दोहे ------ पहरे जबसे दे रहे, लोहे के इंसान। राहजनी करने लगे,सड़कों के ईमान ।। रहना मुश्किल है बहुत, छोड़ें कैसे गाँव। छालों से लबरेज़...
दोहे
------
पहरे जबसे दे रहे, लोहे के इंसान।
राहजनी करने लगे,सड़कों के ईमान ।।
रहना मुश्किल है बहुत, छोड़ें कैसे गाँव।
छालों से लबरेज़ हैं नन्हें-नन्हें पाँव।।
पछुआ ऐसा कर गई ,धूल-धूसरित सोच।
कुर्ते की आभा गई,आँचल का संकोच।।
सेमल चुम्बन ले गया,खड़ा रहा कचनार ।
जींस पहन के गा रही,पुरवा मस्त मल्हार।।
बिन बरसे बदली गई,पड़ी न रंच फुहार।
घास ताकती रह गई ,मिलीं न बूँदें चार।।
महुआ टपके रात भर,खाते रहे सियार।
मस्ती में झूमा किए, सारे चौकीदार।।
बीच गाँव इज़्ज़त लुटी, भए विधाता बाम।
जमहाई लेते रहे ,सब हाकिम हुक्काम।।
सब पैसे की भूख में, लिखते रहे लिलार।
क्या देवी क्या देवता, बिकते बीच बज़ार।।
कौड़ी -कौड़ी पर जहाँ, बिकने को तैयार।।
कौन बड़ा -छोटा वहाँ, खोटा सब व्यापार।
ना नारद जी आए ही, ना भेजे संदेश।
जब से भारत भूमि का,बदल गया गणवेश।।
--
कविता
बड़े होना जल्दी-जल्दी बेटा!
--------------------------------------------
अभी -अभी
देकर गई है दाई
यह खुशखबरी कि-
बेटा!
तुम आ गए हो
अपनी माँ के
आँसुओँ से भिगो-भिगो कर
छापे गए खुशबूदार फूलों वाले
गीले- गीले आँचल में
माँ से सुना है कि
तू घर भर में सुन्दरतम है
हो भी क्यों न
उसके बेटे का बेटा है जो
मैंने दाई को
छुप के कुछ देते हुए देखा है उसे
उसके आँचल के खूँट की ऐंठन
बता रही है उसकी चोरी
मैं,
पकड़ के हिला ही देता हूँ
माँ के दोनों कंधे
कबूल लेती है ममतामयी माँ
अपनी चोरी
खुशी की
कितना अच्छा लगेगा
कल को जब तुम काटोगे
अपनी चोर दँतियों से
जैसे,
मैं काटा करता था
कभी माँ को तो कभी बापू को
गीला कर देना बिस्तर
मैं सरक के सो लूँगा
और तुम्हारे नीचे कर दूँगा
सूखा-सूखा गरम बिछौना
गाहे-बगाहे, यही तो-
याद दिलाती रहती है मेरी माँ
तुझे तेरी माँ न भी दिलाए याद तो भी
याद रखना मेरे लाल!
माँ का क्या
गीली बहुत जल्दी हो जाती है
पर सूखती बहुत देर में है
बेटा! भिगोना मत कभी अपनी माँ को
पिता का क्या है
अव्वल तो वह भीगेगा ही नहीं
और भीग भी गया तो
माँ को गरिया के
झाड़ लेगा पल्ला
पर माँ मरते दम तक
नहीं झाड़ सकती अपना पल्लू
पड़ोसी का छोरा
जब चलाता है लात अपने बाप पर
और गरियाता है माँ को
मेरी माँ सहम जाती है
बाप के मरे बिना ही
जब विधवा हो जाती है
उसकी अधबयसू माँ
मेरी माँ भी
अपने माथे का सिंदूर
टटोलती है
तुम ऐसा मत करना कि
काँपे किसी पड़ोसी की माँ
माँ की कद्र ज़रूर करना बेटे!
बाप का क्या है लात खाकर भी
रह लेगा खुश
सह लेगा हज़ार दुख
धर लेगा बर्फ़ के शिलाखंड छाती पर
माँ, माँ फूट पड़ेगी
गंगोत्री की तरह
फिर,
फिर कौन सँभालेगा उसे
मैं कोई शंकर तो नहीं
जो भर लूँगा जटाओं में
बेटे!
बड़े होना जल्दी-जल्दी
पर, इतनी जल्दी भी नहीं कि
कि कुचल दो ममता की लता
और चला दो
पिता के वात्सल्य के बरगदी तने पर
तान-तान कर कुल्हाड़ा
बेटा इतनी तो रखना लाज
कि तुम्हारा बाप
जो काँप और काँख रहा था
अभी-अभी बारह बजे तक
दहक उठा है खुशी से उसका दिल
चहक उठा है उसका मन-पंछी
इस चहक को बनाए रखना मेरे लाल्
कभी सुनोगे तो जानोगे सच्चाई
कि न तो उसके पास कोई कंबल है न रजाई
फिर भी हिरनौटा-सा उछल रहा है
माह जनवरी है
और रात के बारह बजे हैं!
बेटा!
------
दोहे
मरजादा याकउ नहीं, रहे हइँ जउ हम मानि।
का मनई भे फ़ाइदा, का कुतवा भए हानि।।
मनु मारे ते मानिहइ, अति चंचल सैतान।
जो काबू कइ लेइ ऊ, जीतइ सकल जहान।।
माने ते ममता बढ़इ, माने ते सम्मान।
माने ही ते बने हैं, पाथर भी भगवान।।
कोई काटइ राह तउ, लौटि काहे घर जाव।
ग्यान अउर अग्यान का, परखउ कुछु परभाव।।
बाढ़ आई तउ बूड़िगा, खेतु अउर खरिहानु।
कंगाली मा होइ गवा, हमरउ गील पिसानु।।
मनु मारे कुम्हल्याति हइ, मनु पाए बढ़ि जाय।
अजब प्रेम की बेलि या , जब काटउ हरियाइ।।
द्वारे साधू देखि कइ, पट ना खोलेउ भाय।
ना जाने केहि भेस मा, रावनु घर घुसि जाय।।
या तउ कीन्हेन भूल हम, या कीन्हेन कुछु पापु ।
जेहि के कारन होइ गवा, लरिका हमरइ बापु।।
लरिकन खातिर धरति हउ, पेटु काटि जउ आजु।
बनि कइ दुखु द्याहैं बहुत ,कोढ़े मइका खाजु।।
पहिले रहइ सपूतु ऊ, का रजनी, परभात।
वहइ चलावइ लाग है, बात-बात पर लात।।
ना खाए ते कम परइ, ना भूखे भरि जाय।
पइसा- पइसा के बदे ,काहे तोबा-हाय।।
बाघु न तिनुका खाति हइ, हिरनु खाइ ना मासु।
मानुस, कुतवन, सुअरवनहिं, सब कुछु आवइ रासु।।
पहेलियाँ
(1)
सारी बातें सुनकर सबकी,
पूरी चुगली खाता
फिर भी इसके बिना हमारा
काम नहीं चल पाता।
दुनिया भर से तार जुड़े हैं
बिना तार भी जाता।
भले हमारी जेब काटता
टूट न पाता नाता।।
---
(2)
तोते को मैं प्यारी लगती
और सभी को लगती
रखते मेरा नाम जीभ पे
सौतन-दुनिया जलती
हरी,लाल के जोड़ विशेषण,
बनता सुंदर नाम
मेरे बिना रसोई कच्ची
सब्जी है बेकाम ।
अब तो यार! बताओ नाम।
(3)
आँख दिखाऊँ, आँख दिखाता
मुँह बिचकाऊँ, मुँह बिचकाता
सबकी नज़रें तोले डूब,
गूँगा है पर बोले खूब।
रूप दिखाए बिल्कुल सच्चा
निंदक इससे मिला न अच्छा।
अजब-गज़ब ये जिसके काम,
बच्चों! बताओ उसका नाम।
(4)
सारी बातें सुनकर सबकी,
पूरी चुगली खाता
फिर भी इस के बिना हमारा
काम नहीं चल पाता।
दुनिया भर से तार जुड़े हैं
बिना तार भी जाता।
भले हमारी जेब काटता
टूट न पाता ।।
बाल कविताएं
जग से न्यारे दादा-दादी
जो भी माँगूँ उसे दिलाते
बड़े प्यार से बैठ खिलाते
पलकों पर हैं सदा बिठाते
मेरे प्यारे दादा-दादी।
कभी नाक के बाल उखाड़ें
कभी धड़ाधड़ थप्पड़ झाड़ें
कभी शर्ट की बटनें खोलें
हाथ डाल के जेब टटोलें
फिर भी खुश हैं दादा-दादी।
मेरे प्यारे दादा-दादी।
जब मम्मी मुझे सताती
दौड़ के दादी आगे आती
उनको जबरन पीछे करके
आँचल में है मुझे छिपाती।
मेरे प्यारे दादा-दादी।
इस दुनिया में जब तक वे हैं
हम बच्चों के बड़े मजे हैं
साथ हमारे ईश्वर! रखना
सौ वर्षों तक दादा-दादी।
ममता वाली साड़ी खादी।
मेरी प्यारी-प्यारी नानी
मेरी मम्मी की, मम्मी की
है कुछ अजब कहानी
किसी बात पर चिढ़ जाएं ,
तो,याद करा दें नानी।
मेरी प्यारी-प्यारी नानी।
संकेतों से पास बुलाके
बिना बात की बात बना के
थपकी दे-दे रोज़ सुनाएं
लोरी,कथा,कहानी।
मेरी प्यारी-प्यारी नानी।
उनको कोई बात बताना
भैंस के आगे बीन बजाना
किन्तु प्यार के दो बोलों से
हो जाएं पानी-पानी।
मेरी प्यारी-प्यारी नानी।
कभी लगें कविता की धारा
लगतीं कभी कहानी।
कभी-कभी चुटकुले सरीखी
फूटे मधुरिम बानी।
मेरी प्यारी-प्यारी नानी।
नानी के दो होंठ रसीले,
अमृत-से मधुमय औ गीले
बड़े प्यार से चुपके-चुपके
गालों पर लिख रहे कहानी।
मेरी प्यारी-प्यारी नानी।
----.
--डॉक्टर गंगा प्रसाद शर्मा 'गुणशेखर'
दोहों में कैलाश गौतम याद आए.
जवाब देंहटाएंकुर्ते की आभा गई, आंचल का संकोच।
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई।