब इतने ही स्क्रीनप्ले लिखने के बाद अपनी सम्पूर्ण शक्ति को समेट कर मानवाधिकारों की जद्दोजहद में खुद को डुबो देने का निश्चय किया है. जिसे उसकी साहित्यिक देन के लिए पूर्व के सैमुअल बेकेट और यूजीन ओ'नील की भाँति इस वर्ष नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया है.

पुरस्कार की घोषणा के तत्काल बाद उसकी प्रतिक्रिया थी, ''जो मैं अनुभव कर रहा हूँ उसे शब्दों में बयान नहीं कर सकता, मेरे पास शब्द नहीं हैं. जब मैं स्टॉकहोम जाऊँगा मेरे पास शब्द होंगे. समारोह 10 दिसम्बर को होगा. 10 अक्टूबर 1930 को ईस्ट एंड लंडन के एक यहूदी परिवार जिसका पेशा दर्जीगिरी था के घर में पिंटर का जन्म हुआ. वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान है. लिखना उसकी महत्वाकांक्षा थी खुद उसके शब्दों में, ''करीब-करीब हाथ में पेन लिए मैं पैदा हुआ था. संगीत से भी उसे लगाव है. वह कहता है, 'मैं नहीं जानता हूँ कि संगीत लिखने को कैसे प्रभावित करता है पर यह मेरे लिए अत्यावश्यक है, जाज संगीत और क्लासिक्कल संगीत दोनों. उसके हीरो हैं जेम्स जॉयस तथा जोहान सेबेस्टियन बाख. आठ वर्ष की उम्र में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन लोगों को लन्दन छोडना पड़ा और जब वह चौदह बरस का हो गया तभी वह फिर वापस लन्दन आ सका. अत्याचार अन्याय कहीं भी किसी पर भी हो रहा हो दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति उसका जिम्मेदार होता है. सार्त्र, सिमोन ने भी लोगों को युद्ध के दौरान मरते हुए अपनी ऑंखों से नहीं देखा था पर वे भी इससे बड़े गहरे ढंग से प्रभावित हुए थे. यह सही है कि युद्ध में पिंटर ने लोगों को मरते हुए अपनी ऑंखों से नहीं देखा था पर उसने वो जगहें देखीं जहाँ बम गिरे थे. वह मानता है कि जिन्होंने बम गिराए वह खुद भी उस दुनिया का हिस्सा है. बमबारी के हालातों से वह कभी मानसिक रूप से उबर नहीं पाया.

1947 में जब उसे नेशनल सर्विस के लिए बुलाया गया तो उसने विरोध किया. एक साल में उसे दो बार बुलाया गया परंतु उसने दोनों बार विरोध किया और राजकोप का भाजक बना. वह जेल जाने, सजा काटने के लिए मन-ही-मन तैयार हो गया था और केस की सुनवाई के दौरान अपना टूथब्रश संग ले गया था उसे पक्का मालूम था राजाज्ञा के उल्लंघन का नतीजा क्या होता है. संयोग से दोनों बार एक ही मजिस्ट्रेट था और वह कुछ दयालु किस्म का भी था अत: उसने केवल 30 पाउंड का जुर्माना लगाया. उसके दर्जी पिता के लिए इतनी रकम जमा करना आसान न था पर उसने जुटाई. नेशनल सर्विस में बुलाए जाने पर इंकार करने की बात लोग सोच नहीं सकते थे. पर विशिष्ट लोग लीक पर नहीं चला करते. पिंटर जैसे स्वतंत्र चेता, साहसी व्यक्ति तो कदापि नहीं. मिलिट्री में जाने से इंकार करने के कारण परिवार की बड़ी बदनामी भी हुई, पर परिवार ने उसका संग दिया. उसे मालूम था वे उसे फिर बुलाएँगे पर वह यह भी जानता था कि वह फिर इंकार कर देगा. वह युद्ध के लिए कभी नहीं जाएगा.

पिंटर अपने पिता को बहुत प्यार करता था. ज्यादातर लोग करते हैं पर पिंटर उसे उसकी खूबियों के लिए प्यार करता था. एक बार हुआ यूँ कि जब पिंटर किशोर ही था, करीब तेरह बरस का तब उसे अपने पड़ोस की एक लड़की से प्यार हो गया. प्यार में पागल वह कविताएँ रचने लगा. पर जैसा कि ऐसे मामलों में अक्सर होता है लड़की किसी और की हो गई, पिंटर को न मिली. वह अब सच में पागल हो गया. उसे न नींद आती न भूख लगती. उसके पिता मुँह अंधेरे अपने काम पर जाने को घर से निकलते थे. एक दिन देखा कि करीब सुबह छ: बजे के आसपास जब अभी उजाला नहीं हुआ था, पिंटर किचेन में टेबल पर बैठा रो रहा है साथ ही कुछ लिख भी रहा है. पिता ने पूछा क्या लिख रहे हो पिंटर ने कागज पिता को पकड़ा दिया. पिता ने पढ़ कर उसे वापस लौटा दिया, एक शब्द न बोल कर केवल उसके सिर को थपथपाया और अपने काम पर निकल गये. उसे मालूम था पिंटर किस कठिन दौर से गुजर रहा था. पिंटर अपने पिता की यह समझदारी और सहानुभूति कभी न भुला सका. पिता यह भी कह सकता था 'क्या बकवास है यह सब. पर उसने कुछ नहीं कहा.

स्कूली दिनों में काफ्का और हेमिंग्वे पढने वाला पिंटर शुरु में हेराल्ड पिंटा के नाम से इंग्लेंड की 'पोयेट्री’ मैगजीन में कविताएँ लिखता था. उसके कई कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. वह स्कूल समारोहों में होने वाले नाटकों में हिस्सा लेता था. स्कूल में उसने मैकबेथ और रोमियो की भूमिकाएँ की. नतीजन उसे लन्दन के रॉयल एकेड़ेमी ऑफ ड्रामटिक आट्र्स में पढने के लिए अनुदान मिला. वह चार साल तक ड़ेविद बैरोन के नाम से थियेटर करता रहा. उसने बी.बी.सी. रेडियो प्रोग्राम में अभिनय किया, नाटक के सिलसिले में वह करीब एक साल तक आयरलैंड घूमता रहा. उसने 1957 में अपना पहला नाटक 'द रूम’ मात्र चार दिन में लिख ड़ाला.

अक्सर जिन्दगी सीधी रेखा में नहीं चलती है, वह किस दिशा में मुड़ेगी यह काफी हद तक संयोगों पर निर्भर करता है. हेरॉल्ड पिंटर कविताएँ लिख रहा था, नाटक कर रहा था, एक दिन हठात उसके मन में एक ड्रामे का प्लॉट कौंधा उसने इसकी चर्चा अपने एक मित्र से इसकी चर्चा की. वह मित्र ब्रिस्टल युनिवसटी के ड्रामा विभाग में काम करता था उसे पिंटर का आइडिया पसन्द आया. संयोग से ब्रिस्टल में नाटक होने वाला था पर समस्या थी कि यदि यह नाटक करना है तो स्क्रिप्ट एक सप्ताह के भीतर हाजिर होनी चाहिए. पिंटर ने अपने दोस्त को उत्तर दिया, 'ऐसा है तो इसे भूल जाओ. और फिर लिखने बैठ गया और मात्र चार दिन में नाटक पूरा कर ड़ाला. नतीजा था, 'द रूम जिसमें पिंटर के नाटकों की सभी खूबिया थीं. और इस तरह नाटककार पिंटर का जन्म हुआ.

उसी साल उसने अपना पूरी लम्बाई का पहला नाटक 'द बर्थ डे पार्टी’ लिखा. काफ्का से प्रभावित यह नाटक एक सामान्य आदमी को दिखाता है जो किन्हीं अज्ञात कारणों से अजनबियों के द्वारा धमकाया जा रहा है. भयभीत वह भागना चाहता है पर पीछा करने वालों के द्वारा दबोच लिया जाता है. वह व्याख्या नहीं करता है मात्र प्रस्तुत करके छोड देता है. 'द बर्थडे पार्टी’ पिंटर का पहला तीन एक्ट का नाटक है. यह नाटक बातचीत का एक बेहतर नमूना है. एक बेवकूफ आदमी स्टेनली जो ढोंग और बहाने बनाने में कुशल है, स्वयं को किसी जमाने में कंसर्ट में पियानो बजाने वाले के रूप में दावा करता है, अभी समुद्र तट पर बने एक गेस्ट हाउस में एकाकी जीवन बिता रहा है. इसमें स्टैनली का कहना है कि इस दिन उसका जन्म दिन नहीं है परंतु दो अजनबी आकर जबरदस्ती उसका जन्मदिन मनाने की जिद करते हैं. ये अजनबी घुसपैठिए उसे एक नया आदमी बना डालते हैं. उनके हाथों उसका पुनर्जन्म होता है, बिलकुल नए बदले हुए आदमी के रूप में और अंतत: वे बर्थड़े पार्टी मनाते हैं, यह बर्थड़े था ही. नाटक 'द डम वेटर में एक रहस्यमयी संस्था के द्वारा दो हत्यारों को एक अजनबी की हत्या के लिए काम पर लगाया जाता है. दोनों हत्यारे अपनी बेचैनी छिपाने के लिए जो संवाद करते हैं पिंटर उसमें कॉमेड़ी के तत्व डाल कर शब्दों का अपना कमाल दिखाता है. थोड़े-थोड़े अंतराल पर डाली गई खामोशियाँ जिसके नीचे भय, बेचैनी और आशंका खदबदाती रहती है, पिंटर की शैलीगत विशेषता है. ये मौन के क्षण खतरों की घंटियाँ बजाते हैं और एक प्रतिकूल एवं संशयात्मक वातावरण की सृष्टि करते हैं.

'द बर्थ डे पार्टी 1958 में वेस्ट एंड में पहली बार खेला गया परंतु एक सप्ताह के बाद ही कटु आलोचना के कारण बन्द हो गया. आलोचकों से उसका पहला साबका इतना कडुआ था कि वह कभी भी आलोचकों के प्रति सदय न हो सका. उसे लगता है आलोचक एक बेजा लोगों का झुंड है. उसे यह भी लगता है कि हमें आलोचकों की आवश्यकता नहीं है जो दर्शकों को बताएँ कि वे क्या सोचें. आलोचकों की तरह ही वह दर्शकों की भी परवाह नहीं करता है. वह लिखता है, किसी को अच्छा लगेगा या बुरा यह सोच कर नहीं लिखता है. 1959 में 'ए स्लाइट पेन उसका बी.बी.सी. के लिए पहला नाटक था, बाद में उसने अपने अधिकाँश नाटक बी.बी.सी. रेडियो प्रोग्राम के लिए ही लिखे.

उसका अपने पात्रों, चरित्रों से खूब द्वंद्व चलता है. इस संघर्ष में कई बार उसके किरदार जीत जाते हैं पर उसे इसमें रस मिलता है. कई बार लिखते-लिखते चरित्र स्वयं स्वतंत्र व्यवहार करने लगते हैं अपना जीवन स्वयं निर्माण करने लगते हैं. और जो वह लिखना चाहता है उसकी जगह कुछ और रच जाता है. एक साक्षात्कार में उसने कहा, 'यही तो नाटक लिखने का मजा है, चीजें स्वतंत्र होती हैं पर अंतिम रूप से लगाम आपके हाथ में रहती है. उसे इस सब में आनन्द आता है. उसे हत्यारे को रचने में भी मजा आता है. और जब वह अभिनय करता है तो उसे किसी भी चरित्र को निभाने में तुष्टि मिलती है. एक बार उसने स्वयं 'वन फोर द रोड में हत्यारे की भूमिका की और इसमें उसे खूब रस आया.

फ्रांसीसी समीक्षक रोला बार्थ 'लेखक की मृत्यु में स्थापित करता है कि रचना पूर्ण होने के बाद रचनाकार से उसका संबंध समाप्त हो जाता है नाटक के संबंध में तो यह और भी सटीक उतरता है. स्टेज पर जाने के बाद नाटक न नाटककार का रह जाता है न ही निर्देशक का. उसका कलाकारों और दर्शकों से प्रत्यक्ष रिश्ता जुड़ता है और कभी-कभी नाटककार जो कहना चाहता है उससे अलग अर्थ अभिनय के दौरान संप्रेषित होता है. एक बार जब हेरॉल्ड पिंटर अपना नाटक 'होमकमिंग’ देख रहा था तो उसे यह देख कर अच्छा नहीं लगा कि नाटक के अंत की ओर एक पात्र आकर रूथ के कंधे पर हाथ रखता है मानों वह उसे अपने अधिकार में रखे हो. इस क्रिया से रूथ की स्वतंत्रता नष्ट होती है. नाटक के बाद पिंटर ने ऐक्टर, डॉयरेक्टर सबसे अपनी बात कही और अपना विरोध प्रकट किया. दर्शक अगर समझदार हो तो नाटककार का संदेश उस तक पहुँच जाता है. एक बार इसी नाटक को उसने न्यूयॉर्क में देखा जहाँ मिंक पहने हुए रईस औरतें और बहुत अमीर लोग दर्शक थे. शुरु में इन तथाकथित रईसों की नाटक के प्रति बड़ी नकारात्मक प्रतिक्रिया थी और यह बात अभिनेताओं तक संप्रेषित भी हो गई. हालाँकि बाद में दर्शक नाटक के साथ हो लिए पर पिंटर को अच्छा नहीं लगा. इसीलिए पिंटर कभी-कभी कहता है, 'फक द ऑडियंस’. कहा भी जाता है 'अरसिकेषु कवित्व पाठनम शिरसि मा लिख मा लिख’.

बेकेट से प्रभावित पिंटर उसी की तरह लिखता है, वह अपने पात्रों और उनके क्रिया-कलापों की कोई तर्कपूर्ण व्याख्या नहीं करता है. कम-से-कम शब्दों में तनावपूर्ण तथा संत्रास का वातावरण सृजन करने में उसे महारत हासिल है. यही उसकी शोहरत का प्रमुख कारण है इसीलिए उसे बीसवीं सदी के सम्मानित नाटककार का दर्जा मिला है. नग्न यथार्थ की दृष्टि और असंगतकार (एब्सडस्ट) के कान के साथ वह पिछली सदी के पाँचवें दशक में स्टेज पर अवतरित हुआ. चुप्पी तनाव पैदा करती है. पिंटर इसी खामोशी का अपने नाटकों में बड़े नाटकीय ढंग से प्रयोग करता है. छोटे-छोटे संवादों के बीच सन्नाटा बोध के नए आयाम खोलता है. उसकी थीम भी ऐसी ही होती है, उत्तेजक कल्पना, जलन, पारिवारिक अशांति, घृणा, मानसिक बेचैनी, बेनाम धमकियाँ, मन की खलबली, परेशानी, घबराहट, आदि, आदि. संवाद रोजमर्रा के जीवन (मंड़ेन) से होते हैं जिनमें अशुभ, डरावनी (सिनिस्टर) अंतरधारा का प्रच्छन्न प्रवाह चलता है. उसके अधिकाँश नाटक एक कमरे में चलते हैं. जिसमें रहने वाले किसी खास कारण से लोगों या किसी अन्य फोर्स से आशंका से घिरे रहते हैं इस कारण को न तो स्पष्ट रूप से दर्शक बता पाता है न ही नाटककार स्पष्ट करता है न ही पात्र स्वयं मुखरित करता है. अक्सर पात्र जीवित बचे रहने या पहचान के संकट से जूझते रहते हैं. वे अपने आंतरिक भय और कमजोरियों को छल कपट, स्वाँग के प्रदर्शन से छिपाने का असफल प्रयास करते हैं परंतु उनका पाखंड ज्यादा देर चलता नहीं है. पिंटर अपने पात्रों के कार्यकलापों की तर्कपूर्ण व्याख्या देने से इंकार करता है. परंतु वह लोगों के जीवन के भयंकर क्षणों की अस्तित्ववादी झलक दिखाता है. वह दिखाता है कि आदमी को स्पेस की जरूरत है अपने भीतर भी और बाहर भी.

उसके नाटकों के प्रत्येक संवाद, लहजे, छोटी बड़ी, हल्की भारी ध्वनि, शब्द, वाक्य, आरोह-अवरोह सबमें कोई उद्देश्य रहता है. यहाँ तक कि व्यतिक्रम, आवृति, विच्छिन्नता, बोलियों के प्रयोग तक में वह सावधानी से काफी कुछ कहने का प्रयास करता है. भाषागत प्रयोग उसके नाटकों की विशेषता है. दर्शक को अगर नाटक अर्थ के बगैर लगता है तो वह स्वयं उसे अर्थ देता चलता है, उसमें एक पैटर्न खोज निकालता है, एक तरह की संपूर्णता कायम कर लेता है. क्योंकि वह अव्यवस्था बर्दाश्त नहीं कर सकता है. यूँ तो सभी नाटककार इस तरह के भाषागत प्रयोग या तो कुछ बताने के लिए या फिर कुछ छिपाने के लिए अक्सर करते हैं, परंतु पिंटर इसका बड़ा सफल प्रयोग करता है. उसके 1973 के 'मोनोलोग’ और 1975 के 'नो मैन्स लेन्ड’ में नाटक के पात्र अपने संघर्ष में शब्दों का प्रयोग हथियार की तरह करते हैं, वे न केवल जीवित बचे रहने के लिए वरन अपना मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखने, पागलपन से बचे रहने के लिए भी इसका प्रयोग करते हैं. पिंटर के किसी भी नाटक को लिया जाए, चाहे वह 'द बर्थड़े पार्टी’, 'टी पार्टी’ और 'पार्टी टाइम’ हो जिसमें सोशल गैदरिंग और परस्पर सामाजिक व्यवहार हैं या घरेलू ताने-बाने में बुने गए 'होमकमिंग’ हो अथवा दुनिया के नजरिया वाले नाटक 'मोनोलोग’ और 'माउंटेन लेंग्वेज’ हो मन में प्रश्न उठता है क्या वास्तविकता और शब्द में कोई रिश्ता होता है.

अपने दूसरे पूरी लम्बाई के नाटक 'द केयरटेकर’ के साथ 1960 में वह नाटककार के रूप में स्थापित हो गया. 'द बर्थडे पार्टी’ तथा 'द केयरटेकर’ के वातावरण ने एक नया विशेषण उत्पन्न किया 'पिंटरस्क’. जिस शब्द का अर्थ बना स्याह संकेतों और सुझावों से भरे वातावरण को अनिश्चय के साथ निष्कर्ष निकलने के लिए दर्शकों को छोडना. 1971 में उसने 'ओल्ड टाइम्स’ लिखा जिसकी प्रमुख पंक्ति थी, 'नॉरमल, वाटिज नॉरमल?’ पिंटर ने थियेटर को उसके मूल तत्वों में स्थापित कर दिया जहाँ एक निश्चित घेरे में रहने वाले लोग एक दूसरे की दया पर हैं और आडम्बर का दिखावा भहरा जाता है. नाममात्र के कथानक (प्लॉट) में अधिकार, सत्ता और शक्ति को लेकर संघर्ष और ऑंखमिचौनी गुँथती चलती है. वह गागर में सागर भरता चलता है. उसके नाटकों में मनोविश्लेषण और नारी विमर्श की पर्याप्त गुंजाइश रहती है.

'नाटक केयरटेकर दो भाई और एक केयरटेकर की कहानी है यहाँ भी सत्ता और अधिकार का संघर्ष है.

वह बराबर लघु नाटक लिखता रहा बड़े नाटक उसने कम लिखे पर जो भी लिखे वो चर्चित हुए. एक लम्बे अंतराल के बाद 78 में 'बिट्रेयल लिखा और फिर 94 में 'मूनलाइट. उसका नाटक 'बिट्रेयल ब्रिटिश ब्रोडकास्टर जोऐन बेकवेल के साथ उसके अफेयर का परिणाम है. जोऐन अपनी जवानी के दिनों में बुद्धिजीवियों के बीच बड़ी मस्त चीज के रूप में जानी जाती थी. पिंटर ने 'माउंटेन लेंग्वेज एक राजनीतिक नाटक बल्खान के आदिवासी अल्पसंख्कों के दमन से प्रभावित हो कर लिखा.

'होमकमिंग एक पारिवारिक नाटक है. परिवार स्त्री विरोधी है. परिवार से विमुख टेड्डी दूर अमेरिका में एक युनिवर्सिटी में फिलॉसफी पढ़ाता है. छ: वर्षों के बाद वह अपनी पत्नी रूथ को अपने परिवार से मिलाने उसके साथ लन्दन आता है. परिवार में केवल पुरुष हैं. टेड्डी का पिता चिड़चिड़ा, आक्रामक और सनकी है जो पहले एक कसाई था. कुछ दिनों के बाद टेड्डी युनिवसटी में पढ़ाने के लिए अकेला अमेरिका लौट जाता है. न तो उसे किसी की जरूरत है, न किसी को उसकी जरूरत है. रूथ लन्दन में परिवार में ही रह जाती है, सबकी देखभाल के लिए माँ या सबकी औरत बन कर. सबको उसकी जरूरत है. इसमें वह असंतुलित परिवार में तनावों का संतुलन प्रस्तुत करता है. नाटक में यौन सत्ता को लेकर संघर्ष की एक प्रच्छन्न अंतरधारा चलती है. स्वयं पिंटर को इसके दूसरे एक्ट का शुरुआती सीन बड़ा अच्छा लगता है, जब खाने के बाद जहाँ रूथ की बेइज्जती होती है सब सिगार पीते हुए आते हैं और बैठ जाते हैं. रूथ टेड्डी के छोटे भाई के साथ कॉफी लिए हुए आती है, एक-एक करके सबको कॉफी देती है और फिर उसके बाद कॉफी टेबल उन सब पर उलट देती है. सारी क्रिया बिना एक भी संवाद के खामोशी में चलती है. रूथ का यह विद्रोही व्यवहार जो पिंटर ने खुद रचा है, पिंटर को बड़ा मजा देता है. वह बहुत खुश है उसके इस कार्य से क्योंकि वह उसे एक स्वतंत्र स्त्री दिखाना चाहता है. वह अपने इस नाटक 'द होमकमिंग’ को वह एक फेमिनिस्ट प्ले मानता है उसके अनुसार नाटक के अंत में रूथ एक स्वतंत्र स्त्री है और उसके आस-पास के लोग नहीं जानते हैं कि उसके संग क्या करना है. क्योंकि अब वह उनके नियंत्रण में नहीं है. 'द होमकमिंग’ को टोनी एवार्ड, द वाइटब्रेड एंग्लो-अमेरिकन थियेटर एवार्ड और न्युयॉर्क ड्रामा क्रिटिक एवार्ड प्राप्त हुए

'द होमकमिंग’, 'केयर टेकर’, 'बिट्रेयल’, 'ओल्ड टाइम्स’, 'ऐशेस टू ऐशेस’ आदि उसके कई एब्सर्ड नाटक हैं. उसके करीब-करीब सभी नाटकों में पोलिटिक्स अंत:सलिला की भाँति है पर पिंटर स्वयं स्वीकार करता है कि 'वन फॉअर द रोड’, 'पार्टी टाइम’, 'माउंटेन लेंग्वेज’ सीधे-सीधे पोलिटिकल प्ले हैं. सत्तर के दशक से वह अमेरिकन फिल्म से जुड गया. 1977 में उसने स्क्रीनप्ले लिखना प्रारम्भ किया और अब तक वह करीब उन्तीस पटकथाएँ लिख चुका है. 1981 में उसकी पटकथा पर बनी फिल्म 'द फ्रेंच लेफ्टीनेंट्स वूमन’ खूब प्रसिद्ध हुई. 'द सरर्वेंट’ (1963), 'द एक्सीडेंट’ (1967), 'द गो बिटवीन’ (1971), 'द लास्ट टाइकून’ (1974), 'बिट्रेयल’ (1982), 'टर्टल ड़ायरी’ (1985), 'रीयूनियन’ (1989), 'द हेंडमेड्स टेल’ (1990), 'द कम्फर्ट ऑफ स्ट्रेंजर्स’ और काफ्का के 'द ट्रायल’ की पटकथा 1990 में लिखी जो प्रसिद्ध हुई.

पिंटर को ढेरों पुरस्कार मिल चुके हैं. 1963 में बलन फिल्म फेस्टिवल का सिल्वर बेयर, 1965 में बैफ्टा, 1971 में फिर बैफ्टा, 1970 में हम्बर्ग शैक्सपीयर प्राइज, 1971 में कान फिल्म फेस्टिवल में सम्मान, 1981 में कॉमनवेल्थ एवार्ड. 1996 में थियेटर का लाइफ टाइम्स एचीवमेंट के लिए लॉरेंस ओलिवर एवार्ड, 2002 में साहित्य के लिए चैम्पीयन ऑफ ऑनर मिला और अब 2005 में नोबेल. नोबेल पुरस्कार की घोषणा से आलोचकों को आश्चर्य हुआ, भला बुश और ब्लेयर को खुलेआम क्रिमनल कहने वाले को, कट्टर वामपंथी विचारधारा के व्यक्ति को यह पुरस्कार कैसे मिला. आलोचक एकाध को छोड़ कर उसके नाटकों को महज हँसी-मजाक का खिताब देते हैं. वे उसे उच्च कोटि का नाटककार मानने को तैयार नहीं हैं. स्वयं पिंटर भी जानता है कि उसके मुखर विचारों के चलते उसके अपने देश में और विदेशों में भी बहुत सारे लोग उसे पसन्द नहीं करते हैं. पुरस्कार की घोषणा से वह भी कम चकित न था. तत्काल उसका जवाब था, ''आई वंडर, आई वंडर.

जीवन के विषय में पिंटर को लगता है कि यह बहुत बहुत जटिल है जिसमें यथार्थ यथार्थ होता है नाटक की तरह नहीं जिसमें यथार्थ और कल्पना में भेद करना कठिन है, जहाँ सत्य और मिथ्या के बीच भेद करना आसान नहीं है. नाटककार के लिए जरूरी नहीं कि कोई चीज या तो पूरी तौर पर सही हो या फिर पूरी तौर पर गलत; यह एक साथ सही और गलत दोनों हो सकती है, पर एक नागरिक के लिए ऐसा नहीं है. हमारी कल्पना का जगत और वास्तविक जगत बिलकुल दो अलग-अलग संसार हैं.

वैसे तो पिंटर ने 1966 में एक साक्षात्कार में बताया कि वह किसी खास ऐक्टर के लिए कोई भूमिका नहीं लिखता है परंतु उसकी पहली पत्नी विवियेन मरचेंट ने अक्सर उसके नाटकों में काम किया. 1956 में उसने अभिनेत्री विवियेन से विवाह किया जो 1980 तक कायम रहा, दोनों का एक बेटा ड़ेनियल आज एक लेखक और संगीतकार है. परंतु तलाक के कारण उसे अपने बेटे से अलग होना पड़ा था. विवियेन और पिंटर के कटु तलाक ने पत्र-पत्रिकाओं को वर्षों तक मसाला प्रदान किया था. 1982 में विवियेन की मृत्यु हो गई. 1980 में उसने लेखिका एवं इतिहासकार लेड़ी एंटोनिया फ्रासर से शादी की. नोबेल पुरस्कार की खुशी उसने अपनी दूसरी पत्नी लेड़ी फ्रासर के साथ शेम्पेन पी कर मनाई.

2002 में पता चला कि उसे गले का कैंसर है. पता नहीं क्या कारण है बड़े-बड़े लेखक केंसर ग्रसित हो जाते हैं पाब्लो नेरुदा, गैब्रियल गार्शा मर्क्वेज और हेरॉल्ड पिंटर. सबके सब.

पाब्लो नेरुदा, कैफी आजमी, सज्जाद जहीर, सफदर हाशमी की तरह ही लेखक होने के साथ-साथ पिंटर अपने उग्र, निर्भीक राजनीतिक विचारों के लिए भी जाना जाता है. लेखक के रूप में जितनी प्रसिद्धि उसे मिली है उससे भी कहीं ज्यादा वह अपने वामपंथी विचारों के लिए प्रसिद्ध है और यह प्रसिद्धि कुख्याति की हद छूती है. पिंटर विद्रोही प्रारम्भ से था, अपने जीवन की शुरुआत में ही उसने युद्ध में भाग लेने से इंकार कर दिया परंतु जब 1973 में पिनोशे ने चिली के राष्ट्रपति एलेंड़े का तख्ता पलट दिया, इस घटना से पिंटर बहुत विचलित हो गया और तभी से वह खुल कर सक्रिय राजनीति में आ गया, क्योंकि उसे उस समय भी स्पष्ट रूप से पता था कि इस पूरी घटना के पीछे सी.आई.ए. तथा अमेरिका का हाथ है. अब तो खैर सारे दस्तावेज बाहर आ रहें हैं. उसने खुलेआम अमेरिका की नीतियों की आलोचना प्रारम्भ कर दी. जब मारग्रेट थेचर पावर में थी तब लन्दन के कैम्पडेन हिल में पिंटर का घर वामपंथियों की सभाओं का अड्डा बन गया था जो थेचर को उसकी नीतियों की वजह से पदच्युत करने की योजना बनाया करते थे. अयातुल्ला खुमैनी के फतवा के समय पिंटर ने सलमान रुश्दी का पक्ष लिया था. 1999 में सरविया समस्या के दौरान उसने नाटो की भूमिका की भर्त्सना की. 2001 में वह 'द इंटरनेशनल कमिटि टू डेफेंड स्लोवोडान मिलोसेविक’ का सदस्य बन गया और कई अन्य बुद्धिजीवियों के संग मिल करसरबिया के मिलोसेविक के खिलाफ जैसा मुकदमा चलाया जा रहा था, उसको गलत बताया. उसका कहना है कि वह मिलोसेविक के पक्ष में नहीं है परंतु जिस बेजा तरीके से मिलोसेविक का मुकदमा चलाया गया वह उसके खिलाफ है. इसीलिए उसने इस मुहीम में भाग लिया. कुछ लोगों को यह पिंटर को अपना बचाव करने का तरीका लगा, उन्हें लगा कि पिंटर अपनी आलोचना से बचने के लिए सफाई दे रहा है. इस तरह कई बार पिंटर जाने-अनजाने, चाहे-अनचाहे विवादों के घेरे में पड जाता है. पर वह इन सबकी ज्यादा परवाह नहीं करता है और उसे जो उचित लगता है करता, कहता और लिखता जाता है. इराक युद्ध के खिलाफ उसने सक्रिय रूप से काम किया और बड़े कड़े शब्दों में टोनी ब्लेयर तथा जॉर्ज बुश की आलोचना की. वो पूछता है जब बुश और ब्लेयर में खुद को आईने में देखते होंगे तो असल में क्या देखते होंगे?

उसका कहना है बुश एवं ब्लेयर को इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में युद्ध अपराधियों की भाँति मुकदमा चला कर सजा देनी चाहिए. उसने इराक युद्ध पर कविता लिखी,

The bombs go off
The legs go off
The heads go off
The arms go off
The feet go off
The light goes out
The heads go off
The legs go off
The lust is up
The dead are dirt
The lights go out
The dead are dust
A man bows down before another man
And sucks his lust

हेरॉल्ड पिंटर को इराक युद्ध पर कविता लिखने पर विलफ्रेड ऑयेन पुरस्कार मिला.

हमारे अपने देश में आज पिंटर की बात को ध्यान से सुनने और उस पर विचार करके, अमल करने की कितनी सख्त जरूरत है यह बताने की आवश्यकता नहीं है. निजिकरण के नाम पर हमारा देश भी गिरवी रखा जा रहा है, चाहे सरकार किसी भी पार्टी की हो, राजनेता मात्र अपना हित साधने में लगे हैं. हाल के वर्षों में ब्रिटेन के नाटककार अमेरिका की बनिस्बत सरकार की नीतियों के विरोध में ज्यादा मुखर रहे हैं. 11 सितम्बर 2001 के बाद से वह और मुखर हो गया है. पिंटर के अनुसार एक विचार के रूप में प्रजातंत्र अच्छा है परंतु जिस तरह उसका उपयोग हो रहा है उसे वह बकवास लगता है. वह ब्रिटिश सरकार की विदेश नीति का आलोचक है तथा देश के अन्दर ही रेल, पानी जैसी मूल जरूरत की वस्तुओं के निजिकरण को गलत मानता है. रेल में सुरक्षा के इंतजाम पर ये निजि कम्पनियाँ खर्च नहीं करना चाहती हैं. लोगों को पानी के लिए काफी कीमत चुकानी पड़ती है और जहाँ पानी मिलना चाहिए वहाँ वह नहीं पहुँचता है और तो और इन निजि कम्पनियों के अधिकारी स्वयं गोल्फ जैसे खेल में मशगूल रहते हैं. मिलीयन पाउंड जेब में भरने वाले ये लोग जनता की सुविधा और सुरक्षा की परवाह नहीं करते हैं. ब्रिटेन की वर्तमान सरकार केवल बड़े उद्योगों में रूचि रख रही है. देश या जनता की भलाई से उसे कुछ लेना देना नहीं है. पिंटर इस बात को न केवल जानता समझता है अपनी कथनी और करनी से वह इसे लोगों को बता भी रहा है. और इस तरह एक जिम्मेदार नागरिक तथा एक बुद्धिजीवी की अपनी भूमिका बखूबी निभा रहा है.

अमेरिका मानवीय मूल्यों, मानवीय सहायता के नाम पर जो कर रहा है वह पिंटर को ढकोसला लगता है. इन राजनेताओं की कथनी और करनी में जो खाई है, उसे इस दोमुहेपन से जुगुप्सा होती है. सत्ता का ढाँचा असल में लोगों की अवहेलना करता है क्योंकि इसी तरह से वह कायम रहता है. परंतु सत्ता में बैठे लोग कहते ठीक इसके विपरीत हैं, वे कहते हैं, ''हम तुमें प्यार करते हैं. हम तुम्हारे प्रति कठोर हैं क्योंकि हम तुम्हारी चिंता करते हैं. यहाँ तक कि जब वे लोगों को यंत्रणा देते हैं तब भी कहते हैं, ''हम तुम्हें प्यार करते हैं. कृपया हमारा विश्वास करों और हम पर निष्ठा रखो. और पिंटर को सबसे ज्यादा भयभीत करने वाला लगता है जब वे कहते हैं, ''हम तुम्हें यंत्रणा देकर तुम्हारे बेहतर हितों की रक्षा कर रहें हैं. पिंटर इसको ऑरविलियन बात मानता है. 2003 फरवरी में चिढ़ कर उसने लिखा,

Democracy

There’s no escape.
The big pricks are out.
They’ll fuck everything in sight.
Watch your back.

अमेरिका जो मानवाधिकारों का ठेकेदार बनता है उसके अपने देश के भीतर कैसे-कैसे मानवाधिकारों का हनन होता है पिंटर के पास इन सबके पुख्ता सबूत हैं क्योंकि अमेरिका में उसके कुछ मित्र हैं जो उसे इन भीतरी बातों की जानकारी देते रहते हैं. उसे अच्छी तरह मालूम है पिछले बीस सालों से अमेरिकी जेलों में क्या चल रहा है. एमनेस्टी रिपोर्ट से ये सब आज जगजाहिर हो चुका है. मानव मन की रहस्यमयी गुत्थिओं को प्रस्तुत करने में माहिर पिंटर को विभिन्न संस्थाएँ अपने यहाँ भाषण देने के लिए आमंत्रित करती रहती हैं. सरबिया में जब बम गिराए जा रहे थे तब मानव जीवन की गुत्थियों की पिंटर की समझ का कायल हो कर उसे 'इंस्टटीयूट ऑफ जुंगीयन साइकेट्रिक्स’ में भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया. उसने वहाँ के प्रेसीडेंट से कहा भी कि तुम मुझे क्यों बुला रहे हो? संस्था का अध्यक्ष पिंटर के विचारों से परिचित था. उसने कहा, ''मुझे लगता है वे रुचि लेंगे”. पिंटर ने भाषण लिखा. और उन सब बातों का लेखाजोखा दिया जो अमेरिका में चल रहा था खासतौर पर मानवाधिकारों की रक्षा की ठेकेदारी का दावा करने के नाम पर. और वहाँ उसने अमेरिका की यंत्रणा प्रणाली पर विस्तार से बताया. उसने अपने भाषण में अमेरिका में कैदियों को यातना देने के तरीकों का खुलासा किया. उसने बताया कि वहाँ के जेलों में कितने कैदी हैं और उन्हें किस तरह यंत्रणा कुर्सी, यंत्रणा बेल्ट और यंत्रणा बन्दूक के द्वारा सताया जाता है. वह अमेरिका की ड़ेथ पेनाल्टी व्यवस्था से भी सहमत नहीं है. और वहाँ लोगों ने उसकी बात सुनी और किसी ने भी आपत्ति नहीं की. 250 से ज्यादा श्रोता उसकी बातें ध्यानपूर्वक सुनते रहे. किसी ने भी नहीं कहा यह असंगत है. श्रोताओं ने उसकी कई बात पर अपनी असहमति प्रकट की परंतु इन बातों पर नहीं. आज विश्व जानता है कि अमेरिका अबु गरीब जेल में क्या कर रहा है.

'द टेलीग्राफ’ के स्तम्भकार अमित रॉय के अनुसार हेरॉल्ड पिंटर एक अटपटा आदमी है. परंतु नोबेल एकेडमी को हेरॉल्ड पिंटर सामान्य रूप से बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ब्रिटिश ड्रामा के सर्व प्रमुख प्रतिनिधि के रूप में दृष्टिगोचर होता है. ड्रामा में एक खास तरह के वातावरण को बताने के लिए उसका नाम 'पिंटरर्स्क’ भाषा में एक विशेषण के रूप में प्रयुक्त होता है इससे वह आधुनिक क्लासिक की श्रेणी में स्थान ग्रहण करता है. 'द बर्थड़े पार्टी’ तथा 'केयरटेकर’ नाटकों के रोजमर्रा के डॉयलॉग तथा उससे उत्पन्न परिवेश के कारण यह विशेषण निर्मित हुआ. उसके नाटकों पर काफ्काई प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है. उसके नाटकों को धमकी की कॉमेडी (कॉमेड़ी ऑफ मेनेस) की संज्ञा भी दी जाती है, जहाँ एक घेराबन्द स्थान में लोग अजनबियों, घुड़कियों से संकटग्रस्त रहते हैं, भय का वातावरण होता है परंतु भय का कारण बहुत स्पष्ट नहीं होता है. उसके नाटकों की दूसरी प्रमुख थीम होती है चलायमान अतीत का पकड़ में न आना. यहाँ हमें ऐसे लोग मिलते हैं जो अपने अस्तित्व को संकुचित और नियंत्रित करते हुए अतिक्रमण के खिलाफ या अपने खुद के संवेगों से ही स्वयं के बचाव में लगे हुए हैं. उसके पोलिटिकल नाटकों की थीम अन्याय और खतरे के विश्लेषण से सम्बंधित होती है.

साहित्यकार का सच्चा धर्म है अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना, दमन का विरोध करना, अल्पसंखकों के हितों की रक्षा करना, कमजोरों का साथ देना, समाज की गजालत, गन्दगी का न केवल पर्दाफाश करना वरन उसकी साफ-सफाई में भी आगे आकर बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना. और आज वक्त आ गया है जब मात्र लिख कर लेखक अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं मन सकता है, उसे सक्रिय रूप से मैदान में उतरना होगा. शायद इसीलिए अब पिंटर स्वयं कह रहा है, ''उन्तीस नाटक लिख लिए. क्या यह काफी नहीं है? वह अपनी काफी ऊर्जा राजनीतिक बातों में लगाता है क्योंकि चीजें आज जिस स्थिति में हैं उसे यह आवश्यक लगता है कि वह इस दिशा में सक्रिय रूप से भाग ले.

उग्र विचारों के संग-संग पिंटर एक मस्त तबीयत का आदमी भी है. एक बार एक पत्रकार उसका साक्षात्कार लेने गई और जब मुलाकात समाप्त होने पर जाने लगी तो पिंटर ने उसे अपने सेल्फ से निकाल कर दो पुस्तकें दीं. एक पुस्तक थी 'सेलेब्रेशन क्योंकि यह उसकी नवीनतम पुस्तक थी और पत्रकार के पास यह तब नहीं थी, और दूसरी थी 'द फ्रेंच लेफ्टीनेंट्स वूमन’ का स्क्रीनप्ले, क्योंकि पत्रकार ने उस पुस्तक की प्रशंसा की थी. पूरे साक्षात्कार के दौरान पिंटर बड़ा सजीव व सक्रिय था, जरूरत पड़ने पर अभिनय करके दिखाता हुआ. खूब गम्भीर और मौका आते ही हँस पड़ने को तत्पर. पिंटर टिपिकल इंग्लिश मैन है. वह सोचता है कि 'ईश्वर ने धरती पर जितनी चीजें बनाई हैं उसमें सबसे बड़ी चीज है क्रिकेट पक्के तौर पर सैक्स से ज्यादा, वैसे सैक्स भी बुरा नहीं है.

हेरॉल्ड पिंटर ने जब लिखना शुरु किया अपने समकालीनों से उसकी खास शैली बिलकुल भिन्न थी. शुरु में लोगों को लगा है एक क्षणिक फैशन है. परंतु उसकी यह शैली क्षणिक शैली से काफी ज्यादा साबित हुई. एक नए जीवन, एक नई आवाज के रूप में स्थापित होने, ख्याति पाने के बाद भी पिंटर अपनी विशिष्ट शैली में एक से बढ़ कर एक मास्टरपीस रचता गया और उसके लेखकीय जीवन काल में ही ब्रिटिश एक्टिंग के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता एवं कलाकार उसकी इन चुनौतीपूर्ण सृष्टियों को स्वीकार करने के लिए आगे आते रहे. बहुत से अन्य कलाकारों के साथ-साथ जॉन गिल्गट, इयान होम, एलान बेट्स, रॉल्फ रिचर्डसन, ड़ोनाल्ड प्लीसेंस, माइकल गैम्बोन, पेनेलोप विल्टन, एलीन एट्कीन, मिरांड़ा रिचर्डसन, डैनियल मेसी जैसे मजे कलाकार उसकी कृतियों को स्टेज पर साकार करते रहे.

पिंटर आज के मनुष्य की भाषा प्रयोग करता है. किसी सामाजिक सम्मेलन, समारोह में, सोशल गेदरिंग में चले जाइए लोग ऐसी ही भाषा बोलते सुनाई देंगे असल में वे भीतर से भयभीत और आशंकित हैं और ऊपर से बहादुरी का मुखौटा लगाए रखते हैं थोड़ा-सा कुरेदा जाए तो उनका मुलम्मा उतर सकता है और उनके अन्दर बैठा डर, जलन, पारिवारिक अशांति, घृणा, मानसिक बेचैनी, बेनाम धमकियाँ, खलबली, परेशानी, घबराहट, बाहर आ सकता है. दूसरों को घुडकी देने वाला, धमकाने की बोली बोलने वाला भीतर से बड़ा कमजोर होता है. आज आउटसोसंग के नाम पर मशरूम की तरह उगे कॉल सेंटर में इसी तरह की अनर्गल भाषा का प्रयोग हो रहा है. जहाँ भी कालिमा है चाहे जीवन में या सत्ता में पिंटर उसका पर्दाफाश करता है. पिंटर के मन में इन बातों को लेकर बहुत अमर्ष है और यही अमर्ष उसके नाटकों और भाषणों में उभर कर आता है.

कई लोगों को लगता है नोबेल पुरस्कार पिंटर को काफी देर से मिला यह उसे बहुत पहले मिल जाना चाहिए था. इस अवसर पर बधाई देते हुए उसके एक चहेते ने सुझाव दिया कि हमें उसके सम्मान में खामोशी का पिंटर पॉज रखना चाहिए. यू.के. के एक और प्रशंसक ने कहा तुम्हें लोग मजाक के तौर पर लेते थे अब वे गम्भीरता से लेंगे. आलोचकों को भले ही आश्चर्य और आपत्ति हो परंतु बहु आयामी व्यक्तित्व के स्वामी हेरॉल्ड पिंटर को पुरस्कार के लिए चुन कर नोबेल कमिटी ने अपनी निष्पक्षता का परिचय दिया है. वैसे आज कोई पुरस्कार विवादों से परे नहीं रह गया है भले ही नोबेल पुरस्कार ही क्यों न हो. 1.3 मिलियन पाउंड का नोबेल पुरस्कार इस बार भी विवादों के घेरे में था जब पुरस्कार की घोषणा के मात्र दो दिन पूर्व समिति के एक सदस्य ने इस्तीफा दे दिया था. पिछले वर्ष का विजेता एल्फ्रिड जेलिनेक भी वामपंथी था और उसके चुनाव पर ऑस्ट्रिया में उसके देशवासियों को आश्चर्य हुआ था. सार्त्र ने नोबेल को आलू के बोरे की मानिन्द ठुकरा दिया था पर पिंटर उसे पाकर प्रसन्न है. जब तक यह आलेख पाठकों के हाथ में पहुँचेगा पिंटर अपना भाषण दे चुका होगा. जिसको जो कहना हो कहता रहे पिंटर ने 10 दिसम्बर को स्टॉकहोम जाने का मन बना लिया है और साहित्य प्रेमियों को इंतजार है उसके शब्दों का जो वह अपने भाषण के दौरान वहाँ प्रयोग करेगा. नोबेल समिति ने अपनी अनुशंसा में कहा है, 'पिंटर रोजमर्रा की बकबक के कगारों को अनावृत करता है और उत्पीड़न के बन्द कमरों में बलपूर्वक प्रवेश करता है.

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रचनाकार संपर्क:

¢ विजय शर्मा, 151, न्यू बाराद्वारी, जमशेद्पुर 831001. फोन: 0657-2436251.

ई-मेल: vijshain@yahoo.com

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रचनाकार: हेरॉल्ड पिंटर: एक सदी के अमर्ष की आवाज
हेरॉल्ड पिंटर: एक सदी के अमर्ष की आवाज
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