यशवन्त कोठारी का आलेख : ढाई आखर प्रेम का

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प्रेम के बारे में हम क्‍या जानते है ? प्रेम एक महत्‍वपूर्ण भावनात्‍मक घटना हैं। प्रेम को वैज्ञानिक अध्‍ययन से अलग समझा जाता हैं। कोई भी...

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प्रेम के बारे में हम क्‍या जानते है ? प्रेम एक महत्‍वपूर्ण भावनात्‍मक घटना हैं। प्रेम को वैज्ञानिक अध्‍ययन से अलग समझा जाता हैं। कोई भी शब्‍द इतना नहीं पढ़ा जाता है, जितना प्रेम, प्‍यार, मुहब्‍बत। हम नहीं जानते कि हम प्रेम कैसे करते है। क्‍यों करते है। प्रेम एक जटिल विषय हैं। जिसने मनुष्‍य को आदि काल से प्रभावित किया है। प्रेम और प्रेम प्रसंग मनुष्‍य कि चिरस्‍थायी पहेली है। प्रेम जो गली मोहल्‍लों से लगाकर समाज में तथा गलियों में गूंजता रहता है। प्रेम के स्‍वरूप और वास्‍तविक अर्थ के बारें में उलझनें ही उलझनें है। प्रेम मूलतः अज्ञात और अज्ञेय है। प्रेम का यह स्‍वरूप मानव की समझ से दूर है। प्रेम के बारें में कोई जानकारी नहीं हो पाती है प्रेम पर उपलब्‍ध सामग्री कथात्‍मक, मानवतावादी तथा साहित्‍यिक है या अश्‍लील है या कामुक है और प्रेम का वर्णन एक आवेशपूर्ण अनुभव के रूप में किया जाता है अधिकांश साहित्‍य प्रेम कैसे करें? का निरूपण करता है। प्रेम के गंभीर सामाजिक और मनोवैज्ञानिक अध्‍ययन के प्रयास देर से शुरू हुए। प्रेम एक आदर्शीकृत आवेश है जो सेक्‍स की विफलता से विकसित होता है। या फिर सेक्‍स के बाद प्रेम विकसित होता है। परन्‍तु सेक्‍स प्रेम से अलग भी प्रेम होता है प्रेम को शुद्धतः आत्‍मिक चरित्र भी माना गया है। प्रेम और सेक्‍स की अलग अलग व्‍याख्‍याएं संभव है। परिभाषाएं संभव हैं प्रेम एक जटिल मनोग्रन्‍थि हे। प्रेम एक संकल्‍प हैं। जिसके अर्थ अलग अलग व्‍यक्‍तियों कि लिए अलग अलग हो सकता है। यदि प्रेम का समन्वय शरीर से है तो उद्दीपन ही सेक्‍स जनित प्रेम है, यदि ऐसा नहीं है तो यह एक असंगत प्रेम है।

प्रेम संवेगों का उदगम क्‍या है? प्रेम भावना क्‍या है? व्‍यक्‍ति के उदगम अलग अलग क्‍यों होते हैं। दैहिक ओर रूहानी प्रेम क्‍या है? प्रेम का प्रारम्‍भ कहां से होता है और अंत कहां पर होता है। प्रेम में पुरस्‍कार स्‍वरूप माथ्‍ो पर एक चुम्‍बन दिया जाना काफी होता था, मगर धीरे धीरे शारीरिक किस को महत्‍व दिया जाने लगा ओर सम्‍बन्‍ध बनने लग गये। प्रत्‍येक मनुष्‍य में जन्‍म के समय से ही प्रेम का गुण होता है तथा प्रेम की क्षमता होती है।

प्रेम वास्‍तव में मनुष्‍य का वह फोकस है जो सेक्‍स से कुछ अधिक प्राप्‍त करना चाहता है। जब किसी के लिए दूसरे की तुष्‍टि अथवा सुरक्षा उतनी महत्‍वपूर्ण बन जाती हैं। जितनी स्‍वयं की तो प्रेम अस्‍तित्‍व में आता है। प्रेम का अर्थ अधिकार नहीं समर्पण और पूर्णरूप से स्‍वीकार करना होता है। दो मनुष्‍यों के बीच आत्‍मीयता की अभिव्‍यक्‍ति ही प्रेम है। प्रेम से अभिप्राय उस अतः प्रेरणा के संवेगों से होता है जो व्‍यक्‍ति के साथ व्‍यक्‍तिगत संपर्क से प्राप्‍त होती है। रोमांटिक प्रेम वास्‍तव में सामान्‍य प्रेम की गहन अभिव्‍यक्‍ति होता है। जिसमें ऐन्‍द्रिय तथा रोमांटिक प्रेम का अस्‍तित्‍व हमेशा से ही रहता है।

प्रेम के चार मुख्‍य घटक संभव है परमार्थ प्रेम, सहचरी प्रेम, सेक्‍स प्रेम, और रोमांटिक प्रेम।

प्रेम उभयमानी होता है वास्‍तव में प्रेम घनात्‍मक एवं ऋणात्‍मक ध्रुवों की तरह ही होता हैं एक ही मन उर्जा के दो विपरीत ध्रुवों की तरह है।

प्रेम के पात्र के साथ तादात्‍मय स्‍थापित करना ही प्रेम में सर्वोच्च लक्ष्‍य हो जाता है। महिला के लिए प्रेम ही धर्म बन जाता है। संसार में प्रेम के अलावा कुछ भी वास्तविक नहीं है। व्‍यक्‍ति प्रेम से कभी भी थकता नहीं है। प्रेम जीवन की प्रमुख अभिव्‍यक्‍तियों का श्रोत है। प्रेम ही एक ऐसी चीज है जो सर्वाधिक सार्थक है। प्रेम करने वाला कष्‍ट ओर विपत्तियों का सामना करता है। ओर प्रेम को वरदान मानता है। सुख का कोई भी श्रोत उतना सच्‍चा नहीं जितना प्रेम है। प्रेम सहनशील बनाता है। समझदार बनाता है। ओर अच्‍छा बनाता है। हम अधिक उद्दात्त बन जाते है।

व्‍यक्‍ति का जन्‍म प्रेम ओर मित्रता करने के लिए होता है। प्रेम के अमूल्‍य विकास में बाधा डालने वाली प्रत्‍येक चीज का विरोध किया जाना चाहिये। प्रेम का उन्‍मुक्‍त विकास होना चाहिये। अपने रूप को बनाये रखकर दूसरे को ऊर्जान्‍वित करने को ही प्रेम कहा जाना चाहिये। प्रेम से सुरक्षा की भावना बढ़ती है। प्रेम करने वाले को अपने प्रेम के पात्र के कल्‍याण ओर विकास में ही दिलचस्‍पी रहती है। प्रेम करने वाला अपने साधन अपने पात्र को उपलब्‍ध कराता है। इससे उसे सुख मिलता है।

प्रेम सबसे सहजता से ओर परिवार की परिधि में उत्‍पन्‍न होता है। आगे जाकर पूरी मानवता को इस में शामिल किया जा सकता है। प्रेम का भाव प्रेम के पात्र तक ही सीमित नहीं रहता है। बल्‍कि प्रेम करने वाले के सुख तथा विकास को भी बढ़ाता है।

प्रेम पसन्‍द या रूचियों पर निर्भर नहीं रहता, प्रेम की गली अति संकरी या में दो ना समाये, ढ़ाई आखर प्रेम का पढ़े सौ पण्‍डित होय।

प्रेम का रास्‍ता तलवार की धार पर चलने का रास्‍ता हैं। विश्‍व की महान उपलब्‍ध्‍यों के लिए प्रेरणा स्‍त्री के प्रेम से प्राप्‍त होती है। कालिदास नेपोलियन माइकल फैराडे के जीवन में प्रेम ने एक महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऐन्‍द्रिय उल्‍लास प्रेम का फल होता है। प्रेम व्‍यक्‍ति का जीवन हो जाता है, ओर जीविका भी। प्रेम आवश्‍यक रूप से पसन्‍द या रूचियों पर निर्भर नहीं करता है। प्रेम अति भाव भी जाग्रत करता है। प्रेम एक ऐसा संवेग है जो आवेग ओर आवेश के बढ़ जाने के बाद बना रहता है। प्रेम केवल एक रोमांटिक भावना नहीं है। प्रेम के अधारभूत अनुभव की जड़े व्‍यक्‍तियों की आवश्‍यकताओं में होती है। सूत्र रूप में हम प्रेम की कल्‍पना एक संवेगात्‍मक रूप में कर सकते है। वास्‍तव में प्रेम वैयक्‍तिक ओर सामाजिक दोनो प्रकार के कल्‍याण तथा सुख के लिए आवश्‍यक है। प्रेम की जटिलता को समझना आसान नहीं होता है। प्रेम के विषमलिंगी व्‍यक्‍तियों में अनुराग , लगाव रूचि ओर भावावेश होता है। ओर अन्‍य व्‍यक्‍ति इस क्रिया को अपने ढ़ंग से देखने के लिए स्‍वतंत्र होता है।

प्राचीन भारतीय स्‍त्री में भी पुरूष की अपेक्षा प्रेम का गुण कहीं अधिक पाया जाता है। प्रेम को उसके अधिक उद्दात्त अर्थ में समझना स्‍त्री के लिए ही संभव है संपूर्ण प्रेम की और स्‍त्री का झुकाव ज्‍यादा पाया जाता है। शरीर गौण हो जाता है। निष्‍काम प्रेम की कल्‍पना ही सहज हो जाती है। प्‍लेटोनिक प्रेम की व्‍याख्‍या भी स्‍त्री द्वारा सहज रूप में संभव है। एक बार में एक से अधिक व्‍यक्‍ति से प्रेम करने की कोशिश को उचित नही कहा जा सकता।

स्‍वच्‍छ प्रेम ओर प्रेम की निर्विरोध अभिव्‍यक्‍ति भी संभव है। ये अपवाद स्‍वरूप ही सामने आते है। संतोष प्रद प्रेम सम्‍बन्‍ध के लिए अभिव्‍यक्‍ति आवश्‍यक है। जीवन को सुखी बनाने में प्रेम की भूमिका का बड़ा महत्‍व है। सुखी रहने के लिए जो कारक आवश्‍यक है प्रेम उनमें से एक महत्‍वपूर्ण कारक है। इसी प्रकार जीवन साथी के चयन के लिए भी प्रेम एक आवश्‍यक उपागम है। प्रेम और ख्‍याति, यश का प्रेम भी एक आवश्‍यकता के रूप में उभर कर सामने आया है। प्रेम सम्‍बन्‍धों का आधार कल्‍पना में नहीं हो कर वास्तविकता में होना चाहिए।

विवाह नामक संस्‍था में प्रेम का योगदान है।, कम या अधिक यह बहस का विषय है। विवाह से प्रेम में सेक्‍स का प्रवेश आसान और आवश्‍यक हो जाता हैं। संसर्ग की सहज प्रवृति, जीवन प्रेरणा और जीवन के रूप में प्रंसंग का निरूपण किया गया है। प्रंसंग का विवरण प्रजनन से सम्‍बन्‍धित है। प्रसंग मनुष्‍य की शारीरिक तथा भावात्‍मक दोनो पक्षों की एक रहस्‍यमय जटिलता है। यह आत्‍मिक विकास का एक कारक है। और पूरे चरित्र पर प्रभाव डालता है। प्रसंग को अनेक प्रकार से प्रेरित और प्रभावित किया जाता है। वह व्‍यक्‍ति के व्‍यवहार को निर्धारित करता है। प्रसंग मनुष्‍य के लिए आवश्‍यक है। वह शारीरिक तथा भावनात्‍मक दोनो पक्षों का एक रहस्‍य है जो व्‍यक्‍तिगत है। तथा अन्‍य व्‍यक्‍तियों से हमारे सम्‍बन्‍धों को निर्धारित करता है। प्रसंग व्‍यक्‍ति के विकास का एक कारक तो है ही वह पूरे चरित्र को प्रभावित करता है।

प्रसंग शक्‍ति व्‍यक्‍ति को अनेक तरह से प्रभावित ओर प्रेरित करती है। वह व्‍यक्‍ति के सोचने के ढंग को प्रभावित करती है। वह उसे कभी निराश उदास कर देती है तो कभी उल्‍लास व जीवन से परिपूर्ण प्रेम जीवन को गहराई ओर समृद्धि प्रदान करता है सहिष्‍णुता बढ़ाता है। और हमारे संवेगों को व्‍यापक बनाता है तुष्‍टि कोई चाय काफी पीने की तरह नहीं है। आधुनिक जीवन में प्रसंग के कारण अभद्रता बढ़ी है। प्रेम के बिना प्रसंग का कोई मूल्‍य नहीं हैं यह एक सशक्‍त सत्‍य हैं जो मनुष्‍य को बांध्‍ो रखता है प्रसंग का दमन विक्षिप्‍त करता है। यह तात्‍कालिक आवश्‍यकता नही है। यह सोच गजब है कि प्रसंग एक बुरी वस्‍तु है। मानसिक विकार उत्‍पन्‍न करता है। मनुष्‍य मेमेंलिया जन्‍तु है जिसके कैरेक्टर्स में पोलीगेमी निश्‍चित रही है इस सहज प्रवृति को दबाने से स्‍नायविक अस्‍थिरता उत्‍पन्‍न होती है। एक रिक्‍तता आती है। जो सम्‍बन्‍धों को कमजोर बनाती है। प्रसंग किसी भी प्रकार से लज्‍जाजनक नहीं। हिन्‍दू संस्‍कृति प्रसंग को पवित्र मानता हैं स्‍त्री एक नदी की तरह सदा नीरा सदा पवित्र मानी गई हैं। काम की मूल कल्‍पना ज्ञानेन्‍द्रियां है संयम का पालन करने से प्रसंग कलह बन जाती है और इसका सफल और संतोषप्रद क्रियान्‍वयन आवश्‍यक है। व्‍यक्‍ति को समझ विकसित करनी पड़ती है। सत्‍य है कि प्रसंग मानव जीवन का सबसे सशक्‍त और उपयोगी उपादान के रूप में हर वक्‍त उपस्‍थित रहा है। और उपस्‍थित रहेगा। यह स्‍त्री को पुरूषों के अन्‍दर और पुरूषों को स्‍त्रियों के अन्‍दर श्रेष्‍ठ गुणों को उत्‍पन्‍न करने में सक्षम है। प्रसंग के अति विचित्र संस्‍कृति में जो अन्‍तर पाये जाते है वे बहुत व्‍यापक है और इन्‍हें समझना बहुत जटिल है। भारतीय संस्‍कृति के संदर्भ में भी इस जटिलता को समझना प्रदेशों की स्‍थिति के आधार पर निर्भर करता है। एक ही समाज, जाति संस्‍कृति या जनपद में भी यह अलग अलग हो सकती है सर्वत्र एक अनिवार्य शारीरिक आवश्‍यकता बनकर सामने आया है जीवन का एक आवश्‍यक अंग बन गया है प्रसंग जिसमें की वर्षो में इस क्ष्‍ोत्र में विचारों में परिवर्तन आये है खासकर महिलाओं के सोच में आये परिवर्तन पूर्ण रूप से नये है और अब यह लज्‍जाजनक, गंदा नहीं होकर एक पवित्र आवश्‍यकता बनकर सामने आया है। विवाह पूर्व सम्‍बन्‍ध, विवाहेत्तर सम्‍बन्‍धों के प्रति भी एक खुलापन सर्वत्र दिखाई दे रहा है। विवाह के साथ साथ रहने की प्रवृति का भी विकास है। जो समाज को परिवर्तित करने की ओर अग्रसर है प्रसंग संतुष्‍टि नहीं होने पर अन्‍य सम्‍बन्‍धों को जायज ठहराया जाता है। क्‍यों कि समाज में आज भी प्रतिबन्‍ध स्‍त्रियों पर ज्‍यादा है और पुरूषों पर कम। धीरे धीरे समाज में प्रसंग के मायने में स्‍वतंत्रता, स्‍वीकृति और सहिष्‍णुता का विकास हो रहा है। जो एक नये उभरते हुए समाज का द्योतक है हर व्‍यक्‍ति यह निर्णय करने को स्‍वतंत्र है कि उसके लिए सही क्‍या है और गलत क्‍या है। और जो उसे सही लगता है उसे करने की स्‍वतंत्रता व्‍यक्‍ति को मिलनी ही चाहिये।

आज जागरूकता के कारण स्‍त्री को प्रसंग शब्‍दावली में रूचि उत्‍पन्‍न हो गई है। और वो अपने पार्टनर से यह सब चाहती है आज की स्‍त्री विविध प्रकार के सेक्‍स व्‍यवहार को स्‍वीकार करती है। उसमें सक्रिय भाग लेती है। और आक्रामक हो सकती है वे पूरी ईमानदारी और स्‍पष्‍ट वादिता के साथ अपने विचार व्‍यक्‍त कर सकती है अपनी इच्‍छाओं के दमन करने में अब उनका विश्‍वास नहीं है।

सांस्‍कृतिक चेतना का प्रभाव व्‍यक्‍ति पर पड़ता है। रेडियों टी॰वी॰ चैनल, समाचार पत्र, मीडिया, और इनमें छपने, प्रसारित, प्रकाशित होने वाली सामग्री का गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। पारिवारिक सहभूमिका का भी प्रभाव विवाह पर पड़ता है। संयुक्‍त परिवार में और एकल परिवार में रहने वाली संतान के व्‍यवहार और विचार में अन्‍तर आता है। सामाजिक परिवर्तन भी अलग अलग हो सकते है।

शहरी पृष्‍ठभूमि और ग्रामीण पृष्‍ठभूमि का भी प्रभाव बहुत हद तक देखने को मिलता है। जिसमें टी वी सीरियलों का भी प्रभाव इन दिनों काफी देखने को मिलता है। वेशभूषा के प्रभाव से भी इन्‍कार नहीं किया जा सकता हैं प्रेम में पागल नई पीढी वेशभूषा टी वी सीरियलों और फिल्‍मों के आधार पर तय हो रही है। और इसका प्रभाव प्रेम सम्‍बन्‍धों और प्रसंगों पर निश्‍चित रूप से पडता है।

प्रेम सम्‍बन्‍धों पर औधोगीकरण नगरीकरण लोकतंत्र अभिव्‍यक्‍ति की स्‍वतंत्रता धर्म के घटते प्रभाव का भी असर पड़ रहा है। रूढिवादिता कम हुई है। प्रयोगशीलता तथा प्रगतिशीलता बढी है। इस कारण प्रेम की अभिव्‍यक्‍ति में एक खुलापन आया है। जो प्रेम के विभिन्‍न रूपों में अभिव्‍यक्‍त कर सकता है। प्रसंग उनमें से एक महत्‍वपूर्ण रूप है। सहजीविता के कारण विवाह नामक संस्‍था कमजोर हुई तथा परिवार कल्‍याण के साधनों के खुले प्रयोग, प्रचार प्रसार से गर्भधारण से लम्‍बा अवकाश मिलने लगा है। और इस करण भी प्रेम के उपयोग में स्‍वच्‍छन्‍दता आई है।

शिक्षा, सहशिक्षा प्रोफेशनलिज्‍म तथा एक ही प्रोफेशन में रहने के कारण स्‍त्री पुरूषों के प्रेम प्रसंगों में बाढ़ सी आ गई है। पिछले कुछ वर्षो में लड़कियों युवतियों महिलाओं के जीवन के हर क्ष्‍ोत्र में प्रवेश के कारण उनमें आत्‍मविश्‍वास बढ़ा है। और यह आत्‍मविश्‍वास प्रेम सम्‍बन्‍धों में भी देखा जा सकता है। प्रणय निवेदन और प्रपोज करना अब पुरूषों का एकाधिकार नहीं रह गया है।

आपसी उदारता बच्‍चों में भी आती है। और दादा दादी नाना नानी भी अब उदार और सहनशील हो गये है ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं जहां पर दादा दादी, नाना नानी, ने प्रेम प्रसंगों को संभालने में योगदान किया है अनुभव की नूतनता की आवश्‍यकता हर एक को पड़ती है। इस कारण नई पीढ़ी नये नये प्रयोग करती है।

प्रेम विवाह, प्रणय याचना, यात्रा, पिकनिक, नये मित्र मन बहलाव मनोरंजन के नये नये साधन ढूंढ लाते है और इन सब का एक सिरा प्रेम हैं तो दूसरा सिरा प्रसंग। इन सबमें व्‍यक्‍ति का शारीरिक रूप बहुत महत्‍वपूर्ण होता हैं। शारीरिक आकर्षण से व्‍यक्‍ति में उर्जा अधिक होती है। और इस कारण वो प्रतिभावान आशावान और खुश रहता है।

प्राचीन साहित्‍य में भी प्रेम एक महत्‍वपूर्ण विषय हमेशा से रहा है। संस्‍कृत, उर्दू साहित्‍य में प्रेम प्रसंगों के विवरण है। और श्रृंगार को बहुत ही महत्‍वपूर्ण स्‍थान प्राप्‍त है एक ही सच्‍चे प्रेम के किस्‍से हर तरफ सुने जा सकते है। सम्‍पूर्ण प्रेम के लिए त्‍याग करने वाले हर युग में हुए है।

प्रसंग काम के लिए क्रीड़ा एक अनिवार्य आवश्‍यकता के रूप में उभर कर सामने आई है। सभी धर्मों में वंशवृद्धि के रूप में इसे एक उद्दात्त कर्तव्‍य माना गया है। प्रसंग में व्‍यक्‍ति के मूल्‍य निजी ढंग से होते है और समाज के मूल्‍य भी इसमें शामिल होते है।

दैव लोक एलिस ने स्‍त्रियों के स्‍वतंत्रता अस्‍तित्‍व की वकालत को एक स्‍वरूप ऐन्‍द्रिय सुख माना जाने लगा है। संक्रमण करने में प्रसंग को वर्जित मानने वाले अब समाज में बहुत कम रह गये है। स्‍त्रीत्‍व की तलाश में भटकने की परमावश्‍यकता नहीं है। स्‍त्री जागरूकता के कारण शिक्षा के कारण अब और स्‍वयं को अतिजागरूक समझने लगी है। प्रेम के मामले स्‍त्री पुरूष से आगे निकलने की प्रक्रिया में यात्रा कर रही है शिक्षा का रोल इस सम्‍पूर्ण क्रम में बहुत महत्‍वपूर्ण है। धीरे धीरे स्‍त्री अपने प्रेम जीवन को समझ रही हैं।

प्रसंग के काम में उल्‍लेखनीय है कि सामाजिक रूप से स्‍वीकृत मापदण्‍ड ही नैतिकता के रूप में प्रचारित प्रसारित किये जाते है। भारतीय समाज में परमावश्‍यक प्रभाव बहुत प्रबल होता है और इन्‍हीं परमपराओं के आधार पर नैतिक मान्‍यताओं का विकास हुआ हे। जिससे रूढ़िवादी समाज कठोरता से और प्रगतिशील समाज भी स्‍वीकार करता है। ये प्रतिमान प्राचीन भानत में भी उपलब्‍ध थ्‍ो। प्रेम और प्रसंग की आवश्‍यकता अलग अलग हो सकती है। मगर समाज में स्‍वीकृति एक की होती है।

प्रेम प्रसंग विवाह, विवाहपूर्व और विवाहेत्तर सम्‍बन्‍धों के कारण स्‍त्री पुरूष में बडी तेजी से बदलाव आया है देश में भी ओर विदेशों में भी ऐसे सैंकडों सर्वेक्षण किये है। पीएचडी हुए है। शोध प्रबन्‍ध छपे हैं और छपते रहेंगे। वास्‍तव में यह कभी न समाप्‍त होने वाला विषय है। और इसे इसी रूप में देखा जाना चाहिये। प्रेम के बिना जीवन की कल्‍पना करना भी दुष्‍कर है। प्रेम मानवता है जीवन है समन्‍दर है प्रेम स्‍वयं घायल होकर भी दूसरे से प्‍यार करता है दो प्‍यारे हृद्‌यों के बीच ही स्‍वर्ग का वास हैं। प्रेम की शक्‍ति का विकास करो। जीवन की समस्‍त बुराइयों की दवा है प्‍यार। आसक्‍ति से प्रेम का प्रस्‍फुटन होता हैं प्रेम समुद्र है प्रेम वायु हैं आकाश है। पृथ्‍वी है। प्रेम एक आग है। प्रेम दरिया है। प्रेम अनन्‍त और अगाध है। प्रेम ईश्वर है। लव इज गॉड, गॉड इज लव एक विश्‍वव्‍यापक अवधारणा है प्रेम तीनों लोकों और चौदह खण्‍डों में व्‍याप्‍त है। प्रेम सूरज की किरण है। घूप है। प्रेम तो जन्‍म जन्‍मान्‍तर का बंधन है। प्रेम में बलिदान त्‍याग राग है प्रेम वही कर सकता है जो बलिदान कर सकता है प्रेम यथार्थ में एक पुल है। जो दो अजनबियों में एकता स्‍थापित करता है। प्रेम उपर की ओर जाता है।

इश्क व मुश्‍क छिपाये नहीं छिपता है। प्रीत पलकों से झांकती है। प्रेम, प्‍यार, मुहब्‍बत, अनुराग, क्रीड़ा, केलि, आनन्‍द, आसक्‍ति, अनुशक्‍ति, इश्क, उल्‍फत, चाहत, प्रणय, प्रीति, रति, राग, लगन, रोमांन्‍स आदि प्रेम के नाम है प्रेम की थाह पाना बडा मुश्‍किल है। प्रेम तो समुद्र है। आग का दरिया है और डूब के पार जाना है। शक्‍ति का प्रेम नुकसान करता है। प्रेम की शक्‍ति विकास करती है। भौतिक और आध्‍यात्‍मिक प्रेम दोनों ही जीवन के लिए आवश्‍यक है।

भारत में जिस प्रकार सखिभाव से उपासना का विकास हुआ ठीक उसी प्रकार यूनान में पुरूष लोग किन्‍नर बनकर सखीभाव ग्रहण कर आजन्‍म कामदेवी की उपासना करते थ्‍ो।

यूनानी देवता मन्‍दिर में नग्‍न रहते थ्‍ो वसन्त ऋतु में उनके लिंग को गुलाब की माला पहनाई जाती थी। रोमन देवता म्‍यूरिकस भी इसी प्रकार थ्‍ो। कोरिया के काम देवी के मन्‍दिर में वेश्‍याएं रहती थी।

आर्मिनिया की कामदेवी अनाउतीज के मन्‍दिर में लोग अविवाहित कन्‍या चढाते थ्‍ों।

काम वासना एक मौलिक अधिकार की तरह है। कामवासना मानव के स्‍वभाव के साथ लगी हुई है। यह आकर्षण अनन्त काल से चल रहा है। सृष्‍टि भी पुरूष व प्रकृति के संयोग से बनी है। महाकाया भी सत्‍य है। और परब्रहम भी सत्‍य हैं काम का अर्थ सुख है। स्‍त्री सबसे बडी भोग्‍य वस्‍तु है।

युनानी विचारकों के अनुसार प्रारम्‍भ में मनुष्‍य अर्ध नारीश्‍वर था और परम शक्‍तिशाली था देवों ने इसके दो टुकडें कर दिये थ्‍ो ओर तभी से ये दो टुकडे मिलने के लिए आतुर और ब्‍ोचैन रहते है। इसी प्रयत्‍न, चेष्‍टा, बेचैनी, को प्रेम कहा गया है यह प्रेम पवित्र होने पर ही ग्राहय है। स्‍त्री पुरूष की स्‍वाभाविक कामुकता को रखने के लिए समाज ने विवाह नामक संस्‍था का विकास किया।

विष्‍णु पुराण में स्‍त्री मर्यादा की स्‍थापना की गई है। जो श्रेष्‍ठ है। तथा व्‍यवहार में लाने योग्‍य है।

पुरूष स्‍त्री को इस पुराण में विष्‍णु लक्ष्‍मी के माध्‍यम से कहा गया है। रति और राग विष्‍णु और लक्ष्‍मी के स्‍वरूप है।

पुरूष अर्थ स्‍त्री वाणी है। पुरूष न्‍याय है, स्‍त्री नीति है। पुरूष सृष्‍टा है। स्‍त्री सृष्‍टी है। पुरूष भूघर है। स्‍त्री भूमि है। पुरूष संतोष है स्‍त्री तुष्‍टि है। पुरूष काम है। स्‍त्री इच्‍छा है पुरूष शंकर है। स्‍त्री गौरी है। पुरूष सूर्य है। स्‍त्री प्रभा है। पुरूष चंद्रमा है। स्‍त्री चांदनी है। पुरूष आकाश है। स्‍त्री तरंग है। पुरूष आश्रय है। स्‍त्री शक्‍ति है। पुरूष दीपक है। स्‍त्री ज्‍योति है। पुरूष नद है। स्‍त्री नदी है। पुरूष ध्‍वज है। स्‍त्री पताका है।

विवाह के आठ प्रकार है

ब्रह्मा, दैव, आर्ष, प्राजापत्‍य, आसुर, गन्‍धर्व, राक्षस, पैशाच। ये प्रेम के लिए ही है।

स्‍त्री वासना में भी मानव का कल्‍याण ही देखती है। स्‍त्री की सबसे बडी शक्‍ति आंसू है। इसकी शक्‍ति आज्ञाकारिता, ध्‍ौर्य और सहिष्‍णुता है। स्‍त्री की शक्‍ति सौन्‍दर्य, जवानी और लावण्‍य में है।

स्‍त्री के प्रति उदार भाव रखा जाना चाहिये। उसकी भूलों के प्रति क्षमाशील होना चाहियें। उनके प्रति उपेक्षा भाव नही होना चाहियें।

कमना वासना से बचाने के लिए हिन्‍दू शास्‍त्रों में परम्‍परा, नियम, विधि सहायता आदि बनाये गये है।

स्‍वभाव से ही पुरूष बहुस्‍त्री प्रेमी है। पोलीगेमी इस जन्‍तु का चरित्र माना गया है।

प्रेम में कंदर्प, काम, वासना, प्रसंग, चाह, निष्‍ठा, प्रीती, यारी, रति, राग, राधा, रूचि, रोमांस, श्रंगार, संग, साथ, सौभाग्‍य आदि शामिल है। प्रेम में पवित्रता, स्‍वार्थहीनता, निष्‍ठा, त्‍याग, सम्‍मिलित है। प्रेम अपना रास्‍ता खुद बनाता है। प्रेम का मार्ग कठोर कंटकाकीर्ण और गहन है। प्रेम ईश्वर के हृदय में है। प्रेम सर्वत्र है। प्रेम अहसास है। वजूद है। मर्यादा है। प्रेम समर्पण है। सम्‍पूर्ण समर्पण सम्‍पूर्ण प्रेम का द्योतक है। स्‍त्री पुरूष को प्रेम प्रेम के गहरे अर्थ देता है। यह सम्‍पूर्ण प्रेम की खोज का समर्पण मार्ग है। खुसरो के अनुसार प्रेम की धारा उल्‍टी चलती है। जो उतरा सो डूब गया जो डूबा सो पार हो गया। प्रेम खुद से शुरू होकर खुदा पर जाकर समाप्‍त हो जाता है। प्रेम में आंखों का बहुत महत्‍व है। प्रेम का रसायनशास्‍त्र भी बहुत महत्‍वपूर्ण है। आंखों में आंख्‍ो डालकर देखने मात्र से प्रेम हो जाता है। प्रेम में सौभाग्‍य और बुद्धि का होना आवश्‍यक है। बाडी लेंगवेज बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह देती है। मुडकर देखने मात्र से हमेशा के लिए प्रेम हो जाता है। गलतियां करना प्रेम के समान है।

प्रेम, व्‍यक्‍ति, को व्‍यक्‍त करता है। स्‍वप्‍न विज्ञान, बच्‍चों, युवतियों और युवाओं के सन्‍दर्भ में और स्‍वभाव में आने वाली चीजें प्रेम जीवन से जुडी है। स्‍वप्‍न विज्ञान विश्‍लेषण और चिकित्‍सा में प्रेम को और भी प्रगाढ़ करता है। इच्‍छापूर्ति होना आवश्‍यक है।

चिन्‍ता, मनोग्रस्‍तता, आदि मनोरोगों में प्रेम का महत्‍वपूर्ण स्‍थान है।

प्रेम में प्रतिरोध का दमन होता है तो रोग उत्‍पन्‍न होते है व्‍यक्‍ति सेडिस्‍ट हो जाता है। इसके विपरीत कुछ लोग मैसोकिस्‍ट हो जाते है।

इरोटोजेनिक कार्य शुरू हो जाते हैं और व्‍यक्‍ति आत्‍म रति की और प्रवृत्त हो जाता है लिविडो(राग) इनर्जी प्रेम त्‍याग का आवश्‍यक तत्‍व है, उर्जा है। बिना उसके प्रेम संभव नहीं है।

भय, डर, चिन्‍ता, मानवीय स्‍वभाव है। लेकिन अति होने पर रोग है। प्रेम में भी चिन्‍ता भय डर हो जाता है।

चिन्‍ता का दमन किया जाना चाहिये।

चिन्‍ता कमजोरी, दिल की धडकन, सांस रूकना, सामान्‍य से अधिक मन चंचल होना चिन्‍ता के रूप है। जो प्रेम में भी दिखाई देते है। चिन्‍ता, रागात्‍मक, कारणात्‍मक द्वेषात्‍मक, प्रेमात्‍मक हो सकती है। चिन्‍ता में राग द्वेष स्वरित होती है। प्रेम अहस्‍तान्‍तरणीय होता है। स्‍नायु रोग से ग्रसित व्‍यक्‍ति को प्रेम करने में परेशानी हो सकती है इसी प्रकार एक कुंवारे से प्रेम करने में रोगी ज्‍यादा समय नहीं लगाता है। स्‍नायू रोग और स्‍नायु स्‍वास्‍थय में ज्‍यादा अन्‍तर नहीं है। जीनियस और पागल में भी ज्‍यादा अन्‍तर नहीं है। प्रेम में व्‍यक्‍ति पागल या जीनियस कुछ भी हो सकता है।

स्‍त्री पुरूष सम्‍बन्‍धों की व्‍याख्‍या आज भी विचार करने को प्रेरित करती है। प्रेम के मामलों में प्रसंग और स्‍वप्‍न, स्‍नाय, स्‍नायुरोग, मनोरोग पर ही ज्‍यादा ध्‍यान दिया गया है। मगर विश्‍लेषण आगे के लिए रास्‍ता खोजते है, और यह सुखद है।

प्‍यार की केमेस्‍ट्री में हारमोन्‍स बहुत महत्‍वपूर्ण भूमिका अदा करते है। तन की चाहत, मन की चाहत से प्‍यार शुरू होता है। प्‍यार में हारमोन्‍स शरीर, मस्‍तिष्‍क में हलचल पैदा कर देते है।

श्री श्री रवि शंकर पूरी सृष्‍टि से प्रेम करने का आहवान करते है। प्रेम की इस सरल राह पर चलने की इच्‍छा होनी चाहिये। मनुष्‍य को स्‍वयं से मानवता से फूल पत्तों नदी नालों सुबह शाम पशु पक्षियों सबसे प्रेम करते रहना चाहिये।

वास्‍तव में प्रेम दुधमुंहे बच्‍चे की हंसी में है। वह एक कुंवारी लड़की के सपनों में है। वह हर तरफ बिखरा हुआ है। उसे देखने वाली आंख होनी चाहिये युद्ध में भी प्रेम ढ़ूँढ़ा जा सकता है रेडक्रास की मानवीय सेवा ऐसे ही प्रेम का उदाहरण है।

प्‍यार रूमानी या रूहानी हो सकता है। प्रगाढ़ मित्रता का प्‍यार भी संभव है। भावुक ज्‍वार की तरह भी जीवन में प्‍यार आता है। तार्किक बौद्धिक प्रेम भी होता है। प्‍लोटोनिक लव के उदाहरण भी है। प्‍लोटोनिक लव का आधार अच्‍छा है। इसमें सद्‌गुण और सच्‍चाई होती है। ऐसे लोगों की आत्‍मा एक ही होती है। शरीर अलग अलग हो सकते है। ओशो के अनुसार प्रेम मृत्‍यु है, अहंकार की मृत्‍यु है। अहंकार की मृत्‍यु पर आत्‍मा का जन्‍म होता है। प्रेम में वासना या प्रसंग होता ही है। ईर्ष्या या घृणा भी प्रेम जितनी ही महत्‍वपूर्ण है।

व्‍यक्‍ति स्‍वयं प्रेम में चुनने का अधिकार रखता है, मगर प्रकृति स्‍वयं निर्णय करती है। और प्रेम आपको चुनता है। हजारों लाखों या करोडों में आपको वही एक क्‍यों पसन्‍द आया आप उसे उसकी समस्‍त कमजोरियों के साथ क्‍यों प्‍यार करते है। उस का छोटे से छोटा आंसू आपको हमेशा के लिए क्‍यों रूला देता है या रूला देने की शक्‍ति रखता है। हर प्रेम अनोखा अलग व नयापन लिए हुए होता है। जितनी तरह के मनुष्‍य उतनी तरह का प्रेम संभव है। प्रेम याने एक दूसरे को समझना महसूस करना अहसास लेना और देना देने मे जो आनन्‍द है वो लेने में नहीं।

त्रासद प्रेम कथाओं से साहित्‍य संसार भरा पडा है। सुखद प्रेम से ज्‍यादा अहमियत दुखद या त्रासद प्रेम की है। श्‍ोक्‍सपीयर, कालीदास से लेकर आजतक हजारों प्रेम कहानियां लिखी गई है। फिल्‍में बनाई गई है। चित्र बनाये गये है। और प्रेम की अविरल धारा बहती है।

लैला मजनू, हीर रांझा, सोहनी महिवाल, शकुंतला दुष्यंत, नल दमयंती, सस्‍सी पुन्‍नू, शीरी फरहाद, राधा कृष्‍ण, जगत रसकर्पूर आदि सैकडों हजारों कहानियां जनमानस में हजारों वर्षो से प्रेम की गाथा गा रही है। सुना रही है। और दुनिया सुनती है। प्रेम में फूलों का विवरण भी आवश्‍यक है। गुलाब प्रेम का प्रतीक है। प्रेम करते है तो इजहार करो अभिव्‍यक्‍त करें और प्रणय याचना प्रणय प्रार्थना में संकोच न करें। वसन्‍तोत्‍सव, मदनोत्‍सव, वेलेन्‍टाइन डे इसीलिए बनाये गये है। साइबर लव चैटिंग भी बुरा नहीं है। बस अपने पार्टनर्स के बारे में सब कुछ अच्‍छी तरह जान लें। समझ लें। धोखा न खायें। प्रेम संकेतों को समझने के लिए बाजारों में कई पुस्‍तकें उपलब्‍ध है। पशु पक्षी भी प्रणय संकेतों का आदान प्रदान करते है।

प्रेम और कविता का सामंजस्‍य पुराना है। गीत भी प्रेम के प्रतीकों से भरे है। लोकगीतों में प्रेम प्‍यार, मोहब्‍बत का इजहार खूब हुआ है। प्रेम के बिना जीवन अधूरा है। प्रेम और प्‍यार दोनों में ही पहला शब्‍द अधूरा है। मगर प्‍यार पूरा करने का प्रयत्‍न तो किया ही जा सकता है। इसके पहले कि बाजारवाद प्रेम की उद्दात्त भावना को लील जायें एक सम्‍पूर्ण प्रेम कर डालिये। आमीन।

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यशवन्‍त कोठारी

86,लक्ष्‍मी नगर ब्रहमपुरी बाहर,जयपुर-302002

फोनः-0141-2670596

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फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर 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रचनाकार: यशवन्त कोठारी का आलेख : ढाई आखर प्रेम का
यशवन्त कोठारी का आलेख : ढाई आखर प्रेम का
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