सरोजिनी साहू की (ओड़िया) कहानी (का हिन्दी रूपांतर) : बलात्कृता

SHARE:

  ओड़िया कहानी   बलात्कृता   मूल ओड़िया कहानी: सरोजिनी साहू   हिंदी अनुवाद: दिनेश कुमार माली   यह कहानीकार की सद्यतम...

 

Image024

ओड़िया कहानी

 

बलात्कृता

 

मूल ओड़िया कहानी: सरोजिनी साहू

 

हिंदी अनुवाद: दिनेश कुमार माली

 

यह कहानीकार की सद्यतम प्रकाशित कहानियों में से है, जो न तो किसी दूसरी भाषा में अनुदित हुई है, न किसी कहानी संग्रह में संकलित हुई है.  यह कहानी 'टाईम्स ऑफ़ इंडिया ग्रुप'  की ओड़िया पत्रिका 'आमो समय' के जून , २००९ अंक में प्रकाशित हुई है. कहानी का मूल शीर्षक 'धर्षिता' था , पर 'धर्षिता'  शब्द हिंदी में न होने के कारण मैंने उस कहानी का शीर्षक  'बलात्कृता' रखना उचित समझा. कहानीकार की सद्यतम कहानी का प्रथम हिंदी अनुवाद पेश करते हुए मुझे अत्यंत हर्ष हो रहा है.

बलात्कृता

क्या सभी आकस्मिक घटनाएँ पूर्व निर्धारित होती है? अगर कोई आकस्मिक घटना घटती है तो अचानक अपने आप यूँ ही घट जाती है; जिसका कार्यकरण से कोई सम्बन्ध है?

बहुत ही ज्यादा आस्तिक नहीं थी सुसी, न बहुत ज्यादा नास्तिक थी वह. कभी-कभी तो ऐसा लगता था कि ये सब बातें मन को सांत्वना देने के लिए केवल कुछ मनगढ़ंत दार्शनिक मुहावरें जैसे है.

सुबह से बहुत लोगों का ताँता लगने लगा था घर में. एक के बाद एक लोग पहुँच रहे थे या तो कौतुहल-वश देखने के लिए या फिर अपनी सहानुभूति प्रकट करने के लिए. घर पूरी तरह से अस्त-व्यस्त था. जीवन तो और भी अस्त-व्यस्त था! दस दिन हो गए थे, इधर-उधर घुमने-फिरने में, आज ही ये लोग अपने घर लौटे थे. रास्ते भर यही सोच-सोचकर आ रहे थे, घर पहुंचकर शांति से गहरी नींद में सो जायेंगे.  रात के तीन बजे उनकी ट्रेन अपने स्टेशन पर आनेवाली थी. इसलिए मोबाईल फ़ोन में  'अलार्म' सेट करने के बाद भी, आँखों में नींद का नामोनिशान नहीं था. पलकें एक मिनट के लिए भी नहीं झपकी थी. थोडी-थोडी देर बाद नींद टूट जाती थी. ट्रेन से उतरकर घर लौटकर देखा था, कि घर अब और कोई आश्रय-स्थल नहीं रहा था.

सुबह से ही घर में लोग जुटने लगे थे. कभी-कभी तीन-चार मिलकर आ रहे थे तो कभी-कभी कोई अकेला ही. सभी को शुरू से उस बात का वर्णन करना पड़ता था, कि यह घटना कैसे घटी होगी.यहाँ तक कि डेमोंस्ट्रेशन करके भी दिखाना पड़ता था. सब कुछ देखने व सुन लेने के बाद, वे लोग यही कहते थे कि आप लोगों को इतना बड़ा खतरा नहीं उठाना चाहिए था. अगर कोई एक आदमी भी घर में रुक जाता तो, शायद आज यह घटना नहीं घटती . ऐसा प्रतीत होता था जैसे कि अपराधी को हर हालत में अपराध करने का पूरा-पूरा हक़ है. और सुसी के परिवार वालों की भूल है कि उन्होंने कोई सावधानी नहीं बरती.  

इन्हीं 'सावधानी' व 'सतर्कता' की बातें सुनने से सुसी को लगता था, कि बारिश के लिए छतरी, सांप के लिए लाठी, अँधेरे के लिए टॉर्च का प्रयोग कर जैसे उसकी सारी जिंदगी बीत जायेगी!  ऐसा कभी होता है क्या? चारों-दिशायें, चारों-कोनें, ऊपर-नीचे देख-देखकर साबुत जिन्दगी जीना संभव है?

:" आप इंश्योरेंस करवाए थे क्या?"

:" इंश्योरेंस, नहीं, नहीं."

:" करवाना चाहिए था ना!"

सुसी और क्या जबाव देती?इस संसार में सब कुछ क्षणभंगुर और अस्थायी है. जो आज है,कल वह नहीं रहेगा. किस-किस चीज का इंश्योरेंस करवाएगी वह? और किस-किस का नहीं ! घर, गाड़ी, जीवन, आँखें, कान, नाक, ह्रदय, यकृत और वृक्क? इंश्योरेंस कर देने के बाद, 'पाने और खोने' का खेल बंद हो जायेगा? किसी भी रास्ते से तब भी आ पहुँचेगी दुःख और यंत्रणा, तक्षक सांप की तरह!

:"कितना गया?"

:" क्या -क्या गया ? "

धीरे-धीरे, कुछ -कुछ याद कर पा रही थी सुसी . एक के बाद एक चीजें याद आ रही थी उसको . क्या बोल पाती वह ? आते समय , जिस हालत में उसने अपने घर को देखा था बस उसी बात को दुहरा रही थी सभी के सामने .

उस दिन जब उन्होंने अपने घर की खिड़की के टूटे हुए शीशे के छेद में झाँककर देखा , तो दिखाई पड़ी थी अन्धेरें आँगन में चांदनी की तरह फैली हुई रोशनी. आश्चर्य से सुसी ने पूछा था ," अरे ! बेबी के कमरे की लाइट कैसे जल रही है ?" जब कभी वे लोग बाहर जाते थे , तो घर की लाइट बंद करना और ताला लगाने का काम अजितेश का होता था . इसलिए यह प्रश्न अजितेश के लिए था . " आप क्या बेबी के कमरे की लाइट बुझाना भूल गए थे ?" गाडी से सूटकेस व अन्य सामान उतार रहा था अजितेश. कहने लगा था ," मैंने तो स्विच ऑफ किया था ." बेबी बोली थी :-" पापा , आप भूल गए होगे . याद कीजिये जाते समय लोड-शेडिंग हुआ था ना ? ." 

ग्रिल का ताला खोल दी थी सुसी . इसके बाद वह मुख्य -द्वार का ताल खोलने लगी थी . ताला खोलकर ,धक्का देने लगी थी .पर जितना भी धक्का दे पर दरवाजा नहीं खुल रहा था . "अरे ! देखो , "चिल्लाकर बोली थी सुसी ,"पता नहीं क्यों ,दरवाजा नहीं खुल रहा है . लगता है किसी ने भीतर से बंद किया है ? कौन है अंदर ? " .सुसी का दिल धड़कने लगा था . वह कांपने लगी थी . " दरवाजा क्यों नहीं खुल रहा है ? " भागकर आया था अजितेश , पीछे -पीछे वह ड्राईवर भी . सुसी ग्रिल के दरवाजे के पास आकर ,टूटे शीशे से बने छेद में से झाँककर देखने लगी वह दृश्य . बड़ा ही ह्रदय विदारक था वह दृश्य!  उसकी अलमीरा चित्त सोयी पड़ी थी. दोनों तरफ बाजू फैलाते हुए. खुले पड़े थे अलमीरा के दोनों पट. सुसी की छाती धक्-धक् कांपने लगी थी जोर जोर से.रुआंसी होकर बोली थी,-"हे,देखो!"

:" ऐसा क्यों कर रही हो?" बौखलाकर अजितेश बोला था. इसके बाद उसने बड़े ही धैर्य के साथ पडौसियों को जगाया था. ड्राईवर और पडौसियों को साथ लेकर पीछे वाले दरवाजे की तरफ गया था अजितेश. पीछे का दरवाजा खुला था. पर किसी ने बड़ी सावधानी के साथ, उस दरवाजा को चौखट से सटा दिया था. दूर से ऐसा लग रहा था जैसे दरवाजा वास्तव में बंद है.

ड्राईवर कहने लगा-"चलिए,सर! पुलिस स्टेशन चलेंगे." पडौसी सहानुभूति जता रहे थे. कह रहे थे,-" दो-चार दिन पहले, आधी रात को,  धड-धड की आवाजें आ रही थी आपके घर की तरफ से. हम तो सोच रहे थे कि शायद कोई पेड़ काट रहा होगा."

अजितेश ड्राईवर को लेकर पुलिस स्टेशन जाते समय यह कहते हुए गया था-" किसी भी चीजों को इधर-उधर मत करना. छूना भी मत. थाने में एफ.आई.आर देकर आ रहा हूँ." अजितेश के जाने के बाद पडौसी भी आपस में चलो चलो कहते हुए अपने घर को लौट गये.

सुसी ने देखा था कि उसका पूरा घर बिखरा-बिखरा , अस्त-व्यस्त पडा था. जो चीज जहाँ होनी चाहिए थी, वहां पर नहीं थी. किसी ने सभी तकियों को फर्श पर बिछा कर, उसके उपर सुला दिया था उसकी अलमीरा को. पास में मूक-दर्शक बनकर खड़ी हुई थी बेबी की वह अलमीरा. जमीन पर बिखरी हुई थी बाज़ार से खरीदी हुई इमिटेशन ज्वैलरी जैसे कान के झुमके,बालियाँ और गले का हार.यहाँ तक कि, भगवान के पूजा-स्थल को भी किसी ने छेड़ दिया था.

सुसी ने सभी कमरों में जाकर देखा था. टीवी अपनी जगह पर ज्यों का त्यों था, कंप्यूटर भी वैसे का वैसे ही पड़ा था. माइक्रो-ओवेन रसोई घर में झपकी लगाकर सोयी हुई थी. और बाकी सभी वस्तुयें अपनी-अपनी जगह पर सुरक्षित थी. पर चोर ने नोकिया का पुराना मोबाइल सेट और एक पुराने कैमरा को अनुपयोगी समझकर बेबी के बिस्तर में फेंक दिया था.

परन्तु जब सुसी ने बेड रूम के बाहर का पर्दा हटाकर देखा, तो वह आर्श्चय-चकित रह गयी यह देखकर कि उस रूम का ताला ज्यों का त्यों लगा हुआ था.अरे! किसीने उस कक्षा को छुआ तक नहीं, उसे ज्यों का त्यों अक्षत छोड़ दिया.

बेबी ने आवाज लगायी, "मम्मी, देखो,देखो."

"क्या हुआ," बेबी के कमरे में घुसते हुए सुसी ने पूछा.

"जिस चोर ने तुम्हारी अलमीरा को तोडा, उसने मेरी अलमीरा को क्यों नहीं तोडा?"

आस-पास ही थी दोनों अलमीरा, बेबी के कमरे में. एक सुसी की अलमीरा, तो दूसरी बेबी की.बेबी की अलमीरा में बेबी की हरेक चीज तथा कपडा रखा जाता था. सुसी की अलमीरा में लॉकर को छोड़ बची हुई जगह में साडी का इतना अधिक्य था कि और साडी रखने से उसे अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ता था.

देखते ही देखते सुबह हो गयी.ड्राईवर और अजितेश, पुलिस स्टेशन में थानेदार को न पाकर , उसके घर चले गए थे.थानेदार की किडनी में स्टोन था. वह वेल्लोर से कुछ दिन हुए लौटा था.  "मैं सुबह नौ बजे से पहले नहीं आ पाउँगा " बड़े ही कटु आवाज में बोला था थानेदार, " आप लोग जाइये, सब कुछ सजा कर रख दीजिये, मैं नौ बजे तक पहुँचता हूँ."

ड्राईवर की सहायता से नीचे मूर्छित पड़ी अलमीरा को उठाकर खडा किया था अजितेश ने. अब, दोनों अलमीरा पास पास खड़ी हुई थीं.

ड्राईवर ने जाने की इजाज़त मांगी, " तो, मैं जा रहा हूँ ,सर." अजितेश को थानेदार के ऊपर पहले से ही काफी असंतोष था, और ड्राईवर से कहने लगा,"ठीक है, तुम जाओ, और रूककर करोगे भी क्या?" ड्राईवर रात दो बजे से प्रतीक्षा कर रहा था स्टेशन पर. अजितेश का अनुमति पाते ही वह तुरंत रवाना हो गया. किस रस्ते से चोरी हुई होगी, छान-बीन करने के लिए सुसी और अजितेश इधर-उधर देखने लगे. पता चला कि बाथरूम के रोशन दान में लगा हुआ शीशा टूट कर नीचे गिरा हुआ था. चोर जरुर उसी इसी रास्ते से होकर अंदर घुसा होगा, जिसका वह प्रमाण छोड़कर गया कोमोड़ के ऊपर रखा हुआ था फूलदान. आरी-पत्ती की मदद से सब ताले टूटे हुए थे.

सूटकेस, एयर बैग, तब तक ड्राइंग रूम में रखा जा चुका था. इतनी देर तक हाथ-मुहं धोने की भी फुरसत नहीं थी सुसी की. सवेरे-सवेरे टहलते हुए लोग बाहर चारदीवारी का दरवाजा खोलकर घर के भीतर आ गये थे. पता नहीं, इतनी सुबह-सुबह इस घटना की जानकारी लोगों को कैसे मिल गयी? 

:" अरे,ये सब कैसे हो गया?"

:" आप लोग कहाँ गये थे?"

:" चार दिन पहले, मोर्निंग-वाक में जाते समय मैंने देखा था की आपके कमरे की एक लाइट जल रही थी. मैंने सोचा कि आप लोग बंद करना भूल गये होंगे."

:" दस दिन के लिए बाहर गये थे? किसी को तो बताकर जाना चाहिए था."

:" आपको पता नहीं है, ये जो जगह है, यहाँ चोरों की भरमार है."

उस समय तक पूरा शरीर थक कर चूर-चूर हो चूका था. एक, उपर से लम्बी यात्रा की थकान;  दूसरी, रात भर की अनिद्रा. ऐसा लग रहा था मानो शरीर का पुर्जा-पुर्जा ढीला हो गया हो. लेकिन लोगों का आना-जाना जारी था. जल्दी-जल्दी, घर साफ़ कर पहले जैसी साफ-सुथरी अवस्था में लाने की कोशिश कर रही थी सुसी.

उसने हाथ घुमा कर भीतर से देखा था कि लॉकर के भीतर फूटी कौडी भी नहीं थी और लॉकर बाहर से टूटकर टेढा हो गया था. सोना चांदी के गहने और अब कहाँ होंगे? घर सजाते-सजाते, बाद में सुसी को यह भी पता चला कि पीतल का एक बड़ा शो-पीस, कांसे की लक्ष्मी की मूर्ति, चांदी का कोणार्क-चक्र भी शो-केस में से गायब हैं.

यह सब देखकर बेबी को तो मानो रोना आ गया हो. अजितेश डांटते हुए बोला था," रो क्यों रही हो? ऐसा क्या हो गया है?"

:" मम्मी, देख रही हो, मेरे कान के दो जोड़ी झुमके भी चोर ले गया. चोर मर क्यों नहीं गया? मैं उसको, श्राप देती हूँ कि उसको सात जन्मों तक कोई खाना नहीं मिलेगा?"  

:" चुप हो जा, पागल जैसे क्यों हो रही हो?"

सुसी डांटने लगी थी. बेबी को कान के झुमकों के लिए रोते देखकर सुसी को याद आने लगा था अपने सारे गहनों के बारे में.

:" तुम्हारी सोने की एक चेन , मेरा मगल सूत्र, दो चूड़ियाँ इतना ही तो घर में था न?" पूछने लगी थी सुसी बेबी से.

:"और मेरी अंगूठी?" पूछने लगी थी बेबी.

:" हाँ, हाँ, वह अंगूठी भी चली गयी."

:" पापा की गोल्डन पट्टे वाली घड़ी?"

:" ठीक बोल रही हो, वह भी."

:" और याद करो तो बेबी और किस-किस चीज की चोरी हुई होगी?"

:" आप के सोने का हार, उसको आपने कहाँ रखा था?"

:" इमिटेशन डिब्बे में ही तो था. क्रिस्टल के साथ गूँथकर रखा हुआ था." सुसी बेबी के नकली गहनों के सब डिब्बे खोल-कर देखने लगी थी.

:" नहीं, नहीं, यहाँ तो कहीं भी नहीं है." बेबी कह रही थी.

:" एक और बात, अगर आपको पता चल जायेगा तो आपका मन बहुत दुखी हो जायेगा, इसलिए मैं आपको नहीं बता रही हूँ."

सुसी की आँखों में आंसू देखने से जैसे उसको ख़ुशी मिलेगी, उसी लहजे में चिढाते हुए बोली थी बेबी, " बोलूं?"

:" ज्यादा नाटक मत कर, गुस्सा मत दिला.बोल रही हूँ,ऐसे भी मुझे अच्छा नहीं लग रहा है. तुम्हारे कह देने से और क्या ज्यादा हो जायेगा?"

:" वह बहुमूल्य पत्थरों से जडित चौकोर पेंडेंट, जो आपके बचपन की स्मृति थी, कहाँ गया ? "

बेबी ठीक बोल रही थी,पुराना पेंडेंट चेन से कटकर बाहर निकल आ रहा था, इसीलिए चेन से निकाल कर अलग से रख दी थी सुसी. क्या , किसी ज़माने की एक अनमोल धरोहर थी वह? जब वह हाई-स्कूल में पढ़ती थी तब माँ उसके लिए बनवाई थी बहुमूल्य पत्थर जड़ित अंगूठी, कान के झूमके तथा पेंडेंट के साथ एक सोने की चेन. अब तो माँ भी मर चुकी है., और वह सोनार भी. उस समय तो वह सोनार जवान था.  अगर उसको एक अच्छा शिल्पी कहें , तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. नए-नए डिजाईन के चित्र बनाकर, नई-नई डिजाईन के गहनें गढ़ना उसकी एक अजीज अभिरुचि हुआ करती थी. छोटे-छोटे छब्बीस नग, बीच में एक बड़ा सा सफ़ेद नग लगा हुआ चौकोर आकार का था वह पेंडेंट. सबसे ज्यादा सुन्दर था वह. सभी बहनें बराबर शिकायत करती रहती थीं उस सोनार ने उनके लिए इतनी सुन्दर डिजाईन क्यों नहीं बनाई? कितनी सारी यादें जुड़ी हुई थी उस पेंडेंट से. इतने दिनों तक पेंडेंट था उसके साथ. माँ ने अपनी बचत किये हुए पैसों से बनवाई थी उसको. उसकी याद आते ही माँ की बहुत याद आने लगी थी. जब माँ जिन्दा थी, वह उसके महत्त्व को नहीं समझ पाई थी . अभी समझ में आ रहा था कि किस प्रकार एक मध्यम-वर्गीय परिवार की माँ अपने जीवन में पैसा-पैसा जोड़कर बच्चों के लिए बहुत कुछ कर ली थी. आखिर, उसे भी चोर ले गया ?

:" आप दुखी हो गयी हो क्या?माँ, मेरी भी तो चेन और कान की बालियाँ चोरी हो गयी है."

:" बेबी,तुम्हारी माँ तो अभी जिंदा है.तुम्हारे लिए फिर से बनवा देगी. पर, वह पेंडेंट तो मेरे शरीर पर बहुत दिनों तक साथ-साथ था, इसलिए लगाव हो गया था, जैसे कि शरीर का कोई अंग हो."

बेबी फिर एक बार किसी गवांर औरत की भांति चोर को गाली देना शुरू कर दी थी.

:"तू ज्यादा बक-बक मत कर, बहुत काम पडा हुआ है, उसमें मेरा हाथ बटा." कहते हुए बाहर से लाये हुए सूटकेस को खोली थी सुसी.

एक घंटे के बाद अजितेश लौट कर आ गया था.साथ में पुलिस वाले और मटन कि थैली.ऐसे समय में मटन देख कर सुसी का मन आश्चर्य और विरक्ति भाव से भर गयी थी. पुलिस के सामने अजितेश को कुछ भी न बोलते हुए, चुपचाप मटन की थैली को भीतर रख दी थी सुसी.  

बाथरूम के रोशनदान के पास जाकर थानेदार अनुमान लगाने लगा था कि एक फुट चौडे रास्ते से तो केवल सात-आठ साल का लड़का ही पार हो सकता है. लेकिन आठ साल का लड़का आरी-पत्ती से सब ताले कैसे खोल पायेगा? इतने बड़े अलमीरा को कैसे सुला पायेगा? ऐसी बहुत सारी अनर्गल बकवास करने के बाद अजितेश, सुसी और बेबी का पूरा नाम, उम्र आदि लिखकर वापस चला गया था. जाते समय यह कहते हुए गया था, अगर मेरी तक़दीर में लिखा होगा, तो आपको आपका सामान वापस मिल जायेगा.

'थानेदार की तक़दीर?' पहले पहले तो कुछ भी समझ नहीं पाई थी सुसी.तभी अजितेश झुंझलाकर बोला,-"पहले जाओ, गेट पर ताला लगाकर आओ, जल्दी-जल्दी खाना बनाओ ,फिर खाना खाकर सोया जाय."

:" जल्दी-जल्दी कैसे खाना पकाऊंगी? क्या सोचकर अपने साथ मटन लेकर आ गए? लोग देखेंगे, तो क्या कहेंगे> इधर तो इनके घर में चोरी हुई है,  और उधर ये असभ्य लोग मटन खाकर ख़ुशी मना रहे हैं."

:" लोगों का और कुछ काम नहीं है, जो तुम्हारे घर में क्या प़क रहा है देखने के लिए आएंगे?"

तपाक से बेबी बोल उठी,:" पापा, मुझे आश्चर्य हो रहा है, आपको तनिक भी दुख नहीं लगा?"

अजितेश सुलझे हुए शब्दों में कहने लगा,:"जो गया, सो गया. क्या इन चीजों के लिए हम अपना जीवन जीना छोड़ देंगे? मेरी बड़ी दीदी की शादी के पहले दिन, चोर घर में सेंध मारकर शादी के सभी सामान लेकर फरार हो गया. सवेरे-सवेरे जब लोगों ने देखा, तो जोर-जोर से रोना धोना शुरू कर दिए. परन्तु मेरे पिताजी तो ऐसे बैठे थे जैसे उन पर कोई फर्क नहीं पडा हो, एकदम निर्विकार. भोज का सामान फिर से ख़रीदा गया. तथा स्व-जातीय बंधु-बांधवों के सामने वर के पिता को हाथ जोड़कर उन्होंने निवेदन किया था कि एक हफ्ते के अन्दर दहेज़ का सभी सामान खरीदकर पहुंचा देंगे.  

प्रेशर-कुकर की सिटी बज रही थी. भांप से मीट पकने की खुशबू भी चारों तरफ फैलने लगी थी. फिर एक बार, ' कालिंग-बेल' बजने लगी थी. कौन आ गया इस दोपहर के समय? रसोई घर से सुसी चिल्लाई,-" बेबी,  दरवाजा खोलो तो."

: " माँ, आंटी लोग आये है?" बेबी ने कहा था.

संकोचवश जड़वत हो गयी थी सुसी.कालोनी के सात-आठ औरतें. इधर रसोई घरसे मटन पकने की सुवास चारों तरफ फ़ैल रही थी. कोशिश करने से भी वह छुपा नहीं पायेगी. देखो,कितना पराधीन है इंसान? अपनी मर्जी से वह जी भी नहीं सकता.

फिर एकबार दिखाना पडा सबको वह टूटी हुई अलमीरा को खोलकर.

:"हाँ, देख रहे हैं न?"

:"अन्दर का लॉकर भी."

:"हाँ, उसको तो पीट-पीटकर टेढ़ा कर दिए हैं."

फिर एकबार बाथरूम का टूटा हुआ रोशनदान, फिर एकबार शो-केस की वह खाली जगह,फिर एकबार कितना गया की रट.   फट से बेबी बोली,:" ६ जोड़ी कान के झुमके, मेरी चेन, माँ का मंगल सूत्र---"

": इतना सारा सामान आप घर में छोड़कर बाहर चले गए थे? फिर भी मोटा-मोटी कितने का होगा?"

": सत्तर या अस्सी हजार के आस-पास ."

:" लाख बोलिए न, जो रेट बढ़ा है आजकल सोने का.चोर के लिए छोड़कर गए थे जैसे. चोर की तो चांदनी हो गयी."

फिर एक बार प्रेशर-कुकर की सिटी बजने लगी. अब सुसी का चेहरा गंभीर होने लगा. ये औरतें जा क्यों नहीं रही हैं? दोपहर में भी इनका कोई काम-धन्धा नहीं है क्या? घूम-घूमकर सारे कोनों को देख रही हैं. घर की बहुत सारी जगहों पर मकडी के जाले झूल रहे थे, धूल-धन्गड़ जमा था.ये सब उनकी नजरों में आयेगा. और जब ये घर से बाहर जायेंगे, तो इन्हीं बातों की चर्चा भी करेंगे. फिर, उपर से आ रही थी पके हुए मटन की महक.धीरे-धीरे सुसी उनसे हट कर चुप-चाप रहने लगी.ये सब औरतें गप हांक रही थीं.  कब, किसके घर कैसे चोरी हुई. इन्हीं सब बातों को लेकर वे रम गयी थीं.

अजितेश कंप्यूटर के सामने बैठे-बैठे खों-खों कर खांसने लगा था .नहीं तो पता नहीं, कितनी देर तक वे औरतें बातें करती?

उस समय तक सुसी को ज्यादा दुःख नहीं हुआ था. लोग आ रहे थे, देख रहे थे, सहानुभूति जता रहे थे. सबको टूटी-फूटी अलमीरा, चोर के घुसने का रास्ता दिखा रही थी. पर जब सुसी पूजा करने गयी, तो मानो उसके धीरज का बांध टूट गया हो.भगवन की छोटी-छोटी मूर्तियाँ, अपने-अपने निश्चित स्थान से गिरी हुई थीं. डिब्बे में से प्रसाद नीचे गिर गया था . धुप, अगरबत्ती,  सब बिखरा हुआ था इधर उधर. सिंदूर की डिब्बिया भी गिरी हुई थी.  होम की लकड़ियां भी बिखरी हुई थी इधर-उधर.चोर उपवास-व्रत वाली किताबों की पोटली खोलकर लगभग तीस चांदी के सिक्कों को भी ले गया था.कितने सालों से धन-तेरस पर खरीद कर इकट्ठी की थी सुसी ने. एक ही झटके में सारी स्मृतियाँ विलीन सी हो गयी.

भगवान की मूर्ति को किसी गंदे हाथों ने जरुर छुआ होगा.उनकी अनुपस्थिति में चोर ने जरुर इधर-उधर स्पर्श किया होगा. मन के अन्दर से उठते हुए विचार, तुरन्त ही असहायता में बदल गए हो जैसे. सुसी के घर में और कुछ छुपी हुई चीज बाकी नहीं थी.चोर को तो जैसे हरेक जगह का पता चल गया था. उसका घर अब उसे घर जैसा नहीं लगा.फटे-पुराने कपड़ों से लेकर, कीमती सिल्क की साड़ी कहाँ रखती थी सुसी, मानो चोर को सब मालूम हो गया था. दीवार की छोटी से छोटी दरार से लेकर घर की बड़ी से बड़ी, गुप्त से गुप्त जगह की जानकारी भी थी चोर के पास.

तुरन्त ही सुसी को याद आ गया टूटे हुए शीशे के अन्दर से दिखा हुआ अलमीरा का वह ह्रदय-विदारक दृश्य. ऐसे चित्त सोयी पड़ी थी वह अलमीरा, जैसे किसी ने उसे जमीन पर लिटाकर जबरदस्ती उसके साथ बलात्कार कर दिया हो. खुले हुए दोनों पट ऐसे लग रहे थे, मानो उस नारी ने अपनी कमजोर बाहें विवश होकर फैला दी हो. पूरे शरीर पर दाग ही दाग., मानो शैतान के नाखूनों से लहू-लुहान होकर हवश का शिकार बन गयी हो. रंग की परत हटकर प्राइमर तो ऐसे दिख रहा था मानो लाल-लाल खून के धब्बे दिख रहे हो. दुखी मन से सुसी की छाती भर आयी थी . फिर अपने-आपको संभालते हुए बोली थी ,-"अरे, सुन रहे हो?"

खाने का इंतज़ार करते-करते नींद से बोझिल सा हो रहा था अजितेश. सुसी की आवाज सुनकर नींद में ही बड़बड़ाने लगा,: " क्या हुआ ?"

क्या बोल पाती सूसी? उसके अन्दर तो फूट रही थी एक अजीब से अनुभव की ज्वालामुखी!  कैसे बखान कर पायेगी किसी को?चुप हो गयी थी सुसी.

:" क्या हो गया? क्यों बुला रही थी?"

फिर से अजितेश ने पूछा, "जल्दी पूजा खत्म करो, मुझे जोरों की नींद लग रही है. खाना खाते ही सो जाऊंगा."

भगवान की मूर्तियाँ अब उसे अछूत लगने लगी थीं. चोर ने उन सबको बच्चों के खिलौनों के भांति लुढ़का दिया था. उसके कठोर, गंदे हाथों ने स्पर्श किया होगा उन मूर्तियों को . उसने संक्षिप्त में ही सारी पूजा समाप्त कर दी.

खाना परोसते समय और एक बार अनमने ढंग से बोलने लगी थी सुसी,:" सुन रहे हो ?"

:" क्या हुआ ?" इस बार गुस्से से बोला था अजितेश,"क्या बोलना है , बोल क्यों नहीं रही हो ? एक घंटा हो गया सिर्फ 'सुनते हो' 'सुनते हो'  बोल रही हो."

:" मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है." बोली थी सुसी.

:" कौन सी बड़ी बात है? यह तो स्वाभाविक है. चोरी हुई है, मन को तो जरुर ख़राब लग रहा होगा."

:" नहीं ऐसी बात नहीं,:

:" फिर , क्या बात है?"

:" मुझे ऐसा लग रहा है हमारे घर का कुछ भी गोपनीय नहीं बचा है. किसी ने अपने गंदे हाथ से सब कुछ छू लिया है. ऐसा कुछ बचा नहीं जो अन-देखा हो"

अजितेश आश्चर्य-चकित हो कर देखने लगा था सुसी को. ऐसा लग रहा था , जैसे सुसी के सभी दुखों का बाँध ढहकर भी अजितेश के ह्रदय को छू नहीं पा रहा हो.       

-----

COMMENTS

BLOGGER: 5
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: सरोजिनी साहू की (ओड़िया) कहानी (का हिन्दी रूपांतर) : बलात्कृता
सरोजिनी साहू की (ओड़िया) कहानी (का हिन्दी रूपांतर) : बलात्कृता
http://lh5.ggpht.com/_t-eJZb6SGWU/SnLK-FsSoRI/AAAAAAAAGWM/AuVsTLCrDr0/Image024%5B2%5D.jpg?imgmax=800
http://lh5.ggpht.com/_t-eJZb6SGWU/SnLK-FsSoRI/AAAAAAAAGWM/AuVsTLCrDr0/s72-c/Image024%5B2%5D.jpg?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2009/07/blog-post_31.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2009/07/blog-post_31.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content