हरेन्द्र सिंह रावत की रचनाएँ

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सोचो इस धरती का क्या होगा ? इंसान इंसान का दुश्मन बन गया, ज्वालामुखी फटने वाला है,  प्रदूषण का दानव आ रहा लगता कितना काला है ? सज्जन स...

सोचो इस धरती का क्या होगा ?

इंसान इंसान का दुश्मन बन गया, ज्वालामुखी फटने वाला है, 

प्रदूषण का दानव आ रहा लगता कितना काला है ?

सज्जन सहमें सहमें से, दुर्जनों की बन आई,

कुदरत भी गुस्से में है देखो काली घटा नभ में छाई!

गर्जन तर्जन नभ में हो रही, तूफान आने वाला है,

बचा सको तो जान बचा लो ज्वालामुखी फटने वाला है ! १ !

देखो हिमालय पिघल रहा है एवरेस्ट बदरंग हुआ,

इंसान की काली करतूतों से जग कर्ता भी दंग हुआ !

जंगल कट गये वन चर मर गये नदियों का पानी सुख गया,

संतुलन बिगड़ गया कुदरत का यह सब इस मानव ने किया !

प्रदूषण का काला जहर अब स्वर्ग तक जाने वाला है,

बचा सको तो जान बचा लो ज्वालामुखी फटने वाला है ! २ !

बुजुर्ग वरगद पीपल आम कह रहे हो गयी है शाम,

अरे वो कुकर्मी इंसान अब तो कर कुछ अच्छे काम !

बसंत में भी पतझर है जंगल का मंगल रूठ गया,

नेता की अचकन टोपी पर काला दाग है नया नया !

ऋषि मुनियों का ये देश बदल रहा है अपना भेष,

जुर्मों की इस दुनिया में नेता पर है हत्या केस !

नील गगन में हल चल मच गई वो अग्नि बरसाने वाला है,

बचा सको तो जान बचा लो ज्वालामुखी फटने वाला है ! ३ !

पानी की मछली तड़प रही पानी में जहर मिलाया है,

अपने ऐश आराम के खातिर वन जीवों को मरवाया है !

इस धरती माँ के सीने पर है हज़ारों टन गोले गिरते,

लाखों ज़ख्मी हो जाते और लाखों तड़प तड़प कर मरते !

जीव जन्तु और परिंदे हर दिन मौत से लड़ते हैं,

रोज रोज जब बेचारे दुर्जन के रस्ते पड़ते हैं !

वो कलंकित इंसान संभल जा अब प्रलय आने वाला है,

बचा सको तो जान बचा लो ज्वालामुखी फटने वाला है ! ४ !

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चलो एक बार फिर से

चलो एक बार फिर से इस धरा को संवार दें, 

दुष्टता अपराध को जड़ से ही हम मार दें ! 

माँ धरा है रो रही और अहिंसा सो रही,

हर तरफ निर्दोष मरता और हत्यारा मौज करता,

हर लहू की बूँद फिर ज़ोर से ये पुकारता,

पाप धरती से मिटाने ये त्रिलोकी क्यों न आता ?

आओ फिर से माँ धरा को शांति का उपहार दें,

दुष्टता अपराध को जड़ से हम मार दें ! १ !

माँ धरा की कोख में पैदा हुए तो संत थे,

पॅंच तत्व का तन लिए पर हज़ारों पंथ थे !

माना की राह अनेक थे खून सबका एक था !

इस धरा पर आने वाले का इरादा नेक था !

निष्कपट लोगों के बीच में कुछ शरारती आगए,

चोला नेता का पहिन कर राजनीति में छा गए !

समाज को बाँटा गया बढ़ गई फिर दूरियाँ,

राह में काँटे बिछाए चल पड़ी फिर छुरियाँ !

अमीर ऊँचा उठ गया रोटी ग़रीब की छीनता

और रहता महल में निर्धन शिला पर लेटता !

एक बेटा माँ धरा पर अपने को कुर्बान करता,

बन सेना का सिपाही देश का इतिहास लिखता !

एक बन आतंकवादी अपने जनों को मारता,

और नेता देश का गद्दार को फिर पालता !

अपराध की इस गंदगी को शुद्ध जल से संवार दें,

और माँ धरती के चरणों में सज्जनता डाल दें ! २ !

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एक कविता

एक कविता रोज बनाता भूल जाता हूँ,

शब्द बिना ही सांझ सबेरे गुनगुनाता हूं,

बिना पंख के नील गगन को छूना चाहता हूँ !

एवरेस्ट की छोटी पर परचम लहराता हूँ !  

चाहता हूँ कुदरत को मैं आँखों में बसा लूँ, 

कल्पना का महल बनाकर सदा सज़ा लूं,

हर की पौडी हरिद्वार में नहाना चाहता हूँ,

शब्द बिना ही सांझ सबेरे गुनगुनाता हूँ ,

बरफीली श्वेताम्बर चोटी जब है मुझे बुलाती,

भाग भाग कर पर्वत चढ़ता बरफ नज़र नहीं आती,

इस बरफीली चादर पर मैं दौड़ लगाता हूँ,

शब्द बिना ही सांझ सबेरे गुनगुनाता हूँ!

बर्फ के गोले बना बनाकर और फिसल जाना,

और फिर मस्ती में आकर उच्छल कूद मचाना,

पवन वेग से नभ मंडल में उड़ना चाहता हूँ,

शब्द बिना ही सांझ सबेरे गुनगुनाता हूँ !

एक नदी के दो किनारे और नदी है गहरी,

पर्वत तोड़ती शोर मचाती बड़े वेग से बहती,

सेतु बना कर दोनों किनारे जोड़ना चाहता हूँ,

शब्द बिना ही सांझ सबेरे गुनगुनाता हूँ !

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चलो अब हम नया घर बसाएँ,

चलो अब हम नया घर बसाएँ,  जिंदगी के शेष दिन संग संग बिताएँ!

विगत की यादें दिल में,उन्हें भूल जाएँ, नये नये राहों में कदम बढ़ाएँ!

कुदरत की वादियों में फिर मुस्कराएँ, चलो अब हम नया घर बसाएँ !

कुछ ऐसा करें, फिर से जुदा हो ना पाएँ, जिंदगी का सफ़र संग संग बिताएँ !

तूफ़ानों के संग संग बहारें भी आएँगी, भूली बिसरी खुशियाँ लौट आएँगी !

आओ फिर से मिलकर वही गीत गाएँ, चलो अब हम नया घर बसाएँ  !

हूँ बैठा अकेला है नैनों में पानी,  बिता दी अकेले ही सैना में जवानी !

बताओ सफ़र अब है कितना बाकी, दिल करता है अब पीने को साकी,

अब तो ये दिल भी जगह पर नहीं है, कहीं तो है मन मेरा और तन कहीं है !

इंतजार की घड़ी होती बड़ी है, बढ़ती ही जाती घटती नहीं है !!

आओ अब हम तुम ऐसा कर जाएँ, जिंदगी का सफ़र संग संग बिताएँ !

भंवरों की टोली जब फूलों पे झूले, पवन वेग चलता तब हौले हौले,

बीते दिनों के वो दिन याद आते, मिल जुल के चलते जब हंसते हँसाते !

चकवा-चक़वी जब जोड़े में चलता, हंसों का जोड़ा हर शाम मिलता,

मिलन की ये लीला इन पक्षियों की दिल के कोने में आह भरता !

दिल करता है मन मंदिर में मन का महल बनाएँ,

जिंदगी का सफ़र संग संग बिताएँ !

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संसद में दंगल

ये दंगल हो रहा है, संसद में अमंगल हो रहा है,

लड़ा करते हैं सांसद आपस में,

की जंगलियों का मंत्री मंडल हो रहा है !

छीने जा रहे हैं माईक, और टूटती हैं कुर्सियाँ,

फूटते हैं नाक किसी के और फटती हैं जर्सियाँ !

सांसदों की इस लड़ाई पर खर्च होते हैं करोड़,

खून पसीना जनता का, उदर में है मरोड़ !

अध्यक्ष ने फटकार मारी, तुम न जीतोगे कभी,

सभ्य लोग आएँगे जब, संसद सुधरेगी तभी !

खूनी लुटेरे और डाकू जब संसद में आएँगे,

अपराधी सज़ा याफ़्ता, मंत्री बनाए जाँएंगे,

क्या हाल होगा, उस देश का प्रदेश का,

जहाँ संसद ही गुंडा बन जाएँगे !  हरि ओम !

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ख़तरा नहीं पशु पक्षी से ख़तरा है इंसान से

ख़तरा नहीं किसी पशु पक्षी से, पर ख़तरा है इंसान से,

यह इंसान ही है गिर जाता है अपने धर्म और ईमान से !

ये कथा एक ब्राह्मण की जो जा रहा था एक जंगल से,

डर रहा था शेर चीते ख़ूँख़ार भालुओं के दंगल से !

देखा उसने एक गहरा कुँआ चार जीव थे उसमें फँसे,

शेर, बंदर, साँप, सुनार ग़लती से थे उसमें गिरे !

हर एक ने उससे कहा भगवन बचा लो इस कूप से,

महरूम हैं हम यहाँ हवा पानी और धूप से !

बचा लो हमें इस नर्क से सहायता करेंगे आप की,

भुगत रहे हैं हम सज़ा पता नहीं किस पाप की,

ब्राह्मण ने पहले निकाले कुंए से शेर बंदर साँप,

साँप बोला इसे मत निकालो इस पर है दुष्टता की छाप !

पर ब्राह्मण था दयालु उसने सुनार को भी निकाला,

और सभी ने विदाई पर गले उसके डाली माला !

ब्राह्मण बहुत ग़रीब था,  भूखा ही सो जाता था,

लेकिन किसी से कभी कुछ माँग कर नहीं खाता था !

एक दिन उसको अपने दोस्तों की याद आई,

तीनों दोस्तों ने सामर्थ से अपनी दोस्ती निभाई !

बंदर ने उसे बहुत सारे फल और मेवे देकर विदा किया,

शेर ने एक बहुत ही कीमती हार दिया !

हार बेचने वह सुनार के पास गया,

जिसने उसे जेल में बंद करवा दिया !

हार राजकुंमार का था जिसे शेर ने मार दिया था,

और उसका हार ब्राह्मण को दान में दे दिया था !

ब्राह्मण को राजकुमार का हत्यारा माना गया था,

उस दुष्ट सुनार ने ब्राह्मण की भलाई का यह बदला दिया था,

ब्राह्मण ने अपने साँप दोस्त को याद किया,

साँप ने ब्राह्मण को बाहर निकालने का रास्ता बतला दिया !

अगले ही दिन महारानी को साँप ने काट दिया,

और ब्राह्मण के मंत्रों ने महारानी को बचा लिया !

राजा को सुनार का षडयंत्र और ब्राह्मण की सच्चाई

उनके सुरक्षा कर्मियों ने बताई !

ब्राह्मण को बहुत सारा धन और सुनार को

जेल की कोठारी दिखाई !

दोस्तों से गद्दारी का नतीजा बुरा होगा,

कोई देखे या न देखे खुदा तो देखता होगा !!

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परिचय

मैं खुशबू हूँ फूलों समाया हुआ, सीतल पवन हूँ झुलाया हुआ !

मासूम बच्चों की मुस्कान हूँ,खुशी दे जहाँ को मैं वह जाम हूँ,

दरिया में बहता हुआ नीर हूँ, दुखी: आत्मा की मैं पीर हूँ ,

झरने में समाया हुआ गीत हूँ, जवान दिल में धड़के मैं वह प्रीत हूँ,

नील गगन सा मैं एक ख्वाब हूँ, प्यासे के मन में बसा आब हूँ,

धरती पे कुदरत का रूप हूँ,  सूरज की किरणों की धूप हूँ,

हूँ बादल का टुकड़ा उड़ाया हुआ,मैं खुशबू हूँ फूलों समाया हुआ !  1 !

बेबस अंधें की लाठी हूँ मैं, फूलों भारी नील घाटी हूँ मैं,

कुदरत का रंगीन चस्मा हूँ मैं, अचरज भरा एक करिश्मा हूँ मैं,

फूलों में भंवरे की गुन गुन हूँ मैं, महफिल में बजती हुई धुन हूँ मैं,

वसन्ती हवाओं में संदेश हूँ, मेरा देश जीते मैं वह रेस हूँ,

आतंकियों का महाकाल हूँ, भारत मेरा देश मैं ढाल हूँ,

ग़रीबों के दिल में बसा राम हूँ, मुरली मनोहर मैं घनश्याम हूँ,

शहीदों का हूँ गीत गाया हुआ, मैं खुशबू हूँ फूलों समाया हुआ ! 2 !

गंगा की बहती हुई धार हूँ,नाविक के हाथों की पतवार हूँ,

रन में लड़े मैं वह रणधीर हूँ, जो दुश्मन को काटे वह शमशीर हूँ,

किसी बेसहारे का सहारा हूँ मैं, जय हिंद का मूल नारा हूँ मैं,

राणा शिवाजी और गाँधी हूँ मैं, दुश्मन को उड़ा दे वो आँधी हूँ मैं,

डरता जिसे पाकी वह नाग हूँ, जला दे ग़द्दारों को मैं वह आग हूँ !

खजाना मैं कुदरत का बिखराया हुआ, मैं खुशबू हूँ फूलों समाया हुआ !! 3 !

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हंस ले इंडिया

जवान बंद पसीना बाहर

भंवरे की तान गुन गुन करता, भाग रहा था हसीना के पीछे,

ठोकर लगी गिर गया सिर जमीन पर

बुक्का हसीना के कदमों के नीचे,

उन्होंने मुड़ कर देखा, बुक्का उठाया और मुझे दे दिया !

कह भी ना पाया कि "रखिए यह आपके लिए ही है "

और वापिस ले लिया !

वह चली गयी और जवां बंद, ज़ोर से पसीना आ रहा था

"एक तरफ़ा मोहब्बत में ऐसे ही होता है"

किसी अजनबी शायर ने कहा था !

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क्या तुम भी अंधे हो ?

इधर से एक आदमी जा रहा था, उधर से महिला आ रही थी,

कदम तोल के दोनों ही चल रहे थे,

सड़क उबड़ खाबड़ दोनों हाथ मल रहे थे !

वैसे दोनों उमर दराज थे, काला चस्मा दोनों ही पहिने थे !

अचानक दोनों टकरा गए, घुटनों के बल ज़मीन पर आ गए

महिला बोली, " दिखाई नहीं देता, अंधे हो क्या ?

अभी चप्पल जमाती हूँ ज़रा खोपड़ी को इधर ला,"

आदमी बोला, "जवान संभाल कर बोल, मेरा चस्मा टूट गया कौन देगा इसका मोल,

अरे मुझे नहीं दिखाई दिया तू तो देखकर चलती,

मेरी आँखें होती तो क्या तू ऐसे गिरती "

महिला बोली, " अरे मैं तो अंधी हूँ ही क्या तुम भी अंधे हो" !

आदमी बोला," शुभ शुभ बोल बेबी, हम दोनों ही अंधे हैं,

मैं कही जन्मों से तुम्हें ही ढूंढ रहा हूँ, आज मुराद पूरे हुई,

ला अपना हाथ मुझे पकड़ा दे, अब खेलेंगे छुई मुई "!

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सादा जीवन उच्च विचार

हम कहते हैं तुम कहते हो, ये जीवन है स्वप्न बयार,

सादा भोजन, सादा जीवन हो मानव के उच्च विचार !

सदा सबेरे उठकर पहले अपने प्रभु को शीश नवा,

और नींम की डंडी तोड़ कर दातों की करले तू दवा !

फिर सीधे ही पार्क में जाओ, हल्की हल्की दौड़ लगाओ,

और शाम के भीगे दलहन धीरे धीरे करके चबाओ !

बादाम पीस कर दूध मिलाओ या गाजर का हलवा खाओ,

अगर मेहनत ना करपाओ, पालक रस का भोग लगाओ !

दाल मूँग की ज़्यादा खाओ, हल्का चावल रोटी पाओ ,

चीनी कम हो नमक हो थोड़ा आधा मक्खन का कटोरा !

दूध घी भी हल्का हल्का हरी सब्जी साथ में मट्ठा,

हरी मिर्च और हरा ही धनिया, अदरक दे जाता है बनिया,

ताज़ा नींबू भी ले आओ पौदीना की चटनी बनाओ,

कभी कभी खा लेना खीर, खाते इसको युद्ध वीर!

ये सारा भोजन है सादा स्वच्छ रक्त का हो संचार,

इसी तरह मानव मन के बन जाते हैं उच्च विचार !

सेब, अंनार, अमरूद और संतरे आलू बुखारा और पपीते,

चीकू नासपाती भी अच्छी और मटर की फली हो कच्ची !

अंगूर भी अच्छा है मेवा, माता पिता की करना सेवा,

स्नान ध्यान कर पुस्तक बाँचो धर्म ग्रंथ का पाठ करो,

मन मंदिर में दीप जलाओ उस प्रकाश का ध्यान करो!

देखो इस गहरे सागर में तायर रहा है ये संसार,

जो तर जाए भव सागर से उसी के समझो उच्च विचार !

गायत्री मंत्र को जो नर नारी जपते सुबह और शाम,

कहे रावत उस मानव के हृदय बसे भगवान !

---------------.

भंवरे का इश्क

गुन गुन कर फूलों पर मंडराता,

शहद चोर के ले जाता,

हे भँवरा सच बतला दे मुझको,

यह शहद किसको दे आता !

तू सदा मेरे आगे, मैं तेरे पीछे रहता हूँ,

तेरी हरकत देख कर भी

कभी कुछ नहीं कहता हूँ !

पर याद रखना प्यारे भंवरे,

फूलों से यारी फिर गद्दारी,

बड़ी मंहगी पड़ेगी तुझको,

सुनेगा जब फूलों से गाली !

और एक दिन ऐसा आएगा,

जब तू फूलों से शहद चुराएगा,

तुझको कैदी बनाने को,

फूलों का द्वार बंद हो जाएगा !

-------------.

हरेन्द्रसिंह रावत दिल्ली

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. बहुत सुंदर प्रयास।

    जवाब देंहटाएं
  2. bacha sakio to bacha lo......achhi lagi. esmai bhavukta ke sath-sath vyang aur kataksha bhi hai. jise bakhubi nibhaya gaya hai aur samaj ko sochane ke liye disha di gayi hai

    जवाब देंहटाएं
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रचनाकार: हरेन्द्र सिंह रावत की रचनाएँ
हरेन्द्र सिंह रावत की रचनाएँ
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