अनुज खरे का व्यंग्य : ये है हमारी देशभक्ति डॉट कॉम

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व्यंग्य ये है हमारी देशभक्त डॉट कॉम   --- अनुज खरे   हाल ही में विदेश से लौटा हूं। स्तब्धनुमा खुमारी में उत्साहित हूं। अभी फिजूल...

व्यंग्य

ये है हमारी देशभक्त डॉट कॉम

 

--- अनुज खरे

 

हाल ही में विदेश से लौटा हूं। स्तब्धनुमा खुमारी में उत्साहित हूं। अभी फिजूल की बातें सुनने का टाइम नहीं है। अच्छा भाई साहब एक बात तो बताइए कि क्या आप भी कभी विदेश गए हैं? नाराज मत होइए, गए होंगे। ऐसा है कि मैं तो पहली ही बार गया था, इसलिए तो ज्यादा ही उत्साहित हूं। इसलिए पूछ डाला। खैर, आप भी इसी तरह से उत्साहित होंगे, जब पहली बार वहां से लौटे होंगे। स्तब्धनुमा खुमारी का तो ऐसा है कि वहां का डिस्प्लिन, जज्बात, देशभक्त आदि-आदि देखकर मेरे पेट में मरोड़ उठने लगे, आंखें तक भर-भर आईं। कसम से क्या गजब की देशभक्त होते हैं। आप ने देखे तो होंगे ही वहां, सच्ची बोलिओ गए थे कि नहीं? वो क्या है कि हम भी आम देशवासियों टाइप किसी के अब्राड आदि जाने की बात पर आसानी से कम ही यकीन करते हैं। नहीं आप बोल रहे हो तो गए तो होगे ही। यार क्या सडकें हैं... क्या बिल्डिंगें हैं.... कितनी प्यारी-प्यारी कारें हैं.... कितने सुंदर-सुंदर तो लोग हैं...गंदगी का कहीं नामोनिशान नहीं। सड़कों पर कचरा कहीं मिलता तक नहीं। देश को साफ सुथरा रखने के प्रति कितने कांशस रहते हैं विदेशी सोच-सोच के ही मुझे तो चक्कर आने लगते हैं।

 

कुछ तो इतने सफाई प्रेमी रहते हैं कि गंदगी करने से पहले ही उसे साफ करने की जुगत में चिंतित रहते हैं। यकीन नहीं आ रहा होगा, आएगा भी कैसे कभी गए हो..... मान लिया गए होगे। एक बार मैंने एक अंग्रेज को डस्टबिन के पास खड़े देखा, काफी देर तक जब वो वहां से नहीं हिला तो मैंने पूछा कि भाई साहब क्या बात है। उसने जो कहा उसे सुनकर अपना देश होता तो कोई उसे डस्टबिन में ही डालकर केरोसिन छिड़क देता। कह रहा था कि उसका दोस्त अभी कुछ केले लेकर आने वाला है इसी कारण वह यहां खड़ा है ताकि खाकर छिलके डस्टबिन में फेंक सके। क्यों? ताकि सड़क पर कहीं गंदगी न रहे। फुरसतिया कहीं का। आप करेंगे ऐसा? क्या कहा-हां करेंगे... आपकी इतनी मजाल... अपने देश को लजाओगे क्या? ... आप कम से कम भारतवासी तो नहीं हो सकते। मैं मान ही नहीं सकता। क्या कोई अपने देशवासी भाई को ऐसा ‘गंदा’ जवाब देता है भला?

 

अच्छा एक किस्सा सुनो- एक बार एक किसी मोहल्ले में सफाई करता दिखा। मालूमात करने पर पता चला कि वह तो बिचारे किसी कंपनी के सीनियर ऑफिसर हैं। जब कभी टाइम मिलता है तो मोहल्ले की सफाई में जुट जाते हैं। ताकि कचरे का ढेर न लग जाए। अब लो ऐसे-ऐसे सनकी भरे पड़े हैं विदेश में कि पूछो मत। हम क्या इतने फोकट हैं कि ऑफिस जाना छोड़कर ऐसे निकृष्ट से कामों में भिड़े रहें। वहां भले ही काम न हो लेकिन कार्यालयीन समय का ऐसा घोर अपव्यय कदापि नहीं करेंगे। एक सुबह से पूरी स्ट्रीट के लोगों को एक नाली की सफाई में लिप्त पाया। कैसे ठरकी मोहल्ला है, मैंने तत्काल सोच लिया था कि यहां अपने दोस्त के घर रहना ही नहीं है। ऐसी फालतू की चीजें देख-देखकर आदतें खराब होने का डर था भाई। इसलिए मैं वहां से खिसक लिया था। अरे, हमारी वो बजबजाती नालियों की बात ही कुछ और है, विदेशियों ने देखी ही नहीं हैं वे शानदार नाले-नालियां। क्या तो गंदगी- राष्ट्रीय एकता के जीवंत स्मारक हैं जीवंत स्मारक। सौहार्द से सराबोर। समरसता से ओतप्रोत। विशाल खुली बांहें जो चाहे आसरा ले ले। क्या तो जानवर, क्या तो शराबी,क्या तो सन्यासी। सब का समान भाव से स्वागत। ऐसा उत्साह। इतनी उद्दात भावना। ठेठ गांव से धुर शहरों तक। महक का आलम ये कि 50-50 कोस तक ख्याति की लहरें पहुंचे। नाक पर चाहे कितना भी रूमाल लगा लो सब बेअसर। खुले आम सुबह की कुछ मुर्गेनुमा बैठकर की जाने वाली क्रियाओं के लिए भी सर्वथा अनुकूल। कहीं होती है इतनी सस्ती भोर संगोष्ठी, बड़ी-बड़ी समस्याओं का हल इसी संगोष्ठी से निकला है। हालांकि ये बात इतिहास में कहीं दर्ज नहीं है लेकिन आम आदमी से पूछकर देख लो, बता देगा।

 

और ये यहां विरासत के ऐसे प्रतिमानों को नष्ट करने पर तुले हैं, कृतघ्न कहीं के। इनके यहां होती नहीं हैं ये चीजें तो हमारे यहां कि ऐसी चीजों को लेकर नाक-भ सिकोड़ते फिरते हैं। देश गंदा है। ‘है तो है, तुम कर लो।’ बस दूसरे देशों की गंदगी में ही दिलचस्पी, वहां का कूड़ा ही दिखता है इन्हें, गर्दे पर ही नजर रहती है। मुझे नहीं जमते भइया ऐसे लोग। तभी तो नाली को साफ करते देखकर मेरा तो खून खौल गया। बस चलता तो सालों को वहीं नाली में ही ढकेल देता। विदेश का मामला था अपन ने भी सोचा दोस्त किसी लफड़े में पड जाएगा। नहीं तो सच्ची में ढकेल ही देता फिर कोई कुछ भी कर लेता, नौटंकी अपन को बर्दाश्त ही नहीं। लेकिन एक बात तो है काम ईमानदारी से करते हैं पट्ठे, साले सारे के सारे जुट जाते हैं। ज्यादा न-नुकर नहीं करते। हमारे यहां तो ऐसे कामों के लिए एक को खोजने जाओ तो सारा दिन मनाते रहो फिर इकट्ठे भी हों तो आपस में ही इतनी किच-किच कि इससे तो अच्छा साली नाली ही गंदी पड़ी रहे। सो पड़ी ही रहती है। हालांकि इसके पीछे हमारा स्वाभाविक धरोहरों को संजोने का प्रेम है, और नहीं तो क्या? तभी तो हमने वर्षों की मेहनत से इन नाले-नालियों में इतिहास-पुरातत्व की कई लेयर जमा कर ली हैं।

 

कभी सदियों में खुदाई हो तो आश्चर्य नहीं कि को छोटी-मोटी सभ्यता इन्हीं के किनारे निकल आए। नालीघाट जैसी महान धरोहर को संजो कर रखने वाली विकसित सभ्यता। खैर, मैं बात कर रहा था कि विदेश में ऐसा नहीं होता। एक बार कुछ लोग दिखे एक जगह मूर्ति बने खडे थे, टस से मस नहीं हो रहे थे। पास गया तो पता चला राष्ट्रगान बज रहा था। सब वहीं पर जमे हुए थे सीना ताने-सिर ऊपर उठाए। अब लो बताओ कैसे लोग हैं सांस तो ले लो भइया कहीं शहीद ही ना हो जाओ। ऐसे दिखावे के चक्कर में। हमें देखो ऐसे चक्करों में बिलकुल नहीं पड़ते। राष्ट्रगीत बजे या गान पड़े हैं तो पड़े हैं। काहै का दिखावा दिल में है तो देशभक्त का सैलाब। जब कहोगे रेडीमेड निकाल कर दिखा देंगे। क्या खड़े होने भर से साबित हो जाएगी देशभक्त। इन विदेशियों के तरीके इन्हीं मामलों में तो खिसकेले हैं, सारा जोर दिखावे में दिल से कुछ नहीं, भावनाएं भाड़ में जाएं, दिखावा होना चाहिए। करते रहो दिखावा। मैं तो सालों को बस के आगे धकेल देता। काफी लोग थे तो इसलिए तो बस रहने ही दिया।

 

फिर एक दिन टीवी देख रहा था। कहीं बाहर का कोई नेता इनके पार्लियामेंट में गलाफाड़ रहा था। फ्रेंच में अपना भाषण ठोंक रहा था। सबके खोपड़े में हैडफोन। मुझे तो सुनते-सुनते ही बेहोशी छाने लगी। कहां हमारे नेता हैं। देश से बाहर जाते ही तहजीब का ख्याल रखते हैं, मेजबानी को आदर देते हैं, सामने वालों को परेशानी न हो, इसलिए दनादन अंग्रेजी में बोलते हैं। इस मामले इतने अनुरागी जीव हैं कि जिस देश में जाएं, वहां की भाषा में बोलने को तैयार हैं, वो तो वहां की भाषा न सीख पाने की मजबूरी है। अन्यथा तो किसी गैर देशवासी के कष्ट से हम तत्काल ही द्रवित हो जाते हैं। एक ये हैं विदेश में आकर भी मातृभाषा में भाषण भांज रहे हैं। देखते नहीं लोगों को कितनी परेशानी हो रही होगी। होए तो होए इन्हें क्या? ये तो अपना मातृभाषा प्रेम ही दिखाते रहेंगे। दिखावटी कहीं के। एक बार एक स्ट्रीट पर जा रहा था। देखा एक भिखारीनुमा आदमी सड़क पर हैट रखकर वायलिन पर अंगुलियां घसीटे ही जा रहा है, लोग उसके हैट में नोट डाल रहे हैं। देखते ही अपने ने भांप लिया बच्चू लोगों को ब्लैक मेल करके पैसे ऐंठ रहा हैं कि डालो हैट में नोट नहीं तो ऐसे ही भयानक वायलिन बजा-बजा के कान फोड डालूंगा। एक हमारे यहां के हैं, शालीन नफासत भरे अंदाज वाले, भिखारीपन की ठसक लिए। काहै का गाना-बजाना। भिखारी हैं तो काम किस बात का और डराना ही होगा तो वायलिन या संगीत से डराएंगे क्या?, वैसई न छीन लेंगे नोट।

 

इसलिए तो मुझे कई बार लगता है साले स्ट्रीट पर भी डिजाइनर भिखारी खड़े कर देते हैं। ताकि बाहर से आने वालों पर इम्प्रैशन पड़े कि देख लो हमारे भिखारी तक कमा के खाने की भावना रखते हैं। अबे, सोचते ही नहीं कमाने खाने का जज्बा रखते तो भिखारी बनते क्या? नकली नहीं लगते ये लोग आपको, देखो मना मत करिओ नहीं तो फिर मानूंगा ही नहीं कि कभी विदेश गए थे। हां, क्या कहा- लगते हैं। गुरु, पैंतरे बदलू, पक्के देशवासी ही हो। अच्छा एक तो इतना तो ये बैकग्राउंड में नकलीपन भरे हैं ऊपर से बातें सुनो पट्ठों की नकली-नकली सी। यू नो माई कंट्री... माई नेशन...टाइप की। अबे, हमारा भी कंट्री, हमारा भी नेशन है। हम कभी गाते दिखते हैं क्या? ये क्या कि बात-बात पर प्राउड करने लगो। प्राउडी लोग अपने को पसंद ही नहीं इसलिए अपने देश की गर्व से बातें करते ही नहीं हैं कि पता नहीं भइया सामने वाला देश के बारे में क्या सोचने लगें। इसलिए तो देश के बारे में सारी अच्छी-अच्छी बातों को किताबों में ही रखते हैं। बोलते है क्या? ज्यादा जानना है तो किताबों में पढ़ लो। लोगों से पूछोगे तो बेचारे सीधे सहज लोग, घमंड का नमोनिशान नहीं। संकोच के मारे क्या अच्छा बता पाएंगे देश के बारे में, ज्यादा जोर दोगे तो आपका सम्मान रखने के लिए यहां कि बुराई और शुरू कर देंगे। इतनी सादगी कहीं मिलती है भला। सीधे-सादे, भोले-भाले, घमंड रहित लोगों का देश है।

 

दूसरे लोगों-देशों के प्रति इतना प्रेम रखते हैं कि अपने देश की तारीफ करना ही भूल जाते हैं। सहज हैं ना। ऐसा नहीं है कि ये जेनरेशन ही इतनी विनम्र है। हमारी तो पिछली कई जेनरेशनों में ऐसी विनम्रता कूटकूट कर भरी है। ऐसा विनय से लबालब लोगों का देश देखा है कहीं? जो अपने व्यक्तिगत गुणों को सर्वोपरि मानें। घमंड के समूल नाश के लिए सबकुछ दांव पर लगा दें, देश तक। यूं ही नहीं दुगुर्णों से मुक्ति पाई जाती है। अच्छी-अच्छी चीजों की कुर्बानी देनी पड़ती है। भारी प्रयास करना होता है। क्या तारीफ करूं अपने देशवासियों की। यहां तो देश के लिए सम्मान की भावना तक नहीं है। ये क्या कि देश का झंडा तक लपेटे फिर रहे हैं। क्यों भाई? ऐसा क्या सम्मान कि झंडा तक पहन लिया ऊपर से अंदर तक। हमें देखो झंडा छूने देते हैं किसी को, ससम्मान चढ़ाया-उतारा फिर लपेट कर रख दिया। वर्षों तक तो हम उसे गोपनीय वस्तु की तरह सरकारी तौर पर सहेजकर रखे रहे। अब जाकर कुछ फहराने-वहराने की छूट दी है। तो भी दस नियम पंद्रह कायदे साथ में बता दिए हैं। वो तो हम जरा नियम-कायदों का लिहाज कर जाते हैं अन्यथा तो हमारा राष्ट्रप्रेम इतना उत्कृष्ट कोटि का है कि एक बार झंडा फहराएं तो वर्षों तक यूं ही लहराने दें।

 

ऐसे ही मुझे इनकी युवा पीढ़ी पर बड़ी कोफ्त होती है। देश-दुनिया की कोई जानकारी ही नहीं। वैरी पुअर जनरल नॉलेज। एक हमारे बच्चे हैं, अमेरिका के बारे में पूछ लो टप्प से बता देंगे। इतनी इंफॉर्मेशन रखते हैं जैसे हायर सेकंडरी वहीं से किया हो। मेहनती है हमारी युवा पीढ़ी । वीजा जैसी कंपलीकेटेड चीज के बारे में पूछ लो-एच-1,पी-1 कोई सा भी वन-ट-थ्री हो सभी की मुकम्मल मालूमात। पूरा टेलेंड अमेरिका को विकसित करने में लगा देंगे। यू नो वही वसुधैव कुटुंबकम् की भावना। फिर देश का भी ध्यान रखते हैं। विदेश संभालेंगे हम और देश को गंजले,संजले मंझले भैइया, इतने सारे तो हैं कोई भी संभाल लेगा ही। विदेश जाकर भी इतनी चिंता है देश की , कहीं देखे हैं ऐसे लोग। ऐसे ही नहीं सूचना और तकनीक में विश्व में भारतीय छाए हुए हैं। इतनी तेजी से तरक्की कर रहे हैं भैइया कि मुझे तो डर लगता है कि आने वाले समय में कहीं नई जेनरेशन को देशभक्ति के मायने भी देशभक्ति डॉट कॉम में ही नहीं समझाना पड़े। आज ही संभलियो भिया।

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संपर्क:

अनुज खरे

सी-175

मॉडल टाउन

जयपुर

मो.- 9829288739

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रचनाकार: अनुज खरे का व्यंग्य : ये है हमारी देशभक्ति डॉट कॉम
अनुज खरे का व्यंग्य : ये है हमारी देशभक्ति डॉट कॉम
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