शादी के चंद वर्षों के बाद सम्बंधों में अक्सर एक ठंडापन आ जाता है। प्रारंभिक उष्मा चुक जाती है और घेर लेती है एक उदासी।
उदासीनता याने घर के नाम पर छत, दीवारें और संवादहीनता। यदा-कदा कुछ आवश्यक शब्दों का उच्चारण और एक दूसरे को आहत, निराश और व्याकुल करने के लिए मौके की तलाश। दोनों में से कोई भी यह सोचने को तैयार नहीं कि कौन किससे विमुख है? गलती किसकी है और पहल कौन करे? एक-दूसरे पर आघात करना, जवाब में प्रत्याघात करना और एक ऐसी लड़ाई जिसका कोई अंत नहीं। सच पूछो तो सम्बंधों की उदासीनता एक अमरबेल की तरह घर और घरवालों के अमन चैन को नष्ट कर देती है। बच रहता है बस एक ठण्डापन। बर्फ के मानिंद शांति। एक-दूसरे से विरक्ति और अस्वीकृति। परिणाम। भयंकर तलाक या बाहरी दुनिया में तलाश और भटकती आत्माओं का यह सिलसिला कभी नहीं थमता। पर पुरुष या परस्त्री के साए तले शांति की तलाश और ज्यादा कष्टप्रद। फिर क्या करें? अच्छा है कि कुछ कह-सुन लें। खुल कर बात कर लें। झगड़ा कर लें। और पारिवारिक जीवन के विष को पी जाएँ। याद रखें। सुख देने में अधिक है पाने में बहुत कम। सुख दें। प्रतिकार की इच्छा न रखें। शायद आपकी बगिया फिर महक उठे। सम्बंधों की खुशबू फिर आए। कोशिश करें। वास्तव में उदासीनता का प्रमुख कारण है विमुखता। और विमुखता का कारण है एकरसता व अनिवार्यता। एकरसता पति और पत्नी दोनों के जीवन में धीरें-धीरें प्रवेश करती है और यहीं से एक न मरने वाली उदासीनता जन्म लेती है। रुटीन, अतिपरिचय और देहधर्मिता के बावजूद सब कुछ रेत का महल हो जाता है। बाहरी दुनिया से जुड़ा पुरुष घर की दुनिया की स्थिति और चुनौतियों को समझने में असमर्थ होता है। स्त्री कटु और दुखी हो जाती है। पुरुष पलायनवादी हो जाता है और परिणाम-उदासी।
लेकिन यदि स्त्री घर के बाहर भी कुछ करती है, मसलन कामकाजी औरतें तो संदेह की सुई सबसे कठोर होकर घूमती है और माँग की तलाश में भटकता पुरुष विकल्पों की ओर बरबस चल पड़ता है।
आपसी मनमुटाव के कारण छोटी-मोटी बातें होती है। स्त्री का विवाह पूर्व का परिवेश भिन्न होता है, पुरुष तो उसी परिवार का अंग होता है। स्त्री बड़ी जल्दी स्वयं को ढाल लेती है मगर धीरे-धीरे उसे लगता है कि स्थितियाँ उसके अनुकूल नहीं और वो घर-परिवार से विलग होने की कोशिश में प्रथमतः उदासी को ओढ़ लेती है। यह ओढ़ी हुई उदासी ही धीरे-धीरे सम्बंधों में कटुता और खिंचाव पैदा करती है। यदि स्त्री ज्यादा ही कटु है तो बाहरी दुनिया की ओर रुख कर लेती हैं। पुरुष पहले से ही बाहरी दुनिया में रम चुका हेाता है।
उदासीन पति के साथ सम्बंधों को सुधारने में महिलाओं को पहल करनी चाहिए और अक्सर ऐसा होता भी है, मगर पुरुष अहं के चलते इसे स्वीकार नहीं करता। महिलाएँ आत्म विश्लेषण, त्याग, सहनशीलता और क्षमा के सहारे फिर कोशिश करती है। अक्सर एक प्यारी, मोहक मुस्कान या कृतज्ञता के दो शब्द या प्रशंसा के चंद वाक्य आपके पारिवारिक जीवन की सुख शांति को वापस ला सकते हैं। जरा कोशिश करके देखिए।
कटुता का विष पी जाइए। सब ठीक हो तो आर्थिक विवशता, सामाजिक जिम्मेंदारियाँ, घर-बार से अलग हटकर केवल अपने सम्बंधों पर विचार करें। यदाकदा कभी कदा केवल पत्नी की मान लेना सुखकर होता है जनाब।
पारिवारिक उदासीनता पैदा करने के बहाने मत ढूँढिए। जीवन जीने के लिए सहारे ढूँढिए। ये सहारे ही आपको संबल देंगे। छोटी मोटी बातों या भूलों को बजाय खींचने के दफन कर दें। और हां एक बात गाँठ बाँध लीजिए कि घर की देहरी लाँघने से पहले समझौता अवश्य कर लें। कुछ दीजिए। कुछ देने से सुख शांति मिलेगी और उदासीनता और विमुखता अंधेरे की तरह भाग जाएगी। दाम्पत्य सम्बधों की प्रगाढ़ता को बनाए रखने के लिए हरचंद कोशिश करें। भावनात्मक सामंजस्य का अभाव नहीं होना चाहिए। एक-दूसरे को समझने की पूरी कोशिश का ही दूसरा नाम जिंदगी है।
मानसिक और शारीरिक साहचर्य की कमी नहीं होने दें। जुड़ें और जुड़ाव के लिए समर्पण त्याग, समझौता करें।
पति-पत्नी की उदासी को आप चाहें तो फूलों की खुशबू और मुस्कानों के समंदर में डुबा सकते हैं।
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यशवन्त कोठारी 86, लक्ष्मी नगर, ब्रह्मपुरी बाहर, जयपुर-302002फोनः-2670596 e_mail: ykkothari3@yahoo.com
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