मानसरोवर : यात्रा संस्मरण

SHARE:

आइये कैलाश-मानसरोवर यात्रा पर चलें - सीताराम गुप्ता तैयारी कैलाश-मानसरोवर यात्रा की: भारत एक विशाल राष्ट्र है जहाँ विश्व के प्रा...

आइये कैलाश-मानसरोवर यात्रा पर चलें

- सीताराम गुप्ता

तैयारी कैलाश-मानसरोवर यात्रा की:

भारत एक विशाल राष्ट्र है जहाँ विश्व के प्राय: सभी धर्मों तथा मतों के अनुयायी निवास करते हैं। अनेक धर्मों और मतों का उद्भव और विकास भी इस पावन भूभाग से जुड़ा है विशेष रूप से हिंदू धर्म और संब( मतों का उद्भव और विकास लेकिन साथ ही यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि हिंदू धर्म से संबंधित अनेक पवित्र स्थल भी पूरे विश्व में फैले हुए हैं। पाकिस्तान, अफ़्रगानिस्तान, चीन, नेपाल, म्याँमार, कंबोडिया और बांग्लादेश बेशक आज अलग राष्ट्र हैं लेकिन धार्मिक व आध्यात्मिक दृष्टि से यहाँ अनेकों ऐसे स्थल मौजूद हैं जिनका भारतीयों से, विशेष रूप से हिंदुओं से गहरा जुड़ाव है। ऐसा ही एक स्थल है 'कैलाश पर्वत' तथा निकटस्थ 'मानसरोवर झील'। इससे एक चीज और स्पष्ट होती है कि धर्म विश्वजनीन होता है। धर्म को किसी व्यक्ति विशेष, राष्ट्र विशेष या स्थान विशेष तक सीमित नहीं किया जा सकता और यदि ऐसा किया जाता है तो वह धर्म ही नहीं है।

कैलाश पर्वत तथा मानसरोवर झील चीन के तिब्बत क्षेत्र में स्थित हिमालय के उत्तर में अवस्थित हैं। तिब्बत पर चीन के आधिपत्य से पूर्व यह भूभाग तिब्बत देश के अंतर्गत आता था लेकिन हजारों वर्ष पूर्व ऐसा कोई स्वामित्व इस भूभाग पर नहीं था। सहस्राब्दियों से यह क्षेत्र भारतीयों के लिए पवित्र रहा है और लोग इसकी परिक्रमा के लिए जाते रहे हैं और आज भी वह सिलसिला जारी है। क्योंकि अब यह स्थान चीन के अधिकार में है अत: चीन सरकार की अनुमति से ही वहाँ जाया जा सकता है और इसके लिए पासपोर्ट तथा अन्य औपचारिकताएँ पूरी करना भी अनिवार्य है।

भारत से 'कैलाश-मानसरोवर' पहुँचने के कई मार्ग हैं। भारत में उत्तरांचल से होकर सीधे तिब्बत पहुँचा जा सकता है अथवा नेपाल के रास्ते काठमांडू से चलकर नेपाल चीन सीमा पार करके कैलाश-मानसरोवर जा सकते हैं। इन दोनों में भारतीयों के लिए जो अच्छा मार्ग है वह है उत्तरांचल-तिब्बत सीमा रेखा को पार करके कैलाश-मानसरोवर पहुँचना। नेपाल होकर कैलाश-मानसरोवर यात्रा की व्यवस्था प्राइवेट ऑपरेटर्स के द्वारा की जाती है लेकिन उत्तरांचल राज्य से होकर गुजरने वाली यात्रा भारत सरकार द्वारा आयोजित की जाती है।

नेपाल होकर जो यात्रा की जाती है वह काठमांडू से लैंड क्रूजर गाड़ियों द्वारा संपन्न होती है लेकिन यह यात्रा बहुत मुश्किल और थका देने वाली होती है क्योंकि रास्ते बहुत ख़राब हैं। काठमांडू से हेलिकोप्टरों द्वारा भी यह यात्रा की जा सकती है लेकिन यह बहुत महंगी पड़ती है। भारत सरकार द्वारा आयोजित कैलाश-मानसरोवर यात्रा आंशिक रूप से बसों द्वारा तथा शेष पैदल संपन्न होती है जो कठिन होते हुए भी बहुत सुंदर है क्योंकि यात्रा मार्ग अत्यंत मनोरम तथा चित्ताकर्षक है।

भारत सरकार द्वारा यात्रा का आयोजन:

कैलाश-मानसरोवर यात्रा का आयोजन भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा किया जाता है जिसमें उत्तरांचल राज्य की सरकार के कुमाऊँ मंडल विकास निगम तथा भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल का महत्वपूर्ण सहयोग होता है। क्योंकि कैलाश-मानसरोवर क्षेत्र का मौसम बहुत विषम है जहाँ सर्दियों में तापमान -450 तक पहुँच जाता है अत: साल के कुछ महीनों में ही यह यात्रा संभव है। यह यात्रा प्राय: मई-जून से लेकर सितंबर तक ही आयोजित की जाती है जिसमें छ:-छ: दिन के अंतराल से यात्रियों के सोलह जत्थे जाते हैं तथा प्रत्येक जत्थे में यात्रियों की अधिकतम संख्या पहले चवालीस होती थी जो वर्ष 2006 से बढ़ाकर साठ कर दी गई है। इस प्रकार प्रत्येक वर्ष इस यात्रा में अब 960 यात्री भाग ले सकते हैं। इस यात्रा में सम्मिलित होने के लिए विदेश मंत्रालय में आवेदन करना पड़ता है। ;जो लोग नेपाल के रास्ते यात्रा करते हैं उन्हें भारत सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है लेकिन पासपोर्ट व वीजा जैसी औपचारिकताएँ अनिवार्य हैं.

आवेदन का तरीका:

भारत सरकार का विदेश मंत्रालय कैलाश-मानसरोवर यात्रा पर जाने के इच्छुक लोगों से आवेदन आमंत्रित करता है। विदेश मंत्रालय प्राय: हर वर्ष जनवरी-फरवरी में देश के प्रमुख समाचार पत्रों में इस आशय का विज्ञापन प्रकाशित करवाता है। विज्ञापन में यात्रा-संबंधी सूचना के अतिरिक्त आवेदन पत्र का प्रारूप भी दिया जाता है जिसे पूरी तरह भरकर निम्न पते पर भेजना होता है:

अवर सचिव ;चीन, कमरा संख्या : 271 ;,

साउथ ब्लॉक, विदेश मंत्रालय, नई दिल्ली-110011.

विज्ञापन में दी गई अंतिम तिथि से पूर्व अपना आवेदन-पत्र अपेक्षित दस्तावेजों की प्रतिलिपियों तथा फ़ोटोग्राप्फस के साथ भेज देना जरूरी है। बाद में प्राप्त होने वाले तथा अधूरे आवेदन पत्रों पर विचार नहीं किया जाता। किसी भी प्रकार की अतिरिक्त जानकारी के लिए उपरोक्त पते पर पत्र-व्यवहार किया जा सकता है अथवा व्यक्तिगत रूप से संपर्क किया जा सकता है।

कैलाश-मानसरोवर यात्रा के लिए कई बार बहुत अधिक संख्या में आवेदन-पत्र आ जाते हैं अत: कम्प्यूटर द्वारा ड्रॉ करके यात्रियों का चयन किया जाता है जिसमें महिलाओं को भी उनके आवेदन के अनुपात में यात्रा का अवसर दिया जाता है। यात्रा के लिए चयन हो जाने के पश्चात प्रत्येक बैच के आवेदकों को यात्रा के प्रस्थान से पर्याप्त समय पहले तार अथवा अन्य उचित माध्यम से सूचना भेज दी जाती है। चुनाव की सूचना प्राप्त होने के फौरन बाद आवेदक को अपनी लिखित स्वीकृति तथा कुमाउँ मण्डल विकास निगम के नाम 5000/- रुपये का ड्राफ्ट भेजना पड़ता है। यदि किन्हीं कारणों से आप यात्रा में भाग नहीं ले सकते अथवा मेडिकल चैकअप में यात्रा के लिए फिट नहीं पाए जाते तो ये राशि आपको वापस नहीं की जाती। आपकी स्वीकृति और अपेक्षित राशि प्राप्त होने के बाद विदेश मंत्रालय आपको यात्रा संबंधी निर्देश-पुस्तिका भेज देता है जिसमें यात्रा की तैयारी तथा व्यय संबंधी विस्तृत जानकारी के साथ-साथ यात्रा-मार्ग की भी पूरी जानकारी होती है।

कैलाश-मानसरोवर यात्रा का प्रारंभ दिल्ली से होता है अत: सभी संभावित यात्रियों को वास्तविक यात्रा प्रारंभ होने से ठीक चार दिन पहले दिल्ली पहुँचना पड़ता है। दिल्ली से बाहर के यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था प्राय: ''गुजराती समाज सदन'' 2, राजनिवास मार्ग, दिल्ली-110054 में की जाती है। इन चार दिनों में यात्रियों का मेडिकल चैकअप तथा विदेश यात्रा संबंधी अन्य सभी औपचारिकताएँ पूरी की जाती हैं। ठहरने के स्थान से कहीं भी अपेक्षित स्थान पर जाने-आने के लिए कुमाऊँ मण्डल विकास निगम बस उपलब्ध कराता है। यात्रियों को व्यक्तिगत रूप से कोई कार्य नहीं करना पड़ता।

दिल्ली में पहला दिन:

दिल्ली में ठहरने के लिए पहले दिन 'भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल' की देखरेख में किसी बड़े अस्पताल में सभी यात्रियों की गहन चिकित्सा-जाँच की जाती है। कैलाश-मानसरोवर यात्रा एक अत्यंत ऊँचाई का चार सप्ताह का ट्रैकिंग अभियान है अत: आवेदक पूर्ण रूप से स्वस्थ होना ही चाहिये अन्यथा यात्रा में आवेदक तथा सहयात्रियों को परेशानी हो सकती है। इस गहन जाँच का उद्देश्य है यात्री की यात्रा-क्षमता का सही-सही मूल्यांकन करना। इसके लिए सुबह खाली पेट जाना अनिवार्य है क्योंकि बिना भोजन किये ही रक्त व मूत्र के नमूने लेकर जाँच की जाती है। इस मेडिकल चैकअप में किस-किस प्रकार की जाँच की जाती है इसकी पूरी सूची यात्रा-संबंधी निर्देश-पुस्तिका में दी गई होती है। इस जाँच के लिए लगभग 2000/- रुपये देने पड़ते हैं और जो लोग इस जाँच में पूरे नहीं बैठते उन्हें यात्रा की अनुमति नहीं दी जाती। वे वापस लौट जाते हैं। इसका अंतिम निर्णय तीसरे दिन भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल के नई दिल्ली स्थित बेस अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा लिया जाता है। वे पहले दिन की जाँच की रिपोट्र्स के आधार पर पुन: जाँच करके यात्रियों की अंतिम सूची तैयार करते हैं। वास्तविक यात्रा के छटे दिन गुंजी पहुँचने पर पुन: सभी यात्रियों की गहन जाँच की जाती है और यहाँ तक पहुँचते-पहुँचते यदि कोई यात्री अस्वस्थ हो जाता है अथवा उसकी दोबारा जाँच में कोई कमी दिखलाई पड़ती है तो उसे गुंजी से आगे जाने की अनुमति नहीं दी जाती। उसे गुंजी से वापस भेज दिया जाता है।

दिल्ली में दूसरा दिन:

दिल्ली में पड़ाव के दूसरे दिन सभी यात्रियों को विदेश मंत्रालय में बुलाया जाता है और उन्हें यात्रा संबंधी विस्तृत जानकारी दी जाती है। यात्रा संबंधी फिल्म भी दिखलाई जाती है। यहीं पर यात्रियों के पासपोर्ट एकत्र किये जाते हैं तथा कुमाऊँ मण्डल विकास निगम का जनसंपर्क अधिकारी चीनी दूतावास से वीजा की व्यवस्था करता है। चीनी दूतावास सभी यात्रियों के लिए सामूहिक वीजा प्रदान करता है जिसकी प्रति लायजन ऑफिसर को दे दी जाती है और पासपोर्ट यात्रियों को। लायजन ऑफिसर इस पूरी यात्रा में साथ रहता है। कुमाऊँ मण्डल विकास निगम का अधिकारी सभी यात्रियों से बाकी की राशि भी एकत्र कर लेता है। यह राशि लगभग नौ-दस हजार रुपये होती है जो यात्रा की स्वीकृति के समय दी गई पाँच हजार रुपये की राशि के अतिरिक्त होती है।

दिल्ली में तीसरा और चौथा दिन:

दिल्ली में पड़ाव के तीसरे दिन जैसा कि ऊपर बतलाया गया है. भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल के नई दिल्ली स्थित बेस अस्पताल में यात्रियों की गहन जाँच होती है तथा यात्रा संबंधी अन्य आवश्यक निर्देश भी दिये जाते हैं। यहीं पर कतिपय धार्मिक संस्थानों के प्रतिनिधि भी आते हैं तथा यात्रियों को आवश्यक जानकारी तथा कुछ आवश्यक सामग्री यथा दवाइयाँ, खाद्य पदार्थ, बैंत या छड़ी आदि भी देते हैं। इनमें प्राय: वे लोग होते हैं जो कैलाश-मानसरोवर यात्रा कर चुके होते हैं अत: यात्रा मार्ग की कठिनाइयों और उनसे निपटने के तरीकों के बारे में व्यावहारिक जानकारी प्रदान करने में सक्षम होते हैं। इनके अनुभवों से लाभ उठाना चाहिये लेकिन विदेश मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराई गई यात्री निर्देश पुस्तिका में दिये गए निर्देशों का पूरा पालन करना यात्रियों के लिए अधिक जरूरी और फायदेमंद है। यात्रा को किसी भी प्रकार धार्मिक जुनून के रूप में नहीं लेना चाहिये। प्रतिकूल परिस्थितियों या मौसम में स्नानादि की जिद करना उचित नहीं और न ही मानसरोवर में अपनी शारीरिक क्षमता और आदत के विपरीत ज्यादा देर तक स्नान करने की जिद ही उचित है।

मेडिकल जाँच के बाद या उसके अगले दिन जैसा भी कार्यक्रम निश्चित किया गया हो मुद्रा विनिमय ;मनी एक्सचेंज के लिए निर्दिष्ट बैंक जाना पड़ता है। इस कार्यक्रम के दौरान कुमाऊँ मण्डल विकास निगम का एक अधिकारी साथ रहता है। यह कार्य तीसरे या चौथे दिन कभी भी किया जा सकता है और इसके साथ ही दिल्ली से यात्रा के लिए प्रस्थान करने की लगभग सभी औपचारिकताएँ पूर्ण हो जाती हैं। निगम द्वारा उपलब्ध कराई गई बस पुन: आपको आपके पड़ाव तक छोड़ देती है।

मुद्रा विनिमय की आवश्कयता क्यों?

भूभाग अथवा क्षेत्र के अनुसार इस यात्रा को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। पहला भाग है भारतीय क्षेत्र की यात्रा तथा दूसरा भाग है चीन के तिब्बत क्षेत्र की यात्रा जहाँ कैलाश-मानसरोवर की परिक्रमा संपन्न की जाती है।

भारतीय भूभाग या क्षेत्र में यात्रा के दौरान आवास और भोजन की व्यवस्था कुमाऊँ मंडल विकास निगम करता है। इसके लिए बसें भी इसी निगम द्वारा उपलब्ध कराई जाती हैं। कैलाश-मानसरोवर यात्रियों के लिए निगम ने उत्तरांचल-तिब्बत सीमा तक कई शिविर निर्मित किये हैं। भारतीय क्षेत्र में कुल नौ दिन की जाने की यात्रा तथा इतनी ही वापसी यात्रा के दौरान बेड टी से लेकर डिनर तक की सारी व्यवस्था निगम द्वारा की जाती है। लिपुलेख दर्रा पार करने के बाद का भूभाग या क्षेत्र चीन सरकार के अंतर्गत आता है अत: यहाँ से चीन में मुख्य पड़ाव, जो तकलाकोट में है, पर रुकने और भोजन की व्यवस्था चीनी अधिकारी करते हैं। लिपुलेख दर्रे के कुछ आगे से तकलाकोट तथा तकलाकोट से मानसरोवर व कैलाश क्षेत्र में पहुँचने के लिए बस की व्यवस्था भी चीनी अधिकारी ही करते हैं। प्रत्येक बैच के लिए दो हिंदी भाषी गाइड भी उपलब्ध कराए जाते हैं और इस सारी सुविधा के लिए प्रतियात्री 600 अमरीकी डॉलर चीन सरकार को देने पड़ते हैं। चीनी भूभाग में चीनी मुद्रा प्राप्त करने के लिए भी 150-200 अमरीकी डॉलर प्राय: प्रत्येक यात्री ख़रीद लेता है। इस मुद्रा विनिमय के लिए ही अशोका होटल स्थित एक निर्दिष्ट बैंक में जाना होता है।

प्रस्थान की पूर्व संधया पर:

कैलाश-मानसरोवर की वास्तविक यात्रा के प्रस्थान की पूर्व संध्या पर दिल्ली सरकार द्वारा सभी यात्रियों का स्वागत किया जाता है। सांस्कृतिक कार्यक्रम के उपरांत रात्रि भोज भी दिया जाता है तथा दिल्ली से चुने गए यात्रियों को दिल्ली सरकार की ओर से कुछ राशि अनुदान के तौर पर दी जाती है। शेष यात्रियों को अनुदान की राशि उनके राज्यों की सरकारें प्रदान करती हैं जो प्रत्येक राज्य में अलग-अलग है। यात्रियों को सबसे ज्यादा अनुदान गुजरात राज्य की सरकार द्वारा दिया जाता है जो कुल मिलाकर लगभग तीस हजार रुपये प्रतियात्री बैठता है। संभवत: यही कारण है कि इस यात्रा में गुजरात से सबसे अधिक यात्री भाग लेते हैं। मेरे बैच में 39 में से 22 यात्री गुजरात के थे और जो महाराष्ट्र के थे उनमें से भी कई मूल रूप से गुजरात के ही थे।

यात्रा के लिए प्रस्थान:

दिल्ली में चार दिन के प्रवास और आवश्यक औपचारिकताओं के बाद अगले दिन प्रात:काल यात्रा के लिए प्रस्थान करते हैं। दिल्ली से आगे तक की बस यात्रा के लिए बसों की व्यवस्था कुमाऊँ मण्डल विकास निगम द्वारा की जाती है। प्रस्थान के समय दिल्ली सरकार अथवा किसी न किसी धार्मिक संस्था के प्रतिनिधि अवश्य उपस्थित होते हैं। यात्रा का प्रथम चरण, दिल्ली से काठगोदाम तक का होता है। दिल्ली से गजरोला, मुरादाबाद तथा रामपुर आदि होते हुए दोपहर तक काठगोदाम पहुँच जाते हैं। काठगोदाम तक सभी यात्री एक बड़ी बस में जाते हैं लेकिन आगे पहाड़ी रास्तों और चढ़ाई के कारण बाकी यात्रा मिनी बसों द्वारा सम्पन्न होती है। यहाँ से दो मिनी बसों में बैठकर यात्री आगे प्रस्थान करते हैं लेकिन जाने से पहले दोपहर का भोजन यहाँ निगम के गेस्ट-हाउस में कराया जाता है। पहले दिन की यात्रा अलमोड़ा में समाप्त होती है। सभी यात्री के.एम.वी.एन. के गेस्ट हाउस में ठहराये जाते हैं और रात का भोजन दिया जाता है। अगले दिन प्रात:काल जल्दी उठकर तैयार हो जाते हैं और सुबह का नाश्ता करके धरचूला के लिए प्रस्थान करते हैं। दोपहर का भोजन चौकोड़ी में किया जाता है। चौकोड़ी के बाद मिर्थी नामक स्थान पर रुकते हैं जहाँ भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल का एक बड़ा-सा वैंक है। यहाँ हमारे बैच के यात्रियों से पौधे लगवाये गये और बाद में चाय-नाश्ता दिया गया तथा साथ ही यात्रा के विषय में आवश्यक निर्देश भी। वहाँ से चलकर सायं सात बजे के आसपास धरचूला पहुँचे। यहाँ के.एम.वी.एन. का गेस्ट हाउस काली नदी के किनारे पर स्थित है जो अत्यंत वेग के साथ ख़ूब शोर करते हुए बह रही है। अब कालापानी तक की यात्रा इस नदी तट के साथ-साथ ही सम्पन्न होनी है। धरचूला में रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन गाला के लिए प्रस्थान होता है। सुबह उठकर तैयार होते हैं तथा नाश्ता करते हैं। यात्रियों के लगेज का वजन किया जाता है। बीस किलो वजन का सामान लाने-ले जाने की व्यवस्था यात्रा व्यय में ही सम्मिलित है।

पदयात्रा का प्रारंभ:

दो मिनी बसों में बैठकर यात्री आगे बढ़ते हैं। बसों को मांगटी तक जाना है क्योंकि उसके बाद बस मार्ग नहीं है लेकिन रास्ता ख़राब होने के कारण मांगटी तक की यात्रा भी हमने आंशिक रूप से जीप द्वारा तथा शेष पैदल ही तय की। मांगटी पहुँचने पर घोड़े और पोर्टर मिल जाते हैं। घोड़े वालों और पोर्टर्स की बुकिंग वैसे तो धरचूला में ही करानी पड़ती है लेकिन वे उपलब्ध मांगटी में ही होते हैं। इन सब के रेट प्रशासन द्वारा तय होते हैं अत: यात्रियों को कोई परेशानी नहीं होती। मांगटी से पैदल चल कर गाला पहुँचते हैं। यह पहली पैदल यात्रा अथवा ट्रैकिंग थी। चढ़ाई कठिन है। रास्ता ठीक रहता तो दोपहर तक गाला पहुँच जाते लेकिन गाला पहुँचते-पहुँचते अंधेरा घिर आया। रात का खाना खाकर सो गए। न सोते तो करते भी क्या क्योंकि धरचूला के बाद किसी भी पड़ाव पर बिजली नहीं है। केवल एक घण्टे के लिए जेनरेटर चलाकर रोशनी की व्यवस्था की जाती है।

अगले दिन सुबह जल्दी तैयार होकर गाला से बुधि के लिए चल पड़े। रास्ता कठिन और झरनों से युक्त। झरने सीधे यात्रियों पर गिरते हैं। बचने का कोई उपाय नहीं। कितना ही बंदोबस्त कर लो सब बेकार। शाम होते-होते बुधि पहुँचे। बुधि पहुँचने से थोड़ा पहले रास्ते में आई.टी.बी.पी. के जवानों ने हमारा स्वागत किया और गरम-गरम चाय और स्नेक्स दिये। भीगने के कारण कई यात्रियों को बुखार भी हो गया लेकिन दवा इत्यादि की पूरी व्यवस्था थी। एक स्वास्थ्यकर्मी भी साथ चल रहा था। बुधि में रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन प्रात: काल गुंजी के लिए चले। गुंजी में यात्रियों को दो दिन रुकना पड़ता है। पहले दिन यात्री विश्राम करते हैं तथा अगले दिन तैयार होकर आई.टी.बी.पी. वैंक पहुँचते हैं जहाँ सभी यात्रियों के स्वास्थ्य की पुन: गहन जाँच की जाती है। जो यात्री यहाँ पहुँचते-पहुँचते अस्वस्थ हो जाते हैं तथा आगे की यात्रा के लिए फिट नहीं पाए जाते उन्हें गुंजी से वापस भेज दिया जाता है।

गुंजी से लिपुलेख दर्रे तक की यात्रा आई.टी.बी.पी. की देखरेख और सुरक्षा में होती है। अगले दिन प्रात: काल तैयार होकर सभी यात्री आई.टी.बी.पी. वैंक पहुँचते हैं और आई.टी.बी.पी. के अधिकारियों और जवानों के साथ कालापानी के लिए चल पड़ते हैं। बीच में जवानों द्वारा चाय आदि की व्यवस्था पहले से ही की गई होती है। चाय पीते और विश्राम करते दोपहर के कुछ बाद कालापानी पहुँच जाते हैं। कालापानी में आव्रजन कार्यालय में पासपोर्ट इत्यादि की जाँच करा कर मोहर लगवाते हैं। कालापानी वह स्थान है जहाँ काली नदी का उद्गम है। उद्गम स्थल पर एक मंदिर बना है जिसकी देखभाल और रखरखाव आई.टी.बी.पी. करता है। एक जवान ही पुजारी का कार्य करता है। रात को मंदिर में भजन-कीर्तन और पूजा-पाठ में भाग लिया।

अगले दिन प्रात:काल कालापानी से चलकर दोपहर तक नाभिडाँग पहुँचते हैं। नाभिडाँग पहुँचने से पहले ही ¬ पर्वत दिखलाई पड़ने लगता है। नाभिडाँग में भारत, नेपाल तथा चीन तीनों देशों की सीमाएँ मिलती हैं। अब तक की यात्रा भारत-नेपाल सीमा के साथ-साथ की थी। काली नदी प्राकृतिक रूप से भारत-नेपाल सीमा का निर्माण करती है। जैसे ही हम आगे बढ़ेंगे नेपाल की सीमा दूर होती चली जाएगी। नाभिडाँग से अगली यात्रा रात्रि दो बजे ही प्रारंभ करनी पड़ती है। नाभिडाँग से लिपुलेख दर्रे तक की यात्रा अत्यंत दुर्गम और अधिकतम ऊँचाई की यात्रा है। लिपुलेख दर्रा बहुत ऊँचाई पर है अत: इसे प्रात: आठ बजे से पहले पार कर लेना आवश्यक है। बाद में प्राय: मौसम इतना ख़राब हो जाता है कि यात्रा करना मुश्किल हो जाता है। लिपुलेख दर्रा पार करने के बाद चीन राष्ट्र के तिब्बत क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। सीमा रेखा से तिब्बत क्षेत्र के तकलाकोट नामक स्थान पर पहुँचना होता है। पहले कुछ यात्रा पैदल तथा शेष यात्रा घोड़ों पर तय करके आगे बढ़ते हैं जहाँ एक बस खड़ी मिलती है। हमें बस तक पैदल ही पहुँचना पड़ा क्योंकि घोड़े उपलब्ध नहीं कराये गए थे। रात भर यात्रा करते-करते थककर चूर हो गए थे। सभी यात्रियों के पहुँचने पर बस उन्हें लेकर तकलाकोट के लिए रवाना हुई। चीन क्षेत्र में बस और घोड़ों की व्यवस्था चीनी अधिकारी करते हैं। सामान भी वही पहुँचाते हैं।

तकलाकोट में ठहरने और भोजन की व्यवस्था चीनी अधिकारी ही करते हैं। कैलाश-मानसरोवर परिक्रमा के दौरान ठहरने की व्यवस्था तो है लेकिन भोजन की व्यवस्था यात्रियों को स्वयं करनी होती है। इसके लिए अपेक्षित खाद्य पदार्थों व रसोइये की व्यवस्था दिल्ली तथा धरचूला से ही करनी पड़ती है। यहाँ तकलाकोट में जिस प्रकार का भोजन दिया जाता है वह मुश्किल से ही उदरस्थ किया जा सकता है। तकलाकोट पहुँचने पर उसी दिन चीनी अधिकारी सभी यात्रियों के पासपोर्ट वग़ैरा की जाँच करने के लिए गेस्ट हाउस आ जाते हैं और जरूरी औपचारिकताएँ पूरी करते हैं। तकलाकोट में दो दिन का पड़ाव होता है। दूसरे दिन आराम करते हैं तथा मानसरोवर का जल लाने के लिए प्लास्टिक के केन इत्यादि खरीदकर लाते हैं। यहाँ सारी खरीददारी युआन में ही होती है।

लायजन आफिसर यात्रियों से छ:-छ: सौ अमरीकी डॉलर लेकर चीनी अधिकारियों को सौंप देता है तथा शेष अमरीकी डॉलर्स के बदले चीनी मुद्रा युआन यात्रियों को उपलब्ध करा दी जाती है। कैलाश-मानसरोवर यात्रा के लिए तकलाकोट चीन क्षेत्र के बेस वेंक की तरह है। यहाँ यात्रियों को दो बराबर-बराबर भागों में बाँट दिया जाता है। क्योंकि कैलाश अथवा मानसरोवर की परिक्रमा के मार्ग में अधिक यात्रियों के एक साथ ठहरने की व्यवस्था नहीं है इसलिए एक ग्रुप पहले कैलाश परिक्रमा करता है तो दूसरा मानसरोवर परिक्रमा।

कैलाश व मानसरोवर परिक्रमा के लिए प्रस्थान:

तकलाकोट से सभी यात्री एक बस में सवार होकर चिहु पहुँचते हैं। चिहु मानसरोवर के तट पर स्थित है। जिस ग्रुप को पहले मानसरोवर की परिक्रमा करनी होती है वह यहाँ चिहु में रुक जाता है तथा दूसरा ग्रुप इसी बस से कैलाश परिक्रमा के लिए दारचेन पहुँचता है। यात्रियों को कैलाश परिक्रमा के लिए दारचेन पहुँचाकर बस वापस चिहु आ जाती है। मानसरोवर की परिक्रमा बस के द्वारा की जाती है जो एक दिन में ही पूरी हो सकती है लेकिन इसे तीन दिन में पूरा किया जाता है ताकि दूसरा ग्रुप कैलाश-परिक्रमा पूर्ण कर मानस परिक्रमा के लिए आ सके और मानस-परिक्रमा कर चुके यात्री कैलाश परिक्रमा के लिए जा सकें।

चिहु पहुँचने के अगले दिन पहले ग्रुप की मानसरोवर-परिक्रमा प्रारंभ होती है। पहले दिन के सफर के बाद दोपहर तक ठूगू पहुँचते हैं। यहाँ यात्रियों को दो दिन रुकना पड़ता है। यात्री मानस में स्नान करते हैं तथा तट पर पूजा-अर्चना भी। यहाँ समय काटे नहीं कटता। तीसरे दिन प्रात:काल ठूगू से चिहु के लिए रवाना होते हैं। रास्ते में एक सुविधाजनक स्थान पर यात्री अपने-अपने पात्रों में मानस का जल भरते हैं तथा पत्थर भी संग्रह करते हैं। जल्दी ही चिहु पहुँच जाते हैं तथा वहाँ सारे दिन विश्राम ही करना होता है। कुछ लोग यहाँ भी मानस में स्नान करते हैं। अपने-अपने जल के पात्र यहाँ रखकर अगले दिन चिहु से दारचेन पहुँचते हैं जहाँ से कैलाश परिक्रमा प्रारंभ होती है।

पहले ग्रुप के यात्रियों को बस दारचेन पहुँचाकर दूसरे ग्रुप के यात्रियों को जो कैलाश-परिक्रमा कर चुके होते हैं लेकर वापस चिहु आ जाती है ताकि वे भी मानस-परिक्रमा कर सकें। कैलाश-परिक्रमा अगले दिन प्रारंभ होगी। पूरा दिन शेष था। यहाँ निकट ही अष्ठापद के दर्शनार्थ चल दिये। अष्ठापद जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर )षभ देव का निर्वाण स्थल है जो बहुत ऊँचाई पर स्थित है। पहले कुछ दूरी एक ट्रक से पूरी की तथा शेष पैदल। खड़ी चढ़ाई थी। सभी हाँफने लगे। ट्रक का रास्ता भी बहुत खतरनाक था। किसी तरह सकुशल वापस पहुँचे।

अगले दिन कैलाश परिक्रमा शुरू हुई। पहले उसी ट्रक से थोड़ी दूर तक गये। शेष यात्रा पैदल या याक द्वारा सम्पन्न की जाती है। यमद्वारा नामक स्थान से थोड़ा आगे ट्रक उतार देता है क्योंकि आगे ट्रक का रास्ता ही नहीं है। थोड़ी दूरी पर याक और घोड़े वाले मिल गये। इनकी व्यवस्था दारचेन से ही करके चलते हैं और इनका शुल्क यात्रियों को अलग से देना पड़ता है। दारचेन से चलने के बाद रात्रि विश्राम देराफुक नामक स्थान पर होता है। कैलाश परिक्रमा का मार्ग अत्यंत दुर्गम है। उबड़-खाबड़ मार्ग। बेतर्तीब पत्थरों के ढेर से होकर चलना पड़ता है।

अगले दिन देराफुक से प्रात: जल्दी यात्रा प्रारंभ करते है क्योंकि सफर लंबा भी है और रास्ता मुश्किल भी। देराफुक से सुबह चलकर शाम को जोंगजेरबू पहुँचते हैं। यह पूरी यात्रा की सबसे कठिन ट्रैकिंग है। इसी भाग में यात्रा का सबसे ऊँचाई वाला स्थान डोल्मा दर्रा पड़ता है जहाँ प्राय: बर्फ गिरती रहती है तथा बारिश होती रहती है। एक दम खड़ी चढ़ाई। रास्ता दुर्गम और फिसलन भरा। हाथ-पैर सुन्न हो जाते हैं। उंगलियाँ काम नहीं करतीं। सांस लेने में ही दम फूल जाता है। रास्ता इतना ख़राब है कि डोल्मा दर्रे से पहले और पार करने के बाद कई किलोमीटर तक याक पर बैठना भी संभव नहीं। जगह-जगह बर्फ और फिसलन। डोल्मा ला पार करने पर नीचे गौरी-कुंड दिखलाई पड़ता है जो बहुत गहरा है। यह पार्वती का स्थान माना जाता है। यात्री गौरी कुंड का जल भी अवश्य लाते हैं।

कहा जाता है कि यदि विवाहाकांक्षिणी कन्या इस जल से नियमित रूप से स्नान करे तो इक्कीस दिन के अंदर उसका विवाह निश्चित हो जाता है। इसका सकारात्मक अनुभव भी मुझे बाद में घर आकर हुआ। गौरी-कुंड का जल भरने के लिए यात्रियों का जाना असंभव है। पोर्टर अथवा गाइड ही गौरी-कुंड का जल भर कर ला सकते हैं और इसके लिए वे कम से कम दस युआन ;साठ रुपयेध्द लेते हैं। इस कठिन यात्रा के बाद यात्री रात के जोंगजेरबू पहुँचकर विश्राम करते हैं। न तो यात्रियों को भोजन की इच्छा ही होती है और न भोजन करने की हिम्मत ही। जो जेब में या पास के बैग में पड़ा होता है थोड़ा बहुत निगल लेते हैं। पोर्टर जो खाना बनाने के लिए साथ जाते हैं उन्हें न तो खाना बनाना ही आता है और न इस मार्ग में कोई सुविध ही है। अच्छा ही है कि भूख नहीं के बराबर लगती है।

जोंगजेरबू में रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन वापस दारचेन पहुँच जाते हैं। यह यात्रा अपेक्षाकृत कम कठिन है। दारचेन में रात्रि विश्राम होता है तथा अगले दिन सुबह बस आ पहुँचती है। बस से फिर चिहु पहुँचते हैं। दूसरे ग्रुप के यात्री भी तैयार मिलते हैं। सभी यात्री बस से उतरते हैं तथा अपने-अपने मानसरोवर के जल के केन उठा लाते हैं। दोनों ग्रुपों के यात्री बस में सवार होकर पुन: टकलाकोट आ जाते हैं।

स्वदेश वापसी की तैयारी:

टकलाकोट में फिर दो दिन का विश्राम। कुछ लोग यहाँ ख़रीदारी भी करते हैं। पासपोर्ट आदि पर मोहर लगाई जाती है। तीसरे दिन चीनी समयानुसार प्रात: साढ़े छ: बजे वापसी के लिए बस प्रस्थान करती है। भारतीय समयानुसार यह चार बजे का समय था अत: रात दो बजे ही उठकर तैयार होने लग गये थे। जहाँ तक बस जा सकती थी बस ने पहुँचा दिया। उसके बाद थोड़ी यात्रा घोड़ों पर तथा शेष यात्रा पैदल सम्पन्न की। सर्दी इतनी अधिक थी कि सब काँप रहे थे। हाथ-पैर सुन्न। शब्द भी मुँह से नहीं निकल पा रहे थे। यात्रा कठिन और खड़ी चढ़ाई, रास्ते कच्चे और फिसलन भरे। हर हाल में आठ बजे से पहले लिपुलेख दर्रा पार करना था। बाद में अक्सर मौसम इतना ख़राब हो जाता है कि चलना असंभव हो जाता है। डोल्मा ला की तरह लिपुलेख दर्रा पार करना भी अत्यंत कठिन कार्य है। घोड़े बहुत पहले ही उतार देते हैं। दर्रा पैदल ही पार करना होता है। एक दम खड़ी चढ़ाई देखकर ही दम फूलने लगता है। एक-एक इंच आगे बढ़ने के लिए पूरी शक्ति लगा देनी पड़ती है। मौसम अपना उग्र रूप दिखा रहा है। मंजिल सामने दिखलाई पड़ रही है। बस किसी तरह कुछ कदम और। लिपुलेख दर्रा पार करने के बाद कोई चिंता नहीं।

आई.टी.बी.पी. के अधिकारी, चिकित्सक तथा अन्य जवान व भारतीय क्षेत्र के पोर्टर और घोड़े वाले स्वागत के लिए तैयार खड़े हैं। अपने वतन की धरती पर पहला कदम रखते ही अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति होती है। सबसे गले मिलते हैं। ¬ नम: शिवाय की धवनि प्रतिधवनित होने लगती है। सबके चेहरों पर प्रसन्नता और उल्लास दिखलाई पड़ रहा है। धीरे-धीरे सभी लोग आ पहुँचते हैं। चाय बनाने का प्रयास किल हो जाता है। यहाँ ज्यादा देर रुकना संभव ही नहीं। हवा शरीर के खुले भाग को काटती सी प्रतीत होती है।

भारतीय समयानुसार सात बजे तक सभी यात्री यहाँ पहुँच जाते है और आगे की यात्रा पर प्रस्थान करने का आदेश मिलता है। देखते ही देखते नाभिडाँग पहुँच जाते हैं। वहाँ चाय तैयार मिलती है। हरी हरी मखमली घास पर पसर जाते हैं सभी यात्री। गरम-गरम चाय के साथ बिस्कुट भी मिलते हैं। यात्री अपने-अपने थैलों से खाने-पीने का सामान निकाल कर ख़ुद भी खा रहे हैं और सहयात्रियों को भी खिला रहे हैं। नाभिडाँग में रुकने का कार्यक्रम नहीं है जैसा कि जाते समय था। दोपहर का भोजन भी अगले पड़ाव पर यानी कालापानी में होगा। वहीं रात्रि विश्राम होगा। जल्दी ही कालापानी पहुँच जाते हैं भोजनोपरांत आव्रजन संबंधी औपचारिकताएँ भी पूरी करते हैं। उसके बाद विश्राम तथा शाम को काली नदी के उद्गम पर बने मंदिर में पूजा-अर्चना। घर ले जाने के लिए प्रसाद भी मिलता है।

अगले दिन प्रात:काल कालापानी से गुंजी के लिए रवाना होते हैं। इस बार गुंजी में भी दो दिन नहीं रुकना पड़ता। रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन गुंजी से बुधि पहुँचते हैं। रास्ते में गर्ब्यांग नामक गाँव और उसके बाद फूलों की घाटी आती है। गर्ब्यांग में समोसे खाते हैं और चाय पीते हैं। इसके बाद बुधि तक का रास्ता अत्यंत चित्ताकर्षक है। बुधि से वापसी का सफर कुछ भिन्न है। जाते समय गाला से बुधि पहुँचे थे लेकिन अब गाला की बजाय सीधे मांगटी और मांगटी से उसी दिन बस से धरचूला पहुँचने का कार्यक्रम निश्चित है। मांगटी पहुँच कर बस की प्रतीक्षा करते हैं लेकिन बस नहीं पहुँचती। रास्ते में जगह-जगह पहाड़ पसरे पड़े हैं। जगह-जगह भारी लैंडस्लाइड हुआ है। सैकड़ों वाहन फंसे पड़े हैं। दो लैंडस्लाइडस के बीच जीपें चल रही हैं। जीपों का सहारा लेकर आगे बढ़ते हैं सड़क पर पसरे भीमकाय पत्थरों और मलबे को किसी तरह पार करके फिर जीप लेते हैं। कभी पैदल, कभी जीप तो कभी पत्थरों के ढेर को पार कर किसी तरह शाम तक धरचूला पहुँचते हैं। रात तक सभी यात्री पहुँच जाते हैं लेकिन सामान का कुछ पता नहीं।

धरचूला काली नदी के तट पर स्थित है। नदी के इस ओर भी तथा नदी के उस पार भी। इस ओर भारत का धरचूला तो उस तरफ नेपाल का। बीच में एक पुल बना है जो दोनों देशों और दोनों भागों को जोड़ता है। यात्री पुलपार वाले धरचूला जाते हैं और ख़रीदारी करते हैं। आने जाने पर कोई पाबंदी नहीं पर शाम को पुल बंद हो जाता है। पुल बंद होने पर आवागमन भी बंद हो जाता है। धरचूला में रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन दो मिनी बसों द्वारा यात्रा का शेष भाग प्रारंभ होता है। पुन: मिर्थी और चौकोड़ी होते हुए रात को देर से बागेश्वर पहुँचते है। जाते समय अलमोड़ा में रूके थे लेकिन वापसी में बागेश्वर में रुकते हैं।

बागेश्वर से सुबह जल्दी निकल पड़ते हैं। बागेश्वर से अलमोड़ा, भीमताल तथा भुवाली आदि स्थानों से गुजरते हुए काठगोदाम पहुँच कर दोपहर का भोजन करते हैं। काठगोदाम से बड़ी बस में दिल्ली के लिए प्रस्थान करते हैं। वैसे तो दिल्ली पहुँचने का निर्धारित समय दोपहर बाद चार बजे का है लेकिन रात बारह बजे के बाद ही दिल्ली पहुँच पाते हैं। रामपुर के पास बस ख़राब हो जाती है उसे ठीक करने में घंटों लग जाते हैं। आगे मुरादाबाद में भोजन की व्यवस्था थी अत: देर होती चली गई।

दिल्ली वाले यात्रियों के लिए तो यात्रा का समापन हो गया था लेकिन बाहर के यात्री पुन: अगले सफर की तैयारी में जुट गए। कुछ लोगों की गाड़ियाँ दो-चार घंटे बाद ही रवाना होनी थीं। वे गुजराती समाज सदन से अपना सामान उठाते हैं और स्टेशन के लिए रवाना हो जाते हैं। जिन्हें कल सुबह या उसके बाद जाना है वे अपना सामान उठाकर अपने कमरों में पहुँच जाते हैं। जाने वाले रुकने वालों से विदा लेते हैं।

मैं भी आपसे विदा लेता हूँ लेकिन जल्दी ही फिर मिलूँगा। अभी मैंने बताया ही क्या है? ये तो परिचय मात्रा है। अगली मुलाकात की भूमिका है। कैलाश-मानसरोवर यात्रा पर यात्रावृत्तांत लिख रहा हूँ। उसके माध्यम से एक बार फिर मुलाकात होगी। दुआ कीजिए मुलाकात जल्दी हो। तब तक के लिए नमस्कार, ख़ुदा हाफिज, गुड बाइ, दा स्वीदानिया!

-----------.

संपर्क:

सीताराम गुप्ता

ए.डी.-106-सी, पीतमपुरा,

दिल्ली-110034

फ़ोन नं. 011-27313954

--------------

COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. मानसरोवर यात्रा से संबंधित बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी देने वाला संस्मरणात्मक लेख है।

    जवाब देंहटाएं
  2. बेनामी4:33 pm

    वाह बहुत खूब, पढ़कर बहुत अच्छा लगा। मैं भी जब हो सका यह यात्रा जीवन में एक बार अवश्य करूंगा!! :)

    क्योंकि कैलाश-मानसरोवर क्षेत्र का मौसम बहुत विषम है जहाँ सर्दियों में तापमान -450 तक पहुँच जाता है अत: साल के कुछ महीनों में ही यह यात्रा संभव है।

    चाहे -450'C हो या -450'F, दोनों ही तापमानों में हवा तक तरल में बदल जाएगी, इतना कम तापमान पृथ्वी पर कहीं नहीं होता!! क्या आपको विश्वास है कि आपने सही लिखा है? पृथ्वी की सतह पर सबसे कम तापमान -88'C रहा है जो अंटार्कटिका में रिकॉर्ड किया गया था। :)

    जवाब देंहटाएं
  3. बेनामी9:12 pm

    thank you Amit for highlighting the error..actually its -45 degrees celcius but due to some font problem it was wrongly printed as -450 degrees celcius.
    SITA RAM GUPTA

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: मानसरोवर : यात्रा संस्मरण
मानसरोवर : यात्रा संस्मरण
http://bp2.blogger.com/_t-eJZb6SGWU/RuTFcivK4EI/AAAAAAAABRY/PjQkQP2DMi8/s200/srg+%28WinCE%29.jpg
http://bp2.blogger.com/_t-eJZb6SGWU/RuTFcivK4EI/AAAAAAAABRY/PjQkQP2DMi8/s72-c/srg+%28WinCE%29.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2007/09/blog-post_10.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2007/09/blog-post_10.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content