कविताएँ, ग़ज़ल और गीत

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                                           देवेन्द्र कुमार पाठक के नवगीत   नवगीत 1                                                        ...

                                          
देवेन्द्र कुमार पाठक के नवगीत

 

नवगीत 1                                                                                                                                         
जनभक्षी जंगल मेँ                                          
अभी तो नहीँ सूखी          
संवेदन की नदिया पर      
बढ़ता ही जाता है            
दिन-दिन कर उथलापन.   

खूब ली खँगाल              
आश्वस्तियोँ की तलछट,   
हाथ लगीँ अपने              
हर बार शंख-सीपियाँ ;    

बिकी हुई सोच-समझ      
पीट रही तालियाँ,           
नित्य नियम-नीतियाँ       
भुगतेँ तब्दीलियाँ ;          

बेशक अब तक बेड़ा         
लग जाता पार मगर        
नाविक-पतवारोँ की          
अनसुलझी अनबन .                                          

फूलोँ की बगिया मेँ           
साँपोँ की बाँवियाँ ;   
मनमोहिनी बीन              
बजा रहे हैँ सँपेरे;              

देख-देख ऊबा मन         
ये तिकड़मबाजियाँ ;          
स्वारथ के मारे             
सब गूँगे-बहरे ,                
कौन सुने-टेरे  !                 
जनभक्षी जंगल मेँ

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नवगीत 2

स्याही भरी दवात :                           
बरसाती रात  
अंबर के आले से,     
धरती के पन्ने पर ,    
उलट गई मानो        
स्याही भरी दवात :
बरसाती रात।

                                                  
टिपिर-टिपिर मेह-झड़ी,    
घर की खपरैल पीठ पर            
ताबड़तोड़ पड़ी ;    
बिजुरी बेहया बड़ी          
दाँत फाड़ चमक-चौँध             
हँसती है खड़ी-खड़ी ; 
हहर-हहर हड़काती,        
दीए को हवा हठी,           
निंदियाती आँखोँ के         
पलक-पटोँ पर मानो        
मार रही लात :
बरसाती रात ।

दिन भर के थके-पके ,      
कथरी मेँ अँटे-सटे,           
बँधुआ- हलवाही के;        
किस्तोँ मेँ कटे-बँटे,           
दुर्दिन-से बीत रहे             
बाप की ग़ुनाही के;          
भीतर की दाह-दहन,      
बनने को बड़वानल;        
ललक मार रही लपट,     
हुए बरस-बरसोँ             
मन-अंतस धुँधुआत :
बरसाती रात।

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जसबीर चावला की कविताएँ

image

द्वन्द

संलिप्त होना था
निर्लिप्त रहे
निर्लिप्त होना था
संलिप्त रहे
विरत हुए
आसक्त हुए
कशमकश बनी रही
हम हुए
कि
ना हुए ?

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जिन खोजा तिन पाईया.........!
                                  
तुमने
न खोजा
न गहरे पेठे
न तैरे
बस
रहे किनारे बैठे
हम तैरे भी
डूबे भी
उतराए
गोते खाए
मोती तो क्या
कोड़ी भी
ना पाए ?

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प्रतिप्रश्न
                       
संवेदनशील/ बेबस
क्षेत्रों में ही
क्यूं
होती है
सदा
व्यवस्था/ निगरानी
क्यों नहीं होती
गश्त/ चोकसी
वेदनाहीन/निष्ठूर  आस्थाओं
के मठों में
जाति/ धरम के
आश्रमों में
अँधेरे  /विवेकशून्य कोनों में
सहस्त्रबाहू के
महलों में/ गलियों में

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वर्तमान में - स्प्रिंग क्रीक अपार्टमेंट्स
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सेंटा क्लेरा
केलिफोर्निया ( यू. एस)

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   कैस जौनपुरी की कविता


मोमबत्‍ती की तरह जिन्दगी हो


मोमबत्‍ती की तरह जिन्दगी हो
जलते रहें फिर भी देते रहें
रौशनी दुनिया को
क्‍या हुआ जो जलने में
अपना वजूद मिटता रहे
जब तक रहें देते रहें
रौशनी दुनिया को
आएंगीं कई मुश्किलें
हवाएं भी आंधियां भी
लड़खड़ाएं मगर देते रहें
रौशनी दुनिया को
न घबराएं कभी कि क्‍या मिला
अपना तो कुछ बचा नहीं
मिटाएं अन्धेरे और दें
रौशनी दुनिया को
सहारा न मिले किसी का भी
मगर धागा हौसले का छूटे नहीं
राख भी काम आए देने में
रौशनी दुनिया को
मुड़के पीछे देखें क्‍या
कोई निशानी बचे नहीं
कुछ दिल भी रौशन हों देने में
रौशनी दुनिया को
मोमबत्‍ती को बदले में कुछ न मिलेगा
लोग जलाएंगे भी तो रौशनी के लिए
बचकर तो सब चलते हैं, हम जलते रहें, देते रहें
रौशनी दुनिया को

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साक्षी दीक्षित की कविता

अजब मुंबई की गजब कहानी

मुंबई की कहानी मेरी जुबानी .......................

सच है ये मुंबई अभिनेताओं का शहर है , हर इंसान का यहां डबल रोल् है |
ज़िंदगी को यहां कैसे लोगों ने एडजेस्ट किया है , अपनी समस्याओं को निदान में बादल दिया है
कुछ भी नहीं असंभव यहां है ...........
हर कोई दौड़ रहा ,जल्दबाज़ी में मर रहा है
हर कोई झट से चेहरा बदल लेता है , मगर हम भी कुछ कम नहीं हर किसी का चेहरा पढ़ लेते हैं
हर बात को झट से भाप लेते हैं , मगर लोगों... यहां के अच्छे अभिनेता जो ठहरे
होठों पर हंसी और आंखों में आँसू भर के जी लेते हैं
हर कोई अपना दुख पी लेता है हर गम सी लेता है
और गुस्सा आए तो एक वडा पाव खाकर पानी पी लेता है ,
यहां एक खोली की चाल बीस लाख में मिलती है , और दो बेडरूम के फ्लेट की कीमत करोड़ों में होती है
जो फुटपाथ पर रहता है वो भी खुद को राजा समझता है
उसके लिए तो वो घर भी महलों से कम नहीं होता है
यहां पेट की आग तो दो रुपए मे बुझती है मगर सर पर छत 10000स्क्वेयर फीट मे बिकती है
फिर भी एक साम्य मुंबई सबमे बना कर रखता है
हर किसी को एक तराजू मे तौलता है यहां कोई राजा है न कोई भिखारी है
क्यूकी लोकल के डिब्बे मे सभी चड़ते बारी बारी है ........
यहां किसी में कोई भेद नहीं होता है लोकल ट्रेन में सबका एक ही भाव होता है
यहां सब एक दूसरे को जानते हैं , जानते ही नहीं पहचानते भी है
क्यूंकि हर इंसान की कहानी एक दूसरे से मिलती है ......
हर कोई किसी न किसी चीज़ का ईएमआई भर रहा होता है
तभी तो एक एक रुपए के लिए लड़ रहा होता है
जब भी कभी दोस्तों के साथ होटलों में जाते हैं ,
हर कोई अपने हिस्से का बिल खुद ही चुकाते हैं
किसी को किसी से कोई गिला या शिकायत नहीं होती है
ये मुंबई है यहां पैसों की इज्जत होती है
हर किसी को पता है की अगले की जेब खाली है
अगली सेलरी आते तक दिन निकालना कितना भारी है
हर कोई एक दूसरे के बारे में सोचकर चलता है
हर कोई 10 तारीख के बाद हाथ ही मलता है
इस भाग दौड़ में जिंदगी कितनी छोटी हो जाती है
दिल की हर तमन्ना ईएमआई की किश्तों में घुट जाती है
यहां के लोग आज में जीते हैं आज पर ही भरोसा करते हैं
कहते हैं "कल की चिंता तो कायर किया करते हैं "
मैंने तो केवल अब तक सुनी ही थी ये कहानी
पर अब मौका मिला है तो जीती भी हूं यही ज़िंदगानी
ऐसा लगा की बाँट लूं अपने दोस्तो से ये अनुभव थोड़ा
इसीलिए मैंने लिखी है ये "अजब मुंबई की गज़ब कहानी "

साक्षी दीक्षित (प्राची )

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मोतीलाल की कविता

कविता पहले जुड़ी हो जमीन से 
फिर तुम इसमेँ फूल खिलाना
बांहेँ डाल झूलना अपने बच्चोँ के संग

जुड़ी हुई जमीन से
क्या तुम बारुद उगाना चाहोगे
या जला डालोगे पूरी झोपड़ियाँ
थामोगे बन्दूक और
भून डालोगे कलुवा को
ताकि जमीँ से जुड़ी रहने से
बची रहे कविता

जमीन से अलग कविता
क्या खुद जी पायेगी
और क्या दिला पायेगी
कलुवा को न्याय

पहले इसे जोड़ना होगा
फूलमनी के संग
चाहे फिर तंदूर मेँ
स्वाहा कर दिया जाए
या बना दिया जाए पंगु
न्याय के मशीन को
और सच का आईना
बंद कर दिया जाए
हवाला के फाईलोँ मेँ

इन सबके बावजूद
जमीन से जुड़ी कविता
कुछ भी न बोलेगी
पर मारक प्रभाव से
तुम कितनी दूर भाग पाओगे

हाँ सबसे पहले कविता
कविता होनी चाहिए
हमारी जमीन की ।

* मोतीलाल/राउरकेला
* 9931346271
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विजय पाटनी की कविता



माँ
मुझे ना दे जन्म ...
मैं यूँ मर मर के, जी ना पाउंगी
अच्छा होगा यदि कोख में ही मर जाउंगी !! :).....


माँ , जब चाहा पापा ने अपना गुस्सा तुझ पर उतारा
वजह- बेवजह तुझ को मारा !!
तू चुप कर के , जो सहती है , मैं सह ना पाउंगी
अच्छा होगा, यदि कोख में ही मर जाउंगी !! :).....


माँ, जब तू ऑफिस से आने में दो घंटे लेट हो जाती है
घर पर सब का पारा गर्म हो जाता है
हजारों अनचाहे सवालों का जन्म हो जाता है
तू जिन सवालों को सुलझाती है , मै सुलझा ना पाउंगी
अच्छा होगा , यदि कोख में ही मर जाउंगी !! :).....


माँ , गैर मर्दों की आँखों में , तेरा वहशियत को पढना
रात में, सडक पर तेरा, तेज क़दमों से चलना
तू जितना डर कर चली है , मैं चल ना पाउंगी
अच्छा होगा, यदि कोख में ही मर जाउंगी !! :).....


माँ कहने को तो सांस लेने का अधिकार है तुझे
पर किसे पता है , कितना कर्ज दिल पर रख कर, तू मुस्कराती है ?
अपनों का भविष्य बनाते बनाते, खुद मिट जाती है !!
तुने खोया अपना वजूद , मै खुद को खो ना पाउंगी !
अच्छा होगा, यदि कोख में ही मर जाउंगी !! :).....


माँ, मैंने देखा है, हर बार तुझे ...अपने मन को मारते हुए
अपनों के हाथों ही हारतें हुए !!
हर कदम पर समाज-घर वालों का.. तुझे टोकते हुए !
अपनी हर इच्छाओं को, खुद से रोकतें हुए !!
मैंने देखा है तुझे ...
अपने सपनों को खोते हुए , अक्सर छुप छुप कर रोते हुए,
"स्त्री होने का एक अनचाहा बोझ ढोतें हुए"


तू जितना डर कर जी ली है, मै जी ना पाउंगी
अच्छा होगा , यदि कोख में ही मर जाउंगी !! :).....


 


विजय पाटनी


नसीराबाद राजस्थान


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मीनाक्षी भालेराव की कविताएं और गीत



राखी का उपहार

मैं पेड़ों को बांधूंगी राखी ,
पर्यावरण की रक्षा हेतु !
हरियाली का लूँ उपहार ,
मैं सूरज को बांधूंगी राखी !
उसका तेज बढाने हेतु ,
रौशनी का लूँ उपहार !
मैं बादलों को बांधूंगी राखी ,
सब जगह बरसे बरखा रानी !
पानी का लूँ उपहार ,
मैं धरती को बांधूंगी राखी !
उसकी उपज बढ़ाने हेतु ,
अन्न-धन का लूँ उपहार !


मिलकर

आओ मिलकर हम रंगें
धागे कुछ ऐसे !
बांधें भारत माता के सपूतों को ,
वचन ले देश की रक्षा का !
आओ कुछ रंगें धागे ऐसे
रोक सके हम भ्रूण हत्या को !
आओ कुछ रंगें धागे ऐसे
महंगाई के रावण को हम
सब मिल कर मार भगाएं
आओ रंगें कुछ धागे ऐसे
भ्रष्टाचार को नष्ट कर दें
आओ रंगें कुछ धागे ऐसे
माँ-बहनों की रक्षा कर पाएं


गलियाँ

हम गुजरे उन गलियों से ,
जिन से पहचान पुरानी है !
दिल में हजारों यादें लेकर ,
तकते रहे उन जगहों को !
अजीब सी ख्वाहिश जाग उठी ,
जो पल गुजरे उन गलियों में !
वापस मुझ को मिल जाये ,
वो इतराकर चलना ,
वो मनचलों को झेलना !
फिकरे कसते आशिकों को ,
दबी-दबी जुबान से !
कुछ खोटी-खरी कहना ,
हर रोज बन संवरकर !
मोहल्ले से गुजरना ,
गली के नुक्कड़ पर !
ठंडी-ठंडी आहें सुनना ,
ठिठक-ठिठक कर चलना !
कभी दुपट्टा अंगुलियों से ,
मसल कर घबराहट छुपना !
धीरे से नजरों का गिरना ,
फिर नजरों का उठाना !
इकरार किसी से नहीं था ,
पर इंतजार हुआ करता था तब !


मैं
मैं बगिया का फुल बनकर ,
हर तरफ खुशबू फैला दूँ !
मैं सावन का गीत बन कर ,
फिजा में बजती रहूँ !
मैं सीप का मोती बनकर ,
हर दिल अजीज रहूँ !
मैं बरखा की बूँदे बनकर ,
हर दिल सावन कर दूँ !
मैं शहनाई का स्वर बनकर ,
हर आंगन मंडप कर दूँ !

चाहती हूँ

मैं प्यास बढ़ाना नहीं चाहती ,
मैं प्यास बुझना चाहती हूँ !
हर अँधेरी कोठरी ,
मैं दीप जलना चाहती हूँ !
हर बुझती सांसों को ,
जीवन देना चाहती हूँ !
हर मुरझाये चेहरे पर ,
मुस्कान खिलाना चाहती हूँ !
ना थकूंगीं ना थमूंगी ,
बस इसी राह पर चलना चाहती हूँ !


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COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. सभी रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं.
    खासकर पाठक जी का नवगीत और चावला जी की रचनाएँ काफी प्रभावी लगीं .

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नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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रचनाकार: कविताएँ, ग़ज़ल और गीत
कविताएँ, ग़ज़ल और गीत
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