प्रमोद भार्गव का आलेख - मई दिवस के अवसर पर : मजदूरों के एकीकरण से विस्‍थापन तक

SHARE:

जो मई दिवस दुनिया के मजदूरों के एक हो जाने के पर्याय से जुड़ा था, भूमण्‍डलीकरण और आर्थिक उदारवादी नीतियों के लागू होने के बाद वह किसान और म...

जो मई दिवस दुनिया के मजदूरों के एक हो जाने के पर्याय से जुड़ा था, भूमण्‍डलीकरण और आर्थिक उदारवादी नीतियों के लागू होने के बाद वह किसान और मजदूर के शोषण और विस्‍थापन से जुड़ता चला गया। मई दिवस का मुख्‍य उद्‌देश्‍य मजदूरों का सामंती और पूंजी के शिकंजे से बाहर आने के साथ उद्योगों में बराबर की भागीदारी भी थी। जिससे किसान-मजदूरों को राज्‍यसत्ता और पूंजी के षड्‌यंत्रकारी कुचक्रों से छुटकारा मिल सके। लेकिन भारत तो क्‍या वैश्‍विक परिप्रेक्ष्‍य में भी ऐसा संभव हुआ नहीं। भारतीय परिदृश्‍य में यही कारण है कि करीब पौने दो सौ जिलों में आदिवासी व खेतिहर समाज में सक्रिय नक्‍सलवाद भारतीय राष्‍ट्र-राज्‍य के लिए चुनौती बना हुआ है। ओड़ीसा में एक भाजपा विधायक और छत्तीसगढ़ से कलेक्‍टर का अपहरण करके नक्‍सलवादियों ने संविधान के दो स्‍तंभ विधायिका और कार्यपालिका को सीधी चुनौती पेश की है। दरअसल कथित औद्योगिक विकास के बहाने वंचित तबकों के विस्‍थापन का जो सिलसिला तेज हुआ है, उसके तहत आमजन आर्थिक बद्‌हाली का शिकार तो हुआ ही, उसे अपनी सामाजिक और सांस्‍कृतिक पहचान बनाए रखने के भी संकट से जुझना पड़ा है। मसलन एक ओर तो उसकी अस्‍मिता कुंद हुई जा रही है, वहीं दूसरी ओर वैश्‍विक नीतियों ने उसकी आत्‍मनिर्भरता को भी परावलंबी बनाकर मई दिवस की सार्थकता को वर्तमान परिदृश्‍य में दरकिनार ही किया है।

फिरंगी हुकूमत के पहले भारत में यूरोप जैसा एकाधिकारवादी सामंतवाद नहीं था और न ही भूमि व्‍यक्‍तिगत संपत्ति थी। भूमि व्‍यक्‍तिगत संपत्ति नहीं थी इसलिए उसे बेचा अथवा खरीदा भी नहीं जा सकता था। किसान भू-राजस्‍व चुकाने का सिलसिला जारी रखते हुए भूमि पर खेती-किसानी कर सकता था। यदि किसान खेती नहीं करना चाहता है तो गांव में ही लागू गणतंत्र के आधार पर सामुदायिक स्‍तर पर भूमि का आवंटन कर लिया जाता था। इसे मार्क्‍स ने एशियाई उत्‍पादन प्रणाली नाम देते हुए किसानी की दृष्‍टि से श्रेष्‍ठ प्रणाली माना था। किंतु अंग्रेजों के भारत पर वर्चस्‍व के बाद भू-राजस्‍व व्‍यवस्‍था में दखल की जो शुरूआत हुई उसने भूमि के साथ निजी स्‍वामित्‍व के अधिकार जोड़ दिए। भूमि के निजी स्‍वामित्‍व के इस कानून से किसान भूमि से वंचित होने लगा। इसके बाद किसान की हालत लगातार बद्‌तर होती चली गई।

पूंजीवाद के देश में विकास के साथ-साथ मजदूरों का शोषण बढ़ा। उनसे 12 से 14 घंटे तक काम लिया जाता था यही स्‍थिति यूरोप के देशों बहुत पहले से जारी थी। लिहाजा वहां काम के घंटे 8 करा देने की मांगे के साथ मई दिवस का संघर्ष परवान चढ़ा बाद में यह मजदूर वर्ग के जीवन का हिस्‍सा बन गया। करीब 10 हजार साल पहले खेती के हुए विकास क्रम के साथ ही दास, अर्धदास, गुलाम, दस्‍तकार और दूसरे महनत कसों को अपने खून-पसीने की कमाई सौंपने के लिए मजबूर होना पड़ता था। श्रमिक इसी शोषण से मुक्‍ति के लिए एक हुए इस आंदोलन की शुरूआत अमेरिका में हुई। फिलाडेल्‍फिया के बढईयों ने 1791 में 10 घंटे काम के बदले 8 घंटे काम की मांग रखी। 1830 आते-आते यह आंदोलन दुनिया के मजदूरों का प्रमुख आंदोलन बन गया। आज भी यह धन्‍ना सेठों को डराता है। यही बजह रही कि इसे वैश्‍विक ग्राम के चेहरे में परिवर्तित करके कमोबेश खत्‍म कर दिया गया।

भारत में आजादी के बाद सही मायनों में खेती, किसान और मजदूर को बाजिव हकों का इंदिरा गांधी ने अनुभव किया। नतीजतन हरित क्रांति की शुरुआत हुई और कृषि के क्षेत्र में रोजगार बढ़े। 1969 में इंदिरा गांधी द्वारा निजी बैंकों और बीमा कंपनियों का राष्‍ट्रीयकरण कर दिया गया। इस व्‍यवस्‍था से किसानों को खेती व उपकरणों के लिए कर्ज मिलने का सिलसिला शुरु हुआ। शिक्षित बेरोजगारों को भी अपना लघु उद्योग लगाने के लिए सब्‍सिडी के आधार पर ऋण दिए जाने की मुकम्‍मल शुरुआत हुई। आठवें दशक के अंत तक रोजगार और किसानी के संकट हल होते धरातल पर नजर आए। लिहाजा ग्रामीणों में न असंतोष देखने को मिला और न ही शहरों की ओर पलायन हुआ।

इंदिरा गांधी के बाद ग्राम व खेती-किसानी को मजबूत किए जाने वाले कार्यक्रमों को और आगे बढ़ाने की जरुरत थी ? लेकिन उनकी हत्‍या के बाद उपजे राजनीतिक संकट के बीच राजीव गांधी ने कमान संभाली। उनका विकास का दायरा संचार क्रांति की उड़ान में सिमटकर रह गया। बाद में पीवी नरसिंह राव सरकार के वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने आर्थिक सुधारों के बहाने अमेरिकी नीतियों से उपजे नव उदारवादं को लागू करके किसान व मजदूर हितों को पलीता ही नहीं लगाया औद्योगिक और प्रौद्योगिक विकास के बहाने किसान, मजदूर और आदिवासियों को विस्‍थापन के लिए विवश कर दिया। जिसके चलते भूमिहीनता बढ़ी और सीमांत किसान ऐसा शहरी मजदूर बनकर रह गया कि आज उसके पास अपनी आवाज बुलंद करने के लिए किसी मजबूत संगठन की छत्रछाया ही नहीं बची है।

भू-मण्‍डलीकरण के हितों को भारतीय धरती पर साध्‍य बनाने के लिए डब्‍ल्‍यू.टी.ओ. पर हस्‍ताक्षर करने के साथ ही हमने किसान और मजदूर के हित गिरवी रख दिए। नतीजतन कृषि और किसान तो बदहाल हुए ही अंधाधंधु जीएम यानी संशोधित बीजों, रासायनिक खादों और कीटनाश्‍कों का इस्‍तेमाल कर जमीन की उर्वरा शक्‍ति भी हमने खो दी। आनुवंशिक फसलों को तो मनुष्‍य के लिए स्‍वास्‍थ्‍य की दुष्‍टि से भी हानिकारक माना जा रहा है, बावजूद हम विश्‍व व्‍यापार संगठन के करार से बंधे होने के कारण हानिकारक वस्‍तुओं के इस्‍तेमाल पर अंकुश लगाने में लाचार दिखाई दे रहे हैं।

एक तरफ हम किसान-मजदूर को बड़े बांध, उद्योग, सेज, मॉल और एक्‍सप्रेस हाई-वे के लिए खेती योग्‍य भूमि से बेदखल करने में लगे हैं, वहीं दूसरी तरफ नगदी, फसलों की शर्त पर बायोडीजल के लिए रतनजोत, ज्‍यादा पैदावार के लिए बीटी कपास आदि ऐसे पौधे लगाए जाने के लिए प्रोत्‍साहित करने में लगे हैं, जिन्‍हें बनाए रखने के लिए ज्‍यादा सिंचाई की जरुरत तो पड़ती ही है, साथ ही वे जमीन की आर्दता और उर्वरा शक्‍ति का भी खात्‍मा कर देते हैं। बहुराष्‍ट्रीय कंपनियां खुदरा व्‍यापार में दखल देने के साथ कार्पोरेट फार्मिंग पर भी गिद्ध दृष्‍टि लगाए हैं। कुछ अर्थशास्‍त्री और सरकारी नीतियों के निर्माता कृषि का आधुनिकीकरण किए जाने के बहाने सरकार पर दबाव बना रही हैं कि बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों को पूंजी निवेश के लिए तैयार किया जाए। इस मश्‍विरे को उदारीकरण के परिप्रेक्ष्‍य में देखने वाली कई राज्‍य सरकारों ने तो अनुबंध खेती की नीति के आधार पर बिन्‍दु ही तलाशना शुरु कर दिए हैं। लेकिन भला हो आर्थिक उदारीकरण के सूत्रधार मनमोहन सिंह का कि उन्‍होंने खेती और किसान की दशा सुधारे जाने की दृष्‍टि से इस निवेश को उचित नहीं ठहराया है। यह सही भी है कि अनुबंध खेती से न किसान के हित साधने वाले है और न ही खाद्याान्‍न सुरक्षा सुनिश्‍चित की जा सकती है। पंजाब और उड़ीसा में अनुबंध खेती का प्रयोग किया भी गया लेकिन नतीजे संतोषजनक नहीं आए। दरअसल पूंजीनिवेश करने वाली संस्‍था फसल की ज्‍यादा उत्‍पादकता लेने के लिए एक ओर तो हर नई तकनीक का उपयोग करती है, दूसरी ओर खेत के रकबे में गहरे नलकूपों का खनन कर जल का भरपूर दोहन भी कर लेती है। जब खेत की उर्वरा क्षमता और भू-जल समाप्‍त हो जाते हैं तो अनुबंध तोड़ने में कंपनी को कोई देर नहीं लगती। तय है इस कारनामे की महत्ता में किसान और खेत की चिंता तभी तक है जब तक दोहन की प्राकृतिक उपलब्‍धता सुनिश्‍चित रहे। लेकिन कॉर्पोरेट फार्मिंग के विरुद्ध जब तक कोई नीतिगत फैसला लेने की इच्‍छाशक्‍ति मनमोहन सिंह नहीं जता पाते तब तक किसान और खेती के प्रति चिंता के कोई अर्थ नहीं रह जाते।

भूमण्‍डलीकरण प्रथा के लागू होने के बाद बदहाल हुई खेती और किसान की आम बजट में पहली बार सुध ली गई, साठ हजार करोड़ की कर्जमाफी करके। देश में ऋणग्रस्‍त परिवारों की कुल संख्‍या कृषक परिवारों के कुल संख्‍या के 48 प्रतिशत है। इससे जाहिर है कि ऋणमाफी के ये प्रावधान किसानों के लिए हितकारी हैं। जबकि रिजर्व बैंक की माने तो औद्योगिक घराने राष्‍ट्रीयकृत बैंकों को अब तक दस लाख करोड़ से भी ज्‍यादा का चूना लगा चुके हैं और हमारी सरकारें इन कर्जों को नॉन पर्फामिंग एसेट मद में डालकर इन घरानों को ऋणमुक्‍ति का प्रमाण-पत्र देती चली आ रही हैं। ऋणग्रस्‍त के अभिशाप के चलते लाखों किसानों ने तो आत्‍महत्‍या की लेकिन किसी उद्योगपति ने ऋण अभिशाप से मुक्‍ति के लिए आत्‍महत्‍या की हो ऐसी जानकारी अभी तक नहीं है ?

यदि किसान और मजदूर की आत्‍मनिर्भरता को बढ़ाना है तो उसके आर्थिक सशक्‍तीकरण का ख्‍याल रखना होगा और किसान को आर्थिक रुप से सशक्‍त बनाने के लिए भू-मण्‍डलीकरण के मार्फत अमल में लाई गई नीतियों से मुक्‍ति पानी होगी। मजदूर दिवस की सार्थकता कमजोर क्रय शक्‍ति वाले किसान और मजदूर के आर्थिक सशक्‍तिकरण में थी, किंतु आधुनिक विकास के बहाने चार करोड़ से भी ज्‍यादा लोगों का विस्‍थापन हो चुकने के बावजूद मजदूर आंदोलनों की सार्थकता कहीं देखने में नहीं आ रही है। इससे लगता है मई दिवस को मनाया जाना रस्‍म-अदायगी भर रह गया है।

प्रमोद भार्गव

शब्‍दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी

शिवपुरी म.प्र.

मो. 09425488224

फोन 07492-232007, 233882

लेखक प्रिंट और इलेक्‍ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्‍ठ पत्रकार हैं।

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. मजदूरों से हिमायती और देश का विकास दोनों आवश्यक हैं । आपका लेख उत्तम है । आज किसानों की बादहाली और कर्ज़ की स्थिति अत्यंत शोचनीय है । वास्तव में तो यह युग लोकतान्त्रिक पूँजीवाद का युग है ।
    डॉ.मोहसिन ख़ान
    अलीबाग-( महाराष्ट्र )

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्रमोद भार्गव का आलेख - मई दिवस के अवसर पर : मजदूरों के एकीकरण से विस्‍थापन तक
प्रमोद भार्गव का आलेख - मई दिवस के अवसर पर : मजदूरों के एकीकरण से विस्‍थापन तक
http://t0.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcSDSAlI4gbFU8WJRtyycTwtdYA0pRLLEYy8ZkAQKaE1FWGcuHx_3GVzyMc
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/04/blog-post_8512.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/04/blog-post_8512.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content