कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -106- शिखा कौशिक की कहानी : पापा मैं फिर आ गया

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-कहानी ' पापा मैं फिर आ गया ' शिखा कौशिक मी नाक्षी और मुकेश की आँखों से कोर्ट  का फैसला सुनते ही आंसुओं का सैलाब बह निकला। पिछले ...

-कहानी

' पापा मैं फिर आ गया '

शिखा कौशिक

मीनाक्षी और मुकेश की आँखों से कोर्ट  का फैसला सुनते ही आंसुओं का सैलाब बह निकला। पिछले दो साल से अपने प्रियांशु के हत्यारों को सजा दिलाने के लिए दोनों ने दिन रात एक कर दिए थे। आज जाकर दिल को ठंडक पहुंची तो आँखों से आंसू बह निकले। मीनाक्षी को धैर्य बंधाते हुए मुकेश बोला -''मैं न कहता था मीना इस हत्यारे को फांसी की सजा जरूर मिलेगी !''मीनाक्षी ने मुकेश की ओर देखते हुए ''हाँ '' में गर्दन हिला दी। मुकेश का दिल चाह रहा था उस बत्तीस साल के नाटे व्यक्ति को जाकर पुलिस से छुड़ा इतना मारे कि वह खून से लथपथ हो जाये किन्तु मन ही मन उसने इस आक्रोश को दबाया और मीनाक्षी ,बाबू जी व् माँ के साथ कोर्ट से निकल अपनी कार की ओर कदम बढ़ा दिए। कार का गेट खोलकर मुकेश खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। मीनाक्षी व् माँ पिछली सीट पर व् बाबू जी मुकेश के बराबर वाली सीट पर बैठ गए। सब के बैठ  जाने पर मुकेश ने कार स्टार्ट की और दाई ओर मोड़कर मेन रोड पर कार को दौड़ा दिया। मुकेश की आँखों के सामने प्रियांशु का मुस्कुराता हुआ चेहरा घूमने लगा ओर कानों में उसकी खिलखिलाहट गूंजने लगी। मुकेश ने एकाएक कार के ब्रेक लगाये क्योंकि कार एक घोड़ागाड़ी से टकराते टकराते बची। बाबू जी बोले -''मुकेश लाओ मैं ड्राइव करता हूँ। .लगता है तुम ड्राइविंग एकाग्रचित्त होकर नहीं कार  पा रहे हो। '

मुकेश ने तुरंत ड्राइविंग सीट छोड़ दी। बाबू जी ड्राइविंग सीट पर आ गए ओर मुकेश उनके बराबर में बैठ गया। माँ बोली -' मुकेश पुरानी बातों को भुलाने की कोशिश करो। तुम ऐसे अनमने रहोगे तो मेरी बहू को कौन संभालेगा। ..जानते हो ना ये फिर से माँ बनने वाली है। ऐसे में इसका ध्यान रखा करो। मैं ओर तुम्हारे बाबू जी मीना को खुश देखना चाहते हैं। भगवान ने चाहा तो फिर से हमारे घर में बच्चे की किलकारी गूंजेगी !'माँ की बातों ने मनोज व् मीनाक्षी के दुखी ह्रदय को बहुत सांत्वना दी। घर पहुंचकर माँ व् मीनाक्षी रसोईघर में चली गयी और मुकेश व् बाबू जी लॉन में पड़ी कुर्सियों पर बैठ गए। बाबू जी बोले -' मुकेश बेटा कहते हैं ना भगवान के घर देर है अंधेर नहीं है। प्रियांशु के हत्यारे को मौत की सजा मिलना इसका प्रमाण है। चार साल के मासूम बच्चे को इतनी निर्ममता से मारने वाले के लिए  यदि फांसी से ज्यादा भी कोई सजा होती तो वह दी जानी चाहिए थी। ''

मुकेश की आँखे नम हो उठी। बाबू जी ने उसके कंधे पर हाथ कसते हुए कहा '....लेकिन मुकेश मीना के सामने इन बातों को मत दोहराओ। ..जरा सोचो उसकी ममता कितनी आहत हुई है और इस समय वह प्रेग्नेंट भी है। अपने पर संयम रखो। .'मुकेश ने सहमति में सिर हिला दिया। बाबू जी फ्रेश होने के लिए अन्दर चले गए तो मुकेश की आँखों के सामने उस मनहूस दिन की एक एक तस्वीर घूमने लगी। वो उस दिन अपने ऑफिस में लंच कर रहा था कि उसका मोबाइल बज उठा। कॉल रिसीव करते ही मीनाक्षी की घबराई हुई आवाज़ उसके कानों से टकराई। भोजन बीच में ही छोड़कर वह अपनी जगह पर खड़ा हो गया। उसके सहकर्मी शिरीष ,संगीता व् उत्तम भी भोजन छोड़कर उसकी ओर देखने लगे।

मीनाक्षी घबराई हुई कह रही थी ''.....हेलो। ..हेलो। ..'' मुकेश ने खुद को सँभालते हुए मीनाक्षी से पूछा था -'...मीना। ..मीना क्या बात है ?? इतनी घबराई हुई क्यों हो ?'' मीनाक्षी ने लगभग रोते हुए कहा था '...दीपक का फोन आया था उसने प्रियांशु का अपहरण कर लिया है और शाम तक पचास लाख रूपये की डिमांड की है। ..नहीं तो वो हमारे प्रियांशु को । ....!!!'इसके आगे मीनाक्षी बोल तक नहीं पायी थी। .उसका गला रूंध गया था। मुकेश ने मीनाक्षी को धैर्य बंधाते बस इतना कहा था -''....मीना चिंता मत करो। ..मैं घर आ रहा हूँ। ''यह कहकर फोन बंद कर मुकेश कुर्सी पर निढाल होकर बैठ गया था.  दोनों हाथों से सिर पकडे मुकेश की आँखों में आंसू छलक आये थे। फोन पर उसकी बातों से सहज ही किसी अनिष्ट का अनुमान लगा संगीता बोली थी -'मुकेश क्या हुआ ?अनिथिंग सीरियस ?शिरीष व् उत्तम भी उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोले थे -''मुकेश क्या बात है ?'' मुकेश ने रूंधे गले से किसी प्रकार बोलते हुए कहा था ''....मेरे नौकर ने मेरे बेटे का अपहरण कर लिया है और पचास  लाख रूपये देने पर छोड़ने की बात कही है पर मैं इतने पैसों का इंतजाम इतनी जल्दी कहाँ से करूंगा। .कैसे करूंगा ??''शिरीष बोला -''तुम पुलिस की मदद लो। ऐसा करो तुम घर जाओ और मैं व् उत्तम पुलिस से बात करते हैं। ..चिंता मत करो। ..सब ठीक हो जायेगा। .''

मुकेश कार से घर के लिए रवाना हो गया। संगीता भी उसके साथ हो ली। लगभग सवा दो बजे दोपहर में वे घर पहुंचे। मीनाक्षी का रो-रोकर बुरा हाल था। मुकेश को देखते ही उसकी रही -सही शक्ति भी जवाब दे गयी। वो मुकेश का हाथ पकड़ते हुए बोली  'मेरे प्रियांशु को बचा लो । .वो बहुत खतरनाक है। .उसने फोन पर प्रियांशु के रोने की आवाज़ भी सुनाई है। .'  प्रियांशु का नाम आते ही मुकेश भी फिर से भावुक हो गया। संगीता ने दोनों को हिम्मत बंधाई। करीब पांच बजे फोन की घंटी फिर से बजते ही मीनाक्षी ; मुकेश और संगीता के दिलो की धड़कन बढ़ गयी। मुकेश ने घर के लैंड लाइन का रिसीवर कान से लगाया तो प्रियांशु की प्यारी सी आवाज़ कान से टकराई -''पापा..मम्मी। ..मुझे बचा लो। .ये अंकल मुझे मारते   हैं। ..मुझे बचा लो। ..' प्रियांशु रो रोकर बेहाल हो रहा था। मुकेश ने रिसीवर कस कर पकड़ा। ..तभी दूसरी ओर से एक कठोर स्वर कान से टकराया '...सुनते हो मुकेश बाबू। .आज शाम छह बजकर पंद्रह मिनट पर शहर के बाहर सुखदेव सिंह के ईख के खेत में पचास लाख लेकर पहुँच जाना वरना। ......' कहकर क्रूरतायुक्त ठहाका लगाया जिसे सुनकर मुकेश का रोम रोम सिहर उठा और नसों में ठंडी लहर दौड़ गयी।

एक पल को लगा जैसे ह्रदय ने काम करना बंद कर दिया हो और मस्तिष्क चेतनारहित सा अनुभव हुआ। संगीता ने पसीने से लथपथ मुकेश से रिसीवर अपने हाथ में लेकर कान से लगाया तो दूसरी ओर से कोई प्रतिक्रिया न आती जानकर उसने फोन रख दिया। तभी संगीता के मोबाइल की रिंगटोन बज उठी। संगीता ने रिसीव किया तो वह शिरीष व् उत्तम का फोन था। उन्होंने संगीता को कुछ जानकारी दी व् उससे यहाँ की कुछ जानकारी लेनी चाही। संगीता ने मुकेश को अपना मोबाइल पकड़ा दिया क्योंकि वह स्वयं अब तक किडनैपर के फोन के बारे में मुकेश से बातचीत नहीं कर पाई थी। मीनाक्षी की आँखों से आंसुओं की अविरल धारा बहे जा रही थी। मुकेश ने उत्तम और शिरीष को  सब जानकारी दे दी और जेब से रुमाल निकाल कर चेहरे पर आये पसीने को पोंछा। संगीता को उसका मोबाइल पकड़ाते हुए उसके हाथ कांपते देख संगीता समझाते हुए बोली -'मुकेश डरो मत सब ठीक हो जायेगा। तुमने उत्तम और शिरीष को किडनैपर की एक एक बात अच्छी तरह बता दी है ना। ...वो पुलिस के साथ प्लानिंग पर प्रियांशु को जरूर उसके चंगुल से छुड़ा लेंगें। अब देखो साढ़े पांच बज रहे हैं। ..तुम्हे वहां पहुँचने में कम से कम पच्चीस मिनट लगेंगे। तुम स्वयं को नियंत्रित करो। क्या उत्तम व् शिरीष तुम्हें फिर से कौनटैक्ट करेंगें ?'  मुकेश ने हडबडाते हुए कहा -''...नहीं। .उन्होंने कहा है मैं अकेला ही एक ब्रीफकेस के लेकर वहां पहुँच जाऊं । ..आगे पुलिस के साथ मिलकर वे दोनों  संभाल  लेंगें। ''

इस वार्तालाप के ठीक पांच मिनट बाद मुकेश एक कपड़ों से भरा ब्रीफकेस लेकर अपनी कार द्वारा गंतव्य की ओर रवाना  हो गया। मीनाक्षी भी साथ चलने की जिद कर रही थी पर संगीता ने किसी प्रकार उसे समझा-बुझाकर रोक लिया। मुकेश ठीक छः बजे सुखदेव सिंह के खेत पर पहुँच गया। उसे पांच मिनट बाद सामने की ओर से ईख हिलते नज़र आये और पीछे से भी कुछ कदमों की आहट सुनाई दी। .वह सावधान हो गया। उसने ब्रीफकेस को कस कर पकड़ लिया। सामने से आते व्यक्ति को नकाब से मुंह छिपाए हुए देखकर भी मुकेश उसकी चाल ढाल से उसे पहचान गया। ..वह दीपक था। पीछे मुड़कर देखा तो दो और व्यक्ति नकाब से मुंह छिपाए हुए रिवॉल्वर लिए उसके ठीक पीछे खड़े थे  । उनमें से एक ने रिवॉल्वर मुकेश की कांपती से सटा दिया । दीपक चलते हुए  मुकेश  के एकदम पास   पहुंचकर बोला -''बाबू ब्रीफकेस  मेरे हवाले  कर  दो। ''  मुकेश ने  दृढ़ता के साथ  कहा -''बिलकुल नहीं !!पहले मेरे  बेटे को  मेरे  हवाले  करो   !''.....मुकेश के ये कहते ही पीछे खड़े एक व्यक्ति ने उसके सिर पर जोरदार वार किया और मुकेश लगभग निढाल होकर गिर पड़ा।

जब आँख खुली तब वह अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड के बैद पर था। उसको होश में आया देख नर्स ने तुरंत डॉक्टर को सूचना दी। डॉक्टर के आते ही मुकेश के माँ -बाबूजी भी उसके साथ उस वार्ड में अन्दर आये। दोनों काफी थके हुए नज़र आ रहे थे। मुकेश ने उठना चाहा तो सिर में असहनीय दर्द से उसकी चीख निकल गयी। डॉक्टर ने एक इंजेक्शन लगाया और वह फिर से नींद की गहराइयों में चला गया। करीब एक माह में वह अस्पताल से घर पहुँच पाया। इस बीच जब भी वह मीनाक्षी और प्रियांशु के बारे में बाबूजी और माँ से पूछता तो वे कह देते कि-'' प्रियांशु के बुखार है और मीनाक्षी उसकी देखभाल में लगी रहती है। ..फिर हम दोनों तो हैं तेरी देखभाल को यहाँ। हमने ही मीनाक्षी को प्रियांशु की देखभाल सही से करने  की हिदायत दे रखी है इसीलिए उसे यहाँ नहीं आने देते और फिर तुम्हारी ऐसी हालत देखकर मीनाक्षी की हालत ख़राब हो सकती है। इसी कारण वो यहाँ नहीं आ पाती । ''माँ बाबूजी की बात पर मुकेश को कतई यकीन नहीं हुआ था पर और कोई रास्ता भी नहीं था। सबसे ज्यादा आश्चर्य तो उसे शिरीष ,उत्तम और संगीता -किसी के भी अस्पताल में उससे न मिलने आने पर हुआ था।

उसे अन्दर से ऐसा महसूस हो रहा था जैसे माँ-बाबू जी एक माह से उससे कुछ ऐसा छिपाना चाह रहे हैं जिसे छिपाना उनके भी बस की बात नहीं है। मुकेश तो पिछले दस दिन से अच्छा महसूस कर रहा था पर माँ बाबूजी ही डॉक्टर से बार बार उसके स्वस्थ होने के बारे में पूछकर  ''...घर जाने की क्या जल्दी है ?''कहकर उसे अस्पताल में ही रोके हुए थे। आज जाकर किसी तरह अस्पताल से छुट्टी मिली तो वह घर चलने के लिए जल्दी से तैयार हो गया। उसने देखा माँ बाबूजी के चेहरे पर कोई खास चमक नहीं थी बल्कि वे काफी उलझे हुए नज़र आ रहे थे। कार में बैठते ही उसने देखा माँ की आँखों से आंसू बह रहे थे। उसने माँ से इसका कारण पूछा तो बाबू जी बोले -''बेटा पूरे एक माह जिस माँ का बेटा मौत से जूझकर सकुशल अपने घर वापस लौट रहा हो वह भला अपने आंसुओं को रोके तो ?'' यह कहते कहते बाबूजी की आवाज़ भी भर्राई  हुई सी महसूस हुई। ऐसी आवाज़ मुकेश ने बाबूजी जी की तब सुनी थी जब मुकेश की दादी जी का स्वर्गवास हुआ था वरना मुकेश के बाबूजी जो सेना में रहे थे अपनी भावनाओं को काबू में करना बखूबी जानते थे। कार बाबूजी जी ड्राइव कर रहे थे। मुकेश मीनाक्षी से भी ज्यादा प्रियांशु से मिलने को उत्सुक था।

एक तो वह अपहरण की दुर्घटना से सहमा हुआ होगा  और ऊपर से माँ बाबूजी के अनुसार पिछले इतने दिनों से बुखार से ग्रस्त है। मुकेश ने माँ से पूछा -''अच्छा माँ प्रियांशु अब तो आप दोनों से काफी घुलमिल गया होगा ?''मुस्कुराता हुआ बोला -''माँ !ये क्या। ...अब तो मैं ठीक हो गया हूँ ना । ....फिर क्यों आंसू बहा रही हो ?'' माँ ने ''हाँ'' में गर्दन हिला दी पर इस बात पर भी माँ के चेहरे पर सुकून की रत्ती भर भी झलक नहीं दिखाई दी । घर के सामने पहुँचते ही बाबूजी ने कार के ब्रेक लगा दिए और जैसी की मुकेश को उम्मीद थी -मिनाक्षी घर के बहार लॉन में इंतजार करती दिखाई देगी । ..वैसा कुछ नहीं हुआ क्योंकि मिनाक्षी उसे नहीं दिखाई दी। मुकेश ने कार से निकलकर घर का गेट खोल दिया और बाबूजी कार को अन्दर ले आये। लॉन काफी उजड़ा उजड़ा लग रहा था। मुकेश के ह्रदय में भी एक अजीब सी उदासी घर करती जा रही थी । लॉन इतना सूखा हुआ क्यों हैं  ? मीनाक्षी तो हर पौधे का कितना ध्यान रखती है।

वह ये सब सोच ही रहा था की बाबूजी ने उसके पास आकर कहा  -''मुकेश चलो अन्दर चलो। ज्यादा सोच विचार मत करो तुम्हारे स्वास्थ्य के लिए यह अच्छा नहीं है। ''मुकेश बाबूजी ji  के यह कहते ही घर के भीतर की ओर चल दिया। ड्राइंग रूम में प्रवेश करते ही सामने सोफे पर बैठी हुई मीनाक्षी एकाएक सिर पर साड़ी का पल्लू ढकते हुए खड़ी हो गयी। मुकेश एक नज़र में उसे पहचान भी न पाया और अनायास ही उसके होठों से निकल गया -''ये क्या हाल बना रखा है तुमने !प्रियांशु कहाँ है ?'' मुकेश के इस प्रश्न के उत्तर में मीनाक्षी का हाथ एकाएक दीवार की ओर उठा और वह फफक फफक कर रो पड़ी। मुकेश की नज़र दीवार पर गयी तो वही टिक गयी। प्रियांशु का गुलाब सा मुस्कुराता हुआ चेहरा और उस फोटो पर फूलों की माला  !! वह ''नहीं ''कहकर लगभग चीखता हुआ दीवार के पास पहुँच गया। बाबूजी उसे संयमित कर सोफे तक लाये। वह निढाल होकर सोफे पर बैठ गया। उसके मस्तिष्क में हजारों सवाल दौड़ लगाने लगे । माँ बोली  -''मीना जरा  एक गिलास पानी ले आओ '' मीनाक्षी पानी ले आई। माँ ने मुकेश के पास बैठते हुए गिलास पकड़ाते हुए कहा -''बेटा जो दुर्घटना घटनी थी वह घट चुकी। ..अब खुद  को संभालो।

इस तरह तुम और मीना यहाँ दिल्ली में ऐसे दुखी रहोगे तो हम वहां कानपूर में कैसे चैन से रह पाएंगे ?बाबूजी बोले -''मुकेश तुम जो कुछ जानना चाहते हो वो मैं तुम्हे बताता हूँ। तुम्हे बेहोश कर वे तीनों बदमाश फिर से ईख के खेत में छिप गए लेकिन उस खेत को पुलिस ने उत्तम व् शिरीष की सूचनाओं द्वारा चारों ओर से घेर लिया था। तुमको बेहोश पड़ा देखकर शिरीष व् उत्तम पुलिस की सहायता से तुम्हें तुम्हारी गाड़ी से लेकर  अस्पताल पहुँच  गए और उधर ब्रीफकेस में कुछ ना पाकर तीनों बदमाश पुलिस के डर से ईख से बाहर निकल आये। पुलिस द्वारा प्रियांशु के बारे में पूछे जाने पर पता चला कि........उन्होंने उस नन्ही सी जान को पहले ही मार डाला था और फोन पर पैसा हड़पने के लिए जो प्रियांशु की आवाज़ वे सुना रहे थे वो रिकॉर्ड की हुई थी। .वे तो पैसा लेकर फरार हो जाना चाहते थे। पुलिस की गहन पूछताछ में पता चला कि-उन दरिंदों ने प्रियांशु कि डैड बॉडी शहर के बाहर एक बाग़ में दबा दी थी। उन हैवानों की दरिंदगी तो देखो । ...उन्होंने मरकर भी उस नन्ही सी जान को सुकून न लेने दिया। प्रियांशु की शिनाख्त छिपाने के लिए उसका चेहरा मरने के बाद तेजाब से झुलसा दिया। ..''। ..''बाबूजी। ..बस। ..रहने दीजिये !!!...''मुकेश चीखता हुआ बोला और अपनी हथेलियों से अपना मुंह ढककर तड़पता हुआ रोने लगा।

बाबूजी मुकेश के कंधे पर हाथ रखते हुए उसके पास ही बैठ गए। वे बोले -''बेटा तुम इस हालत में नहीं थे इसीलिए एक माह तक हमने तुमसे ये बात छिपाई। मीनाक्षी तुम्हारे सामने इसीलिए नहीं आई क्योंकि वो तो खुद को ही नहीं संभाल पा रही थी। शिरीष ,उत्तम और संगीता अस्पताल लगभग रोज़ आते थे पर तुम्हारे सामने आने साहस न कर पाते कि कहीं उनके मुंह से ये बात न निकल जाये। ..लेकिन हाँ अब ध्यान से सुनों। ..मैं और तुम्हारी माँ कल को कानपूर लौट जायेंगे। ..तुम्हे और मीनाक्षी को मजबूत दिल का होकर प्रियांशु के हत्यारे को फांसी के तख्ते तक पहुँचाना है। '' बाबूजी की बातें कानों में गूँज रही थी कि मुकेश को लगा उसके कंधे कोई जोर से हिला रहा है। ..यह मीनाक्षी थी। मुकेश वर्तमान में लौट आया और प्रियांशु के हत्यारे को फांसी की सजा दिलाने की याद आते ही एक लम्बी सुकून की सांस ली।

तीन माह पश्चात् मीनाक्षी  ने घर के निकट के ही ''आशीर्वाद '' नर्सिंग होम में एक चाँद से बेटे  को जन्म दिया और जब नर्स गोद में लेकर उसे बाहर आई तो माँ बाबूजी के चेहरे वैसे ही खिल गए जैसे प्रियांशु के जन्म के समय खिल उठे थे। और मुकेश ने उस नवजात शिशु को जैसे ही गोद में लिया वह अधखुली आँखों से एकटक उसे देखता हुआ हल्का सा मुस्कुराया जैसे वो नन्हा सा फ़रिश्ता कह रहा हो -''पापा लो मैं फिर आ गया '' मुकेश की आँखे ख़ुशी के आंसुओं से छलछला उठी।

COMMENTS

BLOGGER: 4
  1. आदरणीय रवि जी -
    आपके द्वारा प्रकाशित मेरी कहानी अधूरी है .मैंने इस मेल के बाद तुरंत अगले मेल द्वारा पूरी कहानी भेजी थी .आपसे विनम्र निवेदन है कि आप पूरी कहानी प्रकाशित करने की कृपा करें -मैंने फिर से मेल कर दिया है .
    सादर
    डॉ शिखा कौशिक ''नूतन''

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहद संवेदनशील और मार्मिक कहानी

    जवाब देंहटाएं
  3. .उन्होंने कहा है मैं अकेला ही एक ब्रीफकेस (के)......के .....फ़ालतू है यहाँ .... लेकर वहां पहुँच जाऊं । ..आगे पुलिस के साथ मिलकर वे दोनों संभाल लेंगें। ''

    आगे पढ़ें: रचनाकार: कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -106- शिखा कौशिक की कहानी : पापा मैं फिर आ गया

    http://www.rachanakar.org/2012/10/106.html#ixzz28NBGNERu उसे पांच मिनट बाद सामने की ओर से ईख हिलते(हिलती ) नज़र आये(आई ) और पीछे से भी कुछ कदमों

    की आहट सुनाई दी। .वह सावधान हो गया।



    । उनमें से एक ने रिवॉल्वर मुकेश की कांपती.......(कनपटी ) ....से सटा दिया ।

    प्रियांशु (के )......को ...बुखार है और मीनाक्षी उसकी देखभाल में लगी रहती है।

    -मिनाक्षी (मीनाक्षी )घर के बहार (बाहर )लॉन में इंतजार करती दिखाई देगी । ..वैसा कुछ नहीं हुआ क्योंकि मिनाक्षी.....(मीनाक्षी )........ उसे नहीं दिखाई दी।

    मुकेश की नज़र दीवार पर गयी तो वही.....(वहीँ )... टिक गयी

    इस तरह तुम और मीना यहाँ दिल्ली में ऐसे दुखी रहोगे तो हम वहां कानपूर......(कानपुर ).... में कैसे चैन से रह पाएंगे

    ..उन्होंने मरकर भी उस नन्ही सी जान को सुकून न लेने दिया। प्रियांशु की शिनाख्त छिपाने के लिए उसका चेहरा मरने.....(मारने ) ...के बाद तेजाब से झुलसा दिया।

    शिरीष ,उत्तम और संगीता अस्पताल लगभग रोज़ आते थे पर तुम्हारे सामने आने.....(का ).छूट गया है ...का ...... साहस न कर पाते कि कहीं उनके मुंह से ये बात न निकल जाये।

    ..लेकिन हाँ अब ध्यान से सुनों......(सुनो )...... ..मैं

    और तुम्हारी माँ कल को कानपूर (कानपुर )लौट जायेंगे। ..तुम्हे और मीनाक्षी को मजबूत दिल का होकर प्रियांशु के हत्यारे को फांसी के तख्ते तक पहुँचाना है। ''

    बहुत ही कसावदार है इस कहानी का तानाबाना एक भी शब्द फ़ालतू नहीं .पाठक की आशंका मुकेश के साथ -साथ ही आगे बढती जाती है .

    एक छोटा सा फ्लेश बैक का आभास भी जैसे मुकेश हिमांशु की याद से बाहर निकल आया हो तब जब उसने कहा हाँ ...हत्यारे को फांसी .....

    हिन्दुस्तान में घटित इन हृदय विदारक घटनाओं का ऐसा मार्मिक ,कारुणिक चित्र आपने उकेरा है किसी चित्रकार की कूची से .बधाई इस सशक्त कहानी के लिए .एक मारक सन्नाटा

    बुनती है कहानी ,तदानुभूति क्या पाठक उस हादसे को जीने ही लगता है .

    जवाब देंहटाएं
  4. shikha ji aapki post par jo tippani veerubhai ne kee hai usse behtar tippani main nahi kar sakti .man me bahut dukh ho raha hai patron ke dukh ko anubhav karke.bahut sundar bhavnatmak kahani .

    जवाब देंहटाएं
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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -106- शिखा कौशिक की कहानी : पापा मैं फिर आ गया
कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -106- शिखा कौशिक की कहानी : पापा मैं फिर आ गया
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/10/106.html
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