रमा शंकर शुक्ल की कहानी - वक़्त

SHARE:

मंदा मेरी जीवन संगिनी. पूरे बीस वर्षों से हमारा साथ. जैसे केवल मेरे लिए ही बनी हो. एक रहस्य की पोटली सी मेरे अस्तित्व के साथ बंधी चली जा र...

image

मंदा मेरी जीवन संगिनी. पूरे बीस वर्षों से हमारा साथ. जैसे केवल मेरे लिए ही बनी हो. एक रहस्य की पोटली सी मेरे अस्तित्व के साथ बंधी चली जा रही. माँ-बाप सभी जीवित, पर कभी सपने में भी उसने उनके पास जाने का नाम न लिया. मायका दूर भी नहीं. दो-तीन मील के फासले पर वे लोग, पर मंदा के लिए उनका घर जैसे अनंत दूरियों पर मुह मोड़े खडा हो.


पिता के प्रति कभी उसे चिंतित होते न देखा. लेकिन माँ की तबीयत के बारे में जब भी सुना, बेचैन हो गयी. शाम को लौटने पर उसे बीमार जैसा पाया. उस पर एक घबराहट सी तारी रहती. अब तक दसियों बार फोन कर कुशल-क्षेम जान चुकी होती, पर तसल्ली का नामोनिशान नहीं.


प्रयाग में यमुना के किनारे गंगा के संगम पर हम बैठे एकटक रेती को निहार रहे थे कि अचानक उसने ही ध्यान भंग किया, "बाबू वो देखो. गंगा".
"हाँ तो!"
वो मेरी माँ है. कितनी दुबली हो चुकी है न?"
मेरे सामने फिर रहस्य खडा हो गया, "मंदा तू माँ को इतना प्यार करती है तो उससे मिलने क्यों न चली जाया करती हो?"


उसने आँखें बंद कर ली. एक गहरी सांस लेकर बोली, "ना बाबू. मंदा कहीं न जायेगी. जमुना गंगा के पास जाती है क्या भला? ऐसे ही किसी प्रयाग के संगम पर मिल लिया करेंगे....... मिल ही तो लेते हैं जब तब. जब-जब कोई माँ क्षीणकाय होगी, मृत्यु के करीब, जमुना उससे किसी प्रयाग में सहारा देगी. तुम मेरे प्रयाग हो". और वह फिर आँखें बंद कर अशब्द हो गई.


मायके को लेकर मंदा सदैव मेरे लिए एक रहस्य बन जाती है. आज संवाद का सिलसिला शुरू भी हुआ तो कुछ पल बाद फिर खामोश हो गया.

 
दूर विस्तीर्ण संगम का पाट निरभ्र आकाश की चाँदनी से नहा रहा था. बालुका कण चांदी की बून्दियों की तरह चमक रहे थे. छिछले जल स्तर से कोई कीड़ा बाहर निकल कभी-कभी विचित्र सी आवाज निकालता और फिर खामोश हो जाता. तभी एक टिटिहरी ट्वीट-ट्वीट करती पास से गुजर गई. मंदा जैसे सोते से जागी हो. दौड़ कर पानी के करीब पहुँची. बालू को पूरी अंजलि में भर लिया और मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी. "जानते हो बाबू. यह है हमारा रिश्ता. यानि सभी रिश्ते. अभी भींगे हैं न, देखना कुछ देर बाद सूख जायेंगे. सूख ही न जायेंगे, उड़कर हमारी आँखों में करकेंगे. थोड़ा तेज हवा बही तो आँख भी फोड़ देंगे............... हुंह, हमारे रिश्ते." और उसने एक झटके से उसे जमीन पर फेंक दिया."


मंदा का चेहरा वितृष्ण हो गया. जैसे खुद से वार्ता कर रही हो, "वक्त के अपने-अपने सच होते हैं. संवेदनाओं की तरह. हर संवेदना के सच की एक उम्र होती है. किसी ख़ास प्रकरण, घटना, उम्र के साथ पैदा होती है और कुछ घंटों, दिनों, महीनों और वर्षों में परिस्थितियों और द्वंद्व के साथ समाप्त हो जाती है. बरसात के दीवाने कीट पतंगों की तरह क्षणजीवी. खिसियाये बादलों के बर्फ खण्डों के घुलन सी. खेतों में अन्खुआकर फिर से पौधों की शक्ल लेने सरीखा."


मेरे लिए रिश्तों का यह दर्शन एकदम नया था. मंदा के साथ इतने वर्ष गुजारे, पर उसे कितना समझ पाए हैं. हमेशा छौनों की तरह मेरे इर्द-गिर्द परिक्रमा में लगी रहने वाली मंदा एकदम दार्शनिक सी आत्मालाप कर रही है. घर की चार दीवारी में जैसे उसके विचार अब तक कैद रहे हों. आज खुला आकाश पाया तो फ़ैल कर आकाश होने लगा.

 
"बाबू, गंगा को देख रहे हो न!"
"हाँ"
"मेरी माँ ऐसी ही है...............तुम आज भी कह सकते हो कि हर नदी का विलय अंततः समुद्र में होता है? "
"अ..... हाँ. क्यों नहीं?"
"तो फिर इस गंगा को समुद्र में पहुंचाओ तो जाने."
"अरे मंदा, यह कहाँ संभव है. गंगा अब केवल बरसात में समुद्र में मिल पाती है"
"बाबू तुम भी न! बरसात में भी गंगा समुद्र में नहीं मिलती. बादल का पानी गंगा के घर भीड़ लगाता है और समुद्र में जाकर मौज करता है. उसके साथ हमारी अपशिष्ट और नीचता भी समुद्र तक जाकर मौज करती है. समुद्र भी दुखी और गंगा भी." 


थोड़ी देर मौन रह एक लम्बी सांस के साथ फिर बोली, "ये नदियाँ संवेदनाओं की तरह हैं बाबू. संवेदनाओं के सच हमारे भीतर एक नदी की तरह है, जो उन्माद की तरह बहती है. पत्थरों, गड्ढों और झाड़ों से टकराते हुए समुद्र से पहले ही सूख जाती हैं. गंगा, सोन, बेतवा या चम्बल ही क्यों न हों, सब सूख जाती हैं. हरिद्वार की जवान गंगा प्रयाग तक पहुंचकर कैसे झुलस जाती है. जैसे ससुराल के सगे साथियों ने विलय के पूर्व ही जला डाला हो. वो तो जमुना का ढाढस  न होता तो गंगा को कौन जान पाता. गंगा के लिजलिजे हांथों को पकड़ जमुना उसे बंगाल की खाड़ी नहीं अस्पताल ले जा रही है, जहाँ भर्ती होने के बाद कोई ज़िंदा नहीं लौटता. जमुना को यह सब पता है. पर संगदिली माँ को एकमुश्त मरते हुए भी तो नहीं देख सकती. कोई अपने प्रियजन को जिन्दगी के आखिर क्षण मरने की खातिर यूं ही नहीं छोड़ देता. पुरजोर कोशिश करता है कि उसकी मौत छटपटाते हुए नहीं, बल्कि मुस्कुराते हुए अचानक हो जाए."
".............................

......................."
"जानते हो बाबू. मृत्यु का अपना तर्कशास्त्र होता है और जिन्दगी का अपना. दोनों एक दूसरे की सौतन हैं. एक से लड़ो तो दूसरी प्यार करने लगती है. मौत से लड़ो तो जिन्दगी अपनी हो जाती है. और जिन्दगी से लड़ो तो मौत तड़ाक से खींच ले जाती है. विचित्र है न जीवन की यह गति! जो जिन्दगी अहर्निश छकाती है हम उसी के साथ रहने के लिए कौन-कौन से पैतरे नहीं खेल डालते. जबकि बेचारी मौत हर टेंशन अपने ऊपर लेकर हमें पूर्ण निर्द्वंद्व  कर देती है.  क्या अपने सामान्य व्यवहारों में रिश्तों के निर्वहन का यही चलन नहीं झलकता!"


मंदा आज खुली भी तो कितनी रहस्यमय और दार्शनिक सी. वह रुक-रुक बहुत कुछ कहती गयी. "मै जमुना हूँ बाबू. मंदा तो नानी ने नाम दे दिया था. चित्रकूट गई थी, राम के पाँव पखार रही थी इसलिए. लेकिन असल जीवन तो जमुना का ही जी रही हूँ. मेरी माँ गंगा है. माँ-बेटी होते हुए भी हम बहनों जैसे ही जिए हैं. हर विपदा को मिलकर हमने काटे हैं. भूख, नीद, बीमारी और भेड़ियों की भूखी निगाहों का खौफ- सब कुछ. हमें न हमारी देह माँ-बेटी समझा पा रही थी और न हमारी उम्र. एक भरी-पूरी जवान तो दूसरी की शुरुआत.............." मंदा रुक गयी. एक चुप्पी संगम के विस्तार सी फ़ैल गयी या फिर हम ही संगम की नीरवता में विलीन हो गए.
. .. . . . . . . . . .
विस्तर पर औंधे मुह सोई मंदा अबोध बालिका सी लगी. आज जाने क्यों आँखों से नींद गायब है. यानी कि मंदा के भीतर एक बाढ़ है!  वह बंद है. बहुत कुछ समाया है उसमे. खुलेगा तो बहुत कुछ बहा ले जाएगा.


आँखों के आगे बीस साल का विस्तार संगम के पाट जैसा फ़ैल गया. शुरुआती दिनों में लताओं की तरह लिपटी रहने वाली मंदा का धीरे-धीरे सूखते जाना. खुशियों के पत्तों का एक-एक कर झरते जाना. आखिर क्यों?  क्या उम्र की ढलान के कारण! न, नहीं. मेरी व्यस्तता के कारण. विवाह के बाद वाकई मैंने उसे समय ही कहाँ दिया. लोगों को खुश करने में ही तो चुकता गया. माँ, भाई, बहन, भाभी आदि की जिन्दगी संवारने में कब हम जवानी की तरंगें खो डाले, पता ही न चला. मंदा ने भी तो कभी न टोका. जब भी घर की बात आई, वह पहले नंबर पर कूद गई. कर्ज चढ़ते गए, घर और घर वालों की उम्मीदें फलती-फूलती गयीं और हमारी उम्र और कामनाएं ढहती गयीं. फिर भी अच्छा बेटा, अच्छा देवर, अच्छा भाई, अच्छा चाचा का विश्वास न हासिल कर पाया. तो अब क्या करें!  भीतर से जैसे आवाज आई हो, अब अच्छा पति और पिता बनने का भी प्रयास कर लो भाई.


हाँ, सच में. मंदा जब कभी दुखी हुई तो इसी बात को लेकर. किसी को सुख पहुँचाने में उसने कहाँ रोक लगाईं. इस बीस साल में दो-चार बार ही तो वह दुखी हुई है. लेकिन बाप रे, वही दो-चार बार कितने भारी पड़े थे. पूरे सप्ताह या फिर पखवारा घर कितना पराया और जहरीला हो गया था. बिना शब्दों के इतना बड़ा युद्ध! महज खामोशी के सहारे. खामोशी मंदा का सबसे बड़ा हथियार. बहुत पूछने-पुचकारने के बाद एक बार ही तो बोली थी, "तुम्हारे पास मेरे लिए भी फुरसत  है?"


"काहे? क्या मै तुम्हे समय नहीं देता? रहता तो घर पर ही हूँ न! सोता भी हूँ. पूरा वेतन तुम्हारे हाथ में रख देता हूँ. कौन सा ऐसा सुख है जो तुम्हे नहीं मिल रहा?"
"बाबू, क्या एक औरत का सारा सुख यही है?"
"तो तुम्ही बता दो कि और क्या है? क्या बाकी रह गया है जो मै नहीं दे पाया हूँ तुम्हें?"


"जाने दो. तुम पुरुष हो. नहीं समझ पाओगे."


बड़ी खिसियाहट हुई थी उस दिन. "अच्छा, औरत की समझ ज्यादा बड़ी होती है! है न? एक ही आदमी हर कुछ तो नहीं कर डालेगा न? नौकरी, घर, बाहर, सामाजिकता और लिखना-पढ़ना, सब कुछ. और तुम्हारे लिए समय भी. हमें जीने दो. इस तरह का जहरीला माहौल बनाती रही तो एक दिन पागल हो जाऊंगा. वैसे ही घर वाले इस दशा में ला दिए हैं के डिप्रेशन की दवा न लूं तो सो भी नहीं सकता."


उस दिन के बाद मंदा औपचारिक हो गई थी. हमारी किसी भी सुविधा में कटौती न करती, पर अधिकाँश समय बच्चों के साथ गुजारती. बच्चे भी कैसे हो गए हैं. माँ को माँ समझने की बजाय हम उम्र समझ कर लड़ते हैं. वह झल्लायेगी, खिसियायेगी, पर उन्ही लोगों के साथ लगी रहेगी. इसके अलावा समय मिला तो दूर के मेरे रिश्तेदारों बबली-रज्जू के विवाह, जय की पढ़ाई और नौकरी के सपने बुनेगी.
आज थोडा वक्त मिला तो कैसे वह खुलते-खुलते रह गयी. शायद कोई आशंका थी, जिससे उसने बहुत कुछ अनकहा छोड़ दिया.


सच में, एक स्त्री को केवल धन और वैभव नहीं सुखी रख सकता. रख सकता तो क्या मंदा के घर रोटी के लाले थे?
वहाँ भी कहाँ किसी के पास वक्त था. पिता केवल जनक थे. पैदा कर ऐसे गए कि लौटे तो मंदा सत्रह की हो चुकी थी. बेटी की बाल लीला जीए होते, उसकी बीमारी में रात भर जागे होते उसकी जिद पर हलाकान हुए होते तो रिश्ते की गरमाहट महसूस होती.


मंदा को हमेशा लगा कि यह पिता नाम का आदमी मोहल्ले के भूखे भेड़ियों जैसा ही उसे भूखी नज़रों से देखता है. उसने देखा कि पिता कभी माँ के पास न बैठे. माँ ने पूरा जीवन जैसे सुनियोजित तरीके से निर्मित कर लिया हो. उसने भी व्यस्तता के कई काम जुटा लिए. इस व्यस्तता में वह बेटी को भी अक्सर भूल जाती. लेकिन गैरों में अपनेपन की खुशियाँ कितने दिन!  कई बार आहत हो कर लौटी और अंकवार में भर कर फूट-फूट रोई. माँ का दर्द बेटी में प्रवाहित होता रहता. होता रहता. और एक दिन सांझ को जब मिलने पहुंचा तो मंदा की आँखें सूजी हुई और लाल थीं. हमेशा गंभीर और संयमित रहने वाली मंदा उस दिन पूरी तरह टूट चुकी थी. अभी बैठा ही था कि वह गोद में ढह गई. और आंसुओं का ऐसा सैलाब निकला कि मेरा रोम-रोम थर्रा उठा. हिचकियों के बीच उसने कहा "बाबू, मुझे ले चलो. मै तुम्हारी झोपडी में स्वर्ग महसूस करूंगी. ना मत कहना. मै तुम्हारे पाँव पड़ती हूँ."

.....................

डॉ. रमा शंकर शुक्ल

संपर्क :
पुलिस अस्पताल के पीछे
तरकापुर रोड, मिर्ज़ापुर
उप्र, २३१००१
प्रकाशित रचनाएं :
"ब्रह्मनासिका" उपन्यास
"इश्वर खतरनाक है" काव्य संग्रह
"एक प्रेत यात्रा" काव्य संग्रह
"पितर" कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन
मो- ०९४५२६३८६४९

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: रमा शंकर शुक्ल की कहानी - वक़्त
रमा शंकर शुक्ल की कहानी - वक़्त
http://lh6.ggpht.com/-q60ZQfAakJ0/T_-3zbQVzKI/AAAAAAAAM0k/b3O_FC1mlhk/image%25255B3%25255D.png?imgmax=800
http://lh6.ggpht.com/-q60ZQfAakJ0/T_-3zbQVzKI/AAAAAAAAM0k/b3O_FC1mlhk/s72-c/image%25255B3%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_13.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_13.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content