प्रमोद भार्गव का कहानी संग्रह - मुक्त होती औरत (5)

SHARE:

( पिछले अंक में प्रकाशित कहानी 'सती का सत' से जारी...) मुक्‍त होती औरत   प्रमोद भार्गव प्रकाशक प्रकाशन संस्‍थान 4268. अंसारी ...

(पिछले अंक में प्रकाशित कहानी 'सती का सत' से जारी...)

मुक्‍त होती औरत

 

pramod bhargava new

प्रमोद भार्गव

प्रकाशक

प्रकाशन संस्‍थान

4268. अंसारी रोड, दरियागंज

नयी दिल्‍ली-110002

मूल्‍य : 250.00 रुपये

प्रथम संस्‍करण : सन्‌ 2011

ISBN NO. 978-81-7714-291-4

आवरण : जगमोहन सिंह रावत

शब्‍द-संयोजन : कम्‍प्‍यूटेक सिस्‍टम, दिल्‍ली-110032

मुद्रक : बी. के. ऑफसेट, दिल्‍ली-110032

----

जीवनसंगिनी...

आभा भार्गव को

जिसकी आभा से

मेरी चमक प्रदीप्‍त है...!

---

प्रमोद भार्गव

जन्‍म 15 अगस्‍त, 1956, ग्राम अटलपुर, जिला-शिवपुरी (म.प्र.)

शिक्षा - स्‍नातकोत्तर (हिन्‍दी साहित्‍य)

रुचियाँ - लेखन, पत्रकारिता, पर्यटन, पर्यावरण, वन्‍य जीवन तथा इतिहास एवं पुरातत्त्वीय विषयों के अध्‍ययन में विशेष रुचि।

प्रकाशन प्‍यास भर पानी (उपन्‍यास), पहचाने हुए अजनबी, शपथ-पत्र एवं लौटते हुए (कहानी संग्रह), शहीद बालक (बाल उपन्‍यास); अनेक लेख एवं कहानियाँ प्रकाशित।

सम्‍मान 1. म.प्र. लेखक संघ, भोपाल द्वारा वर्ष 2008 का बाल साहित्‍य के क्षेत्र में चन्‍द्रप्रकाश जायसवाल सम्‍मान; 2. ग्‍वालियर साहित्‍य अकादमी द्वारा साहित्‍य एवं पत्रकारिता के लिए डॉ. धर्मवीर भारती सम्‍मान; 3. भवभूति शोध संस्‍थान डबरा (ग्‍वालियर) द्वारा ‘भवभूति अलंकरण'; 4. म.प्र. स्‍वतन्‍त्रता सेनानी उत्तराधिकारी संगठन भोपाल द्वारा ‘सेवा सिन्‍धु सम्‍मान'; 5. म.प्र. हिन्‍दी साहित्‍य सम्‍मेलन, इकाई कोलारस (शिवपुरी) साहित्‍य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में दीर्घकालिक सेवाओं के लिए सम्‍मानित।

अनुभवजन सत्ता की शुरुआत से 2003 तक शिवपुरी जिला संवाददाता। नयी दुनिया ग्‍वालियर में 1 वर्ष ब्यूरो प्रमुख शिवपुरी। उत्तर साक्षरता अभियान में दो वर्ष निदेशक के पद पर।

सम्‍प्रति - जिला संवाददाता आज तक (टी.वी. समाचार चैनल) सम्‍पादक - शब्‍दिता संवाद सेवा, शिवपुरी।

पता शब्‍दार्थ, 49, श्रीराम कॉलोनी, शिवपुरी (मप्र)

दूरभाष 07492-232007, 233882, 9425488224

ई-सम्पर्क : pramod.bhargava15@gmail.com

----

अनुक्रम

मुक्‍त होती औरत

पिता का मरना

दहशत

सती का ‘सत'

इन्‍तजार करती माँ

नकटू

गंगा बटाईदार

कहानी विधायक विद्याधर शर्मा की

किरायेदारिन

मुखबिर

भूतड़ी अमावस्‍या

शंका

छल

जूली

परखनली का आदमी

---

कहानी

इन्तजार करती माँ

अतिरिक्‍त महत्वाकांक्षा के चलते आयुषी ने जिन्‍दगी को माउस के क्‍लिक की तरह समझा। आयुषी ने ही क्‍यों रत्‍नेश ने भी शायद यही समझा था? लेकिन जिन्‍दगी यथार्थ के ठोस धरातल पर माउस की क्‍लिक भर नहीं है कि अँगुली का हलका-सा दबाव कम्‍प्‍यूटर की स्‍क्रीन पर रंगीनियाँ बिखेर देगा। फिर भिन्‍न-भिन्‍न ऑनलाइन डॉट कॉम क्‍लिक करते चले जाओ...दुनिया और प्रकृति के अनन्‍त रहस्‍य किसी तिलिस्‍म की तरह खुलते चले जाएँगे...। फूल खिलते मिलेंगे, तितलियाँ बातें करती मिलेंगी, झरने-नदियाँ बह रहे होंगे, समुद्र अपनी पूरी मस्‍ती के साथ हिलोरें ले रहा होगा, पशु-पक्षी चहचहा व चिंघाड़ रहे होंगे। डिस्‍कवरी, एनीमल प्‍लेनेट और ज्‍यूग्राफी चैनल उपनिषदों की तरह ब्रह्माण्‍ड और जीव-जगत्‌ के रहस्‍यों की रेशा-रेशा व्‍याख्‍या कर रहे होंगे। आईटी की शिक्षा ग्रहण करते हुए आयुषी और रत्‍नेश ने सॉफ्‍टवेयर व हार्डवेयर की मौलिक प्रोग्रामिंग का गणित तो अच्‍छे से हल किया था लेकिन यह गणित उनकी जिन्‍दगी के रासायनिक घोल में गड़बड़ा गया था। गड़बड़ी भी तब समझ आई जब उनकी उम्र तैंतीस-पैंतीस साल की हो चली। तीन साल का वैवाहिक जीवन गुजारने के बावजूद वे अपना उत्तराधिकारी पैदा नहीं कर पाए।

नेट के जरिए आयुषी और रत्‍नेश ने परस्‍पर एक-दूसरे को पसन्‍दीदा जीवन-साथी चुना। एक-दूसरे के आचार-व्‍यवहार, धर्म-जाति, खानपान, शिक्षा, कुण्‍डली, मातृभाषा, रक्‍त समूह, मूलनिवास स्‍थान, आमदनी, कैरियर और माता-पिता की हैसियत को ठीक से जाना, सत्‍यापन किया तब कहीं, तीन साल पहले इंटरनेट पर विकसित हुए ‘लव' के रहस्‍य को परिजनों पर उजागर कर ‘अरेंज मैरिज' के बन्‍धन में बँधे। दोनों की लगभग डेढ़ लाख रुपये प्रतिमाह की आमदनी। सभी भौतिक सुख-सुविधाएँ उपलब्‍ध। स्‍वयं को अत्‍यधिक बुद्धिमान समझने के बावजूद वे अपने-अपने शरीरों में डिम्‍ब और शुक्राणु की स्‍वस्‍थ उपलब्‍धता की पड़ताल करना भूल गए।

नयी ऊर्जा और प्रवृत्ति का आनन्‍द उठा रहे मोटी कमाई के इन दीवानों की कोख में तीन साल तक डिम्‍ब और शुक्राणु ने निषेचन कर भ्रूण की संरचना नहीं की तो यह जोड़ा आशंकित हुआ और यौन विशेषज्ञ डॉक्‍टर शर्मा की शरण में पहुँचा। तमाम जाँचें व दोनों से संयुक्‍त एवं अलग-अलग लम्‍बी पूछताछ के बाद स्‍पष्‍ट हुआ कि वे दोनों, ‘डीआईएनएस यानी डबल इनकम नो सेक्‍स सिंड्रोम' के शिकार हैं।

दोनों किंकर्तव्‍यविमूढ़। परस्‍पर आँखें चार करने में लाचार। आँखें चार करने में वे अभ्‍यस्‍त होते ही कैसे...,उनका प्‍यार...,प्‍यार नहीं सम्‍पर्क तो इंटरनेट पर सन्‍देशों के आदान-प्रदान के जरिए परवान चढ़कर ‘स्‍वयंवर' में परिवर्तित हुआ था। यह तो उन्‍होंने अब जाना कि बहुत अधिक बुद्धि में उलझे रहने की निष्‍पत्ति उनकी देहों में उत्‍कट काम-भावना का लगभग समापन करते हुए उन्‍हें डबल इनकम नो सेक्‍स सिंड्रोम जैसी शुष्‍क बीमारी के दायरे में ले आई है। मानसिक तनाव और काम के अतिरिक्‍त दबाव के चलते शरीर में घर कर लेने वाली इस शुष्‍कता से स्‍त्री में डिम्‍ब और पुरुष में शुक्राणु का सम्‍पूर्ण रूप से विकास ही असम्‍भव हो जाता है।

डबल इनकम नो सेक्‍स सिंड्रोम!

किसी समाचार चैनल पर ‘न्‍यूज फ्‍लैश' की तरह अज्ञात गर्भ को फाड़कर अनायास ही विस्‍फोटक हुआ यह छोटा-सा क्षण अथाह वेदना के साथ आया और दोनों को भीतर तक आहत कर गया। उपचार की कोई निश्‍चित प्रोग्रामिंग करते इससे पहले ही रत्‍नेश को मोबाइल पर सूचना मिल गई कि उसे तत्‍काल, कम्‍पनी के नये खुलने वाले दफ्‍तर की बैठक में भागीदारी के लिए अगली फ्‍लाइट से दुबई पहुँचना है। वे चेम्‍बूर स्‍थित रिलायंस सोसायटी के पन्‍द्रहवें माले पर स्‍थित अपने फ्‍लैट में आए। आनन-फानन में रत्‍नेश ने अटैची में कुछ कपड़े ठूँसे, कागजात रखे और फ्‍लाइट पकड़ने के लिए रवाना हो गया। इस दौरान दोनों ने न तो एक-दूसरे को गर्मजोशी से विश किया और न ही आयुषी ने सीऑफ के लिए एयरपोर्ट तक जाने की इच्‍छा जताई। जाते-जाते रत्‍नेश ने आयुषी को ढाँढ़स बँधाते हुए इतना जरूर कहा, ‘‘डॉक्‍टर शर्मा की रिपोर्ट पर ज्‍यादा चिन्‍ता करने की जरूरत नहीं है, लौटने पर किसी अच्‍छे गायकोनोलॉजिस्‍ट से चेकअप कराएँगे।''

वैसे भी वे एक-दूसरे के मुम्‍बई से बाहर रवाना होने पर सीऑफ या रिसीव करने के लिए जा ही कहाँ पाते हैं? चौबीस घण्‍टे चलने वाले कॉल सेन्‍टर में काम करते हुए आयुषी को और रिलायंस में काम करते हुए रत्‍नेश को दिन व रात के मतलब का कोई अलग अर्थ ही नहीं रह गया है। उनके लिए तो दिन-रात जैसे एक ही हैं। ऐसे में इस युगल को एक साथ बिस्‍तर पर समय गुजारने के अवसर ही कितने मिल पाते हैं...?

अवसर!

बच्‍चा पैदा न कर पाने के चिन्‍तनीय पहलू के सामने आने के पूर्व अर्जित उपलब्‍धियों से गौरवान्‍वित करनेवाले कितने ही अवसर आयुषी को मिले हैं, रत्‍नेश को भी। कोटा के बंसल इन्‍स्‍टीट्‌यूट से कोचिंग लेते हुए पहली ही बार में आईआईटी के लिए चयन हो जाना? खुशी का कितना बड़ा अवसर था, पूरे घर के लिए, बधाइयों का ताँता..., अखबारों में संस्‍थान के विज्ञापनों में दर्प से दमकती आयुषी के फोटो। या फिर आईटी करने के साथ ही टाटा इनफोकॉम द्वारा कैम्पस सेलेक्‍सन! या फिर अपने ही कैरियर से मेल खाते रत्‍नेश से विवाह! या फिर फोर्ड फिएस्‍ता कार खरीदना! फिर रिलायंस सोसायटी में 45 लाख का फ्‍लैट क्रय कर गृहप्रवेश का अवसर। ढेर सारी खुशियाँ, छोटी-सी उम्र में एक-एक कर इतनी सरलता से चली आईं कि वह अपने मित्रों, सहेलियों, सहयोगियों और सगे-सम्‍बन्‍धियों में ईर्ष्‍या की पात्र बन गई थी। कमोबेश यही स्‍थिति अपनों के बीच रत्‍नेश की थी। शादी के बाद शुरुआती दिनों में चौपाटी पर कदम धँस जानेवाली रेत में रत्‍नेश का हाथ थामे हुए घुटनों-घुटनों समुद्र की लहरों के बीच अठखेलियाँ करते हुए उसे लगता कि सफल और सार्थक जिन्‍दगी के लिए एक-एक कर अनायास ही जुड़ती जा रही उपलब्‍धियों ने उसे अपनों के बीच बेहद भाग्‍यशाली औरत बना दिया था।

औरत!

औरत होना ही जैसे औरत के लिए एक बड़ी कमजोरी है। इन्‍दौर और मुम्‍बई में अकेली रहते हुए आयुषी ने वर्षों गुजारे, लेकिन ‘बुकवार्म' बनी रहते हुए उसने कभी एकाकीपन का अहसास नहीं किया। पर आज समुद्री लहरों के थपेड़ों के बीच उसने पूरी रात सन्‍नाटे और आत्‍महीनता के भयावह बोध के साथ बमुश्‍किल गुजारी। जैसे वह अवसाद और दुश्‍चिन्‍ता से घिरती जा रही है। उसने कहीं पढ़ा था, ‘‘जो लोग वक्‍त की कदर नहीं करते, वक्‍त उनके साथ कभी वफा नहीं करता।'' तो क्‍या वाकई उन्‍होंने वक्‍त को नजरअन्‍दाज किया? पैसा कमाने की होड़ में काम का दबाव इन दोनों पर इतना रहा कि दिनचर्या उनके लिए एक बाढ़-सी बनकर रह गई। वर्चस्‍व को निगल जाने वाली बाढ़! मुम्‍बई वैसे भी पिछले दो साल से मौसमी बाढ़ की गिरफ्‍त में है। यदि समय का खयाल रखा होता तो आज मातृत्‍व ग्रहण करने के नाजुक व उचित क्षण गुजर नहीं गए होते? और वे कमोबेश बाँझ व नपुंसकता का बोध करानेवाली पंक्‍ति में आ खड़े नहीं हुए होते?

पर अवसर उसने कहाँ गँवाए? वह तो अवसरों की सीढ़ियों पर ही पैर जमाते हुए आर्थिक ताकत बनी है। हाँ, प्रतिस्‍पर्धा के इस दौर से लोहा लेते हुए उसने प्राकृतिक प्रवृत्तियों का बलात्‌ दमन जरूर किया है। शायद इसी का नतीजा है ‘नो सेक्‍स सिंड्रोम'! पर महत्त्वाकांक्षा की ताबीर ही कुछ रहस्‍यमयी एवं एन्‍द्रजालिक होती है। तब इच्‍छाएँ, सुरक्षित भविष्‍य गढ़ने की होड़ पर केन्‍द्रित हो गई थीं और अब विरोधाभास की कितनी हद है कि कामनाएँ कोख भर जाने की प्रबल लालसा पर आकर स्‍थिर हो गई हैं। उम्र के भिन्‍न-भिन्‍न पड़ावों पर इंसान के लक्ष्‍य भी बदल जाया करते हैं। प्रकृति की शायद यही स्‍वाभाविक प्रवृत्ति है और शायद यही अवचेतन में कहीं गहरे बैठे जातीय संस्‍कार।

संस्‍कार!

सबेरा होने पर आयुषी जब दरवाजा खोल बालकनी में आई तो समुद्री हवा का मत्‍स्‍यगन्‍ध से भरा ताजा झोंका उसे ताजगी भरा व सुखदायी लगा। इसी बीच रत्‍नेश का सकुशल दुबई पहुँच जाने का सन्‍देश भी मोबाइल पर आ गया था। आयुषी ने सुबह आठ बजे शुरू होनेवाली ड्‌यूटी पर जाने से, अचानक बीमार हो जाने का बहाना कर छुट्‌टी ले ली थी। छुट्‌टी की अर्जी उसने लैपटॉप के जरिए ऑफिस मेल कर दी थी।

मुम्‍बई में जब देखो तब इंसानों की बाढ़...! समुद्र तट पर स्‍वास्‍थ्‍य लाभ लेने वाले वृद्धों के कई जोड़े। दूसरी तरफ संजय दत्त और सलमान खान जैसी मसलीय देहयष्‍टि बनाने की कोशिश में समुद्री लहरों पर दौड़ते सैकड़ों युवक। इधर सड़कों पर वाहनों की रेलमपेल! बस स्‍टॉप पर छोटे-बड़े बच्‍चे परिजनों की अँगुलियाँ थामे, स्‍कूल बस के इन्‍तजार में...। भाँति-भाँति की ड्रेस में टाई कसे हुए, कैसे चुस्‍त-दुरुस्‍त और सुन्‍दर-सुन्‍दर बच्‍चे!उनका भी बच्‍चा होता तो वह भी बच्‍चे के साथ बस की प्रतीक्षा में खड़ी होती...? हँस-हँसकर बातें कर रही होती, समझाइश दे रही होती..., देख राजू..., खिड़की से हाथ बाहर नहीं निकालना। बस स्‍कूल परिसर में खड़ी हो जाए तब धीरे से उतरना..., सँभलकर, गिर मत जाना। वापसी में पानी की बोतल और टिफिन नहीं भूलना? किताबें गिनकर बस्‍ते में रखना? पर इस मनहूस अकेलेपन से पीछा छूटे भी तो कैसे?

नितान्‍त अकेले में भावना की डगर पर सवार आयुषी के हृदय में सन्‍तान चाहत की आकांक्षा प्रखर हो आई। उसने अनुभव किया जैसे उसकी छातियों में बेचैनी की लहरें महत्त्वाकांक्षा की जुगुप्‍सा जगा रही हैं...।

महत्त्वाकांक्षा!

वह प्रखर महत्त्वाकांक्षा ही थी जो आयुषी और शायद रत्‍नेश को भी वर्तमान से विमुख कर सुनहरे, स्‍वप्‍निल भविष्‍य में ले गई। महत्त्वाकांक्षा तो आयुषी की भी चुनौती को स्‍वीकारते हुए कुछ कर दिखाने की थी, माता-पिता ने इसे हवा दी, कुछ नया करके दिखाओ, कुछ बनकर दिखाओ, इंजीनियर-डॉक्‍टर बनो, यूपीएससी फेस करो, आत्‍मनिर्भर बनो। पैसा कमाओ। पैसे से समाज में प्रतिष्‍ठा मिलती है, मान बढ़ता है।

‘पैसा कमाने' के वाक्‍य को सूक्‍ति वाक्‍य मानकर आयुषी अहंकार की दौड़ में शामिल हो गई। रोमांस की उम्र कैरियर बनाने की प्रतिस्‍पर्धा में स्‍वाहा...! शादी की उम्र कम्‍पनी के टार्गेट एचीव करने में स्‍वाहा...! और माँ बनने की उम्र तो जैसे उसने समझा था मोनोपॉज की स्‍थिति शरीर में नहीं आने तक सुरक्षित रहती है। डॉक्‍टरी जाँच के बाद उसका यह भ्रम निकला। वैसे भी उसका मासिक चक्र गड़बड़ रहता था लेकिन अतिरिक्‍त व्‍यस्‍तता के चलते इस ओर कभी उसने गम्‍भीरता से गौर ही नहीं किया। डॉक्‍टर शर्मा ने बताया था, ‘‘महिलाओं में तनाव से असन्‍तोष जन्‍म लेता है जिससे अण्‍डाशय प्रभावित होता है और डिम्‍ब या तो बनना बन्‍द हो जाते हैं या कम बनते हैं।'' रत्‍नेश के लिए बोला था, ‘‘उसके वीर्य में शुक्राणु पर्याप्‍त नहीं हैं, इसका कारण कार्य का मन पर अत्‍यधिक दबाव है।'' डॉक्‍टर ने यह भी जानकारी दी थी कि आईटी क्षेत्रों में काम करनेवाले उन जैसे दम्‍पतियों की संख्‍या में लगातार वृद्धि हो रही है।

आयुषी के आगे आर्थिक आजादी का भ्रम टूट रहा था...। प्रिया राजवंश और परवीन बॉबी ने भी अपने बूते आर्थिक स्‍वतन्‍त्रता हासिल कर अपनी प्रतिभा का परचम फहराया था। पर वृद्धावस्‍था में उनका हश्र क्‍या हुआ? अपनी चल-अचल सम्‍पत्ति की वसीयत के लिए एक अदद वारिस भी उनके पास नहीं था। कहीं उनका हश्र भी प्रिया और परवीन-सा न हो, क्‍योंकि वे भी तो सन्‍तानहीन हैं। किसी निकटतम रिश्‍तेदार का बच्‍चा गोद ले लेने की बात भी आयुषी के दिमाग में आई। पर आजकल एक या दो से ज्‍यादा किसी रिश्‍तेदार के यहाँ बच्‍चे हैं ही कहाँ, जो वे अपने जिगर के टुकड़े को किसी गैर को गोद दे दें? उसने स्‍मृति पटल पर जोर डालकर रिश्‍तेदारों के बच्‍चों की मन ही मन गिनती भी कर डाली। पर एक या दो बच्‍चों से ज्‍यादा किसी के यहाँ बच्‍चे होने की गिनती वह नहीं कर पाई। अब तो वैसे भी अपनी बिरादरी में आर्थिक सम्‍पन्‍नता बढ़ जाने के कारण किसी के लिए बच्‍चे बोझ नहीं रह गए हैं? कोई रास्‍ता सूझता न देख आयुषी की आँखें छलछला आईं। वह बालकनी से कमरे में दाखिल हुई और पलंग पर निढाल-सी गिरी तो मखमली बिस्‍तर में धँसती चली गई।

पलंग!

आयुषी और रत्‍नेश ने शादी के तत्‍काल बाद एक लाख पैंतीस हजार का यह डबल बेड खरीदा था। लेकिन इस पलंग पर नौकरी की व्‍यस्‍तता के चलते उन्‍हें समय बिताने के मौके ही कितने मिले हैं? वह घर में एक साथ ठहर ही कितना पाते हैं? ड्‌यूटियों में इतनी विसंगति रहती है कि जब आयुषी ड्‌यूटी पर होती है तब रत्‍नेश घर और जब रत्‍नेश ड्‌यूटी पर होता है तब आयुषी घर में। जब कभी छुट्‌टी रहती है तो रत्‍नेश को मुम्‍बई से बाहर किसी मीटिंग में भागीदारी करने की सूचना मिल जाती है। अब तो उन्‍हें लगता है कि इतना महँगा डबलबेड उन्‍होंने खरीदा ही व्‍यर्थ है? हालाँकि डबलबेड खरीदते वक्‍त उनमें कामजनित जुगुप्‍सा जागृत हुई थी, लेकिन ‘मर्डर' की मल्‍लिका शेरावत, ‘हवस' की मेघना नायडू और ‘एतराज' की प्रियंका चोपड़ा के शरीरों से पुरुष स्‍पर्श के साथ जो काम-पिपासा का लावा फूटता है, वैसा अनुभव उन्‍होंने कभी नहीं किया। काम के बोझ के मानसिक दबाव के चलते वे तो इस शारीरिक संसर्ग से आनन-फानन में ही निवृत्ति पाना चाहते रहे हैं। सम्‍भवतः ऐसे ही विसंगतियों के चलते आयुषी को लग रहा है कि उनकी यौन क्रिया की ऊर्जा न्‍यूनतम स्‍तर पर पहुँच गई है और तभी वे सन्‍तान पैदा करने में अक्षम साबित हो रहे हैं। इस अक्षमता का उपचार जरूरी है।

उपचार!

रत्‍नेश दुबई से लौट आया था। हमेशा की तरह हारा-थका, उनींदा, बेहाल! आते ही आयुषी की कोई खबर-अबर लिये बिना ही पलंग पर पसर गया। उठा तो

ठीक बारह घण्‍टे बाद। फ्रेश होकर रत्‍नेश को दफ्‍तर पहुँच, बॉस को दुबई में आयोजित मीटिंग की रिपोर्ट देनी थी। तैयार होते-होते बॉस का मोबाइल पर बुलावा भी आ गया था। आयुषी के दबाव के चलते रत्‍नेश ने तय किया कि वे साथ-साथ चलेंगे और दफ्‍तर में रिपोर्ट बॉस को सुपुर्द करने के बाद यौन विशेषज्ञ डॉ. मालपानी से चेकअप कराएँगे।

डॉक्‍टर मालपानी ने आयुषी और रत्‍नेश के कुछ जरूरी टेस्‍ट कराने और दोनों से लम्‍बी बातचीत के बाद समस्‍या का कारण स्‍पष्‍ट किया, ‘‘घबराने की कोई बात नहीं है। समस्‍या की जड़ निरन्‍तर व्‍यस्‍तता है। जिसके कारण इनफर्टिलिटी के दौरान अनुकम्‍पी स्‍नायुतन्‍त्रों में एडरीनलिन और कोर्टिकोस्‍टेरोड उत्‍पन्‍न होते हैं, जो व्‍यक्‍ति में भोजन, नींद और सेक्‍स की इच्‍छाओं को बाधित करते हैं। जबकि सेक्‍स के लिए सहानुकम्‍पी स्‍नायुतन्‍त्रों के उत्‍प्रेरित होने की जरूरत रहती है। इनके उत्‍प्रेरित होने से व्‍यक्‍ति में कामजनित ऊर्जा, आराम और शान्‍ति के भाव उत्‍पन्‍न होते हैं। ये स्‍नायुतन्‍त्र शरीर पर काम का दबाव कम करने और निश्‍चिन्‍त रहने से विकसित होते हैं। जो शरीर को ऊर्जावान बनाकर सन्‍तान पैदा करने के लिए सक्षम बनाते हैं। सन्‍तान तो वीर्य बैंकों के जरिए भी कृत्रिम गर्भाधान से भी पैदा की जा सकती है पर इंसान को पहले प्राकृतिक तरीके ही आजमाना चाहिए।''

डॉक्‍टर की सलाह के बाद दोनों में एकाएक नयी ऊर्जा का संचार हुआ और वे पर्चे में लिखी दवाएँ लेकर घर की ओर निकल पड़े। उन्‍होंने यह भी निश्‍चित किया कि अब मौज-मस्‍ती के लिए सप्‍ताह भर की छुट्‌टी भी लेंगे।

ऊर्जा!

घर पहुँचकर उत्‍साह से भरी आयुषी को विश्‍वास होने लगा था कि अब अस्‍तित्‍वहीन रेगिस्‍तान में उम्‍मीद की जो किरण फूटी है वह अनन्‍त रेगिस्‍तान में कहीं विलीन नहीं होगी। आज उनमें एकाकार होने की भी असीम व्‍यग्रता थी। और फिर दो मौन शारीरिक हसरतें एक शान्‍त तृप्‍ति में तब्‍दील होने लगीं...। इस असीम तृप्‍ति के बाद आयुषी को पहली बार अतिरिक्‍त मानसिक व्‍यस्‍तता की जड़ता को तोड़ती तीव्र आन्‍तरिक अनुभूति हुई कि उसके गर्भ में भले ही अभी भ्रूण का योग न बना हो, लेकिन उसके अन्‍तर्मन में एक प्रतीक्षारत माँ दुग्‍धालोड़ित जरूर होने लगी है।

---

(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्रमोद भार्गव का कहानी संग्रह - मुक्त होती औरत (5)
प्रमोद भार्गव का कहानी संग्रह - मुक्त होती औरत (5)
http://lh6.ggpht.com/_t-eJZb6SGWU/TTU0r7RZ5BI/AAAAAAAAJaU/MzSUkzqB5mo/pramod%20bhargava%20new%5B2%5D.jpg?imgmax=800
http://lh6.ggpht.com/_t-eJZb6SGWU/TTU0r7RZ5BI/AAAAAAAAJaU/MzSUkzqB5mo/s72-c/pramod%20bhargava%20new%5B2%5D.jpg?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2011/01/5.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2011/01/5.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content