फारूक आफरीदी की रपट : इन्‍कलाबी शायर मख्‍़दूम मोहिउद्दीन

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इन्‍कलाबी शायर मख्‍़दूम मोहिउद्दीन का जन्‍म शताब्‍दी समारोह मख्‍़दूम की जिन्‍दगी और उनकी शायरी में कोई अन्‍तर्विरोध नहीं थ...

इन्‍कलाबी शायर मख्‍़दूम मोहिउद्दीन का जन्‍म शताब्‍दी समारोह

मख्‍़दूम की जिन्‍दगी और उनकी शायरी में कोई अन्‍तर्विरोध नहीं था-नुसरत

मख्‍़दूम में अपने समय को जांचने और परखने की अद्‌भुत क्षमता थी- स्‍वाधीन

मख्‍़दूम हमारे साहित्‍य का शानदार सरमाया है-कृष्‍ण कल्‍पित

जयपुरः राजस्‍थान प्रगतिशील लेखक संघ और राजस्‍थान हिन्‍दी ग्रंथ अकादमी जयपुर के संयुक्‍त तत्‍वावधान में 8 मार्च, 09 को अकादमी सभागार में हिन्‍दुस्‍तान के इन्‍कलाबी शायर और स्‍वतंत्रता सेनानी मख्‍़दूम मोहिउद्दीन की जन्‍म शताब्‍दी श्रद्धापूर्वक मनाई गई।

मुख्‍य अतिथि प्रतिष्‍ठित शायर और मख्‍़दूम मोहिउद्दीन के सुपुत्र नुसरत मोहिउद्दीन ने उनके जीवन के अछूते और अंतरंग संस्‍मरण सुनाते हुए बताया कि मख्‍़दूम की बातचीत का अंदाज अनूठा और प्रभावित करने वाला था। उन्‍होंने कहा कि मख्‍़दूम की जिन्‍दगी और उनकी शायरी में कोई अन्‍तर्विरोध नहीं था। वे जो देखते थे उसका अक्‍स उनकी शायरी में प्रतिबद्धता के साथ झलकता था। वे बच्‍चों को बताते थे कि हम अपराधी के रूप में जेल यात्रा नहीं करते थे बल्‍कि गरीबों को उनका हक और किसानों को उनकी जमीनें दिलाने के लिए जेल जाते हैं।

अपना संस्‍मरण सुनाते हुए नुसरत ने बताया कि एक बार हिन्‍दुस्‍तान की मशहूर महिला कव्‍वाल शकीला बानो भोपाली उन दिनों हैदराबाद आई हुई थीं और मख्‍़दूम मोहिउद्दीन की लिखी गजल को अपनी आवाज में सजाने के लिए रियाज कर रही थी। हमें उनसे मिलने की चाहत हुई तो अपने वालिद मख्‍़दूम साहब को बिना बताये ही उनका शेरवानी शूट पहनकर उस होटल में पहुंच गये जहां शकीला जी ठहरी हुई थीं। कुछ देर बाद जब मख्‍़दूम साहब वहां आये तो हमें देखकर हैरत में पड़ गये और अपने ही अंदाज में कहने लगे, 'तो जनाब आप यहां पहुंच गये। ये सूट तो मुझे पहनकर आना था। खैर, आप लोग शकीला जी से मिल लिए हैं और आपका मकसद पूरा हो गया है तो अब घर चले जाएं और यह सूट एहतियात से हैंगर में लगाकर रख दें। उनकी बात सुनते हुए हम पसीना-पसीना हो रहे थे।'

नुसरत ने बताया कि मैंने प्रेम विवाह किया जिससे घर वाले नाराज थे। अपने पिता को जब यह बात पता चली तब वे जेल में थे। उन्‍होंने मुझे आश्‍वस्‍त करते हुए कहा कि फिक्र मत कीजिए और मेरे दोस्‍त राज बहादुर गौड़ से मिलिए जो आपको सरपस्‍ती देंगे। उनकी सरपरस्‍ती में ही शादी हुई थी, लेकिन हम शादी के बाद अपने घर नहीं गये। जब पिता मख्‍़दूम साहब जेल से छूटे तो वे हमें लेकर घर आये। बच्‍चों के साथ उनका हमेशा अच्‍छा सलूक रहता था। वे जहां भी जाते या रहते तो वहां के वाकियात, रहन-सहन, खानपान की बातें हमसे किया करते थे। मख्‍़दूम साहब बेशक आम लोगों की लड़ाई में साथ खड़े हुए रहते थे, लेकिन परिवार के लोगों और बच्‍चों से भी बराबर जुड़े रहते थे। हमने उन्‍हें दिली तौर पर कभी अपने से अलग महसूस नहीं किया।

नुसरत ने मख्‍़दूम की स्‍मृति में लिखी एक नज्‍म की ये पंक्‍तियां सुनाते हुए अपनी बात पूरी की-

दिन से महीने और फिर बरस बीत गये

फिर क्‍यूं हर शब तन्‍हाई

आंख से आंसू बनकर ढल जाती है

फिर क्‍यूं हर शब

तेरे शे'र तेरी आवाज गूंजा करती है

फजाओं में आसमानों में

मुझे यूं महसूस होता है

जैसे तू हयात बन गया है

और मैं मर गया हूं।

हैदराबाद से आये समारोह के मुख्‍य वक्‍ता, प्रतिष्‍ठित कवि और 'हिन्‍दी साहित्‍य संवाद' के सम्‍पादक शशिनारायण स्‍वाधीन ने अपने वक्‍तव्‍य में कहा कि जब उपनिवेशवाद से लड़ाई चल रही थी तब मख्‍़दूम मोहिउद्दीन 'अंधेरा' नज्‍म कह रहे थे। आजादी की लड़ाई के समापन पर नये सूरज के स्‍वागत के प्रति गिरिजा माथुर ने भी हमें सावधान किया था। यह एक मोहभंग के समय की ओर संकेत था - 'आज जीत की रात पहरुए सावधान रहना' और मख्‍़दूम खुले रूप में कह रहे थे -

रात की तलछटें हैं, अंधेरा भी है,

सुबह का कुछ उजाला, उजाला भी है

हमदमों हाथ में हाथ दो

सूए मंजिल चलो

मंजिलें प्‍यार की

मंजिले दार की

कूए दिलदार की मंजिलें

दोश पर अपनी-अपनी सलीबें उठाए चलो।

स्‍वाधीन ने मख्‍़दूम और मुक्‍तिबोध के साहित्‍य की शाश्‍वतता पर विस्‍तृत चर्चा करते हुए कहा कि हर तरफ जब अंधेरा था तब उसके खिलाफ हमारे यहां मख्‍दूम और मुक्‍तिबोध जैसे दो बड़े रचनाकार संघर्ष कर रहे थे। इन दो क्रांतिकारी और युग परिवर्तनकारी कवियों का सामाजिक, राजनीतिक और साहित्‍यिक संघर्ष अलग-अलग भूगोल और स्‍थितियों से जुड़ा रहा, लेकिन इनके मूल संघर्ष की धारा, साम्राज्‍यवाद के विरुद्ध कहीं अधिक निकट और पास-पास देखी जा सकती है। मख्‍़दूम को समझने के लिए देश, काल और इतिहास के साथ हमें कवि की संघर्ष भूमि-तेलंगाना के सशस्‍त्र संग्राम को भी समझना जरूरी है। इस संघर्ष में मख्‍दूम ने गरीब किसानों को निजामषाही और सामंतों-जागीरदारों के शोषण से मुक्‍ति दिलाने के लिए खुद बंदूक उठाई थी और निजाम के साथ अंग्रेजों की सेना का भी मुकाबला किया था।

स्‍वाधीन ने कहा कि मख्‍़दूम मुक्‍तिबोध की तरह पहले अध्‍यापन से जुडे़। उन्‍होंने जीवन के प्रारम्‍भिक दिनों में निचले दर्जे की जिन्‍दगी का सामना किया, एक अनाथ बच्‍चे के रूप में मस्‍जिदों में झाड़ू लगाते हुए उन्‍होंने बचपन बिताया और बड़ी जद्‌दोजहद करते हुए तालीम हासिल की। जब उन्‍होंने अध्‍यापन शुरु किया तब वे अपने छात्रों को अंग्रेजी से भारतीय भाषाओं में रुसी साहित्‍य का अनुवाद करने की प्रेरणा देते थे। यह साहित्‍य उपनिवेशवाद और साम्राज्‍यवाद के विरुद्ध लोगों को तैयार करने वाला था। मख्‍़दूम क्‍लास रूम में पाठ्‌यपुस्‍तकों के पाठ की बजाय निजाम और जमींदारों के अत्‍याचारों के विरुद्ध अधिक बोलते थे। बाहर उनकी ख्‍याति एक इन्‍कलाबी शायर के रूप में हो गई थी। एक दीक्षान्‍त सामारोह में निजाम उस्‍मान अली खान आमंत्रित थे। तब मख्‍़दूम के नेतृत्‍व में सैकड़ों छात्रों ने 'गॉड सेव दी किंग' राष्‍ट्रीय गीत को गाने से इंकार कर दिया था और मख्‍़दूम ने उसकी जगह अपना गीत 'धंसता है मेरे सीने में जैसे बांस का भाला, वो पीला दुशाला सुनाया। गौरतलब है कि निजाम हरा साफा बांधते थे और पीला दुशाला ओढ़ते थे। इस घटना के बाद मख्‍़दूम ने कॉलेज से इस्‍तीफा दे दिया। सितम्‍बर 1939 में जब साम्राज्‍यवादी जंग हुई उस समय मख्‍़दूम ने इन्‍कलाबी नज़्‍म लिखी जिसमें आने वाली नई विश्‍वव्‍यवस्‍था की ओर बढ़ने की आशा थी।

स्‍वाधीन ने कहाकि मुक्‍तिबोध और मख्‍़दूम में अपने समय को जांचने और परखने की क्षमता मौजूद थी। प्रतिबद्धता और दृष्‍टिकोण की अतल स्‍पर्शिता दोनों में थी। यह कहा जा सकता है कि मख्‍़दूम का कवि अवामी लड़ाइयों में शामिल था। निजामशाही साम्राज्‍य को उखाड़ फैंकने के लिए एक तरफ उन्‍होंने अभियान चलाया था वहीं अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ भारत की स्‍वतंत्रता के लिए जान की बाजी लगा रखी थी। वे अपनी कलम के साथ-साथ सशस्‍त्र घूमते थे और हुकूमत ने उनके सिर पर उस जमाने में पांच हजार का इनाम घोषित कर रखा था। मख्‍़दूम मोहिउद्दीन आज भी प्रासंगिक हैं और हमेशा रहेंगे।

सुपरिचित कवि कृष्‍ण कल्‍पित ने कहा कि हम उन खुशनसीब भारतीयों में से एक हैं जो मख्‍़दूम की शायरी पढ़ते हुए बड़े हुए और हमारे साहित्‍यिक संस्‍कार उन्‍हीं से प्रेरित रहे। मख्‍़दूम सच्‍चे अर्थों में क्रांतिकारी शायर थे। उर्दू में रोमेंटिक रिवोल्‍यूशनरी धारा मख्‍़दूम साहब से शुरु हुई। ग़ज़ल और शायरी से मख्‍़दूम ने क्रांति जगाने का जैसा काम किया, इस तरह पहले किसी ने शायरी को क्रांति, आम आदमी और सड़क से नहीं जोड़ा। इसके बाद तो उर्दू शायरी में एक धारा ही चल पड़ी। मज़ाज़ जैसे शायर इसी कड़ी के शायर थे। मज़ाज़ को उर्दू का कीट्‌स कहा जाता है लेकिन मज़ाज़ से पहले मख्‍़दूम जैसे कीट्‌स उर्दू में पैदा हो चुके थे और वही धारा थी जो मज़ाज़ तक पहुंची। संस्‍कृत में जिसे वज्र से भी कठोर और फूल से भी कोमल कहा जाता है, ऐसी ही शायरी मख्‍़दूम साहब की थी जिसका विस्‍तार जीवन में होता दिखाई देता है। अगर मख्‍़दूम की शायरी का ठीक-ठीक अक्‍स हिन्‍दी में खोजना हो तो वह निराला या नागार्जुन में मिलेगा। वैचारिक धरातल एक होते हुए भी मख्‍़दूम की शायरी और मुक्‍तिबोध की कविता की शक्‍लें अलग थीं। इतनी मौलिक, इतनी पैनी और सेंसिटिव शायरी करने वाले मख्‍़दूम 'एक चमेली के मंडवे तले दो बदन प्‍यार के लिए जल गये' जैसी और क्रांति की कविता लिखने वाले शायर की तुलना मुक्‍तिबोध से करने के साथ-साथ क्रांतिकारी कवि नजरुल इस्‍लाम से भी की जानी चाहिए। मख्‍़दूम सिर्फ उर्दू के शायर नहीं थे। भारतीय कविता के आसमान में जो सितारे और नक्षत्र आज हम देख रहे हैं, उनमें मख्‍़दूम सबसे तेज चमकते सितारे हैं। आने वाले हजारों वर्षों तक उनकी शायरी जिन्‍दा रहेगी। मुक्‍तिबोध का संघर्ष उनका मानसिक संघर्ष था, जबकि मख्‍़दूम साहब ने सड़क पर आकर राजशाही और साम्राज्‍यवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

कल्‍पित ने कहा कि मख्‍़दूम ने 'ये जंग है जंगे आजादी, आजादी के परचम के तले' और ‘फिर छिड़ी बात फूलों की रात है या बारात फूलों की' जैसी शायरी की। कहते हैं कि रेगिस्‍तान में गर्मी और ठंड के तापमान में जो अन्‍तर है वह विस्‍तृत भूमि और विस्‍तृत वेदना मख्‍़दूम की शायरी में मिलती है जो मख्‍़दूम को बड़ा बनाती है। वे हमारे भारतीय साहित्‍य का शानदार सरमाया हैं।'

उन्‍होंने कहा कि प्रगतिशील आन्‍दोलन में मख्‍़दूम का जो योगदान है उसे हमें पॉब्‍लो नेरुदा या विश्‍व के ऐसे ही महान रचनाकारों की तरह याद करना चाहिए। उनकी कविता में जो क्रांतिकारिता दिखाई देती थी वही उनके जीवन में झलकती थी। आज के दौर में किसी को रिवोलुशनरी कहना जबकि महाश्‍वेता देवी द्वारा ब्‍यूरोक्रेट्‌स को भी रिवोलुशनरी कहा जाता है, कुछ सोचने को विवश करता है। आज जब हमारे प्रगतिशील और जनवादी मित्रों को पूंजीपतियों के पुरस्‍कार लेने से फुरसत नहीं है, ऐेसे समय में मख्‍़दूम को याद करना एक सही पथ को याद करना है।

अपने अध्‍यक्षीय उद्‌बोधन में प्रमुख कवि और मीडियाकर्मी नन्‍द भारद्वाज ने कहा कि मख्‍़दूम और उस दौर के बहुत से कवि एवं लेखक इस बात की ओर इशारा करते हैं कि आजादी की लड़ाई में किस तरह शायरों और अदीबों ने अपनी महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई। सभी परिचित हैं कि राजस्‍थान में अंग्रेजी हुकूमत और देशी हुकूमत के खिलाफ एक जबर्दस्त लड़ाई यहां के लेखकों ने अपने स्‍तर पर लड़ी। वे आजादी की मशाल को बुलन्‍द किए रहे। उन्‍होंने कलम के माध्‍यम से आवाज उठाई और आंदोलनों में भी शामिल रहे।

राजस्‍थानी कवि आजादी के आंदोलन में भी सक्रिय रहे। वह लड़ाई की प्रकृति ही कुछ ऐसी थी जो जागरूक लोगों को स्‍वतः अपने से जोड़ लेती थी। उन लोगों का आजादी और लोकतंत्र को लेकर एक खूबसूरत सपना था। वह लड़ाई कोई छोटे मकसद या आजादी प्राप्‍त कर लेने से सब कुछ प्राप्‍त हो जायेगा, इस मकसद को लेकर नहीं थी बल्‍कि बेहतर हिन्‍दुस्‍तान, एक अच्‍छा देश और एक अच्‍छा भविष्‍य बनाना है, यह बात उनके दिमाग में थी। आजादी के बाद जब यह सपना बिखरने लगा तो चाहे मुक्‍तिबोध हों या मख्‍़दूम मोहिउद्दीन, तमाम फनकार-अदीब चुप नहीं रह सकते थे। ऐसे शायरों को याद करना हमारा फर्ज भी है और जरूरत भी।

भारद्वाज ने कहा कि हम अपनी इस विरासत को सहेजकर रखें, इससे सीखें और हम इसमें क्‍या जोड़ सकते हैं, इस बात पर मिल-बैठकर विचार करें। इसी में इस आयोजन की सार्थकता है। प्‍यार की जो पवित्र भावना थी वह मख्‍़दूम की नज़्‍मों और ग़ज़लों में मौजूद थी। ऐसे शायर की विरासत को हम अपनी विरासत का हिस्‍सा अनिवार्य रूप से बनाएं तभी लेखन की सार्थकता है।

इस अवसर पर अली सरदार जाफरी द्वारा मख्‍़दूम मोहिउद्दीन के जीवन संघर्ष और उनकी शायरी पर निर्मित डेढ़ घण्‍टे की एक फिल्‍म का प्रदर्शन किया गया। जयपुर में जन्‍मे सिने जगत के मशहूर अभिनेता इरफान ने बखूबी मख्‍़दूम के किरदार की भूमिका निभाई है। इस फिल्‍म के साथ मख्‍़दूम मोहिउद्दीन की आवाज में शायरी भी समारोह में मौजूद श्रोताओं को सुनाई गई। समारोह के अन्‍त में यशस्‍वी उपन्‍यासकार-कथाकार स्‍व. यादवेन्‍द्र शर्मा 'चन्‍द्र' और जयपुर के सांसद स्‍व. गिरधारीलाल भार्गव को दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धाजंलि दी गई।

प्रारंभ में राजस्‍थान प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव प्रेमचन्‍द गांधी ने मख्‍़दूम मोहिउद्दीन की शायरी, उनके जीवन संघर्ष और साहित्‍य जगत के लिए उनके योगदान पर विस्‍तृत रूप से प्रकाश डाला। गांधी ने कहा कि मख्‍दूम मोहिउद्‌दीन को आजकल लोग एक फिल्‍मी गीतकार की तरह जानते हैं, जबकि सच्‍चाई यह है कि मख्‍दूम ने कभी फिल्‍म के लिए नहीं लिखा। मख्‍दूम की रचनाओं की ताकत और लोकप्रियता के कारण फिल्‍मकारों ने उनकी रचनाओं को फिल्‍मों में लिया। उनकी कुल जमा छह रचनाएं फिल्‍मों में ली गई हैं। मख्‍दूम ने तेलंगाना में किसानों के साथ जो संघर्ष किया उसे लेकर उर्दू के महान उपन्‍यासकार कृष्न चंदर ने ‘जब खेत जागे' उपन्‍यास लिखा, जिस पर गौतम घोष ने तेलुगू में ‘मां भूमि' फिल्‍म बनाई। गांधी ने कहा कि मख्‍दूम की प्रमुख कृतियों में सुर्ख सवेरा, गुल-ए-तर और बिसात-ए-रक्‍स हैं। इस जन्‍मशताब्‍दी के मौके पर नुसरत और स्‍वाधीन ने ‘सरमाया' नाम से मख्‍दूम समग्र संपादित किया जिसे वाणी प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। मख्‍दूम ने जार्ज बर्नाड शा के नाटक ‘विडोवर्स हाउस' का उर्दू में ‘होष के नाखून' नाम से और एंटन चेखव के नाटक ‘चेरी आर्चर्ड' का ‘फूल बन' नाम से रूपांतर किया। मख्‍दूम ने रवींद्रनाथ टैगोर और उनकी शायरी पर एक लंबा लेख भी लिखा। ‘फूल बन' में भारत कोकिला सरोजिनी नायडू की बेटी लीलामणि ने अभिनय किया, जो आंध्रप्रदेश की रंगमंच पर आने वाली पहली अभिनेत्री थीं।

इस अवसर पर प्रमुख चित्रकार एकेश्वर हटवाल ने श्रद्धास्‍वरूप मख्‍़दूम का खूबसूरत चित्र तैयार कर प्रगतिशील लेखक संघ को भेंट किया, जिस पर श्रद्धासुमन अर्पित किये गये।

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प्रस्‍तुति-फारूक आफरीदी

उपाध्‍यक्ष, राजस्‍थान प्रगतिशील लेखक संघ,

ई-750, न्‍याय पथ, गांधी नगर,

जयपुर-302015 (राज.)

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: फारूक आफरीदी की रपट : इन्‍कलाबी शायर मख्‍़दूम मोहिउद्दीन
फारूक आफरीदी की रपट : इन्‍कलाबी शायर मख्‍़दूम मोहिउद्दीन
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