नन्दलाल भारती के दो आलेख

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नन्‍दलाल भारती एम.ए. । समाजशास्‍त्र । एल.एल.बी. । आनर्स । पोस्‍ट ग्रेजुएट डिप्‍लोमा इन ह्‌यू...

नन्‍दलाल भारती

एम.ए. । समाजशास्‍त्र एल.एल.बी. । आनर्स ।

पोस्‍ट ग्रेजुएट डिप्‍लोमा इन ह्‌यूमन रिर्सोस डेवलपमेण्‍ट

लेखक

स्‍थायी पता- आजाद दीप, 15-एम-वीणानगर

इंदौर ।म.प्र.!-

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1- तकदीर-रूढिवादी सोच का चक्रव्‍यूह है ।

तकदीर की तस्‍वीर पर निश्‍पक्ष विचार मंथन किया जाये तो उसकी असलियत का चेहरा उभर कर हमारे सामने आाता है । निश्‍पक्ष मानव-मन कहने को बेबस हो जाता है कि तकदीर कुछ नहीं मानव-जीवन को सन्‍तुलित और आगे बढने की आशावादी सोच के अलावा और कुछ नहीं है । दूसरे अर्थो में देखा जाये तो तकदीर जीवन जीने की एक कला का नाम है । इसी की आड़ में कुछ तिकड़मबाज लोग दिन चौगुनी रात आठ गुनी तरक्‍की कर रहे है और करोड़ो दबे कुचले लोग आंसू से रोटी गीली करते हुए जीवन बसर कर रहे है । संवरी हुई तकदीर वालों के उपर दृष्‍टिपात किया जाये तो यह बात उभर कर सामने आ ही जाती है कि जो गरीब दबा कुचला तबका है वह अधिक श्रम करता है क्‍योंकि आदिकाल से वह दबा कुचला है।उसके पास एक ही पूंजी है वह है श्रम । इसी श्रम की कुल्‍हाड़ी से अपने लिये रूखी-सूखी रोटी और अर्धबदन तक के कपड़े का इन्‍तजाम तंग हाथो से कर पाता है ।रही आशियाने की बात तो अधिक संकल्‍पित दबा कुचला तबका और श्रमिक समुदाय ही इसका सुख भोग पाते हैं बाकी तो कहीं सड़क के किनारे तो कहीं पेड़ की छांव में जीवन बिताने को मजबूर रहते हैं

तनिक और इर्मानदारी से विचार करते हैं मेहनत के उपर तो पाते हैं कि श्रमिक वर्ग बहुत अधिक मेहनत करता है। अपने कर्म के फर्ज के परिपालन में वह रात -दिन को भी नहीं देखता और इस कर्म की रणभूमि में उसके आंख मसलते बच्‍चे तक भी सहभागी बनते हैं तो गरीबी उसी की चौखट क्‍यो ? जबकि वह तो कर्म को पूजा मानकर करता है और बड़ी इर्मानदारी और वफादारी के साथ काम करता है और उसकी मूलभूत जरूरते भी नहीं पूरी हो पाती है ।मरता है तो कर्ज का बोझ अपने आश्रित के उपर छोड़कर । इसी कर्ज की भरपाई में पीढियां तक गुजर जाता है । कमजोर गरीब की तकदीर नहीं संवरती है और दूसरी ओर एक चालबाज व्‍यक्‍ति तकदीर की आड़ में धन का पहाड़ खड़ा कर लेता है।छोटी पंूजी बड़े-बड़े खजाने का मुंह खोल लेती है । यदि भगवान की ऐसी मर्जी है तो भगवान भी पक्षपाती है । अमीर को अमीर बनाने में और गरीब को और गरीब बनाये रखने में परन्‍तु भगवान ऐसा नहीं कर सकता क्‍योंकि मां-बाप की नजरों में औलादे बराबर होती है । ठीक है कर्म की बात पर हम जरा गौर फरमाते हैं,कहते हैं कर्म का फल मिलता है हम भी इस बात को पूरी तरह से मानते हैं परन्‍तु कर्म कोई और करे फल कोई और हड़प ले तो इसमें दोषी कौन हुआ-कर्म करने वाला,भगवान या कर्मफल अर्थात हक छिनने वाला । यकीनन हक छिनने वाला दोषी हुआ ।इस दोष की सजा उसे देगा कौन ? गरीब मजदूर दबे कुचले व्‍यक्‍ति के बस की बात तो रही नहीं ।वह अपना और अपने परिवार के पेट पालने की जुआड़ में हाड़ निचोड़े या तबाह होने के लिये पत्‍थर पर सिर पटके । इससे तो उसका जीवन और कष्‍टदायक हो जायेगा । आखिरकार यह जानते हुए कि उसकी नसीब अमीर की कैदी बनकर बना दी गयी है तकदीर के नाम पर ।

प्रश्‍न उठता है कि गरीब,कमजोर और कुचले वर्ग के करोड़ो लोगों की बिगड़ी तकदीर संवर क्‍यों नहीं रही है,जबकि यह वर्ग हाड़फोड़ मेहनत कर रहा है । देश और समाज के नवनिर्माण की आधार शिला इसी की छाती पर टिकी हुई है । इसके बाद भी वह शोषित है पीड़ित है,तंगी लाचारी और छुआछूत जैसी सामाजिक महामारी की चपेट में भी है । क्‍या यह भगवान का विधान कहां जा सकता है कदापि नहीं यह तो बस चालबाज लोगों की बदनियत से रचा चक्रव्‍यूह है जिसमें फंसा व्‍यक्‍ति जन्‍म-जन्‍मान्‍तर तक नहीं निकल सकता । भारतीय रूढिवादी व्‍यवस्‍था में तो और भी गुंजाइस नहीं बचती है क्‍योंकि यहां की जातीय-व्‍यवस्‍था का ताना बना ऐसे ही बना हुआ है जैसे जंगल का राज । यहां जितना जातीय सबल है उतनी ही अधिक सम्‍पन्‍नता और श्रेष्‍ठता की योग्‍यता रखता है। नतीजन आज भी भारतीय व्‍यवस्‍था का घिनौना सच छुआछूत जवान है इसकी चपेट में आये व्‍यक्‍ति की तकदीर आज भी कैदी की भांति है अथवा वनवास झेल रही है। इस व्‍यक्‍ति का उद्धार नहीं हुआ है और भारतीय रूढिवादी व्‍यवस्‍था से तो ऐसी कोई उम्‍मीद भी नहीं है । वर्तमान व्‍यवस्‍था से भरपूर उम्‍मीदे तो है पर वहां भी तो दबदबा दंबगों का ही है । यदि कमजोर तबके के लोग अपने संघर्ष और सर्वकल्‍याण के अटल इरादे से वहां तक पहुंच भी गये है तो उनकी बातों हवा में उड़ जाती है । इसी का नतीजा है कि वर्तमान व्‍यवस्‍था में भी आज भूमिहीनता दरिद्रता और छुआछूत का अभिशाप दबा तबका झेल रहा है,तरक्‍की से कोसो दूर बैठा आंसू बहा रहा है और दूसरी ओर छल-बल के सहारे आदमी भगवान तक को ठेंका दिखा रहा है । क्‍या ऐसी तकदीर बनाने का दोष भगवान के माथे मढना भगवान के प्रति अन्‍याय नहीं ?

निश्‍पक्षता और मानवता के दृष्‍टिगत्‌ विचार करे तो पाते हैं कि अपने इर्द गिर्द कई लोग अपात्र होकर भी इतने पात्र हो गये है कि कई-कई सचमुच के पात्रो की तकदीरों को अपनी तकदीर बना लिये है सिर्फ श्रेष्‍ठता के ताकत के बल पर ।यही कारण है कमजोर तबके का पात्र व्‍यक्‍ति भी तरक्‍की का मुंह नहीं देख पाता क्‍योंकि न तो उसके पास इतनी पहुंच है और नहीं दूसरी अन्‍य ताकतें । कमजोर तबके को अनादि काल से ऐसे कोल्‍हू के बैल की तरह पीसा जा रहा है। उसका हक छिना जा रहा है ।उसे दरिद्र बनाये रखने के लिये धार्मिक स्‍तर पर भी हुए प्रयासों को नकारा नहीं जा सकता ।इसका ज्‍वलन्‍त उदाहरण हमारी रूढिवादी व्‍यवस्‍था है । इस बात को तो मानना ही पड़ेगा रूढिवाद की चिन्‍ता करने वाला को अब मानव-कल्‍याण के मुद्‌दे पर सोचना होगा क्‍योंकि यह व्‍यवस्‍था पहले से ही मानवता के माथे का कोढ सिद्ध हो चुकी है । वर्तमान समय में तकदीर के झांसे में कमजोर वर्ग को रखे रहना दुनिया की निगाहों में अन्‍याय होगा ।

तनिक जल,जमीन और जंगल के मुद्‌दे पर दृष्‍टिपात कर लेते हैं ।सचमुच मन की गहराइर्यों से विचार करे तो पायेगे कि आज जिनका जल,जमीन और जंगल पर अधिपत्‍य है क्‍या सचमुच वे इसके हकदार है नहीं । दुर्भाग्‍यवस जिसने कभी तालाब पोखर में कभी नहाया नहीं आज उसी के नाम पट्‌टे है। कमजोर वर्ग पोखर तालाब के पास से गुजरने में डर रहा है क्‍योंकि वह तालाब पोखर एक दंबंग के आधुनिक व्‍यवसाय का केन्‍द्र बन चुका है । सही मायने में तो सार्वजनिक जल स्रोता,तालाब पोखरों पर तो उसी का हक होना चाहिये जो इससे सदियों से जुड़ा हुआ है । भूमिहीनता के मुद्‌दे को खगालने पर पाते हैं कि यहां भी सबल का एकाधिकार है ,जो व्‍यक्‍ति खेत में जमीन में अपना जीवन स्‍वाहा कर रहा है वह या तो खेतिहर मजदूर है या भूमिहीन । जो व्‍यक्‍ति खेत में जमीन में अपना जीवन स्‍वाहा कर रहा है उसके पास झोपड़ा डालने तक की जीमन नहीं है दूसरी और जिस आदमी के पैर जमीन पर नहीं पड़ते वह सैकड़ों एकड़ों तक की जमीन का मालिक बन बैठा है । जंगल के मामले में भी वही हाल है,दबंग और सबल लोग हथियाये जा रहे है धरती तक को नंगी बनाने पर तूले हुए है । छाती पर हाथ रखकर आदमी जाति-धर्म से उपर उठकर यदि सोचे तो वह पायेगा कि अधिकतर कब्‍जेधारी लोग असली हकदारों की तकदीर को कैद कर चुके है और दबा-कुचला व्‍यक्‍ति इसी तकदीर को संजीवनी मानकर श्रमसाधना में लगा हुआ कि कल उसकी तकदीर जरूर बदलेगी और सही भी है उसका हक उसे मिल जायेे तो उसकी तकदीर जरूर संवर सकती है परन्‍तु गिद्धों के कब्‍जे से छूटे तब ना ?

मानव जाति के लिये दुर्भाग्‍य की बात है कि एक आदमी आदमी को कमजोर और दरिद्र बनाये रखने के लिये जातीय श्रेष्‍ठता के बल का प्रयोग करता है,धार्मिक दबंगता का प्रयोग करता है और हठता का प्रयोग करता है ,छल बल और दण्‍डात्‍म रूख भी अख्‍तियार कर ले रहा है । उस समय तो यह और भी गिर जाता है जब एक दबे वर्ग की अबला को निर्वस्‍त्र कर देता है और सरेआम मर्यादा का जनाजा निकाल देते हैं । मंदिर के प्रवेश पर रोक लगा देता है । दरवाजे के सामने से जूता हाथ में लेकर जाने को मजबूर करता है ।आदमी के साथ छुआछूत का दुर्व्‍यवहार करता है ।आदमी आदमी को अछूत कहता है क्‍या कोई धर्म ऐसा दुर्व्‍यवहार करने की इजाजत देता है यदि हां तो वह धर्म नहीं पाखण्‍ड है।ऐसे पाखण्‍ड मानवता की जड़ में खौलता पानी डालने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते हां देश को तबाही के रास्‍ते पर भी ले जा सकते हैं सिर्फ अपने मतलब के लिये। अपनी सत्‍ता कायम बनाये रखने के लिये । धर्म तो आध्‍यात्‍मिकता की इर्ंट और आस्‍था के गारे की पकड़ है जो ऐसा करने की इजाजत कभी नहीं दे सकता परन्‍तु धर्म को रूढिवाद के रंग में बदरंग कर वो सब किया जा रहा है जो नहीं किया जाना चाहिये । एक आदमी आदमी की तकदीर पर कब्‍जा जमाये हुये है,कमजोर आदमी को झांसे में रखकर अपनी पकड़ मजबूत बनाये रखने के लिये तकदीर का खेल बताकर खुद सर्वशक्‍तिामान तक को ठेंगा दिखा रहा है । सच तो ये है तकदीर रूढिवादी सोच का चक्रव्‍यूह है जिस चक्रव्‍यूह से निकलने का कोई रास्‍ता नहीं छोड़ा गया है परन्‍तु कैद तकदीर वाला वर्ग सूरज को दीया दिखाने में सफल हो रहा है क्‍योकि वह कैद तकदीर के अभिशाप को समूल नष्‍ट करने के लिये लहू को पसीना बनाकर धरती और जीव को सींचित किये हुए है कि उसका परिश्रम कल जरूर कुसुमित होगा और उसका लूटा हुआ हक भी मिलेगा। तकदीर रूढिवादी सोच का चक्रव्‍यूह है यह जानते हुए भी सम्‍भावनाओ में देश और समाज के नवनिर्माण में लगा हुआ है । यही दबे -कुचले गरीब,कमजोर लोगों की विजय है क्‍योंकि मानव निर्मित चक्रव्‍यूह में फंसे हुए भी यह तबका हार नहीं माना है। मौन पत्‍थर दिलों पर दस्‍तख्‍त करते गरीबी,भूखमरी,अश्‍प्‍ृाश्‍यता आदि अनेक दिक्‍कतों का सामना पल-पल करते हुए भी देश और मानव विकास की चमक को अपने पसीने से सरोबार किये हुए है । चाहता तो यह बड़ा वर्ग कैद तकदीर मानवीय हक को लेने के लिये जंग का ऐलान कर सकता था परन्‍तु वह इसे देश और समाज के लिये हितकर नहीं समझा। तकदीर के अभिशाप को सम्‍भावना में बदल कर लाख मानव निर्मित मुश्‍किलों से जूझते हुए भी नवनिर्माण ही नहीं जगत का भार अपनी छाती पर ढो रहा है । कल का सूर्यादय मानवी समानता और हक की सम्‍भावना को सफल बनायेगा तो क्‍या सबल,दबंग और तथाकथित श्रेष्‍ठता के नाम पर पल-पल मुखौटा बदलने वाले इस दबे-कुचले,कमजोर,गरीब को उसका हक देने में इर्मानदारी बरतेंगे ? यह तो समय बतायेगा परन्‍तु यह तो सिद्ध हो चुका है कि तकदीर रूढिवादी सोच का चक्रव्‍यूह है,शोषित,पीड़ित समाज के दमन का न खत्‍म होने वाला कुचक्र है। इस चक्रव्‍यूह से दबे-कुचले,कमजोर,गरीब शोषित, पीड़ित समाज को उबारने के लिये देश और सभ्‍य समाज के शुभचिन्‍तकों तो शंखनाद कर देना चाहिये

2-सकारात्‍मक सोच सूरज का शौर्य और पुष्‍प की सुगन्‍ध है।

भूमण्‍डलीयकरण के वर्तमान दौर में हर काबिल आदमी को खुली आंखों से सपने देखना और इन सपनों को मूर्तरूप देने का का अधिकार है । पुरानी कटुतायें और कड़वी यादों को भूलकर योग्‍यतानुसार इर्मानदारी के साथ कमर कसकर आगे बढ़ना सफलता का परिचायक है परन्‍तु याद रखने वाली बात यह है कि सफलता हासिल करने के लिये रूढिगत्‌ श्रेष्‍ठताओं को पास फअकने नहीं देना चाहिये । इस श्रेष्‍ठता की आंच योग्‍यता को झुलसा देती है । आदमी होकर भी हक से वंचित हो जाता है । सफलता तो हर विवेकशील व्‍यक्‍ति का सपना होता है परन्‍तु इस सपने के लिये गलत रास्‍तों का प्रयोग उचित नहीं ।आज भी हमारा देश इस अवसाद से ग्रस्‍त है। यदि व्‍यक्‍ति क़ाबिलीयत है, भले ही उसे जानबूझकर ढकेला जाता रहा है। वक्‍त के साथ सफलता क़ाबिलीयत का अनुसरण जरूर करेगी । व्‍यक्‍ति काबिल है,उसकी क़ाबिलीयत को नजरअंदाज किया गया है, इस घृणित कृत्‍य से काबिल व्‍यक्‍ति की योग्‍यता मेंं और अधिक निखार आता है । यह बात सही है कि उसे अपनी क़ाबिलीयत को दिखाने के लिये आंसू तक से रोटी गीली करनी पड जाती है । निराशा के बादल नहीं छंटते हैं, परन्‍तु इस निराश को सम्‍भावना में बदल दिया जाये तो असफल व्‍यक्‍ति भी सफलता के शिखर पर महसूस करता है ।यह सफलता भले ही धन का पहाड़ खड़ा करने की न होकर मान-सम्‍मान की हो सकती है।यह मान-सम्‍मान धन के ढेर से खरीदी भी नहीं जा सकता। याद रहे जो व्‍यक्‍ति सम्‍मानित है सही मायने में वही सफल है। ऐसे सफल व्‍यक्‍तियों की राह में कांटा बने लोग सिर पर बिठाने को आतुर नजर आते हैं। अपनी गलतियों के लिये खुद की नजरों में गिरे हुए लगते हैं । यह कथन अटपटा लगता हो परन्‍तु सच्‍चाई है। हां दृढसंकल्‍पित रहकर अपने मकसद से पीछे नहीं हटना चाहिये बशर्ते मकसद नेक हो लोकहित में हो। कहते हैं ना घुरे के दिन भी फिरते हैं। काबिलयत को कब तक दबाया जा सकता है । क़ाबिलीयत भी वैसे ही है जैसे पानी और साधु इनको कोई रोक नहीं पाया है। क़ाबिलीयत भी प्रकाशपुंज छोड़ती रहती है और एक दिन सफलता के शिखर पर होती है । नजरअंदाज ही नहीं पीछे ढकेलने वाले लोग भी प्रतिभा के कायल हो जाते हैं । क़ाबिलीयत का यह भी एक बडा गुण है कि वह अतीत की कड़वी यादें को अपने उपर हावी नहीं होने देती है । इसका ज्‍वलन्‍त उदाहरण आज के दौर की फिल्‍म थ्री इडिएट भी तो है ।

क़ाबिलीयत गंगाजल है,क़ाबिलीयत नेक मन्‍तव्‍य के आगे निकल सकती है पर संयम,साहस और संकल्‍प पर अडिग बने रहने की जरूरत है । क़ाबिलीयत से उत्‍सर्जित उर्जा से जिस राह चल पर चल दिये बढते जाना है । रूकना नहीं है । तरक्‍की घूम-फिरकर पीछे पीछे आयेगी जो किसी व्‍यवधान की वजह से राह बदल चुकी थी। क़ाबिलीयत का फलिभूत अवश्‍य होगा परन्‍तु कर्म करते रहने की जरूरत है ।

इस दौरान कई मानव निर्मित मुश्‍किलें भी आती है । थाली की रोटी छिनने का भय भी सामने होता है पर दृढ संकल्‍प के आगे कोई नहीं टिकता है। प्रहलाद भी हमारे लिये उदाहरण हो सकता है । वह भी दृढसंकल्‍पित था,उसमें क़ाबिलीयत थी परमात्‍मा को प्रगट होना पड़ा । कहावत भी तो है अच्‍छी राह पर चलोगे तो व्‍यवधान भी बहुत आयेंगे । नेकी की राह पर तकलीफ भी बहुत आती है,फूल की जगह शूल मिलते हैं । कभी कभी तो अपने भी पराये हो जाते हैं परन्‍तु दृढसंकल्‍पित व्‍यक्‍ति के आगे घुटने टेकने ही पड़ते हैं । ऐसा संकल्‍प वही ले सकता है जो क़ाबिलीयत से भरा-पूरा होगा । वह व्‍यक्‍ति अर्थ की तुला पर भले ही व्‍यर्थ लगे पर वह मान-सम्‍मान की तुल पर श्रेष्‍ठ होता है । वक्‍त ऐसे लोगों को याद रखता है न कि छल-बल से धन का पहाड़ जोड़े लोगों । मैं यह नहीं कहता हूं कि धन की आवश्‍यकता काबिल लोगों को नहीं होती है । होती है,उन्‍हे भी रोटी की जरूरत होती है,मां-बाप घर-परिवार चलना होता है पर वे तंग हाथों से भी ऐसी मीनार खड़ा कर देते हैं कि रूपयें के ढेर पर खड़ा व्‍यक्‍ति उनके आगे बौना नजर आाता है । क़ाबिलीयत का सोधापन ही ऐसा है । ऐसे लोग धन अथवा तरक्‍की के पीछे नहीं भागते तरक्‍की उनके पीछे आती है । भगवान बुघ्‍द राजा के बेटे थे बहुत धन था, उस युग में कितने राजा थे कौन याद है पर बुद्ध का संकल्‍प सबसे हटकर था मानव कल्‍याण और समानता के लिये राजपाट तक का त्‍याग कर दिये। दुनिया उन्‍हें भगवान कहती है। उनके सामने भी बहुत व्‍यवधान आये अथवा खड़े किये गये । वे कड़वी यादेां को बिसारते रहे अन्‍ततः जगत के लिये अराध्‍य बन गये क्‍योंकि वे दृढसंकल्‍पित थे ।

सचमुच व्‍यक्‍ति को सफल होना है तो उसे अतीत की कड़वाहटों को जाति-धर्म की बुराइर्यों को त्‍याग कर अपने मानव कल्‍याण के संकल्‍प पर चलना हो । देश के हितार्थ राह चुनना होगा । इस राह में सफलता देर से मिलने की सम्‍भावना है पर इस सफलता का मुकाबला दुनिया की दौलत नहीं कर सकती । मानवीय भावनायें अनन्‍त है ना कभी समाप्‍त हुई है ना होगी । हां परिस्‍थितियां बदल जाती है कुछ नई भी निर्मित हो जाती है । परिस्‍थितियों को ध्‍यान में रखते हुए अतीत की कड़वाहटों का भूलाकर खुद को मजबूत बनाना होगा तभी सफल हो सकते हैं । एक बड़ी पुरानी कहावत है जो पत्‍थर हथौड़े की मार से विचलित होता है कभी भी अच्‍छी मर्ति के रूप में नहीं ढल सकता है । एक और कहावत हमारे गांवों में कही जाती है जो खेत हल चलने से दुखी होता है वह बंजर रहता है उसमें अन्‍न नहीं पैदा हो सकता । काबिल व्‍यक्‍ति ऐसा नहीं हो सकता वह वर्तमान का लाभ उठाना बेहतर समझता है जनहित में देशहित में तभी तो उसे दुनिया याद रखती है ।

मैने कुछ व्‍यक्‍तियों के अस्‍तित्‍व के बारे जानने का प्रयास किया तो पाया कि उनमें क़ाबिलीयत तो बहुत है पर उन्‍हे अपनी क़ाबिलीयत साबित करने के मौके ही नहीं मिले या मौके आने से पहले ही छिन लिये गये किसी न किसी कड़वाहट के विषबीज की वजह से । ये काबिल लोग पद और दौलत के लाभ की दृष्‍टि से असफल कहे जाते रहे परन्‍तु ये लोग अपनी क़ाबिलीयत का लोहा मनवाने में कई कदम आगे साबित हुए उन लोगों से जो अयोग्‍य होकर भी पद और दौलत के लाभ की दृष्‍टि से सै गुना लाभ अर्जित कर चुके थे । देखने में तो यहां तक आया कि बड़े ओहदेदार अपने से नीचे काम कर रहे काबिल व्‍यक्‍ति के आगे खुद की निगाहेां में बौने नजर आये । कुछ तो काबिल आदमी के सामने यहां तक कबूल कर लिये कि तुम्‍हारे सामने हम तो कहीं के नहीं लगते । क्‍या यह काबिल आदमी की असफलता सफल व्‍यक्‍ति से कई गुना बड़ी सफलता नहीं । काबिल और गैर काबिल व्‍यक्‍ति की सफलता और असफलता सामने है । काबिल असफल व्‍यक्‍ति कई गुना अधिक सफल साबित होता है । हां पद और दौलत की दृष्‍टि से भले ही लाभ नहीं हुआ हो परन्‍तु मान-सम्‍मान और यश उसे अधिक मिलता है ।यही मान सम्‍मान व्‍यक्‍ति की क़ाबिलीयत का द्योतक है । धन का ढेर खड़ा कर लेने से आदमी सम्‍मानित नहीं हो जाता ।

यदि हम अपने अस्‍तित्‍व बोर में जानने की कोशि करेे तो उभर कर आयेगा कि संभावनाओं को यौवन देना ही काबिल व्‍यक्‍ति के अस्‍तित्‍व के मायने होते हैं । जिस तरह सूरज निरन्‍तर रोशनी और फूल सुगन्‍ध देता रहता है ठीक वैसा ही काबिल व्‍यक्‍ति होता है । पद मिले या ना मिले वह अपना काम सूरज और फूल की तरह करता रहता है । एक कहावत है किसी ने कंफूशियस से पूछा कि यह कैसे मालूम हो सकता है कि भीतर से कौन महान है और कौन कमजोर । कंफूशियस बोले महान व्‍यक्‍ति जो चाहते हैं खुद प्राप्‍त कर लेते हैं परन्‍तु कमजोर व्‍यक्‍ति को दूसरों पर निर्भर होता है । ऐसा एक काबिल व्‍यक्‍ति ही करके दिखा सकता है । सफलता के पीछे भागने की जरूरत नहीं है, हमें काबिल बनने की जरूरत है । यदि हम काबिल बनेगे तो सफलता पीछे -पीछे चलेगी ।

सफलता की सार्थकता तभी है जब हम अपनी उम्‍मीदों,आशाओ पर गहन चिन्‍तन करे,दूसरों की उम्‍मीदो पर खरा उतरे, सफलता के अभिमान से दूसरे को आंसू न दे । जहां तक हो सके सम्‍भावनाओ के बीज बोये । इन सम्‍भावनाओं से कार्यक्षमता बढेगी और इनसे उपजा प्रतिफल क़ाबिलीयत की राह में मील का पत्‍थर साबित होगा । मुद्‌दे की बात तो ये है कि क़ाबिलीयत हासिल करने के लिये, यश-प्रतिष्‍ठा प्राप्‍त करने के लिये पुरूषार्थ दृढसंकल्‍प और परोपकार की भावना का विकासित करना होगा, तभी व्‍यक्‍ति सफल कहा जा सकता है । काबिल आदमी इन सब गुणों की खान होता है तभी तो सफलता उसके पीछे-पीछे चलती है ।यह सब कुछ हासिल हो सकता है सकारात्‍मक सोच से । नकारात्‍मक विचार काम ही नहीं बिगाड़ते बल्‍कि व्‍यक्‍तित्‍व पर प्रश्‍नचिन्‍ह लगाते हैं । सच सकारात्‍मक सोच सूरज का शौर्य और पुष्‍प की सुगन्‍ध होती है,जिससे व्‍यक्‍ति की क़ाबिलीयत अमिट इतिहास रच जाती है ।यही इतिहास काबिल व्‍यक्‍ति का नाम काल के गाल पर अंकित कर जाता है । वर्तमान दौर में तरक्‍की की अंधी दौड़ में भागने से बेहतर होगा कि क़ाबिलीयत हासिल की जाये। यकीनन काबिल होगे तो कामयाबी जरूर मिलेगी । नन्‍दलाल भारती 05.2.10

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नन्‍दलाल भारती

कवि,कहानीकार,उपन्‍यासकार

शिक्षा                 - एम.ए. । समाजशास्‍त्र एल.एल.बी. । आनर्स ।

पोस्‍ट ग्रेजुएट डिप्‍लोमा इन ह्‌यूमन रिर्सोस डेवलपमेण्‍ट (PGDHRD)

जन्‍म स्‍थान- ग्राम-चौकी ।ख्‍ौरा।पो.नरसिंहपुर जिला-आजमगढ ।उ.प्र।

जन्‍मतिथि-              01.01.1963  

प्‍्राकाशित पुस्‍तकें

पुस्‍तकें............

उपन्‍यास-अमानत,एवं अन्‍य प्रतिनिधि पुस्‍तके।

उपन्‍यास- तीन

कहानी संग्रह-3

लघुकथा संग्रह-2

काव्‍यसंग्रह-3

आलेख संग्रह-1

सम्‍मान

विश्‍व भारती प्रज्ञा सम्‍मान,भोपल,म.प्र.,   विश्‍व हिन्‍दी साहित्‍य अलंकरण,इलाहाबाद।उ.प्र.।

ल्‍ोखक मित्र ।मानद उपाधि।देहरादून।उत्‍तराखण्‍ड। भारती पुष्‍प। मानद उपाधि।इलाहाबाद

भाषा रत्‍न, पानीपत । डां.अम्‍बेडकर फेलोशिप सम्‍मान,दिल्‍ली

काव्‍य साधना,भुसावल, महाराष्‍ट्र,    ज्‍योतिबा फुले शिक्षाविद्‌,इंदौर ।म.प्र.।

डां.बाबा साहेब अम्‍बेडकर विशोष समाज सेवा,इंदौर विद्‌यावाचस्‍पति,परियावां।उ.प्र.।

कलम कलाधर मानद उपाधि ,उदयपुर ।राज.। साहित्‍यकला रत्‍न ।मानद उपाधि। कुशीनगर ।उ.प्र.।

साहित्‍य प्रतिभा,इंदौर।म.प्र.। सूफी सन्‍त महाकवि जायसी,रायबरेली ।उ.प्र.।एवं अन्‍य

आकाशवाणी से काव्‍यपाठ का प्रसारण ।कहानी, लघु कहानी,कविताौर आलेखों का देश के समाचार पत्रो/पत्रिकओंमें एवं www.swargvibha.tk,www.swatantraawaz.com
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आजीवन सदस्‍य

इण्‍डियन सोसायटी आफ आथर्स ।इंसा। नई दिल्‍ली

साहित्‍यिक सांस्‍कृतिक कला संगम अकादमी,परियांवा।प्रतापगढ।उ.प्र.।

हिन्‍दी परिवार,इंदौर ।मध्‍य प्रदेश।

आशा मेमोरियल मित्रलोक पब्‍लिक पुस्‍तकालय,देहरादून ।उत्‍तराखण्‍ड।

साहित्‍य जनमंच,गाजियाबाद।उ.प्र.। एवं अन्‍य

मध्‍य प्रदेश लेखक संघ,म.प्र.भोपाल

अखिल भारतीय साहित्‍य परिषद न्‍यास,ग्‍वालियर ।म.प्र.।

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विशोष-चांदी की हंसुली ।उपन्‍यास। का जनप्रवाह ।साप्‍ता।द्वारा धारावाहिक प्रकाशन जारी ।

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ 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रचनाकार: नन्दलाल भारती के दो आलेख
नन्दलाल भारती के दो आलेख
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