चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा 15

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मेरी आत्म कथा चार्ली चैप्लिन   चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा -अनुवाद : सूरज प्रकाश ( पिछले अंक 14 से जारी …) तेइस पूरब क...

मेरी आत्म कथा

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चार्ली चैप्लिन

 

चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा

-अनुवाद : सूरज प्रकाश

suraj prakash

(पिछले अंक 14 से जारी…)

तेइस

पूरब के बारे में पहले से ही कई उत्कृष्ट पर्यटन किताबें लिखी गयी हैं इसलिए मैं पाठक के धैर्य की परीक्षा नहीं लूंगा। अलबत्ता, मेरे पास जापान के बारे में लिखने के लिए एक बहाना है क्योंकि मैं वहां पर अजीबो-गरीब हालात में पहुंचा था। मैंने जापान के बारे में लाफकाडियो हर्न की एक किताब पढ़ी थी और उन्होंने जापानी संस्कृति और उनके थियेटर के बारे में जो कुछ लिखा था, उससे जापान जाने के बारे में मेरी इच्छा बढ़ गयी थी।

हमने एक जापानी जहाज में यात्रा की। इसने जनवरी की बर्फीली हवाओं में तट छोड़ा था और सुएज नहर में गर्मी के मौसम में प्रवेश करने वाला था। एलेक्जेंड्रिया तट पर उसमें नये यात्री चढ़े। अरब और हिन्दू। दरअसल उनके आने से हमारे सामने एक नयी दुनिया खुली। सूर्यास्त के वक्त अरब डैक पर अपनी चटाइयां बिछा देते और मक्का की तरफ मुंह करके नमाज पढ़ते।

अगली सुबह हम लाल सागर में थे। इसलिए हमने अपने औपचारिक कपड़े लबादे जैसे कपड़े उतार फेंके और सफेद निकरें और हल्की रेशमी कमीजें पहन लीं। हमने अपने साथ गर्म देशों वाले फल और नारियल एलेक्जेंड्रिया में ही भर लिये थे इसलिए नाश्ते में हम आम लेते और डिनर के वक्त बर्फ से ठंडा किया गया नारियल दूध लेते। एक रात हमने जापानी ढंग अपना लिया और डेक के फर्श पर डिनर लिया। मुझे जहाज के अधिकारी ने बताया कि अगर मैं अपने चावलों पर थोड़ी सी चाय डाल दूं तो उनका स्वाद बढ़ जाता है। जैसे जैसे जहाज दक्षिणी तट के नजदीक पहुंचा तो हमारा रोमांच बढ़ने लगा। जापानी कप्तान ने शांत स्वर में बताया कि हम अगली सुबह कोलम्बो पहुंचने वाले हैं। हालांकि सीलोन जाना एक मोहक अनुभव था, हमारी इच्छा थी कि हम बाली और जापान पहुंचें।

हमारा अगला पत्तन सिंगापुर था जहां पर हम चीनी शैली के बेंत की तरह लचीली प्लेट के परिवेश में जा पहुंचे। वहां पर समुद्र के बीचों बीच वट वृक्ष उगते हैं। मुझे सिंगापुर की जो सबसे शानदार स्मृति है वो है उन चीनी अभिनेताओं की जो न्यू वर्ल्ड एम्यूजमेंट पार्क में प्रदर्शन करते थे। उन बच्चों को ईश्वरीय देन थी अभिनय की क्योंकि उनके नाटकों में महान चीनी नाटककारों के कई कई महान कृतियां शामिल थीं । वे लोग परम्परागत तरीके से पैगोडा में प्रदर्शन कर रहे थे। जो नाटक मैंने देखा, वह तीन रात तक चलता रहा। कलाकारों की मंडली में से जो प्रमुख अभिनेत्री थी, वह पन्द्रह बरस की लड़की थी और उसने राजकुमार का अभिनय किया था। वह ऊंचे, उत्तेजनापूर्ण स्वर में गा रही थी। तीसरी रात क्लाइमेक्स की थी। कई बार ये बहुत अच्छा होता है कि आप भाषा नहीं जानते क्योंकि जितना अधिक असर अंतिम अंक ने छोड़ा और किसी चीज़ का उतना असर हो ही नहीं सकता था। संगीत की व्यंग्यपूर्ण धुनें, कांपती तारें, और घंटों की तूफानी टकराहट और एकांत आकाश में क्रोध में चिल्लाती निर्वासित युवा राजकुमार की बेधती उस वक्त की भारी आवाज़ जिस वक्त वह अंतिम रूप से मंच से जाता है।

सिडनी ने इस बात की सिफारशि की कि बाली द्वीप चला जाये। उसने बताया कि ये अभी भी आधुनिक सभ्यता से अछूता है और ये भी बताया कि वहां की औरतें अभी भी नंगे सीने के साथ चलती हैं और बेहद खूबसूरत होती हैं। इन बातों से मेरी रुचि जागृत हो गयी। द्वीप की पहली झलक हमने सुबह के वक्त तब देखी जब सफेद रुई के गालों जैसे बादल हरे पर्वतों के चारों तरफ घेरा बनाये हुए थे और उनकी चोटियां ऐसे लग रही थीं मानो द्वीप हवा में तैर रहे हों। उन दिनों कोई पत्तन या हवाई पट्टी नहीं हुआ करती थी, बस, यात्रियों को अपनी नावों से एक लकड़ी के तट पर उतरना होता था।

हम दालानों में से आगे गुज़रे। ये खूबसूरत दीवारों से घिरे शानदार अहाते थे जिनमें दस बीस परिवार रहते थे। हम जितना अंदर जाते गये, प्रदेश उतना ही खूबसूरत होता चला गया। हरे धान के खेतों के चांदी से चमकते सीढ़ीनुमा खेत हमें घुमावदार झरने की तरफ ले गये। अचानक सिडनी ने मुझे कोंचा। सड़क के किनारे राजसी औरतों की एक पांत जा रही थी। उन्होंने अपनी कमर पर सिर्फ छींट लपेटे हुए थे और उनकी छातियां नंगी थीं। वे अपने सिरों पर टोकरियां लिये हुए थीं जिनमें वे फल लादे हुए थीं। इसके बाद तो हम लगातार एक दूसरे को कोंचते रहे। कुछ तो वाकई बेहद खूबसूरत थीं। हमारा गाइड जो एक अमेरिकी तुर्क था, और आगे ड्राइवर के साथ बैठा हुआ था, बेहद गुस्सा दिला रहा था क्योंकि जब भी हम कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करते, वह ओछेपन के साथ सिर घुमाता मानो उसने हमारे लिए कोई शो रखा हुआ हो।

डेनपासर में होटल अभी हाल ही में बनाया गया था। हरेक बैठक के सामने एक वरांडा था जिसे पिछवाड़े की तरफ सोने के कमरे से अलग किया गया था। सोने के कमरे आरामदायक और साफ सुथरे थे।

हर्चफेल्ड, अमेरिकी वाटर कलर चित्रकार और उसकी पत्नी बाली में दो महीने से रह रहे थे और उन्होंने अपने घर पर हमें आमंत्रित किया। वहां पर उनसे पहले मैक्सिकन कलाकार मिगुएल कुआरीबियास रह चुके थे। उन्होंने ये घर बाली के एक मुखिया से किराये पर ले रखा था और पन्द्रह डॉलर प्रति सप्ताह पर घर के मालिक की तरह शानो शौकत से रह रहे थे। डिनर के बाद हर्चफेल्ड दम्पत्ति, सिडनी और मैं टहलने के लिए निकले। रात अंधियारी और नमकीन थी। हवा नहीं चल रही थी और पत्ता भी नहीं खड़क रहा था। तभी अचानक वहां पर जुगनुओं ने हमला कर दिया और धान के खेतों पर वे नीली रौशनी के उतार चढ़ाव वाली लहरों की तरह फैल गये। दूसरी दिशा से संगीतमय आरोह अवरोह के साथ घंटे बजने और तम्‍बूरे बजने की आवाज़ें आने लगीं। "कहीं डांस हो रहा है," हर्चफेल्ड ने कहा,"आओ चलें।"

लगभग दो सौ गज दूर, स्थानीय वासी समूहों में खड़े थे या आस पास चौकड़ी मार के बैठे थे। लड़कियां पैर मोड़े टोकरियां और छोटे छोटे लैम्प लिये बैठी थीं और खाने पीने की चीज़ें बेच रही थीं। हम भीड़ में से रास्ता बनाते हुए निकले। हमने दस बरस की उम्र की दो लडकियों को देखा जो क़ढ़ाईदार सारोंग लपेटे हुई थीं और उन्होंने बहुत ही भव्य, सोने के काम वाले सिर के दुपट्टे ओढ़े हुए थे और वे बड़े बड़े पीतल के घंटों में से निकलती गहरी आवाज़ की धुन पर सिर हिलाती नाच रही थीं। ऊंचे सुर में कांपती धुनें बज रही थीं। संगीत की लहरियां किसी तूफानी लहर की तरह ऊपर उठतीं और गम्भीर नदी में उतार की तरह नीचे आ जातीं। अंतिम पल एक दम हतप्रभ कर देने वाले थे। नर्तकियां अचानक ही रुक गयीं और भीड़ में गुम हो गयीं। किसी किस्‍म की कोई तालियां नहीं बजीं। बाली समाज में कभी तारीफ में ताली नहीं बजायी जाती, न ही उनके पास प्यार या आभार के लिए शब्द ही हैं।

वाल्टर स्पाइस, संगीतकार और पेंटर हमसे मिलने आये और उन्होंने हमारे साथ होटल में लंच लिया। वे पन्द्रह बरस से बाली में रह रहे थे और बाली भाषा बोलते थे। उन्होंने बाली वासियों के संगीत के कुछ हिस्सों को अपने लिए पिआनो की धुनों में ढाल लिया था। उन्होंने वे अंश बजा कर सुनाये। इसका असर दोहरे समय में बजाये गये बाख कोन्सार्टो की तरह का था। बाली वासियों की संगीत की अभिरुचि काफी परिष्कृत है, बताया उन्होंने। हमारे आधुनिक जाज को वे ये कह कर दरकिनार कर देते हैं कि ये धीमा और सुस्त है। मोजार्ट को वे संवेदनशील मानते हैं लेकिन वे सिर्फ बाख को ही पसंद करते हैं क्योंकि उसकी पद्धतियां और धुनें उन्हें अपने खुद के संगीत के निकट जान पड़ती हैं।

मुझे उनका संगीत ठंडा, बेरहम और कुछ हद तक बेचैन करने वाला लगा। यहां तक कि गहरे विषादपूर्ण अंश भी भूखे ग्रीक देव मिनोटार की मनहूस उबासी की तरह थे।

लंच के बाद स्पाइस हमें जंगल के भीतर की तरफ ले गये। वहां पर पताका आरोहण का कोई आयोजन होने वाला था। वहां तक पहुंचने के लिए हमें जंगल के रास्ते से चार मील पैदल चलना पड़ा। जब हम वहां पहुंचे तो हमें लगभग बारह फुट लम्बी पवित्र वेदी को घेर कर खड़े हुए हजारों आदमियों की भीड़ दिखायी दी। नंगी छातियां झलकातीं, सुंदर सारोंग पहने नवयुवतियां थीं वहां। वे अपनी टोकरियों में फल और अर्ध्य की दूसरी वस्‍तुएं लिये पंक्तियों में खड़ी थीं और एक पुजारी, जो दरवेश की तरह लगता था, उसके छाती तक लम्बे बाल थे, और उसने सफेद चोगा पहना हुआ था। वह आशीर्वाद दे रहा था और उनसे पूजा अर्चन का सामान ले कर वेदी पर रख रहा था। जब पुजारी ने अर्चन की आरती गा ली तो खिलखिलाते युवकों ने वेदी पर हल्ला बोल दिया और वहां पर सारी चीज़ें लूट लीं। उनके हाथ जो भी आया, उन्होंने लूटा और पुजारी उन पर बेरहमी से अपने कोड़े बरसाने लगा। कुछ लोगों को लूटा गया अपना सामान लौटा देना पड़ा क्योंकि कोड़े बहुत तीखे पड़ रहे थे और ये मान्यता थी कि इससे उन्हें उन बुरी आत्माओं से मुक्ति मिल जायेगी जो उन्हें चोरी करने के लिए प्रेरित कर रही थीं।

हम जब भी जी चाहता, मंदिर और अहाते के भीतर चले जाते और बाहर आ आते। हमने मुर्गों की लड़ाइयां देखीं, मेलों और धार्मिक विधियों में शामिल हुए। वहां रात दिन अनुष्ठान चलते रहते। एक दिन तो मैं सुबह पांच बजे वापिस आया। उनके देवता मौज मस्ती पसंद करते हैं और बाली के लोग उनकी आराधना डर के मारे नहीं बल्कि स्नेह से करते हैं।

एक रात बहुत देर स्पाइस और मैं मशालों की रौशनी में नाचने वाली एक लम्बी वीरांगना से जा टकराये। उसका बच्चा पीछे बैठा उसकी नकल उतार रहा था। युवा सा दिखने वाला एक आदमी उसे बार बार हिदायतें दे रहा था। बाद में हमें पता चला कि वह आदमी उस लड़की का पिता था। स्पाइस ने उससे उसकी उम्र पूछी।

"भूकम्प कब आया था," उस आदमी ने पूछा।

"बारह बरस पहले," स्पाइस ने बताया।

"तो उस वक्त मेरे तीन शादीशुदा बच्चे थे," अपने जवाब से वह संतुष्ट नजर नहीं आया इसलिए आगे बोला,"मेरी उम्र दो हज़ार डॉलर है।" ये इस बात की घोषणा थी कि मैं अपनी जिंदगी में दो हजार डॉलर जितनी रकम खर्च कर चुका हूं।

कई अहातों में मैंने एकदम नयी लिमोज़िन कारें देखीं जिन्हें मुर्गियों के अंडे सेने के काम में लाया जा रहा था। मैंने स्पाइस से इसका कारण पूछा। उसने बताया,"यहां के अहाते समुदाय के आधार पर चलाये जाते हैं और थोड़े से मवेशियों का निर्यात करके उन्हें जो पैसे मिलते हैं उन्हें ये बचत खाते में डालते रहते हैं और जो वक्त बीतने के साथ साथ बहुत बड़ी रकम हो जाती है। एक दिन कारों का एक होशियार सेल्समैन इनके पास आया और कैडिलैक लिमोजिन कारें खरीदने के बारे में बात करने लगा। पहले कुछ दिन तो उन लोगों ने कारों में खूब मज़ा किया, आस पास सैर सपाटा किया, फिर उनमें पेट्रोल खत्म हो गया। इसके बाद इन लोगों ने पाया कि एक दिन कार चलाने के लिए जितने पैसों के पेट्रोल की ज़रूरत पड़ती है, उतनी तो उनकी पूरे महीने की कमाई है। इसलिए उन्होंने कारों को अहाते में ही छोड़ दिया और अब उनमें मुर्गियां पाली जाती हैं।

बाली वासियों का हास्य बोध भी हमारी तरह ही है और उसमें सैक्स संबंधी लतीफों, स्वयं सिद्ध बातों की भरमार है और वे शब्दों के साथ खिलवाड़ करते हैं। मैंने होटल में एक युवा वेटर के हास्य बोध की परीक्षा ली। "मुर्गे ने सड़क पार क्यों की?" पूछा मैंने।

उसकी प्रतिक्रिया बेहद शानदार थी। "हर कोई इस बात को जानता है।' उसने दुभाषिये से कहा।

"अच्छी बात है, अब ये बताओ कि पहले मुर्गी हुई या अंडा?"

इस सवाल से वह परेशान हो गया। उसने अपना सिर हिलाया, "मुर्गी . ." "अंडा . ." उसने अपनी पगड़ी पीछे सरकायी, कुछ पलों के लिए सोचा और पूरे विश्वास के साथ घोषणा की, "अंडा।"

"लेकिन अंडा दिया किसने?"

"कछुए ने, क्योंकि कछुआ ही परम सत्ता है और वही सभी अंडे देता है।"

बाली तब स्वर्ग की तरह था। वहां के निवासी चार महीनों तक धान के खेतों में काम करते और अपने बाकी आठ महीने कला और संस्कृति के नाम करते। मनोरंजन पूरे द्वीप में नि:शुल्क था और एक गांव वाले दूसरे गांव में जा कर प्रदर्शन करते। लेकिन अब उस स्वर्ग के दिन लद गये हैं। शिक्षा ने उन्हें अपनी छातियां ढकना सिखा दिया है और अब वे अपने प्रसन्न चित्त रहने वाले देवताओं को पश्चिमी देवताओं के पक्ष में छोड़ रहे हैं।

जापान के लिए निकलने से पहले मेरे जापानी सचिव कोनो ने इच्छा व्यक्त की कि वह पहले जा कर मेरे आगमन की तैयारियां करना चाहेगा। हम सरकार के मेहमान रहने वाले थे। कोबे बंदरगाह पर हमारा स्वागत हमारे जहाज पर चक्कर काटते विमानों ने किया। वे ऊपर से स्वागत के पर्चे गिरा रहे थे। हज़ारों लोगों ने तट पर खुशी से हमारा स्वागत किया। धूएं के बादलों और गंदे धूसर डैक की पृष्ठभूमि में सैकड़ों की संख्या में शोख रंग के किमोनो पहने लड़कियों को देखना किसी स्वर्गतुल्य नज़ारे की तरह था। बेहद खूबसूरत। उस जापानी प्रदर्शन में प्रसिद्ध रहस्यवाद या रुकावट का लेश मात्र भी स्थान नहीं था। यह उसी तरह से उत्तेजना और उत्साह से भरी भीड़ थी जैसी मैंने किसी भी जगह पर देखी थी।

सरकार ने हमारे लिए एक विशेष रेलगाड़ी उपलब्ध करा रखी थी जो हमें टोकियो ले जाने वाली थी। हरेक स्टेशन पर भीड़ और उत्तेजना दोनों ही बढ़ते जाते, प्लेटफार्म खूबसूरत लड़कियों से अटे पड़े रहते और वे लड़कियां हमें उपहारों से लाद देतीं। इसका असर, जिस वक्त वे किमोनो में इंतजार करती खड़ी होतीं, फूलों की प्रदर्शनी की तरह था। टोकियो में तकरीबन चालीस हज़ार की भीड़ हमारे स्वागत के लिए खड़ी हुई थी। भीड़ की धक्का मुक्की में सिडनी गिर गया और उसे लगभग कुचल ही डाला गया था।

पूरब का रहस्य मिथकीय है। मैं हमेशा ही ये मान कर चलता रहा कि पश्चिम वाले उसे बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं। लेकिन जिस पल से हम कोबे बंदरगाह पर उतरे थे, ये रहस्य वहां की फिजां में था और अब टोकियो में ये हमें अपनी गिरफ्त में ले रहा था। होटल की तरफ जाते समय हम शहर के एक शांत इलाके से गुज़रे। अचानक कार धीमी हो गयी और सम्राट के महल के पास रुक गयी। कोनो ने चिंतातुर होते हुए लिमोजिन की खिड़की में से पीछे हमारी तरफ देखा। तब वह मेरी तरफ मुड़ा और एक अजीब सा अनुरोध करने लगा,"क्या मैं कार से बाहर निकलूंगा और महल की तरफ देखते हुए झुकूंगा?"

"क्या ये परम्परा है?" पूछा मैंने।

"हां, उसने यूं ही जवाब दिया,"आपको झुकने की जरूरत नहीं है, बस कार में से उतर भर जाइये, इतनी ही काफी हेगा।"

इस अनुरोध ने मुझे कुछ हद तक परेशानी में डाल दिया क्योंकि हमारे पीछे आ रही दो तीन कारों के अलावा वहां पर कोई भी नहीं था। अगर ये रिवाज का हिस्सा था तो लोगों को पता होता और वहां पर भीड़ जमा हो गयी होती। बेशक छोटी सी ही सही। अलबत्ता, मैं बाहर निकला और सिर झुकाया। जब मैं कार में वापिस आया तो कोनो ने राहत की सांस ली। सिडनी को ये अजीब सा अनुरोध लगा और उसे लगा कि कोनो ने कुछ अजीब सा व्यवहार किया है। जब से हम कोबे में पहुंचे थे, कोनो परेशान लग रहा था। मैंने मामले को रफा दफा कर दिया और कहा कि शायद कोनो कुछ ज्यादा ही मेहनत कर रहा है इसलिए परेशान लग रहा है।

उस रात कुछ नहीं हुआ, लेकिन अगली सुबह सिडनी मेरी बैठक में आया। वह अभी भी उत्तेजित था। "मुझे ये पसंद नहीं है," वह बोला,"मेरे बैगों की तलाशी ली गयी है और मेरे सारे कागजात आगे पीछे कर दिये गये हैं।" मैंने उसे बताया कि भले ही ये सच हो सकता है लेकिन कुछ मायने नहीं रखता। "कुछ न कुछ तो रहस्यमय चल रहा है।" सिडनी ने कहा। लेकिन मैं हँस दिया और उसी पर आरोप लगा दिया कि वह ही कुछ ज्यादा ही शकी होता जा रहा है।

अगली सुबह हमारी देखभाल करने के लिए एक सरकारी एजेंट लगा दिया गया और उसने बताया कि हम कहीं भी जाना चाहें हम उसे कोनो के जरिये बता दें। सिडनी ने फिर इस बात पर ज़ोर दिया कि हम पर निगाह रखी जा रही है और कि कोनो कुछ न कुछ छुपा रहा है। मैं ये स्वीकार करता हूं कि अब कोनो पहले की तुलना में और भी ज्यादा परेशान नज़र आ रहा था।

सिडनी के शक के पीछे कोई न कोई वजह थी। क्योंकि उस दिन एक और अजीब बात हो गयी। कोनो ने बताया कि एक व्यापारी है जिसके पास रेशम के कपड़े पर चित्रित कुछ कामुक नंगी तस्वीरें हैं और वह मुझे ये तस्वीरें दिखाना चाहता है। वह मुझे अपने घर पर बुला कर ये तस्वीरें दिखाना चाहता है। मैंने कोनो को बताया कि उस आदमी से कह दे कि मेरी इनमे कोई दिलचस्पी नहीं है। कोनो परेशान नज़र आया।

"अगर मैं उससे कहूं कि वह तस्वीरें होटल में छोड़ जाये?" कोनो ने सुझाव दिया।

"किसी भी हालत में नहीं," कहा मैंने,"बस उससे यही कहो कि अपना समय बरबाद न करे।"

वह हिचकिचाया, "ये लोग न सुनने के आदी नहीं होते।"

"आप बात ही क्या कर रहे हैं?" पूछा मैंने।

"दरअसल, वे मुझे कई दिनों से धमका रहे हैं, टोकियो में उन लोगों का बहुत आतंक है।"

"क्या बेहूदगी है?" मैंने जवाब दिया,"मैं उनके पीछे पुलिस लगा दूंगा।"

लेकिन कोनो ने सिर हिलाया।

अगली रात, जब मेरा भाई सिडनी, कोनो और मैं एक रेस्तरां के प्राइवेट रूप में डिनर ले रहे थे, छ: युवक भीतर आये। एक आदमी कोनो के साथ सट कर बैठ गया और अपनी बांहें मोड़ लीं। जबकि बाकी पांच आगे पीछे होते रहे और खड़े ही रहे। बैठे हुए आदमी ने कोनो से जापानी में दबी हुई आवाज़ में बात करनी शुरू कर दी और। उसने कुछ कहा जिससे कोनो अचानक पीला पड़ हो गया।

मैं निहत्था था। इसके बावजूद मैंने अपना हाथ कोट के जेब के भीतर लिया मानो मेरे पास रिवाल्वर हो और मैं चिल्लाया,"इस सबका क्या मतलब है?"

कोनो अपनी प्लेट से सिर उठाये बिना कुछ मिनमिनाया,"इसका कहना है कि आपने तस्वीरें देखने से इन्कार करके इसके पूर्वजों का अपमान किया है।"

मैं अपने पैरों पर उछला, और अपने हाथ को कोट की जेब में रखे हुए ही उस युवक की तरफ तेज निगाहों से देखा,"ये सब क्या हो रहा है?" तब मैंने सिडनी से कहा,"चलो हम यहां से चलें। और आप, कोनो, एक टैक्सी मंगवाओ।"

एक बार गली में आ जाने के बाद हम सुरक्षित महसूस कर रहे थे। हमें राहत मिली।

रहस्य से परदा अगले दिन उस वक्त उठा जब प्रधान मंत्री के पुत्र मिस्टर केन इनाकुई ने हमें सुओमी कुश्ती के मैचों में अपने मेहमानों के रूप में आमंत्रित किया। जब हम बैठे और मैच देख रहे थे, एक परिचर आया और उसके कंधे पर थपथपा कर उसके कान में कुछ फुसफुसाया। केन हमारी तरफ मुड़ा और माफी मांग कर चला गया कि कोई खास बात हो गयी है और उसे जाना पड़ेगा लेकिन वह बाद में जल्दी ही लौट आयेगा। कुश्ती खत्म होने के आस पास वह वापिस आया। उसका चेहरा सफेद फक्क था और वह बुरी तरह से भयभीत लग रहा था। मैंने उससे पूछा कि उसकी तबीयत तो ठीक है। उसने सिर हिलाया और अचानक दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक लिया,"मेरे पिता को अभी अभी कत्ल कर दिया गया है।"

हम उसे अपने कमरे में लेकर गये और उसे थोड़ी ब्रांडी पिलायी। तब उसने बताया कि क्या हुआ था। जल सेना के छ: कैडेटों ने प्रधान मंत्री के निवास के बाहर तैनात सुरक्षा गार्डों को मार डाला था और उनके निजी आवास में घुस गये थे। वहां पर प्रधान मंत्री अपनी और पुत्री के साथ थे। बाकी कहानी उसे उसकी मां ने बतायी थी: हमलावर बीस मिनट तक पिता के सिर पर बंदूक ताने खड़े रहे जबकि पिता उनसे बहस करके उन्हें समझाने बुझाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। बिना कुछ बोले वे गोली मारने ही वाले थे लेकिन पिता ने उसने अनुरोध किया कि वे उन्हें उनके परिवार के सामने न मारें। इसलिए उन लोगों ने पिता को इस बात की इजाज़त दे दी कि वे अपनी पत्नी और पुत्री से विदा ले लें। शांत वे उठे और हत्यारों को दूसरे कमरे में ले गये। वहां उन्होंने हत्यारों को फिर से समझाने की कोशिश की होगी क्योंकि परिवार जान निकाल देने वाले सस्पेंस में बैठा रहा और तभी उन लोगों ने गोलियां चलने की आवाज़ सुनी और इस तरह से केन के पिता को मार डाला गया।

कत्ल उस समय हुआ जब उनका बेटा कुश्ती मैच देख रहा था। अगर वह हमारे साथ न होता तो उसे भी अपने पिता के साथ मार दिया जाता, कहा था उसने।

मैं उसके साथ उसके घर तक गया और उस कमरे को देखा जहां दो घंटे पहले उसके पिता को मार दिया गया था। कालीन पर अभी भी गीले खून के चहबच्चे थे। वहां पर कैमरामैन और रिपोर्टर बड़ी संख्या में मौजूद थे लेकिन उन्होंने इतनी शालीनता दिखायी कि कोई तस्वीर नहीं ली। अलबत्ता, उन्होंने मुझ पर ज़ोर डाला कि मैं बयान दूं।

मैं सिर्फ यही कह पाया कि ये परिवार और देश के लिए हिला देने वाली त्रासदी है।

जिस दिन ये हादसा हुआ, मुझे प्रधान मंत्री से एक आधिकारिक स्वागत समारोह में मिलना था और बेशक इस आयोजन को कैंसिल कर दिया गया था।

सिडनी ने घोषित कर दिया कि इस कत्ल की कड़ियां ज़रूर एक बड़े रहस्य से जुड़ी हुई हैं और कि इसमें हम किसी न किसी रूप में जुड़े हुए हैं। उसने कहा,"ये एक संयोग से ज्यादा ही है कि छ: कातिलों ने प्रधान मंत्री को मारा और छ: ही आदमी उस रात रेस्तरां में आये थे जब हम खाना खा रहे थे।"

ये तभी हुआ कि बहुत अरसे बाद ह्यूज ब्यास ने बेहद रोचक और सूचनाप्रद पुस्तक गवर्नमेंट बाय एसेसिनेशन लिखी तो सारे रहस्य से पर्दा उठा। इसे अल्फ्रेड ए नॉप्फ ने छापा था। जिसमें जहां तक मेरा सवाल था, पूरे रहस्य पर से पर्दा उठा दिया था। ऐसा लगता है कि ब्लैक ड्रैगन नाम की एक सोसाइटी उस समय सक्रिय थी और उन्होंने ही ये मांग रखी थी कि मैं महल के सामने सिर झुकाऊं। जिन लोगों पर प्रधान मंत्री का हत्या के लिए मुकदमा चलाया गया था, मैं यहां पर उसका लेखा जोखा प्रस्तुत कर रहा हूं।

लेफ्टीनेंट सेशी कोगा, प्लॉट के रिंग लीडर ने बाद में अदालत को बताया था कि षडयंत्र कारियों ने हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के भवन को उड़ा कर मार्शल लॉ लाने की योजना बनायी थी। आम आदमी जो आसानी से बिना पहचान में आये वहां से गुज़र सकते थे, बम फैंकते और युवा अधिकारी बाहर इंतज़ार करते रहते और जिस वक्त सदस्य बाहर आते, उन्हें मार डालते। दूसरी योजना, बेहद क्रूर थी अगर पूरी की जाती, जैसा कि अदालत को बताया गया था। ये प्रस्ताव था उस वक्त जापान की यात्रा पर आ रहे चार्ली चैप्लिन की हत्या का।

प्रधान मंत्री ने चार्ली को चाय पर बुलाया था और युवा अधिकारियों ने योजना के बारे में सोचा था कि जब पार्टी चल रही हो तो सरकारी निवास पर हमला कर दिया जाये।

न्यायाधीश: चार्ली को मारने का क्या महत्त्व होता?

कोगा: चार्ली अमेरिका में एक लोकप्रिय व्यक्तित्व है और पूंजीवादी वर्ग का चहेता है। हम ये मानकर चल रहे थे कि चार्ली को मारने से अमेरिका के साथ जंग छिड़ जायेगी और इस तरह से हम एक तीर से दो शिकार कर लेते।

न्यायाधीश: लेकिन तब आपने इतनी शानदार योजना को छोड़ क्यों दिया?

कोगा: क्योंकि बाद में अखबारों ने खबर दी थी कि होने वाली स्वागत पार्टी का कुछ पक्का नहीं था।

न्यायाधीश: प्रधान मंत्री के राजकीय निवास पर हमला करने की योजना बनाने के पीछे क्या मंशा थी?

कोगा: इससे प्रीमियर का तख्ता पलट दिया जाता। वे राजनीतिक पार्टी के सर्वे सर्वा भी थे। दूसरे शब्दों में, सरकार के केन्द्र को ही नेस्तनाबूद करना था।

न्यायाधीश: क्या आप प्रीमियर को मारना चाहते थे?

कोगा: हां, मैं मारना चाहता था लेकिन मेरी उनसे कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी।

उसी कैदी ने बताया था कि उन्होंने चार्ली को मारने की योजना इसलिए छोड़ दी थी क्योंकि इस बात पर विवाद हो गया था कि क्या इस बात में दम है कि मात्र इस आधार पर एक कामेडियन को मार देना कि उससे अमेरिका से लड़ाई छिड़ जायेगी और मिलिटरी की ताकत बढ़ जायेगी।

मैं ये कल्पना कर सकता हूं कि हत्यारों ने अपनी योजना पूरी करके चार्ली को मार दिया होता और बाद में उन्हें पता चलता कि मैं अमेरिकी नहीं, अंग्रेज़ हूं तो वे कहते, "ओह, सो सॉरी।"

अलबत्ता, जापान में सब कुछ रहस्यमय और अप्रिय ही नहीं था, वहां पर मैंने अपना ज्यादातर वक्त अच्छा ही गुज़ारा। काबुकी थियेटर देखना अपने आप में एक सुखद अनुभव था और ये मेरी उम्मीदों से कहीं अधिक था। काबुकी मात्र औपचारिक थियेटर ही नहीं है, बल्कि ये आधुनिकता और पुरातनता का मिश्रण है। वहां पर किसी अभिनेता की दक्षता ही प्रमुख होती है और नाटक तो मात्र वह सामग्री है जिसके साथ वह प्रदर्शन करता है। हमारे पश्चिमी मानकों के अनुसार, उनकी तकनीक की तीव्र सीमाएं हैं। जहां पर यथार्थवाद को प्रभावी ढंग से प्राप्त नहीं किया जा सकता, वहां पर उसकी उपेक्षा कर दी जाती है। उदाहरण के लिए, हम पश्चिमी वासी बिना अमूर्त के स्पर्श के तलवारों की लड़ाई दिखा ही नहीं सकते क्योंकि भले ही लड़ाई कितनी भी भीषण न हो, सामने वाले को सतर्कता का थोड़ा बहुत पता चल ही जाता है। दूसरी तरफ जापानी यथार्थवाद का कोई दिखावा नहीं करते। वे एक दूसरे से थोड़ी दूरी बनाये रखते हुए लड़ते हैं और अपनी तलवारों से तेज धार से काट डालने वाली मुद्राएं दिखाते हैं मानो वह सामने वाले का सिर ही काट डालेगा और सामने वाला अपने विरोधी के पैर काट डालने का प्रयास करता लगता है। दोनों ही अपने अपने दायरे में कूदते हैं, नृत्य करते हैं, और एक पांव पर नृत्य करते हैं। ये सब बैले की तरह होता है। ये संघर्ष प्रभाववादी होता है और इसका समापन विजेता और पराभूत में होता है। इस प्रभाववाद में से अभिनेता मृत्यु वाले दृश्य के दौरान यथार्थवाद में घुल मिल जाते हैं।

विडंबना उनके अधिकांश नाटकों की थीम होती है। मैंने उनका एक नाटक देखा जिसकी तुलना रोमियो और जूलिएट से की जा सकती है। इस नाटक में दो युवा प्रेमी होते हैं जिनके विवाह का विरोध उनके माता पिता कर रहे हैं। इसे एक घूमते हुए मंच पर अभिनीत किया गया था। इस तरह के मंच को जापानी लोग तीन सौ बरस से उपयोग में ला रहे हैं।

पहला दृश्य वैवाहिक कक्ष के भीतर का था जहां अभी अभी परिणय सूत्र में बंधे प्रेमी युगल को दिखाया जाता है। अंक के दौरान दूत दोनों के माता पिता को प्रेमी युगल के पक्ष में समझाने बुझाने का प्रयास करते हैं और उम्मीद करते हैं कि शायद समझौता हो जाये। लेकिन परम्परा जो है, बहुत गहरी है। माता पिता जिद पर अड़े हुए हैं। इसलिए प्रेमी युगल तय करता है कि वे जापानी पद्धति से आत्महत्या कर लेंगे। दोनों ये फैसला करते हैं कि फूलों की कलियों की कौन सी सेज पर कौन मरेगा। दूल्हा दुल्हन को पहले मारेगा और फिर खुद को तलवार की धार पर गिरा देगा।

जिस वक्त प्रेमी प्रेमिका मृत्यु का वरण करने के लिए फूलों की सेज बिछा रहे होते हैं तो उस वक्त वे जो जुमले बोलते हैं, उनसे दर्शकों के बीच हँसी फैल गयी। मेरे दुभाषिए ने बताया कि इस तरह की पंक्तियों कि इस तरह की प्यार भरी रात के बाद जीना हतप्रभ करने वाला होगा, के व्यंग्य पर लोग हँसे थे। दस मिनट तक वे इस तरह की व्यंग्यपूर्ण शैली में अपनी अपनी राम कहानी कहते रहते हैं। इसके बाद दुल्हन अपनी फूलों की सेज पर घुटनों के बल झुक जाती है। ये सेज दूल्हे की सेज से ज़रा सी दूरी पर है। वह दुल्हन के गले पर से कपड़ा हटाता है और जैसे ही दूल्हा तलवार निकालता है और धीरे धीरे दुल्हन की तरफ बढ़ता है, मंच घूमना शुरू हो जाता है और उस बिंदु पर आने से पहले कि दूल्हे की तलवार दुल्हन के गले को छूए, दृश्य दर्शकों के सामने से चला जाता है और अब घर के बाहर का दृश्य दिखाया जाता है। चारों तरफ चांदनी फैली हुई है। दर्शक सांस रोके बैठे रहते हैं कि पता नहीं आगे क्या होगा। एक दम सन्नाटा छा जाता है। आखिरकार आवाज़ें नजदीक आनी शुरू हो जाती हैं। ये लोग मृतक प्रेमी युगल के मित्र लोग हैं जो ये खुशखबरी ला रहे हैं कि उनके माता पिताओं ने उन्हें माफ कर दिया है। अब उनमें ये बहस छिड़ गयी है कि प्रेमी युगल को ये खुशखबरी कौन देगा। इसके बाद वे आवाज़ें देना शुरू कर देते हैं और कोई उत्तर न पा कर दरवाजा पीटने लगते हैं।

"उन्हें डिस्टर्ब मत करो," उनमें से एक कहता है,"या तो वे सो रहे हैं या फिर बहुत व्यस्त हैं।" इसलिए वे अपने अपने रास्ते चले जाते हैं। वे अभी भी आवाजें दे रहे हैं और टिक टौक, बक्से जैसी आवाजें कर रहे हैं। ये इस बात का इशारा है कि नाटक समाप्त हो रहा है। और मंच पर धीरे धीरे परदा नीचे आने लगता है।

ये प्रश्न बहस मांगता है कि जापान कब तक पश्चिमी सभ्यता की बुराइयों से बच पायेगा। ज़िंदगी के उन साधारण पलों के लिए भी जापान के लोगों में सराहना उनकी सभ्यता का एक ऐसा अभिन्न अंग है। चांदनी की लकीर को देर तक देखते रहना, चेरी को खिलते देखने के लिए जाने के लिए तीर्थ की तरह यात्रा, चाय के आयोजन का शांत ध्यान, लगता है ये सारी चीजें पश्चिमी हवा के झोंके के साथ न जाने कहां उड़ जायेंगी।

मेरी छुट्टी समाप्त होने वाली थी और हालांकि मैंने इसके कई पहलुओं का भरपूर आनंद उठाया था, कुछ बातें हताश करने वाली भी थीं। मैंने खाने को बरबाद होते देखा, सामान के ढेर ऊपर उठते देखे लेकिन लोगों को उनके आसपास भूख से मंडराते देखा। वहां लाखों लोग बेरोज़गार थे और उनकी सेवाएं बेकार जा रही थीं।

दरअसल मैंने एक आदमी को डिनर के दौरान ये कहते सुन लिया था कि जब तक हमें और सोना नहीं मिल जाता, हालात सुधरने वाले नहीं हैं। जब मैंने इस समस्या की बात की कि मशीनीकरण से हाथ के काम खत्म होते जा रहे हैं तो किसी ने कहा कि समस्या का समाधान अपने आप ही निकल आयेगा क्योंकि अंतत मजदूरी इतनी सस्ती हो जायेगी कि वह मशीनीकरण का मुकाबला करने की हालत में आ जायेगी। ये हताशा निश्चय ही मारक थी।

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चौबीस

जब मैं बेवरली हिल्स पर घर पहुंचा तो मैं बैठक वाले कमरे के बीचों बीच खड़ा हो गया। ये ढलती दोपहर का वक्त था। लॉन के आर पार लम्बी छायाएं तथा कमरे में सुनहरी चमकती धूप की पट्टियां पसरी पड़ी थीं। ये सब कितना शांत दिख रहा था। इसे देख कर मैं रो सकता था। मैं पूरे आठ महीने तक बाहर रहा था और फिर भी ये सोच रहा था कि क्या मैं वापिस आ कर खुश हूं। मैं भ्रम में था और मेरे सामने कोई योजना नहीं थी। मैं बेचैन था और मुझे पता था मेरे सामने भीषण अकेलापन है।

मुझे यूरोप में हल्की हल्की सी उम्मीद थी कि किसी से मेरी मुलाकात होगी जो मेरी ज़िंदगी को दिशा दे सके। लेकिन कुछ भी तो नहीं हुआ था। मैं जितनी भी महिलाओं से मिला था, कोई भी उस श्रेणी में नहीं आती थी और जो उस किस्म की श्रेणी में आती भी थीं, वे ही इच्छुक नहीं थीं। और अब एक बार फिर वापिस कैलिफोर्निया। मैं कब्र में लौट आया था। डगलस और मैरी अलग हो चुके थे इसलिए अब दुनिया मेरे लिए बची ही नहीं थी।

उस शाम मुझे अकेले ही डिनर लेना था। ये एक ऐसा काम था जिसे मैंने इतने बड़े घर में कभी भी पसंद नहीं किया था। इसलिए मैंने डिनर कैंसिल किया, गाड़ी चला कर हॉलीवुड गया, कार पार्क की और हॉलीवुड की गलियों में चहलकदमी करने लगा। मुझे ऐसा लगा कि मैं यहां से कभी गया ही नहीं था। वहां पर वही एक मंजिला दुकानों की पांत थी, पुराने नज़र आते आर्मी और नेवी स्टोर्स थे और और घटी दरों वाली वूलवर्थ और क्रेज़ नाम की दवा की दुकानें थीं। ये सब बेहद हताश करने वाला और बिना किसी रुचि सम्पन्नता वाला माहौल था। हॉलीवुड अभी भी शोर शराबे वाले शहर में तब्दील नहीं हुआ था।

जिस वक्त मैं बेल्डेवियर में टहल रहा था, मैं सोचने लगा कि अब मुझे रिटायर हो जाना चाहिये और सब कुछ बेच बाच कर चीन की तरफ निकल जाना चाहिये। अब हॉलीवुड में बने रहने का कोई लालच नहीं रहा था। इसमें कोई शक नहीं था कि मूक फिल्मों के दिन लद चुके थे और मैं सवाक फिल्मों के साथ संषर्घ करने जैसा महसूस नहीं कर रहा था। इसके अलावा, अब मेरी पूछ नहीं रही थी। मैंने कोशिश की कि किसी ऐसे अंतरंग व्यक्ति के बारे में सोचूं जिसे मैं फोन कर सकूं और बिना परेशान हुए डिनर के लिए आमंत्रित कर सकूं। लेकिन ऐसा कोई भी नहीं था। जब मैं घर लौटा तो रीव्ज़, मेरे मैनेजर यह बताने के लिए मिलने के लिए आये थे कि सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है। लेकिन और कोई नहीं आया था।

अब ये ठंडे पानी में कूदने जैसा था। स्टूडियो में अपना चेहरा दिखाओ और फालतू के कामों में खुद को उलझाओ। अलबत्ता, मुझे ये जान कर खुशी हुई कि सिटी लाइट्स बहुत अच्छा कारोबार कर रही थी। हम अब तक 3,000,000 डॉलर (शुद्ध) कमा चुके थे और अभी भी हर महीने 1,00,000 डॉलर के चेक आ रहे थे। रीव्ज़ ने सुझाव दिया कि मैं हॉलीवुड बैंक में जाऊं और नये मैनेजर से मिल लूं, सिर्फ जान पहचान के लिए, लेकिन मैं पिछले सात बरस से बैंक नहीं गया था, मैंने मना कर दिया।

लुइस फर्डिनाड, कैसर का पोता स्टूडियो में मिलने के लिए आया और बाद में हमने घर पर एक साथ खाना खाया। हममें बहुत मज़ेदार बातचीत हुई। राजकुमार बहुत ही आकर्षक और बुद्धिमान लड़का था और वह पहले विश्व युद्ध के बाद जर्मन क्रांति के बारे में बता रहा था कि ये एक कॉमिक ओपेरा की तरह है।"मेरे दादा हॉलैंड गये थे," बताया उसने, "लेकिन हमारे कुछ रिश्तेदार पॉट्सडम के महल में ही रह गये थे। वे इतने डरे हुए थे कि वहां से निकले ही नहीं। और आखिरकार जब क्रांतिकारी महल में घुसे तो उन्होंने हमारे रिश्तेदारों को ये पूछते हुए एक नोट भेजा कि क्या उनका स्वागत किया जायेगा और उस मुलाकात में ये आश्वासन दिया कि हमारे रिश्तेदारों की रक्षा की जायेगी और कि अगर उन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो उन्हें केवल समाजवादी मुख्यालय में फोन भर करना होगा। हमारे रिश्तेदार अपने कानों पर विश्वास ही नहीं कर सके। लेकिन जब बाद में सरकार ने उनकी सम्पत्तियों के निपटान के बारे में उसने सम्पर्क साधा तो मेरे रिश्तेदार नखरे करने लगे तथा और ज्यादा मांगने लगे।" अपनी बात को खत्म करते हुए उसने बताया,"रूसी क्रांति एक त्रासदी थी और हमारी क्रांति एक लतीफा!"

स्टेट्स में मेरे लौटने के बाद से कुछ बहुत ही अचरज भरी बातें हो रही थीं। आर्थिक रूप से स्थितियां बदल रही थीं, बेशक बहुत तेज़ी से लेकिन इससे अमेरिकी लोगों की महानता का परिचय मिल रहा था। हालात बद से बदतर होते चले गये थे। कुछ स्टेट तो यहां तक आगे बढ़ गये थे कि उन्होंने लकड़ी पर अमानती मुद्रा छापनी शुरू कर दी थी ताकि बिना बिका हुआ माल बेचा जा सके। इस बीच हूवर महाशय मुंह लटकाये बैठे और बिसूरते रहे क्योंकि उनकी ये आर्थिक नीति बुरी तरह से असफल हो गयी थी कि धन को ऊपर वाले वर्गों के बीच वितरित करो तो ये नीचे वाले आम आदमी के वर्गों तक भी पहुंच जायेगा और इसी सब त्रासदी में वे जनाब अपनी चुनावी मुहिम में हवा में मुट्ठियां भांजते फिर रहे थे कि अगर फ्रैंकलिन रूज़वेल्ट राष्ट्रपति के पद पर चुन लिये गये तो अमेरिकी प्रणाली, जिसे उस वक्त न गिरने वाली प्रणाली समझा जा रहा था, ताश के पत्तों की तरह ढह जायेगी।

अलबत्ता, फ्रैंकलिन डी रुज़वेल्ट व्हाइट हाउस में पहुंचे और देश रसातल में नहीं गया। उनकी फारगाटन मैन स्‍पीच ने अमेरिका को उसकी चिड़चिड़ाहट भरी ऊंघ से उठाया और अमेरिकी इतिहास में सर्वाधिक प्रेरणास्पद युग में ला स्थापित किया। मैंने उनका भाषण सैम गोल्डविन के बीच हाउस में रेडियो पर सुना था। हम कई लोग आस पास बैठे हुए थे। इनमें कोलम्बिया ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम के बिल पैले, जो शेंक, फ्रेड एस्टेयर, उनकी पत्नी और अन्य मेहमान थे। "हमें जिस अकेली चीज़ से डरना है वह डर ही है।" ये शब्द फिज़ां में सूर्य की किरणों की तरह कौंधे। लेकिन मैं संदेह कर रहा था जैसे कि सभी कर रहे थे। मैंने कहा,"ये इतनी अच्छी बात है कि सच हो ही नहीं सकती।"

रूज़वेल्ट ने अभी अपना पद भार संभाला ही था कि उन्होंने अपने शब्दों को अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया। उन्होंने दस दिन के लिए बैंकों की छुट्टी घोषित कर दी ताकि और बैंक धराशायी न हों। ये एक ऐसा काल था जिसमें अमेरिका अपने सर्वोत्तम रूप में था। दस दिन तक दुकानें और सभी स्टोर्स उधार पर धंधा करते रहे। यहां तक कि सिनेमा के टिकट भी उधार मिल रहे थे। और ऐसे ही वक्त में रूज़वेल्ट और उनकी 'मेधावी मंडली' ने 'नयी डील' तैयार कर ली। जनता ने बहुत शानदार तरीके से काम किया।

हर तरह की इमर्जेंसी के लिए कानून बना दिये गये। समय से पहले बंदी के नाम पर जो थोक डकैती हो रही थी, उसे रोकने के लिए फार्म क्रेडिट स्थापित करना, बड़ी बड़ी सार्वजनिक परियोजनाओं को धन उपलब्ध कराना, राष्ट्रीय वसूली अधिनियम लागू करना, न्यूनतम मज़दूरी बढ़ाना, काम के घंटे कम करके नये काम मुहैय्या कराना, और मज़दूर यूनियनों को प्रोत्साहित करना जैसे क्रांतिकारी कदम उठाये गये। 'आप बहुत आगे बढ़ रहे हैं: ये समाजवाद है,' विपक्ष वाले चिल्लाये। ये समाजवाद था या नहीं, लेकिन इसने पूंजीवाद को पूरी तरह से धराशाई होने से रोक लिया। इसने युनाइटेड स्टेट्स के इतिहास में कई सर्वोत्तम सुधारों के लिए भी ज़मीन तैयार की। ये देखना बेहद प्रेरणादायक था कि किस तरह से अमेरिकी नागरिकों ने काम करने वाली सरकार का साथ दिया।

हॉलीवुड की ज़िंदगी में भी बदलाव आ रहे थे। मूक फिल्मों के अधिकांश कलाकार गायब हो चुके थे। हम ही कुछ लोग बच रहे थे। अब चूंकि सवाक फिल्मों ने कब्जा कर लिया था, हॉलीवुड का आकर्षण और अपनापन जा चुके थे। रातों रात ये ठंडा और गम्भीर उद्योग बन चुका था। साउंड टैक्नीशियन स्टूडियो को नया रूप दे रहे थे और बड़े बड़े साउंड उपकरण बना रहे थे। कमरे के आकार के कैमरे महादानवों की तरह मंच पर जगह घेरे रहते। विशालकाय रेडियो उपकरण लगाये जा रहे थे जिनमें सैकड़ों की संख्या में बिजली के तार जुड़े होते। इन पर काम करने वाले आदमी अपने कानों में ईयर फोन लगाये, मंगल गृह से आये लड़ाकुओं की तरह बैठे रहते और अभिनेता अभिनय करते। माइक्रोफोन उनके सिर के ऊपर मछली मारने की रॉड की तरह लटक रहे होते। ये सब बेहद जटिल था और इसे देखना हताश करता था। इस सारे ताम झाम के बीच कोई सृजनात्मक रूप से काम ही कैसे कर सकता था। मुझे इस सारे विचार से ही नफरत थी। तभी किसी सयाने को पता चला कि इस सारे ताम झाम को इधर उधर ले जाने लायक बनाया जा सकता है, कैमरों को और अधिक चलित बनाया जा सकता है और सारे उपकरणों को यथोचित राशि पर किराये पर भी दिया जा सकता है। इन सारे सुधारों के बावज़ूद काम दोबारा शुरू करने में मुझे ज़रा सी भी प्रेरणा नहीं मिल रही थी।

मैं अभी भी इसी बात पर विचार कर रहा था कि अपना सारा काम समेटूं और हांग कांग या चीन की तरफ कूच कर जाऊं जहां पर मैं आराम से रह सकता हूं और सवाक फिल्मों को भूल सकता हूं बजाये यहां हॉलीवुड में सड़ते रहने के।

तीन हफ्ते तक मैं ऊभ चूभ में गोते खाता रहा। तभी जो शेंक ने टेलीफोन करके बताया कि मैं अपना वीक एंड उनके याच के लिए बचा कर रखूं। ये एक सौ अड़तीस फुट लम्बी खूबसूरत सेलिंग नाव थी और इस पर आराम से चौदह लोग रह सकते थे। जो अक्सर अवालोन के पास कैटेलिना द्वीप के आसपास ही घूमते रहते। उनके मेहमानों में शायद ही कोई उत्तेजना होती। आम तौर पर पोकर खिलाड़ी ही होते और पोकर में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन वहां पर दिल बहलाने की दूसरी चीज़ें होतीं। जो अक्सर नाव पर खूबसूरत लड़कियों का जमावड़ा जुटा लेते और चूंकि उन दिनों मैं बेहद अकेला था, मैंने सोचा शायद उम्मीद की कोई क्षीण रेखा अपनी किस्मत में भी हो।

और सचमुच हुआ भी यही। मैं पॉलेट गोदार्द से मिला। वह हंसमुख लड़की थी और शाम के वक्त उसने मुझे बताया कि वह अपने भूतपूर्व पति से अलगाव के हर्जाने के रूप में मिले धन में से 50,000 डॉलर फिल्म कारोबार में निवेश करने जा रही है। वह अपने साथ नाव पर सारे कागज़ात लेती आयी थी जिन पर बस, हस्ताक्षर किये जाने थे। मैंने उसे इस काम में हाथ डालने से रोकने के लिए एक तरह से उसका गला ही पक़ड़ लिया था। जिस कम्पनी में वह पैसा डालने जा रही थी वह जाहिर तौर पर हॉलीवुड की घुमंतु कम्पनी थी।

मैंने उसे बताया कि मैं फिल्म लाइन से इसकी शुरुआत से ही जुड़ा हुआ हूं और मेरा जो ज्ञान है फिल्म लाइन का उसे देखते हुए मैं अपनी फिल्म में भी एक पैसा तक न लगाऊं। उसमें भी जोखिम है। मैंने उसे तर्क दिया कि अगर हर्स्ट जैसे व्यक्ति, जिनके पास साहित्यिक स्टाफ था और जिनकी पहुंच अमेरिका की बेहतरीन कहानियों तक थी, ने फिल्मो में निवेश करके अपने 7,000,000 डॉलर गवां दिये तो वे किस खेत की मूली हैं। आखिरकार मैं उसे इसमें हाथ डालने से रोकने में कामयाब हो गया। ये हमारी दोस्ती की शुरुआत थी।

पॉलेट और मेरे बीच संबंध का आधार दोनों का अकेलापन था। वह अभी अभी ही न्यू यार्क से आयी थी और किसी को भी नहीं जानती थी। हम दोनों के लिए ये मामला रॉबिनसन क्रूसो द्वारा फ्राइडे को खोजने जैसा था। सप्ताह के दौरान तो करने के लिए बहुत कुछ होता, क्योंकि पॉलेट सैम गोल्डविन की फिल्म में काम कर रही थी और मैं अपना कारोबार देखता। लेकिन इतवार का दिन काटने को दौड़ता। हताशा में हम लम्बी ड्राइव पर निकल जाते। सच कहूं तो हमने कैलिफोर्निया की पूरी की पूरी तटीय दूरी ही खंगाल डाली थी। सबसे ज्यादा रोमांचक अनुभव होता सैन पैड्रो हार्बर जाना और वहां पर मौज मस्ती वाली नावों को देखना। एक नाव बिक्री के लिए खड़ी थी। पचपन फुट लम्बी मोटर क्रूजर जिसमें तीन राजसी कमरे, एक गैली और एक बेहद आकर्षक व्हील हाउस बना हुआ था। ये उस किस्म की बोट थी जिसकी चाहत मेरे मन में थी।

'अगर आपके पास इस तरह की कोई शै होती,' पॉलेट ने कहा,' हम रविवारों के दिन खूब मौज मज़ा कर सकते और कैटेलिना जा सकते।' इसलिए मैंने उसे खरीदने के बारे में पूछताछ करनी शुरू की। इसके मालिक कोई मिस्टर मिशेल थे जो मोशन पिक्चर कैमरे बनाया करते थे। उन्होंने हमें नाव पर घुमाया फिराया और अच्छी तरह से सब कुछ दिखाया। एक हफ्ते के भीतर ही हम तीन बार उस नाव को देखने के लिए पहुंच गये। यहां तक कि वहां पर हमारी मौजूदगी परेशानी का कारण बनने लगी। अलबत्ता, मिस्टर मिशेल ने कहा कि जब तक ये बिक नहीं जाती, हम हमेशा नाव पर आ सकते हैं और उसे देख सकते हैं।

पॉलेट की जानकारी के बिना मैंने नाव खरीद ली और उसे कैटेलिना की यात्रा के लिए ठीक कर लिया। मैं नाव पर अपने खुद के रसोइया और कीस्टोन के एक भूतपूर्व सिपाही एंडी एंडरसन को ले गया। एंडी लाइसेंस शुदा कैप्टन था। अगले रविवार सब कुछ तैयार था। पॉलेट और मैं अल सुबह ही निकल पड़े। उसने यही सोचा कि हम लम्बी ड्राइव के लिए निकल रहे हैं। वह इस बात पर राजी हो गयी थी कि हम सिर्फ एक कप कॉफी ले कर निकलेंगे और बाद में कहीं नाश्ते के लिए चले चलेंगे। तब उसने पाया कि हम तो सेन पैड्रो की तरफ जा रहे हैं। 'ये बात तय रही कि आप उस नाव को देखने के लिए दोबारा नहीं जा रहे हैं?'

'मैं तय करने से पहले एक बार फिर उसे देख लेना चाहूंगा!' मैंने जवाब दिया।

'तब आप अकेले ही जाना अंदर। बहुत खराब लगता है।' उसने अफसोस के साथ कहा.'मैं कार में ही बैठी रहूंगी और आपका इंतजार करूंगी।'

जब हम नाव की लैंडिंग पर रुके तो वह किसी भी कीमत पर कार से बाहर निकलने को राजी ही न हो।

'नहीं, आपको अकेले ही जाना होगा। लेकिन जल्दी करो, हमने अब तक नाश्ता भी नहीं किया है।'

दो ही मिनट के भीतर मैं कार के पास आया और पॉलेट को मनाने की कोशिश की, उसकी इच्छा के खिलाफ कि वह नाव तक आये तो सही। केबिन को गुलाबी और नीले मेजपोश से बहुत अच्छी तरह से सजाया गया था और उसके साथ मेल खाते गुलाबी और नीले चीनी परदे थे। गैली से बैकन और अंडे तले जाने की मस्त कर देने वाली महक आ रही थी।

'कैप्टन ने मेहरबानी करके हमें नाश्ते के लिए आमंत्रित किया है।' मैंने कहा.'हम बेकन और व्हीटकेक, टोस्ट और कॉफी लेंगे।' पॉलेट ने गैली में झांका तो उसने हमारे रसोइये को पहचान लिया। 'दरअसल,' मैंने कहा,'आप चाहती थीं न कि हम रविवारों को कहीं जायें तो हम लोग नाश्ते के बाद कैटेलिना तैराकी के लिए जा रहे हैं।' तब मैंने उसे बताया कि मैंने नाव खरीद ली है।

उसकी प्रतिक्रिया बहुत ही मज़ेदार थी। 'एक मिनट रुको,' कहा उसने। वह उठी, नाव से बाहर आयी और बंदरगाह पर पचास गज की दौड़ लगायी, अपने हाथों से अपना चेहरा ढक लिया।

'हेय आओ, नाश्ता करो इधर,' मैं चिल्लाया।

जब वह नाव पर वापिस आयी तो बोली,'इस झटके से उबरने के लिए मुझे ये सब करना पड़ा।'

तब फ्रेडी जापानी कुक खींसे निपोरता हुआ नाश्ता ले कर आया। इसके बाद हमने इंजिन गर्म किया, नाव को बंदरगाह की तरफ ले गये और फिर वहां से बाइस मील परे कैटेलिना की तरफ प्रशांत महासागर में उतर गये। वहां हम नौ दिन तक लंगर डाले पड़े रहे।

काम करने की अभी भी कोई योजना सामने नहीं थीं। पॉलेट के साथ मैं आलतू फालतू हरकतें करता रहता। रेस मीटिगों में भाग लेता, नाइट्स स्पाट्स में और सार्वजनिक आयोजनों में घूमता फिरता रहता। कुछ भी ऐसा करता जिससे वक्त गुज़र जाये। मैं न तो अकेले रहना चाहता था और न ही सोचना ही चाहता था। लेकिन इन सारी मौज मस्तियों में भीतर ही कहीं एक भावना काम कर रही थी। अपराध बोध का लगातार अहसास: मैं यहां क्या कर रहा हूं? मैं अपने काम पर क्यों नहीं हूं?

इसके अलावा, मैं एक युवा आलोचक की टिप्पणी से भी हताशा से घिरा हुआ था। उसने कहा था कि सिटी लाइट्स बहुत अच्छी फिल्म है लेकिन इसे संवेदनाओं की सीमा रेखा पर बनाया गया है और कि भविष्य में मुझे चाहिये कि मैं अधिक यथार्थवादी फिल्में बनाने के बारे में सोचूं। मैंने अपने आपको उससे सहमत पाया। अगर उस समय मुझे वह सब मालूम होता जो कि अब है तो मैंने उसे बताया होता कि ये जो तथाकथित यथार्थवाद होता है, अक्सर नकली, बनावटी, नीरस और सुस्त होता है और किसी फिल्म में यथार्थवाद इतना मायने नहीं रखता जितना ये कि इसमें कल्पना से क्या क्या किया जा सकता है।

ये सोचने की बात है कि किस तरह से एक संयोग से और ऐसे वक्त में जब मैं इसके बारे में सोच भी नहीं सकता था, मैं अचानक एक और मूक फिल्म बनाने के लिए प्रेरित हुआ। पॉलेट और मैं मैक्सिको में ट्रिजुआना रेसकोर्स में गये जहां पर कैंटकी या ऐसा ही कुछ नाम था उसका, विजेता को रजत कप से नवाज़ा जाना था। वहां पर पॉलेट से पूछा गया कि क्या वह विजेता जॉकी को पदक प्रदान करेगी और दक्षिणी अमेरिका में बोले जाने वाले उच्चारण में कुछ शब्द बोलेगी। उसे प्रेरित करने में थोड़ा सा ही वक्त लगा। मैं उसे लाउडस्पीकर पर सुन कर हैरान रह गया। हालांकि वह ब्रुकलिन से है, उसने किसी केंटकी सोसाइटी लड़की की बहुत ही बढ़िया नकल करके दिखायी। इससे मैं इस बात का कायल हो गया कि वह अभिनय कर सकती है।

इस तरह से मेरी प्रेरणा को सोता फूटा। पॉलेट मुझे कुछ हद तक सड़कों पर आवारा घूमने वाली लड़की की तरह लगी। मेरे लिए ये बहुत ही बढ़िया मौका होगा कि इस बात को परदे पर दिखाऊं। मैं कल्पना करने लगा कि हम पुलिस की भीड़ भरी गश्त करने वाली गाड़ी में मिलते हैं, ट्रैम्प और सड़क छाप लड़की। चूंकि ट्रैम्प बहुत उदार और बहादुर है, उसे अपनी सीट दे देता है। ये वो आधार था जिस पर मैं अपनी कहानी का ढांचा खड़ा करता और हास्य के पल पैदा करता।

तब मुझे अपना एक साक्षात्कार याद आया जो मैंने न्यू यार्क में एक होशियार युवा रिपोर्टर को दिया था। ये सुनने पर कि मैं डैट्रियट जा रहा हूं, उसने मुझे वहां पर फैक्टरी बेल्ट सिस्टम के बारे में बताया था। ये बड़े उद्योगों का एक भयावह गोरख धंधा था जो हट्टे कट्टे किसानों को उनके खेतों से लालच दे कर लाता था और काम में झोंक देता था। चार या पांच बरस तक बेल्ट सिस्टम में काम करने के बाद ये लोग मानसिक रूप से विक्षिप्त हो जाते थे।

यही बातचीत थी जिसने मुझे माडर्न टाइम्स बनाने की प्रेरणा दी। मैंने समय बचाने की तरकीब के रूप में एक फीडिंग मशीन बनायी ताकि कामगार लंच टाइम में भी काम करते रह सकें। फैक्टरी के दृश्यों की परिणति ही इस बात में होती है कि ट्रैम्प का दिमाग चल जाता है। ये प्लाट घटनाओं के स्वाभाविक रूप से घटते चले जाने के आधार पर विकसित किया गया था। ठीक हो जाने के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है और वहां पर एक सड़क छाप छोकरी से मिलता है। उसे भी रोटी चुराने के इल्जाम में गिरफ्तार किया गया है। वे अपराधियों से भरी पुलिस की एक गश्त गाड़ी में मिलते हैं। इसके बाद कहानी इस तरह से चलती है कि दो नामालूम से प्राणी आधुनिक समय, माडर्न टाइम्स में जीवन यापन करने की कोशिश करते हैं। उन्हें मंदी का, हड़तालों का, दंगे का और बेरोज़गारी का सामना करना पड़ता है। पॉलेट लगभग रो ही पड़ी थी जब मैंने उसे गंदी दिखने के लिए उसके चेहरे पर राख पोत दी थी। 'ये राख तुम्हारे ब्यूटी स्पाट हैं,' मैंने उसे समझाया।

किसी अभिनेत्री को फैशनेबल कपड़ों में आकर्षक ढंग से तैयार करना आसान होता है लेकिन किसी लड़की को फूल बेचने वाली लड़की की तरह तैयार करना और उसे सुंदर भी दिखाना जैसा कि सिटी लाइट्स में किया गया था, मुश्किल काम होता है। गोल्ड रश में नायिका के कॉस्ट्यूम तैयार करने में कोई समस्या नहीं आयी थी। लेकिन माडर्न टाइम्स में पॉलेट की पोशाकों के लिए फैशन डिज़ाइनर के बनायी पोशाकों की तरह बहुत सोचना विचारना पड़ा। यदि सड़क छाप लड़की की वेशभूषा के बारे में बिना सोचे समझे फैसला कर लिया जाता तो थिगलियां नकली और अविश्वसनीय लगतीं। गली गली घूमने वाली आवारा लड़की या फूल बेचने वाली लड़की के रूप में नायिका को तैयार करके मैं काव्यात्मक प्रभाव पैदा करना चाहता था और उसे उसके व्यक्तित्व से वंचित नहीं करना चाहता था।

माडर्न टाइम्स के प्रदर्शन से पहले कुछ समीक्षकों ने लिखा कि उन्होंने इस तरह की अफवाहें सुनी हैं कि ये फिल्म साम्यवादी विचारधारा का पोषण करती है। मेरा ख्याल है ये इस वजह से हुआ क्योंकि अखबारों में फिल्म की कहानी का सार संक्षेप छप चुका था। अलबत्ता, उदार पाठकों ने लिखा कि ये न तो साम्यवाद के पक्ष में है और न ही उसके खिलाफ ही, बल्कि सच तो ये है कि मैं फेंस पर ही बैठा हुआ हूं।

इस तरह के समाचार बुलेटिन सुनने से ज्यादा नसें तड़काने वाली और कोई बात नहीं होती कि पहले हफ्ते आने वाले दर्शकों की संख्या ने अब तक के सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं और दूसरे हफ्ते में मामूली सी गिरावट आयी है। इसलिए न्यू यार्क और लॉस एंजेल्स में प्रीमियर के बाद मेरी एक ही इच्छा थी कि जितनी जल्दी हो सके, फिल्म की खबरों से जितना दूर जा सकूं, चला जाऊं इसलिए मैंने होनोलुलु जाने का फैसला किया। मैं अपने साथ पॉलेट और उसकी मां को ले गया और पीछे ऑफिस में ये हिदायतें छोड़ दीं कि मुझे किसी भी तरह का कोई भी संदेश न भेजा जाये।

हम लॉस एजेंल्स पहुंचे। सैन फ्रांसिस्को में जिस वक्त हम पहुंचे, बरसात हो रही थी। अलबत्ता, कोई भी बात हमारी हिम्मत पर पानी नहीं फेर सकी। हमारे पास थोड़ा सा समय था कि हम शॉपिंग कर सकें और नाव पर लौट सकें। गोदामों के पास से गुजरते हुए मैंने मालवाहक पर लिखा हुआ देखा - चीन

'चलो, हम वहीं चलते हैं।'

'कहां?' पॉलेट ने पूछा।

'चीन!'

'पागल हो गये हैं क्या?"

'हमें अभी नहीं जाना है। नहीं तो कभी नहीं जा पायेंगे।'

'लेकिन मेरे पास कपड़े नहीं हैं।'

'तुम्हें जो भी चाहिये होनोलुलु में खरीद सकती हो।' मैंने सुझाया।

सारी नावों का नामकरण करके उन्हें पैनेशिया नाम दे देना चाहिये क्योंकि समुद्री यात्रा से ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक और कुछ नहीं होता। आपकी सारी चिंताएं स्थगित हो जाती हैं, नाव आपको गोद ले लेती है, और आपकी देखभाल करती है, और आखिरकार जब नाव पत्तन पर पहुंचती है तो आपको संकोच के साथ हड़बड़ाती दुनिया को लौटा देती है।

लेकिन जिस वक्त हम होनोलुलु में पहुंचे तो मेरे आतंक का ठिकाना न रहा जब मैंने माडर्न टाइम्स के बड़े बड़े होर्डिंग देखे और पत्तन पर प्रेस वाले मेरा स्वागत करने के लिए तैयार खड़े थे। बचने का कोई उपाय नहीं था।

अलबत्ता, टोकियो में मुझे इतना डर नहीं लगा क्योंकि कैप्टन ने मेहरबानी करके मुझे दूसरे यात्री के रूप में पंजीकृत कर रखा था। जापानी प्राधिकारियों ने जब मेरा पासपोर्ट देखा तो इसे मामले को तिल का ताड़ बना दिया,'आपने हमें बताया क्यों नहीं कि आप आ रहे हैं?' कहा उन्होंने। चूंकि वहां पर कुछ ही दिन पहले सैन्य विद्रोह हो चुका था जिसमें सैकड़ों लोग मारे गये थे, उनका ये पूछना ठीक ही था, मैंने सोचा। जापान में हमारे ठहरने के दौरान सरकार की तरफ से तैनात एक अधिकारी ने एक पल के लिए भी हमें अकेला नहीं छोड़ा। सैन फ्रांसिस्को से चलने से ले कर हांग कांग पहुंचने तक हमने किसी भी यात्री से बात नहीं की थी लेकिन हांग कांग पहुंचते ही ये मौन उवपास धरा रह गया।

'चार्ली,' एक लम्बे से, चुप्पे से दिखने वाले व्यापारी ने मुझसे कहा.'मैं कनेक्टिकट से नाता रखने वाले एक अमेरिकी पादरी से ज़रूर मिलूं। वे पिछले पांच बरस से कोढ़ियों की बस्ती में टिके हुए हैं। फादर के लिए ये अकेलापन काट खाने वाला होगा इसलिए हर रविवार वे हांग कांग अपनी अमेरिकी नावों को देखने आते हैं।'

पादरी लम्बे, खूबसूरत, लगभग सैंतीस बरस के शख्स थे। उनके गुलाबी गाल थे और भेदने वाली मुस्कुराहट थी। मैंने एक ड्रिंक मंगवाया फिर मेरे दोस्त ने एक ड्रिंक मंगवाया, इसके बाद फादर ने एक ड्रिंक के आर्डर दिया। पहले तो ये छोटा सा ही समूह था लेकिन जैसे जैसे शाम ढलती गयी, जमावड़े में पच्चीस आदमी हो गये। हर कोई दूसरे के लिए ड्रिंक मंगवा रहा था। फिर ये संख्या बढ़ कर पैंतीस हो गयी और अभी भी ड्रिंक आ रहे थे। कई लोगों को बेहोशी के आलम में नाव पर ले जाया गया। लेकिन फादर जिन्होंने एक ड्रिंक भी मिस नहीं किया था, अभी भी होश में थे और मुस्कुरा रहे थे और सबसे बात कर रहे थे। आखिरकार मैं उन्हें विदाई देने के लिए उठा। और जब उन्होंने मुझे आग्रहपूर्वक थामा तो मैंने उनसे हाथ मिलाया। मैंने उनका हाथ खुरदरा महसूस किया। मैंने उनका हाथ उलट कर देखा और उसकी जांच की। हथेली कटी फटी थी और बीचों बीच एक सफेद दाग था। 'मेरा ख्याल है, ये कोढ़ नहीं है,' मैंने मज़ाक में कहा। वे हँसे और हाथ मिलाया। एक बरस बाद हमने सुना था कि कोढ़ की वजह से उनकी मृत्यु हो गयी थी।

हम पांच महीने तक हॉलीवुड से परे रहे। इस ट्रिप के दौरान पॉलेट और मैंने शादी कर ली थी। इसके बाद हम स्टेट्स लौटे। हमने वापसी के लिए सिंगापुर में एक जापानी नाव ली।

यात्रा का पहला ही दिन था कि मुझे एक पर्ची मिली जिसमें लिखा था कि पर्ची के लेखक और मेरे कई सांझे दोस्त हैं और कि कई बरसों से हम कई बार, बस, मिलते मिलते रह गये हैं और अब साउथ चाइना समुद्र के बीचों बीच मुलाकात का एक सुनहरा मौका है। हस्ताक्षर: 'ज्य़ां कॉकटेयु' । इसके बाद फिर लिखा था: शायद वह मेरे केबिन में डिनर से पहले खाना खाने से पहले एक आध पैग पीने के लिए आये।

तुरंत ही मुझे लगा कि कोई भेस बदल कर मिलना चाहता है। ये शहरी बाबू इस साउथ चाइना समुद्र के बीचों बीच क्या कर रहा होगा। अलबत्ता, ये बात सच निकली। क्योंकि कॉकेटयु फ्रांसीसी अखबार फिगारो के दिये एक काम को करने के लिए निकला था।

कॉकटेयु अंग्रेजी का एक भी शब्द नहीं बोल पाते थे और न ही मैं फ्रेंच ही बोल पाता था। हां, उनके सचिव को थोड़ी बहुत अंग्रेजी बोलनी आती थी लेकिन बहुत अच्छी तरह से नहीं। इस तरह से उनके सचिव ने हमारे लिए दुभाषिए की तरह काम किया। उस रात हम अल सुबह तक बैठे रहे और ज़िंदगी और कला की अपनी अपनी थ्योरियों की बात करते रहे। हमारा दुभाषिया धीरे धीरे और हिचकते हुए बात करता था जबकि कॉकटेयु अपनी छाती पर अपने खूबसूरत हाथ फैलाए, मशीन गन की सी तेजी के साथ बोलते। उनकी अपील करती आंखें एक बार मुझ पर रहतीं और फिर दुभाषिये पर। दुभाषिया संवेदनाशून्य तरीके से बोल रहा था। 'मिस्टर कॉकटेयु - वे कहते हैं - आप कवि हैं - सूर्योदय के कवि - और कि वे कवि हैं - रात के।'

तत्काल ही कॉकटेयु दुभाषिये से मेरी तरफ मुड़ते और तेज, चिड़िया की तरह सिर हिलाते और अपनी बात जारी रखते। इसके बाद मैं बात का सिरा आगे बढ़ाता और गहराई से दर्शन और कला पर अपना ज्ञान बघारने लगता। जब हम दोनों एक दूसरे से सहमत होते तो इस दूजे को गले लगाते और हमारा दुभाषिया ठंडी ठंडी आंखों से देखता रह जाता। इस तरह से, इसी महान तरीके से हम रात भर बातें करते रहे। हम सुबह चार बजे तक बतियाते रहे और ये वायदा किया कि एक बजे लंच पर फिर मिलेंगे। लेकिन हमारा उत्साह अपने परम बिंदु तक पहुंच चुका था। हम दोनों ही क्लाइमेक्स तक पहुंच चुके थे लेकिन दोनों ने ही इसका आभास नहीं होने दिया। दोपहर के वक्त हम दोनों के ही माफी मांगते हुए पत्र एक दूसरे के पास पहुंचे। उन दोनों खतों की विषय सस्तु एक जैसी ही थी, दोनों ही क्षमा याचनाओं से भरे हुए थे कि हम अब और मिल नहीं पा रहे है। हम दोनों ने एक दूसरे को ज़रूरत से ज्यादा ही देख परख लिया था।

डिनर के वक्त जिस वक्त हम डाइनिंग हॉल में पहुंचे तो कॉकटेयु दूर कोने वाली मेज़ पर बैठे हुए थे और उनकी पीठ हमारी तरफ थी। लेकिन उनका सचिव हमारी तरफ देखने से अपने आपको रोक नहीं पाया और उसने हाथ के कमज़ोर से इशारे से कॉकटेयु को हमारी उपस्थिति के बारे में बताया। वे पहले तो हिचकिचाये, फिर मुड़े और हैरानी दिखायी और मेरी तरफ उल्लास के साथ वह पत्र हिलाया जो मैंने उन्हें भेजा था। मैंने भी खुशी खुशी उनका पत्र हिलाया और हम दोनों ही हँसे। इसके बाद हम दोनों ही एक दूसरे से नज़रे हटाते हुए गंभीरता ओढ़े अपने अपने मेनू में खो गये। कॉकटेयु ने अपना डिनर पहले खत्म किया और जिस वक्त स्टीवर्ड हमारा खाना परोस ही रहा था, वे हड़बड़ी से हमारी मेज के पास से दबे पांव गुज़र कर चले गये। अलबत्ता, बाहर निकलने से पहले वे हमारी तरफ मुड़े और बाहर की तरफ इशारा किया, "हम आपको वहां मिलेंगे"। मैंने सहमति में ज़ोर से सिर हिलाया। लेकिन बाद में ये देखकर मुझे राहत मिली कि वे वहां पर नहीं थे।

अगली सुबह मैं डेक पर अकेले ही चहलकदमी कर रहा था, अचानक ही, ये देख कर मेरे आतंक की सीमा न रही कि दूर के कोने से कॉकटेयु का चेहरा उभरा और वे मेरी तरफ चले आ रहे थे। हे मेरे भगवान!! मैंने जल्दी से आसपास छुपने की जगह देखी। तब उन्होंने मुझे देखा और तब मुझे बहुत राहत मिली जब वे मुख्य सैलून दरवाजे से बाहर निकल गये। इसके साथ ही हमारी सुबह की चहलकदमी खत्म हो गयी। दिन भर हम एक दूसरे से बचते हुए चोर सिपाही का खेल खेलते रहे। अलबत्ता, जिस वक्त हम हांगकांग पहुंचे, हम इतने उबर चुके थे कि बीच बीच में कुछ पलों के लिए मिल लेते, लेकिन टोकियो आने में अभी भी चार दिन बाकी थे।

यात्रा के दौरान कॉकटेयु ने एक अजीब सी कहानी सुनायी: उन्होंने चीन के किसी भीतरी इलाके में बुद्ध के साकार दर्शन किये थे। लगभग पचास बरस का यह व्यक्ति अपनी पूरी ज़िंदगी तेल के एक जार में फ्लोट करता हुआ जी रहा था। सिर्फ उसकी गर्दन से ऊपर का हिस्सा ही नज़र आता था। बरसों तक तेल में डूबे रहने के कारण उसका शरीर इतना नरम हो गया था कि आप उसमें से अपनी उंगली आर पार ले जा सकते थे। कॉकटेयु ने कभी भी ये स्पष्ट नहीं किया कि चीन के किस भाग में उन्होंने उस आदमी को देखा था, और आखिरकार उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि उन्होंने उस आदमी को खुद नहीं देखा था बल्कि उसके बारे में सुना ही था।

बीच बीच में जहाज कई जगह रुकता और हम एक दूसरे से मुश्किल से ही मिले। हां, कभी मिलते भी तो बातचीत कैसे हैं और चलते हैं से आगे न बढ़ती। लेकिन जब ये खबर फैली कि हम दोनों की प्रेसिडेंट कूलिज नाम के जहाज में एक साथ यात्रा करते हुए अमेरिका वापिस जा रहे हैं तो हम दोनों ने ही हार मान ली और इसके बाद उत्साह दिखाने का और कोई प्रयास नहीं किया।

टोकियो में कॉकटेयु ने एक पालतू टिड्डा खरीदा और उसे एक छोटे से पिंजरे में रखा। वे अक्सर उसे उत्साहपूर्वक मेरे केबिन में ले आते, "ये बहुत बुद्धिमान है," वे बताते, "मैं जब भी इससे बात करता हूं, ये गाता है।" उन्होंने टिड्डे में इतनी दिचस्पी पैदा कर दी कि अब हम उसी के बारे में बातें करते। 'आज पीलू कैसा है?' मैं पूछता,'बहुत अच्छा नहीं है,' वे उदासी से कहते,'मैंने उसे डाइट पर रखा है।'

जब हम सैन फ्रासिस्को पहुंचे तो मैंने ज़ोर दिया कि वे हमारे साथ ही कार में लॉस एंजेल्स चलें। हमारी लिमोज़िन हमारा इंतज़ार कर रही थी। पीलू साथ में आया। यात्रा के दौरान पीलू ने गाना शुरू कर दिया।

'देखा!' कॉकटेयु बोले,'इसे अमेरिका अच्छा लगा है।' अचानक ही कॉकटेयु ने कार की खिड़की खोली, फिर नन्हें से पिंजरे का दरवाजा खोला और पीलू को उड़ा दिया।

मुझे धक्का लगा। पूछा मैंने,'आपने ऐसा क्यों किया?'

'इन्होंने उसे आज़ाद कर दिया है,' दुभाषिये ने बताया।

'लेकिन' मैंने कहा,'वो इस विदेश में अजनबी है और यहां की भाषा भी नहीं जानता।'

कॉकटेयु ने कंधे उचकाये,'स्मार्ट है वो, जल्दी ही सीख लेगा।'

जब हम बेवरली हिल्स पहुंचे तो वे बहुत उत्साहजनक खबर आयी, माडर्न टाइम्स अपार सफल रही थी।

लेकिन एक बार फिर हताश करने वाला सवाल मेरे सामने मुंह बाये खड़ा था: क्या मैं एक और मूक फिल्म बनाऊ! मैं जानता था कि अगर मैं मूक फिल्म बनाऊंगा तो बहुत बड़ा जोखिम लूंगा। पूरे के पूरे हॉलीवुड ने मूक फिल्मों को तिलांजलि दे दी थी और सिर्फ़ मैं ही बच रहा था। अब तक तो भाग्य मेरा साथ देता रहा था लेकिन इस अहसास के साथ काम करना कि मूक अभिनय की कला धीरे धीरे पुरानी पड़ती जा रही थी, हताश करता था ये ख्याल। इसके अलावा, एक घंटे और चालीस मिनट तक मूक अभिनय चलाते रहना, मज़ाक को एक्शन में चलाना और फिल्म की रील में हर बीस फुट पर दिखायी देने वाले लतीफे पैदा करना और वो भी फिल्म की सात या आठ हज़ार फुट की लम्बाई तक, ये सब कर पाना अब आसान काम नहीं रहा था। एक और ख्याल ये भी था कि अगर मैं सवाक फिल्म बना लूं तो भले ही मैं कितनी भी अच्छी फिल्म क्यों न बनाऊं, मैं मूक अभिनय की अपना कलात्मक ऊंचाई से आगे नहीं जा पाऊंगा। मैंने ट्रैम्प के लिए संभावित आवाज़ों के बारे में सोचा था - चाहे वह एक एक अक्षर के शब्द बोले या सिर्फ़ होंठ हिला कर फुसफुसा भर दे, लेकिन कोई फायदा नहीं था। अगर मैं बात करता हूं तो फिर किसी भी दूसरे कोमेडियन की तरह हो जाऊंगा। ये उदास करने वाली समस्याएं थीं जिनसे मैं जूझ रहा था।

पॉलेट और मेरे विवाह को अब एक बरस होने को आया था लेकिन हम दोनों के बीच खाइयां बढ़ती ही जा रही थीं। इस का आंशिक कारण ये भी था कि मैं अपने काम की चिंता में पड़ा रहता था और काम करने की समस्याओं में उलझा रहता था। अलबत्ता, माडर्न टाइम्स की सफलता ने पोलैट के लिए नये द्वार खोल दिये थे और अब उसने पैरामाउंट वालों के लिए कई फिल्में साइन की थीं। लेकिन मैं न तो काम कर पा रहा था और न अभिनय ही। उदासी के इसी आलम में मैंने अपने दोस्त टिम डुरैंट के साथ पैबल बीच पर जाने का फैसला किया। शायद मैं वहां पर बेहतर तरीके से काम कर सकूं।

पैबल बीच सैन फ्रांसिस्को से दक्षिण की तरफ लगभग सौ मील दूर था। ये जंगली, जानलेवा और थोड़ा मनहूस था। मैं इसे 'भटकती आत्माओं का स्वर्ग' कहता था। इसे सत्रह मील की ड्राइव के नाम से भी जाना जाता था: हिरण वहां पर जंगल में आराम से विचरते रहते और वहां पर कई बड़े बड़े घर थे जिनमें कोई नहीं रहता था और ये बिक्री के लिए थे। जंगलों में कई पेड़ गिरे हुए थे जो सड़ रहे थे और उनमें लकड़ी में हो जाने वाले कीड़े, ज़हरीली वृक्ष लताएं, कनेर की झाड़ियां और खतरताक अंधियारे कोने थे। ये सब प्रेतात्माओं के रहने के लिए बढ़िया सेटिंग रहती। चट्टानों पर बने हुए समुद्र की तरफ खुलने वाले कई महलनुमा घर थे जिमें करोड़पति लोग रहते थे। इस हिस्से को गोल्ड कोस्ट के नाम से जाना जाता था।

मैं टिम ड़ुरैंट से तब मिला था जब उन्हें कोई हमारी एक रविवारी टेनिस पार्टी में लेकर आया था। टिम बहुत अच्छा टेनिस खेलते थे और हम एक साथ खूब खेला करते। उनका हाल ही में अपनी पत्नी ई एफ हट्टन की बेटी से तलाक हो गया था और उसी के सदमे से उबरने के लिए हाल ही में कैलिफोनिया आये थे। टिम सहानुभूति रखने वाले शख्स थे। हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गये।

हमने समुद्र से आधा मील परे पीछे की तरफ बना हुआ एक मकान किराये पर लिया। फिर गीला और खराब हालत में था और जब हम उसमें आग जलाते तो पूरा कमरा धूं से भर जाता। टिम पेबल बीच पर कई सामाजिक हस्तियों को जानते थे। जब वे उनसे मिलने के लिए चले जाते तो मैं काम करने की कोशिश करता। मैं कई कई दिन तक पुस्तकालय में अकेले बैठा रहता, बगीचे में चहल कदमी करता, कोई विचार पकड़ने की कोशिश करता। लेकिन कुछ सूझता ही नहीं था। आखिरकार मैंने चिंता करना छोड़ दिया। टिम को साथ लिया और कुछेक पड़ोसियों से मिलने चला। मैं अक्सर सोचा करता कि वे छोटी छोटी कहानियों के लिए बहुत अच्छा मसाला है - एकदम गये दे' मोपासां की कहानियों की तरह। एक बहुत बड़ा घर था, हालांकि आरामदायक था, फिर भी थोड़ा डरावना और उदास था। मेजबान भले आदमी थे लेकिन बहुत ज़ोर से और लगातार बोलते रहते जबकि उनकी पत्नी एक शब्द भी बोले बिना बैठी रहती। चूंकि उनकी बच्ची पांच बरस पहले गुज़र गयी थी, वह शायद ही कभी हँसती या बात करती। वह सिर्फ़ दो ही शब्द बोलती - नमस्कार और गुडनाइट। समुद्र की तरफ ही एक ऊंची खड़ी चट्टान पर एक और घर बना हुआ था। उसमें एक उपन्यासकार रहते थे। उनकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी। ऐसा लगता है कि वे अपनी बगीचे में खड़ी कैमरे से तस्वीरें ले रही होगीं। एकाध कदम पीछे की तरफ रख होगा और नीचे खाई में गिर गयी होगीं। जब उनके पति उन्हें खोजने के लिए गये तो उन्हें सिर्फ कैमरे वाली तिपाई ही मिली। पत्नी को फिर कभी नहीं देखा गया।

विल्सन मिज़नर की बहन को पड़ोसी अच्छे नहीं लगते थे। पड़ोसियों का टेनिस कोर्ट उनके घर के सामने पड़ता था और जब भी उनके पड़ोसी टेनिस खेलते, वह ढेर सारी आग जला देती और धूं से टेनिस कोर्ट भर जाता।

फागान दम्पत्ति बहुत अमीर थे। वे रविवार के दिन दिल खोल कर मेहमानबाजी करते। नाजी काउंसल, जिससे मैं वहीं पर मिला, लाल बाल वाला, अच्छे व्यवहार वाला नवयुवक था। उसने मेरे साथ घुलने मिलने की बहुत कोशिश की, लेकिन मैंने ही उसे कभी घास नहीं डाली। कभी कभार हम वीक एंड जॉन स्टेनबैक दम्पत्ति के साथ गुज़ार लेते। मोंटेरे के पास उनका छोटा सा घर था। वे अभी प्रसिद्धि की पायदान पर ही थे और उन्होंने टोरटिला फ्लैट तथा कहानियों की एक शृंखला हाल ही में लिखी थी।

जॉन सवेरे के वक्त काम करते, और औसतन वो हज़ार शब्द प्रतिदिन लिखते थे। मैं उनके साथ सुथरे पन्नों को देख कर हैरान होता। उनमें शायद ही कोई गलती होती। मैं उनसे ईर्ष्या करता।

मुझे ये जानना अच्छा लगता है कि लेखक किस तरह से काम करते हैं और दिन भर में वे कितना काम कर लेते हैं। थॉमस मान दिन में औसतन चार सौ शब्द लिखा करते थे। लायन फ्यूशवेंगर दो हज़ार शब्दों की डिक्टेशन दिया करते थे जिनसे छ: सौ लिखे हुए शब्दों का प्रतिदिन का औसत आता था। सामरसेट मॉम चार सौ शब्द प्रतिदिन लिखा करते थे ताकि लिखने का अभ्यास बना रहे। एच जी वेल्स का एक हज़ार शब्द प्रति दिन लिखने का औसत आता था। हनेन स्वाफर, अंग्रेजी पत्रकार, प्रतिदिन चार हजार से पांच हज़ार शब्द तक लिख डालते थे। अमेरिकी समीक्षक एलैक्जैंडर वूलकॉट ने पन्द्रह मिनट में सात सौ शब्द लिख मारे थे और उसके बाद पोकर खेलने वालों में शामिल हो गये। जिस वक्त उन्होंने ऐसा कारनामा किया, मैं वहीं पर था। हर्स्ट शाम के वक्त दो हज़ार शब्दों का सम्पादकीय लिखा करते थे। जॉर्जेस सिमेनन ने एक ही महीने में एक लघु उपन्यास लिखा था और ये उपन्यास उत्कृष्ट साहित्यिक स्तर का था। जॉर्जेस ने मुझे बताया था कि वे सुबह पांच बजे उठ जाते हैं, अपनी कॉफी खुद बनाते हैं, और फिर अपनी डेस्क पर आ बैठते हैं, टेनिस बॉल के आकार की एक सोने की बॉल घुमाते रहते हैं और सोचते हैं। वे पैन से लिखते हैं। जब मैंने उनसे पूछा कि आप इतने छोटे छोटे अक्षर क्यों लिखते हैं तो उन्होंने बताया,'इससे कलाई पर ज़ोर कम पड़ता है।' जहां तक मेरा खुद का सवाल है, मैं लगभग एक हज़ार शब्द प्रतिदिन की डिक्टेशन देता हूं। इनसे मेरी फिल्में के लिए तैयार संवादों का लगभग तीन सौ शब्दों का औसत आता है।

स्टेनबैक दम्पत्ति के पास कोई नौकर नहीं था। उनकी पत्नी ही घर का सारा कामकाज़ करतीं। वे बहुत शानदार तरीके से घर बार संभालतीं। मैं उनका बहुत बड़ा प्रशंसक था।

हम कई बार बातें करते बैठ जाते। एक बार रूस की बात चलने पर स्टेनबैक ने कहा कि साम्यवादियों ने एक काम तो ये किया है कि वेश्याकृति को खत्म कर दिया है। 'ये निजी उद्योगों में से अंतिम था,' मैंने कहा,'बहुत खराब हुआ। यही वह अकेला व्यवसाय है जो आपको अपने पैसे की पूरी कीमत देता है, और ये सबसे ज्यादा ईमानदारी का धंधा है। इसे यूनियन में क्यों न ले लिया जाये?'

एक आकर्षक विवाहित महिला ने, जिसका पति घोषित रूप से बेवफा था, ने अपने बड़े से घर में मेरे साथ अकेली मुलाकात का इंतज़ाम किया। मैं वहां पर अपनी शरारतपूर्ण मंशा के साथ गया। लेकिन जब औरत ने रोते हुए मुझसे ये रहस्य बांटा कि उसका अपने पति के साथ पिछले आठ बरस से कोई शारीरिक संबंध नहीं रहा है और वह उससे अभी भी प्यार करती है, तो उसके आंसुओं ने मेरे उत्साह पर पानी फेर दिया और मैंने पाया कि मैं उसे आध्यात्मिक सलाह दे रहा हूं - सारा का सारा मामला ही दिमाग पर चढ़ जाने वाला हो गया। बाद में पता चला कि वह समलिंगी, लेस्बियन हो गयी है।

कवि रॉबिनसन जेफर्स, पेबल बीच के पास ही रहते थे। पहली बार टिम और मैं उनसे एक दोस्त के घर पर मिले। वे चुप और अपने आप में खोये हुए थे। और जैसी कि मेरी आदत है, मैंने वक्त गुज़ारी के लिए उनसे दिन भर की अच्छी और बुरी बातों के बारे में कुरेदना शुरू कर दिया। लेकिन जेफर्स एक शब्द नी नहीं बोले। मुझे अपने आप पर थोड़ा गुस्सा भी आया कि मैं ही सारा वक्त बातें करता रहा था। मुझे लगा कि उन्होंने मुझे पसन्द नहीं किया। लेकिन मैं गलती पर था, एक ही हफ्ते बाद उन्होंने टिम और मुझे चाय पर बुलाया।

रॉबिनसन दो बेनमन और उनकी पत्नी प्रागैतिहासिक काल की पत्थर की एक छोटी सी हवेली में रहते थे। इसका नाम था टोर। इसे उन्होंने खुद प्रशांत महासागर के तटों पर चट्टान के स्लैब पर बनाया था। इसमें थोड़ा सा छिछोरापन नज़र आता था ऐसा मुझे लगा। सबसे बड़ा कमरा बारह फुट से ज्यादा बड़ा नहीं था। घर से कुछ ही दूर प्रागैतिहासिक काल की लगने वाली पत्थरों की एक गोलाकर मीनार थी। सोलह ऊंची और चार फुट के घेरे वाली। तंग सीढ़ियां आपको ऊपर मियानी तक ले जाती थीं। वहां पर खिड़की के लिए जगह बनी हुई थी। ये उनका अध्ययन कक्ष था।। यहीं पर उन्होंने रोन स्टालिन लिखा था। टिम का विचार था कि इस तरह की भयावह रुचि उनके लिए मनोवैज्ञानिक चाह थी। लेकिन मैं देखता कि रॉबिनसन सूर्यास्त के वक्त अपने कुत्ते के साथ टहल रहे हैं। वे शाम का आनन्द ले रहे होते। उनके चेहरे पर असीम शांति होती और लगता, वे कहीं दूर ख्यालों में खोये हुए हैं। मुझे यकीन है कि रॉबिनसन जेफर्स जैसा व्यक्ति मृत्यु की कामना तो नहीं ही कर सकता।

(क्रमशः अगले अंकों में जारी…)

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फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा 15
चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा 15
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