रजनी नैय्यर मल्होत्रा की कहानी - वेदना

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सौरभ आज मानवी की तस्वीर लिए ऐसे फफक कर रो रहा जैसे उसने मानवी को अपनी दुनिया से नहीं इस दुनिया से खो दिया हो। सौरभ और मानवी का विवाह परिवार...

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सौरभ आज मानवी की तस्वीर लिए ऐसे फफक कर रो रहा जैसे उसने मानवी को अपनी दुनिया से नहीं इस दुनिया से खो दिया हो। सौरभ और मानवी का विवाह परिवार के सहमति से हुआ था. मानवी छोटे कस्बे की लड़की थी, साधारण नैन नक्श गेंहुआ रंग ,काले घुंघराले बाल , पर एक ऐसा आकर्षण व्यक्तित्व पर जो बरबस ही किसी को आकर्षित कर ले। उसे देख कर कोई कहता साक्षात् दुर्गा लगती है, कभी उसके भोले चेहरे को देखकर कहता लक्ष्मी का रूप। मानवी की बारहवीं पढ़ते पढ़ते ही विवाह की बातचीत चलने लगी, और उसका डॉ. बनाने का सपना बस सपना ही रह गया।

उसने अपने कुछ बनने के सपने को मन में ही दफ़न कर लिया। माता पिता से कुछ कह ना पाई, उसके पिता विवाह तय कर आये, सौरभ उन्हें मानवी के लिए उपयुक्त वर लगा , और मानवी का सौरभ के साथ विवाह संपन्न हो गया। अपने गृहस्ती की गाड़ी मानवी कुशलता से सँभालने लगी , वो एक कुशल गृहिणी थी उसने बहुत से कामों में निपुणता हासिल कर ली थी ,कोई भी काम हो वो हर काम मन लगाकर करती थी, सौरभ के कमाए गए रुपयों से बचत कर उसने एक एक कर घर के कई सामान बना डाले, जिनका सौरभ को जब पता चलता वो एक ही बात दुहराता " अच्छा है सामान बन गया " जल्द कोई चीज़ बनती कहाँ है, " पर आया तो मेरे ही रुपयों से ना " और इन बातों को बोलते वक़्त ये भी नहीं सोचता की ये बातें मानवी को कहीं घाव करते होंगे. धीरे धीरे मानवी ने गृहस्ती की जरूरतों से पैसे बचा बचाकर सोने के गहने भी बनवाने लगी।

मानवी की एक अच्छी आदत थी वो फिजूलखर्च नहीं करती थी जैसे उसकी पड़ोसनें और सहेलियां भौतिकता के बनाव श्रृंगार के सामानों पर रूपये लुटाती थी। मानवी का एकमात्र श्रृंगार था आँखों में काजल उसका फिजूल खर्च ना के बराबर , बढ़ते महंगाई को देखकर वह हर वक़्त रुपयों के बचत के उपाय सोंचती रहती थी जिससे उसके ना धोबी ,ना नौकर किसी पर कोई खर्च नहीं बनते थे। बचे दाल से आंटा मल लेना, सब्जियों को भर कर परांठा बना देना , चावल को पीसकर गोले बनाकर पकौड़े बना देना , जिससे सामान भी बच गए और खाने की लज्ज़त भी बढ़ गए। यूँ ही कपड़ों पर कुछ कारीगरी कर सस्ते कपड़ों को भी वो आकर्षक बना देती थी ,इस तरह अपने कुछ सदुपयोग से खर्चों को बचाने की राह निकाल लेती थी।

उधर सौरभ को क्या सूझी उसने नौकरी छोड़ कर व्यवसाय शुरू कर ली, जिसके लिए उसे बैंक से कुछ रूपये भी क़र्ज़ लेने पड़े। व्यवसाय अच्छा चल पड़ा उसके कामों में विस्तार आने लगा जिस कारण उसे कर्मचारियों को भी बढ़ाना पड़ा जिसमें कुछ रिश्तेदार भी शामिल थे। मेहनत के साथ व्यवसाय बढ़ने लगा , समय बदले, पर सौरभ की एक आदत नहीं बदली ,वो आज भी मानवी को रूपये गिनकर देता रहा, यदि मानवी कुछ रूपये घर की जरूरतों पर भी ख़ुद से खर्च कर देती तो वो मानवी पर बरस पड़ता जब जी आया पैसे निकाल लिया " तुम्हें क्या मालूम पैसे कैसे कमाए जाते हैं सारा दिन घर में पड़े रहती हो क्या जानो " और गालियों की अपशब्दों की बौछारें शुरू। ये सब सुनकर मानवी रो पड़ती कि उसने आजतक ख़ुद के कौन से शौक के लिए रूपये खर्च किया है, जो भी रूपये लगे घर के लिए ही , परिवार बच्चे ऐसे पैसों के बिना तो नहीं चलते।

सौरभ में एक और कमी थी जिसे सौरभ जानना नहीं चाहता था , वो सारा दिन व्यस्त रहता अपने कामों में, वह ना ख़ुद ख्याल रख पाता और मानवी कुछ जरुरत का सामान के लिए रूपये खर्च करती तो उसे जलील करता ,जब तक मानवी अकेली थी ये समस्या कुछ कम रही , पर एक बच्चे के आने के बाद ये कलह रोजाना घटने लगे। मानवी दिन महीने गुजारते हुए तीन वर्ष व्यतीत कर दी ,सौरभ की हिम्मत बढती गयी वो थप्पड़ तक जड़ने लगा , मानवी अपने भाग्य का खेल समझ सौरभ के हाथों जलील होती रही, जब मानवी का अहम् घायल होने लगा उसने सौरभ का विरोध करना शुरू किया। उसे उल्टा सुनने को मिलने लगा "देख रहा हूँ तेरे तेवर आजकल बदले हुए हैं " मानवी के घर परिवार में सभी अपने जिंदगियों में व्यस्त थे मानवी जितनी साफ दिल थी उतनी ही आत्म सम्मान वाली उसे अपने पति की गालियाँ, कटु बातें अच्छी नहीं लगती थी।

वो अपनी तुलना पासवाली सौम्या से करने लगती सौम्या के पति भी व्यवसायी हैं। सौम्या ने अपने हर सुख सुविधा का इंतजाम रखा है ,पड़ी सारा दिन डूबी रहती है टेलीविजन में। क्या हो रहा क्या नहीं उससे कुछ मतलब नहीं उसे , बस मुंह हिलाया मिस्टर हितेन सब कुछ हाजिर कर देते हैं। जबकि ,उनकी हैसियत सौरभ से ज्यादा नहीं। सौरभ मानवी को बार बार अपने बातों से आह़त करने लगा , मानवी ने बहुत सोचा आखिर मै क्या करूँ जिससे वो मुझे निठल्ला ना समझें, क्या मैं सारा दिन घर में बैठ कर बिताती हूँ ,इतने बड़े घर की सफाई कपड़े धोना , कपड़े ईस्त्री करना , खाना बनाना , बगीचे की सफाई क्या ये काम नहीं , इन्हें करने में मेहनत नहीं लगते या समय नहीं लगता। क्या कोई घर से बाहर जाकर रूपये कमाए तभी उसकी इज्ज़त होती है , गृहणियों की अपनी कोई इज्ज़त नहीं ? क्यों पति अपने कमाकर लाने का ताने देते हैं क्या वो अकेले घर बाहर की जिम्मेवारी संभाल लेंगे ,ये सोंचते सोंचते मानवी की रात गुजर गयी , मानवी इस वेदना में अन्दर ही अन्दर जलती रही।

सुबह जल्दी उठ कर पूजा पाठ कर, घर के कार्यों को समाप्त कर वो नजदीक के ही दो, तीन स्कूल में गयी ,अपनी बारहवीं पास के कागजात दिखाकर स्कूल शिक्षिका की नौकरी की बात की.जिसपर कुछ स्कूल के प्राध्यापकों प्राध्यापिकाओं ने तो अच्छे से जवाब दिया, कि आजकल अंग्रेजी माध्यम का समय है , जहाँ शिक्षा का पहला स्तर तो अंग्रेजी माध्यम को वरीयता देते हैं हम और दूसरा कमसे कम बी .एड. की कागजात लेकर आईये तब नौकरी की बात करना। और कहीं पर उसके बारहवीं पास कागजात देखकर कुछ प्राचार्यों ने हंसकर मजाक बनाते हुए ये कहा इसपर किसी घर में झाड़ू फटके का काम अवश्य मिल जायेगा। इस तरह से हर ओर से विष वाणों से आहत मानवी सारा दिन बेचैनी में गुजारी , रात को सारा काम ख़त्म कर वो सौरभ के नाम एक ख़त लिख अपनी तस्वीर से दबा कर रख दी। सुबह जल्द ही उठ कर नितेश को गोद में लेकर निकल गयी बगैर कुछ बताये , मानवी के एक फैसले ने पल में ही एक गृहस्थी के मायने बदल डाले। नितेश को लिए वो उस शहर से दूर आ गयी जहाँ उसे कोई ना पहचाने।

मानवी भले ही ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी पर भगवान ने उसे बहुत सारे गुणों से नवाजा था ,और उसने ये साबित भी कर दिया की मन में हौसला हो और लगन से कोई काम हो तो इन्सान सबकुछ पा सकता है , उसने अपने साथ लाये गहने को बेचकर रूपये जुटा लिए , जिसे उसने ख़ुद के बचत के पैसों से जोड़कर बनाये थे। आधे रूपये से मकान , आधे से टिफिन का व्यवसाय शुरू किया क्योंकि मानवी पाक कला में काफी निपुण थी, उसे घर पर ही रहकर टिफिन तैयार कर लोगों को देना सस्ता और सुविधाजनक काम लगा ,और साथ ही इज्जत भी पाने लगी लोग उसके खाने की तारीफ करने लगे। उधर मानवी के जाने के बाद सुबह सौरभ जल्दी नहीं उठ पाया , उसकी जब आँख खुली वो ऊठ कर मानवी को चिल्ला कर आवाज़ लगाया, मानवी आज उठाया क्यों नहीं देर हो रही जल्दी चाय लाओ।

बार बार बोलने पर भी जब मानवी नहीं आई तो वो सीधा बाथरूम गया , नहा धो कर आया ,उसकी नज़र मानवी की तस्वीर पर पड़ी जो ड्रेसिंग टेबल पर पड़ी थी, उससे दबे हुए पन्ने को लेकर देखा वो मानवी के लिखे ख़त थे उस पर लिखा था

खाना------------३०००

कामवाली बाई------------1500

धोबी ------------------२१०

माली --------------३००

सब मिलाकर मेरे बाद हर माह का आपका ये खर्च आएगा।

पहले तो सौरभ ने सोचा मानवी नाराज होकर अपने मायके गयी होगी , और जब उसने अपने ससुराल फ़ोन किया जिससे पता चला मानवी तो वहां आई ही नहीं। कुछ दिनों तक सौरभ के खाने पीने की दिक्कत नहीं रही उसकी माँ कभी उसकी भाई की पत्नी ने खिलाने की जिम्मेवारी को निभाया, फिर धीरे धीरे उनके भी रंग बदलने लगे, मानवी ने सौरभ की एक और आदत बिगाड़ दी थी, मानवी के हाथों का स्वादिष्ट खाना खिला कर , जिससे सौरभ को होटल का भी खाना बेस्वाद लगता , सौरभ का जीवन अब बदलने लगा था वो कभी देर से सोता, कभी सारी रात जगता, कभी ऑफिस ही रह जाता, और इस तरह से उसका काम और घर दोनों लावारिश होने लगे।

घर में पड़ी चीजें जिन्हें मानवी ने बड़े जतन से बनाया था खर्चों से रुपये बचा बचा कर वो गायब होने लगे, कहाँ गए वो सौरभ ने ना तो जानने की कोशिश की ना पता ही चल पाया। इस तरह मानवी के घर से जाते ही सौरभ का जीवन और व्यवसाय दोनों अस्त व्यस्त हो गए। मानवी ने तो टिफिन का व्यवसाय अपना कर अपनी और अपने ही जैसे कितनों की ज़िन्दगी बना दी , उसके मेहनत और लगन ने उसके जले हुए दिल में मरहम का काम किया, वो तो संभल गयी सौरभ से दूर होकर ,पर सौरभ अपने ही दंभ में चूर होकर बिखर गया। जिस मानवी को वो सिर्फ खाने और घर में रहने वाली साधारण महिला समझता था ,मानवी के जाने के बाद उसकी बिखरी ज़िन्दगी ने उसे उसका मूल्य बता दिया।

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COMMENTS

BLOGGER: 4
  1. नारी का आत्मसम्मान बढाती कहानी ....बहुत बढ़िया

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  2. औरतों के आत्मसम्मान को बयां करती उत्तम कहानी ... ये सन्देश भी देती है कि लड़कियों को केवल स्कूली पढाई ही नही बल्कि ऊच्च शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए ताकि समय आने पर वो अच्छी नौकरी भी कर सके .. अंत में अगर सौरभ मानवी से माफ़ी मांगता तो दिल को एक सुकून भी मिलता ... इतनी अच्छी रचना के लिए धन्यवाद ... शुभकामनाओं सहित ..... :)

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रचनाकार: रजनी नैय्यर मल्होत्रा की कहानी - वेदना
रजनी नैय्यर मल्होत्रा की कहानी - वेदना
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