बालेन्दु दाधीच का आलेख : इंटरनेट पर लोकप्रिय होते 'परनिंदा नेटवर्क'

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(कादम्बिनी के मार्च 2008 अंक में प्रकाशित बालेन्दु दाधीच का यह आलेख अत्यंत समीचीन है. इस अंक के सम्पादकीय में मृणाल पाण्डेय भी लिखती हैं – ...

(कादम्बिनी के मार्च 2008 अंक में प्रकाशित बालेन्दु दाधीच का यह आलेख अत्यंत समीचीन है. इस अंक के सम्पादकीय में मृणाल पाण्डेय भी लिखती हैं – “...सड़कों से हटकर इंटरनेट की दुनिया में घुसें तो पाएंगे कि सूचना के राजपथ पर ब्लागों की दुनिया में भी वैसी ही गाली-गलौज आम हो चली है. गुजरात सरीखे विवादास्पद मुद्दों पर तो कई वाद-विवाद इतने कड़वे और आक्रामक हो जाते हैं कि लगता है इंटरनेट सूचना का लोकतंत्र नहीं, बल्कि अपसंस्कृति और मानवीय क्षुद्रता का एक जंगल बन गया है...)

इंटरनेट पर लोकप्रिय होते 'परनिंदा नेटवर्क'

-बालेन्दु दाधीच

अगर अचानक किसी दिन आपको किसी वेबसाइट पर अपना नाम सर्वाधिक घृणास्पद लोगों की सूची में दिखाई दे तो सदमे में न पड़ें क्योंकि यह इंटरनेट चल रहा ’ताजातरीन ट्रेंड’ है। हम सब इंटरनेट को एक सामाजिक किस्म के, संचार और मेलजोल को बढावा देने वाले माध्यम के रूप में जानते हैं जिसमें न जाने कहां-कहां के लोग एक-दूसरे से मित्रता कर लेते हैं। लेकिन कहीं-कहीं घड़ी की सुइयों को उल्टी दिशा में घुमाने की कोशिश भी हो रही है। इस सिलसिले में सबसे नई और ताज़ी चीज है- एंटी-सोशियल (असामाजिक) नेटवर्क।

यह नाम पढ़कर सबसे पहले यही ख्याल आता है कि शायद वह असामाजिक तत्वों, अपराधियों आदि का विश्वव्यापी समूह होगा जो इंटरनेट आधारित नेटवर्किंग का इस्तेमाल कर अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहा होगा। लेकिन ऐसा नहीं है। इस तरह के नेटवर्क के सदस्य आम इंटरनेट उपयोक्ता ही हैं। इन्हें ’असामाजिक’ नाम उनकी समाज से विरत, विमुख होने या शिष्टता की सामाजिक परंपरा को त्याग देने की प्रकृति के कारण मिला है। इन वेबसाइटों के सदस्य ऐसे लोग हैं जो किसी की प्रशंसा करने के लिए नहीं, किसी को मित्र बनाने के लिए नहीं बल्कि किसी के प्रति अपनी घृणा या अरुचि प्रकट करने के लिए वहां आते हैं। हर इंटरनेट उपयोक्ता किसी न किसी व्यक्ति, सेवा, स्थान, वस्तु, फिल्मी सितारे, वेबसाइट, उत्पाद आदि को नापसंद जरूर करता है। असामाजिक नेटवर्क ऐसे लोगों को अपने मन की भड़ास निकालने का मौका देते हैं। स्नबस्टर.कॉम ; (http://www.snubster.com ), आइसोलेटर.कॉम ; (http://www.isolatr.com/ ) इन्ट्रोवर्टस्टर ; (http://airbagindustries.com/introvertster ) आदि ऐसे ही नेटवर्क हैं।

एंटी-सोशियल नेटवर्क असल में फेसबुक, फ्रेंडस्टर, ओरकुट, लिंक्डइन जैसे सोशियल नेटवर्कों के जवाब में लाए गए हैं। सोशियल नेटवर्क एक समान विचारों, व्यवसायों या रुचियों वाले लोगों को करीब लाने का माध्यम हैं। ये ऐसे लोग हैं जो प्रायः एक -दूसरे को पसंद करते हैं। असामाजिक नेटवर्कों के संस्थापकों का मानना है कि सिर्फ प्रेम ही नहीं, नफरत भी लोगों को एक मंच पर लाने का जरिया बन सकती है। इस प्रक्रिया में इंटरनेट पर कुछ नकारात्मक, कुछ सकारात्मक और काफी कुछ मजेदार घटित हो रहा है।

इन्ट्रोवर्टस्टर नामक एंटी-सोशियल नेटवर्क अपना परिचय उस ऑनलाइन समुदाय के रूप में देता है जो बेवकूफ लोगों और दोस्तों को आपको ऑनलाइन परेशान करने से रोकता है। आइसोलेटर ; (http://www.isolatr.com/ ) का कहना है कि वह ’आपको ऐसे स्थानों को खोज करने में मदद करता है जहां दूसरे लोग नहीं हैं।’ स्नबस्टर का मकसद चिपकू या लिजलिजे लोगों से दूर रहना और दूसरों को भी उनसे दूर रहने की प्रेरणा देना लगता है। शुरू-शुरू में ये एंटी-सोशियल नेटवर्क ओरकुट जैसी वेबसाइटों की पैरोडी के तौर पर बनाए गए थे। पश्चिमी देशों में इन वेबसाइटों के सदस्यों से आने वाले दोस्ती के निमंत्रणों की संख्या इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि आम इंटरनेट उपयोक्ता उनसे आजिज़ आ चुका है। ओरकुट, लिंक्डइन जैसे नेटवर्कों पर कुछ लोगों के मित्रों की संख्या तो पांच-सात हजार तक जा पहुंची है और फिर भी उनके पास नए मित्र बनाने के लिए निमंत्रण पर निमंत्रण आ रहे हैं। क्यों न ऐसे जबरदस्ती के मित्रों को किसी ऐसी सूची डाल दिया जाए जिससे उन्हें अपनी अलोकप्रियता का पता चले और अन्य लोग भी सतर्क रहें।

स्नबस्टर ; (http://www.snubster.com/ ) को शुरू करने वाले ब्रायंट चोंग का कहना है कि शुरू-शुरू में तो उन्हें ओरकुट और फेसबुक जैसी सोशियल नेटवर्किंग वेबसाइटों का विचार काफी अच्छा लगा। इनके आने से अनजान लोगों के एक-दूसरे के संपर्क में आने और आपस में लाभ उठाने का रास्ता खुला था। लेकिन कुछ ही दिनों बाद लगा कि यह निरर्थक प्रक्रिया है। बड़ी संख्या में लोगों का आफ दोस्तों की सूची में शामिल हो जाना इस बात की गारंटी नहीं है कि वास्तव में वे लोग आफ मित्र हैं ही। कई लोग सिर्फ मित्रों की संख्या बढ़ाने की धुन में लगे रहते हैं और एक बार किसी को मित्र बना लेने के बाद आगे क्या किया जाए, इसका उन्हें कोई अंदाजा नहीं होता। धीरे-धीरे चोंग सोशियल नेटवर्किंग साइटों से विमुख होते गए और उन्हें इसकी पैरोडी के रुप में एंटी-सोशियल वेबसाइट का विचार सूझा। इसमें उनके एक पुराने बॉस के आचरण से प्रेरणा भी मिली। ये बॉस नापसंद कर्मचारियों का बाकायदा नाम लेकर उनकी निंदा करते थे। चोंग ने सोचा कि परनिंदा सुख तो सबको चाहिए, क्यों न इसी को लेकर एक नेटवर्किंग वेबसाइट की परिकल्पना की जाए।

स्नबस्टर के सदस्य बनने के बाद आप नापसंद लोगों और नापसंद आइटमों की सूची बना सकते हैं। नापसंद लोगों की सूची में डाले गए व्यक्तियों को बाकायदा स्नबस्टर की तरफ से ईमेल भेजी जाती है जिनमें उन्हें बताया जाता है कि उन्हें फलां व्यक्ति ने ’मेरे लिए वह मर चुका’ की श्रेणी में डाला है। अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश उन लोगों में हैं जिन्हें सबसे ज्यादा लोगों ने नापसंद किया है। ऐसे लोगों और वस्तुओं के बारे में कई मजेदार उद्गार पढने को मिलते हैं। एक व्यक्ति ने उनसे नफरत करने की वजह यह बताई है कि वे हमारे ग्रह को बर्बाद करने में तुले हैं। किसी अन्य ने लिखा है- बुश से नफरत करने के कारण गिनाने के लिए हजार पन्नों की किताब भी छोटी पड जाएगी। एक और टिप्पणी पढिए- मैं बुश से नफरत करता हूं क्योंकि उन्होंने अमेरिकियों को मरवाया है और दुनिया की हर अच्छी चीज को नष्ट करने पर तुले हैं।

एक सज्जन ने मोटे लोगों की निंदा करते हुए लिखा है- तुम्हें पता नहीं कि पेटू होना एक पाप है! यही सज्जन खराब ग्रामर वाले व्यक्तियों के लिए कहते हैं कि बेवकूफों, तुम फिर से स्कूल क्यों नहीं जाते? हिंदुस्तानी सब्जियों की निंदा करते हुए किसी ने लिखा है- भारतीय तरीदार सब्जियों से मुझे नफरत है जिनकी गंध मेरे पूरे अपार्टमेंट में फैल जाती है। मजेदार बात यह है कि इन टिप्पणियों पर वोटिंग भी होती है।

माइक्रोसॉफ्ट को भी काफी गालियां सुनने को मिली हैं। मिसाल के तौर पर एक सज्जन लिखते हैं- तुमसे कोई भी सॉफ्टवेयर ढंग से नहीं बनता। जिसे तुम दुनिया का सबसे आधुनिक सॉफ्टवेयर बताते हो वह कुछ भी नहीं कर पाता। किसी व्यक्ति ने एक कंपनी पर अपना आक्रोश उंडेला है- तुम एक ऐसी कंपनी हो जो अपने कर्मचारियों के साथ कूड़े के ढेर जैसा बर्ताव करती हो। ब्रिटनी स्पियर्स पर टिप्पणी देखिए- तुम्हारे बारे में जो कुछ छपता है उसके लिए मीडिया जिम्मेदार नहीं है। उठकर थोड़ा नहा-धो लो, अंडरवियर पहन लो। तब शायद तुम पर मीडिया में इतना कीचड़ न उछाला जाए। ब्रिटिश राज परिवार को किसी ने ’जूतों पर नोटों की गड्डियां लुटा देने वाले और बंदर जैसे चेहरों (राजकुमार विलियम को छोड़कर) वाले अधिकार-विहीन लोगों’ के रूप में परिभाषित किया है।

जाने-माने लोगों के साथ-साथ बुरी आदतें, बुरे काम और बुरे उत्पाद भी लोगों के गुस्से के शिकार हुए हैं। मिसाल के तौर पर एक सज्जन ने ’मेरे लिए मर चुके’ की सूची में ऐसे लोगों को डाला है जो वाहन चलाते हुए फोन पर बात करते हैं। खराब रिंगटोन इस्तेमाल करने वालों (मैं उनसे खूब नफरत करता हूं। अमां वो पुरानी प्यारी सी ब्रिंग-ब्रिंग वाली रिंगटोन कहां गई। अगर कभी मुझे रिंगटोन बनाने का मौका मिला तो उसमें कहा जाएगा- सबसे पहले इन उल्टी-सीधी रिंगटोन बनाने वालों को गोली मारो..), धूम्रपान करने वालों (वे अपने साथ-साथ मेरे फेफडों को भी तबाह कर रहे हैं..), चिड़चिड़े शिक्षक (हमारे मन में अपने स्कूल के प्रति ज्यादा से ज्यादा नफरत भरने के लिए धन्यवाद...) आदि आदि।

रुडोजू.कॉम ; (http://www.ruduzu.com/ ) नामक असामाजिक नेटवर्क पर किसी ने किम्मी, निक्की और जेस्सी नाम वाली लड़कियों पर टिप्पणी की है कि उनके तो नाम ही ऐसे रखे गए कि बचपन से ही उनका अश्लील फिल्मों में काम करना तय था।

ऐसे एंटी सोशियल नेटवर्कों के सदस्य पर निंदा का आनंद ले रहे हैं, मन की भड़ास निकाल रहे हैं और जिसे चाहते हैं कोस रहे हैं। इन नेटवर्कों की सदस्यता लाखों में जा पहुंची है। लेकिन दूसरों की निंदा करने, उन्हें गाली देने का यह मंच इंटरनेट का सदुपयोग है या दुरुपयोग, इस पर गौर किए जाने की जरूरत है। क्या किसी को अपनी पहचान छिपाकर दूसरों की प्रतिष्ठा पर बेरोकटोक हमला करने की इजाजत दी जा सकती है? वह भी एक सुसंगठित, संस्थागत मंच के जरिए जिसका प्रभाव विश्वव्यापी हो?

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(हिन्दी कम्प्यूटिंग पर बालेन्दु दाधीच के अन्य लेख यहाँ पढ़ें)

COMMENTS

BLOGGER: 4
  1. एक खुला मंच है, जिसे जो कहना है, कहता है. मुझे असामाजिक साइटो की जानकारी नहीं थी.

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  2. ज्ञानवर्धन हुआ । शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  3. नई जानकारी मिली

    शुक्रिया

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  4. बेनामी10:21 am

    Anti social network par aapka aalekh bahut sargarbhit aur upyogi hai. har vishay ka ek pratipaksh hota hai aur pratipaksh hamesha virodhi ya unupyogi hi ho yeh avashyak nahi.

    http://www.technoworldinc.com

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रचनाकार: बालेन्दु दाधीच का आलेख : इंटरनेट पर लोकप्रिय होते 'परनिंदा नेटवर्क'
बालेन्दु दाधीच का आलेख : इंटरनेट पर लोकप्रिय होते 'परनिंदा नेटवर्क'
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