कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -79- कैस जौनपुरी की कहानी : उस औरत का समाज

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कहानी कैस जौनपुरी उस औरत का समाज --- रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. अपनी अप्रकाशित...

कहानी

कैस जौनपुरी

उस औरत का समाज

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रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. अपनी अप्रकाशित कहानी भेज सकते हैं अथवा पुरस्कार व प्रायोजन स्वरूप आप अपनी किताबें पुरस्कृतों को भेंट दे सकते हैं. कहानी भेजने की अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2012 है.

अधिक व अद्यतन जानकारी के लिए यह कड़ी देखें - http://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_07.html

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स औरत की जो हालत हुई ऐसी हालत दुनिया की किसी औरत की कभी नहीं हुई. कहने को तो वो औरत थी. एक पांच साल के बच्‍चे की मां भी थी. लेकिन देखने में वो खुद एक बच्‍ची लगती थी. और ऐसी हालत में उस औरत को प्यार हो गया था. कोई मिल गया था उसे, जिसने उस औरत के अन्दर छिपी बच्‍ची को देख लिया था. बस, फिर क्‍या था……….. उस औरत को अपनी पहचान मिल गई थी. कोई था जो उसे बच्‍ची समझता था.

लेकिन अपने समाज में वो एक औरत ही थी, जिस पर दुनिया भर की जिम्मेदारियां थीं. वो औरत अपनी दुनिया में इतनी उलझी हुई थी कि उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्‍या करे? प्यार तो हो गया. प्यार होने में कोई वक्‍त थोड़े लगता है. मसअला तब शुरु हुआ तब उसका प्रेमी उससे मिलने की बात करने लगा. शुरु-शुरु में उस औरत ने छोटी-मोटी मुलाकात भी की. जैसे, सड़क पे एक-दो मिनट की, मगर उसका जो प्रेमी था वो भी बड़ा अजीब था. उसे उस औरत के अलावा कुछ सूझता ही नहीं था.

वो औरत थी भी वैसी कि, जिसे उसका साथ मिल जाए, उसे उसके अलावा कुछ न सूझे. और ये प्यार में ही सम्भव होता है. प्यार हो तो पत्थर में भी जान आ जाती है.

उसके प्रेमी को उस औरत के अलावा कुछ नहीं सूझता था. मगर उस औरत को अपने प्रेमी के अलावा सब कुछ दिखता था. वो अपने प्रेमी से दुनिया भर की बात करती थी. अपने समाज की बात करती थी. अपने माहौल की बात करती थी. वो बताती थी कि अगर उसका माहौल ऐसा नहीं होता तो वो उसके साथ आराम से आ जाती. मगर अभी वो किसी और की हो चुकी है. अब अपने प्रेमी की नहीं हो सकती. ये कह के वो रोती भी थी.

उसका प्रेमी ये सोच के उसकी हर बात सुनता था कि इसे अच्छा लगता है. आदमी जब प्यार में हो जाता है तब सामने वाले की हर बात अच्छी लगने लगती है.

मगर धीरे-धीरे बात बिगड़ने लगी. उसका प्रेमी उस पर इस कदर दीवाना हो गया कि अब बात सिर्फ बात पे टिकी नहीं रह सकती थी. अब मुलाकात जरुरी हो गयी थी. प्रेम जब मन में अंगड़ाई लेता है तब मुलाकात जरुरी हो जाती है.

यहाँ एक उलझन और थी. उसका प्रेमी उसे देखने की बात करता था. मगर उस औरत को लगता था कि उसका प्रेमी उससे वो सब चाहता है जो एक औरत अपने पति के साथ करती है. यहाँ समस्या खड़ी हो गयी.

प्रेमी उसे देखने के लिए परेशान, वो औरत इस बात से परेशान कि वो उससे मिले कैसे? उसका प्रेमी उसके चेहरे का दीवाना था. मगर वो औरत किसी और ही उलझन में थी. वो सब कुछ चाहती थी. और उसे कुछ नहीं मिलता था. फिर वो झुंझला जाती थी. और मिलना भी नहीं हो पाता था.

उसका प्रेमी हैरान होता था कि ये कैसी औरत है? मैं इससे मिलने की बात करता हूँ. और ये है कि फालतू की बातों की वजह से जिसे मैं सोचता भी नहीं उन बातों की वजह से ये मिलती भी नहीं.

उसका प्रेमी तो बस उसे देखना चाहता था. जी भर के. जब इंसान प्यार में होता है तब वो जी भरके देख लेना चाहता है. यही हाल उस प्रेमी की थी.

मगर उस औरत का हाल इससे भी बुरा था. पहले वो अपने प्रेमी से ऐसी बातें करने की कोशिश करती थी जो एक पति-पत्‍नी में होती हैं. तब उसका प्रेमी कहता था "नहीं, मैं तुम्हे इस नजर से नहीं देखता, तुम ऐसी बातें मत किया करो. तुम वो नहीं. तुम वो हो कि तुम्हारी मूर्ति बनाई जाए." ये प्यार में ही हो सकता है कि कोई अपनी प्रेमिका की मूर्ति बनाने की बात कहे.

वो औरत जो अपने समाज में इतनी बंधी हुई थी खुलके जीना चाहती थी. मस्ती करना चाहती थी. मगर उसका प्रेमी वैसा नहीं था. वो उसे जिस्म की जरुरत नहीं समझता था. वो उसे फूल की तरह नाजुक कहता था. उस औरत की ख़ूबसूरती पे कवितायेँ लिखता था. इन्सान जब प्यार में हो जाता है तब कविता अपने आप उमड़ने लगती हैं.

उस औरत को ये सब अच्छा लगता था. और फिर उस औरत ने वैसी बातें करनी बंद कर दीं और अपने प्रेमी की प्यार भरी बातें सुन के खुश रहने लगी.

फिर कुछ दिनों के लिए उस औरत को कहीं जाना था. ये एक ऐसा मोड़ आया जहाँ उसका प्रेमी थोडा सा आगे बढ़ गया. वो उस औरत के होंठ छूने की बात करने लगा. ऐसा इसलिए हुआ कि उसके चेहरे पे कविता लिखते-लिखते उसने उसके होंठों के बारे में भी लिखा. और जब उसने उस औरत की ख़ूबसूरती को गहरे मन से देखा तो उसका मन हुआ कि उसके फूल जैसे नाजुक होंठ को छू भी ले.

तब तक बात कुछ और हो चुकी थी. उस औरत ने मस्ती करना छोड़ दिया था. वो अपने प्रेमी की प्रेम भरी बातों से खुश रहने लगी थी. उसे लगा था कि अब ऐसा ही चलेगा. मगर थोडा सा फर्क आ गया था. ये फर्क बिलकुल सम्भव था. वो औरत खूबसूरत थी. और दोनों घंटों-घंटों फोन पे बातें करते थे. वो उसे उसके चेहरे की एक-एक बनावट की खूबसूरत होने की बात करता था. वो औरत खुश रहती थी. मगर अब जब उसे पता था कि उसकी प्रेमिका कुछ दिनों के लिए दूर हो जाएगी तो वो अपने मन को कैसे संभालेगा? इसलिए वो चाहता था कि जाने से पहले वो उसके होंठों को छू ले.

कुछ ऐसा ही हाल उस औरत का भी था. मगर बीच में आड़े आया उस औरत का समाज. वो औरत मन से तो चाहती थी कि अपने प्रेमी की बात सुन ले. इसमें उसका अपना मन भी था. लेकिन वो इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाई कि अपने प्रेमी के तरीके से उससे मिल सके. अब एक सिलसिला शुरु हुआ रोने का. औरत जब अपने मन का नहीं कर पाती है तब उसे रोना आता है. और उसका प्रेमी उसके लिये ऐसा कन्धा था कि वो किसी भी बात पे उसके सामने रो सकती थी, और रोती भी थी. सबकुछ हुआ मगर दोनों की मुलाकात न हो सकी.

वो औरत बिना मिले चली गई. उसका प्रेमी पागलों की तरह उसका इन्तजार करता रहा. उस औरत ने सोचा, चलो देखते हैं इतने दिनों की लम्बी दूरी के बाद क्‍या पता बात कुछ और हो जाए.

और ऐसा ही हुआ, बात कुछ और ही हो गई. वो औरत दस दिन भी इन्तजार न कर सकी. अपने प्रेमी से वो इतनी ज्यादा बातें करती थी कि उससे रहा नहीं गया. उसने दूर परदेश से भी अपने प्रेमी को फोन लगा दिया.

उसका प्रेमी जो उसे ही याद कर रहा था उसका फोन पाके इतना खुश हुआ कि उसके आंसू निकल पड़े. उसे हैरत हुई कि क्‍या ये वही औरत है जो उसे इस हाल में बिना मिले छोड़के गई थी? और आज क्‍या हुआ कि इसने इतनी दूर से मुझे फोन कर दिया? उसका प्रेमी बहुत खुश था उससे बात करके.

वो औरत भी उससे बात करके रो पड़ी. आखिर दस दिन बीत गये थे एक दूसरे से बात किए हुए. कहां दोनों दिन भर में दस बार बात किया करते थे. और आज दस दिन बाद उसका फोन आया था तो खुशी की बात तो थी ही.

उस औरत को तसल्‍ली हो गई कि उसने अपने प्रेमी से बात कर ली और वो अब भी उसका इन्तजार कर रहा है. औरत को ये बात बहुत अच्छी लगती है कि कोई उसका प्रेम से भरे मन से उसका इन्तजार करे.

इधर उसके प्रेमी को तो इतनी तसल्‍ली हो गई कि उसे लगा अब उसके बाकी के इन्तजार के दिन आसान हो गये. उसे इस बात की तसल्‍ली हो चुकी थी कि वो औरत उसे अब भी चाहती थी. ऐसा नहीं था कि दूर जाने के बाद उसका मन बदल गया हो. जब आदमी प्यार में होता है तब उसे इस बात का डर हमेशा बना रहता है कहीं उसका प्यार खो न जाए.

लेकिन अब उसे अपने ऊपर पूरा भरोसा था कि उसने उस औरत का मन जीत लिया है. आदमी एक बार औरत का मन जीत ले तो उसे बड़ा सुकून मिलता है. उसे लगता है जैसे उसने कोई बहुत बड़ी जंग जीत ली हो.

और सच भी है प्यार से बड़ी जंग और भला क्‍या होती है जहां आपके पास कोई हथियार नहीं होता है. और जीतने के लिये बहुत बड़ा मैदान होता है. एक औरत का गहरा मन जीतना कोई आसान खेल भी नहीं है. एक औरत जब अपने सोच-विचार करने वाले मन के आगे हार मान लेती है तब एक आदमी की जीत होती है. उससे पहले वो चाहे कितनी भी नाक रगड़ ले कुछ भी फर्क नहीं पड़ता.

आदमी को तौलने का औरत का अपना ही तराजू होता है. जिसके तरीके किसी किताब में नहीं मिलते. हर औरत अलग और हर औरत का तराजू अलग. आदमी कई बार इसी उलझन में धोखा खा जाता है. जब आदमी औरत को एक जैसा समझ लेता है वहीं गड़बड़ हो जाती है. औरत का बरताव भले एक जैसा हो सकता है लेकिन उसकी वजह हमेशा अलग होती है. हर औरत छोटी सी बात पे रो पड़ती है. मगर उस छोटी सी बात के पीछे उस औरत ने क्‍या दिमाग लगाया है ये बस वो औरत ही जानती है.

उसका प्रेमी अब इत्मिनान से उसका इन्तजार करने लगा. वो उसके इन्तजार में कवितायें लिखने लगा. कविताएं सिर्फ दो हालात में जन्म लेती हैं, या तो प्रेमिका बहुत पास आ जाए या बहुत दूर चली जाए. इस वक्‍त उसकी प्रेमिका उससे दूर थी. तो वो उसे याद करके जो उसके मन में आता था लिख देता था कि लौटने के बाद जब वो पढ़ेगी तब उसे पता चलेगा कि मैं यहां उसके बिना किस हाल में था. प्यार में ये एक अजीब सी हालत होती है. हम सारी बात कहना भी नहीं चाहते हैं और सामने वाले से ये उम्मीद भी होती है कि वो बिना कहे सारी बात समझ ले. और ऐसा होता भी है. जब प्यार गहरा हो जाता है तब सामने वाले की हर बात बिना कहे समझ में आने लगती है.

वो औरत कुछ दिनों बाद जब परदेश से लौटी तब उसके प्रेमी को बड़ी राहत मिली. राहत इस बात की थी कि अब उसका इन्तजार खत्म हुआ. मगर ऐसा था नहीं. उसे इन्तजार ही करना था उस औरत के लौटने के बाद भी. क्‍योंकि परदेश से लौटने के बाद उस औरत को अपनी जिम्मेदारियों का अहसास फिर हुआ. और जब आप एक घिरे हुए समाज में रहते हैं तो अगर आपको अपनी जिम्मेदारियों का अहसास न भी हो तो आपका समाज आपको आपकी जिम्मेदारियों का अहसास करा ही देता है. समाज के पास और कोई काम भी नहीं है. समाज बस लोगों से उनका आराम छीनकर उन्हें काम पे लगा देता है. नहीं तो लोग क्‍या कहेंगे...??? ये डर सताने लगता है.

वो औरत लौटने के बाद मिलने का वादा करती मगर मिल नहीं पाती. कुछ न कुछ ऐसा होता कि मिलना नहीं हो पाता. उसका प्रेमी बड़ा हैरान होता कि आखिर हम मिल क्‍यूं नहीं पा रहे...? जबकि वो औरत हमेशा कहती थी कि मैं चाहूं तो तुमसे आराम से मिल सकती हूं... मगर अब मुझे तुमसे मिलना ही नहीं है. उसके प्रेमी को ये बात बिल्कुल समझ में नहीं आती थी कि जो औरत मिलने का वादा करती है, वो मिल नहीं पाती है. फिर वही औरत कहने लगती है कि अब मुझे तुमसे मिलना ही नहीं है. नहीं मिलना है ये तो ठीक...मगर न मिलने की वजह तो बताओ...? ऐसा पूछने पर कोई वजह नहीं बता पाती थी वो औरत.

फिर वो औरत झुंझलाने लगती थी, रोने लगती थी. और औरत जब रोने लगती है तब आदमी को रोती हुई औरत को चुप कराने के लिए बात बदलनी पड़ती है. क्‍यूंकि चाहे कितना ही कठोर दिल आदमी क्‍यूं न हो...औरत को रोते हुए नहीं देख सकता...कुछ औरतें तो इस कमजोरी का फायदा उठा के रो रो के आदमी को इतना कठोर बना देती हैं कि आदमी को कुछ असर ही नहीं पड़ता...फिर चाहे तुम कितना ही रो लो...मगर इस प्रेमी के साथ ऐसा नहीं था...वो उमर में तो उस औरत से छोटा था मगर उसकी हिफाजत उससे बड़ा बनके करता था. वो प्रेमी अपने मन को समझा लेता था कि तुम्हारे मन की तसल्‍ली से ज्यादा जरूरी उस औरत की हिफाज़त है...और वो प्रेमी हमेशा अपना मन मार लेता था...

और जब न मिलने की वजह समाज बनके सामने आती थी...तब उसका प्रेमी हमेशा की तरह अपने दिल पे पत्थर रख के चुप हो जाता था...फिर इधर उधर की बातें होती थीं और उस औरत के जाने का वक्‍त हो जाता था...फिर वो औरत ये पूछने पर कि हम कब मिलेंगे...? कहती थी, मैं तुमसे कल बात करूंगी...हम कल बात करेंगे फिर इस बारे में बात करेंगे...और फिर दूसरे दिन बात की शुरूआत किसी और ही बात से होती थी...वो औरत अब डर डर के बात करने लगी कि कहीं उसका प्रेमी फिर मिलने की बात न कर बैठे...! बाकी सब बात उसके लिए ठीक थी...बस मिलने की बात न करो...और तुमने मिलने की बात की नहीं कि वो औरत एक घेरे में खड़ी हो जाती थी. जहां वो अपने प्रेमी को भी नहीं आने देती थी...उसकी शकल कुछ ऐसी होती थी कि अब तुम चले जाओ मेरी जिन्दगी से दूर...मैं अकेले रहना चाहती हूं...एकदम अकेले...फिर उसका प्रेमी उसके हाथ पैर जोड़ने लगता था कि नहीं...ऐसा मत करो....तुम्हें नहीं मिलना है... ठीक है...लेकिन इस तरह गुस्से से भगाओगी तो कभी नहीं जाऊंगा...प्यार से कह दो कभी नहीं आऊंगा...

वो औरत आज भी अपने समाज में है...वो औरत आज भी उस प्रेमी की जिन्दगी में है...वो प्रेमी आज भी उस औरत का इन्तजार कर रहा है...

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COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. यह मन सदैव इच्छा करता रहता है....मन बहुत कुछ चाहता है परन्तु ....चेतना, चित्त या अंतर्मन ... अनुचित-उचित का अंतर करके कर्तव्य निर्धारित करता है...

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रचनाकार: कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -79- कैस जौनपुरी की कहानी : उस औरत का समाज
कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -79- कैस जौनपुरी की कहानी : उस औरत का समाज
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