प्रमोद भार्गव की पुस्तक समीक्षा : रामचरितमानस में पत्रकारिता

SHARE:

समीक्षा रामचरितमानस में पत्रकारिता प्रमोद भार्गव समाजवादी चिंतक डॉ. राममनोहर लोहिया ने कहा है, तुलसी के रामचरितमानस में जितने गोते लगाओ उतन...

समीक्षा

रामचरितमानस में पत्रकारिता

clip_image002

प्रमोद भार्गव

समाजवादी चिंतक डॉ. राममनोहर लोहिया ने कहा है, तुलसी के रामचरितमानस में जितने गोते लगाओ उतनी ही बार सीप और मोतियों की उपलब्‍धियां होती रहती हैं। कुछ इसी तर्ज पर लेखक आरएमपी सिंह ने रामचरितमानस में डूबकियां लगाईं और मानस से पत्रकारिता के वे सूत्र खोज लाए जो सार्थक और समर्थ पत्रकारिता के लिए जरूरी हैं। वैसे भी कई दार्शनिक और मानस के गूढ़ मर्मज्ञ रामचरितमानस को मानव जीवन का संविधान बताते हैं। लिहाजा इसके मंथन से व्‍याख्‍याकार विधायिका, न्‍यायपालिका और कार्यपालिका जैसे तीन स्‍तंभों का अनुसंधान तो पहले ही कर चुके हैं, अब आरएमपी सिंह ने लोकतंत्र के चौथे स्‍तंभ ‘पत्रकारिता' की खोज भी कर डाली। वैसे भी राम संवैधानिक व्‍यवस्‍था में अयोध्‍या के साम्राज्‍यवादी एकतंत्री राजा जरूर थे, लेकिन उनकी कार्यशैली लोकहितैषी प्रजातांत्रिक मूल्‍यों की जीवन पर्यंत संरक्षक व समर्थक रही है। जन इच्‍छा राम के लिए कितनी महत्‍वपूर्ण थी, यह एक साधारण से धोबी के कथन को अमल में लाने से ही पता चल जाता है कि राम लोक मूल्‍यों की रक्षा के लिए पत्‍नी सीता का आनन-फानन में ही परित्‍याग करने का ठोस, निर्मम व हृदयविदारक आत्‍मनिर्णय ले लेते हैं। लोक व्‍यवहार में नैतिक प्रदर्शन का ऐसा यथार्थ आचरण दुनिया के सम्राटों में दूसरा कोई नहीं है।

आरएमपी सिंह की रामचरितमानस के संदर्भ में पत्रकारिता से जुड़ी किताब का शीर्षक है ‘रामचरितमानस में संवाद-संप्रेषण' संवाद-संप्रेषण ही सक्षम पत्रकारिता का मूल तत्‍व है। मानस के शिल्‍प का गठन और उसके विस्‍तार का आधार भी अद्वितीय संवाद शैली पर अवलंबित है। प्रश्‍नोत्तर का आधार बनने वाली इसी बातचीत से लेखक ने बड़ी दक्षता से पत्रकारिता के वे सब गुण ढूंढ़ निकाले जो पत्रकारिता के प्रस्‍थान बिन्‍दु हैं। यही नहीं पात्रों में भी पत्रकार होने की अंतर्वस्‍तु तलाश ली। प्रचार-तंत्र की भूमिका एक संघर्षशील नायक के लिए कितनी महत्‍वपूर्ण हो सकती है यह भी इस पुस्‍तक में निरूपित किया है। पत्रकार वार्ता, पत्रकार, रिर्पोटिंग, संपादन, संवादों का आदान-प्रदान, साक्षात्‍कार, फीडबैंक, संवादहीनता के दुष्‍परिणाम और छवि निर्माण जैसे पत्रकारिता से सभी आधार बिन्‍दुओं का रेखाकन तथ्‍यात्‍मक उदाहरणों के साथ इस किताब के आख्‍यान में दर्ज है। इस रचना की विलक्षणता यह भी है कि यह कथा और पात्रों को मनुष्‍य और मनुष्‍यता के परिप्रेक्ष्‍य में एक मौलिक आयाम देती है। अलैकिक दिव्‍यता की अनंत खोज इसमें नहीं है। शायद इसीलिए लेखक मानस में डूबकी लगाकर पत्रकारिता का यथार्थ सामने रखने में सफल हो पाए हैं।

लेखन ने मानस के गंभीर अध्‍ययन से उन शब्‍दों और उनके प्रभाव को भी मानस के दोहे-चौपाइयों से बीन लिया है जो पत्रकारिता का पर्याय हैं। मानस में पहली बार ‘समाचार' शब्‍द का उपयोग तब हुआ, जब सती अपने पिता के यज्ञ में अपनी आहुति देकर होम हो जातीं हैं। यह उस युग विशेष की विश्‍वव्‍यापी कारूणिक घटना है। क्‍योंकि सती कोई मामूली स्‍त्री नहीं थीं। वे त्रिलोकव्‍यापी भगवान शंकर की पत्‍नी थीं और दिग्‍विजयी सम्राट प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। इसलिए इस घटना को समाचार बनते देर नहीं लगती-

समाचार सब शंकर पाये, वीरभद्र करिकोप उठाये।

जग्‍य विंध्‍वस जाये तिन्‍ह कीन्‍हा, सकल सुरन्‍ह विधिवत दण्‍ड दीन्‍हा।

भै जगविदित दच्‍छ गति सोई, जसि कछु संभु विमुख के होई।

बुरी खबर-अच्‍छी खबर (गुड-न्‍यूज, बैड-न्‍यूज) खबर के एक ही सिक्‍के के दो महत्‍वपूर्ण पहलू हैं। सती का आत्‍मदाह जहां बुरी खबर है, वही मानस में सती पुनर्जन्‍म लेकर पार्वती के रूप में अवतरित होती हैं तो उस कालखण्‍ड में ब्रह्माण्‍ड की यह अच्‍छी खबर बन जाती है। तुलसीदास इस घटना का प्रस्‍तुतिकरण एक ‘समाचार' के रूप में करते हैं-

नारद समाचार सब पाये

कौतुकही गिरि गेह सिधाये

समाचार शब्‍द के बहुल प्रयोग के बाद तुलसीदास ने खबर शब्‍द का उपयोग भी मानस में प्रमुखता से किया है-

असुर तापसिंह ‘खबरि' जनाई

दसमुख कतहूं खबरि असि पाई

सेन साजि गढ़ घेरेसि जाई।

जब रावण, कुंभकरण और विभीषण संसार में आते हैं तो उन्‍हें खबर मिलती है कि लंका जो मय दानव की परिकल्‍पना के वैशिष्‍ट्‌य का साकार स्‍वरूप है, उसका अधिपति विष्‍णु की अनुकंपा से कुबेर बना बैठा है, क्‍यों न उस पर आक्रमण कर अपने अधिकार में ले लिया जाए।

तुलसीदास ने समाचार का पर्याय ‘सुधि' शब्‍द को भी बनाया है। सुधि का प्रयोग सूचना के रूप में किया गया है।

यह सुधि कोल किरातन्‍ह पाई, हरषे जन नव निधि घर आई।

कंदमूल फल भरि-भरि दोना, चले रंक जनु लूटन सोना॥

इसी तरह राम के वनगमन के बाद जब भरत अयोध्‍या लौटते हैं और उन्‍हें राम द्वारा राजपाट छोड़ने की जानकारी मिलती है तो व्‍यथित भरत राम को लौटा लाने के दृष्‍टि से चित्रकूट की ओर प्रस्‍थान कर जाते हैं। जब भरत मार्ग में ऋषि भारद्वाज के आश्रम में पड़ाव डालते हैं, तब ऋषि भरत से कहते हैं मुझे अयोध्‍या के सब घटनाक्रमों की सूचना है-

सुनहु भरत हम सब सुधि पाई

विधि करतब पर किछुन बसाई।

मसलन त्रेता युग में सूचना जंजाल बहुत व्‍यवस्‍थित था। और सूचना संप्रेषण के लिए स्‍थान-स्‍थान पर विभिन्‍न रूपों में लोग तैनात थे। इसी नजरिये से लंका की ओर से सूर्पनखा, खर और दूषण समुद्र पार खबरचियों और सैनिकों के रूप में अरण्‍यों में तैनात थे। सूर्पनखा जब दंडित होकर लंकापति रावण के पास पहुंचती है तो वह रावण की कमजोर सूचना संरचना पर अफसोस जताती हुई कहती है-

करसि पान सोअसि दिनराती।

सुधि नहीं सिर पर आराति॥

फिर राम-रावण युद्ध की पृष्‍ठभूमि से लेकर युद्ध के अंत तक खबरों के आदान-प्रदान का सिलसिला समाचार, खबर और सुधि शब्‍दों में अभिव्‍यक्‍त है।

लेखक ने बेहद गूढ़ दृष्‍टि अपनाते हुए समाचारों के प्रकार का अनुसंधान भी मानस से ढूंढ़ निकाला है। यथा अंगद जब दूत के रूप में संदेश देकर लंका से वानर शिविर में लौटते हैं तो लंका की कई गोपनीय जानकारियां राम को देते है। लेखक ने इन समाचारों को गोपनीय अथवा खोज-खबर का दर्जा दिया है-

समाचार पुनि सब कहे गढ़ के बालि कुमार।

रिपु के समाचार जब पाये, रामसचिव सब निकट बुलाये॥

समाचार-पत्रों के लिए स्‍टोरी का अपना महत्‍व है। पत्रकारिता की भाषा में स्‍टोरी का पर्याय वृतांत से है। जबकि साहित्‍य में स्‍टोरी कहानी का पर्याय है। हनुमान कालनेमि नामक राक्षस का वध कर संजीवनी बूटी ठीक से न पहचान पाने के कारण पूरा पर्वत उखाड़ लाते हैं। और फिर संजीवनी के सेवन से लक्ष्‍मण की मुर्च्‍छा भंग हो जाती है और वे अगले दिन युद्ध को उद्यत हो जाते हैं तब यह पूरा घटनाक्रम, मसलन वृतांत अर्थात स्‍टोरी बन जाता है। रावण इस वृतांत को सुनकर बेचैन हो जाता है।

लेखक का तो यहां तक दावा है कि राम-युग में एक पूरा सूचना-तंत्र विकसित था। वन-वन पड़ाव डाले ऋषि-मुनि राम के प्रचार का हिस्‍सा थे। युद्ध के दौरान विभीषण ने बाकायदा सूचना अधिकारी का दायित्‍व निर्वहन बड़ी सतर्कता से किया था-

यहां विभीषण सब सुधि पायी।

सपदि जाइ रघुपति हि सुनाई॥

रावण वध उस काल विशेष में जिस दिन रावण वीरगति को प्राप्‍त हुआ शायद त्रिलोक की सबसे बड़ी घटना रही होगी। लेकिन राम के लिए, एक विरही पति के लिए इस घटना की सूचना सबसे पहले अपनी बिछुड़ी पत्‍नी को पहुंचाने की तीव्रतम इच्‍छा है। इसलिए रावण वध के तत्‍क्षण राम हनुमान से कहते हैं-

पुनि प्रभु बोलि लियउ हनुमाना, लंका जाहु कहेउ भगवाना॥

समाचार जानकिहि सुनावहु, तासु कुसल लै तुम्‍हचलि आवहु॥

मानस में जब सूचना है, संदेश है और समाचार है तो फिर इनके कर्ता व कारक के रूप में व्‍यक्‍ति अर्थात पत्रकार भी होना चाहिए। अन्‍यथा पत्रकारिता के कर्म को अंजाम कौन देगा। सो लेखक ने बड़ी गहन कुशलता से पत्रकार और उनके पत्रकारिता मर्म व धर्म को भी ढूंढ़ निकाला है। संदेश-संप्रेषण पत्रकारिता का महत्‍वपूर्ण तथा मूल पहलु है। इसी वजह से व्‍यापार को पत्रकारिता का उद्‌गम माना जाता है। समुद्र मार्ग से व्‍यापारीगण दूसरे देशों में माल बेचने व लेने जाते थे तथा वहां के रहन-सहन घटनाक्रम, दर्शनीय स्‍थल और यात्रा वृतांतों का वर्णन लौटकर करते थे। लेखक पत्रकारिता की शुरूआत देशाटन की इसी स्‍थिति से मानते हैं। भाषा की उत्‍पत्ति के साथ संदेश अथवा संवाद संप्रेषण का सलिसिला शुरू हुआ। प्राग्‍तिैहासिक और रामायण काल में नारद को सबसे प्राचीन और प्रमुख पत्रकार लेखक ने माना है। वे पृथ्‍वी की घटनाओं कीे सूचना इंद्रलोक में और इंद्रलोक के निर्णयों की सूचना पृथ्‍वीवासियों को देते थे। इस कारण वे प्रमुख व प्रखर संवाददाता थे। नारद की सूचनाएं कभी गलत साबित नहीं हुईं, इसलिए वे सच्‍चाई के निकटतम पत्रकार माने गए।

लेखक ने नारद के अलावा सरस्‍वती, हनुमान मंथरा और शूर्पनखा को भी पत्रकारिता की भूमिका निर्वहन की दृष्‍टि से देखा है। विद्या की अधिष्‍ठात्री सरस्‍वती को लेखक तत्‍कालीन मीडिया घराने की स्‍वामिनी मानकर चलते हैं। क्‍योंकि इंद्र सरस्‍वती के माध्‍यम से ही राम के राज्‍याभिषेक में विध्‍न डालते हैं। उन्‍हें देवताओं के इस षड़यंत्र पर पीड़ा भी होती है, जिसे देवता अपने स्‍वार्थपूर्तियों को अंजाम देने में लगे हैं-

बार-बार गहि चरन संकोची, चली बिचारि विपुल मति पोची।

ऊंचनिवास, नीच करतूती, देखि न सकई परायी विभूति॥

अंततः सरस्‍वती मंथरा के जरिये देवताओं की करतूत को गति देती हैं। दूसरे के कंधे पर बंदूक रखकर चलाना ऊंचे पदों पर विराजमान लोगों का यथार्थ है। आज उद्योगपति राजनीति में पर्याप्‍त हस्‍तक्षेप मीडिया के बूते ही कर रहे हैं। मंथरा द्वारा कैकेयी को उकसाने के फलस्‍वरूप जब राम का राज्‍य 14 वर्ष के लिए निष्‍कासन हो जाता है। तत्‍पश्‍चात जब भरत और शत्रुध्‍न अयोध्‍या लौटते हैं और जब वे मंथरा की कुचालों से अवगत होते हैं तो फिर मंथरा की धतकर्म के लिए धुनाई करते हैं। पत्रकारों का राजनीतिज्ञों और बाहुबलियों से प्रताड़ित होना आज के दौर में रोजमर्रा की स्‍थिति हो गई है।

लेखक ने हनुमान को रचनात्‍मक पत्रकारिता का पोषक व प्रणेता माना है। वे हनुमान ही थे जो लंका में प्रवेश कर सीता का न केवल पता लगाते हैं बल्‍कि रावण की सैन्‍य शक्‍ति, उसके आयुध भण्‍डार, आंतरिक स्‍थिति और शक्‍ति संपन्‍न राज्‍य व राजाओं से संबंधों की पड़ताल भी करते हैं। एक अन्‍वेषी पत्रकार का राष्‍ट्रहित में यही मंतव्‍य होना चाहिए। लेखक ने हनुमान में खबर को सूंघन (न्‍यूज-नोज) की क्षमता भी दर्शाई है। अंगद को भी सुग्रीव के खबरची के रूप में प्रस्‍तुत किया गया है।

लेखक ने मानस से साक्षात्‍कार भी खोज निकाले हैं और वे रामचरित में पहला साक्षात्‍कार पार्वती द्वारा शंकर से की गई बातचीत को मानते हैं। फिर इन साक्षात्‍कारों का सिलसिला राम-हनुमान के बीच, हनुमान-विभीषण के बीच, वाल्‍मीकि और राम के बीच तथा काग-गरूड़ के बीच देखते हैं। लेखक साक्षात्‍कार लेते समय पत्रकार को संयम बरतने की हिदायत देते हुए कहते हैं, प्रश्‍न हमेशा जिज्ञासा शांत करने के लिए होना चाहिए क्‍योंकि अकसर देखा जाता है घटना से जुड़े व्‍यक्‍ति का कथन लेते वक्‍त ही पत्रकार विवाद व संकट के दायरे में आते हैं।

लेखक ने समीक्षित पुस्‍तक में कहीं भी भाषाई अथवा शिल्‍प वैशिष्‍ट्‌म दिखाने की कोशिश नहीं की है। मूल कथा को विस्‍तार देना भी उनका अभीष्‍ठ नहीं है। इसलिए लेखक सिर्फ अपनी मानस से उन संदभों को उठाते हैं जो पत्रकारिता की पुष्‍टि करने वाले हैं। दिव्‍यता का अलौकिक अनुसंधान कर इहलोक और परलोक सुधारने की बात भी पुस्‍तक में कहीं नहीं है। सीधी सरल भाषा और सपाट बयानी में लिखी इस पुस्‍तक की शैली को भी समाचारीय तर्ज पर प्रस्‍तुत किया गया है। लेखक का प्रमुख व मौलिक ध्‍येय रामचरितमानस से पत्रकारिता से जुड़े संदर्भ खोजना है इसलिए प्रस्‍तुति का क्रम जरूर एक सीधी रेखा में नहीं चलता। इसके बावजूद मानस से लिए उदाहरणों और उनकी विषय सापेक्ष व्‍याख्‍या, लेखक पाठक के अंतर्मन में अपने मंतव्‍य को उतारने में जरूर पूरी तरह सफल रहता है। श्रीकृष्‍ण ने गीता में कहा है, जो मुझे जिस रूप में भजता है, मैं उसे उसी रूप में प्राप्‍त होता हूं। कमोबेश यही स्‍थिति रामचरितमानस के साथ है, उसकी अनंत गहराइयों में वह सब कुछ है, जो आपकी सोच के दायरे में है। जरूरत है लेखक आरएमपी सिंह की तरह गहरे पैठने की, उतरने की अथवा तह में जाकर मोती बटोर लाने की।

पुस्‍तक ः रामचरितमानस में संवाद-संप्रेषण

लेखक ः आरएमपी सिंह

प्रकाशन ः आयम प्रकाशन, 3 अंकुर कॉलोनी,

शिवाजी नगर भोपाल (म.प्र.)

मूल्‍य ः 250/-

प्रमोद भार्गव

शब्‍दार्थ 49,श्रीjाम कॉलोनी

शिवपुरी म.प्र.

मो. 09425488224

फोन 07492-232007, 233882

ई-पता pramodsvp997@rediffmail.com

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. सोच को नयी दिशा देती पोस्ट, धन्यवाद, ये किताब जरूर पढ़ना चाहेगें

    जवाब देंहटाएं
  2. yah puustak bauat achelage rajendra kashayap

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्रमोद भार्गव की पुस्तक समीक्षा : रामचरितमानस में पत्रकारिता
प्रमोद भार्गव की पुस्तक समीक्षा : रामचरितमानस में पत्रकारिता
http://lh5.ggpht.com/_t-eJZb6SGWU/TWCudTwHelI/AAAAAAAAJnk/61uHs72IQe4/clip_image002%5B7%5D.jpg?imgmax=800
http://lh5.ggpht.com/_t-eJZb6SGWU/TWCudTwHelI/AAAAAAAAJnk/61uHs72IQe4/s72-c/clip_image002%5B7%5D.jpg?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2011/02/blog-post_20.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2011/02/blog-post_20.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content