कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -62- गोवर्धन यादव की कहानी : पुष्पा दी

SHARE:

कहानी पुष्पा दी गोवर्धन यादव पुष्पा दीदी का घर बस स्टैण्ड से उतनी ही दूरी पर है, जितना की रेल्वे स्टेशन से. यदि कोई रिक्शा वगैरह न भी ले...

कहानी

पुष्पा दी

गोवर्धन यादव

पुष्पा दीदी का घर बस स्टैण्ड से उतनी ही दूरी पर है, जितना की रेल्वे स्टेशन से. यदि कोई रिक्शा वगैरह न भी लेना चाहे तो बडे आराम से पैदल चलते हुए वहाँ पहुँच सकता है. लेकिन रिक्शा लेना मेरी अपनी मजबूरी थी.

‘ पिछली घटना को मैं आज तक भूला नहीं पाया हूँ. एक दिन ऐसे ही किसी कार्यक्रम में मुझे दीदी के यहाँ जाने का अवसर आया.था. बस से उतरते ही, मैंने अपना बैग पीठ पर टांगा और यह सोचते हुए पैदल ही चल निकला कि इतनी सी दूरी के लिए क्यों दस_पन्द्रह रुपया खर्च किया जाएं. गेट पर पहली मुलाकात दीदी की सास से हुई. मैं शिष्ठाचारवश हाथ जोडकर नमस्ते कह पाता और उनके चरणों में अपना सिर नवा पाता,कि वे बरस पडी;”-कैसे उठाईगिर जैसे चले आते हैं ?,क्या दस-पांच रुपट्टी का रिक्शा भी नहीं लिया जाता तुमसे ? पता नहीं कैसे-रिश्तेदारों से पाला पडा है.”कहते हुए उन्होंने अपना नाक-मुँह सिकोडा था. सुनते ही तन-बदन में आग सी लग गई थी,लेकिन वे दीदी की सास थी, और पता नहीं बाद में वे उन्हे कितनी खरी-खोटी सुनाती. यह सोच कर मैंने कोई जबाब देना उचित नही समझा और चुपचाप वहाँ से खिसक जाना ही श्रेयस्कर लगा था मुझे. उस घटना के बाद से शायद ही कोई ऐसा अवसर आया हो और मैंने रिक्शा न लिया हो.

रिक्शा अपनी गति से भाग रहा था. लगभग उससे दूनी रफ़्तार से मेरा दिमाग दौड रहा था. रिक्शा मोटर स्टैण्ड से पहला मोड लेते हुए वह उस चौराहे से गुजरेगा, जहाँ दाहिनी ओर पंकज टाकीज और बायीं तरफ़ कमली वाले बाबा की मजार है.वह वहाँ से बाय़ीं तरफ़ मुड जाएगा फ़िर दायीं ओर. और तीर की तरह सीधा चलते हुए एक पतली सी गली में मुडेगा. उसी पतली सी गली में पुष्पा दीदी का ससुराल है, जहाँ वह पिछले दस साल से कैद है.

‍पुष्पा दी की शादी के बाद से मेरा वहाँ चौथी बार जाना हो रहा है. पहली बार तो पिताजी के साथ लिवावट में जाना हुआ था. दूसरी बार जब उसके बेटा पैदा हुआ था, तब माँ ने पिटारा भर सोंठ- मेथी के लड्डू जिसमें काजू, बादाम और भी न जाने कितने मेवे डले हुए थे और पांच किलो घी के डिब्बे के साथ मुझे भेजा था. तीसरी बार दीदी के देवर की शादी थी और चौथी बार मुझे उनकी ननद की शादी मे शरीक होना था. जब-जब भी मुझे वहाँ जाने का हुक्म हुआ, तब-तब मैंने साफ़ जाने से इनकार कर दिया था. इनकार करने के पीछे भी अपने ठोस कारण थे. पहला तो यह कि मुझे आने-जाने की टिकिट के अलावा गिनती के पैसे दिए जाते. और साथ में ढेरों सारी हिदायतें कि मुझे जाते ही सबसे पहले दीदी के सास-ससुर के पैर छूने हैं और उनके हाथ में कुछ नगद राशि भी भेंट में देना है. फ़िर हारे हुए जुआरी की तरह उनके सामने बैठे रहना है. जब तक वे यह आदेश न दे दें कि जा अपनी दीदी से मिल आ, तब तक वहाँ से हिलना मत. और तब तक इधर-उधर तांक-झांक भी मत करना. माँ और पिताजी मेरी आदत जानते थे कि मैं जरुरत से ज्यादा बतियाने लगता हूँ, सो यह हिदायत भी घुट्टी की तरह पिला दी गई कि ज्यादा बात मत करना. जितना वे कहें ,केवल उनकी बातों में हाँ में हाँ मिलाते रहना. अपनी तरफ़ से कुछ भी मत कहना .यदि वे हमारे बारे में पूछें कि वे क्यों नहीं आए तो कोई भी बहाना बतला देना. कहना माँ की तो बडी इच्छा थी लेकिन दमे के चलते वे न आ सकीं और बापू के बारे में पूछें तो बतला देना कि वे किसी जरुरी काम से बाहर गए हुए हैं.

दीदी के यहाँ जब भी जाने की बात होती है, सब कन्नी काट जाते हैं और मुझे ही बलि का बकरा बना दिया जाता है. मैंने इस बात के विरोध में अपना मन्तव्य दिया ही था कि पिताजी ने एक जोरदार तमाचा मेरे बाएं गाल पर जड़ दिया और उस कमरे से बाहर निकल गए थे. मुझे इस बात का तनिक भी अंदेशा नहीं था कि मेरे न कहने पर इतनी बडी सजा मिल सकती है. चांटा पड़ते ही मेरा दिमाग झनझना गया था और आँखें बरसने लगी थी .मन में एक चक्रवाती तूफ़ान उठ खड़ा हुआ था ,जो देर तक सक्रिय बना रहा था. मेरे अपने जीवन की यह पहली यादगार घटना थी.

--

रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. अपनी अप्रकाशित कहानी भेज सकते हैं अथवा पुरस्कार व प्रायोजन स्वरूप आप अपनी किताबें पुरस्कृतों को भेंट दे सकते हैं. कहानी भेजने की अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2012 है.

अधिक व अद्यतन जानकारी के लिए यह कड़ी देखें - http://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_07.html

image

----

 

मैं सिर नीचे किए देर तक सुबकता रहा था कि अचानक पीठ पर हल्का सा स्पर्श पाकर मेरी चेतना लौटी. मैंने पीछे पलटकर देखा. माँ थीं. देखते ही मैं उनसे लिपट्कर रो पडा. थोड़ी देर तक चुप रहने के बाद वे मुझसे मुखातिब हुई और उन्होंने मुझे समझाते हुए कहा:-“ विजय...तुम इस घर के बड़े हो, समझदार हो. तुम्हारे अलावा है भी कौन जिसे भेजा जाए.? यदि इस घर से कोई नहीं गया तो बडा अनर्थ हो जाएगा और वे लोग पुष्पा को टेच-टेच के लहुलुहान कर देंगे. उसे दोहरे आंसू रुलाएंगे. क्या तुम चाहोगे कि ऎसा हो? नहीं न! फ़िर क्यों तुम जाने से मना कर रहे हो. हम दोनों में से कोई वहाँ जाने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पाते हैं ,क्या यह तुम जानना नहीं चाहोगे.? सुनो- घर के हालात तुमसे छिपे नहीं है. केवल एक अकेले तुम्हारे बाबूजी कमाने वाले हैं और दस लोग बैठ्कर खाने वाले हैं. घर का खर्च किस तरह चलता है यह भी तुम्हें बतलाने की आवश्यकता नहीं है. फ़िर हमारे पास बाप-दादाओं की जमा पूंजी भी नहीं है. चूंकि उस घर में हमारी बेटी बिहाई है तो हमें वहाँ के सभी छोटे-बड़े कर्यक्रम में जाना जरुरी हो जाता है और वहाँ के नियमों के तहत उस प्रकार से नेंग-दस्तूर भी करने पड़ते हैं. तुम जानते ही हो कि पुष्पा का परिवार करोड़पति परिवार है और हमें उनके स्टेट्स के मुताबिक व्यवहार करना होता है, जिसकी हमारी हैसियत नहीं है. यदि हम में से कोई वहाँ जाए और हल्का-पतला व्यवहार ले जाए तो भरे समाज में हमारी किरकिरी होती है. कोई कहे, न कहे ,हम अपनी ही नजरों में गिर जाते हैं. बेटा हममें इतनी हिम्मत नहीं है कि हम वहाँ थोड़ी देर भी रुक पाएं. तुम्हारे जाने से उन्हें यह कहने का मौका नहीं मिलेगा कि हमारे यहाँ से कोई नहीं आया. दूसरे तुम्हारी गिनती लड़कों में आती है. अतः कोई तुम्हें उलहाना भी नहीं देगा. समझ रहे हो ना तुम मेरी बात को गहराई से !” माँ इतना कह कर चुप हो गईं थीं .मैंने नजरे ऊपर उठा कर देखा, उनकी आँखों में आंसू झर रहे थे. लगातार झर रहे आंसुओं को देखकर मेरा धीरज डोल उठा था. अब कहने सुनने लायक कुछ बचा ही नहीं था .बावजूद इसके एक प्रश्न लगातार मेरा पीछा कर रहा था. मैंने हिम्मत बटोरकर पूछा:”-माँ..संबंध हमेशा अपने बराबरी वालों से किया जाता है, फ़िर आपने पुष्पा दीदी का संबंध इतने बड़े घराने में क्यों कर दिया.? “

जवाब देने की बारी अब माँ की थी. एक लंबी चुप्पी के बाद उन्होंने कहा:- हाँ..हमें यह सब पता था और पता था इस बात का भी कि हम अपनी हैसियत से बाहर यह काम करने जा रहे हैं. पुष्पा सयानी हो चली थी. उसके रूप-गुण की चर्चाएँ यहाँ-वहाँ, जब-तब होती रहती थी जमाना कितना खराब चल रहा है यह भी तू जानता है..हमें रात-दिन एक ही चिन्ता खाए जा रही थी कि उसकी शादी किसी अच्छे घराने में हो जाए. और हम चैन की नींद सो सकें. मैंने इस बात का जिक्र अपने भैया से किया था. उन्होंने मुझे आश्वस्त करते हुए कहा “जिज्जी मेरी नजरों में एक अच्छा सा लड़का है. पढ़ा-दिखा है और देखने-परखने मे नम्बर एक .किसी बैंक-वैंक मे नौकरी कर रहा है. घर से करोड़पति है. उसके माता-पिता को एक निहायत ही खूबसूरत लड़की की तलाश है. मुझे पक्का यकीन है कि पुष्पा देखते ही पसन्द कर ली जाएगी. मैंने उन्हें तुम लोगॊ के बारे में विस्तार से बतला दिया है. लड़के के पिता का कहना है कि वे दहेज लेकर शादी नहीं करेंगे. यदि उन्हें लड़की पसन्द आ गई तो हम चट मंगनी-पट शादी का इरादा रखते हैं. संभव है कि वे अगले सप्ताह तुम्हारे यहाँ पहुँचने वाले हैं. मैं भी साथ रहूँगा, अतः चिन्ता कराने की जरुरत नहीं है.”

जैसा तुम्हारे मामाजी ने कहा था, वे पुष्पा को देखने चले आए, और उसे देखते ही रिश्ता पक्का हो गया. हमसे भी जितना बन पड़ा, दहेज में हमने सभी आवश्यक चीजें दी. पुष्पा अपने घर में मजे में है .एक मां-बाप को और क्या चाहिए कि उनकी बेटी राजरानी की तरह रह रही है. चूंकि उनके घर में किसी प्रकार की कमी नहीं है ,अतः वे दिल खोलकर खर्च करते हैं. पिछली बार जब हम उनकी बड़ी बेटी की शादी में गए थे, तो दहेज में उन्होंने पचास तोले सोने के जेवर अपनी बेटी को दिए थे और साथ में एक मारुति गाड़ी. टीके में उन्होंने एक लाख नगद भी दिया था. अब तुम्हीं बताओ विजय, हम उनकी पासंग में कहाँ बैठते हैं ?”.

माँ की बात जेहन में उतर गई थी और मैं जाने के लिए तैयार हो गया था.

काफ़ी समय पहले पिताजी ने प्लाइ का बना सूटकेस खरीदा था, जो वर्षॊं से पड़ा धूल खा रहा था. मैंने आहिस्ता से उसे नीचे उतारा. उस पर पड़ी धूल को साफ़ किया अपने कपड़े रख ही रहा था, तभी माँ ने कमरे में प्रवेश किया. उनके हाथ में प्लास्टिक का एक बैग था. बैग मुझे थमाते हुए उन्होंने कहा कि जाते बराबर इसे पुष्पा को दे देना. और ये दो सौ रुपए हैं, जो आने-जाने की टिकिट और नेग-दस्तूर के लिए हैं. इसे सोच -समझ कर खर्च करना.

बस से उतरते ही मुझे रिक्शे वालों ने घेर लिया. तत्काल मुझे पिछली बातें याद हो आयी. रिक्शा न लेने पर दीदी की सास के द्वारा दिया गया उलहाना किसी टेप की तरह मेरे कानों में बजने लगा था. मैंने अब की रिक्शे से न जाकर आटो से जाने का मन बनाया. बडॆ मुश्किल से एक आटो वाला बीस रुपए में जाने को तैयार हुआ. मैंने बड़ी शान से अपना सामान आटो में रखा और वह चल पड़ा. रास्ता चलते मेरी आँखों के सामने दीदी की सास का चेहरा दिखलाई पड़ता. मैं सोचने लगा था कि जाते बराबर ही वे मुझे दरवाजे पर बैठी मिलेगी और मैं उनके सामने आटो से उतरते दिखूंगा तो उनके कहने के लिए कुछ नहीं बचेगा और न ही वे मुझे जलील कर पाएगीं.

आटो अब उनके दरवाजे के ठीक सामने जाकर रुका.. मैंने देखा कि दरवाजे पर कोई भी नहीं है. मेरा मन बुझ सा गया था और एक पछतावा भी होने लगा था कि मैंने नाहक ही इतने सारे पैसे खर्च किए. यदि मैं पैदल भी चला आता तो यहाँ देखने और कहने वाला कौन था ? खैर, अब जो हो चुका उसके लिए क्या पछताना. प्रवेश द्वार को पार करते हुए मैं काफ़ी अन्दर तक चला आया था लेकिन वहाँ भी कोई मौजूद नहीं था. मेरी व्यग्रता बढ़ती जा रही थी कि आखिर सब कहाँ चले गए, जबकि शादी वाले घर में तो भीड़-भाड़ रहती ही है. मेरी नजरें अब दीदी को खोजने लगी थीं.

लगभग पूरे घर को लांघते हुए मैं पिछवाड़े तक चला आया था. घर के ठीक पीछे बड़ा सा बाड़ा था, जो मुख्य सड़क से जा मिलता है. वहाँ जाकर मैंने देखा कि पुष्पा दी के ससुर कुर्सी में विराजमान है. मैंने जाते ही सूटकेस को नीचे रखते हुए उन्हें प्रणाम किया और उनके चरण स्पर्श किए. मुझे देखते ही उन्होंने कहा”- अरे विजय..कब आए ? थूक से हलक को गीला करते हुए मैंने कहा:-बस, मैं चला ही आ रहा हूँ.” वाक्य समाप्त भी नहीं हुआ था कि उन्होंने दूसरा प्रश्न उछाल दिया:-काहे..मास्टरजी नहीं आए”. तो मैंने कहा:-बाबूजी का मन तो इस बार आने का था और उन्होंने छुट्टी भी ले रखी थी लेकिन अचानक स्वास्थ्य गड़बड़ हो जाने की वजह से नहीं आ पाए. वे और कोई दूसरा प्रश्न दाग पाते ,मैंने आगे बोलते हुए अम्माजी के न आ सकने का कारण भी कह सुनाया कि उन्हें अस्थमा ने बुरी तरह से परेशान कर रखा है, अन्यथा उनका इस बार आना तय था.

काफ़ी देर तक चुप्पी साधे रहने के बाद उन्होंने मौन तोड़ते हुए कहा:”-विजय...तुम्हारे बाबूजी क्यों नहीं आए इसका कारण मैं समझ सकता हूँ. पर उन्हें इस बार आना चाहिए था क्योंकि मेरे घर की यह आखिरी शादी है. इसके बाद जब भी कोई शादी होगी तो वह हमारे पोते की ही होगी. खैर.” उन्होंने लंबी सांस लेते हुए मुझसे कहा:-“ विजय, मुझे लगता है कि इस समय घर में कोई नहीं होगा. तुम्हारे जीजाजी और जिज्जी सभी पूजा प्लस में मिलेंगे. बारात शाम को लगेगी,शायद उसी की तैयारी में वे लोग लगे होगें. तुम ऎसा करो, अपना सामान अपनी जिज्जी के कमरे में रख दो और मुँह-हाथ धोकर फ़्रेश भी हो लो और जब लौटकर आओ तो साथ बैठकर चाय पीते हैं, फ़िर हम भी वहीं चले चलेगें.”

दादाजी की बातें सुनकर मैं थोड़ा सहज हुआ था. दादी होतीं तो पता नहीं कितनी खरी-खोटी सुनाती .इससे पहले भी मैं यहाँ आया हूँ तो हर बार उन्हीं के साथ बैठकर बातें करता रहा हूँ. वे भी मेरी तरह ही बड़बोले हैं. हमारी बातें सुनकर वे चिढ़ भी जाती थी और उल्हाना देकर कह उठती थी कि दोनों मिलकर क्या उलटी-सुलटी बातें करते रहते हो .कभी-कभी तो वे यहाँ तक भी कह जातीं कि बुढा गए हो लेकिन छोकरों की जैसी बातें करते तुम्हें शर्म नहीं आती. थोड़ा उमर का भी तो ख्याल किया करो. दादी कि जली-कटी बातें सुनकर वे तैश में आ जाते और लगभग डांटते हुए कहते” तुम चुप बैठो जी, हमारे और विजय के बीच अपना मुँह मत खोलो. यदि सुनना अच्छा नहीं लगता है तो किसी दूसरे कमरे में चली जाओ”.

प्रत्युत्तर में केवल”जी” कहता हुआ मैं वहाँ से सीधे दीदी के कमरे में चला आया. अपना सामान रखते हुए मैंने मुँह-हाथ धोये. सफ़र में कपड़े गंदे हो गए थे, सो उन्हें बदला और छैला बाबू बनकर दादाजी के पास आ गया. मुझे आया देख उन्होंने पास ही पड़ी कुर्सी पर बैठने का इशारा किया और हांक लगाते हुए अपने नौकर रामू से चाय लाने को कहा. थोड़ी ही देर में वह चाय बनाकर ले आया था. हम दोनों ने साथ मिलकर चाय पी. चाय के समाप्त होते ही उन्होंने अपनी छड़ी उठाई और बोले “चलो चलते हैं.”

लाँन की साज-सज्जा देखकर मैं अभिभूत हुआ जा रहा था. स्वागत-द्वार मिट्टी के दो बड़े हाथी अपनी सूंड में भारी-भरकम माला लिए स्वागत की मुद्रा में खडे थे. बाउन्ड्री- वाल के किनारे लगे पेड़ों पर बल्बों की झालरें लहरा रही थीं, जिनसे रंग-बिरंगी रोशनी झर रही थी. दो स्प्रे मशीनें सुगन्धित इत्र का छिडकाव कर रही थीं. गेट से लेकर मंच तक कारपेट बिछा दी गयी थी. अन्दर लान में दांए-बांए अप्सराओं की आदमकद मूर्तियां बनी थी, जो लान की सुन्दरता मे चार चांद लगा रही थीं. मण्ढप मे जगह-जगह फ़ानूसें लटक रही थी. लान इस समय किसी राजमहल से कम दिखाई नहीं दे रहा था. दादाजी के साथ अन्दर प्रवेश करते ही मेरी नजरें जीजाजी और जिज्जी को खोजने लगी थी. जीजाजी तो मुझे दिखाई दे गए. वे इस समय नौकरों को आवश्यक दिशा निर्देश दे रहे थे. लेकिन वहाँ जिज्जी नहीं थीं .शायद अन्यत्र कहीं व्यस्त होगीं. मैंने दादाजी का साथ छोडकर अपने कदम उस ओर बढाए जहाँ जीजाजी खडे थे. पास पहुँच कर मैंने उनके चरण स्पर्श किए. गले लगाते हुए उन्होंने मेरी तथा परिवार की कुशल क्षेम पूछे और मुझसे कहा कि मैं अपनी दीदी से मिल आऊँ, जो इस समय रसोई घर में वहाँ की व्यवस्था देखने गई हुई हैं.

मैं अपनी दीदी से मिलने को ललायित था. सो आदेश पाते ही मैंने उस ओर दौड़ लगा दी. पलक झपकते ही मैं उनके सामने खड़ा था. मैंने झट उनके चरण स्पर्श किए. उन्होंने मुझे गले लगा लिया और देर तक मुझे अपने से लिपटाए रखा. मैं अपनी दीदी से कई बरस बाद जो मिल रहा था. पल-दो पल बाद जब मैं उनसे अलग हुआ तो देखा कि उनकी आँखों से अश्रु झर रहे थे. दीदी के दिल पर इस समय क्या बीत रही होगी, इसे मैं समझ सकता हूँ. उन्हें रोता देख मैं भी अपने आपको रोक नहीं पाया था. और मैं भी रो पड़ा था. हम अत्यन्त ही पास-पास खडे थे, लेकिन हमारे बीच मौन पसरा पडा था. देर तक अन्यमस्क खड़े रहने के बाद उनका मौन मुखर हो उठा. उन्होंने मेरी पढाई-लिखाई के बारे में ढेरों सारी जानकारियाँ ली और माँ-बाबूजी के हालचाल पूछे. कई अन्य जानकारियाँ लेने के बावजूद उन्होंने माँ-बाबूजी के न आने के बारे में कुछ भी नहीं पूछा. शायद वे इसका कारण भली-भांति जानती थी. मैं इस समय उस बोझिल माहौल को और भी बोझिल बनाना नहीं चाहता था .सो मैंने उनसे कहा “जिज्जी..फ़िर बाद में बैठकर बातें करेगें. अभी मैं जाकर जीजाजी की सहायता में लग जाऊँ”. और मैं वहाँ से खिसक लिया था.

अभी दिन के तीन बजे थे और बारात रात के करीब नौ बजे के आसपास लगनी थी. जीजाजी और पुष्पादी चारों तरफ़ घूम-धूम कर बारीकी से हर काम का मुआयना कर रहे थे. ताकि बाद में परेशानी न उठानी पड़े.

इसी बीच नेग-दस्तूर का कार्यक्रम शुरु हो गया था. हमें खबर दी गई. मैं, जिज्जी और जीजाजी सभी वहाँ पहुँच गए थे. महिलाएँ बारी-बारी से आतीं, दादाजी और दादी को हल्दी लगाती और भेंट में लाए कपड़े देती और अपनी जगह पर जा बैठतीं. मैं एक कुर्सी पर धंसा यह सब देख रहा था कि जो भी महिला उस दस्तूर को करने के लिए आगे बढ़ रही थी, उन्होंने दादी के लिए कीमती साड़ी तथा दादाजी के लिए बेहतरीन कपड़े लाए थे. तभी मुझे याद आया कि घर से चलते समय माँ ने जो कपड़ों का गठ्ठर दिया था उसे तो मैं जिज्जी के कमरे में ही छोड आया था. उसमें कितने कीमती कपड़े होंगे, यह तो मैं नहीं जानता, लेकिन मुझे इतना मालूम है कि माँ ने वे सारे कपड़े फ़ेरी वाले से किश्तों में खरीदे थे और वे कितने उमदा किस्म के होंगे, यह मैं समझ सकता हूँ. मेरे मन में एक द्वंद उठ खड़ा हुआ था कि मैं उस गठ्ठर को लेने जाउँ या नहीं.?

--

COMMENTS

BLOGGER: 2
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -62- गोवर्धन यादव की कहानी : पुष्पा दी
कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -62- गोवर्धन यादव की कहानी : पुष्पा दी
http://lh6.ggpht.com/-hgOh6Yh1NXc/T-l7rRwrIeI/AAAAAAAAMrU/wM9HztlRh7U/clip_image002%25255B3%25255D.png?imgmax=800
http://lh6.ggpht.com/-hgOh6Yh1NXc/T-l7rRwrIeI/AAAAAAAAMrU/wM9HztlRh7U/s72-c/clip_image002%25255B3%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/08/62.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/08/62.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content