उमेश गुप्ता का आलेख : चिकित्सकीय उपेक्षा के मामले में आपराधिक दायित्‍व की सीमा ?

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            माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा अनेक मामलों में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि जब तक  डाक्‍टर के द्वारा घोर उपेक्षा जानबूझकर घ...

            माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा अनेक मामलों में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि जब तक  डाक्‍टर के द्वारा घोर उपेक्षा जानबूझकर घोर लापरवाही न की जाए तब तक उसके काम को अपराध की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है।
            घोर उपेक्षा को भा0दं0सं0 में परिभाषित नहीं किया गया है  माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा इसे चिकित्सकीय उपेक्षा के मामले में परिभाषित किया गया है। सामान्‍य अर्थ में उपेक्षा का अर्थ उस सतर्कता  का अभाव है जिसको कि उन विशिष्‍ट परिस्‍थितियों में प्रयुक्‍त करना विधिक कर्तव्य होता है। उपेक्षा आशय के विपरीत एक मानसिक अवस्‍था को प्रदर्शित करती है जिसमें कि किसी विशिष्‍ट परिणाम कारित करने की इच्‍छा का अभाव रहता है। इसका अर्थ प्रमाद अथवा  असावधानी ही है।
            उपेक्षा में वह परिणाम की इच्‍छा नहीं की जाती है न ही उसके उत्‍पन्‍न करने के लिए कार्य किया जाता है जो परिणाम उत्‍पन्‍न होते है संक्षेप में उपेक्षा का अर्थ दोषपूर्ण असावधानी है। उपेक्षा के मामले में पक्षकार वह कार्य नहीं करता है जिसके करने के लिए वह सक्षम है वह एक निश्‍चयात्‍मक कर्तव्य का उल्‍लंघन करता है यहां वह उस कार्य की ओर ध्‍यान नहीं देता है जिसको करना
उसका कर्तव्य है।
            इसलिए अनुचित चिकित्‍सा उपचार जिसमें कि सामान्‍य ज्ञान और कुशलता का अभाव होगा और जो सद्‌भावना पूर्वक नहीं किया गया हो वही चिकित्सकीय उपचार उपेक्षा की श्रेणी में आता है। यदि कोई डाक्‍टर द्वारा अनुचित अशुद्ध उपचार सद्‌भावनापूर्वक सामान्‍य ज्ञान तथा कुशलतापूर्वक किया गया है तो वह कार्य अपराध की श्रेणी में नहीं आता है और केवल सिविल दायित्‍व ही उत्‍पन्‍न करता है।
            भा0दं0वि0 की धारा -88 92 93 में चिकित्‍सक द्वारा उनके समान अंन्‍य प्रोफेशनल व्‍यक्‍तियों को विशेष परिस्‍थितियों में कार्य किए जाने के लिए संरक्षण प्रदान किया गया है।
माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा चिकित्‍सक के कार्य को तब तक अपराधिक  कार्य नहीं माना जा सकता है जब तक उसके द्वारा इलाज करने में तीव्र उपेक्षा व उच्‍च स्‍तर की लापरवाही नहीं बरती गयी है।
                माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा सुरेश गुप्‍ता बनाम राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली (2004)6 एस0सी0सी0-422 मे पारित दिशा निर्देशों के अनुसार चिकित्सकीय उपचार के दौरान प्रत्‍येक दुर्घटना या मृत्‍यु के लिए चिकित्सकीय व्‍यक्‍ति के खिलाफ सजा के लिए कार्यवाही नहीं की जा सकती। उनके दोष को इंगित करते हुए पर्याप्‍त चिकित्सकीय अभिमत के बिना चिकित्‍सकगण का दांडिक अभियोजन समुदाय में आम जनता की गलत सेवा होगी, क्‍योंकि यदि न्‍यायालयों, अस्‍पतालों और चिकित्‍सकों पर प्रत्‍येक बात जो गलत होती है, के लिए दांडिक दायित्‍व अधिरोपित किया जाता है, तो चिकित्‍सकगण उनके रोगियों का सर्वोत्‍तम उपचार करने की अपेक्षा उनके स्‍वयं की सुरक्षा के बारे में अधिक चिंतित होगें। यह चिकित्‍सक और रोगी के मध्‍य आपसी विश्‍वास हिल जाने में परिणीत होगा।
चिकित्‍सक के अस्‍पताल या दवाखाना में प्रत्‍येक दुर्घटना या दुर्भाग्‍य उसका सदोष उपेक्षा के अपराध के लिए परीक्षण करने के लिए उपेक्षा का घोर कृत्‍य नहीं है।     इसी प्रकार माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा जैकब मैथ्‍यु बनाम स्‍टेट ऑफ पंजाब, ए0आई0आर0 2005, सु0को0-3180 में यह अभिनिर्धारित किया है कि प्रोफेशनल व्‍यक्‍ति को उपेक्षा के लिए दो आधारों पर दायी माना जा सकता है। या तो उसके पास वह अपेक्षित कौशल न हो जिसके होने के संबंध में वह दर्शाता है अथवा उसके द्वारा युक्‍तियुक्‍त सक्षमता से कौशल न किया गया हो। यह निर्णीत करने के लिए कि व्‍यक्‍ति उपेक्षा का दोषी था अथवा नहीं मानक यह होगा कि क्‍या साधारण सक्षम व्‍यक्‍ति की तरह उस पेशे के साधारण कौशल का
उपयोग किया गया था। यह स्‍पष्‍ट किया गया कि प्रत्‍येक प्रोफेशनल के लिए उस ब्रांच मे जिसमें कि वह प्रेक्‍टिस करता है उच्‍च स्‍तर की विशेषज्ञता को धारण करना अथवा कौशल को धारण करना संभव नहीं होता है।
        इसी प्रकरण में माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा आगे यह अभिनिर्धारित किया गया है कि जब मरीज चिकित्सकीय इलाज अथवा सर्जिकल ऑपरेशन के लिए सहमत होता है तो मेडिकल मेन के प्रत्‍येक उपेक्षावान कृत्‍य को आपराधिक होना नहीं कहा जा सकता है। इसे उस दशा में ही आपराधिक होना कहा जा सकता है जबकि चिकित्‍सकीय व्‍यक्‍ति घोर अक्षमता वाला प्रदर्शित करे अथवा उसके द्वारा घोर लापरवाही की गयी हो। मात्र अनवधानता अथवा कतिपय डिग्री की पर्याप्‍त केयर एवं सर्तकता का अभाव होने पर सिविल दायित्‍व ही सृजित होगा। इस आधार पर आपराधिक दायित्‍व सृजित नहीं होगा।
            डा0 उषा बाधवा बनाम स्‍टेट ऑफ एम0पी0 2003 (2) एम0पी0डब्‍ल्‍यु0एन0 -92, रूपलेखा बनाम स्‍टेट ऑफ एम0पी0  2006 (3) एम0पी0एल0जे0- 120 डा0 अशोक लोधा बनाम स्‍टेट ऑफ एम0 पी0 2005 (3) एम0पी0एल0जे0-281हसमुख बनाम स्‍टेट ऑफ एम0पी0-2005 क्रि0लॉ0रि0-844 खुशलदास बनाम स्‍टेट 1959 एम0पी0एल0जे0-966 म0प्र0 1959 जे0एल0जे0-602 म0प्र0 ए0आई0आर0-1960 म0प्र0-50 आदि मामले में म0प्र0 उच्‍च न्‍यायालय द्वारा उपरोक्‍त अभिनिर्धारित सिद्धांतों के आधार पर चिकित्सकीय उपेक्षा को वर्णित किया है।
        इस प्रकार चिकित्सकीय कार्य तभी आपराधिक उपेक्षा की श्रेणी में आएगा  ः-
1        जब चिकित्सकीय व्‍यक्‍ति घोर अक्षमता प्रदर्शित करें।
2        जब चिकित्सकीय व्‍यक्‍ति द्वारा घोर उच्‍च स्‍तर की लापरवाही बरती जाए।
3        जब चिकित्‍सक के द्वारा युक्‍तियुक्‍त सक्षमता से उस कौशल का उपयोग न किया गया हो, जिसे वह धारण करता है।
4        जब चिकित्‍सक के द्वारा किए गए कार्य और निकाले गए इलाज के परिणाम का प्रत्‍यक्ष निकटतम संबंध हो।
5        जब उसके द्वारा साधारण व्‍यक्‍ति की तरह अपने पेशे में धारण कौशल का साधारण तरीके से उपयोग किया गया है।
6        जब चिकित्सकीय रिपोर्ट या अन्‍य चिकित्‍सक की यह राय हो कि उचित इलाज नहीं हुआ है और चिकित्‍सक की राय के अनुसार कार्य तीव्रतापूर्वक अथवा अत्‍यधिक उपेक्षापूर्ण कृत्‍य की कोटि में आता है।
7        चिकित्सकीय उपेक्षा में आपराधिक दायित्‍व के लिए रे ईप्‍सा लाक्‍यूटर (घटना स्‍वयं बोलती है) का सिद्धांत लागू नहीं होता है। क्‍योंकि यह नियम साक्ष्‍य की विषय वस्‍तु है और इसके आधार पर केवल सिविल दायित्‍व अपेक्षित किया जा सकता है
8        चिकित्सकीय उपेक्षा का टेस्‍ट बॉलम टेस्‍ट बोलम बनाम फीयर अस्‍पताल प्रबंधन समिति 1957 (2)ऑल0ई0आर0 118 में निर्धारित मानकों के     अनुसार करना चाहिए अर्थात यदि कोई व्‍यक्‍ति चिकित्सकीय विज्ञान से अथवा सर्जरी की प्रेक्‍टिस से पूरी तरह अनभिज्ञ हो और वह इलाज करे अथवा ऑपरेशन करे तो उसके इस कृत्‍य के संबंध में गंभीर उपेक्षा अथवा तीव्रता का अनुमान लगाया जा सकता है।
9        सिविल दायित्‍व और आपराधिक दायित्‍व में अंतर होता है कोई उपेक्षा सिविल दायित्‍व उत्‍पन्‍न कर सकती है, जरूरी नहीं कि वह आपराधिक दायित्‍व उत्‍पन्‍न करे। कतिपय डिग्री की पर्याप्‍त केयर एवं सतर्कता का अभाव होने पर सिविल दायित्‍व होता है। मात्र आवश्‍यक सतर्कता ध्‍यान देने या कौशल अपनाने की मात्र कमी होने पर सिविल दायित्‍व उत्‍पन्‍न होता है।
              उपरोक्‍त दशाओं में चिकित्‍सक का कार्य अपराध की श्रेणी में आता है।
          यही कारण है कि माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा जैकब मैथ्‍यू के मामले में देश में बढ़ते डाक्‍टरों के विरूद्ध आपराधिक मामलों की संख्‍या को देखते हुए तथा ऐसे मामले में डाक्‍टरों की अकारण गिरफ्तारी तथा डाक्‍टरों एवं मरीजों के बीच बढ़ते अविश्‍वास को देखते हुए सरकार को नियम बनाने निर्देशित किया गया है कि मेडिकल कौसिंल ऑफ इंडिया के साथ मिलकर उसे नियम बनाना चाहिए और मानक निर्धारित किया जाना चाहिए कि किस स्‍तर की उपेक्षा एवं लापरवाही अपराध दायित्‍व की श्रेणी में आती है।
        इस संबंध में डाक्‍टरों की ऐसे मामलों में अकारण गिरफ्तारी न की जाए ऐसे दिशा निर्देश भी दिए गए हैं।

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. हमारी व्यवस्था को इस बारे में गहरा सोच विचार करना होगा कि पश्चिम के कानूनों और व्यवस्था को जिसमे बाजारवाद हावी है अपना लें और एक पुराने मरीज और चिकित्सक के सम्बन्ध को तोड़ दें या अपनी परिस्थिति के अनुसार अपने कानून बनाएं

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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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रचनाकार: उमेश गुप्ता का आलेख : चिकित्सकीय उपेक्षा के मामले में आपराधिक दायित्‍व की सीमा ?
उमेश गुप्ता का आलेख : चिकित्सकीय उपेक्षा के मामले में आपराधिक दायित्‍व की सीमा ?
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