तेजेन्द्र शर्मा विशेष : राजेन्द्र दानी का संस्मरण - हाशिए से अभिव्यक्ति

SHARE:

(तेजेंद्र शर्मा - जिन्होंने हाल ही में अपने जीवन के 60 वर्ष के पड़ाव को सार्थक और अनवरत सृजनशीलता के साथ पार किया है. उन्हें अनेकानेक बधाई...

(तेजेंद्र शर्मा - जिन्होंने हाल ही में अपने जीवन के 60 वर्ष के पड़ाव को सार्थक और अनवरत सृजनशीलता के साथ पार किया है. उन्हें अनेकानेक बधाईयाँ व हार्दिक शुभकामनाएं - सं.)

--

हाशिए से अभिव्‍यक्‍ति

राजेन्‍द्र दानी

हिन्‍दी कहानी आलोचना/समीक्षा के अपने कुछ अनौपचारिक तर्क हैं, जिसे औपचारिकता में बदलने का साहस इस क्षेत्र के किसी पुरोधा/धुरंधर ने नहीं दिखाया। बात यही कि झूठ के अन्‍वेषण के लिए उसकी स्‍थापना के लिए ऊर्जा स्‍खलित होती रही। यह चरम के पहले ही हो गया। यह आश्‍चर्यजनक घटना है। यहां नये समय के ‘हिडन' शर्तों के साथ हम आगे बढ़ते चले गये। यह कहना शायद ज़्‍यादा बेहतर होगा कि ये शर्तें इसे धकेलती चली आईं। अब इसका उद्‌घाटन करना बेमानी है कि अब हम कहां हैं।

दरअसल इस देश में जब मीमांसकों की इस विधा का विकास हो रहा था तब तक इस क्षेत्र के सक्रिय लोगों के अचानक फलने-फूलने के दिन आ गये। यह बताना कतई आवश्‍यक नज़र नहीं आता कि इस घटना के पीछे किस साम्राज्‍यवादी चेतना का हाथ था या है। इसके दिशाहीन

अराजक विकास के लिए कुछ लोग, ऐसे कुछ लोग-जिनकी प्रतिभा संदिग्‍ध थी और सम्‍भवतः वे भी इस तथ्‍य से परिचित थे- आगे आ गये। तब सृजनधर्मी, रचनाकार और ईमानदार लोगों के जीवन और सोच में व्‍यापक बदलाव हुए। इन्‍हें कोई न रोक सका। कई अन्‍य सरोकारों को जोड़ते हुए इस सत्‍य को ज्ञानरंजन की इस टिप्‍पणी से भी जोड़कर अच्‍छी तरह समझा जा सकता है कि- “देश के सर्वोत्तम दिमाग और रचनात्‍मक प्रतिभाएं किसी भी राजनैतिक या सांस्‍कृतिक समर में घुसने के लिए तैयार नहीं हैं। उनकी विचारधारा चाहे कुछ भी हो, उनके पास एक खुश और चमकीली जीवन पद्धति है और बाज़ार की सभी भव्‍य चीज़ें, देर-सवेर उनमें घर कर गई हैं।”

यदि इसे एक स्‍थापना मानकर चला जाए तो यहां बहस की असीम संभावनाएं है। कहानीकारों की भीड़ में आज कोई क्‍यों नहीं सुरेन्‍द्र मनन को याद करता। अशोक अग्रवाल ने बीसियों कहानियां, बेहद महत्त्वपूर्ण कहानियां लिखीं उन्‍हें स्‍मरण न करने के क्‍या कारण हैं? सुभाष पंत या नरेन्‍द्र नामदेव आज भी सक्रिय हैं पर बड़े लोगों की छोटी-छोटी टिप्‍पणियों में इनके नाम नदारद हैं। ये बड़े, लाचार, बेचारे लोग अपनी ओर से अन्‍वेषक का व्‍यवहार नहीं करते, जो मुहैया है उसका उत्‍थान करते हैं। कॉलम लिखने के लिए इससे ज़्‍यादा की ज़रुरत भी कहां है?

इन परिस्‍थितियों पर चिंता व्‍यक्‍त करने वाले सिर्फ ईमानदार रचनाकार ही नहीं हैं बल्‍कि आलोचना के क्षेत्र में ईमानदारी और साफगोई से संलिप्‍त युवा आलोचकों की चिन्‍ताएं भी विमर्श के लिए प्रस्‍तुत हुई हैं। पिछले दिनों एक कार्यक्रम में ‘कहानी की आलोचना' सम्‍बन्‍धी विमर्श में युवा आलोचक जयप्रकाश ने अपने विचार रखते हुए कहा- आलोचक कहानी से अपेक्षा करे कि वह पूँजी तकनीक और बाज़ार के संयुक्‍त प्रभाव से जटिल मायावी होते यथार्थ के भीतर प्रवेश करने के लिए नई सूक्‍तियां ईज़ाद करे, तो यह उचित है लेकिन आलोचना स्‍वयं कहानी के भीतर प्रवेश न कर उसकी सतह पर मंडराती रहे तो इसे क्‍या कहा जाय? आलोचना का तदर्थवाद या उसका प्रमाद?

इसी तरह अपने उद्‌बोधन में उन्‍होंने एक बेहद महत्त्वपूर्ण बात कही कि- नई सदी के अनिश्‍चयपूर्ण और बहुकेन्‍द्रिक यथार्थ का सामना करते हुए कहानी जिस तरह से शिल्‍पगत उद्यमों का सहारा ले रही है, वह कई मायनों में विलक्षण है। लेकिन क्‍या कहानी-आलोचना कहानी का सिर्फ साथ निभा रही है या फ़िर उसका सतर्क परीक्षण कर पा रही है, या नहीं ? यह देखा जाना भी आवश्‍यक है।

कुल मिलाकर इतना कि कहानी की पहचान का आज अभूतपूर्व संकट है। ये संकट कितना विशाल-विकराल है इसकी पड़ताल का यह अवसर और जगह नहीं है। आज के परिदृश्‍य में कई तरह के एक्‍स्‍ट्रीम हैं पर इनसे अलहदा, इनकी परवाह न करते हुए कुछ ऐसे कथाकार हैं जो अपनी समूची ऊर्जा के साथ रचनारत हैं। ये वे रचनाकार हैं जो नये समय के समीकरणों से अनभिज्ञ हैं, उसका गणित वे नहीं जानते। सांप-सीढ़ी का खेल उन्‍हें समझ नहीं आता। यह अलग बात है कि नई व्‍यावहारिकता के समझ के अभाव में वे ओट में हैं और अभी तक पर अकुण्‍ठ हैं।

एक ऐसे ही कहानीकार तेजेन्‍द्र शर्मा, जो बरसों से लिख रहे हैं, का परिचय कराते हुए उनकी कुछ उल्‍लेखनीय कहानियों पर दृष्‍टि डालने का यहां प्रयास है।

हाशिये पर जीने वाले अधिसंख्‍य लोगों के जीवन में ऐसी कौन-सी परिस्‍थितियां इस देश में पैदा होती हैं जिसकी वजह से किसी चरित्र की मनःस्‍थितियों का ग्राफिक्‍स में एक अत्‍यन्‍त अजीब विचलन देखने को मिलता है, यदि इसकी जांच करनी हो और कमोबेश संभावित हल तक पहुंचने का प्रयास जहां परिलक्षित हो, यह देखना हो तो तेजेन्‍द्र शर्मा की ‘एक ही रंग' को अवश्‍य पढ़ा जाना चाहिए। फुटपाथ पर हज़ामत बनाने वाले ग़रीब नाई का आशंकित और हर पल संभावित विस्‍थापन से लड़ने की क्षमता अर्जन करने के दौरान एक हास्‍यास्‍पद और किसी हद तक विक्षिप्‍त स्‍थिति तक पहुंच जाने कि दुर्दशा के चित्रण से मार्मिक अनुभूति का सफल और सहज सम्‍प्रेषण इस कहानी की खासियत है।

रोजी-रोटी कमाने के लिए समझौतों के साथ मजबूर निरीहता की हदों को पार कर देने के बावजूद हासिल ‘सिफर' के साथ जीते लोगों की दशा का मार्मिक चित्रण इस कहानी में निहित है। इर्दगिर्द की संवेदनहीनता-जो अपने हितों तक सीमित है, की नाटकीय व्‍यंजना के साथ सार्थक अभिव्‍यक्‍ति इस कहानी की विशेषता है।

भू-मंडलीकरण, वैश्‍वीकरण और उत्तर आधुनिकता के इस दौर में जीवन की विदारक घटनाओं को भुना लेने की सभ्‍यता का कितनी तेज़ी से विकास हो रहा है इस तरह के अनुभव से साक्षात्‍कार कराती एक कहानी है ‘देह की कीमत'। कहानी के शीर्षक से यह लक्षित नहीं है कि कौन सी देह? जीवित अथवा मृत? पर कहानी की प्रथम पंक्‍ति से ही ज्ञात होने लगता है कि यहां भ्रम की कोई गुंजाइश नहीं है और कहानी के केन्‍द्र में एक मृत देह ही है। कोई भी समझ सकता है कि हमारे समाज और हमारे देश में मृत देह को अन्‍ततः खाक हो जाना है, वह मिट्टी है। वह अमूल्‍य ज़रूर है पर उसे बेचा नहीं जाता। पर उसकी भी अब बिक्री सम्‍भव है। यहां भले न सही पर अप्रत्‍यक्ष रूप से देश से परे यह सम्‍भव है। इस देश में यह व्‍याधि नहीं है पर उसके संक्रमण को यहां पहुँचाना सम्‍भव हो गया है। कथा में जो कहा है वह यही व्‍यक्‍त करता है। कथन में जो है उसका सार-तत्‍व यही है कि हमारे परिवार का कोई सदस्‍य परदेश जा बसे और वहीं स्‍वर्गवासी हो जाए और हम आंसू बहाते उसकी अंत्‍येष्‍टि के लिए उसकी देह की मांग करें तो हमें उसकी कीमत चुकानी होगी। लेकिन अंतरंग-आत्‍मीय और खून के रिश्‍ते के लोग यह न चाहें और देह को परदेश में खाक कर देने की अनुमति दे दें तो इसकी इतनी कीमत मिल सकती है- जिसकी चाहत में, जिसकी वासना में मृतक का परिवार छिन्‍न-भिन्‍न हो सकता है। परिवार की यह स्‍थिति उसकी अन्‍तिम क़ीमत है जिसे चुकाने में सदियां गुज़र सकती हैं। नये समय में हमारी संवेदनात्‍मक परम्‍परा का क्षरण इस कहानी मुख्‍य वस्‍तु है जिसे सहज ढंग से मुखरता मिली है।

परदेश में हमारे किसी आत्‍मीय के देह की कीमत है तो उसकी आरक्षित क़ब्र की कीमत भी उत्तरोत्तर बढ़ रही है। तीसरी दुनिया (हालांकि कहा नहीं जा सकता कि वैश्‍वीकरण की दौड़ में वह बची कि नहीं) के दो देश के दो परिवार पहली दुनिया के किसी देश में मित्र हैं। उनकी मैत्री का कारण ही यह है कि पहली दुनिया में रहते हुए वे तीसरी दुनिया के हैं। उनकी नस्‍ल एक है पर जाति-धर्म भिन्‍न है। यह भिन्‍नता उनका अतीत है जो समय-समय पर सिर उठाता है। अतीत से साम्‍प्रदायिक सड़ांध की बू भी निकलती है पर तीसरी दुनिया की समानता की वजह से वह अधिकांश वक़्‍त नेपथ्‍य में रहती है। पर आर्थिक असमानता उन्‍हें जीवन की ज़रूरतों से सम्‍पन्‍न होने के बावजूद त्रास देती है। इस त्रासदी के लिए दोनों परिवार के मुखिया एक उच्‍च स्‍तरीय क़ब्रगाह में अपनी और अपने पारिवारिक सदस्‍यों के लिए क़ब्र की बुकिंग करते हैं। इस स्‍थिति में इस विकृत हरकत पर परिवार में जब बहस चलती है और अन्‍ततः बुकिंग निरस्‍त की जाती है तो पता चलता है कि बुकिंग की राशि उन्‍हें इन्‍फ्‍लेशन की वजह से कई गुना बढ़कर वापिस मिलेगी। दोनों परिवार के लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। यह कहानी है ‘क़ब्र का मुनाफा'। तेजेन्‍द्र शर्मा की यह कहानी ‘देह की कीमत' के आगे की कहानी है। मानवीय अस्‍मिता के विरुद्ध चल रहे आर्थिक षडयंत्रों को उजागर करती ये कहानियां विषय और कथ्‍य के मामले में बिरली हैं।

‘देह की कीमत' और ‘क़ब्र का मुनाफा' की तरह विचारोत्तेजक तो नहीं, पर मानव नियति और उसके पराजय पर एक सार्थक कहानी है, “कैंसर”। पत्‍नी की आसन्‍न मृत्‍यु और अपनी नियति के साथ लड़ते-लड़ते एक व्‍यक्‍ति कैसे स्‍वयं भी अनजाने ही नियति का अप्रत्‍यक्ष ग्रास बन जाता है कि उसे लगता है कि वह भी गिरफ्‍त में है आशंकाएं यदि घर बना लें तो किस तरह एक झूठ भी सच की तरह महसूस होता है। पत्‍नी को उपचारोपरांत जो अंतरिम राहत मिलती है उसका मिलना भी संदिग्‍ध है क्‍योंकि वह स्‍वयं बाद में अपने घर को उस तरह नहीं देख पाती जैसा कि पहले देखती थी। वह महसूस करती है कि उसके रोग का संक्रमण उसके घर के वातावरण में घुल रहा है।

रोगोपरांत बनने वाली मनोवैज्ञानिक विकृतियां शेष जीवन को डस लेती हैं। संत्रास में जी रहे परिवार का भावुकता से बचते हुए चित्रण करना किसी भी रचनाकार के लिए एक चुनौती है जिसका सामना रचनाकार ने इस कहानी में अपने कौशल के साथ किया है। कथ्‍य की मार्मिकता पाठक के अंतर्मन में पैबस्‍त हो जाती है।

एक और कहानी का जिक्र यहां बेहद ज़रूरी है। तेजेन्‍द्र शर्मा की एक कहानी है ‘ढिबरी टाइट'। यह हमारे रोज़मर्रा की ज़िदगी का एक बेहद प्रचलित मुहावरा है और बहुत छोटी-छोटी झड़पों, बहसों में प्रयुक्‍त होता है। लेकिन नये संदर्भों और बदलती हुई राष्‍ट्रीय-अन्‍तर्राष्‍ट्रीय स्‍थितियों के बरक्‍स इसे यहां एक व्‍यापक अर्थ मिला है। यहां उल्‍लिखित कहानियों में सुदूर जा बसे प्रवासी लोगों के जीवन की व्‍यथाएं आमतौर से सामने आई हैं। लेकिन वे ज़्‍यादातर निजी जीवन से सामने आई हैं। पर यह कहानी निजी जीवन की होते हुए भी प्रवास के दौरान निजी जीवन में घटी घटना से किसी देश पर किसी अन्‍य देश का कब्‍जा होने पर प्रसन्‍नता कैसे ला सकती है? या क्‍यों ला सकती है? यह थोड़ी सी अजीब ‘बात हो सकती है लेकिन' कहानी में यह एक विद्रूप यथार्थ के रूप में उजागर होती है। अपने सगे की मृत्‍यु के लिए जिम्‍मेदार एक देश पर जब दूसरा देश हमला करता है तो एक कमज़ोर असहाय भोक्‍ता प्रसन्‍न होने के अलावा कर भी क्‍या सकता है? यहां एक अभूतपूर्व यथार्थ सामने है कि सारी दुनिया में समय की जो गति है वह ईमानदार, नेक ख्‍़याल आदमी के जीवित रहने के विरुद्ध है।

तेजेन्‍द्र शर्मा के अलग-अलग संग्रहों से ली गई ये कहानियां अनजान होते हुए भी बदलती हुई दुनिया के प्रति हमारी जिज्ञासा और उत्‍सुकता को बढ़ाती हैं। उनका और उनकी रचनात्‍मकता की चर्चा भले न हो पर वे विद्यमान हैं और प्रकाश में आने से उनका रुकना नहीं हो सकता। कहानी के नये आडंबरों से दूर वे एक हाशिए पर सक्रिय हैं। उनकी भाषा में किसी नवजात का सा भोलापन है पर कथ्‍य में एक सादगी के साथ एक विश्‍व दृष्‍टि विकसित करने की गम्‍भीर सक्रियता है। ये विशेषताएं उनकी कहानियों को मूल्‍यवान बनाती हैं।

--

साभार-

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: तेजेन्द्र शर्मा विशेष : राजेन्द्र दानी का संस्मरण - हाशिए से अभिव्यक्ति
तेजेन्द्र शर्मा विशेष : राजेन्द्र दानी का संस्मरण - हाशिए से अभिव्यक्ति
http://lh5.ggpht.com/-XKz90EcBX8s/UITvAWsrbzI/AAAAAAAAPdg/1s5Pf1AO_kY/image%25255B2%25255D.png?imgmax=800
http://lh5.ggpht.com/-XKz90EcBX8s/UITvAWsrbzI/AAAAAAAAPdg/1s5Pf1AO_kY/s72-c/image%25255B2%25255D.png?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/10/blog-post_2380.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/10/blog-post_2380.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content