ओमप्रकाश तिवारी का नाटक : स्वप्नवृक्ष

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नाटक स्वप्नवृक्ष   -ओमप्रकाश तिवारी अंक एक दृश्य एक (मंच पर परदा धीरे-धीरे उठता है। बैकग्राउंड से मद्धिम संगीत सुनाई देता है। मंच के ए...

नाटक

स्वप्नवृक्ष

 

-ओमप्रकाश तिवारी

अंक एक

दृश्य एक

op tiwari1(मंच पर परदा धीरे-धीरे उठता है। बैकग्राउंड से मद्धिम संगीत सुनाई देता है। मंच के एक कोने में प्रकाश होता है। वहां एक गमला रखा है, जिसमें कोई पौधा नहीं है। इसके बाद प्रकाश का फोकस मंच के दूसरे कोने में होता है। वहां खद्दर का कुरता पायजामा पहने एक तीस वर्षीय युवक खड़ा है। उसके हाथों में एक पौधा है। वह उसी को देख रहा है और उसी से बातें भी कर रहा है। युवक का नाम सुधीर है।)

सुधीर : देखो प्यारे तुम मेरा सपना हो। बड़ी आशा है तुमसे। मुझे निराश मत करना। लग जाना। मैं चाहता हूं कि तुम वृक्ष बनो। इस गमले में (गमले की तरफ इशारा करते हुए) तुम्हें कुछ ही साल रहना है। जैसे ही तुम्हारी जड़ें फैलनी शुरु होंगी, तुम्हें गमले से निकाल कर धरती पर लगा दूंगा। इस गमले में थोड़ी मुश्किल जरूर होगी, लेकिन हिम्मत से काम लेना। मुश्किलों का सामना हौसले और आत्मविश्वास से ही किया जा सकता है। लक्ष्य पाने के लिए तमाम मुश्किलों, समस्याओं और विसंगतियों का सामना करना पड़ता है। यदि तुमने ठान लिया कि पेड़ बनना है तो फिर दुनिया की कोई ताकत तुम्हें डिगा नहीं सकती।

 

(नाटक "स्वप्नवृक्ष" की झलकियाँ देखने के लिए स्लाइड शो के प्ले बटन पर क्लिक करें)

 

(सुधीर गमले के पास आ जाता है। मंच पर जिधर से वह आता है, उधर से ही उसके पीछे-पीछे उसकी बहन पूजा आती है। पूजा सुधीर की बातों को सुनती रहती है और मुस्काराती रहती है। सुधीर अपने में खोया पौधे से बातें करता रहता है। गमले के पास आकर वह पूजा को आवाज देता है।)

सुधीर : पूजा, ओ पूजा। (पूजा उसकी आवाज सुनकर भी नहीं बोलती। सुधीर पौधे को गमले में रखकर फिर आवाज देता है।)

( सुधीर : अरे पूजा, कहां मर गई तू?

पूजा : क्या है? क्यों चिल्ला रहे हो? (पूजा सुधीर के सामने आ जाती है)

सुधीर : इतनी देर से आवाज दे रहा हूं तुझे सुनाई नहीं देता?

पूजा : क्या है?

सुधीर : खुरपा लाना। (पूजा मंच से जाती है। थोड़ी देर बाद खुरपा लेकर आती है।)

पूजा : ये लो। (पूजा सुधीर को खुरपा पकड़ाती है। सुधीर खुरपा लेकर गमले की मिट्टी को खोदता है। फिर उसमें पौधे को रोप देता है। पूजा वहीं खड़ी सुधीर के क्रिया-कलाप को देखती रहती है। पौधा लगाने के बाद सुधीर पूजा की तरफ देखता है।)

सुधीर : तू यहां खड़ी दांत क्यों दिखा रही है?

पूजा : तो क्या करूं?

सुधीर : दौड़कर पानी ला।

पूजा : जाती हूं। इतने अकड़ क्यों रहे हो? (पूजा गुस्सा दिखाते हुए मंच पर बिल्कुल आगे आ जाती है और दर्शकों को संबोधित करते हुए कहती है।)

पूजा : एक पौधा लगाने में इतनी ठसक। मालूम पड़ रहा है जैसे पौधा नहीं दुनिया की संरचना कर रहे हों। इस गमले में छत्तीस बार लगा चुके हैं पौधा। सबके सब सूख गए। फिर भी इनकी जिद है कि पौधा यहीं लगेगा। यह एक दिन वृक्ष बनेगा। लोगों को छाया देगा। फल देगा। यह मेरा सपना है। न जाने कब इनके सपनों को यह पौधा वृक्ष बनेगा?

(सुधीर जो अभी तक पौधे को सहला रहा था पूजा की तरफ देखकर गुस्से में बोलता है।)

सुधीर : तू अभी तक गई नहीं?

पूजा : जाती हूं। (पूजा पानी लेने चली जाती है।)

सुधीर : (दर्शकों से) यही सब लोग हैं जो नहीं चाहते कि यह पौधा लगे। इस गमले में बार-बार जो पौधे सूख जाते हैं इसके पीछे इन्हीं सबका षड्यंत्र है।

(सुधीर बोल रहा होता है तभी मंच पर पूजा पानी लेकर आ जाती है। उसे देखकर सुधीर अपनी बात का रुख बदल देता है। )

सुधीर : आ गई महारानी? जरा सा काम करने को कह दो तो लगता है जैसे...।

पूजा : क्या लगता है आएं? ला नहीं रही हूं। (सुधीर के वाक्य को काटकर पूजा बोलती है)

सुधीर : ठीक है, ठीक है। इसमें चिल्लाने की क्या बात है?

पूजा : चिल्ला कौन रहा है? (वह पानी का जग सुधीर को पकड़ा कर चार कदम आगे बढ़ती है फिर रुक कर पलटती है।)

पूजा : नाश्ता तैयार है। मम्मा आपका इंतजार कर रही हैं।

(पूजा चली जाती है। सुधीर गमले में पानी डालता है। मंच पर धीरे-धीरे अंधेरा छा जाता है।)

दृश्य दो

(मंच पर एक मेज के इर्द-गिर्द कुर्सियों पर महादेव, राधा, सुधीर और पूजा बैठे हैं। सभी के सामने नाश्ता है। सुधीर नाश्ते के साथ-साथ अखबार भी पढ़ रहा है। )

राधा : सुधीर, नाश्ता तो आराम से कर ले।

पूजा : मम्मी, आप भी कमाल करती हैं। यह भी नहीं जानती कि कम्युनिस्ट एक पल भी जाया नहीं करते। सुधीर भैया तो टॉयलट में भी किताब पढ़ते हैं। (पूजा मुस्कराते हुए बोली)

महादेव : आजकल तू कुछ ज्यादा ही बोलने लगी है।

सुधीर : नादान है पिता जी। बेचारी यह नहीं जानती कि जो समय की कद्र नहीं करता, समय भी उसकी कद्र नहीं करता।

पूजा : एक आप ही तो हैं समय की कद्र करने वाले।

राधा : तू चुप रहेगी?

पूजा : मैं तो चुप ही हूं। भैया ही अपनी फिलासफी पिलाए जा रहे हैं।

सुधीर : कमाल है। मैं तो चुपचाप अखबार पढ़ रहा हूं।

महादेव : एक बात तो है। कुछ लोग होते हैं जो काम-धाम तो करते नहीं। जब देखो कोई न कोई किताब पढ़ते रहते हैं। मौका मिला नहीं कि लोगों पर अपनी विद्वता भी झाड़ देते हैं।

पूजा : (मुस्कराते हुए) पापा, आप कहना चाहते हैं कि किताब पढ़ने वाले बेवकूफ होते हैं?

महादेव : किताबें सिद्धांत तो सिखा देती हैं, लेकिन उनका व्यवहारिकता से कोई लेना-देना नहीं होता।

सुधीर : यह तो अपनी-अपनी समझ है।

राधा : आप लोग कभी-कभी तो दो पल के लिए एक साथ बैठते हो, उसमें भी लड़ने लगते हो।

महादेव : लड़ कौन रहा है?

राधा : कोई नहीं लड़ रहा है, लेकिन आप में से कोई यह बताने का कष्ट करेगा कि आजकल अधीर कहां है?

महादेव : (गुस्से में) तुम भी न राधा। किसका नाम ले बैठी।

राधा : जैसा भी है, मेरा बेटा है।

महादेव : ऐसी औलाद पर कोई भी गर्व नहीं कर सकता।

पूजा : कल अधीर भैया के बारे में अखबार में खबर छपी थी।

सुधीर : हां, आजकल इसी शहर में हैं आपके लाड़ले। पुलिस की नाक में दम किए हुए हैं। उसके गिरोह के दस लड़के कल पुलिस मुठभेड़ में मारे गए हैं।

राधा : हे भगवान, रक्षा करना उसकी। (राधा ने प्रार्थना की)

सुधीर : बहुत मुश्किल है मां। इस बार तो लगता है आपके भगवान भी नहीं बचा पाएंगे उसे। पुलिस कुत्ते की तरह ढूंढ़ रही है उसे। इनकाउंटर कर देगी।

महादेव : क्या बकवास लेकर बैठ गया तू। (क्रोध में राधा की तरफ देखते हुए) इसे तो जब देखो तब, अधीर की ही पड़ी रहती है। कितनी बार कहा कि भूल जा उसे। समझ ले कि मर गया।

राधा : (आंसू पोंछते हुए) कैसे समझ लूं। मां हूं मैं उसकी। (राधा का स्वर भीगा होता है।)

(माहौल बदलने के लिए पूजा बात बदलती है।)

पापा, सुधीर भैया ने आज अपने गमले में फिर एक पौधा लगाया है। पता है मम्मी, सुधीर भैया उसके पांव पकड़ रहे थे। आदमियों की तरह उससे बातें कर रहे थे।

सुधीर : अबे शेखचिल्ली, तू क्यों फालतू में बकवास करती रहती है।

पूजा : बकवास नहीं कर रही भैया। मैं तो कहती हूं कि आप या तो उस गमले की मिट्टी बदल दो या कोई दूसरा पौधा लगाओ...।

सुधीर : न तो मैं उस गमले की मिट्टी बदलूंगा और न ही कोई दूसरा पौधा लगाऊंगा।

पूजा : फिर तो आपका सपना साकार नहीं हो सकता।

सुधीर : तू अपना ज्ञान अपने पास ही रख। मुझे क्या करना है यह मैं अच्छी तरह से जानता हूं।

पूजा : क्या खाक जानते हैं आप। आप कम्युनिस्टों में यही तो कमी है। किसी की बात को मानते ही नहीं हो।

सुधीर : मेरी पगली बहन, कोई भी मिट्टी किसी भी पौधे के लिए उपयुक्त नहीं होती, उसे उपयुक्त बनाया जाता है। हर मिट्टी में कुछ ऐसे तत्व होते हैं जो किसी भी पौधे को जिंदा नहीं रहने देते। इसलिए हमेशा पौधे और उन तत्वों में संघर्ष चलता रहता है...।

महादेव : (व्यंग्य से) वर्ग-संघर्ष की तरह।

सुधीर : हां, इसे इस तरह से भी समझ सकते हैं।

पूजा : समझें तो तब, जब हमारे पास दिमाग हो।

राधा : अच्छा बहुत हो गया, अब चलिए सब।

(सभी उठकर मंच से चले जाते हैं)

दृश्य तीन

(मंच पर अखबार लिए महादेव का प्रवेश। उनका चेहरा गुस्से तमतमाया हुआ है।)

महादेव : पूजा .... ओ पूजा ....

राधा : (महादेव की आवाज सुनकर आती है) क्या है? क्यों चिल्ला रहे हो?

महादेव : (क्रोध में कांपते हुए) यह देखो अपनी बेटी की करतूत।

(महादेव अखबार राधा को पकड़ा कर चहल कदमी करने लगते हैं। राधा अखबार में छपी पूजा की अर्धनग्न तस्वीर देखती है। यह किसी कंपनी के महिला अधोवस्त्र का विज्ञापन है, जिसकी माडलिंग पूजा ने की है। अंडरवियर और ब्रा में पूजा की मादक तस्वीर अखबार में छपी है।)

सुधीर : क्या है मां? (महादेव की आवाज सुनकर सुधीर भी आ जाता है)

राधा : यह देख, अपनी बहन की करतूत।

(राधा अखबार सुधीर को थमा देती है। सुधीर अखबार देख रहा होता तब तक पूजा भी आ जाती है।)

पूजा : क्या है मां....? (वह अपना वाक्य पूरा भी नहीं पाती कि महादेव अखबार सुधीर से छीन कर पूजा से मुखातिब हो जाते हैं।)

महोदव : यह क्या है? (पूजा चुप रहती है)

राधा : बोलती क्यों नहीं?

पूजा : ओ क्या है कि मेरी सहेलियों ने कहा कि पैसे मिलेंगे। (पूजा रुक-रुक कर धीरे से बोलती है।)

महादेव : पैसे के लिए वेश्यावृत्ति करेगी? (महादेव गुस्से में चीखते हैं।)

पूजा : जो लड़कियां माडलिंग कर रही हैं वे सब वेश्या हैं?

महादेव : देखो इसे (राधा की तरफ इशारा करते हुए) कैसे कुतर्क कर रही है। कल को जब यह गली से निकलेगी तो सोहदे इसे देखकर आहें भरेंगे। दुनिया कहेगी कि महादेव की बेटी रंडी हो गई।

पूजा : सोहदों का क्या है, वह तो अब भी आहें भरते हैं। उनके लिए तो लड़की होना ही काफी है। वैसे ही जैसे आप मुझ पर चीख रहे हैं। जो काम मैंने किया यदि वही सुधीर या अधीर भैया ने किया होता तो आप कुछ नहीं बोलते। आप मुझ पर इसीलिए गुस्सा हो रहे हैं, क्योंकि मैं लड़की हूं।

महादेव : इसकी हिम्मत तो देखो? कैसे टिपिर-टिपिर बोले जा रही है।

पूजा : (गुस्से में) मैंने कोई गलत काम नहीं किया है। अब वह जमाना गया जब नारी पुरुषों की गुलाम हुआ करती थी। आप का गुस्सा एक बाप का बेटी पर नहीं, एक पुरुष का औरत पर है।

महादेव : वाह! बिटिया तो जवान हो गई है और समझदार भी।

(सुधीर की तरफ देखते हुए) सुन रहे हो सुधीर, यह तुम्हारी भाषा बोल रही है। तुम भी खूब लिखते हो न नारी मुタति के बारे में। अब तुम्हारी बहन आजाद हो गई है। तुम्हारी भाषा में कहें तो इसने देह का अर्थशास्त्र जान लिया है। क्या कमाल हुआ है। (राधा की तरफ देखते हुए) बेटा सिद्धांत की बातें करता था, बेटी ने उसे व्यावहारिक बना दिया। तुम धन्य हो गए महादेव, धन्य हो गए।

सुधीर : पापा, आप मुझे गलत समझ रहे हैं।

महादेव : नहीं बेटा, गलत तो मैं हूं। तुम लोग तो गलती कर ही नहीं सकते।

सुधीर : मैं औरत की आजादी की बात करता हूं, समानता की बात करता हूं, और करता रहूंगा, लेकिन पूजा ने जो किया उसका समर्थन नहीं करता।

पूजा : जान सकती हूं क्यों?

सुधीर : क्योंकि यह नग्नता है। नारी देह का बाजारीकरण है। यह नारी की आजादी नहीं है।

पूजा : अच्छा! पापा ठीक ही कहते हैं कि तुम कम्युनिस्ट किताबों से बाहर निकल ही नहीं सकते। आप जो करें वह सही, दूसरा करे तो गलत।

सुधीर : तुम नहीं समझ पाओगी।

पूजा : मुझे समझना भी नहीं है। मैं तो केवल इतना जानती हूं कि माडलिंग को मैंने अपनी आत्मनिर्भरता के लिए चुना है। इसमें पैसा है और ग्लेमर भी।

सुधीर : और शोषण भी।

महादेव : यानी तू आगे भी करेगी।

पूजा : आफकोर्स। क्यों नहीं?

महादेव : फिर तो इस घर का दरवाजा अपने लिए बंद ही समझना।

पूजा : कहने की जरूरत ही नहीं है। यह तो मैं जानती ही थी।

राधा : पूजा, मैं कब से तेरी बकबक सुन रही हूं। तू समझने की कोशिश क्यों नहीं करती?

पूजा : क्या समझने की कोशिश करुं मम्मा?

राधा : यही कि तूने जो किया है, गलत है।

पूजा : फिर सही क्या है मम्मा? घर में बैठकर आंसू बहाना? किसी राजकुमार का इंतजार करना कि एक दिन आएगा और मुझे अपनी रानी बनाकर ले जाएगा। वह भी बिना दान-दहेज के?

सुधीर : पूजा तुम्हें यह दुनिया जितनी बढ़िया लग रही है न, उतनी अच्छी है नहीं। वहां तुम्हारा ऐसा शोषण होगा कि तुम अपनी तकलीफ किसी से कहने लायक भी नहीं रहोगी। चमक-दमक के आगे तुम्हारे आंसू दब जाएंगे।

पूजा : भैया, आप भी मम्मी-पापा के सुर में सुर मिलाएंगे, ऐसी उम्मीद नहीं थी। क्या यही है आपकी प्रगतिशीलता? मैं आज जो कुछ भी कर रही हूं, उसके लिए आपके विचार ही दोषी हैं।

सुधीर : मेरे विचार?

पूजा : मैंने आपके लेखों से प्रभावित होकर ही यह निर्णय लिया है।

महादेव : सुन लिया राधा? तुम्हारे सुपुत्र खुद तो बिगड़े ही थे, तुम्हारी लाड़ली को भी ले डूबे। इसकी फिलासफी इस घर का सत्यानाश कर देगी।

सुधीर : पापा, आप स्थिति को गलत समझ रहे हैं।

महादेव : हां, समझदार तो तू है और एक यह तेरी बहन। इससे कह दे कि इसने यदि अपना रास्ता नहीं बदला तो ठीक नहीं होगा। ए' एश्च ष्टप् ॥ एज ' एश्च प्॥ ञ्च ज पूजा : मेरा फैसला अटल है।

महादेव : तो इस घर में तेरे लिए जगह नहीं है। मैं समझूंगा कि मेरी बेटी मर गई।

(महादेव मंच से तेजी से चले जाते हैं। पूजा भी पैर पटकते हुए चली जाती है।)

राधा : अब क्या होगा?

सुधीर : होगा वही जो होना है। हम अधिक से अधिक पूजा को समझा सकते हैं।

राधा : वह नहीं मानेगी। बचपन से ही जिद्दी रही है। (तभी उनके पास से पूजा गुजरती है)

सुधीर : पूजा।

पूजा : मुझे देर हो रही है।

सुधीर : एक मिनट सुन तो सही। (पूजा उनके पास आती है)

पूजा : क्या है?

सुधीर : पूजा, समझने की कोशिश करो। तुम्हारी हरकत से मम्मी-पापा को गहरा आघात लगा है। कोई भी मां-बाप अपनी औलाद के दुश्मन नहीं होते।

पूजा : मैंने कोई गलत काम नहीं किया, जिससे किसी को आघात लगे।

सुधीर : तुम भूल रही हो कि तुम्हें जबरन भी रोका जा सकता है।

पूजा : जानती हूं, जबरदस्ती पुरुषों का अंतिम हथियार है। लेकिन मैं कोई गाय या भेड़-बकरी नहीं हूं कि आप लोग जैसा चाहेंगे, वैसा ही करती जाऊंगी।

सुधीर : अधीर को पता चला तो जानती हो क्या होगा?

पूजा : जान से मार देंगे? लेकिन मरने से डरता कौन है? हर पल घुट-घुटकर मरने से तो अच्छा है एक झटके में मर जाना।

राधा : यानी फैसला नहीं बदलोगी?

पूजा : नहीं। मेरे पास कई विज्ञापन फिल्मों के आफर हैं। एक फिल्म के लिए भी बातचीत चल रही है। यह सब पाने के लिए लड़कियां पता नहीं क्या-क्या करती हैं...। मुझे अवसर मिल रहा है तो मैं उसे कैसे खो दूं?

सुधीर : अपने स्वार्थ के लिए मां-बाप की इज्जत दांव पर लगा दोगी?

पूजा : (गुस्से में) यह बात आप कह रहे हैं मिस्टर सुधीर आप? अपने गिरेबां में झांक कर देखिए। आपने कितना ख्याल रखा है मां-बाप की इज्जत, अरमान और ख्वाहिशों का?

सुधीर : तू कहना क्या चाहती है?

पूजा : यही कि यदि मैंने और अधीर ने मम्मी-पापा को सदमा पहुंचाया है तो आपने कौन सी इनकी भावनाओं को समझा है? जब देखो तब किताबों में डूबे रहते हो। पता नहीं क्या-क्या लिखते रहते हो। चार पैसे कमा नहीं सकते, लेकिन सपना क्रांति का देखते हो। क्रांति न हुई खेत की मूली हो गई कि जब मन चाहा उखाड़ लिया। मेरी मानो, कोई नौकरी कर लो, जिंदगी सुधर जाएगी। मां-बाप के लायक बेटे भी बन जाओगे।

राधा : बदतमीज (यह कहते हुए राधा पूजा को एक चांटा मारने के लिए बढ़ती है, लेकिन उन्हें सुधीर रोक देता है।)

पूजा : सच कड़वा ही होता है मम्मी।

राधा : क्या सच है?

पूजा : यही कि दुनिया को समझाने का ठेका लिए घूमने वाले मेरे प्यारे भैया क्या यह नहीं जानते कि घर की आर्थिक स्थिति कैसी है? मकान बिकने वाला है और यह हैं कि क्रांति का सपना देख रहे हैं।

राधा : तू पागल हो गई है क्या?

पूजा : मैं बिल्कुल ठीक हूं मम्मी। दूसरों को उपदेश देना, दूसरों के कार्यों में दोष निकालना आसान है। आपके और पापा के सपनों की हत्या करने वाले पहले व्यक्ति सुधीर भैया हैं।

राधा : अच्छा होगा कि तू यहां से चली जा।

महादेव : बात भले ही कड़वी लगे, लेकिन कहा इसने सच है। यदि किसी की बड़ी संतान नालायक निकल जाए तो छोटों से तो उम्मीद करना ही बेकार है।

(महादेव भी मंच पर आकर इनकी बातों में शामिल हो जाते हैं। इसी दौरान दरवाजे पर कालबेल बजती है। पूजा मंच से जाती है और एक आदमी को लेकर मंच पर आती है। उसे देखकर महादेव घबरा जाते हैं। उनके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगती हैं।)

व्यक्ति : मैं सपना फाइनेंस कंपनी से आया हूं।

(आगंतुक अपना परिचय देता है।)

महादेव : बैठिये। (बैठने का इशारा करते हैं। वह व्यक्ति कुर्सी पर बैठ जाता है।)

व्यक्ति : पैसों का इंतजाम हुआ?

महादेव : पैसों की व्यवस्था तो अभी नहीं हो पाई है। (बड़ी दीनता के साथ महादेव ने कहा) उसी का इंतजाम करने निकल रहा था।

व्यक्ति : आपको तो मालूम ही है कि कल पैसा जमा करने की अंतिम तारीख है। मेरी कंपनी का एक उसूल है। वह अपने ग्राहकों का पूरा सम्मान करती है। इसलिए मैं एक दिन पहले आ गया स्थिति का जायजा लेने। आपको उम्मीद है कि कल तक पैसों की व्यवस्था हो जाएगी?

महादेव : आशा तो है।

व्यक्ति : एक-एक किस्त जमा कर देते तो यह नौबत ही न आती। मेरी आपके साथ पूरी संवेदना है, लेकिन क्या करें व्यापार में भावनाओं के लिए जगह नहीं होती। फिर मैं तो एक मुलाजिम हूं। अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि कल तक पैसे जमा नहीं हुए तो...।

पूजा : तो क्या होगा?

व्यक्ति : कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

पूजा : मतलब?

व्यक्ति : घर की नीलामी।

महादेव : कुछ दिन की मोहलत और नहीं मिल सकती? (महादेव गिड़गिड़ाये)

व्यक्ति : नहीं।

पूजा : कितने पैसे देने हैं? (उसके चेहरे पर गुस्सा मिश्रित तेवर होता है।)

व्यक्ति : ज्यादा नहीं, दो लाख रुपये।

पूजा : आज ही जमा कर दें तो?

व्यक्ति : इससे बढि़या और क्या हो सकता है?

पूजा : पेपर तैयार करिये।

व्यक्ति : मतलब?

पूजा : मतलब यह कि पेपर तैयार करिये।

व्यक्ति : पैसे आप देंगी?

पूजा : क्यों? मैं पैसे नहीं दे सकती?

व्यक्ति : क्यों नहीं दे सकती। मुझे लगता है कि मैंने आपको कहीं देखा है? (उसके चेहरे पर कुटिल मुस्कान होती है। जिसका भाव पूजा समझ जाती है।)

पूजा : पापा के साथ कई बार मैं आपके आफिस गई हूं। वहीं देखा होगा।

व्यक्ति : नहीं, आजकल में कहीं देखा है।

पूजा : देखा होगा, फिलहाल तो अपना काम करिये। (पूजा गुस्से में बोलती है और मंच से चली जाती है। वह आदमी बैग खोलकर पेपर बनाने लगता है।)

पूजा : यह लीजिए। (पूजा नोटों की गड्डी उस आदमी के सामने टेबल पर रख देती है।

वह आदमी मुस्कराते हुए पूजा को देखता है। फिर महादेव की तरफ देखकर कहता है।)

व्यक्ति : जिस बाप की इतनी लायक बेटी हो, उसका घर नीलाम कैसे हो सकता है?

(महादेव सिर झुका लेते हैं। राधा भी कुछ नहीं बोलती। सुधीर भी चुप ही रहता है।)

पूजा : आप काम कम करते हैं, बोलते ज्यादा हैं। आपको कंपनी झेल कैसे रही है?

(व्यक्ति चुपचाप पेपर तैयार करता है। कई जगह महादेव की साइन करवाता है।)

व्यक्ति : आपने इस घर को नीलाम होने से बचा लिया। (व्यक्ति पेपर साइन कराने के बाद महादेव को देने के बाद बैग उठाकर चलते समय पूजा से कहता है और मंच से चला जाता है।)

महादेव : (अपने आप से) घर को नीलाम होने से बचा लिया, लेकिन इज्जत तो नीलाम कर ही चुकी है...।

राधा : (फाइनेंसर के जाने के बाद) पूजा बेटी तेरे पास ये पैसे...?

पूजा : वेश्यावृत्ति नहीं की है मां। उसी विज्ञापन के बदले में मिले हैं।

राधा : इतने पैसे?

पूजा : हां, यह तो एडवांस है। दो लाख अभी और मिलेंगे।

राधा : लेकिन तूने तो पहले नहीं बताया?

पूजा : डर रही थी कि कहीं आप लोग गलत न समझ लें।

महादेव : और वह हमने समझ ही लिया। तू पहले बता देती तो शायद यह नौबत न आती। तेरी ऐसी तस्वीर देखकर अचानक आघात सा लगा और मैं गुस्सा कर बैठा। हो सके तो मुझे माफ कर देना...।

(महादेव मंच से चले जाते हैं। राधा पूजा को गले से लगा लेती है। सुधीर की समझ में नहीं आता कि वह स्थिति की कैसी व्याख्या करे। मंच पर धीरे-धीरे अंधेरा छा जाता है।)

दृश्य चार

(मंच पर सुधीर है। जहां पर वह है वहीं पर प्रकाश होता है।)

सुधीर : (अपने आप से) जरूरतें आदमी को कितना कमजोर बना देती हैं। थोड़ी देर पहले पापा पूजा को कोस रहे थे। घर से निकाल रहे थे। वेश्या से तुलना कर रहे थे। अब माफी मांग रहे हैं। जिस बेटी की हरकतों से शर्मिंदा थे उसी ने उनका सीना गर्व से चौड़ा कर दिया। क्या ऐसे ही यह व्यवस्था लोगों से गलत कार्य करवाती

है? इसके चक्कर में एक बार आदमी फंसा तो पूरी उम्र निकल नहीं पाता। पहले अधीर और अब पूजा। लेकिन इन परिस्थितियों में मैं कहां हूं? मुझे अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए। यदि मैं अपने दायित्व को निभाता तो शायद यह नौबत न आती। मुझे कुछ करना होगा। मैं पार्टी ज्वाइन कर लेता हूं।

(सुधीर डायरी उठाता है और अपना थैला। मंच से जाने को होता है तभी उसके पास राधा आ जाती है। अब प्रकाश दोनों पर होता है।)

राधा : तू कहां चल दिया?

सुधीर : मम्मी सोचता हूं कोई नौकरी कर लूं। आखिर कब तक इस घर पर बोझ बना रहूंगा। (वह झूठ बोलता है, जबकि वह पार्टी ज्वाइन करने का मन बना लिया होता है।)

राधा : यह तो अच्छी बात है।

(सुधीर मां का पैर छू कर आगे बढ़ने का होता है तभी सामने पूजा आ जाती है।)

पूजा : भैया, मम्मी का पांव छूकर...।

सुधीर : मैं तेरा शुक्रगुजार हूं पूजा।

पूजा : किस बात के लिए?

सुधीर : मेरी सोई चेतना जगाने के लिए।

पूजा : मैं समझी नहीं!

राधा : तेरा भैया नौकरी खोजने जा रहा है।

पूजा : सॉरी भैया। उस समय मैं गुस्से में न जाने क्या-क्या बोल गई। प्लीज, मुझे माफ कर दो। (पूजा सुधीर के सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती है)

सुधीर : अरे पगली, क्या करती है? भाई-बहन में कैसी नाराजगी।

(सुधीर मंच से चला जाता है। उसके पीछे-पीछे पूजा भी चली जाती है। इसी दौरान महादेव मंच पर प्रवेश करते हैं।)

महादेव : (राधा से) घर को नीलाम होने से पूजा ने बचा लिया, लेकिन...। (महादेव का वाक्य काटकर राधा बोल पड़ती है।)

राधा : जो होता है, ठीक ही होता है।

महादेव : नहीं राधा, जो हो रहा है वह ठीक नहीं हो रहा है। पूजा ने पैसे देकर घर को नीलाम होने से भले ही बचा लिया हो, लेकिन मेरी इज्जत तो वह पहले ही बाजार में नीलाम कर आई थी। देख नहीं रही थी उस आदमी को। बार-बार कह रहा था कि आपको कहीं देखा है। उसके चेहरे के भाव कितने बेशर्मी वाले थे।

राधा : आपको तो बात का बतंगड़ बनाने की आदत है। पूजा ने कोई अनोखा कार्य किया है क्या? कितनी लड़कियां यही कर रही हैं। उनकी इज्जत तो बाजार में नहीं बिक रही है? माना कि ऐसे कपड़ों में बेटी को देखने पर शर्म आती है, लेकिन अब जमाना बदल गया है। जब हम टीवी पर ऐसे दृश्यों को देख सकते हैं तो...।

महादेव : चुप रहो। आए दिन ऐसी लड़कियों के बारे में कैसी-कैसी खबरें छपती रहती हैं। एक-एक रात के लाखों लेती हैं...। काम पाने के लिए कुछ भी करती हैं...।

राधा : आपको शर्म आनी चाहिए। पूजा हमारी बेटी है।

महादेव : शर्म ही तो आ रही है। काश कि पूजा हमारी बेटी न होती।

राधा : यही काम यदि सुधीर और अधीर करते तो क्या तब भी आपको ऐसी ही शर्म आती?

महादेव : लड़कों की बात और होती है।

राधा : क्यों?

महादेव : क्योंकि वह लड़के होते हैं।

राधा : यानी लड़की होना गुनाह है। मां-बाप की इज्जत का भार लड़कियों पर ही क्यों होता है? सुधीर ठीक ही कहता है कि इस दुनिया में औरत पुरुष की गुलाम है। लेकिन अब ऐसा नहीं चलेगा। आज लड़कियां हर क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रही हैं। एक दिन वह अपनी जगह बना ही लेंगी।

महादेव : ऐसी बेशर्मी से तो उनकी जगह नरक में भी नहीं बनेगी।

राधा : कम से कम पूजा ने तो इस घर में अपनी जगह बना ही ली है।

(इतना कह कर वह मंच से चली जाती है। इसके बाद महादेव खुद से ही बात करते हैं।)

महोदव : (खुद से) पूजा ने इस घर को बचाने के लिए मुझसे जो कीमत वसूली है उसके दर्द से मैं हर पल मरूंगा। लेकिन अब किया ही क्या जा सकता है? अब तो उसकी मां भी उसके साथ है। हे, भगवान तू ही मेरी रक्षा कर।

(महादेव यह कहकर मंच पर धम्म से बैठ जाता है। वह अपने दोनों हाथों से मुंह को ढके हुए होता है। प्रकाश का फोकस उसी पर होता है, जो धीरे-धीरे अंधेरे में बदल जाता है।)

अंक दो

दृश्य एक

(मंच पर एक आदमी कुर्सी पर बैठा है। उसके सामने की मेज पर कुछ फाइलें, कुछ किताबें और कुछ पत्रिकाएं पड़ी हैं। (चाहें तो इसे दफ्तर का भी रूप दे सकते हैं।) आदमी कुछ लिख रहा है। तभी मंच पर सुधीर का प्रवेश। लाइट जो अभी तक उस आदमी पर केंद्रित थी, सुधीर को भी अपने दायरे में ले लेती है।)

सुधीर : कामरेड, नमस्कार।

कामरेड : नमस्कार। (सुधीर की तरफ देखते हुए) अरे, सुधीर! आओ-आओ! कैसे हो?

सुधीर : ठीक ही हूं।

कामरेड : बहुत दिनों बाद आना हुआ?

सुधीर : इसीलिए तो हमेशा के लिए आ गया हूं।

कामरेड : क्या!?

सुधीर : हां।

कामरेड : यह तो बहुत अच्छी बात है! इस देश को तुम जैसे नवयुवकों की जरूरत है। जिन विसंगतियों से देश घिरता जा रहा है, उससे युवा शक्ति ही बचा सकती है।

सुधीर : और लोग दिखाई नहीं दे रहे हैं। (सुधीर इधर-उधर निगाहें दौड़ाता है।)

कामरेड : सभी अपने-अपने काम में लगे हैं।

सुधीर : मुझे क्या करना होगा?

कामरेड : फिलहाल तो तुम आराम करो। तुम्हारे रहने की व्यवस्था करा देता हूं। काम भी समझा दिया जाएगा। कल कमेटी की बैठक होगी तो उसमें तुम्हारे बारे में विचार किया जाएगा।

सुधीर : मैं यहां आराम करने नहीं आया हूं। मैं अपने लक्ष्य के प्रति सतत क्रियाशील रहना चाहता हूं।

कामरेड : अच्छी बात है। मुझे तुमसे यही उम्मीद थी। लेकिन तुम्हारे काम के बारे में फैसला कल ही हो पाएगा।

सुधीर : ठीक है, लेकिन मैं आपसे गुजारिश करूंगा कि मुझे हथियार वाली विंग में ही कार्य करने का मौका दिया जाए।

कामरेड : देखिये सुधीर, क्रांति किसी लड़की से प्यार करना नहीं है। इस पथ के पत्थरों को झेलना आसान नहीं होता। पार्टी में किसी भी युवक को एक प्रक्रिया के तहत ही कोई काम मिलता है। विचारधारा से प्रभावित होना अलग बात है। दूसरे के कष्टों से द्रवित होना भी अलग बात है। परिस्थितियों को समझना भी अलग बात है, लेकिन महत्वपूर्ण और कठिन है परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाते हुए व्यवस्था परिवर्तन की तरफ बढ़ना। अपने विचार को, सिद्धांत को व्यवहारिक रूप देना। मूर्त रूप देना। तुम आज आराम करो, कल से तुम्हें काम मिल जाएगा।

सुधीर : ठीक है। (सुधीर मंच से चला जाता है।)

कामरेड : (खुद से) सुधीर जैसे युवक आजकल कम ही मिलते हैं। इनका सही इस्तेमाल करना होगा।

(मंच पर धीरे-धीरे अंधेरा छा जाता है।)

दृश्य दो

(मंच पर चार-पांच लड़के हैं। वह आपस में बातें कर रहे हैं और कुछ घबराये हुए हैं।)

युवक-एक : मालूम नहीं बॉस कहां रह गए?

युवक-दो : बॉस को कहीं पुलिस ने....।

युवक-तीन : चुप्प बे। बॉस आएंगे। उन्हें दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती। अभी तो उन्हें चुनाव लड़ना है, जीतना है और मंत्री बनना है। हमारी तपस्या ऐसे ही बेकार नहीं जा सकती।

युवक-चार : हां, बॉस आएंगे और जरूर आएंगे।

(मंच पर सिगरेट पीते हुए अधीर का प्रवेश। उसे देखते ही सभी युवक उसके पास आ जाते हैं।)

युवक-एक : बॉस, नेता जी का फोन आया था।

अधीर : क्या बोला? (मुंह से सिगरेट का धुआं उगलता है।)

युवक-एक : एक पार्टी भेज रहे हैं।

अधीर : पार्टी आई?

युवक-एक : नहीं।

अधीर : ठीक है आने दो।

युवक-एक : लेकिन बॉस...।

अधीर : तुम लोग इतने डरे हुए क्यों हो? ?

युवक-एक : अपने नौ लड़के कल पुलिस मुठभेड़ में मारे गए।

अधीर : तो क्या दिक्कत है?

युवक-एक : लड़कों की कमी हो गई है।

अधीर : अरे बेवकूफों, जब तक इस देश में बेरोजगारी, गरीबी और असमानता है हमें लड़कों की कमी नहीं पड़ेगी। कितनों को मारेंगे ये पुलिस वाले? कितनों को?

युवक-दो : पुलिस जिस तरह से हमारे पीछे पड़ी है, ऐसे तो काम करना मुश्किल हो जाएगा।

अधीर : हमारे पीछे पुलिस नहीं तो क्या लड़कियां पड़ेंगी?

युवक-तीन : पुलिस हम पर हावी होती जा रही है बॉस।

युवक-चार : यह ठीक कह रहा है बॉस।

अधीर : हां, चिंता की बात है, लेकिन घबराने की नहीं है। कल दस लड़के हमें ज्वाइन कर रहे हैं। रही बात पुलिस की तो इसका भी बंदोबस्त करता हूं। (मोबाइल मिलाता है।)

अधीर : नेता जी, अधीर बोल रहा हूं।

(बैकग्राउंड से नेता जी की आवाज आती है।) हां, अधीर, थोड़ी देर में तुम्हारे पास एक पार्टी पहुंच रही है। खूब पैसे वाली है। किसी आदमी को टपकाना है। देख लेना।

अधीर : नेता जी, यह तो ठीक है, लेकिन आजकल पुलिस बहुत परेशान कर रही है। कल ही नौ लड़कों को मार डाला।

( नेता जी : तू चिंता न कर। पुलिस का भी इंतजाम करता हूं।

अधीर : ठीक है।

(मोबाइल बंद करता है। मंच पर धीरे-धीरे अंधेरा हो जाता है।)

दृश्य तीन

(मंच पर महादेव बैठे अखबार पढ़ रहे हैं। तभी दो आदमियों का प्रवेश। एक फिल्म निर्माता है और दूसरा निर्देशक। दोनों महादेव को नमस्कार करते हैं।)

महादेव : (अखबार से ध्यान हटाते हुए) नमस्कार। माफ करना मैंने आपको... (महादेव का वाक्य काटकर उनमें से एक बोलता है- नहीं पहचाना? हम लोग फिल्म निर्माता -निर्देशक हैं। / दूसरा बोलता है, मैं मनोज और यह इकबाल।)

महादेव : जी, स्वागत है, बैठिये।

निर्माता : मिस पूजा आपकी बेटी हैं?

महादेव : जी।

निर्देशक : बहुत सुंदर और प्रतिभावान हैं।

निर्माता : हम उन्हें अपनी फिल्म की हिरोइन बनाना चाहते हैं।

महादेव : मैं पूजा को बुलाता हूं। (पूजा को आवाज देता है।) पूजा, ओ पूजा।

निर्देशक : उनका कोई पीए वगैरह नहीं है?

निर्माता : फिर तो पीए का काम आप ही देखते होंगे?

महादेव : अभी तक तो ऐसी नौबत नहीं आई।

(मंच पर राधा के साथ पूजा का प्रवेश)

पूजा : आपने बुलाया डैडी?

महादेव : ये लोग तुमसे मिलने आए हैं।

पूजा : (निर्माता-निर्देशक की तरफ मुखातिब होकर) जी, कहिये।

निर्माता : वाह! क्या सुरीली आवाज है। बिल्कुल सुंदरता के अनुकूल।

पूजा : (गुस्से से) मतलब की बात करिये।

निर्माता : मतलब की ही बात कर रहा हूं मिस पूजा।

निर्देशक : आप तो गुस्से में और भी लाजवाब हो जाती हैं।

निर्माता : दरअसल, हमें ऐसी ही लड़की तलाश थी।

निर्देशक : वह खोज आपका विज्ञापन देखकर पूरी हो गई।

पूजा : आप लोग हैं कौन?

निर्माता : हम निर्माता-निर्देशक हैं।

निर्देशक : मैं मनोज और यह इकबाल।

निर्माता : नाम तो सुना ही होगा आपने?

पूजा : हां-हां (झेंपते हुए) दरअसल, मैं पहचान नहीं पाई।

निर्माता : कोई बात नहीं, कोई बात नहीं।

निर्देशक : यह सब तो चलता ही रहता है।

पूजा : मैं आप लोगों के लिए चाय-पानी लाती हूं।

निर्माता : अरे, नहीं-नहीं।

निर्देशक : इसकी कोई जरूरत नहीं है।

(इस बीच राधा मंच से चली जाती हैं। थोड़ी देर में सभी के लिए चाय लेकर आती हैं।)

निर्माता : हमारे पास एक कहानी है। उसके मुताबिक कोई लड़की मिल ही नहीं रही थी।

निर्देशक : कितनी लड़कियों का स्क्रीन टेस्ट लिया, लेकिन सफलता नहीं मिली।

निर्माता : अंडर गारमेंट वाला आपका विज्ञापन देखा तो खुशी से झूम उठा। मेरी कल्पना साकार हो गई। इकबाल को तुरंत फोन करके बोला, यही लड़की है जिसे हमें तलाश थी। बोल्ड एंड ब्यूटीफुल...। वाह! क्या पोज दिया है आपने!

निर्देशक : फिर क्या था आपका पता पूछते-पूछते यहां तक पहुंच गए।

पूजा : जी, आपकी बहुत-बहुत मेहरबानी। आप स्क्रिप्ट छोड़ जाइये। मैं पढ़कर आपको बताती हूं।

निर्माता : स्क्रिप्ट पढेंगी?

पूजा : हां, जो रोल आप मुझे देना चाहते हैं, वह कैसा है स्क्रिप्ट पढ़कर ही पता लेगा, तभी तो डिसाइड करूंगी।

निर्माता : वह मैं आपको सुना देता हूं।

पूजा : नहीं, मैं पढ़कर फिर आपको बताती हूं।

(महादेव के सामने पूजा बात करने में खुद को असहज महसूस करती है।)

निर्देशक : (थोड़ा उखड़े मूड से) लेकिन इससे पहले आपको स्क्रीन टेस्ट देना पड़ेगा।

पूजा : स्क्रीन टेस्ट! अभी तो आप कह रहे थे कि विज्ञापन देखकर...।

निर्देशक : विज्ञापन और फिल्म में बहुत अंतर होता है।

पूजा : जानती हूं, लेकिन..।

निर्माता : टेस्ट देने में कोई दिक्कत है? मुझे तो तुम पंसद हो। इकबाल से मैंने कह भी दिया है कि मेरी फिल्म की हिरोइन पूजा ही होगी। लेकिन क्या है कि यह निर्देशक है न। इसकी भी तसल्ली होनी जरूरी है।

पूजा : ठीक है।

निर्माता : कल आप मेरे आफिस आ जाइये। यह रहा मेरा विजीटिंग कार्ड।

पूजा : (निर्माता से कार्ड लेते हुए) ओके।

(दोनों पूजा से हाथ मिलाते हैं और महादेव और राधा को नमस्ते करते हुए मंच से चले जाते हैं।

महादेव : कितने बेवकूफ लग रहे थे। इन सब के साथ तुम काम करोगी?

पूजा : इन बेवकूफों से निपटना मुझे आता है।

महादेव : उम्मीद करता हूं तुम कोई कंप्रोमाइज नहीं करोगी।

पूजा : पापा!

दृश्य चार

(मंच पर आठ-दस मजदूर बैठे हैं। सुधीर उन्हें संबोधित कर रहा है।)

सुधीर : अन्याय सहन करना, अन्याय करने से भी बड़ा गुनाह है। आप लोग अपने हक की बात न करके अपने ऊपर ही जुल्म कर रहे हैं। यह व्यवस्था आपका खून चूस कर मोटी होती जा रही है और आप लोग एक-एक रोटी को मोहताज हैं। तन पर कपड़े नहीं हैं। बच्चे भूखों मर रहे हैं। इलाज के बिना मर रहे हैं। सच तो यह है कि आप लोग जिन वस्तुओं का उत्पादन करते हैं, उनका उपभोग नहीं कर पाते। क्योंकि आपके श्रम की उचित कीमत नहीं मिलती। आपके हिस्से का पैसा हड़प कर पैसे वाले ऐश करते हैं और आप लोग तिलतिल करके मरते हैं। श्रम को कीमती बनाने के लिए आपको अपनी अहमियत समझनी होगी। आपको इनको बताना होगा कि आप भी इनसान हैं। आप को भी जीने का हक है। आपके श्रम की भी उतनी ही कीमत है, जितनी कि इनके पैसे की। केवल पैसे से ही कोई कारखाना नहीं चलता। उसे चलाने के लिए आप लोग पसीना बहाते हो, लेकिन श्रमिकों को उस पसीने की कीमत नहीं मिलती। अपने श्रम का उचित मूल्य पाने के लिए आपको अपनी आवाज बुलंद करनी होगी। सड़कों पर उतरना होगा। संघर्ष का बिगुल बजाना होगा। जिंदा लाश बनने से बेहतर है कि लाश ही बन जाएं...।

(इसी बीच मंच पर आठ-दस गुंडे हॉकी और राड लिए आते हैं। आते ही वह मजदूरों पर पिल पड़ते हैं। मजदूर तो किसी तरह से भाग खड़े होते हैं, लेकिन गुंडे सुधीर को बहुत मारते हैं। मार-मार कर उसे अधमरा कर देते हैं और हंसते हुए (अट्टहास) चले जाते हैं।)

(मंच पर अंधेरा छा जाता है। थोड़ी देर बाद फिर प्रकाश होता है। मंच पर राधा का प्रवेश। वह उस रास्ते से कहीं जा रही होती हैं। सुधीर को वह पहचान जाती हैं। घबराई हुई उसके पास पहुंचती हैं। राधा सुधीर -सुधीर बुलाती हैं। सुधीर कराहते हुए आंखें खोलता है। धीरे से बोलता है-मां। यह सब किसने किया सुधीर? राधा पूछती है। और कौन करेगा मां? वही करेंगे जिनको मेरा विचार पसंद नहीं है। वह कराहते हुए कहता है। धीरे-धीरे उठता है और राधा का सहारा लेकर चला जाता है। राधा उसे घर लाती है। मंच पर अंधेरा हो जाता है।)

दृश्य पांच

(मंच पर महादेव के घर का एक कमरा। सुधीर लेटा है। उसके

शरीर पर कई जगह पट्टियां बंधी हैं। दर्द के मारे उसे नींद नहीं आ रही है। वह कुछ सोच रहा है, तभी कालबेल बजती है।)

सुधीर : इतनी रात गए कौन हो सकता है?

(उसकी निगाह दीवार घड़ी पर पड़ती है। एक बज रहे होते हैं। तभी घंटी फिर बजती है। सुधीर लंगड़ाते और कराहते हुए दरवाजे की तरफ बढ़ता है।) -कौन?

-मैं अधीर। दरवाजा जल्दी खोलिये। (बाहर से आवाज आती है।)

सुधीर : इतनी रात गए कहां भटक रहा है?

(सुधीर दरवाजा खोल देता है। अधीर हड़बड़ाया हुआ अंदर आता है। उसके कपड़े अस्त-व्यस्त हैं और चेहरे पर दाढ़ी है। सिर के बाल पके हुए हैं। सुधीर उसकी तरफ विस्मित नेत्रों से देखता है। उसके असमंजस को देखते हुए अधीर अपने विग उतार देता है।)

सुधीर : यह क्या नाटक है? मैं तो डर ही गया।

अधीर : आप तो ऐसे ही डरते रहते हैं और सपना क्रांति का देखते हैं। माना कि मेरे पीछे पुलिस पड़ी है, लेकिन वह यहां नहीं आएगी।

सुधीर : पुलिस को बेवकूफ समझते हो? अब तक तो कुत्ते छोड़ दिए होंगे तुम्हारे पीछे।

अधीर : उनके पास कुत्ते नहीं हैं।

सुधीर : कानून के हाथ लंबे होते हैं।

अधीर : बहुत पुराना डॉयलाग है भाई साहब। अब अपराध के हाथ उससे भी लंबे हो गए। कानून तो बौने आदमी की तरह है। जो केवल मसखरी कर सकता

है।

सुधीर : तुमसे तो बहस करना ही बेकार है।

(आंख मलते हुए मंच पर पूजा का प्रवेश। वह अपने आप से ही बात करती है कि इतनी रात गए कौन आ गया।)

अधीर : छोड़ो इस बात को। यह बताओ आपकी यह दशा कैसे हुई?

पूजा : एक जगह भाषण दे रहे थे। गुंडों ने पीट दिया।

अधीर : गुंडों ने पीट दिया! कब?

पूजा : कल।

अधीर : आपने उन्हें पहचाना?

सुधीर : नहीं। (अधीर सोचता है कि लगता है कि मेरे ही बंदों ने पीटा है। चुप रहने में ही भलाई है।)

पूजा : अधीर भैया आप इतनी रात गए? किधर से आ रहे हैं?

अधीर : भविष्य के अंगरक्षकों को चकमा देकर।

पूजा : आप हम सब को जेल की हवा खिलवाएंगे? यह सब करके पता नहीं आपको क्या मिलेगा?

अधीर : संसद में एक कुर्सी। मंत्री भी बन सकता हूं।

पूजा : राजनीति के लिए अपराध का सहारा?

अधीर : और कोई रास्ता भी तो नहीं है। नौकरी मिली नहीं। बिना पैसे के राजनीति में आना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। ऐसे में बाहुबल जिंदाबाद।

सुधीर : किसी दिन पुलिस की गोली से मारे जाओगो।

अधीर : आप अपनी चिंता करें। वैसे भी गिरते हैं सहसवार ही मैदान-ए-जंग में...।

सुधीर : सभी क्राइम किंग संसद या विधानसभा नहीं पहुंचते।

अधीर : आप ही तो लिखते हो कि संसद में अपराधी पहुंच रहे हैं। राजनीति का अपराधीकरण हो गया है।

सुधीर : यह बात ठीक है। लेकिन गिने-चुने अपराधी ही राजनीति में आ पाते हैं। ज्यादातर तो आपसी लड़ाई या फिर पुलिस का शिकार हो जाते हैं। वैसे भी नेताओं ने राजनीति को अपनी जागीर बना लिया है। अपने किसी गुर्गे को राजनीति में लाने के बजाए वह अपने बेटे-बेटियों को आगे बढ़ाते हैं। अपराधियों को तो वह इस्तेमाल करते हैं। काम खत्म होने के बाद दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंकते हैं।

अधीर : जानता हूं। इसीलिए तो इस बार मैंने चुनाव लड़ने का फैसला किया है।

सुधीर : किस पार्टी से?

अधीर : निर्दलीय।

पूजा : किसी पार्टी से क्यों नहीं?

अधीर : क्योंकि कोई पार्टी मुझे टिकट देगी नहीं। उन्हें अपनी छवि की चिंता है। वैसे भी निर्दलीय लड़ने में ही फायदा है। जीतना तो तय है ही, साथ में पहुंचना भी तय हो जाता है।

(इसी बीच महादेव और राधा भी उनके पास जम्हाई लेते हुए आ जाते हैं।)

महादेव : अच्छा! तो आप हैं। (अधीर दोनों के पांव छूता है।)

राधा : इतनी रात गए कहां भटक रहा है?

अधीर : कहीं नहीं मां। आप लोगों की याद आई और मिलने चला आया।

राधा : इसके लिए इस तरह खतरा उठाने की क्या जरूरत थी?

महादेव : नौकरी कर लिया होता तो इस तरह क्यों मारा-मारा फिरता?

अधीर : जब नौकरी मिली ही नहीं तो कहां से कर लेता? आपसे कितनी बार कहा कि एक सेवानिवृत्त शिक्षक के बेटे को कोई नौकरी नहीं देता। उसके लिए चाहिए।

नोटों की गड्डी, सिफारिश और पहुंच। आजकल तो जातिवाद का भी बोलबाला है।

पूजा : फिर छोटी-मोटी नौकरी कर लेते तो उससे क्या हो जाता? जिओ तो शान से, क्यों भैया?

महादेव : हां, तुम्हारी तरह। (महादेव ने कटाक्ष किया।)

अधीर : मतलब?

महादेव : तुम्हारी बहन हिरोइन बन गई है।

अधीर : यह तो अच्छी बात है। लेकिन पूजा हमारी इज्जत का ख्याल रखना। आजकल फिल्म इंडस्ट्री में ऐसी-वैसी बातें बहुत हो रही हैं...। ऐसा कुछ हुआ तो तुम्हारी खैर नहीं...।

(दरवाजे पर खटखट होती है और कालबेल भी बजती है।)

महादेव : कौन हो सकता है?

पूजा : मैं देखती हूं। (वह दरवाजे के पास जाती है। सुराग से झांक कर देखती है। घबराई हुई लौटती है।) बाहर पुलिस है।

राधा : पुलिस!

सुधीर : उसे तो आना ही था।

राधा : अधीर, तू कुछ कर।

अधीर : घबराने की बात नहीं है। आप लोग जा कर लेट जाओ। मैं अपना वेश बदल लेता हूं। जब उनकी दस्तक तेज हो जाएगी तो सुधीर भैया दरवाजा खोल देंगे। बाकी मैं संभाल लूंगा।

(सभी वैसा ही करते है। दरवाजे पर दस्तक तेज होती है तो सुधीर दरवाजा खोल देता हैं। कई पुलिस वाले घर में प्रवेश करते हैं। इसी बीच महादेव, राधा और पूजा भी जागने का अभिनय करते हुए आ जाते हैं।)

सुधीर : यह क्या गुंडागर्दी है? रात को सोने भी नहीं देंगे आप?

पुलिस इंस्पेक्टर : माफ करना। हम लोग अधीर को खोज रहे हैं। हमें शक है कि वह इसी घर में है।

महादेव : आपके शक की वजह?

पुलिस इंस्पेक्टर : कोई भी अपराधी कितना बड़ा हैवान क्यों न हो जाए। वह अपने मां-बाप को नहीं भूल सकता।

महादेव : हमने उससे अपना नाता तोड़ लिया है।

पुलिस इंस्पेक्टर : रिश्ते इतनी जल्दी नहीं टूटते।

महादेव : लेकिन अधीर यहां नहीं आया है।

पुलिस इंस्पेक्टर : अभी पता चल जाएगा। पूरे घर की तलाशी लो।

(वह सिपाहियों को आदेश देता है। तभी वेश बदल कर अधीर का प्रवेश।)

अधीर : किसकी इजाजत से तलाशी लेंगे आप?

पुलिस इंस्पेक्टर : जिस बाप के दो-दो बेटे गलत राह पर हों, उसके घर की तलाशी लेने के लिए किसी की इजाजत की जरूर नहीं होती।

अधीर : वर्दी का इतना घमंड़। ले लीजिए तलाशी। कर लीजिए तसल्ली।

पुलिस इंस्पेक्टर : बाइदबे आप हैं कौन? पहले इस घर में नहीं देखा?

अधीर : देखेंगे कहां से? मैं आपको बताकर तो इस घर में आता नहीं।

(सिपाही घर की तलाश लेने के बाद आते हैं।)

एक सिपाही : सर, यहां तो नहीं है।

पुलिस इंस्पेक्टर : ठीक है चलो। (महादेव की तरफ मुखातिब होकर।) माफ करना आपको तकलीफ दी। (दो कदम चलने के बाद मुड़ता है।) और हां, आपके बड़े बेटे सुधीर के भी रंग-ढंग कुछ ठीक नहीं हैं...। (पुलिस वाले चले जाते हैं। मंच पर अंधेरा हो जाता है।)

दृश्य छह

(मंच पर महादेव, राधा, सुधीर, अधीर और पूजा बैठे नाश्ता कर रहे हैं। इस दौरान उनमें वार्ता भी जारी है।)

राधा : रात तो पुलिस को देखकर मेरी जान ही निकल गई थी। तू यह सब छोड़ क्यों नहीं देता?

अधीर : छोड़ दूंगा मां। इसकी तैयारी कर ली है। इसी प्रक्रिया के तहत तो मैं अखबार निकालने जा रहा हूं।

पूजा : इससे क्या फायदा होगा?

अधीर : यह भी एक राजनीति है। लोकतंत्र में अखबार की बहुत बड़ी भूमिका है। आजकल तो राजनीति ही मीडिया आधारित हो गई है। किसी भी समस्या पर मीडिया के सामने आकर बयान दो राजनीति चलती रहती है। क्यों सुधीर भैया?

सुधीर : तुम कोई नया काम नहीं करने जा रहे हो। इस व्यवस्था में तो ऐसा होता ही रहता है।

अधीर : मैं चाहता हूं कि मेरे अखबार का संपादक आप बने।

सुधीर : नहीं। मैं यह काम नहीं कर सकता।

अधीर : आपको पूरी छूट होगी। जो चाहें करें, जो चाहें लिखें।

सुधीर : बशर्ते उससे आपको कोई नुकसान न हो?

अधीर : यह तो कामनसेंस की बात है।

सुधीर : माफ करना, मैं तुम्हारे अपराधों में भागीदारी नहीं कर सकता।

पूजा : सुधीर भैया, आप अपनी पार्टी के कृत्यों को किस श्रेणी में लाएँगे। सर्वहारा की तानाशाही किस रास्ते से आती है?

अधीर : सुधीर भैया ने पार्टी ज्वाइन कर ली!

पूजा : हां, अब यह पार्टी के होल टाइम मेंबर हैं।

अधीर : सुधीर भैया का भी दिमाग खिसक गया है। एक ऐसी विचारधारा के पीछे पड़े हैं, जिसका अंत हो गया है।

सुधीर : सब झूठ प्रचारित किया गया है। सच तो यह है कि जब तक इस दुनिया में गरीब और गरीबी रहेंगे इस विचारधारा का अंत हो ही नहीं सकता। यह उनका भय

ही है जो यह कह रहे है कि इतिहास का अंत हो गया है।

पूजा : कुछ भी हो भैया, लेकिन यह तो सही है कि साम्यवादी व्यवस्थाएं तभी तक चलती हैं जब तक उनके प्रवर्तक जिंदा रहते हैं। रूस में लेनिन के बाद और चीन में माओत्से तुंग के बाद कहां रह गए कम्युनिस्ट और उनकी व्यवस्था?

राधा : तुम लोग किस बहस में उलझ गए। क्या रखा है इन उल्टी-सीधी बातों में?

महादेव : इनसे तुम और उम्मीद भी क्या कर सकती हो।

राधा : उम्मीदें तो बहुत थीं, लेकिन....।

अधीर : पापा, अखबार की जिम्मेदारी आप संभाल लीजिए।

पूजा : हां, यह सही रहेगा। वैसे भी घर में बैठे-बैठे पापा बोर ही होते हैं।

महादेव : मुझे अखबार के बारे में तो ए बी सी डी भी नहीं आती।

अधीर : आती किसे है? इस बारे में मैं भी अधिक कुछ नहीं जानता। लेकिन जिम्मेदारी आने पर सब जान जाएंगे। वैसे भी आपको केवल निगरानी करनी है। योग्य लोगों को नियुक्त करके उन पर हुक्म चलाना है।

अधीर : अभी मैं चलता हूं। कल आपको एक आदमी मिलेगा। वह सब बता देगा कि कैसे क्या करना है। (अधीर, राधा और महादेव का पांव छूता है और मंच से चला जाता है। उसके जाने के बाद अन्य पात्र भी मंच से चले जाते हैं और अंधेरा हो जाता है। )

दृश्य सात

(मंच पर महादेव का प्रवेश। प्रकाश उन्हीं पर केंद्रित होता है। वह दर्शकों को संबोधित करते हुए बोलते हैं।)

महादेव : मैं सेवानिवृत्त शिक्षक महादेव, इस पर गर्व कर सकता हूं कि मेरे पढ़ाए कई छात्र महत्वपूर्ण पदों पर हैं। लेकिन इनकी संख्या कितनी है? मेरे ही पढ़ाए कितने ही छात्र आज गुमनामी के अंधेरे में खो गए हैं। कितने तो मजदूरी करते हुए कीड़े-मकोड़ों की तरह जी रहे हैं। कई तो इस व्यवस्था से विद्रोह करने के आरोप में पुलिस की गोली के शिकार बन गए। कई अपराधी बन कर समाज को परेशान किया और उन्हें मिली पुलिस की गोली। क्या इसीलिए मैंने इन्हें पढ़ाया था? यही शिक्षा दी थी? नहीं। फिर इनकी यह दशा क्यों हुई? कौन है इस हालात के लिए जिम्मेदार? कहा तो जाता है कि हमारा देश तेजी से विकास कर रहा है, लेकिन करोड़ों हाथों को काम क्यों नहीं मिलता? क्यों आज का युवा सुधीर बन जाता है? अधीर बन जाता है? पूजा बन जाता है?

(महादेव बोलते-बोलते मंच के एक तरफ आकर फ्रीज हो जाते हैं। इसी समय मंच पर सुधीर का प्रवेश।)

सुधीर : कोई नहीं देगा आपके सवालों का जवाब। हालांकि जानते सब हैं, लेकिन मैदान में कोई आना नहीं चाहता। तिलतिल कर मरना मंजूर है, लेकिन अपने हक के लिए मुंह नहीं खोलेंगे। परिणाम अंत हीन शोषण। भुखमरी और कुपोषण। हत्या और बलात्कार। लूट-खसोट और भ्रष्टाचार। कुछ लोगों के लिए महंगी कार। आलीशान भवन और हवाई जहाज। अधिकतर लोगों के लिए रोटी भी नहीं। ऐसे ही चलेगी यह व्यवस्था?

(सुधीर भी महादेव के पास जाकर फ्रीज हो जाता है। तभी मंच पर अधीर का प्रवेश।)

अधीर : ऐसी ही चलेगी यह व्यवस्था। यहां तो ताकतवर को ही जीने का अधिकार है। हक मांगने से नहीं मिलता, छीनना पड़ता है। यह दुनिया उसकी है जो चांद-तारे आसमान से धरती पर लाने की ताकत रखता हो। ताकत ही इस व्यवस्था का मूलमंत्र है।

(अधीर भी मंच के एक कोने में फ्रीज हो जाता है। तभी मंच पर पूजा का प्रवेश।)

पूजा : सदियों से पुरुषों की गुलाम रही है नारी। उसे घर की चहारदीवारी में कैद करके रखा गया। देवी कहकर उसकी पूजा तो की गई, लेकिन जैसे ही उसने देहरी से बाहर कदम रखा कुलच्छिनी हो जाती है। भाई-बाप की इज्जत चली जाती है। इज्जत का भार लड़की पर ही क्यों? बलात्कार होने के बाद लड़की की ही क्यों इज्जत जाती है? बलात्कारी की क्यों नहीं? यौन शुचिता नारी के लिए ही क्यों? नारी के भी अपने सपने होते हैं। दिल होता है, जो किसी को चाहता है। उसे पाना चाहता है। लेकिन वह अपने दिल की, अपने मन की नहीं कर सकती है। उसकी इच्छाओं का दमन हर पल किया जाता है। उस पर दूसरों की इच्छाएं लादी जाती हैं। नारी को भी उसके हिस्से का आसमान चाहिए। उसे उसके हिस्से की रोशनी मिलनी ही चाहिए। आखिर कब तक वह अपने अधिकारों से वंचित रहेगी? कब तक?

(पूजा जहां होती है वहीं फ्रीज हो जाती है। मंच पर धीरे-धीरे अंधेरा हो जाता है।)

अंक तीन

दृश्य एक

(मंच पर राकेश बेचैनी में टहल रहा है। साथ ही बड़बड़ाये जा रहा है।)

राकेश : अभी तक नहीं आई। आजकल उसका मिजाज नहीं मिल रहा है। टाइम देकर न आना आम बात हो गई है। पंख लग गए हैं। मुझे टाल रही है, मुझे, जिसने उसे इस मुकाम तक पहुंचाया। आने दो आज फैसला करके ही रहूंगा।

(मंच पर पूजा का प्रवेश)

पूजा : पागलों की तरह क्या बड़बड़ाये जा रहे हो?

राकेश : ओ! आ गईं महारानी?

पूजा : बड़े उखड़े-उखड़े से लग रहे हैं जनाब?

राकेश : कितनी देर से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं।

पूजा : इंतजार का भी तो अपना मजा है।

राकेश : अच्छा! तो आजकल मजा लिया जा रहा है?

पूजा : तुम कहना क्या चाहते हो?

राकेश : कल किसके साथ घूम रही थी?

पूजा : अच्छा! तो इसके लिए जनाब नाराज हैं? मैं समझती हूं कि इसके लिए तुम्हें ऐतराज नहीं होना चाहिए। मैं किसी की जागीर नहीं हूं।

राकेश : जागीर कौन बता रहा है? मैं तो यह जानना चाहता हूं कि ऐसा क्या काम आ गया था कि तुमने एक फोन तक करना मुनासिब नहीं समझा?

पूजा : बताना जरूरी है क्या?

राकेश : नहीं, जब बताने लायक नहीं है तो रहने दो, लेकिन...।

पूजा : लेकिन क्या?

राकेश : आजकल तुम कुछ ज्यादा ही व्यस्त रहने लगी हो।

पूजा : क्या करें। कैरियर का सवाल है।

राकेश : शादी के बारे में क्या सोचा?

पूजा : (मुस्कराती है) शादी? किसकी शादी?

राकेश : हमारी।

पूजा : राकेश, आज तुम्हें क्या हो गया है? कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हो?

राकेश : शादी की बात करना बेवकूफी है?

पूजा : एक लड़की जब कैरियर के लिए संघर्ष कर रही हो तो उसके लिए शादी की बात सोचना बेवकूफी नहीं तो और क्या है?

राकेश : शादी के बाद भी कैरियर बन सकता है। फिर तुम्हें काम करने की जरूरत ही क्या है? मेरे काम में हाथ बँटाना।

पूजा : तुम्हारी बात सही है, लेकिन शादी के बाद रोक-टोक बढ़ जाती है। औरत एक तरह से पराधीन हो जाती है। वह अपनी इच्छाओं का दमन करते हुए पति की इच्छाओं को पूरा करती है। फिलहाल मैं ऐसी परिस्थिति में जीने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हूं।

राकेश : शादी करना नहीं चाहती या....।

पूजा : कहो-कहो, कहना क्या चाहते हो?

राकेश : आजकल तुम्हारी गतिविधियों को देख रहा हूं।

पूजा : क्या देख रहे हो?

राकेश : तुम्हारे घर के सामने महंगी-महंगी कारें खड़ी हो रही हैं।

पूजा : साफ-साफ कहो, तुम कहना क्या चाहते हो?

राकेश : आजकल फिल्में हथियाने के लिए तिकड़मे कर रही हो।

पूजा : तुम पुरुष महिलाओं की सफलता से जलते हो। तुम्हारी सोच इतनी घटिया है कि अपनी जलन को शांत करने के लिए महिला के चरित्र हनन पर उतारु हो जाते हो। तुम समझते हो कि कोई महिला यदि सफल हो गई है तो उसने यौन संबंधों का सहारा लिया है। तुम्हें औरत की काबलियत पर यकीन क्यों नहीं होता?

राकेश : क्योंकि यह सच नहीं होता।

पूजा : मिस्टर राकेश। यदि तुम पुरुष यूज एंड थ्रो के दर्शन पर चल सकते हो तो हम औरतें भी ऐसा कर सकती हैं। यौन शुचिता केवल औरतों के लिए ही नहीं होनी चाहिए। मुझ पर उंगली उठाने से पहले अपने गिरेबां में झांका तुमने? मुझसे पहले कितनी और लड़कियों को शादी का प्रस्ताव दिया है तुमने?

राकेश : मैंने तुम्हें सच्चे दिल से प्यार किया है।

पूजा : अरे रहने दो, तुम यह भी नहीं जानते कि प्यार किसे कहते हैं?

राकेश : मेरे पास तुम्हारे अंतरंग क्षणों की सीडी है।

पूजा : आखिर आ ही गए न अपनी औकात पर। लेकिन इससे क्या कर लोगो? मुझे बदनाम करोगे? करो। लेकिन इतना ख्याल रखना। मेरे एक भाई के नाम सौ से अधिक कत्ल का केस हैं। आज तक उसे पुलिस पकड़ नहीं पाई। वह मुझे तो मार डालेगा ही, तुम्हें भी नहीं छोड़ेगा।

(पूजा मंच से चली जाती है।)

राकेश : साली, भाई के दम पर उछलती है। देखता हूं कब तक बचती है।

(मंच पर अंधेरा हो जाता है।)

दृश्य दो

(मंच पर राधा एक कुर्सी पर बैठी सोच रही है)

राधा : तीन बच्चे, तीनों तीन रास्ते पर। तीनों को अपने-अपने सपनों की पड़ी है। मां किस हाल में है इसकी किसी को कोई चिंता नहीं है। अधीर और पूजा तो फोन पर बात भी कर लेते हैं। सुधीर तो वह भी नहीं करता।

(मंच पर सुधीर का प्रवेश। वह खद्दर का कुर्ता-पायजामा पहने है और पैर में हवाई चप्पल है। एक थैला बगल में टंगा है। बाल बड़े और बिखरे हुए हैं। दाढ़ी बड़ी हो गई है।)

सुधीर : क्या सोच रही हो मां? (वह राधा का पैर छूता है। राधा चौंकती है, फिर सहज होती है और सुधीर को आशीर्वाद देती है।)

राधा : अरे सुधीर तू! कब आया बेटा?

सुधीर : अभी।

राधा : कैसे रास्ता भूल गया?

सुधीर : नए रास्ते की तलाश में लगे लोग अタसर रास्ता भूल जाते हैं।

राधा : तू अपनी आदतों से बाज नहीं आएगा। मेरा मतलब था कि ञ्मां की याद कैसे आ गई?

सुधीर : एक मां ही तो है जिसे मैं हर पल याद रखता हूं। उसे जब भूला ही नहीं तो याद आने का सवाल ही कहां से उठता है?

राधा : रहने दे, रहने दे। जैसे मैं जानती ही नहीं। छह महीने बाद इधर आया है।

सुधीर : क्या करें मां, फुर्सत ही नहीं मिलती।

राधा : चुपकर। फुर्सत ही नहीं मिलती। ऐरों-गैरों के यहां घूमता रहता है। उनकी मदद करता रहता है और मां के लिए फुर्सत नहीं मिलती। जिनकी मदद के लिए तू दर-दर की ठोकरें खाता है। वे तेरे क्या लगते हैं?

सुधीर : वे सभी इनसान हैं मां। उनका और मेरा रिश्ता मानवता का है। कोई भी संवेदनशील व्यक्ति उनकी उपेक्षा नहीं कर सकता।

राधा : सीधा जवाब तू दे ही नहीं सकता।

सुधीर : इस दुनिया में कुछ भी तो सीधा नहीं है मां। (लहजे को बदलते हुए) खैर छोड़ो, चाय-पानी पिलाओगी कि डांटती ही रहोगी?

राधा : बैठ, अभी ले आती हूं। (राधा उठ कर जाने को होती है तो सुधीर पूछ बैठता है।)

सुधीर : पापा नहीं हैं क्या मां?

राधा : नहीं।

सुधीर : कहां गए हैं?

राधा : अखबार के आफिस।

सुधीर : अब तो अधीर से खुश होंगे?

राधा : हां, कहते हैं कि अधीर ने समय को सही समझा है।

सुधीर : (अपने आप से) खाक समझा।

राधा : कुछ कहा?

सुधीर : नहीं मां। (राधा मंच से चली जाती है।) पापा भी अजीब आदमी हैं। कब किससे घृणा करेंगे और कब किससे प्यार, कहा नहीं जा सकता। (राधा से चाय लेता है)

राधा : क्या सोच रहा है?

सुधीर : कुछ नहीं।

राधा : अधिक सोचना सेहत के लिए ठीक नहीं होता। क्या हालत बना रखी है अपनी। कितना दुबला हो गया है। ऐसा कब तक चलेगा?

सुधीर : जब तक लक्ष्य नहीं मिल जाता।

राधा : दर-दर भटकने से लक्ष्य मिलता है

सुधीर : तू नहीं समझेगी मां। और बता, पूजा का क्या हाल-चाल है?

राधा : उसके बारे में भी नहीं जानता?

सुधीर : दरअसल, इधर मैं गांव चला गया था।

राधा : वह तो फिल्मों में व्यस्त है। यहां तो आती ही नहीं। मकान ले लिया है। गाड़ी ले ली है। पत्रिकाओं और अखबारों से उसके बारे में जानकारियां मिलती हैं। कल फोन किया था। एक-दो दिन में आने की कह रही थी।

(मंच पर पूजा का प्रवेश।)

पूजा : कह नहीं रही थी, आ गई। सुधीर भैया आप भी। आपको देखे कितने महीने हो गए।

सुधीर : अरे बिल्ली, तू कहां मर गई थी? मम्मी को अकेले छोड़कर चली गई?

पूजा : लड़कियां तो होती ही हैं मां-बाप का घर छोड़ने के लिए। यह आरोप तो आप पर लगना चाहिए?

सुधीर : डायलॉग बोल रही है। खैर, सुना कैसी है?

पूजा : ठीक हूं।

सुधीर : काम-धंधा कैसा चल रहा है?

पूजा : बढि़या चल रहा है। दो फिल्में प्रदर्शित हो चुकी हैं। हिट तो नहीं हुईं, लेकिन मेरे अभिनय की तारीफ हुई। लिहाजा आगे भी फिल्में मिलती रहीं। कुछ अधीर भैया का नाम भी काम आ रहा है।

सुधीर : अधीर का नाम?

पूजा : हां। उनका नाम लेते ही अच्छे-अच्छे निर्माता-निर्देशक कांपने लगते हैं। मदद की गुहार तक करते हैं।

सुधीर : अच्छा! तो अधीर डॉन बन गया है?

पूजा : मेरे लिए तो ऐसा ही कुछ है। अखबार में पिता जी भी अच्छी कवरेज दे देते हैं।

सुधीर : कुल मिलाकर तेरी बल्ले-बल्ले है?

पूजा : हां, कह सकते हैं। वैसे, आपने तो मेरी फिल्में देखी नहीं होंगी?

सुधीर : समय कहां मिलता है?

पूजा : कभी-कभी अपनों के लिए भी समय निकाल लिया करिये।

राधा : अपनों के लिए इसके पास कहां समय है।

पूजा : अधीर भैया तो चुनाव जीत गए।

सुधीर : अच्छा!

पूजा : यह देखो अखबार में फोटो छपी है उनकी। मैंने तो फोन करके बधाई भी दे दी।

राधा : क्या कह रहा था?

पूजा : कह रहे थे कि जो राजनीतिक दल सरकार बनाने जा रहा है उसे स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। उसे अपना समर्थन देकर मंत्री बनने जा रहा हूं।

राधा : अब तो उसकी जान को खतरा नहीं होगा न सुधीर?

सुधीर : किसी हद तक वह सभी खतरों को पार कर चुका है। फिर भी जिस रास्ते पर चलकर वह इस मंजिल पर पहुंचा है, वह रास्ता इसका पीछा कभी नहीं छोड़ेगा।

(महादेव सूट-बूट में मंच पर आते हैं।)

महादेव : किसका पीछा? कौन नहीं छोड़ेगा?

(सुधीर और पूजा उनका पैर छूते हैं। वह आशीर्वाद देते हैं।)

राधा : अधीर के बारे में बात कर रहे थे।

महादेव : अधीर मंत्री बनने जा रहा है।

आखिरकार उसने अपना सपना पूरा कर ही लिया। तुम्हारा क्या ख्याल है सुधीर? तुम्हारे सपनों का क्या हुआ?

सुधीर : मेरा सपना भी केवल मेरे लिए होता तो शायद पूरा हो गया होता।

पूजा : भैया आप फिल्मों में स्क्रिप्ट लिखें तो बात करूं?

सुधीर : नहीं, इसकी कोई जरूरत नहीं है। मैं जहां भी हूं, जैसे भी हूं, ठीक हूं।

महादेव : वैसे सुधीर तुम भाषण अच्छा देते हो। तुम्हारे साथ लोग भी हैं। पिछले दिनों राजधानी में तुम्हारी जो रैली थी उसने तो शासन तंत्र को हिलाकर रख दिया। मैंने तो अपने अखबार में उसका बढि़या कवरेज करवाया था। संपादकीय भी लिखवाया। तुम्हारे विरोधी लेखकों ने भी तुम्हारा लोहा मान लिया। तुममें दम तो है। तुम सप्ताह में एक लेख मेरे पास भेजो। मैं उसे छापूंगा। इसमें तुम्हें आर्थिक लाभ भी होगा और तुम्हारी बात भी लोगों तक पहुंचेगी।

सुधीर : आप नहीं छाप पाएंगे पिता जी।

महादेव : क्या बात करते हो यार। कितने कामरेड लिखते हैं मेरे अखबार में।

सुधीर : लिखते होंगे। क्या लिखते हैं यह भी मुझे पता है। ये वही तथाकथित कामरेड हैं जो सत्ता के केंद्र में बने रहने लिए जोड़-तोड़ करते रहते हैं। किसी न किसी पार्टी के पिछलग्गू बने रहते हैं।

महादेव : मुझे पता था कि तुम नहीं मानोगे। और इधर तो तुमने रास्ता भी गलत अख्तियार कर लिया है।

सुधीर : क्रांति का यह भी एक स्वरूप है। अंग्रेजों के लिए शहीद भगत सिंह और शहीद चंद्रशेखर भी आतंकवादी ही थे।

महादेव : आप कौन-सी आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं?

सुधीर : बीस प्रतिशत लोगों से अस्सी प्रतिशत लोगों को न्याय दिलाने की लड़ाई।

महादेव : जो कर रहे हो, उसका अंजाम जानते हो?

सुधीर : अच्छी तरह से।

महादेव : इतने दिनों बाद मिले और फिर लड़ना शुरु कर दिया। इसके अलावा और बात नहीं कर सकते?

(तभी मंच पर अधीर का प्रवेश।)

अधीर : अरे भाई यहां तो सभी इकट्ठे हैं- सुधीर भैया, पूजा ..। सब कुशलमंगल तो है? !

पूजा : अधीर भैया। आप तो पूरे नेता बन गए। वही भाषा, वही अदा, वही वेशभूषा।

सुधीर : यह लोकतंत्र भी अजीब है।

महादेव : इधर आना कैसे हुआ? बिना शपथ लिए खतरा मोल लेने की क्या जरूरत थी?!

अधीर : सोचा शपथ लेने से पहले माता-पिता का आशीर्वाद ले लूं।

राधा : बहुत बढि़या सोचा बेटा तुमने।

अधीर : सुधीर भैया, आप खामोश हैं। क्या मेरी विजय से चिंतित हैं?

सुधीर : तुम्हारी जीत से मुझे क्या हानि कि मैं चिंतित होऊँ?

अधीर : यह तो सोच ही रहे होंगे कि जिसे मैं कहता था जेल जाएगा, वह संसद में जा रहा है। देखो सुधीर भैया, आपकी भविष्यवाणी कितनी गलत साबित हुई। न तो मैं जेल गया, न ही पुलिस की गोली से मारा गया। उल्टा मंत्री बनने जा रहा हूं। कल तक जो पुलिस वाले मुझे गिरफ्तार करने के लिए कुत्ते की तरह मेरे पीछे पड़े रहते थे, वही अब मेरी सुरक्षा में दुम हिला रहे हैं...। जाओ बाहर देखो, कितना सुंदर दृश्य है... सच बड़ा मजा आ रहा है..... (अधीर मुस्कराता है)।

सुधीर : मैं ज्योतिषी नहीं हूं कि भविष्यवाणी करूं। हां, मैंने उस समय तीन संभावनाएं जताई थीं, जिनमें से दो गलत रहीं, एक सच साबित हुई। लेकिन अपनी सफलता पर इतराने से पहले जाकर उन बदनसीब मां-बाप से मिलो, जिनके बेटे तुम्हारी खातिर जान गंवा चुके हैं। कितनी लाशों पर चढ़कर तुमने यह कामयाबी पाई है। कभी फुर्सत मिले तो सोचना। फिर मालूम चल जाएगा कि कौन सही है और कौन गलत। वैसे भी खतरा तुम्हारे ऊपर से टला नहीं है।

अधीर : क्या सुधीर भैया। आप तो शुरु हो जाते हैं तो सांस ही नहीं लेते। आज तक कुछ भी हुआ? आगे भी कुछ नहीं होगा। फिलहाल मैं सफल हूं।

सुधीर : अच्छी बात है। तुमने इस व्यवस्था की कमियों का फायदा उठाया। अपना भला कर गए। बेशक इसके लिए तुमने जिसे इस्तेमाल किया वे मारे गए। जिस सरकार में तुम शामिल होने जा रहे हो वह भी साम्राज्यवादी देशों की जी हुजूरी में अपना समय व्यतीत करेगी। जिस सरकार को तुम हराकर सत्ता में आए हो, वह भी यही करती थी।

महादेव : तो इसमें अधीर का क्या दोष? दोष तो तुम्हारा है। जनता का है। न तो तुम जनता को जागरूक कर पाए और न जनता खुद सोच पा रही है।

सुधीर : हां, कह सकते हैं, लेकिन हालात बदलेंगे। न हम निराश हुए हैं और न ही जनता अधिक दिन तक इन परिस्थितियों को बर्दाश्त करने की स्थिति में है।

अधीर : भाई तुम अपनी इस खुशफहमी में जीते रहो, मैं तो चलता हूं। कल फिर आऊंगा।

(अधीर उठता है, महादेव और राधा के पैर छूता है। पूजा के गाल पर चपत लगाता है और सुधीर की बगल से निकलते हुए रुकता है)

अधीर : सुधीर भाई, बुरा न मानो तो एक बात कहूं?

सुधीर : (मुस्कराता है) कहिए।

अधीर : पहले आप मुझसे कहते थे कि मैं इनकाउंटर में मार दिया जाऊंगा, लेकिन अफसोस कि अब यही बात आप पर लागू हो जाएगी यदि ...।

सुधीर : यदि क्या?

अधीर : यदि आपने अपना चाल-चलन ठीक नहीं किया तो...।

सुधीर : अधीर, मैं जब तुमसे कहता था कि तुम इनकाउंटर में मार दिए जाओगे तो उसमें एक भाई का प्रेम और चिंता होती थी। लेकिन जब तुम कह रहे हो तब सत्ता अपने दुश्मन को चेतावनी दे रही है...। देखा पिताजी, यह सत्ता जिसे आप इतना बलशाली कह रहे हैं वह कितना डरती है? इसके लिए अपराधी तो स्वीकार्य हैं, लेकिन जो देश का भला सोचते हैं, समाज का भला सोचते हैं, वे स्वीकार्य नहीं हैं। इस सत्ता में देश के गद्दार और देशद्रोही सबसे बड़े राष्ट्रवादी बन बैठे हैं। इसके लिए देश क्या, समाज क्या और आदमी क्या, सभी फालतू हैं। बस इनकी सत्ता बनी रहे, ताकि ये देश को बेचकर अपना और अपनी सात पीढि़यों का भला कर सकें।

अधीर : शब्दों का जाल बुनना मुझे नहीं आता। लेकिन इतना जानता हूं कि आपकी गतिविधियां हमारे नेता जी के चुनाव क्षेत्र में ज्यादा तीखी और तेज हैं जिसका परिणाम कुछ भी हो सकता है। कुछ भी...। समझ रहे हो न?

सुधीर : खूब अच्छी तरह से।

अधीर : तो इसका ख्याल रखिएगा।

सुधीर : जाकर अपने नेता जी को समझाओ। मरने से मैं नहीं डरता।

अधीर : पिता जी और मां, आप इन्हें समझा दीजिएगा। पूजा तू भी समझाना। कल को मुझे दोष मत देना। (तभी अधीर का फोन बजता है और वह बात करते हुए मंच

से चला जाता है।)

राधा : क्या बोल गया यह?

सुधीर : मुझे जान से मारने की धमकी दे गया।

राधा : इसकी यह हिम्मत। अभी कुर्सी मिली नहीं और पागल हो गया। यदि सुधीर का कुछ हुआ तो मैं इसे छोड़ूंगी नहीं...।

(राधा क्रोध में कांपने लगती है)

सुधीर : मां, आपको चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। तुम्हारा यह बेटा मर कर भी नहीं मरेगा। मैंने इतने पौधे लगा दिए हैं कि वे सब वृक्ष बन कर ही दम लेंगे। उन्हें मुझे मार कर भी नहीं मारा जा सकता।

महादेव : अधीर की बात तुम मां-बेटों को बेशक बुरी लगी, लेकिन उसने कहा तो ठीक ही है, क्यों पूजा?

पूजा : मेरी समझ में तो नहीं आ रहा कि कौन गलत है और कौन सही? लगता है अपनी जगह सभी सही हैं। जो भी हो मेरा तो सिर दुखने लगा। अब मैं चलती हूं।

(मंच से चली जाती है।)

महादेव : मैं भी चलता हूं।

(महादेव भी मंच से चले जाते हैं।)

(सुधीर कोने में लगे पौधे को देखता है)

सुधीर : मां ये वही पौधा है न, जिसे मैंने लगाया था?

राधा : हां, वही है।

सुधीर : ये तो बड़ा हो गया।

राधा : तेरी याद आती तो इसी के पास आकर बैठती। लगता जैसे तेरे पास आ गई हूं। घंटों इससे बातें करती। पता नहीं क्यों मुझे लगता था कि इस पौधे को

देखने तू जरूर आएगा।

(सुधीर धीरे-धीरे कोने में रखे गमले के पास पहुंचता है। सुधीर गमले के पास पहुंच कर उसे सहलाता है। बुदबुदाता है। राधा उसे प्यार भरी नजरों से देखती रहती है।)

सुधीर : अब तुम्हारी जगह यहां नहीं है। तुम वृक्ष बनने की ओर तेजी से अग्रसर हो। तुम्हें इस गमले से निकाल कर धरती पर लगाता हूं। तुम्हें पेड़ बनना है। लोगों को फल देना है। इस तपती हुई धरती को अपनी शीतल छाया से लोगों को आनंदित करना है...।

(धीरे-धीरे मंच पर अंधकार हो जाता है।)

समाप्त

---------------------.

संपर्क :

ओमप्रकाश तिवारी़

अमर उजाला,

ए-५, एसएसजीसी़

कपूरथला रोड, जालंधर-

१४४०२१ (पंजाब)

मोबाइल : ०९९१५०२७२०९

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: ओमप्रकाश तिवारी का नाटक : स्वप्नवृक्ष
ओमप्रकाश तिवारी का नाटक : स्वप्नवृक्ष
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