सोमेश शेखर चन्द्र की लंबी कहानी – रघुबाबू बीमार हैं, रघुबाबू बीमार नहीं हैं

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रघु बाबू बीमार हैं रघु बाबू बीमार नहीं हैं   - सोमेश शेखर चन्द्र   र घु बाबू और मैं, एक ही दफ्तर में काम करते हैं। अच्छी बैठत...

रघु बाबू बीमार हैं

रघु बाबू बीमार नहीं हैं

 

-सोमेश शेखर चन्द्र

 somesh sekhar chandra

घु बाबू और मैं, एक ही दफ्तर में काम करते हैं। अच्छी बैठती है हम दोनों में।

हम दोनों, यूनिवर्सिटी में दो वर्ष साथ पढ़े थे। दोनों में घनिष्ठता वहीं से थी लेकिन जब दोनों की, एक ही दफ्तर में नौकरी लग गई तो, हम दोनों के संबंध और प्रगाढ़ हो गए थे। रघु बाबू, बड़े सहयोगी प्रकृति के आदमी थे। दफ्तर का कोई भी आदमी, किसी आफत विपत्ति में फंस जाए, रोग बीमारी से घिर जाए, तो रघुबाबू, वहाँ पहले पहुँचते थे। अपना घर परिवार छोड़, रात-रात, बीमार के सिरहाने बैठे रहते थे। और कहीं, वैसी स्थिति मेरे साथ, या मेरे पत्नी बच्चों के साथ घट जाए, तो वे अपनी पत्नी को साथ लेकर मेरे घर पहुँच जाया करते थे और पति पत्नी, सब कुछ ऐसा सम्हाल लिया करते थे जैसे कोई सगा अपने को संभालता है।

रघुबाबू में इस खासियत के साथ, एक खासियत और भी थी वह यह कि वे बड़ा हॅसोड़ और विनोदी तबीयत के आदमी थे। उनके पास किस्से कहानियों चुटकुलों और जुमलों का बहुत बड़ा पिटारा था। मौका चाहे संजीदगी का हो या उदासी का या तू तू मैं मैं का बीच में वे अपने जुमलों की ऐसी फुटकी फोड़ दिया करते थे कि, माहौल की गर्मी और कसॉध, पल भर में ही छूमंतर हो जाया करती थी। रोते हुए को हँसा देना तो, रघुबाबू की चुटकियों की बात थी। नए जुमले, वे आनन-फानन में, गढ़ लिया करते थे और उसे वे, कुछ इस अंदाज में कह देते थे, कि उसे सुनकर, हँसते हँसते लोगों के पेट में, बल पड़ जाया करते थे। और मजे की बात तो यह थी कि रघुबाबू, अपनी बातों से तो, लोगों को हँसा हँसा कर लोटपोट कर दिया करते थे, लेकिन क्या मजाल, जो उनके चेहरे पर हँसी का, एक छोटा सा भी टुकड़ा कहीं दिख जाए।

वही रघुबाबू एक दिन अचानक बीमार पड़ गए थे। बीमारी भी उनकी ऐसी वैसी नहीं थी। उन पर दिल की बड़ी खतरनाक और जान लेवा बीमारी ने हमला बोल दिया था। बीमारी के चलते, उनका चलना फिरना कौन कहे, बिस्तरे पर उठना बैठना तक बन्द हो गया था। उनकी बीमारी की खबर, जब मुझे मिली तो मैं भागकर उनके घर पहुँचा था। रघुबाबू की जो हाल थी, उस समय, उसे देख, मैं बुरी तरह घबरा गया था। रघुबाबू, अपने बिस्तर पर बेजान से पड़े हुए थे। उनका दमकता चेहरा, एकदम से बुझ चुका था। आंखों में उनके, पीड़ा मिश्रित भीषण उदासी थी। दाढ़ी उनकी काफी बढ़ गई थी। रघुबाबू उतान बिस्तरे पर पड़े हुए थे और उनके दोनों हाथ, उनके सीने पर बेजान से पड़े हुए थे। निगाहें उनकी सीलिंग पर स्थिर थीं और वे गहरी सोच में डूबे हुए थे। पत्नी उनकी, उनके पायताने, बिसूरती बैठी हुई थी। रघुबाबू को उस हालत में देख, मैं थोड़ी देर तक तो अवाक खड़ा रहा था, इसके बाद, अपने को दृढ़ करता, धीरे धीरे, उनके पास पहुँचा था।

क्या हुआ - भाई जी आपको ? उनके सीने पर पड़ा उनका हाथ, अपने हाथों में लेकर, उसे सहलाते हुए उनसे पूछा था, तो रघुबाबू ने, मुझे कोई जवाब नहीं दिया था। जवाब में, उनकी आंखों से झर झर झरझर आंसू झरने लग गए थे। रघुबाबू की पत्नी, जो अभी तक, उनके पायताने बिसूरती, उदास बैठी हुई थी मुझे आया देख, वे भी सुसुक सुसुक कर रोने लग गई थीं। दोनों को रोता देख मैं और ज्यादा घबरा गया था। इसका मतलब, अब, रघुबाबू का अंत, एकदम नजदीक आ पहुँचा है और वे किसी भी क्षण अपनी इह लीला समाप्त कर, इस लोक से बिदा हो लेंगे। रघुबाबू, मुझे हमेशा हमेशा के लिए, छोड़ कर चले जा रहे है, यह बात दिमाग में आते ही मेरा दिल बैठने लग गया था। मन में आया था, कि रघुबाबू को पकड़ लूं जोर जोर से रोकर उनसे कहूँ आप मुझे इस तरह अकेला छोड़कर नहीं जा सकते भाई जान, मैं आपको जाने नहीं दूंगा। लेकिन उस समय, मेरे ऐसा कुछ करने का मतलब था, रघुबाबू के मरने के पहले ही, उन्हें मार देना। मैं मर्द हूँ और ऐसे मौकों पर, मुझे दृढ़ होना होगा। मुझे ऐसी कोई बात नहीं करनी है, जिससे कि, रघुबाबू के भीतर की कमजोरी और बढ़ जाए और उनकी मौत उनके ऊपर हावी होकर उन्हें जो दो चार दिनों और ज़िन्दा रहना है, उसके पहले ही उन्हें अपने साथ ले उड़े। यही सब सोच कर मैं रघुबाबू से लिपट कर विलाप करने का अपना इरादा बदल दिया था और दिलासा देकर उन्हें दृढ़ करने की सोचने लग गया था। लेकिन, रघुबाबू को कोई दिलासा दूँ, उसके पहले, जान तो लूं, कि आखिर उन्हें हुआ क्या है?

भाई जान आपको हुआ क्या है? अपने हाथों में बेजान सा और ठंडा पड़ा रघुबाबू का हाथ, सहलाते हुए, उनसे पूछा था तो उन्होंने, अपने दोनों हाथों से, आंसुओं से तर अपनी आँखें पोंछ, अपना दाहिना हाथ अपने सिरहाने ले जाकर वहाँ से एक लिफ़ाफ़ा निकाल मुझे पकड़ा दिया था। लिफाफे के भीतर डाक्टर खेतान, हृदय रोग विशेषज्ञ के लेटर पैड पर, उनका प्रेस्क्रिप्सन और साथ में दो तीन जांच रिपोर्ट नत्थी थी। उन्हें पढ़कर रघुबाबू की बीमारी जानने की कोशिश किया था लेकिन डाक्टर साहब की लिखावट ऐसी थी कि उसे पढ़ ही नहीं सका था और डाक्टरी भाषा में लिखी जाँच रिपोर्ट भी मेरे पल्ले नहीं पड़ी थी। थोड़ी देर उन्हें उलटने पलटने के बाद सभी कागज वापस लिफाफे में डालकर मैंने रघुबाबू से पूछा था, भाई जान, रिपोर्ट से तो मेरी समझ में कुछ भी नहीं आया, आखिर हुआ क्या है आपको? मेरे पूछने पर, रघुबाबू ने जो कुछ मुझे सुनाया था, वह भी मेरी समझ में कुछ नहीं आया था। क्योंकि, बताते समय, रघुबाबू के गले से कोई आवाज नहीं निकली थी। सिर्फ उनके होंठ हिले थे और होठों के हिलने के साथ, कुछ उनके सास की हवा भी निकली होगी लेकिन वह इतनी कमजोर थी कि मुझे कुछ भी सुनाई ही नहीं पड़ा था।

मैं सुना नहीं भाई जान? मैं अपने कान के पास, अपना हाथ ले जाकर, उन्हें इशारे से समझाया था, कि उन्होंने जो कुछ मुझे बताया है, मैंने उसे नहीं सुना। इसके बाद रघुबाबू ने अपने दोनों हाथों के इशारे से, मुझे बताया था कि, उनका दिल, जो बड़े फजली आम के बराबर का होना चाहिए था, वह बढ़कर, तूंबी के आकार का हो गया है और वह लगातार बढ़ता ही जा रहा है।

तब तो यह बड़ी तेजी से बढ़ रहा है भाई जान?

हाँ, रघुबाबू ने अपना सिर हिलाकर मेरी बात पर हामी भरा था। अभी चार पाँच दिन पहले तक, रघुबाबू दफ्तर में थे, तो वे, एकदम स्वस्थ और बुलंद थे। इसका मतलब उस समय उनका दिल पूरी तरह नार्मल था और उसका आकार, बड़े फजली आम के बराबर का था। और दो दिन, पहले, जब डाक्टर खेतान ने उसकी जाँच किया था, तो उस समय तक वह बढ़कर तुंबी की तरह हो गया था। इसका मतलब, उनका दिल बड़ी तेजी से बढ़ता जा रहा है, और जिस रफ्तार से वह बढ़ रहा है, तो बढ़ते बढ़ते, इन दो दिनों में तो वह फूलकर गुब्बारा हो चुका होगा। रघुबाबू का दिल, जिस तरह बेतहाशा बढ़ा जा रहा था, उसको सोचकर ही मैं, घबरा गया था। लोगों का दिल, बढ़ जाता है, यह बात तो मैं सुना था, लेकिन, अपनी पैंतीस साला जिंदगी में, इतनी तेजी से दिल के बढ़ने का दृष्टांत मेरे ध्यान में नहीं था, इसलिए मैं बुरी तरह घबरा उठा था। जिस तेजी से रघुबाबू का दिल बढ़ता जा रहा है इस समय तक तो वह, इतना फूल चुका होगा कि अब उसकी और ज्यादा फूलने की क्षमता ही खत्म हो गई होगी। रघुबाबू, के बढ़ते दिल के बारे में मैं, जितना सोचता जा रहा था, मेरी घबराहट उतनी ही बढ़ती जा रही थी। रघुबाबू का दिल कहीं इतना तो नहीं बढ़ गया है कि, अब उसके बढ़ने के लिए अगल बगल कोई जगह ही न बच रही हो। अगर कहीं ऐसी स्थिति में उनका दिल पहुँच चुका होगा,, तब तो वह किसी भी क्षण दगकर रघुबाबू की इह लीला ही समाप्त कर देगा।

भाई जान, कहीं ऐसा तो नहीं हो गया है कि, आपके फेफड़े की हवा की कोई नली, सीधा आपके दिल में खुल गई है, और वह लगातार आपके दिल के भीतर हवा फूँकती जा रही है जिसके चलते आपका?

मुझे भी लगता है ऐसा ही हुआ होगा। रघुबाबू, अपने सीने से अपना दाहिना हाथ उठा, मेरी बात से, अपनी सहमति जताया था। उसके बाद वे, अपने सीने को दोनों हाथों से जोर से दबा लिए थे। लेकिन मुझे, रघुबाबू, से ऐसी कोई बात नहीं करना चाहिए, जो उन्हें, परेशान कर दें, यह बात मैं भूल कैसे गया कि मुझे ऐसे नाजुक मौके पर दृढ़ रहना है और उनके साथ, इस तरह की डरावनी बातें, नहीं करना है। अपनी गलती का अहसास होते ही मुझे अपने पर बड़ी कोफ्त हुई थी।

दूसरे दिन, मैं रघुबाबू को लेकर, उन्हें दिखाने के लिए शहर के हृदय रोग के, नामचीन डाक्टर, डाक्टर साहना के यहाँ गया था। डाक्टर साहना का नाम, एशिया के नामी डाक्टरों में, शुमार है। इलाज के लिए, उनके पास देश के कोने कोने से, मरीज पहुँचते हैं। रघुबाबू, की उस समय जैसी नाजुक अवस्था थी, वैसे में, डाक्टर साहना ही ऐसे डाक्टर थे, जिन पर भरोसा किया जा सकता था। इसलिए मैं उन्हें एंबुलेंस पर किसी तरह लाद फांदकर, डाक्टर साहना के पास ले गया था।

अपना नम्बर आने पर, मैं डाक्टर साहना को, डाक्टर खेतान की पर्ची और जाँच रिपोर्ट पकड़ाकर, उन्हें डाक्टर खेतान ने, जो कुछ बताया था, उसे बता दिया था। डाक्टर साहना ने जब, डाक्टर खेतान की पर्ची और जाँच रिपोर्ट देखा था, तो उनके भी माथे पर बल पड़ गए थे। उन्होंने रघुबाबू, को, जाँचकक्ष में ले जाकर, पहले तो उनकी सघन जाँच किया था। फिर, कइयों तरह की जाँच करने का मशविरा लिखकर, मुझे पकड़ा दिया था। कुशल यह था कि, जितनी तरह की जाँच करवाने की, उन्होंने सलाह दिया था, सारी सुविधा, उनके क्लिनिक में ही मौजूद थी। इसलिए मुझे, ज्यादा भाग दौड़ नहीं करना पड़ा था और शाम तक, सारी जाँच रिपोर्ट, हमें मिल गयी थी। शाम, जब डाक्टर साहना जाँच रिपोर्ट देखे थे, तो उनका चेहरा खुशी से खिल उठा था। रघुबाबू की जाँच रिपोर्टों में, उनके दिल के बढ़े होने, या और भी किसी तरह की, दिल की बीमारी के संकेत नहीं थे। डाक्टर साहना ने, चहकते हुए रघु बाबू को बताया था कि, मिस्टर रघुराज प्रताप, आपका दिल पूरी तरह स्वस्थ और नार्मल है। आपके दिल में, किसी भी तरह की कोई भी बीमारी नहीं है। आप निश्चित होकर घर जाइए और आराम से अपनी जिंदगी बिताइए। आपको कुछ भी नहीं हुआ है।

डा0 साहना ने जब उन्हें बताया था कि वे पूरी स्वस्थ हैं, तो उसे सुनकर मैं उछल पड़ा था और रघुबाबू से हाथ मिलाकर, उनके गाल पर एक हलका चपत देकर, मैंने डा0 साहना को धन्यवाद कहा था और रघुबाबू को खींचते हुए, उन्हें क्लिनिक के बाहर ले आया था। लेकिन जब हम दोनों, क्लिनिक से निकलकर बाहर आये थे, तो मैंने देखा था कि, रघुबाबू का चेहरा अभी भी लटका हुआ था और वे पहले की ही तरह उदास थे।

क्यों रघुबाबू, देखता हूँ आपका मुँह अभी तक लटका ही हुआ है क्या बात है?

मेरे पूछने पर रघुबाबू ने मुझे कोई जवाब नहीं दिया था। जवाब में वे मेरी तरफ से अपना मुँह, दूसरी तरफ घुमाकर खड़े हो गए थे। रघुबाबू की उदासी देख, मैंने अनुमान लगाया था कि, वे हफ्ते भर से जिस मानसिक दबाव में थे, उससे अभी भी उबर नहीं पाये हैं इसलिए, इस समय उन्हें छेड़ना ठीक नहीं है। मैं उन्हें, उनके घर पहुँचाकर, वहीं से दफ्तर में फोन करके लोगों को बता दिया था कि, रघुबाबू एकदम स्वस्थ है। उन्हें दिल की किसी भी तरह की कोई बीमारी नहीं है।

लेकिन, दो तीन दिन गुजर जाने के बाद भी, जब रघुबाबू दफ्तर नहीं पहुँचे थे, तो एक दिन शाम दफ्तर से निकलकर, मैं सीधा उनके घर पहुँच गया था। देखा था, रघुबाबू पहले की ही तरह पलंग पर उदास लेटे हुए है।

क्यों रघुबाबू अब आपको क्या हो गया?

मेरे पूछने पर रघुबाबू ने मेरी तरफ से अपना मुँह दीवाल की तरफ घुमा लिया था। वे बोले कुछ नहीं थे।

क्या हुआ रघुबाबू, आपने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया? मेरे दोबारा पूछने पर, रघुबाबू पूर्ववत अपना मुँह दीवाल की तरफ करके लेटे रहे थे जैसे कि उन्होंने, मेरी बात सुना ही न हो। बड़ी खीझ हुई थी मुझे रघुबाबू पर। मुझे लगा था, रघुबाबू मेरी बात का जवाब न देकर, मेरी तौहीन कर रहे हैं। इसलिए इस दफा मैं उनकी बांह पकड़कर, उन्हें बुरी तरह झकझोर दिया था। रघुबाबू आप मेरी बात सुन क्यों नहीं रहे हैं?

सुन रहा हूँ सतीश, सब सुन रहा हूँ, रघुबाबू दीवाल की तरफ से अपना चेहरा, मेरी तरफ घुमा लिए थे और बड़ी फुसफुसाती आवाज में मुझसे कहा था।

सुन रहे हैं तो बताइये क्या हुआ आपको?

मुझे इस डाक्टर की बात पर भरोसा ही नहीं है।

रघुबाबू की बात सुनकर मुझे बड़ी झल्लाहट हुई थी।

लेकिन क्यों ऽ ऽ ऽ ऽ ?

क्योंकि, तुमने, उसे, ऐसा ही कहने को कह दिया होगा। रघुबाबू की बात सुनकर मैंने अपना माथा पीट लिया था।

रघुबाबू, आप इस तरह क्यों सोच रहे हैं आखिर मैं आपका दुश्मन तो हूँ नहीं कि हूँ?

दुश्मन तो नहीं हो लेकिन ।

लेकिन क्या ? वह भी कह ही दीजिए दरअसल रघुबाबू की बात सुनकर मैं बुरी तरह आहत हो उठा था। कोई गंवार आदमी, ऐसी बात कह दे, तो, आदमी किसी तरह, अपने को समझा भी लेता है, लेकिन रघुबाबू जैसा पढ़ा लिखा और समझदार आदमी ऐसी बेहूदा बात करने लग जाए तो आदमी उसे कैसे बर्दाश्त करेगा।

नहीं, सतीश मेरे भाई, तुम मेरी बात पर इतना खफा मत हो ओ। दरअसल मेरा दिमाग इस समय, मेरे कब्जे में नहीं है इसलिए मेरे मुँह से ऐसी बात निकल गई। लेकिन जो स्थिति, इस समय मेरी है, वह बहुत ही खराब है सतीश। मुझे झल्लाया देख, बड़ी मुश्किल से रघुबाबू धीरे धीरे, अपने बिस्तर पर उठकर बैठ गये थे और मेरी पीठ पर हाथ फेर मुझे समझाने लग गये थे।

ठीक है रघुबाबू, आपको डाक्टर साहना पर भरोसा नहीं है न, तो चलिए आपको डा0 खुराना को दिखा लेते हैं वे भी हार्ट के अच्छे डाक्टर है। ठीक है न? मैंने रघुबाबू को डा0 खुराना को दिखाने की सलाह इसलिए भी दिया था कि, अगर उनके भीतर, दो डाक्टरों की एक दूसरे के ठीक उलट राय से कोई भ्रम पैदा हो गया होगा तो, उनका वह भ्रम भी दूर हो जायेगा और अगर वे सचमुच के बीमार हैं, तो उसकी भी पुष्टि हो जायेगी।

दूसरे ही दिन मैं दफ्तर से फिर छुट्टी ले लिया था और रघुबाबू को डा0 खुराना के पास ले गया था। इस दफा मैंने डाक्टर खुराना को, पिछले दोनों डाक्टरों की जाँच रिपोर्ट और पर्ची नहीं दिखाया था। रघुबाबू को कैसी तकलीफ है, उसी को, उन्हें बिस्तार से बताया था। डाक्टर खुराना ने भी, पहले के डाक्टरों की तरह ही, रघुबाबू की सघन जाँच किया था। जितने भी तरह की मशीनी जाँच की जरूरत थी, सब करवाया था और सारी रिपोर्ट देखने के बाद उन्होंने भी रघुबाबू, को एकदम स्वस्थ और निरोग होने की पुष्टि कर दिया था। डा0 खुराना के मुँह से अपने स्वस्थ होने की बात सुनकर, रघुबाबू के मुरझाये चेहरे पर, एक दफा खुशी की लहरियां जरूर उठी थी, लेकिन वे जिस तरह उठी थी उसी तरह वहाँ तुरंत ही गायब भी हो गई थी।

रघुबाबू, पूरी तरह स्वस्थ थे। उन्हें कोई भी रोग बीमारी नहीं थी, फिर भी वे दफ्तर नहीं आ रहे थे। क्यों नहीं आ रहे थे, इसके बारे में जानने की अब, किसी में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई थी। घर से उनके जो समाचार मिलता, वह यह कि, वे अभी भी पहले की ही तरह, असक्त और लाचार हैं इसलिए दफ्तर नहीं जा रहे हैं। शुरू शुरू में तो लोग, दो चार दिनों में एकाध दफा, उनके घर में, फोन मिलाकर उनकी हाल चाल पूछ लिया करते थे, लेकिन धीरे-धीरे उनका वह पूछना भी बंद हो गया था। रघुबाबू का कोई प्रसंग आने पर लोग, चलंतू उनके विषय में, जो भी बतिया लेते रहे हों, लेकिन यदि कोई उनके बारे में गंभीर होकर बात करना चाहता तो लोग वहाँ से खिसक लिया करते थे। मेरी भी रघुबाबू के बारे में अब पहले जैसी न दिलचस्पी रह गई थी, और न ही उनसे हमदर्दी ही थी। उलट इसके, मुझे उनके बारे में सोचने पर, बड़ी खीझ होती थी। साला जानबूझ कर बदमाशी कर रहा है।

लेकिन होते-होते, जब काफी लंबा अरसा गुजर गया था, और रघुबाबू फिर भी दफ्तर नहीं आये थे तो एक दिन मैं रघुबाबू के घर चला गया था उनके घर का दरवाजा खटखटाया था तो दरवाजा रघुबाबू ने नहीं, बल्कि उनकी पत्नी ने खोला था।

क्यों भाभी जी भाई जान कैसे हैं ?

क्या बताऊँ कैसे हैं भाई जान, इन्होंने तो जिन्दगी ही नरक बनाकर रख दिया है भइया ! सुनकर बड़ी कोफ्त हुई थी रघुबाबू पर। बेहूदगी की हद कर दिया है इस शख्स ने।

तब ?

तब क्या, जाकर खुद ही देख लीजिए मैं क्या बताऊँ?

रघुबाबू के कमरे में गया था तो देखा था, रघुबाबू बिस्तरे पर पड़े, होंठ पर उंगली रखें नजरें सीलिंग पर टिकाए, गहरी सोच में डूबे हुए थे।

रघुबाबू?

मेरी आवाज सुनकार रघुबाबू, बडे धीरे धीरे, छतपर टिकी अपनी नजरों को तथा सिर को मेरी तरफ मोड़, मेरे चेहरे पर देखें थे। वही उदासी, वही मायूसी-वही निस्जेत चेहरा

क्यों भाई जान कैसे हैं? रघुबाबू को देख मुझे उन पर दया भी आई थी और गुस्सा भी लगी थी।

जबाब में कुछ बोलने की बजाए अपने हाथ के इशारे से उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया था।

उनके बुलाने पर मैं जब उनके पास गया था तो वे मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर दहाड़े मारकर रोना शुरू कर दिए थे अब मैं नहीं बचूंगा सतीश अब मैं मर जाऊँगा।

आ ऽ ऽ ऽ ।

हा आ ऽ ऽ ऽ ऽ ।

क्यों? ऐसा क्यों कहते हैं भाई जान? आपको कुछ हुआ ही नहीं है तो आप मरेंगे कैसे?

नहीं अब मैं नहीं बचूंगारे मइया ऽ ऽ ऽ आ हा हा हा आ ऽ ऽ ऽ

आप तो भाई जान एकदम मूर्खों जैसी बात कर रहे हैं। आखिर आपके मरने का कोई कारण तो होना चाहिए? और जो कारण आप सोच रहे हैं, वह कारण है ही नहीं। जब डाक्टर साहना और डाक्टर खुराना जैसे जानकार डाक्टर, आपको एकदम ठीक होने की गारंटी दे दिए है इसके बाद भी आप ऐसी वाहियात की बातें क्यों कर रहे हैं?

तुम नहीं जानते सतीश यह देखो, रघुबाबू मेरा दाहिना हाथ ले जाकर अपने सीने के बाईं तरफ जहां पसली और पेट मिलता है वहां रख दिए थे, यह देखो यहां अगर सब कुछ ठीक होता, तो यहां उभरा क्यों रहता? जरा सा हिलने डुलने पर या चलने पर दिल की थैली यहां टकराती कैसे आ आकर?

अरे भाई जान, यह देखिए उभार तो मेरे भी पेट पर हैं। यहां देखिए है कि नहीं?

रघुबाबू मेरे पेट की उभरी हुई जगह पर अपना हाथ फेर, आश्वस्त हुए थे कि सचमुच जहां मेरी पसलियाँ खत्म होती हैं वहां उसी तरह का उभार है जैसा रघुबाबू के पेट पर था।

लेकिन तुम्हारा दिल तो यहां आकर नहीं टकराता है ना?

टकराता हैं, टकराता क्यों नहीं झूठ बोला था मैं रघुबाबू से।

तुम्हें भी भारी भारी कुछ दबाता सा लगता है यहां?

लगता है तो।

तुम झूठ बोल रहे हो। मुझे बहका रहे हो। जब मैं एकदम ठीक था, उस समय मुझे ऐसा नहीं लगता था। मुझे एकदम अच्छी तरह ख्याल है। यहाँ कोई चीज नहीं थी लेकिन अब लगता है, जैसे किसी गुब्बारे में, पानी भरकर, लटका दिया गया हो और थोड़ी सी हिल डुल होते ही, वह पसलियों पर थपर थपर थपथपाने लगता हैं।

जब हम लोग दोबारा डाक्टर खुराना के पास गए थे तो यह थपर थपर वाली बात उन्हें बताया था, तो उन्होंने यही कहा था न कि यह आपके दिमाग में जो कीड़ा घुस गया है वही वहां जाकर थपर थपर थपथपाता है, दिल नहीं। दिल आपका एकदम नार्मल है जिस साइज का होना चाहिए उसी साइज का है और एकदम स्वस्थ है। भाई जान जब डाक्टर ने इतना कह दिया है तो फिर आपको किस बात का डर है। अगर वह थपथपाता है तो थपथपाने दीजिए साले को।

अब वह इतना वजनी हो गया है कि किसी भी समय खुल भी तो सकता है।

रघुबाबू हद हो गई यार, अब यह नौटंकी बन्द भी करिए। मैं रघुबाबू की बेतुकी बात सुनकर बुरी तरह झुंझला उठा था और वहां से, पॉव पटकता, अपने घर आ गया था, और सोच लिया था कि अब मैं कभी भी उनके के पास नहीं जाऊँगा। लेकिन रघुबाबू को तो मैं खारिज कर सकता था लेकिन उनकी पत्नी और बच्चों को किस घूरे पर फेंकता। फेंका भी नहीं जा सकता था उन्हें, और न ही उनसे बचा जा सकता था। पत्नी उनकी अकसर ही मेरे घर पहुंच जाया करती थी, भाई साहब अब आप ही बताइए मैं क्या करूँ कहां जाऊँ? ओझा गुनिया को भी दिखा लिया, कोई कहता है भूत है कोई कहता है बरम हैं

कहेगा ही, जो जिस लाइन का है, उसके पास जाने से, वह वहीं बताएगा।

भाई जी घर में अब कुछ नहीं रहा। मां का दिया हुआ, दो एक थान गहना जेवर जो था, उसे भी बेच दिया। कितनी मानताएं मान लिया, कहाँ कहाँ नहीं गई मैं, रघुबाबू, की पत्नी की व्यथा सुनकर रघुबाबू पर क्रोध से मन भर उठाता। कितना बेहूदा आदमी है यह? जीते जी बच्चों को अनाथ बनाकर रख दिया है। पत्नी को भूंज भूंजकर मार रहा है। लेकिन मेरे क्रोध करने से कोई लाभ तो नहीं था. किसी ने सुझाव दिया रघुबाबू को मनोचिकित्सक को दिखाइए। उसे भी दिखाया दो तीन महीने लगातार हम लोगों ने उन्हें मानसिक चिकित्सक को दिखाया फिर भी कोई फरक नहीं पड़ा रघुबाबू पर।

एक दिन, रघुबाबू को, मनोचिकित्सक को दिखाकर, हम लोग घर आ रहे थे तो, देखा, डाक्टर खेतान, जिन्होंने रघुबाबू को बताया था कि उनका दिल बढ़ गया है अपनी कार में चले आ रहे हैं। उन्हें हाथ देकर रूकने का इशारा किया था तो वे अपनी कार रोक दिए थे। डाक्टर साहब, एक मिनट के लिए आप बाहर आइए प्लीज। मेरे निवेदन करने पर डाक्टर साहब अपनी कार से बाहर निकलकर मेरे पास आकर खड़े हो गए थे।

डाक्टर साहब आप इन्हें पहचान रहे हैं? रिक्शे में निढाल पड़े रघुबाबू की तरफ इशारा करके उनसे पूछा था, तो वे बड़े गौर से, रघुबाबू को ऊपर से नीचे तक देख गए थे। पहचाना आपने इन्हें?

नहीं,

पहिचानिएगा भी नहीं आप इन्हें क्योंकि जब इन्हें आपने देखा होगा तो एकदम हृष्ट पुष्ट और प्रसन्न, खिले हुए व्यक्ति रहे होंगे। इनका चेहरा, सेब जैसा ललछौंहा और खिला हुआ रहा होगा। दाढ़ी नहीं रही होगी इनको बराबर शेव जो किया करते थे। यह आज से पाँच छ: महीने पहले की बात है। इन पाँच-छ: महीनों में इन्हें देख रहे हैं, क्या उम्र होगी इनकी?

जो कुछ कहना चाह रहें हैं साफ साफ कहिए इतनी भूमिका क्यों बाँध रहे हैं? डाक्टर खेतान मेरा तल्ख लहजा देख भभक पड़े थे।

भूमिका नहीं बांधूंगा, तो बात आपकी समझ में ही नहीं आएगी डाक्टर साहब।

बताइए इनकी उम्र क्या होगी?

यही कोई पैंतालिस पचास वर्ष?

यह पैंतीस साला व्यक्ति छ: महीने में पचास का हो गया डाक्टर खेतान, जानते हैं क्यों? वह इसलिए कि, आपने इसे बता दिया था कि इसका दिल बढ़ गया है। यह देखिए आप अपनी जाँच रिपोर्ट झोले से जाँच रिपोर्ट निकाल मैं डाक्टर खेतान के हाथ में थमा दिया था।

मैंने गलत तो नहीं कहा है, जाँच रिपोर्ट पर नजरें दौड़ाकर, डाक्टर खेतान ने कहा था। अगर बढ़े हुए दिल के मरीज को, मैंने बता दिया कि उसका दिल बढ़ा हुआ है तो मैंने क्या गलती किया।

लेकिन यह है डाक्टर साहना की जाँच रिपोर्ट और यह डाक्टर खुराना की जाँच रिपोर्ट उन्होंने कहा है इन्हे कुछ भी नहीं हुआ है।

कुछ नहीं हुआ है तो ठीक है इसमें इतना चिढ़ने की क्या बात हैं? डाक्टर खेतान ने दोनों रिपोर्ट मुझे वापस पकड़ाते हुए कहा था, यह तो खुशी की बात है

इनकी रिपोर्ट से आप सहमत हैं?

पूरी तरह सहमत हूँ अरे भई दोनो डाक्टर मेरे गुरू हैं और मैं, उनसे दिल का क ख ग घ सीखा हूँ ठीक है उन्होंने जो कहा है उनका मन्तव्य सही है।

आप मेरे पूछने पर ऐसा कह रहे हैं या कि डाक्टर साहना आपके गुरू हैं इसलिए ऐसा कह रहे हैं, या आप उनकी रिपोर्ट के आधार पर,, यह कह रहे हैं?

मैं उनकी रिपोर्ट के आधार पर कह रहा हूँ अरे भाई जान, डाक्टरों की समझ भी कभी कभी गड़बड़ा जाती है।

आपकी या उनकी?

नहीं मेरी, लेकिन आप इस बात पर इतना तर्क क्यों कर रहे हैं? आप लोगों को तो खुश होना चाहिए कि इन्हें कुछ नहीं हुआ है।

तर्क इसलिए कर रहा हूँ कि आपके कहने से उनके मन में शक बैठ गई है और वह किसी भी तरह निकल ही नहीं रही है उनकी हालत देख रहे हैं न नर्क कर रखा है इन्होंने, न सिर्फ अपनी जिन्दगी बल्कि दूसरों की भी।

आई एम सारी जेन्टिलमैन, आई ऐम बेरी सारी और डाक्टर खेतान अपनी कार में बैठकर उसे स्टार्ट किए थे और चले गए थे।

मैं समझा था डाक्टर खेतान के मुह से, इतना सब सुनने के बाद रघुबाबू बदल गए होंगे। चैतन्य हो उठे होंगे, लेकिन रघुबाबू पहले की तरह ही उदास, मायूस और बीमार बैठे हुए थे रिक्शे में।

सुन लिए भाई जान, डाक्टर खेतान की। साले जानते सुनते कुछ नहीं, सिर्फ अपनी जमाने के लिए और मरीजों से पैसा ऐंठने के लिए, उसे आतंकित कर देते है। ऐसा करिए भाई जान हम लोग रिक्शा यहीं छोड़ देते हैं चलिए घर पैदल ही चलते हैं।

लेकिन मैं नहीं चल पाऊँगा। रघुबाबू बड़ा दयनीय होकर मुझसे मिमियाए थे।

लेकिन क्यों ऽ ऽ ऽ ऽ ?

यह देखो मेरा दिल, बड़े जोरों से धड़फड़ाने लग गया है। रघुबाबू ने अपना दिल अपने दोनों हाथों से कुछ इस तरह थाम लिया था जैसे जिस पाइप से वह बॅधा हुआ है उससे खुलकर गिरने ही वाला हो।

आपका दिल, धड़फड़ा, फड़फड़ा कुछ भी नहीं रहा है रघुबाबू। यह आपका वहम है, जिसके चलते आपको लग रहा है कि, आपका दिल धड़फड़ा रहा है। शक जो बैठा हुआ है आपके भीतर। रघुबाबू की पीठ पर हाथ रख मैंने उन्हें समझाया था।

चलिए उतरिए रिक्शे से। मैं रिक्शे वाले को किराया भुगतान करके, रघुबाबू का हाथ पकड़, उन्हें नीचे उतारने लगा था तो, रघुबाबू रिक्शे की छड़ इस कदर पकड़कर बैठ गए थे कि, जैसे वही छड़, उन्हें उनके दिल के फटने से और उन्हें मरने से बचा सकता है। उनका चेहरा उस समय बड़ा दयनीय हो उठा था, इतना दयनीय, कि उसे देख उन पर मुझे दया आई। गुस्सा भी आया। जाओ साले मरो। जब तुमने मरने की ही ठान लिया है तो मैं क्या कर सकता हूँ और मैंने रघुबाबू को उनके घर पहुँचाकर, फिर कभी, उनकी तरफ न ताकने की कसम खा, अपने घर चला आया था।

लेकिन रघुबाबू को छोड़ देने से उनकी समस्या हल नहीं हुई थी। न ही मेरी समस्या हल हुई थी। रघुबाबू दफ्तर जाना बंद कर दिए थे इसलिए उन्हें दफ्तर से तनख्वाह भी नहीं मिल रही थी। नतीजा हुआ था उनके बाल बच्चे भूखो मरने लग गए थे। रघुबाबू की पत्नी दिन दो दिन में भूख से बिल बिलाते अपने बच्चों को लेकर मेरे घर पहुँच जाया करती थी। मजबूर होकर मुझे उन्हें तथा उनके बच्चों को खिलाना पड़ता था। मेरे लिए वे एक बड़ी समस्या बन गई थीं। इस समस्या से मुक्ति के लिए मैंने सोचा था कि अगर वे कहीं काम करने लग जाती तो उनकी कम से कम भोजन की समस्या तो हल हो जाती। लेकिन रघुबाबू की पत्नी कक्षा चार पाँच पास थी वे कहीं, कुछ कर भी नहीं सकती थी। घर में झाडू पोंछा का काम करें वे मन ही नहीं गवाही देता था, कि उन्हें ऐसी सलाह दूँ। और अपने में इतनी सामर्थ्य नहीं थी कि, रघुबाबू के परिवार का पूरा खर्च वहन करूँ। दोस्त यार लोग पहले ही से किनारा कस लिए थे रघुबाबू से। वैसे भी विपत्ति में पड़े आदमी से अपनी परछाई तक साथ छोड़ देती है तो, यार तो बड़ी दूर की बात है। वे तो शुरू से ही कतराने लगे थे। लेकिन, उस स्थिति में जब, रघुबाबू खुद ही बदमाशी कर रहे हों, तो उन्हें तो छोड़कर हट लेने का सबको बड़ा ठोस कारण मिल गया था। जब कभी मैं रघुबाबू की मदद करने का उनसे निवेदन करता तो वे अपना हाथ उठा खड़ा हो जाते। भाई साहब दूसरी किसी बात के लिए कहिएगा तो अपनी सामर्थ्य भर जितना बन पड़ेगा कर दूँगा, लेकिन रघुबाबू के लिए मैं पाई भी देने वाला नहीं हूँ माफ कीजिएगा।

समस्या, दिन ब दिन गंभीर होती जा रही थी और होते होते एक समय ऐसा आया था कि वह मेरे लिए असाध्य हो उठी थी। मेरा भी धैर्य मेरा साथ छोड़ दिया था। ठीक है इस साले को मरना है तो मर जाए, लटका कर क्यों रखा है। इसके मर जाने के बाद, कंपनी में इसकी बीबी को, छोटी मोटी नौकरी तो मिलेगी। रोज रोज की जलन से वह बेचारी मुक्त तो हो सकेगी और मेरे भी जी की रोज रोज की किचाहिन छूट जाएगी।

लेकिन यह शख्स पहले मरे तो? सच पूछिए तो मुझे रघुबाबू की पत्नी और बच्चों की दुर्दशा से कम, उनका अपने सीने पर लदकर बैठ जाना असह्य हो उठा था और मैं, रघुबाबू जितना जल्दी मर जाएँ, इसकी कामना करने लग गया था। लेकिन मेरी कामना करने से अगर रघुबाबू मर जाते तो वे कभी के मर चुके होते। रघुबाबू तो जैसे अमर का चावल चबाकर बैठे हुए थे और वे मरने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

होते होते जब मैं, उन लोगों से, बुरी तरह आजिज आ गया था तो एक दिन मेरे दिमाग मे रघुबाबू को खुद ही मारकर रोज रोज की जिल्लतों से, छुटकारा पा लेने का रास्ता सुझाई पड़ गया था। लेकिन रघुबाबू को मार देना इतना आसान काम नहीं था। सबसे बड़ी मुश्किल इसमें जो थी वह यह कि, ऐसा कर सकने की मुझमें हिम्मत ही नहीं थी। अगर इस काम के लिए मैं अपने को किसी तरह तैयार भी कर लूँ तो इसमे दूसरी सबसे बड़ी बाधा उनकी पत्नी थी। उनकी पत्नी को विश्वास में लिए बगैर मैं रघुबाबू को नहीं मार सकता था। क्योंकि हत्या जैसा काम मुझे इस बारीकी और चालाकी से करना पड़ेगा कि रघुबाबू की हत्या भी हो जाए, और किसी को मुझ पर शक भी न हो। लेकिन ऐसा हो सकना एकदम असंभव सी बात थी। क्योंकि रघुबाबू की पत्नी ही इसमें सबसे बड़ी बाधा थी। वे हमेशा रघुबाबू के पास घर में मौजूद रहती थीं। इसलिए मुझे न सिर्फ, उन्हें विश्वास में लेने की बल्कि उनके सहयोग की भी जरूरत थी। रघुबाबू की हत्या से लेकर उसके बाद तक बिना उनके सहयोग के यह काम संभव नहीं था। लेकिन क्या रघुबाबू की पत्नी मेरा सहयोग करने को तैयार होगी? नहीं होगी। कोई भी औरत कभी यह नहीं चाहेगी कि उसका पति मर जाए। रघुबाबू की पत्नी मेरी बात मानेगी या नहीं मानेगी यह तो बाद की बात थी सबसे पहले तो मुझे उनसे अपनी मंशा जाहिर करना होगा। थोड़ी देर के लिए मान लूँ कि मैं अपनी मंशा उनसे घुमा फिरा कर जाहिर भी कर दूँ और मेरी मंशा का कही वे यह मतलब निकाल बैठी कि मेरे प्रति इस सख्स के इरादे नेक नहीं है, यह मेरे पति को मार कर मुझे अपनी रखैल बनाना चाहता है तो ऐसी स्थिति में मैं तो कही का नहीं रहूँगा। ऐसा होने पर न सिर्फ, अभी तक मेरा सारा किया धरा मिट्टी में मिल जाएगा बल्कि मैं किसी के सामने अपना मुँह तक दिखाने लायक नहीं रह जाऊँगा। और अगर कहीं रघुबाबू की पत्नी मेरे खिलाफ उठ खड़ी हुई और यह बात उन्होंने लोगों को बता दिया, और लोग इस बात को तूल दे दिए तो न मैं सिर्फ अपने बीबी बच्चों से और अपनी नौकरी से हाथ धो बैठूँगा बल्कि मुझे जेल फाँसी होने की नौबत तक आ सकती है।

तब क्या किया जाए, इसे इसी तरह अनवरत भोगता रहूँ?

कोई उपाय नहीं है भोगने के सिवा।

भाभी जी अब मैं तंग आ चुका हूँ। आप तो जानती ही हैं मैं कोई धन्ना सेठ तो हूँ नहीं। तनख्वाह मुझे क्या मिलती है आप जानती ही हैं। मुझे भी अपने बाल बच्चे हैं, माँ बाप हैं घर परिवार हैं, अब मुझ से नहीं होता। जब मैं, इस समस्या से एकदम से आजिज आ गया था तो एक दिन मैं रघुबाबू की पत्नी से कह ही दिया था।

आपने ठीक कहा भइया, यहाँ कोई भी धन्ना सेठ नहीं है। अगर यही बात मेरे ऊपर पड़ती तो मैं तो पहले दिन ही हाथ जोड़ लेती। मैं तो धन्य कहती हूँ आपकी पत्नी को, जो आज तक उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा। आपने एक दे दिया तब भी नहीं हजार दे दिया तब भी नहीं लेकिन भइया यह रोज रोज की कौरही मुझसे भी बर्दाश्त नहीं हो रही है।

भाभी इस समस्या का एक हल है मेरे दिमाग में लेकिन वह हल मुझमें कह सकने की हिम्मत ही नहीं है, रघुबाबू की पत्नी को सापेक्ष देख, मेरी हिम्मत थोड़ा थोड़ा बंधने लग गई थी।

कह दीजिए भइया जो कहना है बेझिझक होकर कहिए।

भाभी जी मैं, मैं यह बात कहूँ तो कैसे कहूँ इसे कहने की मेरी हिम्मत ही नहीं पड़ रही है।

भइया आप निश्चिन्त होकर कहिए राई भर भी हिचकिए नहीं।

देखिए भाभी जी, रघुबाबू की जो अवस्था है, उसमें कोई सुधार होगा, मुझे नहीं दीखता।

नहीं होगा ज़ानती हूँ नहीं होगा।

इनको अच्छा होने के लिए, हम लोग डाक्टर, हकीम, वैद्य से लेकर साधू फकीर, ओझा गुनिया, सबको दिखा लिए।

दिखा लिए और मेरे ख्याल से अब कहीं दिखाने को बाकी भी नहीं रहा।

अब इनसे, भाभी जी, छुटकारा पा लेने से ही समस्या हल होती दिखती है।

ठीक कहते हैं भइया आप जो कह रहे हैं एकदम सही कह रहे हैं।

रघुबाबू की पत्नी की बात सुन मैं चकित हो उठा था। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वे कभी ऐसा सोच सकती हैं। लेकिन उनकी बात सुन मुझे लगा था वे भी रघुबाबू से जितना जल्दी हो, निजात पा लेने के लिए छटपटा रही हैं।

आप चुप क्यों हो गए भइया अगर मेरे लायक कोई काम हो तो बताओ?

भाभी जी, आपको कुछ करना नहीं है, करूँगा तो मैं, सिर्फ आपकी सहमति चाहता हूँ।

मैं सहमत हूँ भइया।

मेरी योजना यह है भाभी जी, कि रघुबाबू को आज नहीं तो कल तो मरना ही है अभी इनको कुछ नहीं हुआ है, सही हैं, लेकिन जिस तरह उन्होंने होना होना धर लिया है, वह एक दिन हो ही जाएगा। और अगर नहीं भी हुआ तो भी, उनकी इस समय जो दशा है वह उस होने से भी बदतर है।

हई है भइया

तो एक बात तय है कि इन्हें आज नहीं तो महीने दो महीने या दस महीने या साल दो साल में मरना है।

ठीक कहते है भइया

मेरी योजना जो है भाभी जी, उसमें रघुबाबू या तो तुरंत मर जाएँगे या फिर एकदम से ठीक ही हो जाएँगे। अगर रघुबाबू मर गए, और इस बात को लेकर कोई बखेड़ा खड़ा हो गया तो, वैसे मुझे उम्मीद नहीं है कि इनके मर जाने से कोई बखेड़ा खड़ा होगा क्योंकि किसी को इनसे मतलब ही नहीं है और जिनको इनसे मतलब है सब यही चाहते हैं कि जब इन्हें मरना ही है तो जल्दी मर जाएँ तो ही अच्छा, यह रोज रोज की टंटा तो मिटेगी।

मैं भी इनसे पूरी तरह ऊब चुकी हूँ भइया अब इनका मर जाना ही अच्छा है। इनके मरने पर अगर कोई बखेड़ा उठ खड़ा हुआ तो। आप सिर्फ इतना कहिएगा, कि उनका हार्ट फेल हो गया और ए मर गए।

ठीक है भइया,

नहीं, नहीं आप कहिएगा कि इन्होंने गोली मार कर आत्महत्या कर लिया।

ठीक है भइया मैं ऐसा ही कहूँगी।

अपनी योजना के मुताबिक मैं एक दिन जरूरी काम का बहाना करके, दोपहर दफ्तर से निकल कर रघुबाबू के घर पहुँच गया था। घर में उस समय रघुबाबू की पत्नी थी और रघुबाबू थे। बच्चे उनके मोहल्ले के आवारा बच्चों के साथ कंचे खेलने मे मस्त रहे होंगे।

क्यों भाई जान कैसे है?

वैसे ही हूँ पूछने पर रघुबाबू हमेशा की तरह उसी दयनीयता से फसफसाए थे।

भाई जान, बात ऐसी है कि, आपको कुछ भी नहीं हुआ है। मैंने आगे बढ़कर उनका हाथ पकड़ उन्हें जोर से झकझोर दिया था

मेरा बदला तेवर और आवाज और चेहरे की दृढ़ता देख रघुबाबू और ज्यादा दयनीय हो उठे थे।

भाई जान आप उठिए तो बिस्तर से नहीं तो मैं आपको गोली मार दूँगा, मैं अपनी पैंट की जेब में रखा रिवाल्वर निकाल, रघुबाबू के सामने उसमें गोलियाँ भरने लग गया था।

उठ जाइए, गोलियाँ भरकर रिवाल्वर रघुबाबू की तरफ तान मैं खड़ा हो गया था, आपका दिल बढ़ गया है न?

हाँ रिवाल्वर अपनी तरफ तना देख रघुबाबू झट बिस्तर पर उठ कर बैठ गए थे।

और बढ़े हुए दिल के कारण आपकी मौत निश्चित है न?

रघुबाबू घबराए हुए, बिस्तरे से उठकर भागने के जुगाड़ में, धीरे-धीरे खिसकने लगे थे।

दरअसल बात ऐसी है कि, जब आपको मरना ही है तो मैं आज ही आपको मार देता हूँ यह रोज रोज के नरक से तो छुटकारा मिल जाएगा? आप मर जाएंगे तो आपकी पत्नी को नौकरी मिल जाएगी और उसको भी इस नरक से मुक्ति मिल जाएगी।

सतीश, यह तुम क्या कह रहे हो? अपनी तरफ, मुझे रिवाल्वर ताने बढ़ता देख रघुबाबू बड़े जोरों से चिचियाए थे।

अब आप भाग कर नहीं बच सकते रघुबाबू। आप जितनी दूर भागना चाहते हो भागिए। रघुबाबू अपनी जान बचाने के लिए बिस्तरे से उतरकर भागे थे और इस कमरे से उस कमरे में, उससे इस कमरे में, कभी खटिया के नीचे घुसते, तो कभी उसका चक्कर लगाते और बचाओ रे बचा बचा ऽ ऽ ऽ ऽ ओ रे क़ी गोहार लगाते भागते रहे थे और मैं उन पर रिवाल्वर ताने उन्हें दौड़ाता रहा था। जब मैंने देखा था कि रघुबाबू भागते भागते एकदम पस्त हो गए है तो मैंने हवा में एक फायर झोंक दिया था। आवाज सुनकर पत्नी उनकी, जो बाहर से घर बन्द कर दी थी, दरवाजा खोल भीतर आई थीं। पत्नी को देखते ही रघुबाबू झपट कर उससे लिफ्ट गए थे। देख न, देख रही है न? यह मुझे मार देना चाहता है कहता है मुझे जो कल मरना है आज ही मर जाऊँ तो अच्छा है।

अजी छोड़िए मुझे, आपका मर जाना ही अच्छा है, रघुबाबू की पत्नी ने रघुबाबू को जोर से धक्के दे, उनकी पकड़ से अपने को छुड़ा लिया था। लेकिन रघुबाबू, उससे फिर लिपट गए थे और खुद को बचाने के लिए, उसे मेरे सामने कर दिए थे। मैं झपटकर रघुबाबू का हाथ पकड़ा था और रिवाल्वर पाकिट की जेब में डाल, रघुबाबू की दाहिनी बांह, दोनों हाथों से पकड़, उन्हें कमरे में गोल गोल घुमाकर दौड़ाने लगा था। आप समझते हैं, भाभी जी को पकड़कर, अपनी जान बचा लीजिएगा। आज मैं, आपको मारकर ही दम लूँगा। अगर मैं आपको अब नहीं मारता तो आप मुझे फांसी दिलवा दीजिएगा। इसलिए अब आपको जिन्दा छोड़ना, अपने खुद के गले में फांसी का फन्दा पहनना है। इसके बाद मैं रघुबाबू को बिस्तरे पर पटक कर उनके ऊपर लद गया था।

सतीश मुझे छोड़ दो छोड़ दो भइया, मैं हाथ जोड़ता हूँ तुम्हारे पाँव पकड़ता हूँ।

आप पर रहम करके मैं अपनी मौत नहीं बुलाऊँगा ना। रघुबाबू के ऊपर लदकर मैं उनका काम तमाम कर देने के लिए अपनी जेब से रिवाल्वर निकालने लग गया था तो उनके ऊपर से मेरी पकड़ थोड़ा ढीली, पड़ गई थी इसका फायदा उठाकर रघुबाबू अपने दोनों हाथों से जोर का धक्का देकर मुझे बिस्तरे पर गिरा दिए थे और मेरे गिरते ही बड़ी फुर्ती से वे मेरे ऊपर लद गए थे।

रघुबाबू में उस समय पता नहीं कहाँ से बला की ताकत आ गई थी। उन्होंने मुझे बिस्तरे पर पटक कर कुछ इस तरह मुझे दबोच लिए थे जैसे कोई शेर अपने शिकार को दबोचता है। थोड़ी देर तक हम दोनों एक दूसरे को पछाड़ने की कोशिश करते रहे थे लेकिन रघुबाबू में इतनी बला की ताकत आ गई थी कि मुझे खुद को लगने लगा था कि मैं रघुबाबू के सामने निहायत कमजोर हूँ और वे मुझे किसी भी क्षण मेरा गला दबाकर मुझे मार देंगे।

रघुबाबू से जीतता न देख, मैंने उनकी पत्नी को पुकारा था। मेरी पुकार सुनकर, उनकी पत्नी, जो वहीं कहीं थी, दौड़कर पहुँच गई थी। ऐसा करिए भाभी जी इन्हें आप पकड़िए, मुझे सिर्फ रिवाल्वर निकालने का मौका चाहिए, मैं इनका काम अभी तमाम किए देता हूँ कर दूँ न भाभी जी?

नहीं भइया मत मारिए इन्हें मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ छोड़ दीजिए इन्हें।

लेकिन इन्हें छोड़कर आप क्या समझती हैं मैं खुद अपनी जान हतवाऊँ?

नहीं भइया, ए कुछ नहीं करेंगे, छोड़ दीजिए इन्हें मैं आपके पाँव पकड़ती हूँ।

नहीं भाभी अभी जब ए छूट जाएँगे न, तो आप दोनों पति पत्नी एक हो जाइएगा और मैं जेल की चक्की पीसूँगा, इसलिए मैं आपको भी इनके साथ सुला दूँ तभी अच्छा है।

नहीं भइया, हे भइया मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ पाँव पकड़ती हूँ मेरे बच्चे अनाथ हो जाएंगे भइया। अरे मरदूद तू ऐसे ही पिला रहेगा इन पर या इनसे बिनती अरदास करके अपनी जान बचाएगा? तू क्या समझता है इन्हें हरा देगा? रघुबाबू की पत्नी, दांत किटकिटाती, रघुबाबू की देह पकड़ जोरों से उन्हें झकझोरा था अपने तो मुआ मरेगा ही बच्चों को भी अनाथ करवाएगा।

ऐं - पत्नी की झकझोर पर रघुबाबू को जैसे होश आ गया था और वे मेरे ऊपर से उतरकर बिस्तरे पर हांफते हुए बैठ गए थे।

रघुबाबू इस समय बीमार हैं या नहीं यह तो मैं नहीं बता सकता, हाँ उस दिन के नाटक का एक असर यह हुआ था कि अब वे बिना किसी नागा के दफ्तर आते हैं, सारा दिन अपनी सीट पर बैठे चुपचाप अपना काम करते हैं और समय होने पर घर चले जाते हैं। अब वे न किसी से बोलते है न हंसते हैं और न ही पहले की तरह किसी से ठठ्ठा और हंसी मजाक ही करते हैं।

सोमेश शेखर चन्द्र

Tag : Somesh Shekhar Chandra’s Long story in Hindi – Raghu babu beemar hai, Raghu babu beemar nahi hai

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रचनाकार: सोमेश शेखर चन्द्र की लंबी कहानी – रघुबाबू बीमार हैं, रघुबाबू बीमार नहीं हैं
सोमेश शेखर चन्द्र की लंबी कहानी – रघुबाबू बीमार हैं, रघुबाबू बीमार नहीं हैं
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