प्रमोद भार्गव का आलेख - शीर्ष न्‍यायालय और गरीबी रेखा

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देश के गरीबी रेखा की खिल्‍ली उड़ाने के साथ योजना आयोग ने सर्वोच्‍च न्‍यायालय की भी खिल्‍ली उड़ाई है। क्‍योंकि इसी न्‍यायालय ने दिशा-निर्देश...

देश के गरीबी रेखा की खिल्‍ली उड़ाने के साथ योजना आयोग ने सर्वोच्‍च न्‍यायालय की भी खिल्‍ली उड़ाई है। क्‍योंकि इसी न्‍यायालय ने दिशा-निर्देश दिए थे कि गरीबी रेखा इस तरह से तय की जाए कि वह यथार्थ के निकट हो। इसके बावजूद आयोग ने देश की शीर्ष न्‍यायालय को भी आईना दिखा दिया। गरीबी के जिन आंकड़ों को अनुचित ठहराते हुए न्‍यायालय ने आयोग को लताड़ा था, आयोग ने आमदनी के उन आंकड़ों को बढ़ाने की बजाए और घटाकर जैसे ईंट का जवाब पत्‍थर से देने की हरकत की है। राष्‍ट्र-बोध और सामाजिक सवालों से जुड़े मुद्‌दों को एक न्‍यायसंगत मुकाम तक पहुंचाने की उम्‍मीद देश की अवाम को सिर्फ सर्वोच्‍च न्‍यायालय से है, किंतु जब न्‍यायालय के हस्‍तक्षेप की भी आयोग हठपूर्वक अवहेलना करने लग जाए तो अच्‍छा है न्‍यायालय ही अपनी मर्यादा में रहकर मुट्‌ठी बंद रखे, जिससे आम आदमी को यह भ्रम तो रहे कि अन्‍याय के विरूद्ध न्‍याय की उम्‍मीद के लिए एक सर्वोच्‍च संस्‍थान वजूद में है ? हालांकि देश की गरीबी नापने के इस हैरतअंगेज पैमाने की फजीहत के बाद सरकार ने इसे फिलहाल खरिज कर दिया है और कोई नया सटीक पैमाना तलाशने का भरोसा जताया है।

गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रहे लोगों की संख्‍या में कमी के सरकार और योजना आयोग के दावों को लगातार नकारे जाने के बावजूद भी हठधर्मिता अपनाई जा रही है। आयोग ने कुछ समय पहले सर्वोच्‍च न्‍यायालय में शपथ-पत्र देकर दावा किया था कि शहरी व्‍यक्‍ति की आमदनी प्रतिदिन 32 रूपए (965 रूपए प्रतिमाह) और ग्रामीण क्षेत्र के रहवासी की आय प्रतिदिन 26 रूपए (781 रूपए प्रतिमाह) होने पर गरीब माना जाएगा। गरीबी का मजाक बनाए जाने वाली इस रेखा को न्‍यायालय ने वास्‍तविकता से दूर होने के कारण गलत ठहराया था और आयोग को नई गरीबी रेखा तय करने का निर्देश दिया था। लेकिन आयोग ने जो नई गरीबी रेखा तय की, उसमें उद्‌दण्‍डता का आचरण बरतते हुए देश के शीर्ष न्‍यायालय के दिशा निर्देशों को भी मजाक का हिस्‍सा बना दिया गया। ऐसा उसने गरीबों की आय का दायरा और घटाकर न्‍यायालय को जता दिया कि आयोग न तो न्‍यायालय के मातहत है और न ही उसके निर्देश मानने के लिए बाध्‍यकारी। इसी अंहकार के चलते आयोग ने गरीबी रेखा की जो नई परिभाषा दी है, उसके अनुसार अब शहरी क्षेत्रों के लिए 29 रूपए प्रतिदिन और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 22 रूपए प्रतिदिन आय की सीमा रेखा में आने वाले लोगों को गरीब माना जाएगा। जबकि आयोग को अदालत की मर्यादा का हरहाल मे ंपालन करना था, जिससे जनता में यह विश्‍वास बना रहे कि वाकई न्‍यायालय सर्वोच्‍च है।

संसद में आयोग की दलील को खारिज करने के बाद सोनिया गांधी की अध्‍यक्षता वाली राष्‍ट्रीय सलाहकर समिति के प्रमुख सदस्‍य एनसी सक्‍सेना ने मुंह खोलते हुए कहा है कि ‘‘सरकार का यह कहना कि गरीबी घटी है, सही नहीं है।'' गरीबी के बहुमुखी मूल्‍यांकन की जरूरत है क्‍योंकि देश की 70 फीसदी आबादी गरीब है। बहुमुखी अथवा बहुस्‍तरीय गरीबी के मूलयांकन से मकसद है कि केवल आहार के आधार पर गरीबी रेखा का निर्धारण न किया जाए। उसमें पोषक आहार, स्‍वच्‍छता, पेयजल, स्‍वास्‍थ्‍य सेवा, शैक्षाणिक सुविधाओं के साथ वस्‍त्र और जूते-चप्‍पल जैसी बुनियादी जरूरतों को भी अनिवार्य बनाया जाए। क्‍योंकि 66 वें घरेलू उपभोक्‍ता खर्च सर्वेक्षण (जिस पर ताजा आंकड़े आधारित हैं) के अलावा 2011 की जनगणना और 2011 के ही राष्‍ट्रीय नमूना सर्वेक्षणों ने यह तो माना है कि देश प्रगति तो कर रहा है, लेकिन अनुपातहीन विषमता के साथ। जहिर है वंचितों के अधिकारों पर लगातार कुठाराघात हो रहा है। दलित, आदिवासी और मुस्‍लिम विभिन्‍न अंचलों में सवर्ण और पिछड़ों की तुलना में बेेहद गरीब हैं। किसान और खेतिहर मजदूर गरीबी से उबर ही नहीं पा रहे हैं। इसी सामाजिक यथार्थ को समझते हुए एशियाई विकास बैंक कि ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि महंगाई इसी तरह से छलांगे लगाती रही तो भारत में तीन करोड़ से ज्‍यादा लोग गरीबी रेखा के नीचे आ जाएंगे।

दरअसल गरीबी के आकलन के जो भी सर्वेक्षण हुए वे उस गलत पद्धति पर चल रहे हैं, जिसे योजना आयोग ने 33 साल पहले अपनाने की भूल की थी। हैरानी इस बात पर भी है कि जातिगत जनगणना भी इसी लीक पर कराई जा रही है। असल में आयोग ने कुटिलता करतते हुए गरीबी रेखा की परिभाषा बदल दी थी। इसे केवल पेट भरने लायक भोजन तक सीमित रखते हुए पोषण के मानकों से तो अलग किया ही गया, भोजन से इतर अन्‍य बुनियादी जरूरतों से भी काट दिया गया था। इसी बिना पर 1979 से भोजन के खर्च को गरीबी रेखा का आधार बनाया गया। जबकि इससे पहले पौष्‍टिक आहार प्रणाली अमल में लाई जा रही थी। इसके चलते 1973-74 में आहारजन्‍य मूल्‍यों का ख्‍याल रखते हुए जो गरीबी रेखा तय की गई थी, उसमें शहरी क्षेत्र में 56 रूपए और ग्रामीण क्षेत्र में 49 रूपए प्रतिदिन आमदनी वाले व्‍यक्‍ति को गरीब माना गया था। इस राशि से 2200 व 2100 किलो कैलोरी पोषक आहार हासिल किया जा सकता था।

लेकिन आगे चलकर आयोग ने इस परिभाषा को भी अनजान कारणों से बदलते हुए इसमें गरीबी रेखा के उपलब्‍ध आंकड़ों को मुद्रास्फीति और मूल्‍य सूचकांक की जटिलता से जोड़ दिया। मसलन गरीबी रेखा के आंकड़ों को मुद्रास्फीति के आधार पर समायोजित करके, मूल्‍य सूचकांक के आधार पर नया आंकड़ा निकाल लिया जाएगा। पिछले 30-35 साल से मूल्‍य सूचकांक आधारित समायोजन की बाजीगरी के चलते गरीबों की आय नापी जा रही है। इसी पैमाने का नतीजा 29 और 22 रूपए प्रतिदिन प्रतिव्‍यक्‍ति आय को गरीबी रेखा का आधार बनाया गया है, जो असंगत और हास्‍यास्‍पद है। देश का दुर्भाग्‍य है कि हमारे योजनाकार विश्‍व बैंक, अंतराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष और उद्योग जगत से निर्देशित हो रहे हैं, इसलिए वे शीर्ष न्‍यायालय की फटकार के बावजूद गरीबी पर पर्दा डालने की अव्‍यावहारिक कोशिशों से बाज नहीं आ रहे। अच्‍छा है न्‍यायालय ही अपनी मर्यादा में रहकर मुट्‌ठी बंद रखे।

प्रमोद भार्गव

शब्‍दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी

शिवपुरी (म.प्र.) पिन 473-551

 

ई-पता ः pramodsvp997@rediffmail.com

ई-पता ः pramod.bhargava15@gmail.com

लेखक प्रिंट और इलेक्‍ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्‍ठ पत्रकार हैं।

COMMENTS

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  1. KULDEEP SINGH JANDU1:41 pm

    Vartmaan main hamare DESH ko trimurtee MANMOHAN SINGH, PARNAW MUKHARJEE, M.S.AHLUWALIYA se ghambheer KHATRAA h kyonki 1992 main MANMOHAN SINGH ne world bank, imf, asin development bank{ADB} k dbaw main GLOBALISATION kee jin policies ko desh k sampuran vikash k naam par laagu keya thaa unke kaaran pichhle 20 saalo main isss desh ka phir VIBHAJAN ho gya h or wo h INDIA or BHARAT k roop main kyonki desh main AMEER or GAREEB k beech kee khaai bahut tejee se badhi h yahan 2011_12 main parti vyakti aay 60972 rupey h but 70% nagreeko k paas ROTI KAPRA MAKAN SHIKSHHA CHIKITSHHA PAANI BIJLI SARAK aadi mulbhoot aawasyk vastuan nahi h or ess desh kee govt. desh main ek alag tarah k waarg ka nirmaan kar rahi hain jo hamare desh ke JANGAL, KHANEEJ SAMPDAA,ka dohan khood k vikash k liye kar rahe h jisme desh kee vibhin SARKARO ka bhi hishaa h ye SARKAREN chunti to janta h magar nitiya desh k punjipatiyo k liye banati h enn CONGRESH_BJP kee sarkaro nee SAVIDHAAN k SAMAJWADEE sawroop ko khatam kar LOKTANTAR ko marne ka kaam kiya jisko rokne ki koshish desh k SUPREEM COURT ne kee h magar in sarkaro ne SANVIDHAAN SANSODHAN kar k apnee LOOT ko jaree rakha h jiske khilap desh kee tamaam vanchit JANTA ka pharj banta h ki vah inkee LOOT k khilap ANDOLAN lare or court ka saath de taki inkee LOOT ko roka ja ske or yahan LOKKALYANKARI rajy kee sthapna kee ja ske

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रचनाकार: प्रमोद भार्गव का आलेख - शीर्ष न्‍यायालय और गरीबी रेखा
प्रमोद भार्गव का आलेख - शीर्ष न्‍यायालय और गरीबी रेखा
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