संजय भारद्वाज का आलेख : दोपाया लोक – चौपाया तंत्र

SHARE:

(संजय भारद्वाज का यर आलेख पंद्रह अगस्त को स्वाधीनता दिवस विशेष रूप में प्रकाशनार्थ प्रेषित किया गया था, मगर स्पैम हो जाने के कारण यह इनबॉक्स...

(संजय भारद्वाज का यर आलेख पंद्रह अगस्त को स्वाधीनता दिवस विशेष रूप में प्रकाशनार्थ प्रेषित किया गया था, मगर स्पैम हो जाने के कारण यह इनबॉक्स में नहीं आ पाया. यह आलेख न सिर्फ भारत की तथाकथित नकली आजादी के सच को नंगा करता है, बल्कि एक बड़ा प्रश्न चिह्न खड़ा करता है कि आम जनता क्या वास्तव में आजाद हुई है? – अत्यंत पठनीय व अनुशंसित आलेख)

15 अगस्त 1947 को देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद हमारे शासकों ने गणतांत्रिक लोकतंत्र की व्यवस्था स्वीकार की। इसका अर्थ था कि ऐसी व्यवस्था जिसमें शासन बहुमत के आधार पर हो और देश के सर्वोच्च पद का चुनाव भी हर वयस्क नागरिक लड़ने का अधिकारी हो। लोकतंत्र के तीन मुख्य प्रकारों में से प्रतिनिधि लोकतंत्र चुनते समय ब्रिटिश शासन व्यवस्था का रोल मॉडेल हमारे सामने था। उसका प्रभाव सर्वाधिक होता, ये स्वाभाविक था। पर साथ में गणतंत्र चुनकर हमने समानता के अधिकार को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। ब्रिटेन में लोकतंत्र तो था पर गणतंत्र वहाँ आज तक नहीं स्वीकृत हो पाया है। ब्रिटिश रानी आज भी सरकार की औपचारिक प्रमुख है। लेकिन संविधान तैयार करते समय, व्यवस्था की विभिन्न धाराएं तैयार करते समय ब्रिटिश व्यवस्था छाई रही। फलतः हमारे नियम-कानूनों की पुस्तकों को "उधार का झोला' भी कहा गया। अलबत्ता हमारी पुस्तकों में 'हर हाइनेस क्वीन एलिजाबेथ ऑफ ग्रेट ब्रिटेन' की जगह "भारत का/ की राष्ट्रपति' ने ले ली।

भारतीय लोक तंत्र के तीन महत्त्वपूर्ण स्तंभ हैं - विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका । जिस इंग्लैंड से इसे आयातित किया गया था वहाँ अपने शैशवकाल में लोकतंत्र-राजा, सरकार, चर्च और सामंतों के चार स्तंभों पर टिका था। कालातंर में ये दायित्व सरकार, न्यायपालिका,चर्च और प्रेस उठाने लगे। लोकतंत्र के प्रादुर्भाव से अब तक चर्च का महत्व वहाँ बना हुआ है। भारत में अंगे्रजों की दो सौ साला हुकूमत में भारतीय संस्कृति, परंपराओं और विशेषकर हिन्दू धर्म को उपेक्षित करने की इतनी कोशिशें हुई कि खुद को आधुनिक शासन दिखाने के लिए हमारे राज्यकर्ता संस्कृति की कोई भूमिका शासन में तलाश नहीं पाये। तिस पर धर्मनिरपेक्षता का लब्बेलुबाब ऐसा था कि धर्म का शासन से दूर-दूर तक भी वास्ता ना पड़े।

शनैः-शनैः संतुलन बनाये रखने के लिए चौथे स्तंभ की आवश्यकता अनुभव होने लगी। इस आवश्यकता ने जन्म दिया स्वतंत्र (!) प्रेस को। वस्तुतः इंग्लैड में प्रेस को चौथे स्तंभ के रूप में अपनाते हुए "एस्टेट' शब्द का इस्तेमाल किया गया था, जिसका शासन के संदर्भ में "आधार'अर्थ था न कि "स्तंभ।' हमारे यहाँ शाब्दिक अर्थ में उपयोग होने से ये "पिलर' या खंभा कहलाने लगा। यहीं से नई आजादी के अंतर्गत भारत का दोपाया नागरिक चौपाये तंत्र के हवाले कर दिया गया।

स्वाधीनता के विगत 62 वर्षों के प्रदर्शन के आधार पर यदि हमारे लोकतंत्र के चारों स्तंभों का विश्लेषण करें तो कोई बहुत बड़ी उपलब्धि सामने नहीं आती।..... विधायिका से आंरभ करें। हमारी संसद में अधिवेशनों के दौरान कुल समय का काफी कम ही काम करने के लिए उपयोग हो पाता है। समय के अपव्यय एवं सदन को अखाड़ा बनाने की ये प्रवृत्ति निरंतर बढ़ रही है। 11 वीं लोकसभा (1996-98) में शोर-शराबे के चलते 5.28 प्रतिशत समय का अपव्यय हुआ। 12 वीं लोकसभा में अपव्यय 10.66 प्रतिशत तक पहुँचा। 13 वीं लोकसभा में ये 22.46 प्रतिशत रहा। ये स्थिति तब है जब संसद वर्ष भर में औसत डेढ़ महीने ही चलती है। क्या अपने कार्यालय में आपको वर्ष भर में केवल 45 दिन काम करने (उसमें भी आधा समय बर्बाद करने) के लिए पूरे वर्ष के वेतन का भुगतान हो सकता है? क्या कार्यालय अपना नुकसान बर्दाश्त कर सकता है? हमारे निर्वाचित प्रतिनिधियों को संभवतः जानकारी भी न हो कि संसद का प्रतिमिनट खर्च रू 26035/- है। समय और जनता से ली गई करराशि के अपव्यय का यह नज़ारा और बड़ा हो जाता है यदि हम केवल लोकसभा का रेकॉर्ड देखें।(ये तथ्य लोकसभा व राज्यसभा की एकसाथ की गई गणना के हैं।

हमारी विधायिका अपराधियों से भरी पड़ी है। 1200 स्वयंसेवी संस्थाओं के संगठन न्यू(नेशनल इलेक्टोरोल वॉच) द्वारा 16 मई 2009 को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि 15 वीं लोकसभा के 543 सदस्यों में से 533 के शपथपत्र (शेष 10 के तब तक उपलब्ध नहीं थे ) देखने से ज्ञात होता है कि उनमें से 150 पर (28.14%) पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। इनमें से 72 सांसदों पर 213 कानूनन गंभीर आरोप (हत्या, आगजनी, अपहरण, फिरौती मॉंगना आदि) है। विगत लोकसभा में दागी सांसदों की संख्या 128 थी। वर्तमान लोकसभा में धनाढ्‌यों की भरमार है । 300 सदस्य ऐसे हैं जिनकी घोषित संपत्ति एक करोड़ से अधिक है। 543 सांसदों की कुल संपत्ति लगभग 3000 करोड़ रूपये है। इस आधार पर एक सांसद के पास औसत 5 करोड़ की संपत्ति है।

सदन की कार्यवाही पर दृष्टिपात करें तो देखने को मिलेगा कि अनेक महत्त्वपूर्ण विधेयक बिना चर्चा के पारित कर दिये गये हैं। परमाणु अप्रसार संधि जैसे संवेदनशील और राष्ट्रीय संप्रभुता व सुरक्षा से जुड़े मुद्दे पर भी सकारात्मक चर्चा नहीं हुई। लेखानुदान मांगें तो यों पारित हो जाती हैं मानो चाय का बिल हो। इसके मुकाबले संसद में नोट दिखाने, हथियार ले जाने, कुसियॉं फेंकने, अभद्र शब्दों का प्रयोग करने के अनेक मामले घटे। अपराधी लोकतंत्र के मंदिर में देवता बने बैठे हैं। अपने समर्थकों के संख्याबल के आधार पर कोई किसी भी मंत्रालय का मंत्री हो सकता है। रक्षा, विदेश और वित्त जैसे विभागों के लिए भी विशेषज्ञ मंत्री न बना पाना हमारी व्यवस्था की असहायता को इंगित करने के लिए पर्याप्त है। विषयों पर अनर्गल प्रलाप करनेवाले अधिकंाश सांसदों की तुलना में अध्ययन करके आनेवाले प्रतिनिधि गिने-चुने ही हैं। औसत 10 प्रतिशत सांसद ऐसे हैं जिन्होनें अपनी सदस्यता के दौरान संसद में एक बार भी मुँह नहीं खोला। संसद में उपस्थिति का कोई नियम पाला नहीं जाता। चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के लिए भी न्यूनतम शिक्षा की अर्हता देखनेवाली व्यवस्था अगूंठाछाप मंत्रियों के आगे अंधी बन जाती है।इन सबके फलस्वरूप विधायिका कोई नीतिगत निर्णय नहीं ले पाती। दिग्‌भ्रम के चलते देश को अनिर्णय के अधर में लटकाये रखने का जीवंत प्रतीक बन चुकी है हमारी विधायिका। मसला हिन्दी को लागू करने का हो, महिला आरक्षण का या अफजल गुरू को फॉंसी देने का, वोट बैंक के आधार पर संतुलन बनाये रखने के लिए सर्वदा यथास्थिति बनाये रखी गई । राज्यों में हमारी विधानसभाएं एवं विधानपरिषद भी संसद का प्रतिरूप बनकर ही काम कर रही हैं।

कार्यपालिका की लालफीताशाही की कथा बयान करने में कई सर्ग कम पड़ सकते हैं। अवैध रूप से भारत में रह रहे (अधिकांश बस चुके) बांग्लादेशी नागरिकों को आठ सौ रूपये में राशनकार्ड उपलब्ध करवाने वाली भ्रष्ट व्यवस्था देश के ईमानदार नागरिकों को "डोमेसाइल' लेने के लिए कैसा नाच नचवाती है, ये किसी भी भुक्तभोगी से पूछ लें। "ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल' द्वारा जारी रपट के मुताबिक भ्रष्ट कार्यपालिका वाले देशों में भारत अग्रणी है। रपट "वर्ल्ड इकानॉमिक फोरम' द्वारा विश्व के 11000 उद्यामियों के बीच कराये गये सर्वेक्षण पर आधारित है। विश्व निर्यात में 1.2 प्रतिशत की भागीदारी रखनेवाले भारत का रिश्वत सूचकांक (Bribe payer index) 4.52 है। 1 से 10 के पैमाने पर सबसे कम अंक लेकर रिश्वतखोरी में हम सबसे ऊपर हैं। इस सर्वेक्षण में हमारी राजनीतिक व्यवस्था को सर्वाधिक भ्रष्ट बताया गया है, दूसरे स्थान पर पुलिस है। सच भी है, खाकी और खादी अब आतंक के नए पर्याय बन चुके हैं । इस सर्वेक्षण का अपने धरातल पर विस्तार करें तो भ्रष्टाचार की इस प्रतियोगिता में सार्वजनिक निर्माण विभाग, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, सरकारी अस्पताल, बिजली विभाग, चुँगी नाका सभी एक दूसरे से होड़ करते दिखते हैं।

राजनीतिक व्यवस्था और पुलिस की गलबॉंही के उदाहरण हम रोज देखते-सुनते-पढ़ते रहते हैं। 100 या 50 रुपए की चोरी करनेवाले, बस्ती के सार्वजनिक नल पर पानी को लेकर हुए झगड़े में बंदी बनाये गये कथित गंभीर अपराधी, पापी पेट के कारण टोकरियों में सामान भरकर यहाँ-वहाँ व्यापार करते पर अतिक्रमण निरोधी दस्ते से उलझकर तू-तू-मैं-मैं कर सरकारी काम में बाधा पहुँचाने के आरोपी, एक समय जलनेवाले चूल्हे के लिए अपने ही जंगल से लकड़ियॉं लेकर आनेवाले आदिवासी पुलिस थानों में रोज पिटते रहते हैं। इसके विपरीत करोड़ों के घोटाले, हत्या, दंगा उकसाने के आरोपी राजनेता पत्रकार परिषद आयोजित कर लफ्फाजी करते हैं और पुलिस सर्च वॉरंट लिए उनको फरार घोषित कर यहाँ-वहाँ कागजी छापामारी करती दिखती है।

आर्थिक तरक्की का चित्र भी काफी बड़ा करके आजकल खींचा जा रहा है। उन्मुक्त अर्थव्यवस्था के नाम पर हमने हमारे बाजार क्या खोले, धूर्त यूरोप टूट पड़ा। अंग्रेजी में कहा गया है कि कस्टमर्स आर टु गुड टू लूज, कीप देम स्माइलिंग भारतीय ग्राहक को "स्माइलिंग' रखने की कवायद में कई तरह के लटके -झटके शुरू हो गये। क्या वजह है कि भारतीय लड़कियॉं पिछले कुछ वर्षों से ही "मिस वर्ल्ड/मिस यूनिवर्स/ मिस अर्थ' चुनी जाने लगीं। क्या इससे पहले वे सुंदर या बुद्धिमान नहीं थीं? ऑस्कर से नवाजी गई "स्लमडॉग मिलेनिअर' को फिल्ममेकिंग की थोड़ी भी समझ रखनेवाले किसी भी सामान्य व्यक्ति को दिखा लीजिये। यथार्थ से परे अतार्किक कथा, पटकथा, लचर ट्रीटमेंट पर वह प्रश्न खड़े कर देगा। इस लेख का उद्‌देश्य हमारी सुंदरियों या कलाकारों की क्षमता पर प्रश्न खड़ा करना नही है। उनकी प्रतिभा निर्विवाद है। प्रश्न है कि ये प्रतिभा अब ही क्यों याद आ रही है? बच्चे के मुँह में लॉलीपॉप रखकर उसका मुंडन कराने के दृश्य आपने प्रायः देखे होंगे। भारतीय राजनेताओं और नीति-निर्माताओं की मदद से हमारे सिर मूँडने का काम गोरा व्यापारी भली-भॉंति कर रहा है। तुर्रा ये कि सिर मुँडाने से जी.डी.पी बढ़ा है। लेकिन तथ्य इससे मेल नहीं खाते। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोश ने अपनी हालिया रपट में जी.डी.पी (सामान्य) के आधार पर 179 देशों की सूची में भारत को 142 वॉं स्थान दिया है। सी.आई.ए. फैक्टबुक ने 192 देशों में भारत को 146 वें स्थान पर रखा है।

वर्षों से प्रलंबित मुकदमे हमारी न्यायपालिका के मूल पर ही कुठाराघात करते हैं।जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड का आदर्श सामने रखनेवाली न्यायपालिका में "डिलेड जस्टिस' द्वारा परोक्ष में न्याय नकारा ही जा रहा है। भारत के "रजिस्ट्रार ऑफ हाईकोर्ट' के अनुसार 31 दिसम्बर 2008 तक देश की निचली अदालतों में 2,66,50467 मुकदमे प्रलंबित थे। उच्च न्यायालयों में चल रहे मुकदमों की संख्या 39,10858 है जबकि सर्वोच्च न्यायालय में 50,659 मामले (19,296 नियमित + 31363 विचारार्थ याचिकाएं ) हैं। गैर सरकारी सूत्रों के अनुसार इस समय 2069 लोग ऐसे हैं जो बिना किसी पेशी के पॉंच वर्ष से अधिक समय से जेल में हैं। विभिन्न मसलों पर बननेवाले जॉंच आयोग धारावाहिकों की तरह हर बार एक्सटेंशन पाते रहते हैं। ताज़ा उदाहरण लिबरहान आयोग का है। तीन महीने में अपेक्षित रिपोर्ट को आने में सत्रह वर्ष लग गये। इस पर कार्यवाही कब होगी, मुकदमा कब चलेगा, निर्णय कब आयेगा ? ऐसे अनेक आयोगों की रिपोर्ट धूल खा रही है। वर्तमान में कार्यरत आयोगों की मियाद बढ़ाते रहने का रूटीन काम जारी है और नतीजा-वही ढाक के तीन पात।

भारतीय लोकतंत्र के स्वास्थ्य को सुधारने, चहारदिवारियों में होनेवाले शोषण को उजागर करने में मीडिया ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । आपसी प्रतियोगिता के चलते ही क्यों न सही, विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने लोकतंत्र को झकझोरना शुरू किया। हरियाणा के मासूम प्रिंस के प्राण बचना मीडिया की सक्रियता का सकारात्मक परिणाम था। पर धीरे-धीरे 24 घंटे चैनल चलाये रखने के दबाव ने चैनलों की चाल-ढाल में परिवर्तन आंरभ कर दिया।"जो बिकेगा वही दिखेगा' की नीति पर चलते मसाला तलाशा जाने लगा है। सो खबरें छूट गई, ब्रेकिंग न्यूज के नाम पर सनसनियॉं शुरू हो गईं। चौथे स्तंभ का जामा पहने मीडिया "लाइव कवरेज' को न्यूज बनाकर पेश करने लगा। समाचार में वांछित विश्लेषण और सत्य पीछे छूटते गये और पहली नज़र में सुर्खी बनने की क्षमता रखने वाली ऊटपटांग तात्कालिक घटनाएं, तुरत प्रतिक्रिया के साथ छाने लगीं। अभिव्यक्ति के आधुनिक क्षितिज तलाशने के मुगालते में अब मीडिया-रिअलिटी शो या प्रश्नोत्तरों के नाम पर अश्लीलता, कामुकता और वीभत्स बातें सार्वजनिक रूप से परोसने लगा है। विकृत, द्विअर्थी और यौनांगो की छिछोरी चर्चा को हास्य की नई परिभाषा बनाकर पेश का दिया गया है।

जनता से सीधे संपर्क और व्यापकता के चलते मीडिया लोकतंत्र के अन्य तीनों स्तंभों पर हावी हो गया है। इस अहंकार के कारण पवित्र मंदिर अब मठ में तब्दील होता जा रहा है। इन मठों में स्वयंभू पंडित, मौलाना, पादरी रहने लगे हैं। धर्म की "बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रूपैया' की नई क्रांतिकारी परिभाषा के ये अन्वेषक हैं। प्रिंट मीडिया में किसी अखबार की खबरें पढ़कर पाठक समझ जाता है कि अखबार किस राजनीतिक दल या समूह के लिए काम कर रहा है। पाठक या दर्शक जो आग्रह या दुराग्रह के बिना केवल खबर चाहता है, ठगा सा अनुभव कर रहा है। खबरों की विश्वसनीयता को जॉंचने की मॉंग प्रबल हो रही है। यही कारण है कि अनेक संगठनों ने मीडिया पर भी सूचना का अधिकार कानून लागू करने की हिमायत की है। अन्य तीन स्तंभों के प्रमुखों की तरह यहाँ भी समूह प्रमुख द्वारा अपनी संपत्ति की सार्वजनिक घोषणा वांछित है।

ऐसा नहीं है कि पिछले 62 वर्ष में हमारी व्यवस्था ने कुछ हासिल ही नहीं किया। पर यदि 62 वर्ष के एक व्यक्ति से उसकी उपलब्धियों की जानकारी मॉंगी जाये और वह अपनी शिक्षा, नौकरी, विवाह, संतानों की शिक्षा, उनकी नौकरी का उल्लेख करे तो यह कितना तर्कसंगत होगा? राष्ट्र के जीवन में भी ढेर सारी प्रक्रियाओं को प्राकृतिक रूप से अनिवार्यतः घटना पड़ता है। इस अनिवार्यता को उपलब्धि का मुलम्मा चढ़ाकर देखा नहीं जा सकता। राष्ट्रीयता की संकल्पना का आधार भावुक हो सकता है पर राष्ट्र का आकलन तथ्यों के आधार पर किया जाता है। ये आकलन भविष्य में यात्रा की दिशा तय करते हैं।

वर्तमान में लोकतंत्र के चारों खंभों की दशा और दिशा पर सवाल उठ रहे हैं। विंस्टन चर्चिल की भारतीयों द्वारा अपना देश संभाल कर न रख पाने की भविष्यवाणी भी चर्चा में है। तथ्यात्मक कटु सत्य इंगित कर रहा है कि आलम यही रहा तो इन चार खंभों को लोकतंत्र को ढोते चार कंधों में बदलते देर नहीं लगेगी। गणतांत्रिक-लोकतंत्र का केंद्र है नागरिक। अतः आम नागरिक से सजगता की अपेक्षा है। लोकोक्ति है कि पशु उसे कहते हैं जो सोचता नहीं, बोलता नहीं। नहीं सोचने, नही बोलनेवाला पशु हो जाता है। वर्तमान शासन व्यवस्था से यदि वांछित परिणाम नहीं मिल रहे तो समानुपातिक लोकतंत्र अथवा राष्ट्रपति प्रणाली के विकल्प की संभावना तलाशी जानी चाहिए। ये बहस का मुद्दा हो सकता है पर चौपाये द्वारा हाँका जाता दोपाया बने रहने से बेहतर है कि हम इस दिशा में सोचना और बोलना शुरू करें।

---

मेरा देश कब होगा आजाद !

वे लूट रहे हैं आभूषण सभ्यता के

वे खींच रहे हैं वस्त्र संस्कृति के

वे ओढ़ा रहे हैं अपना चोला इतिहास को

वे मिटा रहे हैं हमारी आस्था विश्वास को,

कभी भाषा, कभी साहित्य

प्रायः परंपरा और सर्वदा पहरावे

के क्षेत्र पर छा रहे हैं

अपने बच्चों के निवाले

हम उन्हें थमा रहे हैं,

भूमंडलीकरण के नाम पर

देश बना बैठा हाट है

विदेशी मुद्रा के नाम पर

निर्लज्ज ठाठ-बाट है,

लूट-खसोट के इस दौर में सुनता हूँ,

कहकहे, भाषणबाजी और अट्टाहस

देखता हूँ-

बिका हुआ स्वाभिमान, नारेबाजी

और शराब से भरा गिलास,

निजीकरण के बैनर तले

मॉं को बाजार में उतारने की विकृति

बलि के लिये ले जाते

प्राणी की सी स्थिति,

रैम्प की धुन पर थिरकता

भरतनाट्यम्का समाज

गोरों को लज्जित करता

काले फिरंगियों का राज,

प्रश्न अनुत्तरित रखने के नुस्खे

दिखावटी उत्तरों की बरसात

कानों पर रखकर हाथ

सोचता हूँ, हर पंद्रह अगस्त को

मेरा देश कब होगा आजाद ?

----

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: संजय भारद्वाज का आलेख : दोपाया लोक – चौपाया तंत्र
संजय भारद्वाज का आलेख : दोपाया लोक – चौपाया तंत्र
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2009/08/blog-post_1160.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2009/08/blog-post_1160.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content