रामवृक्ष सिंह का अंडमान यात्रा संस्मरण - क़ैदियों के बच्चे

SHARE:

यात्रा-वृत्तान्त क़ैदियों के बच्चे कोलकाता से उड़ान भरे दो घंटे होनेवाले हैं। हम टकटकी लगाए खिड़की से बाहर देख रहे हैं। दूर-दूर तक फ...



यात्रा-वृत्तान्त

क़ैदियों के बच्चे

कोलकाता से उड़ान भरे दो घंटे होनेवाले हैं। हम टकटकी लगाए खिड़की से बाहर देख रहे हैं। दूर-दूर तक फैले समुद्र का स्थान अब हरियाली से आच्छादित टापुओं ने ले लिया है। छोटे-बड़े कई टापू और सब पर श्यामल हरीतिमा का साम्राज्य। विमान धीरे-धीरे नीचे आ रहा है और उसी अनुपात में हमारा कौतूहल बढ़ रहा है। पूरे दो घंटे की उड़ान के बाद अंडमान के पोर्ट ब्लेयर शहर में वीर सावरकर अंतरराष्ट्रीय विमानपत्तन पर अपना विमान उतरता है। जमीन पर पैर रखने से पहले उसे चूमने का मन करता है, माथे पर काला पानी की मिट्टी से तिलक करने की लालसा होती है। मैं माथा नवाकर उन असंख्य स्वतंत्रता-सेनानियों को नमन करता हूँ जिन्होंने बरसों घोर अमानवीय यातनाएं सहीं, लेकिन हिन्दुस्तान की आजादी के सपने को कभी अपनी आँखों से ओझल नहीं होने दिया। हवाई अड्डे पर बहती शीतल हवाएं जैसे उन पूर्वजों के आशीर्वाद-सी हर सैलानी को अपने अंकवार में लेकर लाड़ जताती हैं। सैलानियों के कैमरों की क्लिक-क्लिक आरंभ हो गई है। बगल में खड़ा सीआईएसएफ का जवान बरज रहा है, लेकिन सैलानियों के मन में इस तीर्थ-तुल्य माटी के लिए जो श्रद्धा है, वह तमाम वर्जनाओं को तोड़ देना चाहती है। लगता है कि जवान को भी इसका अहसास है।

 
छोटा-सा हवाई अड्डा और उसी के अनुपात में थोड़ी-थोड़ी सारी सुविधाएं। बड़ा है तो बस यह अहसास कि हम उस कुख्यात काला पानी में हैं, जिसे अंग्रेजों ने प्रायः हर हिन्दुस्तानी के लिए घोर यातना और कठोर कारावास का पर्याय बना दिया। सच कहें तो यहाँ की फिज़ाओं में माँ प्रकृति का कोमल स्पर्श है, और यहाँ के लोगों में गजब का स्वागत-भाव है। इसका अहसास बार-बार होता है और हर बार यह सुन्दर अहसास मन को भिगो जाता है। सामान समेटकर बाहर निकले तो टूर ऑपरेटर की मुहैया कराई हुई टैक्सी तैयार मिलती है। जरा सी चढ़ाईदार सड़क पार कर हरियाली से गुजरते हुए टैक्सी निकल पड़ती है हमारे होटल की ओर। प्रकृति ने इस द्वीप-समूह को अपार सुन्दरता से नवाजा है। देश की माटी ने अपने सपूतों को जैसे जी खोलकर आशीष दिया है। ढेरों जानी-अनजानी वनस्पतियाँ। अपना परिचय है केवल तीन से-नारियल, आम और सुपारी। इन वृक्षों से पूरा शहर गुलजार है। अब समझ आता है कि इन तीनों फलों का हमारे सांस्कृतिक जीवन से इतना गहरा संबंध क्यों है। कुल मिलाकर बड़ी ही मनोरम दृश्यावली है। मुश्किल से दो-ढाई किलोमीटर चले कि होटल आ गया। तिमंजिली बिल्डिंग- बेहद साफ-सुथरी और व्यवस्थित। उससे भी कहीं अधिक व्यवस्थित और साफ-सुधरे कमरे। उत्सुकतावश खिड़की के ब्लाइंड्स हटाए तो सुपारी और नारियल के ऊँचे-ऊँचे पेड़ दिख गए- फलों से लदे पेड़। जनवरी महीने में ही आम के फल पकने को हो आए हैं। मन खुश हो गया। जल्दी करें, बहुत कुछ देखना है। एक हम हैं जो काला पानी का सौन्दर्य निरखने की हड़बड़ी में हैं। एक वे अभागे लोग थे, जिन्होंने अपनी पूरी जवानी और बुढ़ापा इन टापुओं पर सजा काटते हुए बिता दिया। अपने रिश्ते-नातेदारों से दूर। चाहकर भी जो कभी यहाँ से वापस अपने गाँव-देस नहीं जा पाए।

 
कमरे में सामान रखा, जूते खोले, बीच पर नहाने के कपड़े और तौलिए लिए, कैमरा उठाया और चल दिए। बाहर टैक्सी खड़ी मिली। होटल से बमुश्किल दो किलोमीटर की दूरी पर है छिछला समुद्र-तट। अंडमान का पानी बिलकुल साफ और पारदर्शी है। मेन-लैंड से आए हम सैलानी बड़े विस्मय भाव से इसके साफ-निर्मल तटों को देखते रह जाते हैं। खूब जी-भर नहाए। लहरों ने हमसे अठखेलियाँ कीं और कानों में कुछ कहा। लगा जैसे ये लहरें हमें दुलरा रही हैं, पुचकार रही हैं और भारत की आजादी के लिए जान न्यौछावर करनेवाले स्वतंत्रता-सेनानियों का बरसों से संचित प्यार हम पर निछावर कर रही हैं। मन नहीं भरा, लेकिन आगे अभी बहुत कुछ देखना बाकी था।


सेल्यूलर जेल का निर्माण अक्तूबर 1896 में आरंभ हुआ और 1906 में पूरा हुआ। इसके निर्माण पर लगभग 5,17,352 रुपये खर्च हुए। इसमें साढ़े तेरह गुणा साढ़े सात फुट की 698 कोठरियाँ थीं, जिनमें आजादी के दीवानों को कैद करके रखा जाता था। कोठरियों यानी सेलों की बहुलता के कारण ही इसका नाम सेल्यूलर जेल पड़ाय़ 11 फरवरी 1978 को तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री मोरारजी देसाई ने इसे आज़ादी के अमर शहीदों के नाम समर्पित किया।
 
टैक्सी में बैठे और चल दिए सेल्यूलर जेल की ओर। किताबों में पढ़ा था, लोगों के मुख से सुना था, आज साक्षात दर्शन कर रहे हैं। हम कितने भाग्यशाली हैं! देश के कितने लोगों को यह नज़ारा मयस्सर हुआ है! सेल्यूलर जेल की ऊँची-ऊँची दीवारें। हल्के क्रीम रंग में पुती हैं। टिकट कुछ खास महँगा नहीं। कैमरा ले जाना हो तो टिकट ले लें और जी भर फोटो खींचें। फाटक से घुसते ही एक बड़ी दीर्घा में सैकड़ों स्वतंत्रता सेनानियों की चित्र-प्रदर्शनी लगी है। मन ही मन सबको पुनः नमन किया। भारत के हर प्रांत के लोग हैं। पंजाबी, बंगाली, मराठी, हिन्दी-भाषी प्रान्त। यहाँ के मूल निवासी नहीं, बस मेन लैंड से लाए गए लोग। चित्र-वीथिका से बाहर निकले तो सामने जेल की तिमंजिला इमारत नजर आई।

सेल्यूलर जेल का नक्शा किसी मोटर साइकिल के अलॉय व्हील जैसा है, जिसमें बाहरी रिम गायब है और तीलियों की जगह सात इमारतों ने ले ली है। हर इमारत तीन मंजिल की। ये सब इमारतें जिस धुरी पर मिलती हैं वहाँ, सातों इमारतों के मिलन-बिन्दु पर एक ऊँचा वॉच टावर बना है, जहाँ से जेल के हर विंग पर निगाह रखी जा सकती है। सात खंडों के मिलन-बिन्दु पर खड़े इस वॉच टावर में निचले तल्ले पर सेल्यूलर जेल का मॉडल रखा है। लगता है कि वास्तुकार ने इस इमारत को किसी नारियल के पेड़ की शक्ल में डिजाइन किया होगा। सबसे लंबी भुजा नारियल का तना है और शेष छह भुजाएं पत्तियाँ। इस समय तीन भुजाएं ही साबुत बची हैं, जिनमें से सबसे लंबी भुजा की तीनों मंजिलें दर्शनार्थियों के लिए खुली हैं। इमारत में साढ़े तेरह गुना साढ़े सात फुट की कोठरियाँ एक लाइन से बनी हैं। सबके फाटक एक गलियारे में खुलते हैं। कोठरी के पिछले हिस्से में खूब ऊंचाई पर बिलकुल छोटा सा एक झरोखा है, जिससे बस साँस लेने भर की हवा आ सकती है। इन गलियारों से गुजरते हुए अजीब सी हूक कलेजे में उठती है। कभी इन्हीं गलियारों से होते हुए देश की आजादी के दीवाने गुजरते रहे होंगे। उनके हाथों में हथकड़ियाँ और गरदन से लेकर पाँव तक खन-खन बोलती बेड़ियाँ भी उन्हें वंदे मातरम का जयकारा लगाने से रोक न पाती रही होंगी। कभी इन्हीं गलियारों में जालिम अंग्रेजों की गश्त लगती रही होगी। आज ये गलियारे किसी पवित्र मंदिर के प्रांगण जैसे लगते हैं और ये कोठरियाँ भारत के तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं के मंदिरों जैसी पूज्य हो गई हैं। तीसरी मंजिल की सबसे आखिरी कोठरी में अमर स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर रहे थे।

 
मन हुआ कि हर कोठरी में जाएँ। जहाँ हमारे पुरखे स्वतंत्रता सेनानियों ने कारावास की सजाएं काटीं, वहाँ कुछ पल बिताकर देखें। लेकिन उससे पहले हमें देखने को मिला- तेल निकालने का कारखाना और फाँसीघर। अंडमान में चारों ओर नारियल ही नारियल हैं। काला पानी के कैदियों को नारियल तेल निकालने का काम दिया जाता था। पहले सूखे नारियल की जटा छीलो, फिर उसे फोड़कर गरी निकालो और कोल्हू में पेरो। बैलों का काम कैदी करते। यदि निश्चित मात्रा में तेल नहीं निकाल पाए तो लकड़ी के एक फ्रेम पर पेट के बल बाँध दिया जाता और नंगी पीठ पर चाबुक पड़ते। अक्सर ही कैदियों को इस यातना-चक्र से गुजरना पड़ता। बगल में ही है फाँसीघर। कहते हैं कि काला पानी में बहुत कम लोगों को फाँसी लगी। सैलानी इस फाँसी घर के निचले हिस्से में, यानी तखते के नीचे उतरकर अनुभव कर सकते हैं कि फाँसी पाए कैदी का शरीर कितनी गहराई में लटक जाता रहा होगा। फाँसी घर के बगल में ही है सेल्यूलर जेल का सबसे बड़ा विंग जो अपनी पुरानी अवस्था में आज भी विद्यमान है और दर्शकों के लिए खुला है। इस तीन मंजिला इमारत के भूतल की पहली तीन कोठरियाँ फाँसी की सजा पाए कैदियों के लिए रिजर्व थीं। कोठरियों के दरवाजे लोहे की मोटी सींखचों से बने हैं। दरवाजों पर कुंडा चढ़ाने और ताला लगाने की व्यवस्था दीवार में बने एक आले में है। अंदर बंद कैदी का हाथ इन कुंडों तक नहीं पहुँच सकता।

 
आम तौर पर जेलों में कई-कई कैदी बड़े-बड़े वार्डों में रखे जाते हैं। किन्तु सेल्यूलर जेल में हर कैदी के लिए एक कमरा था। किसी दूसरे इन्सान को देखना तो दूर उसकी आवाज सुनने को आदमी तरस जाए। सुनाई देती थीं तो बस परिन्दों की आवाजें, हवा की सायं-सायं, नारियल और सुपारी के पत्तों की सरसराहट और यातना-गृह में सटाक-सटाक बरसते कोड़ों के साथ मातृ-भूमि के वीर सपूतों की उधड़ती चमड़ी के साथ निकलती आर्त चीखें और वंदे मातरम् के निर्भीक उद्घोष। हमारे पूज्य स्वतंत्रता सेनानियों ने उमस और अंधकार से भरी इन कोठरियों में अपनी जिन्दगी के स्वर्णिम दिन बिताए। अपराध क्या था उनका? मातृभूमित से प्रेम ? अनाचार का विरोध ? या अपने देश पर अनधिकृत रूप से काबिज विदेशियों के खिलाफ बगावत? देश-प्रेम की ऐसी सजा! सोचकर कलेजा मुँह को आता है। वीर सावरकर की कोठरी में खड़े ही हुए कि मुंबई के दस-बारह सैलानियों का एक दल पहुँच गया। इन अधेड़ स्त्री-पुरुषों ने सावरकर की ही रची कोई पद्य-रचना समवेत स्वरों में गाकर अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित किए। सबने मिलकर वंदे मातरम का नारा लगाया। हम भी उसमें शामिल हुए। कहते हैं कि इस जेल में वीर सावरकर के गले में जो तख्ती लटकाई गई थी, उस पर लिखा था- सन् 1910 में सजा दी गई, सन 1960 में रिहाई होगी। इस पर सावरकर कहते थे कि क्या अंग्रेज सरकार भारत में 50 साल तक टिक पाएगी? जेल में मिलने आई अपनी उन्नीस वर्षीया पत्नी से सावरकर ने कहा था- अगर बेटे-बेटियों की संख्या बढ़ाना और घर बसाना ही संसार कहलाता है, तो ऐसा संसार तो चिड़िया भी बसाती है। लेकिन अगर परिवार का अर्थ मानव परिवार हो, तो उसे सजाने में तो हम सफल हुए ही हैं। माना कि अपना सुखी जीवन हमने अपने हाथों ही ध्वस्त कर डाला, पर भविष्य में हजारों घरों में सुख की वर्षा होगी। क्या तब हमें अपना बलिदान सार्थक नहीं लगेगा?

 
ऐसी उत्कट देश-भक्ति का जज्बा रखनेवाले वीर सावरकर की इस कठिन तपोभूमि के दर्शन हुए। अहा, हम कितने सौभाग्यशाली हैं!

 
वॉच टावर में बनी सीढ़ियों के रास्ते हम सेल्यूलर जेल की छत पर चले गए। सात में से तीन ही विंग खड़े हैं। शेष का पता नहीं। पिछवाड़े वाले हिस्से में कुछ और इमारतें बन गई हैं, जिनमें संभवत सरकारी विभाग चलते हैं। जहाँ तक नजर जाती है, हरियाली से घिरे टापू ही टापू दिखते हैं। बीच-बीच में समुद्र। जेल के जिस हिस्से में इमारत नहीं है, वहाँ अन्य वनस्पतियों के साथ-साथ सुपारी के ऊंचे-ऊंचे पेड़ खड़े हैं पके हुए फलों से लदरे पुंगी फल। यहाँ से निकलने का मन नहीं करता, किन्तु प्रहरी को ताला लगाने की जल्दी है। पाँच बजे जेल के फाटक बंद हो जाएंगे। परिसर खाली करने में सबसे अधिक शिथिलता दिखाते हैं नव-विवाहित जोड़े। इनकी यहाँ भरमार है। हनी-मून मनाने के लिए सबसे पसंदीदा गंतव्यों में से एक है पोर्ट ब्लेयर!!

 
अमर शहीदों को मन ही मन अनंत नमन करते हुए हम वॉच टावर के सबसे निचले तल पर उतर आते हैं। यहाँ दीवारों में विभिन्न क्रांतिकारियों द्वारा रचित बड़ी ही भावपूर्ण काव्य-पंक्तियाँ प्रदर्शित हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-

 
नाम जिंदों में लिखा जाएंगे मरते-मरते/ लाज भारत की बचा जाएंगे मरते-मरते

जान पर खेल जाएंगे हम अगर तो भी/ सैकड़ों को भी जिला जाएंगे मरते-मरते

रूहो-तन होंगे जुदा, उनको तो होना ही है /हम तो बिछुड़ों को मिला जाएंगे मरते-मरते

रामप्रसाद बिस्मिल

 
मेरा मजहब हकपरस्ती है/ मेरी मिल्लत कौम परस्ती है

मेरी इबादत मुल्क परस्ती है/ मेरी अदालत मेरा अंतःकरण है

मेरा मंदिर मेरा दिल है और/ मेरी उमंगें सदा जवान हैं

लाला लाजपत राय

 
वतन के फूलों की संगंध हैं वे /स्वतंत्रता की पूजा के पुष्प हैं वे

वीरगति पाकर धन्य हैं वे/ उन्हें युगों का प्रणाम बोलो

उन्हें हमारा सलाम बोलो

कृष्ण मित्र

 
देखो मृत्यु निमंत्रण उसके द्वार आया /अत्याचारी से आगे बढ़ जो पहले टकराया

बन्द हो गया मेरा भी आज भाग्य का द्वार

लेकिन कहो बिना बलि पाई किसने आजादी उपहार

शहीद महावीर सिंह

 
जेल परिसर में प्रशासनिक भवन के एक ओर शहीदों की स्मृति में एक ज्योति जलती रहती है। हम उसके आगे खड़े होकर अपने परिवार के साथ फोटो खिंचाते हैं। पता नहीं अब फिर कब यहाँ आना हो, या क्या पता अब कभी भी इस पुण्य भूमि के दर्शन न हो पाएँ!

 
किन्तु फिलहाल तो ऐसा नहीं है। थोड़ी ही देर में यहाँ ध्वनि और प्रकाश (लाइट एंड साउड शो) होगा। जेल से बाहर निकले और खूब बड़े, पानीदार नारियलों के शीतल, मधुर जल से अपनी प्यास बुझाई। टूर ऑपरेटर ने पहले ही हमारी टिकट खरीद रखी है। हम पुनः जेल के प्रांगण में हैं। बैठने के लिए सामने खुली रंगशाला जैसी व्यवस्था है, जिसपर दर्शकों के बैठने के लिए प्लास्टिक की सैकड़ों कुर्सियाँ बिछी हैं। उनके सामने एक मंच बना है, जिसपर काठ की एक मजबूत चमचमाती कुर्सी रख दी गई है। लकड़ी का आदमकद फ्रेम किसी कलाकार के आइजल की तरल तिरछी मुद्रा में खड़ा है, जिसपर एक मजबूत काठी वाले युवक का पुतला पेट के बल बँधा हुआ है। कुर्सी पर आकर अंग्रेज अफसर बैठ जाता था और उसके आदेश पर लकड़ी की काठी पर कसे युवक की पीठ पर कोड़े बरसाए जाते। अपराध? उस गरीब ने अपनी बीमारी और शारीरिक अक्षमता के चलते निर्धारित मात्रा में तेल नहीं पेरा या दिया गया पूरा अनाज चक्की में नहीं पीस पाया।

 
झुटपुटा होते ही दृश्य-श्रव्य शो आरंभ हो जाता है। हमारी बाईं ओर खड़ा पीपल का पुराना पेड़ बोलने लगता है। यह पेड़ सेल्यूलर जेल के निर्माण से लेकर अब तक के हर क्षण का साक्षी है, जैसे जेल में सजा पाए हर क्रांतिकारी की आत्मा इस पेड़ पर वास करती है। इस जेल की सारी कोठरियाँ, सारे गलियारे, सारी दीवारें, सारी ईंटें, सींखचों लगे सारे दरवाजे, आदमजात की पहुँच से बहुत ऊपर कसे, कोठरियों के छोटे-छोटे झरोखे, फाँसीघर का जर्रा-जर्रा, तेल निकालने का कारखाना और कोल्हू, मिट्टी का चप्पा, धरती, आकाश और हवाएं- सब कुछ जैसे जीवन्त हो जाते हैं। क्रान्तिकारियों की आर्त चीखों से जेल का जर्रा-जर्रा काँपने लगता है। पीपल दादा अपने सामने घटित हर घटना रेशा-रेशा बयान कर रहे हैं। दर्शक स्तब्धतापूर्वक सुन रहे है, आजादी हासिल करने के लिए दी गई हर कुर्बानी का साक्षात्कार कर रहे हैं। इतना जुल्म, इतना अत्याचार, ऐसी घृणा, ऐसी बर्बरता! अपने आपको दुनिया की सबसे समुन्नत, सभ्य और न्यायप्रिय कौम कहलाने का दंभ पालनेवाले अंग्रेजों का यह गंदा, घिनौना रूप देखकर क्षण भर के लिए मन न जाने कैसा-कैसा हो आया।

 
शो खत्म हुआ। भारी मन से सब लोग बाहर आए। बाहर अभी बहुत भीड़ जुटी है। एक शो अभी और होगा। इतिहास अपने आप को फिर दोहराएगा। दोहराना ही चाहिए, ताकि सनद रहे कि अपने स्वत्व को बर्बर ताकतों के हाथ खो देने के बाद उसे हासिल करने के लिए क्या-क्या पापड़ बेलने पड़ते हैं, ताकि याद रहे कि हर कीमत पर, बड़ी से बड़ी कुर्बानी देकर भी अपनी माटी की रक्षा करना कितना जरूरी है।... टैक्सी में बैठकर होटल की ओर चल दिए। अभी परिवार यहाँ कुछ दिन रुकेगा। लगभग पाँच सौ द्वीपों वाले अंडमान-निकोबार में प्रकृति के कितने ही सुन्दर और दर्शनीय नज़ारे हैं। लेकिन अपना उद्देश्य तो पूरा हो गया। सेल्यूलर जेल की रज ले ली तो समझिए इन्सान का यह चोला धन्य हो गया। जैसे भरतभूमि का सबसे बड़ा तीर्थ कर लिया। अब यहाँ देखने को क्या है!

 
केवल सौजन्यवश हमने टैक्सी-चालक युवक से पूछ लिया- भइया, आप यहीं के मूल निवासी हैं क्या?

 
हाँ साहब, हम कैदियों के बच्चे हैं। उसका बड़ा ही सरल-सा उत्तर था। मैं चौंका। उसका उत्तर सुनकर मुझे धक्का लगा। बात-बात पर अपने त्याग और देशभक्ति का बखान करके मिट्टी से कर्ज वसूलने पर आमादा करोड़ों मेनलैंड वासियों के बिलकुल विपरीत इस सरल हृदय युवक ने यह क्या कह दिया! क्या काला पानी की सजा काटने वाले हमारे पूर्वज सामान्य कैदी थे? नहीं-नहीं। उन्हें आम कैदी मत कहो। वे हमारे देवता थे, वे ऋषि दधीचि की परंपरा के महामानव थे, जिन्होंने अपने देशवासियों के सुखद भविष्य की कामना में अपने वर्तमान को ले जाकर कठिन कारा में बंद कर दिया, अंग्रेजों के कोड़े खाए, भूखे-प्यासे रहे और फिर भी वंदे मातरम के नारे लगाते रहे। निरीह पशु की तरह जिनको अंग्रेजों ने फाँसी चढ़ाकर मौत के घाट उतार दिया, उनका दोष केवल इतना था कि वे अपने वतन को अपनी जान से भी अधिक प्यार करते थे।

 
मैंने उसके इस कथन पर आपत्ति जताई- अरे ऐसा न कहो, भाई। अपने पूर्वजों को साधारण कैदी न कहो। उनको स्वतंत्रता सेनानी कहो, आजादी के सिपाही कहो, भारत माता के सच्चे सपूत कहो। चाहे जो कहो, किन्तु सामान्य कैदी कहकर उनके कर्तृत्व और इतने महान त्याग का अपमान न करो।

 
काला पानी की पावन माटी को माथे से लगा अगले दिन मैं वापस चला आया। लेकिन मेरा मन अब भी वहीं है, क्योंकि वहाँ के कण-कण में हमारे महान देश-सेवी पूर्वजों के यातनामय जीवन का स्पन्दन है। ऐसा जीवन जो पल-पल मृणमान्य होकर भी हर क्षण, अनुक्षण जीजिविषा का संदेश देता है, ऐसा जीवन जो अहर्निश जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी का आख्यापन करता है।

 
---0---

काला पानी-संक्षिप्त परिचय

गहरे समुद्र के बीच टापुओं पर स्थित होने के कारण अंडमान निकोबार स्थित इस कारागार का नाम काला पानी पड़ा। हालांकि सेल्यूलर जेल का निर्माण 1906 में पूरा हुआ, किन्तु सन् 1857 की क्रांति के विफल होने के बाद से ही अंग्रेजों ने हजारों की संख्या में स्वतंत्रता सेनानियों को देश-निकाला देकर यहाँ भेजना शुरू कर दिया था। सबसे पहले 200 क्रांतिकारियों को जेलर डेविड बेरी और मेजर जेम्स पैटीसन वॉकर की देख-रेख में यहाँ भेजा गया। मेजर वॉकर सेना का डॉक्टर था जो इससे पहले आगरा जेल में काम कर चुका था। अप्रैल 1868 में कराची से 733 कैदी और लाए गए। धीरे-धीरे भारत और बर्मा से लाए गए कैदियों की संख्या बढ़ती गई। मुगल शाही खानदान के कुछ लोगों और सन् 57 में बहादुर शाह जफर को बादशाह मानकर उनकी हुकूमत स्वीकारने वाले बहुत से लोगों को जलावतन कर इन टापुओं पर ला छोड़ा गया। मार्च 1868 में 238 कैदियों ने यहाँ से भागने की कोशिश की। अप्रैल तक उन सभी को पकड़ लिया गय़ा। उनमें से एक ने आत्म हत्या कर ली, जबकि 87 को सुपरिंटेंडेंट वॉकर ने फाँसी चढ़वा दिया।

 
इन्हीं कैदियों से मजदूरी कराकर अंग्रेजों ने कुछ शुरुआती इमारतें बनवाईं, जिनके भग्नावशेष विभिन्न द्वीपों पर आज भी मिलते हैं। उन्नीसवीं सदी का अंत होते-होते अंडमान-निकोबार में कैदियों की संख्या बढ़ने लगी और अंग्रेजों की राय में उनको खुले में छोड़ना निरापद नहीं रह गया। इसी के मद्देनज़र 1896 में सेल्यूलर जेल का निर्माण आरंभ हुआ, जिसके लिए पोर्ट ब्लेयर में एक छोटी पहाड़ी को चुना गया। पहाड़ी की चोटी को काटने पर जो मलबा निकला उसका इस्तेमाल आस-पास के निचले भू-भाग को समतल बनाने में हुआ। भवन बनाने के लिए ईंटें बर्मा से मँगाई गईं, जो उन दिनों अंग्रेजों के अधीन था। इमारत में सात विंग थे जो मध्य में एक-दूसरे से जुड़े थे। इस मिलन बिन्दु पर एक वॉच टावर बना है। वॉच टावर में एक बड़ा घंटा लगा है, ताकि जरूरत पड़ने पर उसे बजाकर सबको आगाह किया जा सके। जेल में 698 कोठरियाँ थीं, जिनमें एक-एक कैदी को रखा जाता था।

 
क्रांतिकारियों और राजनीतिक कैदियों को एक-दूसरे से अलग रखने के लिए अंग्रेजों ने उनको अलग-अलग कोठरी में बंद करने का यह तरीका निकाला था। काला पानी की सजा काटने वाले कैदियों की फेहरिश्त लंबी है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं- डॉ. दीवान सिंह कालेपानी, मौलाना फज्ल ए हक खैराबादी, योगेन्द्र शुक्ल, बटुकेश्वर दत्त, मौलाना अहमदुल्ला, मौलवी अब्दुल रहीम सादिकपुरी, बाबाराव सावरकर, विनायक दामोदर सावरकर, भाई परमानंद, वी.ओ. चिदंबरम पिल्लै, सुब्रमणियन शिवा, सोहन सिंह, वामन राव जोशी और नंद गोपाल। अलीपुर केस में सजायाफ्ता कई क्रांतिकारी भी यहाँ कैद थे, जैसे बरीन्द्र कुमार घोष, उपेन्द्र नाथ बनर्जी, बीरेन्द्र चन्द्र सेन और जतीश चन्द्र पाल।

 
काला पानी की सजा के दौरान देश प्रेमियों को घोर यातना सहनी पड़ती थी। खाने को मिलती मिट्टी-पत्थर मिले आटे से बनी किरकिराती रोटियाँ और कंकड़ मिली दाल और पीने को गंदा पानी। तिस पर चक्की और कोल्हू चलाकर इन्सान की औकात से कहीं अधिक मात्रा में आटा पीसने अथवा तेल पेरने की सजा। राजनीतिक कैदियों के साथ चोरी-डकैती की सजा पाए अपराधियों जैसा व्यवहार किया जाता था। इस अमानवयीता की ओर देश का ध्यान दिलाने के लिए यहाँ के कैदियों ने कई बार हड़तालें कीं। 1930 के दशक में हुई ऐसी हड़तालों के बाद महात्मा गाँधी और रवीन्द्रनाथ ठाकुर जैसे बड़े नेताओं ने भी इस बारे में अपने असंतोष से अंग्रेजी हुकूमत को अवगत कराया। इसका परिणाम यह हुआ कि 1937-38 में अंग्रेज सरकार ने राजनीतिक कैदियों को कालापानी से भारत लाने का फैसला किया।

 
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों को अंडमान द्वीप समूह से बाहर खदेड़ने के लिए जापान ने यहाँ आक्रमण कर दिया। आजाद हिंद फौज के सिपाहियों के साथ नेताजी श्री सुभाष चन्द्र बोस भी उस समय इन द्वीपों पर रहे। जापानी कब्जे के दौरान सेल्यूलर जेल के सात में से दो विंग गिरा डाले गए। अंततः 1945 में विश्वयुद्ध समाप्त होने पर अंग्रेजों ने पुनः इन द्वीपों को अपने कब्जे में ले लिया।

 
भारत के आजाद होने और अंग्रेजों के चले जाने के बाद सेल्यूलर जेल के दो और विंग किरा दिए गए। हालांकि कुछ राजनेताओं और सेल्यूलर जेल की सजा काट कर आए कुछ सेनानियों ने इसका पुरजोर विरोध भी किया। शेष तीन विंग आज भी अपनी पुरानी अवस्था में विद्यमान हैं, जिन्हें 1969 में राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया। इनमें से एक विंग दर्शनार्थियों के लिए खुला है।

 
---0---

अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह

आदिवासी जनसंख्या (2001 जनगणना)

शॉम्पेन- 398

निकोबारी 28653

ओंग- 98

जरावा- 248

ग्रेट अंडमानी 43

सेंटिनेली- 39

राष्ट्रीय पार्क -9

वन्यपशु अभयारण्य- 96

जैवीय पार्क- 1

जैवमंडल रिजर्व- 1

राज्य पशु- डुगौंग

राज्य पक्षी- अंडमान वुड पिजन

राज्य वृक्ष- अंडमान पडौक

---

डॉ. रामवृक्ष सिंह

COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. pad ke bahut hi sundar laga , vakey may

    जवाब देंहटाएं
  2. पढ़ कर लगा कि अंडमान की ,खाशकर cellular जेल की
    यात्रा कर रहा हूँ.देशभक्तों के बच्चों में इतनी हीनभावना
    देखकर मन विदीर्ण हो गया,जबकि आज के नालायक नेताओं
    के बच्चे इतने अहंकार में रहते है.

    --

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: रामवृक्ष सिंह का अंडमान यात्रा संस्मरण - क़ैदियों के बच्चे
रामवृक्ष सिंह का अंडमान यात्रा संस्मरण - क़ैदियों के बच्चे
http://4.bp.blogspot.com/-ZTggDC5XN9w/Th6NbVL9CJI/AAAAAAAAKYI/d5QgZ_0UttU/s1600/andman+cellular+jail.jpg
http://4.bp.blogspot.com/-ZTggDC5XN9w/Th6NbVL9CJI/AAAAAAAAKYI/d5QgZ_0UttU/s72-c/andman+cellular+jail.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2011/07/blog-post_14.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2011/07/blog-post_14.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content