योगेन्द्र सिंह राठौर की कहानी : स्याह सपने

SHARE:

चूँकि सुमन ने जीवन की जिम्‍मेदारियों को उठाना सीख लिया था । इसलिए जीवन की प्राथमिकताएँ, सिध्‍दान्‍त, लक्ष्‍य भी निर्धारित करने का कार्य स...

Image340

चूँकि सुमन ने जीवन की जिम्‍मेदारियों को उठाना सीख लिया था । इसलिए जीवन की प्राथमिकताएँ, सिध्‍दान्‍त, लक्ष्‍य भी निर्धारित करने का कार्य सोच-समझकर सुमन ने तय किया था । वह चाहती थी कि कहानी की तरह जिन्‍दगी का अच्‍छी होना आवश्‍यक है, लम्‍बी होना नहीं ।

पिता उसके विवाह की कहते-कहते चल बसे, तो भाइयों को बहाना मिल गया, उसकी जिम्‍मेदारियों से मुक्‍त होने का । सुमन के व्‍यक्‍तित्‍व की खासियत है कि वह किसी को भी अपनी नीचता पर शर्मिन्‍दा नहीं होने देती । इसलिए भाई यदा-कदा औपचारिकता वश विवाह की कहते तो वह साफ कहती-‘‘विवाह करना होता तो बाबूजी की आत्‍मा को छटपटाने न देती, तभी न कर लेती ।''

सुमन ने अपने इर्द-गिर्द के पुरूषों में एक बात पाई थी, कितना भी कलाकार पति क्‍यों न हो, कहीं ना कहीं उसके आदमखोर बनने की सम्‍भावना से इन्‍कार नहीं किया जा सकता । इससे सर्वाधिक प्रभावित उसकी पत्‍नी ही होती थी । इसलिए वह किसी भी पुरूष की पत्‍नी नहीं होना चाहती थी, क्‍योंकि भारत में जितना समाज उसने देखा उसमें पति का सब कुछ बचा रहता था । क्षणिक ही नष्‍ट होता था । इसलिए उसने अनेक कलाओं से खुद का परिवार बसा लिया था । कुछ कलाओं में वह दृष्‍टा थी, कुछ में दर्शक । चित्रकला, अभिनय,और लेखन में दक्षता हासिल की तो संगीत, नृत्‍य में विशिष्‍ट समीक्षक बनी । इन कलाओं के प्रारम्‍भिक बिन्‍दु से लेकर शिखर तक की प्रत्‍येक छोटी-बड़ी बात , कलाकारों की निजी जीवन शैली, सम्‍बन्‍धों का कला पर पड़ने वाला प्रभाव, समाज के प्रति संवेदनशील कलाकारों के प्रति समाज के अपेक्षित संवेदनशील न होने के कारण, जैसे विषयों पर सुमन सटीक टिप्‍पणी किया करती थी ।

सुमन ने कभी भी उस व्‍यक्‍ति से मिलने, सीखने का अवसर नहीं त्‍यागा जो उसे कला की ऊँचाईयों को स्‍पर्श करने में सहायक, अनिवार्य होता । भले ही उसे कुछ आत्‍मीयों, परिचितों की नाराजगी क्‍यों न झेलनी पड़ी हो । नतीजा जितनी प्रशंसा सुमन की कला की होती, उससे कहीं अधिक दिलचस्‍पी उसके निजी जीवन में लोग लेने लगे । आश्‍चर्य तो यह था कि बहुत से उसके नक्‍शे-कदम पर चलना चाहते थे, पर समाज से टकराने का अतिरिक्‍त साहस न होने से वे लड़कियाँ विवाह कर-‘‘गुलामी के सुख'' में लिप्‍त हो जाती । उन्‍हें अपना बर्थ-डे नहीं,

 

बच्‍चों का बर्थ-डे, कुल-देवी, हड़ताली तीज, करवा चौथ याद रहते और स्‍मृति पटल पर मायका एवं बचपन धूमिल होते होते एक उम्र पर जाकर मायका परियों का देश लगने लगता ।

खुद की ही तरह उसी समाज के लिए एक और प्रतिरूप पैदा कर,उसकी परवरिश करती, जो वर्तमान समाज के खोखले मूल्‍यों को किस्‍मत एवं विरासत के नाम पर खुशी-खुशी ढोता रहे ।

हम उसी समाज से डरते हैं । जिनमें वर्तमान नेता, अपराधी, भ्रष्‍टाचार करने वाले भरे पड़े हैं । परिवार का प्रत्‍येक सदस्‍य अपनी इच्‍छाओं की पूर्ति के लिए अपने ही परिवार के सदस्‍यों का भी इस्‍तेमाल करने लगा है । समाजशास्‍त्रीय समीकरण व्‍यवहार में शेष नहीं रह गये ।

इसी समाज से टकरा गई थी सुमन । वह जानती थी कि मध्‍यमवर्गीय जीवन में दो शामें भी एक-सी नहीं होती या एक ही शाम उम्र भर ढलती रहती है । यदि वह नाटक की रिहर्सल में जाएगी तो एक महीने में किसी ना किसी दिन उसका पति खीझ जाएगा, उसकी घर में अनुपस्‍थिति से । फिर किसी दिन कहेगा-‘‘ तुम एक के बाद एक कब तक नाटक करती रहोगी ?''

केवल एक ही नाटक कर रंगमंच के नए कीर्तिमान/प्रतिमान स्‍थापित कर सकने की आशा थी ही नहीं । यदि पति रंगमंच में रूचि रखने वाला हुआ भी तो अभिनय की श्रेष्‍ठता का दम्‍भ उनके दाम्‍पत्‍य जीवन में जहर घोलेगा । हर नाटक में उसे ही केन्‍द्रीय भूमिका मिले यह आवश्‍यक तो नहीं ।

इसीलिए सुमन जीवन का यह सफर अकेले ही तय कर रही है । ऐसा नहीं कि पुरूष मित्रों एवं प्रशंसकों की ओर से उसे मौन आमंत्रण नहीं मिले थे । पर उसने उसी शालीनता से उन्‍हें वहाँ से अस्‍वीकार किया जहाँ से वे अस्‍वीकृत किये जाने योग्‍य थे ।

उसे वैसे तो टेबल के दूसरी ओर बैठे प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति से बात करना पंसद था जो सही गम्‍भीर जानकारी रखता हो, पर उसे मित्रता वहीं पसंद आती, जिस बिन्‍दु पर पुरूष उसे स्‍त्री मान कर व्‍यवहार न करें । पर उसे तो आमंत्रण ही इसलिए दिया जाता था कि वह स्‍त्री भी थी और सुन्‍दर भी ।

इसलिए वह रिहर्सल तक ही पुरूषों का साथ पसंद करती थी । पर एक दिन जब उसे रात को अचानक डर लगा । खिड़की के पल्‍ले

जोर से हिले और वह अन्‍दर तक काँप गई । इस अनुभव को उसने

अपने मन के उस भाग में संजोया, जो उसे अभिनय में मदद देता था ।

 

उस दिन वह बहुत लम्‍बी बहस में पड़ गई थी । यथार्थ या आदर्श दोनों में से किसी एक का चयन बहुत मुश्‍किल था, पर कला में जीवन प्रतिबिम्‍बित न हो तो कैसे खुद के लिए असीमित प्रशंसक लाएगी और जो जीवन जिया जा रहा है उसे देखने के लिए कौन समय नष्‍ट करेगा । फिर आदर्शोन्‍मुख यथार्थवाद की बात आई इतना सन्‍तुलन बनाने की क्षमता हो तो धरती के स्‍वर्ग और मनुष्‍य के देवता बनने में इतनी देर ही क्‍यों लगती ?

सुमन अपने कार्य के प्रति कुछ अतिरिक्‍त सजग थी । यह अतिरिक्‍त सजगता ही हमारी श्रेष्‍ठता तय करती है । सुमन अभिनय के लिए एक ही विषय भाव पर पूर्ववर्ती, समकालीन ही नहीं, नवोदित कलाकारों का अभिनय देखती थी । परन्‍तु सुयश ने उसे इन भावों की संगीत में, साहित्‍य में प्रस्‍तुति की शैली को आत्‍मसात करने को कहा । सुयश की सलाह ने उसे अभिनय को जीवन बनाने की सहजता प्रदान की । उसके चेहरे पर भाव अनायास आने लगते । उसके अभिनय की प्रशंसा उसके मन में सुयश के प्रति सम्‍मान पैदा कर रही थी । सुयश उसे सलाह देकर भूल नहीं पाया था ।

सुमन कमरे में सुयश की काल्‍पनिक उपस्‍थिति का अनुभव करने लगी थी । कुछ सम्‍बन्‍ध हवा में तैरते हैं, रंग, गंध,पहचान से परे । ऐसे ही संबंध का एक सिरा सुमन की ऊँगलियों से लिपटा था और दूसरे सिरे को सुयश छू चुका था । पकड़ने की कोशिश कर रहा था, चाह कर भी पकड़ नहीं पा रहा था । इसी बीच उसे बहुत दिनों के बाद बहुत बड़ा पुरस्‍कार मिला, जब निर्देशक ने उससे कहा कि नायक का किरदार सुयश निभा रहा है ।

सुयश ने रिहर्सल के पहले ही दिन सहकर्मियों के तीन बार रीटेक होने के बाद कहा-‘‘सागर किनारे मछली पकड़ने वालों की जिन्‍दगी समुद्र में बीत जाती है,लेकिन वो तमाम उम्र सागर की ऊपरी सतह पर मात्र लहरों से खिलवाड़ करते रहते हैं, और उनकी तमाम उम्र जाल के जंजाल में गुजर जाती है ।जबकि कहीं, कभी कोई गोताखोर थोड़ी सी आक्‍ॅसीजन और बहुत सा उत्‍साह लेकर आता है । कुछ ही पलों में सागर की गहराई नाप कर, सीप उठा लाता है, मोती पा जाता है, सागर से उसका मूल्‍य, नवनीत ले जाता है । कुछ व्‍यक्‍ति तालाब होते हैं, कुछ पोखर, कुछ झील, कुछ पहाड़ी नदियों से, जिनमें गहराई नहीं, बहाव होता है, कुछ मैदानी नदियाँ, जिनमें गहराई होती है । सागर बहुत कम होते हैं,जबकि हर सागर,सीप, मोती किसी गोताखोर की प्रतिक्षा में रहते हैं ।

सुमन ने मन में कहा-‘‘ सुयश, काश, तुम मेरी किस्‍मत,मेरी मुस्‍कराहट और मेरे ईश्‍वर होते ।''

 

पूरे नाटक में कई बार पति-पत्‍नी के झगड़े के दृश्‍यों को सुमन ने कहा के सहारे जीवन्‍त किया पर सुमन-सुयश के प्रणय-प्रसंगों में सुमन को अभिनय नहीं करना पड़ता था ।

सहज अभिनय की साम्राज्ञी कहलाने लगी, इस नाटक के बाद सुमन। सुमन को सुयश के साथ प्रणय - प्रसंगों में लजाने का अभिनय नहीं करना पड़ता था,क्‍योंकि उसे आभास नहीं था कि वह स्‍टेज पर है और निर्देशक ने उसे अभिनय डूबना कहा था । तब वह जानती थी कि वह अचेतन में डूब जाती थी । सुमन ने जो कमरे में सोचा था वह स्‍टेज पर साकार हो रहा था । कमरे में जीवन था, खुशियाँ थी, स्‍टेज पर कला थी, प्रशंसा थी, सम्‍मान था। वह कला और जीवन में साम्‍य की एक दूसरे की

पूर्णता के लिए, एक दूसरे को सुन्‍दर, प्रभावशाली बनाने के लिए दूसरे

की महत्‍ता स्‍वीकार करने लगी थी ।

अनायास उस दिन जब नाटक का सौंवा प्रदर्शन था । सुमन ने कहा-‘‘आप मेरे साथ उम्र भर रह सकते हैं ?''

‘‘मैं तुम्‍हारे विचारों, तुम्‍हारे अभिनय का प्रशंसक हूँ । तुम्‍हारा सम्‍मान करता हूँ । मैं जाँत-पाँत भी नहीं मानता, परन्‍तु मेरी माँ ने मेरे पिता की मृत्‍यु के बाद बहुत त्‍याग कर मुझे बड़ा किया है.......................ं।

‘‘प्‍लीज मुझे माफ कर दो,मुझसे गलती हो गई सुयश । मैं यह क्‍यों भूल गई कि पुरूष हर वक्‍त जिम्‍मेदारी से मुक्‍त नहीं होता । उसके प्रेम के साथ साथ उसकी जिममेदारी, उनके सिध्‍दान्‍त चलते हैं, जिन्‍हें वह अपना मानता है । मैं रंगमंच पर ही तुम्‍हारा साथ पाकर खुश रह लूँगी ।''

सुमन अब कला और जीवन के एक से लगने वाले रूपों का वास्‍तविक अन्‍तर जान पा रही थी । बड़ा ऐसे भी हुआ जाता है ।

---

दो कविताएँ

 

कुछ बातें,/ सम्‍बन्‍ध,

हवा में तैरते हैं,

गंध भी होती है उनकी अपनी,

पर ये बातें/ सम्‍बन्‍ध,

अदृश्‍य होते हैं,

हवा की तरह,

पकड़ से दूर

कोई सिरा नहीं होता उनका,

नहीं यह वह डोर,

जिस डोर का,

एक सिरा मेरे हाथों में हो,

दूसरा कहीं और लिपटा हो,

बस प्रतीक्षा होती है,

किसी चमत्‍कार की,

एक स्‍वीकार की,

अविश्‍वास होता है,

यकीन ही नही आता,

कि बिल्‍कुल हमारी ही तरह,

कोई और भी सोचता है ।

00000

 

सुन्‍दर चेहरे,

सलीकेदार वस्‍त्रों से सजे, शालीन व्‍यक्‍तित्‍व,

संस्‍कृतनिष्‍ठ ,परिनिष्‍ठित, परिमार्जित,राष्ट्रभाषा में,

टेबल पर,

आमने-सामने बैठते हैं,

विचार मुहरें होते हैं,

जिन्‍दगी बिसात बन जाती है,

उपलब्‍धियाँ शह,

यथास्‍थिति मात हो जाती है ।

 

---

सम्पर्क:

योगेन्‍द्र सिंह राठौर,

ललिता-कुन्‍ज,

अशोका होटल के पीछे,

नया बस स्‍टेन्‍ड रोड़,

, जगदलपुर(छ00)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: योगेन्द्र सिंह राठौर की कहानी : स्याह सपने
योगेन्द्र सिंह राठौर की कहानी : स्याह सपने
http://lh3.ggpht.com/_t-eJZb6SGWU/SeA3DpKsrMI/AAAAAAAAGCg/suXHPZJ3Bt0/Image340%5B2%5D.jpg?imgmax=800
http://lh3.ggpht.com/_t-eJZb6SGWU/SeA3DpKsrMI/AAAAAAAAGCg/suXHPZJ3Bt0/s72-c/Image340%5B2%5D.jpg?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2009/04/blog-post_1353.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2009/04/blog-post_1353.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content