गौतम राजऋषि की ग़ज़लें : रदीफ़ रख काफ़िया रख

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ग़जल की जिस किताब की खूब चर्चा रही वह हिन्द युग्म से आई ‘पाल ले इक रोग नादां’ है. उसी शायर   गौतम राजऋषि   की नई नई गजलों को पढने की ...

krishna kumar ajanabi - radeef kafia
gautam rajrishi
ग़जल की जिस किताब की खूब चर्चा रही वह हिन्द युग्म से आई ‘पाल ले इक रोग नादां’ है. उसी शायर गौतम राजऋषि की नई नई गजलों को पढने की उपयुक्त शाम है. ==================
1.
 
 
चलो, ज़िद है तुम्हारी फिर, तो लो मेरा पता लिक्खो
गली दीवाने की औ’ नाम ?…वो…हाँ ! सरफिरा लिक्खो
 
 
उदासी के ही क़िस्सों को रक़म करने से क्या हासिल
अब आँखों बाज़ भी आओ न सब दिल का कहा लिक्खो
 
 
मैं आऊँगा ! बदन पर आँधियाँ ओढ़े भी आऊँगा !
सुनो मंज़िल मेरी तुम तो हवा पर रास्ता लिक्खो
 
मुहब्बत बोर करती है, तो आओ गेम इक खेलें
इधर मैं अक्स लिखता हूँ, उधर तुम आईना लिक्खो
 
दहकता है, सुलगता है, ये सूरज रोज़ जलता है
अबे ओ आस्माँ ! इसको कभी तो चाँद सा लिक्खो
 
 
ये मोबाइल के मैसेजों से मेरा जी नहीं भरता
मेरी जानाँ ! कभी एकाध ख़त ख़ुशबू भरा लिक्खो
 
 
वही चलना हवाओं का, वही बुझना चराग़ों का
बराये मेह्रबानी, शायरो ! कुछ तो नया लिक्खो
 
 
2.
 
आधी बातें, आधे गपशप, क़िस्सा आधा-आधा है
इसका, उसका, तुम बिन सबका चर्चा आधा-आधा है
 
जागी-जागी आँखों में हैं ख़्वाब अधूरे कितने ही
आधी-आधी रातों का अफ़साना आधा-आधा है
 
तुमसे ही थी शह्र की गलियाँ, रस्ते पूरे तुमसे थे
तुम जो नहीं तो, गलियाँ सूनी, रस्ता आधा-आधा है
 
इश्क़ उचक कर देख रहा है, हुस्न छुपा है ज़रा-ज़रा
खिड़की आधी खुली हुई है, पर्दा आधा-आधा है
 
 
उन आँखों से इन आँखों के बीच है आधी-आधी प्यास
झील अधूरी, ताल अधूरा, दरिया आधा-आधा है
 
 
गुस्से में तो फाड़ दिया था, लेकिन अब भी अलबम में
जत्न से रक्खा फोटो का वो टुकड़ा आधा-आधा है
 
 
बाद तुम्हारे जाने के ये भेद हुआ हम पर ज़ाहिर
रोना तो पूरा ही ठहरा, हँसना आधा-आधा है
 
 
3.
छू लिया जो उसने तो सनसनी उठी जैसे
धुन की गिटार की नस-नस में अभी-अभी जैसे
 
 
पागलों सा हँस पड़ता हूँ मैं यक-ब-यक यूँ ही
करती रहती है उसकी याद गुदगुदी जैसे
 
 
जैसे-तैसे गुज़रा दिन, रात की न पूछो कुछ
शाम से ही आ धमकी, सुबह तक रही जैसे
 
 
तुम चले गए हो तो वुसअतें सिमट आयीं
ये बदन समन्दर था, अब हुआ नदी जैसे
 
सुबह-सुबह को उसका ख्व़ाब इस कदर आया
केतली से उट्ठी हो ख़ुशबू चाय की जैसे
 
 
डोलते कलेंडर की ऐ उदास तारीख़ों
रौनकें मेरे कमरे की हैं तुमसे ही जैसे
 
 
राख़ है, धुआँ है, इक स्वाद है कसैला सा
इश्क़ ये तेरा है सिगरेट अधफुकी जैसे
 
 
धूप, चाँदनी, बारिश और ये हवा मद्धम
करते उसकी फ़ुरकत पर लेप मरहमी जैसे 
 
 
 
4.
 
 
ज़ियादा, तो कभी कम-कम हुआ हूँ
हमेशा ख़ुद से ही बरहम हुआ हूँ
 
 
तेरे गालों की सुर्खी से खिला जो
वही, हाँ मैं वही मौसम हुआ हूँ
 
 
ख़ुशी की बेलिबासी इस क़दर थी
कि उकता कर लिबासे-ग़म हुआ हूँ
 
तेरे सरगम के ख़्वाबों से लिपट कर
मैं पंचम से ज़रा सप्तम हुआ हूँ
 
 
कुरेदा टीस ने ज़ख़्मों को इतना
सरापा ख़ुद ही अब मरहम हुआ हूँ
 
 
हवा फ़ुरकत की ऐसी चल रही है
उदासी का बड़ा परचम हुआ हूँ
 
 
सुलगती धूप ले कर हुस्न आया
संभाले इश्क़ मैं शबनम हुआ हूँ
 
 
नहीं, घर तो नहीं छोड़ा है मैंने
कहो तुम ही कि क्यों ‘गौतम’ हुआ हूँ
 
 
 
5.
 
हाँ, न, ये, वो में फिर से उलझी सी
उसकी बातें सदा अधूरी सी
 
चाँद जल कर पिघल गया थोड़ा
चाँदनी कल ज़रा थी सुलगी सी
 
 
शोर सीने का सुन के देखा तो
इक उदासी खड़ी थी हँसती सी
 
 
रात के जिस्म पर ख़राशें हैं
नींद ख़्वाबों तले थी कुचली सी
 
 
हुस्न का ख़ौफ़ इस कदर ठहरा
इश्क़ की धड़कनें हैं सहमी सी
 
 
कौन आया है बारिशों सा यूँ
एक ख़ूश्बू उठी है सौंधी सी
 
 
ख़त्म उल्फ़त तो हो चुकी है, हाँ
बस ये वहशत बची है थोड़ी सी
 
खिल गया हूँ कि एक लड़की है
जेह्न में उड़ती फिरती तितली सी
 
 
 
6.
 
 
नाम सबका ही लिया बस नाम मेरा छोड़ कर
क्या से क्या कहता रहा वो अस्ल क़िस्सा छोड़ कर
 
 
रेंगता रहता है हर शब बिस्तरे पर इर्द-गिर्द
रतजगा भटका हुआ, ख़्वाबों का रस्ता छोड़ कर
 
 
ख़्वाहिशें मसली हुईं, उम्मीद सब कुचली हुईं
जा तुझे जाना ही है, सब छोड़ कर जा छोड़ कर
 
 
इस क़दर थी धार पैनी इक नुकीले लम्स की
रूह तक पहुँचा वो सीधा जिस्म सारा छोड़ कर
 
 
एक ज़िद्दी सी उदासी कब से है चिपकी हुई
तुम जो आओ तो ये जाये मेरा पीछा छोड़ कर
 
 
आयी जब कमरे में वो, सब देखते ही रह गए
चाय पीना छोड़ कर, सिगरेट पीना छोड़ कर
 
 
उम्र की पेचीदगी में छटपटाती ज़िन्दगी
चल पड़ेगी एक दिन सब दीन-दुनिया छोड़ कर
 
 
 
7.
 
 
ऐसा-वैसा-कैसा, चाहे जिसका आना-जाना हो
याद गली का हर अफ़साना तेरा ही अफ़साना हो
 
 
चंद उचक्के ख़्वाबों के तेवर क्या पूछो, हो ! साहिब
आँख तरेरे रात खड़ी, हो ! सुब्ह भी देती ताना, हो !
 
आते-आते थम सी गई है, आयेगी फिर आयेगी
हिचकी-हिचकी यादों का भी इक तो ठौर-ठिकाना हो
 
इश्क़ मे कैसा सौदा जानाँ, हाथ तेरा जब थाम लिया
थाम लिया तो थाम लिया अब बेशक जो हर्जाना हो
 
 
शोर मचाये रह-रह धड़कन हूक उठाये मौसम भी
तिस पर कमरे की तन्हाई का भी जो चिल्लाना हो
 
इश्क़ फिरे है बौराया-सा आवारा-सा राहों में
हुस्न बिछाये जब भी उस पर अपना ताना-बाना, हो !
 
एक लफंगे लफ़्ज़ ने मिसरा-ए-ऊला को छेड़ा जब
सानी पर फिर छाई मस्ती, शेर हुआ दीवाना, हो !
 
 
8.
 
 
वही इक बात जो उस रात की उलझी हुई सी है
सिमट कर भी मेरी ग़ज़लों में वो बिखरी हुई सी है
 
 
यकीं मानो मेरी जानाँ तुम्हारी और मेरी भी
कहानी कोइ इक झिलमिल कहीं लिक्खी हुई सी है
 
 
रुको, रुक जाओ भी ! शायद मैं उसको याद आया हूँ
ज़रा ठहरो मेरे यारो, मुझे हिचकी हुई सी है
 
नहीं सिहरन है सर्दी में, तपिश कम-कम है गर्मी में
तुम्हारे बाद की बारिश भी कुछ सूखी हुई सी है
 
 
हुआ अरसा नहीं बुझती, बुझाने से भी ये कमबख्त़
तुम्हारी याद की सिगरेट जो सुलगी हुई सी है
 
 
पलट कर देखती आँखों में थी जाने नमी कैसी
बस ओझल हो गयी, लेकिन सड़क भीगी हुई सी है
 
अरे सब ठीक है ! सब ठीक है तेरे बिना, लेकिन
ज़रा सा बस, मुई ये ज़िन्दगी रूठी हुई सी है
 
 
9.
 
 
ख़ुश्बुओं ने उठा लिया है मुझे
गिरा रूमाल इक मिला है मुझे
 
 
चुप खड़ी रह गई है साँस मेरी
उसने नज़रों से कस लिया है मुझे
 
 
बस तुम्हें ? बस तुम्हें ही सोचूँ मैं ?
इश्क़ इतना नहीं हुआ है मुझे
 
 
हँस पड़ी है मेरी उदासी भी
तुमने मिस-कॉल जो दिया है मुझे
 
 
ताक़ पर से वो कार्ड शादी का
रात भर रोज़ घूरता है मुझे
 
 
चाहूँ रहना सजा-धजा हरदम
ऐसे कैसे वो देखता है मुझे ?
 
 
ओह ! सिगरेट तो फ़रेब है बस
अस्ल में, तेरा ही नशा है मुझे
 
 
ओय ‘गौतम’ ! वो तुझ पे मरती है
हाँ, पता है ! अरे, पता है मुझे !
 
 
 
10.
 
 
आज फिर हम साथ उनके यूँ ही बैठे रह गए
था गले मिलना, मगर हम हाथ थामे रह गए
 
 
कश्मकश में शाम बीती, दिन हुआ यूँ ही तमाम
फिर से खाली ख़्वाहिशों के सारे थैले रह गए
 
देर तक फिर रूम में बस इक धुआँ उठता रहा
फर्श पर सिगरेट के टुकड़े पड़े थे, रह गए
 
 
उसने तो गीला दुपट्टा अलगनी पर रख दिया
और इधर खिड़की में हम बस भीगे-भीगे रह गए
 
 
तुमने जो उस दिन बटन टाँके थे मेरी शर्ट पर
अर्से तक वो मेहदी-मेहदी से महकते रह गए
 
 
हाँ उसी चैप्टर में जब किरदार ने की ख़ुदकुशी
बस वहीं नॉविल के सब पन्ने  सिसकते रह गए
 
 
एक लम्हे को मिली आँखें, नज़र फिर झुक गई
क्या कहें कैसे हम उनके होते-होते रह गए
 
ऐ सुनो ! कॉफ़ी पियोगे शाम को तुम मेरे साथ ?
उसने पूछा नाज़ से,  हम हक्के-बक्के रह गए
 
 
==============  
 
गौतम राजऋषि
द्वारा – डॉ० रामेश्वर झा
 
वी०आई०पी० रोड, पूरब बाज़ार
 
सहरसा (बिहार) -852201
 
gautam_rajrishi@yahoo.co.in
 
                          मोबाइल- 09759479500
---
(चित्र - कृष्णकुमार अजनबी की कलाकृति)

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. दोस्तों से शान बढ़े न
    दुश्मन चंद शर्तिया रख

    bahot khub sahab kya bat kahi hai aapne ...bahot sundar .....lajawab.....badhai...

    regarads
    arsh.....

    जवाब देंहटाएं
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आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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रचनाकार: गौतम राजऋषि की ग़ज़लें : रदीफ़ रख काफ़िया रख
गौतम राजऋषि की ग़ज़लें : रदीफ़ रख काफ़िया रख
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