कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन - 50 - सतीश चन्द्र श्रीवास्तव की कहानी : छोटे छोटे समर

SHARE:

कहानी छोटे - छोटे समर सतीश चन्द्र श्रीवास्तव सुबह से दोपहर, दोपहर से शाम होने को आयी, उसे दफ्तर मे चप्पल चटकाते हुए। हालांकि वह दिन भर, शी...

कहानी

छोटे - छोटे समर

सतीश चन्द्र श्रीवास्तव

सुबह से दोपहर, दोपहर से शाम होने को आयी, उसे दफ्तर मे चप्पल चटकाते हुए। हालांकि वह दिन भर, शीरे पर मँडराती मक्खियों की तरह बड़े बाबू के इर्द-गिर्द चक्कर काटता रहा, पर बडे बाबू थे कि पारे की तरह बार-बार उसके हाथ से छिटके जा रहे थे. और अब उसे ऐसा लग रहा था कि जिस काम को वह अदना सा समझ रहा था, वास्तव में छोटा नहीं था। घर से चलते समय उसने हिसाब लगाया था कि अगर दोपहर तक नहीं तो शाम तक यह काम हो ही जायेगा। लेकिन हमेशा की तरह एक बार वह फिर अपने गणित में फेल हुआ। झुंझलाया सा वह कभी सीढ़ियाँ गिनता रहा और कभी सड़क नापता रहा।

सुबह के वक्त जब वह आफिस पहुँचा तो उसने बड़े बाबू को अपना नियुक्ति पत्र दिखलाया और बतलाया कि उसका मेडिकल पत्र आया था, किन्तु वह कहीं खो गया है। अत: वह उसे पुन: बनवाना चाहता है, ताकि वह अपना मेडिकल दे सके।

बड़े बाबू ने बग़ैर उसकी तरफ देखे पान का बीड़ा मुँह में डालते हुए कहा, एक आवेदन पत्र लिख कर दे दो। उसने तुरन्त पहले से लिखी हुई एप्लीकेशन उनके सामने रख दी। वह जैसे इसके लिए तैय्यार नहीं थे। अब उन्होंने उसकी ओर देखा। पत्ते में से थोड़ा सा चूना निकाल कर ज़बान पर लगाया और बोले, "ठीक है ! रख दो। शाम तक पता कर लेना।"

अब तक बड़े बाबू की मुद्रा से वह काफी आतंकित हो चुका था। परन्तु फिर भी साहस कर धीरे से बोला, "साहब अगर दोपहर तक .....!" किन्तु उसकी बात बड़े बाबू ने ठीक उसी प्रकार लपक लिया जैसे कोई हुक शाट बाउन्ड्री पर कैच कर ले। बोले, "मियाँ, काफी ज़ल्दी में हो। यह सरकारी दफ्तर है। यहाँ इतनी ज़ल्दी कुछ नहीं हो सकता।" कह कर वह धीरे से मुस्कुराये। उनकी मुस्कुराहट काफी रहस्यपूर्ण थी। उसने कभी भी रावण को मुस्कुराते हुए नहीं देखा। परन्तु बड़े बाबू कि मुस्कुराहट देख कर उसने अनुमान लगाया कि रावण भी ऐसे ही मुस्कुराता होगा।

बड़ी अज़ीब बात है ! वह सोचता है, किसी भी चीज़ के आगे सरकारी शब्द लग जाने का मतलब है, एक ढ़ीला ढ़ाला अस्त-व्यस्त टरकाऊ प्रशासन ! कैसी परिभाषा बना ली है लोगों ने सरकारी शब्द की।

दोपहर के वक्त जब वह पहुँचा तो देखता है कि बड़े बाबू की सीट खाली है। थोड़ा सा परेशान हो उठता है वह। आधे से अधिक लोग गायब थे वहाँ। बड़े बाबू का पता पूंछे भी तो किससे ! यही सवाल उसके लिए भारी पड़ रहा था। थोड़ी दूर पर एक वृद्ध से बाबू फाइलों में उलझे थे। उसे लगा जैसे जेठ की तपती दुपहरी में उसे घने पेड़ की छाया मिल गयी हो। वह उनके नज़दीक पहुँचता है। कृशकाय शरीर, चौड़ा माथा। माथे पर चन्दन की लम्बी-लम्बी रेखायें और मुँह में पान।

वह बोला, - "बड़े बाबू, वो सामने वाले मिश्रा जी कहाँ गए है !" उन्होने कछुएं की तरह फाइलों के बीच से सिर निकालते हुए उसकी ओर देखा। पान की पीक से लबालब मुहँ। अचानक उन्होने सिर झुकाया और पीच्च ...च्च ...। वहीं मेज के नीच्रे ढ़ेर सारा पीक दे मारा। अगर वह अतिरिक्त सावधानी से काम न लेता तो उसके सफेद पैंट पर काफी सुन्दर छींट बन चुकी होती। उसका मन ज़ुगुप्सा से भर उठा।

"घड़ी देख रहे हो न, यह लन्च का समय है। बाहर गए होंगे।" पर लन्च तो डेढ़ बजे ही समाप्त हो जाता है। और इस वक्त तो दो बज रहे है।

"नये लगते हो।"

"नये ! नये का क्या मतलब।"

"मतलब वहीं जाकर देखों , चले आते है दिमाग खाने ..... !" बड़े बाबू का ज़वाब सुनकर वह कातर हो उठा।

निरूद्देश्य भटकते -भटकते जब वह ऊब जाता है तो थक कर वह एक कुर्सी खींच कर बैठ जाता है। कुछ देर बाद बड़े बाबू तशरीफ लाते दिखलायी पड़े। वह उनके पास पहुँच जाता है ,बड़ी विनम्रता के साथ। बड़े बाबू कुर्सी पर बैठ जाते है और फाइलों को खोलते हुए बोले, - "तुम्हारा लेटर बन गया है।बस .....!" बस जैसा शब्द सुनते ही उसके मुँह का थूक गले के भीतर जाते - जाते रह गया। बस ओ.एस. के साइन होने बाकी है। वह तो चार बजे तक ही हो पायेगा।" उसे लगा कि अब वह निस्तार नहीं पायेगा। लगा कि जैसे साँप छछूंदर की गति हो गयी है उसकी।

बड़े बाबू , वह अधीर हो कर बोला,- "बड़ी दूर से आया हूँ और दिन भर आपके ही दरबार में हाज़री देता रहा हूँ। कुछ तो ख्य़ाल कीजिए। " बड़े बाबू भी अपना बाड़ा तोड़ कर बाहर निकल आए। बोले - "अज़ीब इंसान हो तुम , तुम्हारे ही काम से ही सुबह से परेशान हूँ और ज़नाब कह रहे है ....!" वाक्य बीच मे छोड़ कर वह बुद्‌बुदाते हुए स्वर में कहते है, - " स्वागत , न सेवा ,बस काम चाहते है सभी।"

अचानक उसे लगा कि जैसे आत्मज्ञान मिल गया हो। उसे लगा कि इस अदने से काम के लिए उसे इतना परेशान नहीं होना चाहिये। वह धीरे से मुड़ा और आहिस्ते से घर वापस आ गया।

अगले दिन वह पूरी तैयारी के साथ गया था। जिस समय वह पहुँचा बड़े बाबू अपनी कुर्सी पर ही थे। यह एक अच्छा शगुन था। बड़े बाबू की खातिरदारी के चक्कर में वह यह भूल गया कि वह हमेशा से इस तरह की खातिरदारी से परहेज़ करता आया है।

उसने पहुँचते ही बड़े बाबू को एक लम्बा सलाम ठोंका और पास ही कुर्सी खींचते हुए बैठ गया। ऊपरी ज़ेब से एक बंद लिफाफा निकाल कर उसने मेज़ की दराज़ खोल कर लिफाफा उसमे डालते हुए कहा,-" बड़े बाबू , क्या कागज़ तैय्यार हो गया !" न चाहते हुए भी उसके स्वर में कम्पन था। अनाड़ी और खिलाड़ी में शायद यही अन्तर होता है। बड़े बाबू मूँछों मे मुस्कुराते है और अपना काम बंद करके कुर्सी के पृष्ठ भाग से टेक लगाते हुए आराम की मुद्रा मे आते है,- " भई तुम्हारे काम में बड़ी मेहनत करनी पड़ी। सोचा तुम नए हो , तुम्हें ज्यादा कष्ट न हो इसलिए व्यक्तिगत रूप से मैने रुचि ली। वरना यह सब इतनी जल्दी कहाँ हो सकता है।"

"सो तो है ! " वह भीतर ही भीतर कुढ़ता है किन्तु ऊपर मुस्कुराहट थी। ज़िन्दगी में अक्सर ऐसा हो जाता है कि आदमी करना कुछ चाहता है किन्तु कर कुछ और ही डालता है। उसने लोगों के दोगले चरित्र को तो खूब देखा था किन्तु आज स्वयं अपने आचरण पे आश्चर्य ज़रूर हुआ।

घर लौट कर वह देखता है कि सबके चेहरे पर क्या हुआ ! का भाव चिपका हुआ है। सबको एक साथ सन्तुष्ट करने की ग़रज़ से तीव्र स्वर में बोला, - "हो गया भई किसी तरह ! वाह रे सरकारी काम ! अब अगले मंगलवार को मेडिकल टेस्ट होगा।" संक्षिप्त सी जानकारी का उसने ऐलान कर दिया। जानता था कि अब कौन - कौन से सवाल दागें जायेगे।

चाय का प्याला हाथ में थमाते हुए भाभी बोली, - "पहली तन्ख्वाह में मेरा कमीशन मत भूल जाना देवर जी।" चाय की चुस्की लेते हुए उसी अंदाज़ में बोला वह, - "अभी और न जाने कितने बंद लिफाफे का प्रबन्ध करना होगा , पहले उसकी तो सोचों भाभी।" कह कर चाय का प्याला थामें - थामें वह माँ के पास पहुँच जाता है - "दवा खायी अम्मा !"

"हाँ , पर तेरे काम का क्या हुआ !"

" जिसके सिर पर तुम जैसी माँ का आशिर्वाद हो , काम तो उसका होना ही है अम्मा।"

"माँ तो सभी का भला चाहती रे , तू भी लग जाता तो एक ज़िम्मेदारी यह भी कम हो जाती।"

माँ की बात सुन कर वह सोचने लगता है कि दूसरो की ज़िन्दगी को सवाँरने सजाने में आदमी खुद किस क़दर घिस जाता है , क्या कुछ खो देता है , शायद उसे खुद भी नहीं मालूम पड़ता। जब से उसने होश सम्भाला है, उसे नहीं याद कि उसकी माँ ने कोई भी दिन बिना दवा के गु़ज़ारी हो। वह आज तक नहीं समझ पाया कि आखिर किस सुख के लिए उसने इतने कष्ट उठाये।

इधर माँ की तबियत कुछ ज्यादा ही खराब चल रही थी। खून की कमी और दमा की बीमारी तो थी ही साथ ही जब कभी खाँसी का लम्बा दौर चलता तो पूरा शरीर जैसे हिल उठता था। लगता शरीर से प्राण जैसे निकलना चाह रहे हो लेकिन सूखे कफ की तरह भीतर ही रह जाता। एक असहनीय और अदर्शनीय कष्ट ! लेकिन जिसे देखा भी जाता और सहा भी जाता। इसी से इच्छा तो नहीं हो रही थी कि वह ट्रेनिंग पर जावे। किन्तु आज के ज़माने में हाथ आयी नौकरी क्या इतनी सहजता से छोड़ी जा सकती है। सच, कितना विवस है आदमी।

" चलो हटो, जरा रास्ता छोड़ो !" खड़े - खड़े जब दो तिहाई टांगें दुखने लगी तो किसी का स्वर उसके कानों से टकराया। देखा डाक्टर का सहायक था। और उसके पीछे - पीछे डाक्टर साहब चले आ रहे थे। अब बारी - बारी से सबका मेडिकल होना था। अपनी बारी में वह भी भीतर पहुँचा। जिस तरह टेपरिकार्डर में सवाल भरे हो उसी तरह डाक्टर सबसे एक जैसे ही सवाल कर रहा था।

" कभी बुखार आया था।"

" नहीं।"

"खाँस के बताओ !"

वह खाँस के बताता है।

"पंजों के बल खड़े हो।"

वह खड़ा हो कर दिखाता है

"कभी टायफाइड हुआ था।"

"नहीं।"

"पैन्ट उतारो !" टार्च की रौशनी एकाएक भभकी। "ठीक है ऊपर कर लो। बाहर जाओ।" डाक्टर देखता जा रहा था और उतनी तेजी से कुछ लिखता भी जा रहा था

उसने रोबोट कभी भी नहीं देखा था लेकिन जैसे वातावरण से वह निकला था, उससे लगने लगा कि कुछ इसी तरह का होगा।

एक्स-रे के लिए जब वह सभी लोग पहुँचे तो पहले ही कह दिया गया कि फी-आदमी पचास रूपया लेकर भीतर पहुँचे।

"फी आदमी पचास रूपया ! इसका क्या मतलब हुआ। "उसने अपने बगल में खड़े कुछ लोगो से पूछा।" "मतलब ......मतलब यही है कि सही रिपोर्ट की गारन्टी !"

"लेकिन मुझे तो कोई रोग नहीं है। फिर मैं क्यों रूपये दूं।"

"रोग नहीं है तो लगाया जा सकता है और रिपोर्ट ग़लत भी तो बनायी जा सकती।" बगल वाले लड़के का स्वर था यह।

"क्या ये ऐसा कर सकेंगे !" उसे जैसे विश्वास नहीं हो रहा था।

"कर सकेंगे !" " प्यारे ये ऐसा ही करते है। हूज़ूर आप इक्कसवीं सदी में जी रहे है लेकिन तर्क करने की आदत नहीं छोड़ रहे है। जैसा सब कर रहे है ,वैसा तुम भी करो वरना माहौल खराब हो जायेगा।"

माहौल खराब हो जायगा। वह सबके चेहरे को ताकने लगता है। होना तो यह चाहिए था कि सबके चेहरे शर्म से झुक जाते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि उसने स्वयं अपने कन्धे हताशा में झुका लिए। और सामने कुर्सी पर एक सरदार जी के बगल में बैठ गया। बोला,- "सुन रहे हो न यार, इन लोगों की बात को।"

"ठीक ही तो कह रहे है।" सरदार जी का सपाट सा उत्तर था।

"क्या ठीक कह रहे हैं।" उसके स्वर में थोड़ी उत्तेजना थी, पर कदाचित सरदार जी ने सुना ही नहीं। वह अपनी रौ में बोलते रहे- "पिछले साल मेरा चुनाव हुआ था.......इसी पद के लिए .....लेकिन डाक्टर को फीस न देने के कारण मेरी एक्स-रे रिपोर्ट खराब कर दी गयी और इलाज के लिए रोक लिया गया। इसी बीच मैंने एक प्राइवेट डाक्टर से एक्स-रे करवाया रि़पोर्ट सही निकली। उसे लेकर डी.एम.ओ. के पास पहुँचा। .....काफी लिखा पढ़ी और दौड़ धूप के बाद कही जाकर फिट सर्टिफिकेट मिला। किन्तु तब तक तीन महीने बीत चुके थे और यह कहा गया कि अगले बैच में भेजा जायेगा। ...फिर ....फिर धीरे-धीरे एक साल गुज़र गया। आज सोचता हूँ कि उस दिन डाक्टर को फीस दे दी होती तो साल भर नौकरी करते हो जाता।" सरदार जी की बात सुनते ही उसके मस्तिष्क में जैसे प्रेशर कुकर की सीटी सी बजने लगी थी।

बेचैनी के कारण वह उठ खड़ा होता है। काफी देर तक अनायास टहलता रहता है असहाय सा , होना यह चाहिए था कि उसका क्रोध उबल कर बाहर आ जाता लेकिन ऐसा नहीं हुआ। क्यों नहीं हुआ प्रेशर कुकर ..... हॉ उसे लगा उसका शरीर प्रेशर कुकर सा हो गया है। सब कुछ उबलता है किन्तु बाहर कुछ नहीं आता है। बाहर आती है तो सिर्फ हता्शा की सीटी और तमाम तरह की बड़बड़ाहट दूसरों को चार गाली देकर किसी तरह खुद का जोश कम करना, शायद यही संघर्ष रह गया है आज का! वह एक बार सभी के चेहरे को बारी-बारी देखता है। सभी व्यस्त हैं अपनी-अपनी बातों में | क्या इनके भीतर भी कुछ उबल रहा है या अपने भीतर की भाप निकाल कर इन सभी ने समझौता कर लिया है ?

वह और अधिक देर तक नहीं सोच पाता है कि उसे अपने नाम की पुकार सुनाई पडती है और वह एक्स-रे वाले कमरे में घुस जाता है। एक्स-रे करवाकर वह कमरे से निकलने वाला ही था कि उसके कानों में आवाज टकरायी, फीस! उसने नजरे उठाकर एक्स-रे वाले को देखा। लेकिन दृश्य थे कि उससे सम्भल नहीं रहे थे। उसकी ऑंखों के सामने सरदार जी का चेहरा घूम गया। नहीं.........बिल्कुल नहीं........इस वक्त उसकी ऑंखों के सामने दृश्य ठहर ही नहीं रहे थे। सरदार जी की जगह उसे दिखायी दी अपनी सदा बीमार रहने वाली मॉ और जरूरत से ज्यादा आशावादी बाप! अगर उस दिन मैने बीस रूपये दे दिए होते तो आज साल भर हो जाते नौकरी करते....! सरदार जी का स्वर जैसे उसके कानों में आकर मस्तिष्क से चुगली करने लगते हैं।

जल्दी करो भई, समय कम है। सामने वाला व्यक्ति उसे चैतन्य करता है। अय! कह कर वह कमीज की ऊपरी जेब से बीस रू. की नोट निकाल कर उसकी हथेली पर दे मारता है और झटके से बाहर निकल जाता है। जाते-जाते उसके कानों में यह आवाज टकराती है - "समय की कद्र नहीं करते चले हैं स्टेशन मास्टर बनने।"

बाहर निकल कर वह सोचने लगता है कि उसने यह क्या किया? कम से कम उसे विरोध तो करना ही चाहिए था। विरोध! कैसा विरोध! क्या उस समय तुमने विरोध किया था जब तुम मेडिकल लेटर लेने आफिस गए थे।

आदमी पुराने फैशन के कपड़े बहुत आसानी से बदल सकता है किन्तु उसकी मानसिकता को बदलना बहुत मुशकिल होता है, चाहे वे कितनी भी पुरानी क्यों न हो! और अगर तुम विरोध भी करते तो क्या अकेला चना भाड़ फोड़ सकता है ! ‘अकेला चना!’ तो क्या अकेला वह कुछ नहीं कर सकता, तो फिर पहल कौन करेगा। वह भीतर ही भीतर लडता है।

‘तुम मूर्ख हो !’ उसके अन्दर से जैसे कोई चिल्लाता है। शक्ति का सामना करने के लिए शक्ति की जरूरत होती है और अकेला आदमी कभी भी शक्ति का पर्याय नहीं हो सकता है। अगर अकेले लड़ने को तैयार ही हो तो शहीद होने के लिए भी तैयार रहो।

- ‘हॉं मै शहीद भी हो सकता हूँ। क्या शिव ने विष को आकंठ नहीं किया? क्या ईशा सूली पर नहीं टंगें। वह भी तो अकेले थे। फिर मैं क्यों नहीं.......|’

तुम ठीक सोच रहे हो लेकिन उनका क्या होगा, तुम्हारी हमेशा बीमार रहने वाली मॉ और जरूरत से ज्यादा आशावादी बाप ..........। क्या होगा उनका?

अय ! उसने सिर को एक झटका दिया अगर थोड़ी देर और सोचा तो उसके मस्तिष्क की नसे फट जायगी।

"अरे आशुतोष!” सामने से आशुतोष के गुजरते ही उसने आवाज लगायी – “अब अगला कार्यक्रम क्या है?"

"अब कल सुबह दस बजे हाजिर होइये। डाक्टर से मुठभेड़ करने के लिए, लेकिन पूरी तैयारी के साथ।"

यह भी कोई कहने की बात है। डाकुओं से मुठभेड़ हो तो पूरी तैयारी और मय अस्त्र शस्त्र के आना ही होगा। उसके शब्दों में छुपे व्यंग्य को पकड़ कर आशुतोष ने जोरदार ठहाका मारा लेकिन वह उसके ठहाके में शामिल न हो सका।

दूसरे दिन वह और उसके साथी पूरी तरह लैस होकर आए थे। अगर आदि काल का समय होता तो समर भूमि में कूदने से पहले वह अपने तीर कमान या तलवार को देखता। विज्ञान के इस युग में भी हो सकती है कुछ लोग बम या पिस्तौल लेकर चलते लेकिन इस पूँजीवादी व्यवस्था के चलते ज़िन्दगी के कुछ ऐसे भी समर है जिन्हें लड़ने के पहले आदमी को अपनी जेब देखनी पड़ती है कि वह कितनी वज़नदार है या फिर सिफारिश को तलवार कितनी नोकदार है।

अस्पताल के बरामदे में टहलते-टहलते वह अपनी जेब का वजन अंदाजना नहीं भूलता। डाक्टर ने आते ही सबको भीतर बुलाया ! भीतर कमरे में चारों तरफ तमाम रोगों के लक्षण व प्राथमिक उपचारों के पोस्टर लगे थे। सामने एक शिशु का चित्र टंगा था। शायद किसी टानिक की कम्पनी का विज्ञापन पोस्टर था वह !

वह सोचता है कि क्या वह बचपन में ऐसा ही रहा होगा। शायद नहीं! वह एक-एक कर अपने मोहल्ले के सारे बच्चों को याद करता है लेकिन कोई भी उस बच्चे सा मुस्कुराता नहीं दिखायी पड़ता। यह भी हो सकता है कि मुस्कुराहट अब केवल फोटो तक ही सीमित हो। उसे किसी फोटोग्राफर का यह वाक्य याद आता है "स्माइल प्लीज़"।

अचानक डाक्टर के वाक्य से उसकी तंद्रा भंग होती है और वह चौक कर डाक्टर के चेहरे को देखने लगता है। डाक्टर बोल रहे थे, "देखो, तुम लोगों को कितनी मुश्किल से यह नौकरी मिली है और तुम लोगों में से कोई यह नहीं चाहेगा कि यह अवसर हाथ से निकले! मै भी नहीं चाहता की तुम लोगों को मेडिकल में अनफिट कर तुम्हें नौकरी से वंचित करू। काम ऐसा हो जिसमें तुम्हें भी खुशी हो और मुझे भी। कोई जोर जबरदस्ती की बात नहीं है, बात खुशी की है।"

थोड़ा रूकता है! डा। फिर बोला, - "अच्छा अब आप लोग बाहर जाइये तथा अपनी-अपनी बारी की प्रतीक्षा करें। उसकी समझ में नहीं आया वह डाक्टर के चेहरे पर किसी बनिये का चेहरा लगाए या किसी भिखारी का। बहरहाल इस समय वह बाहर था।

इसके बाद एक-एक लड़के से मोल भाव शुरू हुआ। पचास से दो सौ रूपये तक के बीच सौदा रहा। अपनी जेब से सौ रूपये निकालते वक्त वह सोच रहा था कि इस महीने या तो दूध वाले की चिरौरी करनी पडेगी या राशन वाले दुकानदार को पटाना होगा। आखिरकार बजट के इस घाटे को और पूरा ही कहां किया जा सकता है ..........!

--

इति

सतीश चन्द्र श्रीवास्तव

5/2 ए रामानन्द नगर, अल्लापुर, इलाहाबाद,

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन - 50 - सतीश चन्द्र श्रीवास्तव की कहानी : छोटे छोटे समर
कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन - 50 - सतीश चन्द्र श्रीवास्तव की कहानी : छोटे छोटे समर
http://lh5.ggpht.com/-eKAJjVV6-QQ/T4lpBLr3OvI/AAAAAAAALgM/8NWwm5l_el8/image2.png?imgmax=800
http://lh5.ggpht.com/-eKAJjVV6-QQ/T4lpBLr3OvI/AAAAAAAALgM/8NWwm5l_el8/s72-c/image2.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/08/50.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/08/50.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content