विजेंद्र शर्मा का आलेख : इश्तिहार से चस्पा हैं हम …फेसबुक की दीवार पे..

SHARE:

मज़हब के नाम पे होने वाले दंगों का हमारे मुल्क में अपना दुर्भाग्य पूर्ण इतिहास रहा है। दंगे क्यूँ होते हैं? दंगे कौन करवाता है? दंगे क्यूँ भ...

मज़हब के नाम पे होने वाले दंगों का हमारे मुल्क में अपना दुर्भाग्य पूर्ण इतिहास रहा है। दंगे क्यूँ होते हैं? दंगे कौन करवाता है? दंगे क्यूँ भड़कते हैं? दंगों की आग को हवा कौन देता है? वगैरा - वगैरा सवालों के जवाब तलाशने पे जो कारण सामने आते हैं वो ये है कि सियासी रोटियाँ सेकने के लिए "साम्प्रदायिक दंगे " एक इंधन है और इस इंधन को हवा देती हैं अफ़वाहें।

आसाम में हाल ही में हुए अजीब -गरीब किस्म के दंगों से भी पहले एक दिन मैं "दंगो का मनोविज्ञान" नाम की एक किताब पढ़ रहा था जो कि एक सेवा निवृत भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी द्वारा अपने अनुभव के आधार पर लिखी गयी है। अचानक अंग्रेज़ी की एक कहावत पढ़ने को मिली " RUMOURS HAVE WINGS " यानी अफ़वाहों के पंख होते हैं , इस कहावत ने ज़हन में हलचल पैदा कर दी। मैं सोचने लगा कि जब सब जानते हैं कि ये ख़बर महज़ अफ़वाह है फिर भी हम उस अफ़वाह पे यक़ीन क्यूँ कर लेते हैं। हम अपने ज़हन ओ दिलकी खिड़कियाँ लाख बंद कर लें फिर भी ये अफवाहें मजबूत कुण्डियाँ तोड़ कर अन्दर दाख़िल हो जाती हैं। अंग्रेज़ी ज़ुबान की ये कहावत मुझे उतनी ही सच्ची लगी जितना सच्चा येफ़िकरा है कि सूरज रोज़ाना पूरब में उगता है और पश्चिम में डूब जाता है। मेरे भीतर बची थोड़ी - बहुत संवेदनाओं ने फिर मेरी फ़िक्र से उलझना शुरू कर दिया और दो पंक्तियाँ हुई :----

उलझे नहीं अज़ान से , फिर मंदिर के शंख।

अगर वक़्त पे नोच दें ,अफ़वाहों के पंख।!

अफ़वाहों ने अपना बद-रंग फिर से दिखाया ,इस बार अमन के दुश्मनों ने अपनी साज़िश को अंजाम देने के लिए इंटरनेट पे कैंसर के जाल की तरह फ़ैल गयी सोशियल साईट फेसबुक और ट्विटर का इस्तेमाल किया। किसी सिरफिरे ने ये अफ़वाह फैला दी की ""बंगलुरु में अब नोर्थ ईस्ट के लोगों की ख़ैर नहीं ..."" और यही झूठी ख़बर ट्विटर पे भी एक ट्वीट के ज़रिये डाल दी गयी। सम्प्रेषण की तकनीक में आयी इस नयी क्रान्ति ने अपना असर दिखाया और देखते ही देखते इस अफ़वाह ने दहशत के पंख लगाकर पूरे हिन्दुस्तान के आसमान के नाजाने कितने चक्कर लगा लिए। एक घंटे के भीतर - भीतर बंगलुरु से गोहाटी जाने वाली गाड़ियों के पंद्रह हज़ार टिकट बुक हो गये , प्रशासन में हडकंप मच गया बंगलुरु स्टेशन कुछ देर में गोहाटी का भीड़ - भाड़ वाला बाज़ार सा नज़र आने लगा। फेसबुक की बद-रंग हो चुकी वाल पे लिखी सिर्फ़ एक चिंगारी ने हमारे यक़ीन ,एकता में अनेकता , कश्मीर से कन्याकुमारी तक हम एक है , आदी जुमलों की धज्जियां उड़ा के रख दी। कर्नाटक के गृह मंत्री ने स्टेशन पे आकर नोर्थ ईस्ट के लोगों से हिजरत( पलायन ) ना करने की अपील की मगर अफ़वाह के मुक़ाबिल बेबस खड़ा यक़ीन हार गया और हमारी कता और अखंडता के दुश्मनों की ये तरक़ीब कामयाब रही। इंटर नेट की इन सामाजिक साइट्स पे रचे जाने वाले असामाजिक षड्यंत्र की सफलता पे मेरे पास अफ़सोस करने को सिर्फ़ मेरे ये दो मिसरे रह गये :----

यार तुम्हारी चाल ने , ऐसी डाली फूट।

अफ़वाहों के सामने , गया भरोसा टूट।!

इन दिनों फेसबुक पे लोगों को बरगलाने के लिए तरह - तरह के चित्र लगाए जा रहें हैं और विडंबना ये है कि अच्छे - भले समझदार लोग उनको लाइक ( ये फेसबुक पे प्रयोग में लाई जाने वाली एक टर्म है ) कर रहें है , उन्हें आगे भी शेयर कर रहें है। एक चित्र थाईलैंड में सुनामी के वक़्त लाशों के ढेर का है उसके पास कुछ बोद्ध - लामा खड़े है ..जो बेचारे सिर्फ आपदा प्रबंधन में लगे है मगर फेसबुक पे कुछ असामाजिक तत्व इसे "बर्मा में हो रहे मुसलमानों पे ज़ुल्म" कह कर दिखा रहें है। सरकार को तो सिर्फ़ अपने अस्तित्व को बचाने की फ़िक्र लगी रहती है! ऐसी अफ़वाह उड़ाने वालों पर हुकूमत का कोई नियंत्रण नहीं है। नोर्थ ईस्ट के लोगों के मुल्क के विभिन्न हिस्सों से हो रहे पलायन के बाद सरकार अब नींद से थोड़ा जागी तो है मगर वो कुछ कारगर क़दम उठा पायेगी इसका अभी भ्रम है।

अक्टूबर 2003 में हावर्ड के विद्यार्थी मार्क ज़ुकरबर्ग ने जब फेसबुक की कल्पना की थी तो ये सोचा भी ना था कि ये एक दिन एक भयंकर मरज़ का रूप धारण कर लेगी। ऑरकुट के बादबनी ये सोशियल साईट आज दुनिया के घर - घर तक पहुँच गयी है। क्या बच्चे ,क्या जवान और क्या बुज़ुर्ग फेसबुक नाम के संक्रमण से सभी ग्रसित है। भगवान् का शुक्र है अब सेपहले होने वाले मज़हबी -फसादों के वक़्त इस तरह की सामाजिक साइट्स अस्तित्व में नहीं थी नहीं तो दंगों में हलाक़ होने वालों की तादाद कुछ और ही होती।

इसमे कोई शक नहीं की इन सोशियल साइट्स ने बहुत से बिछुड़े हुए दोस्तों को मिलवाया , लोग अपने दूर - दराज़ रहने वाले मित्रों- सम्बन्धियों से आसानी से बात कर लेते हैं और अभिवयक्ति का एक बहुत बड़ा धरातल इन साइट्स ने प्रदान किया। पिछले तीन - चार साल में फेसबुक और ट्विटर जैसी साइट्स इस्तेमाल करने वालों का पहले तो शौक बनी फिर तलब और धीरे - धीरे ज़रूरत बन गयी है।

मेरे एक मित्र की बेटी नवीं जमात में पढ़ती है उसकी क्लास का हर बच्चा फेसबुक पे है। इस बात का खुलासा तब हुआ जब मित्र को किसी ने बताया कि आपकी बेटी की तस्वीर कल फेसबुक पे देखी उस आई डी का संचालन कोई और कर रहा है ,मित्र ने पड़ताल की मालूम हुआ कि ये हरक़त उसकी क्लास के ही किसी लड़के की थी। जब पूरी तहक़ीक़ात की गयी और बच्चों से डरा- धमका कर उनके मैसज बॉक्स खोल कर देखे गये तो देखने में आया कि बच्चे ऐसा - वैसा लिख रहें है जिसे सोचने भर से ही हम शर्मशार हो जायेँ। ये देन है इन सामाजिक साइट्स की ,पहले तो टी वी ने बच्चों को उम्र से पहले ही बड़ा कर दिया और अब रही -सही क़सर ऑरकुट ,फेसबुक और ट्विटर ने पूरी कर दी है।

सरकारी दफ़्तरों में काम करने वाले भी कहाँ कम हैं वे भी पूरे- पूरे दिन दफ़्तर के काम को दरकिनार कर फेसबुक की नकली दीवार पे अपनी लिखी बात पे लोगों की टिप्पणियों के इंतज़ार में बैठे रहते हैं।

यहाँ तक की सेना और सुरक्षा बालों के कुछ अधिकारी /कार्मिक भी इस बीमारी के शिकार हो गए है। फेसबुक पे एक आई एस आई की महिला एजेंट ने सेना के अधिकारी से ऐसा राब्ता (सम्बन्ध ) कायम किया कि बाद में उस अधिकारी को कोर्ट मार्शल तक की अग्नी -परीक्षा से गुज़रना पडा।

समंदर जैसी फैली दुनिया को नज़दीक लाने और पैसा कमाने की चाह में बनाई गयी ये साईट एक दिन ये कमाल करेगी ऐसा तो मार्क जुक्बर्ग ने सोचा भी नहीं था।

अगर साहित्य जगत की बात करें तो फेसबुक ने बहुत से लोगों को स्वयम्भू कवि /शाइर / कथाकार /लेखक बना दिया है। एक जैसी विचार -धारा के लोग इस पे आपस में मित्र बन जातेहै और फिर सिलसिला शुरू हो जाता है बे - सर पैर की पंक्तियों पे झूठी वाह -वाही का। कुछ साहिबान को तो आत्म मुग्ध होने का रोग भी इसकी वजह से लग गया है , अपनी निम्नस्तरीय रचनाओं के मेयार का आकलन वे फेसबुक पे उस रचना के सम्मान में आयी टिप्पणियों की संख्या से लगाते हैं।

फेस बुक पे ऐसी महिलाओं की तादाद भी रोज़ ब रोज़ बढ़ती जा रही है जो सियाही बर्बाद करके दो - चार पंक्तियाँ लिख कर अपनी विशेष रूप से खिंचवाई तस्वीर के साथ फेसबुक कीदीवार पर टांग देती हैं। इसके बाद आने वाली टिप्पणियों की संख्या का आप अंदाजा नहीं लगा सकते ,दुनिया बे-वकूफ नहीं है वो जानती है कि इस रचना में क्या है क्या नहीं मगरमहिलाओं से दोस्ती बनी रहे बस इसी कारण लोग उन पंक्तियों पे तारीफ़ के पुल बना देते हैं। ज़ियादातर लोग पंक्ति के बारे में अपनी राय नहीं देते मगर महिला की तस्वीर के बारें मेंऐसी - ऐसी उपमाएं लिखते हैं कि वो टिप्पणियाँ महिला द्वारा चस्पा रचना से बेहतर रचना मालूम होती है।

मुझे समझ नहीं आता कि आख़िर महिलायें इन झूठी तारीफ़ों को भांप क्यूँ नहीं पाती या फिर तारीफ़ सुनने की तलब अब फेसबुक पे उनकी ज़रूरत बन गयी है। मेरे एक अदीब दोस्त नेअपनी अच्छी -अच्छी रचनाये फेसबुक पर लगाईं उन्होंने देखा कि एक हफ़्ते के बाद भी सिर्फ पांच - छ लोगों ने उस पे टिप्पणी की है उन्होंने थोड़े दिन बाद एक महिला के नाम से फर्ज़ीआई डी बनाकर वो ही रचना जब फेसबुक पे लगाईं तो उस पे 2000 कसीदाकारों की टिप्पणियाँ आ गयी। क्या है ये सब ...यही हक़ीक़त है फेसबुक की।

बड़े - बड़े ओहदों पे काबिज़ बहुत से पुरुष भी तारीफ़ सुनने के रोग से ग्रसित हो गए है। उनकी ग़ज़ल /कविता पे यदि कोई सच्ची टिपण्णी लिख दे तो वे उस टिपण्णी को डीलिट कर देतेहै और अपनी फ्रेंड लिस्ट से उस आइना दिखाने वाले को भी हमेशा - हमेशा के लिए हटा देते हैं। मेरे एक ख़बर - नवीस दोस्त है अदब से उन्हें मुहब्बत है मगर रोज़ी -रोटी पत्रकारिता से है! उनका फेसबुक पे बहुत बड़ा साम्राज्य है अपनी तथाकथित रचनाओं को वे सिर्फ फेसबुक के नकली मित्रों की टिप्पणियों से ही मेयारी समझते हैं। सच्चाई ये है की उनकी तख्लीकात (रचनाओं ) में कोई मर्म ,कोई अहसास ना ही कोई लफ़्ज़ों को बरतने का सलीका नज़र आता है। वहम नाम का रोग उन्होंने सिर्फ फेसबुक की बदौलत पाल रखा है। इस तरह के आत्म-मुग्ध लोग न तो ख़बरों के साथ इंसाफ़ कर रहें है ना ही अपने गढ़े अफ़सानों के साथ , तभी तो ये पंक्तियाँ मेरे ज़हन से कागज़ पे उतरी :---

ख़बर ख़बर सी ना रही , ना किस्सों में टीस।

अफ़साने लिखने लगे , जब से ख़बर नवीस।!

ये इशारा उन ख़बर - नवीस मित्रों की जानिब बिलकुल नहीं है जो सच में क़लम के साधक हैं और अपने इस दोहे के लिए मैं क़लम के सच्चे सिपाहियों से मुआफी चाहता हूँ।

वहम पालने और आत्म-मुग्ध होने की ये एक नयी बिमारी इस फेसबुक ने हमारे समाज को दी है जिसका इलाज़ हमारे मनो-चिकित्सकों को बहुत जल्द ढूंढना होगा।

मैं भी पहले फेसबुक पे था मगर देखा कि ये सिर्फ एक - दूसरे की पीठ खुजाने वालों की महफिल है मैंने इस महफ़िल में जब भी सच को सच कहा तो फेसबुक पे मेरे मुखाल्फिन (विरोधियों ) की तादाद भी रोजाना बढ़ने लगी आखिर मैंने सोचा कि ऐसी जगह अपना गुज़ारा नहीं है और फेसबुक को अलविदा कह दिया। कुछ अच्छे और सच्चे लोग पता नहीं किन मजबूरियों में अब भी इसकी बहुत जल्द ढहने वाली दीवार से चिपके हुए हैं।

अपना सामाजिक दायरा बढाने , अपनी तन्हा ज़िंदगी से परेशान हो लोग इन साइट्स से जुड़ते तो गए मगर इन साइट्स ने लोगों को दिया सिर्फ वहम और छीन लिया उनका चैन ओ सुकून। लोग घर आकर अपने बीवी बच्चों से बात बाद में करते हैं सीधा आकर बैठ जाते हैं फेसबुक ,ट्वीटर के आगे। ये साइट्स आजकल के तमाम मोबाइल में भी उपलब्ध है सो इसका इस्तेमाल आप हर वक़्त कर सकते हैं। घर में कोई उत्सव हो , अपने परिवार के साथ कहीं घूमने गएँ हो वगैरा - वगैरा सभी आयोजनों की तस्वीरें लोग इसकी वाल पे चिपका देते हैं औरये नहीं जानते की उनकी मित्र सूची में बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जो उन तस्वीरों की सराहना कम करते हैं और मज़े जियादा लेते हैं। ऐसा लगता है कि लोगों ने अपने आपको इश्तेहार बना के रख दिया है।

फेसबुक पे लोग इस तरह की टिप्पणियाँ करते रहते हैं इनके क्या म-आनी है ... आज मैं देरी से उठा ... आज मैं दो दिन के लिए पुणे जा रहीं हूँ....रात मुझे नींद नहीं आई .....और हमारे सेलिब्रिटी कहलवाने वाले भी कहाँ पीछे हैं उन्होंने ट्वीटर को एक ऐसा अख़बार बना रखा है जिसमें वे अपने पल - पल की ख़बरें ख़ुद ही छापते रहते हैं। ट्वीटर पे अपनी इसी आदत के चक्कर में शशी थरूर और ललित मोदी नुकसान उठा चुके हैं।

समझ नहीं आता कि हम अपने आप को बाज़ार करने पे क्यूँ तुले हैं। आदमी अपने निजी जीवन को सरेआम करने पे क्यूँ उतारू हो गया है।

कुछ लोग ज़रुरत से ज़ियादा समझदार भी है वे अपना धंधा फेसबुक और ट्विटर के ज़रिये चमकाने में लगे है समाज ,साहित्य ,फिल्म , देश के हालात से उन्हें कोई मतलब नहीं कोई बीमा करवाने की सलाह देता है क्यूंकि वो बीमा एजेंट है , कोई वास्तुकार अपनी सेवाओं को फेसबुक की वाल पे चस्पा किये रहता है , कोई कहता है कि कवि- सम्मलेन – मुशायरे करवाने के लिए मुझसे संपर्क करें ,कोई अपने आप को ज्योतिषी बताता है कुल मिलाकार इश्तेहार लगाने और अफ़वाह फैलाने की एक दीवार बन गया है फेस-बुक।

संसद में इन सामाजिक साइट्स के विरूद्ध हमारे बहुत से नेताओं ने आवाज़ उठाई है कि इन्हें बंद किया जाए मगर ये इस समस्या का हल नहीं है। इस मरज़ का इलाज़ भी इन साइट्स को इस्तेमाल करने वालों को ही निकालना होगा। आप फेसबुक ,ट्वीटर का इस्तेमाल कीजिये मगर एहतियात के साथ। अपनी अभिवयक्ति को लोगों तक पहुंचाने का इसे माध्यम बनाइये न कि अपने आपको विज्ञापन की तरह चिपकाने का। एक और गुज़ारिश कि बच्चों को इस से दूर रखें उनका बचपन बचपन ही रहने दे। अपने जीवन की निजता को एक हद सेज़ियादा सार्वजनिक ना करें कहीं फिर ऐसा ना हो कि आप फिर इन साइट्स की भीड़ में कहीं गुम हो जाएँ।

आखिर में एकबार फिर इसी गुज़ारिश के साथ कि रमज़ान के इस पवित्र महीने में हम सब मुहब्बत के सन्देश फेसबुक की दीवार पे लगाए न कि अमन के दुश्मनों की अफ़वाहों पे ध्यान न दें और आप इन सोशियल साइट्स के इस्तेमाल को हल्के में ना ले ,आप चिंतन करें कि सच में ये हमें क्या दे रहीं है और हमारा क्या हमसे छिनता जा रहा है।

दिनेश ठाकुर साहब के एक मतले और शे'र के साथ .... ख़ुदा हाफ़िज़

 

आईने से कब तलक तुम अपना दिल बहलाओगे

छाएंगे जब जब अँधेरे ख़ुद को तन्हा पाओगे

ज़िंदगी के चंद लम्हे ख़ुद की ख़ातिर भी रखो

भीड़ में ज़ियादा रहे तो ख़ुद भी गुम हो जाओगे

---

विजेंद्र शर्मा

vijendra.vijen@gmail.com

सीमा सुरक्षा बल , परिसर

बीकानेर

COMMENTS

BLOGGER: 4
  1. फेसबुक के विविध पहलुओं पर भाई विजेन्‍द्र शर्मा ने सूक्ष्‍म दृष्टि से परखकर टिप्‍पणी की है। एक ओर हम लगातार कहते हैं कि तकनीक हमारी निजता पर हमला कर रही है दूसरी ओर हम खुद ही अपनी निजी जानकारियों और पारिवारिक चित्रों को सार्वजनिक कर अपनी निजता खत्‍म कर रहे हैं। इसके कई खतरे भी हैं, इनका किसी भी तरह दुरुपयोग संभव है, यह हम सब जानते हैं। संवेदनशील सामाजिक राष्‍ट्रीय मुददों पर तो इस माध्‍यम का उपयोग बेहद सावधानी की मांग करता है। हमारी जरा सी चूक कितनी घातक हो सकती है, हमें शायद खुद भी अन्‍दाजा नहीं। ज़हर की एक बूंद भी अमृत के कलश को दूषित कर सकती है, हमेशा याद रहना चाहिए हमें....

    जवाब देंहटाएं
  2. VIJENDRA SHARMA AEK SAAF-SUTHRE ZEHN KE QEEMTI INSAN HAI'N,UNKA YE LEKH SABKO PADHNA CHAHIYE,AUR IS LEKH ME UNHONE JO BAAT UTHAIE HAI,US PAR GAUR O FIQR karna chahiye?mai vijendra sharma ko aek zamane se janta hoo'n,unki karni aur kathni me koi antar nahi hai?kaash vijendra sharma ji ke vicharo'n ke asrat un logo'n par ho jaie'n jo abhi tak andhero'n me apni zindgi vayateet kar rahe hai'n?

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्छा आलेख है, फ़ेसबुक की अधुनातन सभ्यता ने बचपन को जकड़ कर मरोड़ दिया है वहीं जवान आदि भी इस में ग्रसित हैं । हम मन की दीवारों से निकालकर कंप्यूटर की दीवार से चिपक जाएंगे तो जीवन में ऐसी ही विकृतियाँ आएंगी !.....

    डॉ। मोहसिन ख़ान
    अलीबाग (महाराष्ट्र)

    जवाब देंहटाएं
  4. विजेंद्र जी आपकी राय से पूर्णरूप से सहमत हूँ | मैं अपने स्वयं के अनुभव से बोल सकता हु कि फेसबुक एक मुसीबत बन गया है खासतोर से नोजवान पीढ़ी के लिए गले में फंसी हड्डी न उगलते बन रहा है न निगलते | आशा करता हूँ कि आपका ये लेख आज की जवान पीढ़ी खासतोर पर teenagers पढ़े और कुछ आदतों में फ़र्क लाये क्योंकि जब मैं उस उम्र का था तो यही सोचता था सब असे ही चलता रहेगा नहीं हर उम्र का एक दौर होता हैं | ट्रेन छुट जाये वापस दूसरी आ जाएगी ये उम्र वापस नहीं आती | बस मेरे छोटे भाइयों को यही सलाह हैं बहुत बड़ी दुनियां हैं इस कमरे के बाहर और भी गम है फेसबुक के अलावा......

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: विजेंद्र शर्मा का आलेख : इश्तिहार से चस्पा हैं हम …फेसबुक की दीवार पे..
विजेंद्र शर्मा का आलेख : इश्तिहार से चस्पा हैं हम …फेसबुक की दीवार पे..
http://lh5.ggpht.com/-VAkr8m0z5qY/UBepOBpFdhI/AAAAAAAANGk/Yne99K_jkXU/image%25255B3%25255D.png?imgmax=800
http://lh5.ggpht.com/-VAkr8m0z5qY/UBepOBpFdhI/AAAAAAAANGk/Yne99K_jkXU/s72-c/image%25255B3%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/08/blog-post_20.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/08/blog-post_20.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content