तेजेन्द्र शर्मा की कहानी - कैंसर

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(तेजेंद्र शर्मा - जिन्होंने हाल ही में अपने जीवन के 60 वर्ष के पड़ाव को सार्थक और अनवरत सृजनशीलता के साथ पार किया है. उन्हें अनेकानेक बधाई...

(तेजेंद्र शर्मा - जिन्होंने हाल ही में अपने जीवन के 60 वर्ष के पड़ाव को सार्थक और अनवरत सृजनशीलता के साथ पार किया है. उन्हें अनेकानेक बधाईयाँ व हार्दिक शुभकामनाएं - सं.)

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कैंसर

तेजेन्द्र शर्मा

क्या हो गया है मुझे? मुझ जैसा तर्कसम्मत व्यक्ति भी किन चक्करों में फंस गया है? ......क्या प्यार मनुष्य को इतना कमज़ोर बना देता है? ......नहीं......संभवतः प्यार के खो जाने का डर उससे कुछ भी करवा सकता है।......शायद......इसीलिए इस कैंसर समूह ने मुझे इस बुरी तरह जकड़ लिया है।

कैंसर!

'युअर वाइफ इज़ सफ़रिंग फ़्रॉम कार्सीनोमा......'

उस समय इन शब्दों का वज़न ठीक से महसूस नहीं हो पाया था। इतने भारी-भरकम नाम वाली बीमारी ने जैसे मुझे बौरा दिया था। डॉ. पिण्टो अपने प्रोफ़ेशनल अंदाज़ में मुझे समझा रहे थे कि मेरी पत्नी को क्या बीमारी हो गई है।

'इसका मतलब क्या हुआ डॉक्टर साहब?' मेरी आवाज़ रिरियाती हुई सी निकली थी।

'वैल! सीधे सादे शब्दों में यूं भी कह सकते हैं, कि आपकी वाइफ़ को कैंसर है और उनकी 'लेफ्ट ब्रेस्ट' का ऑपरेशन करना होगा......यानि कि 'रैडिकल मैसेक्टमी'।।

पूनम को कैसे बताऊंगा? ......कल उसका जन्मदिन है......तैंतीसीसवां जन्मदिन।......क्या यह समाचार उसके जन्मदिन का तोहफ़ा है? ......क्या उससे झूठ बोल जाऊं? ...... पर वह क्या दूध पीती बच्ची है? ......रिपोर्ट तो मांगेगी ही......देखेगी भी......और पढ़ेगी भी।......तो फिर?

'रैडिकल मैसेक्टमी'।......यानि कि बांई ब्रेस्ट का काटना......यानि कि पूनम अधूरी......यह मैं क्या सोचने लगा? ......क्या मैं पूनम को केवल छातियों की गोलाई के कारण प्यार करता हूं? विवाह के दस वर्षों का अर्थ क्या केवल छातियां ही हैं? ......नहीं-नहीं......यह ऑपरेशन तो क्या दुनिया का कोई भी हादसा उसकी पूनम को अधूरा नहीं बना सकता।......पूनम तो मेरे जीवन का सरमाया है......मेरी पूंजी है।

मुझे दस वर्ष चांद सी ठंडक देने वाली पूनम पर अब क्या गुज़रने वाली है? ......आकांक्षा तो थोड़ी समझदार है......आठ वर्ष की हो गई है......परंतु अपूर्व तो अभी केवल तीन साल का ही है।......क्या वह अभी से बिन मां का हो जायेगा? ......क्या पूनम भी बस एक तस्वीर बन कर लटक जायेगी, जिस पर एक हार चढ़ा होगा?

'फिर आप क्या सलाह देते हैं डॉक्टर साहब', मेरी आवाज़ रो रही थी।

'इसमें अब सलाह जैसी तो कोई बात है ही नहीं मि. मेहरा! मैं तो यहीं कहूंगा कि ऑपरेशन जल्दी से जल्दी हो जाना चाहिए। अब यह ऑपरेशन चाहे आप टाटा से करवायें या हमारे यहां......ऑपरेशन है बहुत जरूरी।......फिर आप तो किस्मत वाले हैं......अभी तो पहली स्टेज है टी.वन, एन.जीरो।'

'आपका मतलब है......अभी फैला नहीं है?' मेरी आवाज़ जैसे कमरे में चारों ओर फैल गई थी।

जब चावला आण्टी का ऑपरेशन हुआ था, तो जैसे मुझे कुछ भी महसूस नहीं हुआ था।......वे बेचारी रेडियेशन को बिजली और कीमोथिरेपी को बड़ा इंजेक्शन कहने वाली अनपढ़ आण्टी। पर आण्टी के ऑपरेशन को तो आठ वर्ष से ऊपर हो गये। चावला आंटी तो उस समय ही पैंतालिस से ऊपर की थीं।......किंतु डॉ. पिण्टो तो कुछ और ही कह रहे थे, 'वो क्या है मि. मेहरा आई वुड पुट इट दिस वे, कि ब्रेस्ट कैंसर में मरीज जितना जवान रहता है, इलाज उतना ही मुश्किल हो जाता है। मंथली हार्मोनल डिस्टरबैंस इलाज में सबसे बड़ी बाधा होती है।.....'मेनोपॉज़ के बाद मरीज़ का इलाज उतना ही ज्यादा आसान हो जाता है।'

पूनम तो अभी तैंतीस भी पूरे नहीं कर पाई।......सबसे पहले दिल्ली फ़ोन करता हूं।......पर बाऊजी तो स्वयं ही दिल के मरीज़ हैं। इस समाचार से न जाने क्या असर होगा उनकी सेहत पर? बंबई शहर में एक भी तो रिश्तेदार नहीं अपना......परेदस जैसा देश है।......पूनम के घरवालों से तो बात करनी ही होगी। उनसे सलाह लिये बिना तो कोई भी कदम नहीं उठाना चाहिए।

पर जिसके बारे में कदम उठाना है, पहले उससे तो बात कर लूं। आकांक्षा भी तो दम साधे, अपनी मम्मी की रिपोर्ट की प्रतीक्षा कर रही होगी। अपूर्व तो अपने खिलौनों में मस्त होगा।......पूनम के दिल पर यह प्रतीक्षा की घड़ियां क्या असर कर रही होंगी? .... उसने तो कहा भी था कि अस्पताल से ही फ़ोन कर देना...... फ़ोन करने की हिम्मत मुझमें थी कहां? ......क्या कहता?

कहना तो पड़ेगा ही। सब कुछ बताना पडेगा। फ़िल्मों में लोग कितनी आसानी से मरीज़ से उसकी बीमारी छुपा लेते हैं।......पूनम को क्या कहूं, 'पुन्नी, क्योंकि तुम्हें ज़ुकाम हो गया है, इसलिए तुम्हारी बांई ब्रेस्ट कटवाने जा रहा हूं।'......आज समझ आ रहा था कि पूनम क्यों सदा ही चावला आंटी के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया रखती थी।......क्यों उनकी छोटी से छोटी ज़िद भी पूरा करने की कोशिश पूनम करती थी।......सहज नारी प्रतिक्रिया।

प्रतिक्रिया तो व्यक्त करता है चंद्रभान। बात-बात पर बहस करने को ऊतारू हो जाता है। कहने को तो मेरा मित्र है, किंतु उसके पास हर मर्ज़ का एक ही इलाज है -विश्वास! ......देवी-देवताओं में अंध-विश्वास। वह तो यह भी पूछ बैठेगा, 'डॉक्टर के पास गये ही क्यों?' उसे तो डॉक्टरी और शल्यक्रिया समझ ही नहीं आती।

वैसे यदि डॉक्टर के पास न भी गये होते तो भी क्या फ़र्क पड़ता? ......पूनम को न तो कोई दिक्कत थी न ही कोई शिकायत।...... दर्द, बुख़ार, थकान, कमज़ोरी......कुछ भी तो नहीं था। वो दिन भी कितने ख़ुशी के दिन थे। सारा परिवार लन्दन में छुट्टियां मना रहा था। चार सप्ताह कैसे बीत गये थे, पता ही नहीं चला था। आकांक्षा तो अभी भी वाटर पैलेस, चेज़िंगटन ज़ू, आल्टन टॉवर की बातें करती नहीं थकती। मैडेम तुसाद संग्रहालय में तो पूनम भी चकित रह गई थी कि मोम के पुतले कितने असली लग सकते हैं।......किंतु पूनम का व्यवहार सदा की भांति सधा हुआ, संतुलित रहा। अपनी ख़ुशी और उदासी पर न जाने कैसा नियंत्रण था उसका।

वहीं लंदन में ही एक दिन नहाकर गुसलख़ाने से बाहर निकली तो बांई छाती में छोटी-सी गांठ महसूस हुई थी। उस गांठ को आजतक खोलना कितना मुश्किल पड़ रहा है। पूनम का व्यवहार तो गांठ देखने के बाद भी पूरी तरह से नियंत्रित था।

नियंत्रण! यहीं तो पूनम की विशेषता है। पर क्या आज का समाचार सुनने के बाद भी क्या वह अपनी भावनाओं पर काबू रख पायेगी? यदि वह बेकाबू होने लगी तो मैं स्वयं क्या करूंगा? ......मैंने तो अपने दस वर्षीय विवाहित जीवन में पूनम को आंदोलित होते कभी देखा ही नहीं। आज उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी? वह तो बड़ी से बड़ी दुर्घटना को सहज रूप से ले लेती है।

'मेरे मम्मी-डैडी मेरी शादी की बात कहीं चला रहे हैं।' पूनम ने बड़ी सहजता से बता दिया था। आर्ट्स फैकल्टी के बाहर बैठा कुल्चे-छोले खा रहा था। दरअसल कुल्चे-छोले तो पूनम को खाने पड़ते थे। मैं तो उसका टिफ़िन ही खाया करता था।......अगला कौर तो हाथ में ही रह गया था। इतनी बड़ी बात और पूनम आराम से कुल्चा खा रही थी।......तो फिर क्या करें?' मैं घबरा गया था।

'मैं अपने जीजा जी से बात करूंगी। अगर वे मान गये तो मम्मी-डैडी को मना लेंगे।'

जीजाजी, भाईजी, मम्मी-डैडी और बहनें सभी मान गये थे। पूनम को कोई भी भला इन्कार कैसे कर सकता है। उसके व्यक्तित्व से अभिभूत हुए बिना कोई रह ही नहीं सकता। कालेज में भी तो कितने ही लड़के उस पर मरते थे। परंतु पूनम ने मुझे चाहा तो बस......।

ख़ूबसूरत लम्हों का एक सागर इकट्ठा कर लिया है पूनम ने मेरे लिए। कई जीवन उन हसीन लम्हों के सहारे बिता सकता हूं। ग़र्दिश के दिनों में दोनों फ़र्श पर बिस्तर बिछा कर भी सोये। एक-एक करके पूनम ने घर की सभी चीज़ें बनाईं।......घर बनाया। मुझे संवारा, तराशा। और आज जब अपनी मेहनत का फल पाने का समय आया तो यह बीमारी।

मुझे मालूम था यही होगा। पूनम ने बिना कुछ पूछे ही रिपोर्ट मेरे हाथ से ले ली थी। रिपोर्ट पढ़ने के बाद काफी समय कमरे में एक मुर्दा चुप्पी छाई रही। आकांक्षा की आंखें अपनी मम्मी पर गड़ी थीं।

'पूनम घबराने की कोई बात नहीं। डॉ. पिण्टो कह रहे थे कि बहुत इनीशियल स्टेज है। और इस स्टेज पर तो शर्तिया इलाज हो सकता है।'

पूनम ने रिपोर्ट एक तरफ सरका दी। आकांक्षा को अपने पास खींच लिया और उसके सिर पर एक चुंबन अंकित कर दिया। उसकी दोनों आंखों में आंसुओं की एक लकीर सी उभर आई थी। वो लकीर मुझे अंदर तक कहीं चीर गई थी। उस रात बिना भोजन किये हम सब सो गये थे।

सुबह आकांक्षा जब स्कूल चली गई और अपूर्व नर्सरी में तो पूनम ने मुझे संभाला, 'जब कह रहे हो कि पहली स्टेज है तो चेहरे पर मुर्दनी क्यों फैला रखी है। चावला आंटी भी तो कितनी सालों से चल ही रही हैं। मैं भी ठीक हो ही जाऊंगी।'

मुझे लग रहा था मुझसे बड़ा बेवकूफ़ दुनिया में दूसरा कोई हो ही नहीं सकता। पूनम का हौसला मुझे बढ़ाना चाहिए था और यहां सब कुछ उल्टा हो रहा है। बस आगे बढ़कर पूनम को बांहों में भर लिया था।

बिल्डिंग में बात फैलते देर नहीं लगी। करूणा को पूनम ने बताया; करूणा ने मधु को और मधु ने मिसेज रंगनाथन को। मिसेज रंगनाथन को पता चलने का अर्थ है कि पी.टी.आई. और यू.एन.आई. दोनों को एक साथ पता चलना। नेशनल नेटवर्क पर बिल्डिंग में शोर मच गया। टाटा के डॉक्टरों के नाम, पते सब मालूम होने लगे। मेरा विश्वास अभी भी डॉ. पिण्टो में पूरी तरह जमा हुआ था।

डॉ. पिण्टो के क्लिनिक में एक बार फिर पहुंच गये, 'डा. पिण्टो! आपसे एक सवाल पूछना है।......मैं अपनी पत्नी का ऑपरेशन टाटा के किसी भी डॉक्टर से करवा सकता हूं, विदेश चाहूं तो वहां भी ले जाऊं। फिर भला आपसे ही हम ऑपरेशन क्यों करवायें।'

एक क्षण के लिए गुस्सा डॉ. पिण्टो के चेहरे पर आया और कपूर बनकर उड़ गया। उन्होंने अपनी छाती पर क्रास बनाया, 'मिस्टर मेहरा, मैंने तो एक बार भी आपसे नहीं कहा कि ऑपरेशन मुझसे ही करवाएं। आप पिछले बीस मिनट से मुझसे बातें कर रहे हैं। ज़रा टाटा में करके देखिये। और फिर बंबई में एक भी कैंसर सर्जन ऐसा नहीं है जिसने टाटा में काम न किया हो। ऑपरेशन आप कहीं से भी करवाइये, किसी से भी करवाइये, पर जल्दी करवाइये।......अभी पहली स्टेज है......कहीं देर ने हो जाये। आई वुड पुट इट दिस वे......कि आजकल हर बड़ा अस्पताल कैंसर सर्जरी के लिए पूरी तरह से 'इक्विप्ड' है।......और सर्जन लोग तो छोटे नर्सिंग होम में भी आपरेशन कर देते हैं।......बाकी आप जैसा ठीक समझें।'

डॉ. पिण्टो की दो टूक बातों ने पूनम और मेरा दोनों का दिल जीत लिया था। कुछ क्षणों के लिए हम दोनों कैंसर की भयावहता से जैसे मुक्त हो गये थे। कभी हम डॉ. पिण्टो को देखते तो कभी हम जीसस क्राइस्ट की फोटो को। आपरेशन का दिन तय कर आये हम दोनों।

रात आने का समय तो तय है। अबकी बार डर रहे थे कि रात अपने साथ-साथ क्या-क्या लाने वाली है। कितनी लंबी होगी यह रात? क्या इस रात के बाद सवेरा देख पायेंगे?

बच्चे सो चुके थे। ऑपरेशन को बस चार रातें बाकी थी। मन में उमड़ते-घुमड़ते विचार जैसे रिले रेस में छोड़ रहे थे। पहला ख़्याल हट भी नहीं पाता था कि दूसरा उसकी जगह ले लेता था। मैं उन विचारों की उधेड़-बुन में फंसा हुआ था जब पूनम रसोई की बत्ती बुझाकर बेडरूम में पहुंची। रोज की तरह आज भी सोने से पहले स्नान करके आई थी। बदन से चंदन की खुश्बू उसकी नाइटी की लक्ष्मण रेखा को तोड़कर बाहर पूरे कमरे में फैल रही थी। आकर चुपचाप बिस्तर पर लेट गई। सदा की तरह आंखें बंद कर गायत्री मंत्र का जप करने लगी। मैं उस सात्विक चेहरे को निहारे जा रहा था। समझ ही नहीं आ रहा था ऐसे फ़रिश्ते भी ऐसी भयानक बीमारी के शिकार हो सकते हैं।

'मुझे बहुत प्यार करते हो?'

'यह क्या बात पूछी तुमने?'

'मुझे तुमसे एक बहुत बड़ी शिकायत है नरेन। तुम कभी भी मेरे बारे में पज़ेसिव नहीं हुए।......मैं चाहे किसी से भी बात करूं, किसी के साथ घूमने जाऊं, तुम्हे बुरा ही नहीं लगता।......मुझे लेकर तुम्हारे दिल में कभी जलन यार् ईर्ष्या की भावना नहीं जागती।......एक बात बताओ......मेरे शरीर को भी उतना ही प्यार करते हो......जितना कि मुझे?'

'पूनम!' ......

'नहीं, सच-सच बताओ।......आज तुम्हारे मुंह से सुनना चाहती हूं।'

'मैं सिर से पांव तक, तुम्हारे शरीर के एक-एक अंग से बहुत प्यार करता हूं।'

और पूनम ने अपनी नाइटी उतार दी थी, 'देख लो नरेन, जितना जी चाहे देख लो। जितना प्यार करना चाहो कर लो। अब तो बस चार रातें बाकी हैं। फिर जिंदगी कभी भी सहज नहीं हो पायेगी।......तुम्हारी अपनी प्यारी चीज़ सदा के लिए बिछड़ जायेगी।......मुझसे नफ़रत तो नहीं करने लगोगे......सच! इसमें मेरा कोई दोष नहीं है नरेन।'

फूट पड़ी थी पूनम की रूलाई। मेरी छाती उसके आंसुओं से गीली हो रही थी। मुझे ही फ़ैसला करना था। पूनम को समझा देना था कि एक छाती के साथ भी पूनम मेरे लिए उतनी ही आकर्षक, प्यारी और ज़रूरी होगी, जितनी कि आज! मुझे एकाएक बहुत बड़ा हो जाना था। मैं पूनम की परिपक्वता पर आश्रित होने का आदी हो चुका था। अब मुझे इस किरदार को पूरी शिद्दत से समझना होगा, निभाना होगा।

डॉ. पिण्टो का विश्वास, पूनम का साहस और हालात की संजीदगी सब मेरी हिम्मत बढ़ा रहे थे। ऑपरेशन से एक दिन पहले पूनम को हस्पताल में भर्ती करवाना था। छाती का एक्सरे, खून टेस्ट, ई.सी.जी. और जाने क्या-क्या। रात का खाना भी पूनम को जल्दी खिला दिया गया था। रात को डॉ. पिण्टो के सहायक डॉ. शाह और डॉ. दवे दोनों पूनम का चेकअप करने आये थे। मैं अब भी उम्मीद लगाए बैठा था कि शायद उनमें से कोई कह दे कि पूनम को कैंसर नहीं है।

कमरे से बाहर निकलते-निकलते डॉ. दवे की आवाज़ कानों से टकराई, 'शिरीश, डू यू थिंक 'सर' हैज डायग्नॉज़्ड दि केस करेक्टली?'

'हां यार! सिम्पटम तो कोई दिखाई नहीं दे रहा। शी लुक्स परफेक्टली नार्मल, एंड सो यंग।'

दम साधे सब सुन रहा था। पर रिपोर्ट मेरे सामने रखी थी। रिपोर्ट में साफ़-साफ़। लिखा था कि ब्रेस्ट में बिखरे-विखरे कैंसर सेल मौजूद हैं।......चमत्कार कर दो प्रभु।......सुबह आपरेशन टेबल पर डॉ. पिण्टो को गांठ दिखाई ही न दे।

दिमाग़ शायद शांत होना ही नहीं चाहता था। इसलिए तो अशांत आत्मा की तरह इधर-उधर भटक रहा था।......पूनम......कैंसर......छातियां...... रिश्ते......संबंध...... न जाने क्या-क्या। कई बार हैरान भी होता था कि पूनम और मैं एक ही जैसा भाग्य लेकर क्यों जन्में। पूनम भी बीच की है, उससे बड़ा एक भाई और छोटी एक बहन। मैं भी बीच का हूं, मुझसे बड़ी एक बहन और एक बहन छोटी। दोनों की शक्लें अपने-अपने परिवार में किसी से भी नहीं मिलती। दोनों को ही साहित्य से लगाव था। दोनों की सासें तो हैं, पर परन्तु मां किसी एक की भी नहीं। नहीं तो इस वक्त कोई एक मां तो हमारे साथ होती। अपने बच्चों को अकेला घर में छोड़कर हम दोनों अस्पताल में यूं न बैठे होते। बाहर भी अंधेरा है और भीतर भी। सुबह की रोशनी की प्रतीक्षा है।

सुबह को आना ही था। आज तो सुबह थोड़ी जल्दी ही हो गई थी। पूनम को खाने को कुछ भी नहीं दिया गया था-बस चाय।

पूनम उठकर स्वयं ही नहाई थी। उसके बदन से भीनी-भीनी खूश्बू उठ रही थी। खुश्बू! जो सदा मुझे दीवाना बना देती थी। उस डैटॉल और स्पिरिट से भरे माहौल में भी पूनम के बदन की खुश्बू मेरे नथुनों तक पहुंच रही थी। जैसे बलि से पहले उसे सजाया जा रहा था।

सुशील अपनी पत्नी लुईजा के साथ आया था। दोनों पूनम का हाथ पकड़े प्रभु यीशु से प्रार्थना कर रहे थे। मन ही मन, बिना सुने, मैं उनकी हर बात दोहरा रहा था। सबके दिल में एक ही दुआ थी।

डॉ. पिण्टों को देखते ही दिल उछलकर गले में आ फंसा था। जल्दी से उनके करीब पहुंचा, 'डॉक्टर, आपको पक्का यकीन है कि कैंसर ही है? कहीं कोई ग़लती तो नहीं हो रही?' मैं कैसे कहता कि मैं उनके सहायकों की बातचीत सुन चुका हूं।

डॉ. पिण्टो ने अपनी छाती पर क्रास बनाया, 'लुक मि. मेहरा, मैं पहले 'लम्प' को निकाल कर 'कोल्ड सेक्शन टेस्ट' करूंगा। अगर टेस्ट ठीक रहा, तो पैंतालिस मिनट में हम बाहर आ जायेंगे।......अगर, 'नोड इन्वाल्व हुए, तो मेजर ऑपरेशन करना होगा। नाउ, बेस्ट आफ लक!'

और मैं बस देख रहा था। पूनम गाड़ी पर लेटी अंदर पहुंच गई थी। डॉ. पिण्टो ने कपड़े बदलकर हरा सा कोट पहन लिया था। बेचैनी मेरे रक्त के साथ-साथ मेरे शरीर में संचार कर रही थी। यदि ख़ून टेस्ट करने में बेचैनी की मात्रा टेस्ट करने का कोई यंत्र होता, तो मेरे मन की बेचैनी उस यंत्र की सभी सीमाएं लांघ जाती।

अभिनव मेरा हाथ थामे खड़ा था। अपनी शूटिंग आज कैंसिल कर दी थी। फिर भी उसे वहां खड़ा देखकर लोग समझ रहे थे शायद कोई शूटिंग हो रही है। विश्वास दादा ने जैसे मेरे विश्वास को थाम रखा था। उनकी उभरी हुई जेब में सौ-सौ रुपयों की गड्डी अपने ढंग से मेरा हौसला बढ़ा रही थी।

पैंतालिस मिनट, एक घंटा, दो घंटे, तीन घंटे......वक्त धीरे-धीरे बढ़ रहा था। मेरी निस्तेज निगाहें शून्य में दूर कहीं कुछ खोज रही थीं। 'कोल्ड सेक्शन।'......पाजिटिव'.....। जीवन भर सिखाया गया था पाज़िटिव होना कितनी अच्छी बात है।......परंतु आज का टेस्ट पाज़िटिव होने का अर्थ कितना भयानक है।......आकांक्षा और अपूर्व तो आज स्कूल भी नहीं गये। दम साधे घर में ही पड़े हैं।.....'पॉज़िटिव......कार्सीनोमा......लेफ्ट ब्रेस्ट......रैडिकल मैसेक्टमी!'

चिंता और बोरियत बाहर बैठे चेहरों पर साफ़ दिखाई दे रही है। सब की चिंता का विषय एक ही- 'इतनी छोटी उम्र में ऐसी भयंकर बीमारी! ......बच्चों का क्या होगा? अभी तो बहुत छोटे हैं।'

और डॉ. पिण्टो बाहर निकले। छाती पर एक बार फिर क्रॉस बनाया। 'गॉड इज़ ग्रेट' मि. मेहरा! सब ठीक हो गया। मैंने काफी गहरे तक ऑपरेट किया है। कैंसर आल-रेडी नोड तक पहुंच गया था......अभी तो बेहोश पड़ी हैं आपकी वाइफ़।......

बट.......जल्दी ही होश आ जायेगा।......यस................आप आइये, आपको दिखा देते हैं क्या ऑपरेट किया है।'

ना चाहते हुए भी डॉ. पिण्टो के साथ हो लिया। एक ट्रे में मांस का लोथड़ा रक्त से सना पड़ा था। टयूमर अलग से दिखाई दे रहा था। मेरे सबसे प्रिय व्यक्ति का सबसे प्रिय अंग मेरे सामने कटा पड़ा था......जैसे अपनी एक आंख से मुझे घूर रहा था......अपने आप पर काबू नहीं रख पाया।......एक तेज़ सी उबकाई उठी।......कार्सीनोमा......मैसेक्टमी......ट्रे पूनम! चक्कर खाकर वहीं बैठ गया।......विश्वास दादा और अभिनव, दोनों मुझे सहारा देकर बाहर ले आये।

मन थोड़ा स्थिर हुआ तो ख्याल आया कि पूनम को तो देखा ही नहीं। वापस ऑपरेशन थियेटर में जाने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी। पूनम को कैसे देख पाऊंगा। उसकी आंखे मुझसे क्या सवाल पूछेंगी।......पर वह तो बेहोश है।......पूनम को ऑक्सीजन दी जा रही थी। ...................चेहरा ज़र्द......खून चढ़ रहा था। शरीर जैसे नलियों से अटा पड़ा था। ऑपरेशन कामयाब रहा था।

अस्पताल का स्पेशल वार्ड-ए, कमरा न. चौबीस में पहुंच गई थी पूनम।......चौबीस......उसका जन्मदिन। कमरा भी उसी नंबर का।......एक-एक करके सभी दोस्त और जान-पहचान वाले चले गये थे। कमरे में एक मैं, एक पूनम और एक एयर-कंडीशनर की आवाज। प्रतीक्षा कर रहा था कि पूनम थोड़ा कसमसाए ही सही। परंतु अभी तो नशीली दवा का गहरा असर था। पूनम तो बस सोये ही जा रही थी।

और मैं उसे देखे जा रहा था।......एअर-कंडीशनर की आवाज़ पर सवार विचार मेरे दिमाग़ को मथे जा रहे थे। पूनम से पहली मुलाकात से लेकर आज तक की प्रत्येक घटना मेरे मानस पटल पर उजागर होने लगी थी। क्या ठीक हो जायेगी पूनम? ......क्या फिर वही सुहाने दिन लौट आयेंगे? पूनम को कैंसर हुआ ही क्यों? ......डॉ. पिण्टो से बच्चों की तरह पूछ बैठा था, 'डॉक्टर, यह कैंसर होता क्यों है......इसका कारण क्या है?'

डॉ. पिण्टो ने भगवान यीशु की तस्वीर की ओर इशारा करते हुए कहा था, 'यही जानते हैं।......दरअसल मि. मेहरा जो इंसान भी कैंसर होने का सही कारण ढूंढ लेगा उसे तो नोबल पुरस्कार मिलेगा। कैंसर क्या होता है यह तो साइंस जानती है......पर कैंसर क्यों होता है, इसके जवाब में अभी तक अंधेरा है। यह शरीर अपने विरुद्ध क्यों हो जाता है, क्यों यह शरीर आत्महत्या शुरू कर देता है, इसका सही जवाब अभी तक वैज्ञानिकों को नहीं मिल पाया है।'

जिस-जिस को समाचार मिला, वह अस्पताल पहुंचने लगा। हर व्यक्ति को ठीक-ठीक वही-वही बातें बताते-बताते बोरियत सी होने लगती थी। अपनी-अपनी समझ से हर व्यक्ति अपनी चिंता व्यक्त करता था। 'कौन सी स्टेज है? ......'टाईम पर पता चल गया न?' ......'अभी फैला तो नहीं?' ......'अब तो ब्रेस्ट कैंसर का इलाज आसानी से हो जाता है।......डॉक्टर क्या कहता है?' ......'मैलिगनेंट है?' हर किसी का कोई न कोई करीबी रिश्तेदार कैंसर पीड़ित रहा है। मैं तो कुछ ऐसे परेशान हो रहा था जैसे पूनम से पहले कभी किसी को कैंसर हुआ ही न हो। मुफ़्त की सलाह देने वाले बहुतायत में थे। - 'मेहरा जी, हम आपको कहें, आप पूनम जी को रोज़ाना शहद दिया करें और सरसों के तेल की मालिश करवाया करें। इंशा अल्लाह सब ठीक हो जायेगा।......और हां चने जरूर खाने को दें।' यह नजमा थी, हमारी पड़ोसन। भूल गई थीं कि अस्पताल में कम बोलना एक अच्छी आदत समझा जाता है। जाते-जाते ताकीद करना नहीं भूली, 'मेहराजी, एक बात कहूं, हमारे पीर साहिब से तावीज़ बनवा लीजिए, पूनम जी बिल्कुल ठीक हो जायेंगी।'

चंद्रभान की देवी, नजमा जी के पीर फ़कीर, सुशील और लुईज़ा का 'लिविंग गॉड', और डॉ. पिण्टो की छाती पर बार-बार बनता क्रॉस, कार्सिनोमा, कटी हुई छाती, अस्पताल का कमरा सब मुझे भीतर से परेशान किये जा रहे थे।

नवें दिन हम घर लौट आये थे। पूनम की आंखों में एक बेबस सवाल मेरी ओर ताके जा रहा था, 'वैसे, यह भी कोई जीवन है जी? पराये मर्दों र्के सामने नंगा होना! पता नहीं कहां-कहां हाथ लगते हैं। बेकार हो गई ज़िंदगी तो!'

पूनम के दोनों हाथ स्वयंमेव ही मेरी हथेलियों में आ गये थे। आंखें तो मेरी भी नम हो आई थीं। उसके माथे पर मेरे एक चुंबन ने ही शायद उसे खासी शक्ति प्रदान कर दी थी, 'नरेन, किसी से भी मेरी बीमारी और ऑपरेशन के बारे में बातें मत किया करो। लोग अजीब सी निगाह से छाती को घूरते हैं।

इतनी बड़ी बीमारी को छुपा जाना चाहती थी पूनम! यहां किसी को ज़ुकाम या बुख़ार हो जाये तो पूरे का पूरा शहर सिर पर उठा लेते हैं......और पूनम! इस भयंकर बीमारी ने एक काम तो किया था। मुझे पूनम के और करीब ला दिया था। मेरी सोच, मेरे कर्मक्षेत्र, मेरे जीवन का केंद्रबिंदु पूनम होकर रह गई थी।

डॉ. पिण्टो से पहले तो दोस्तों और रिश्तेदारों ने ही डरा दिया था।- 'ऑपरेशन के बाद रेडियेशन और कीमोथेरिपी भी करवानी पड़ती है। सारे बाल उड़ जाते हैं। उलटियां कर-करके बुरा हाल हो जाता है'......'वैसे ब्रेस्ट कैंसर में तो 'यूटेरस' और 'ओवरीज़ ' भी निकलवा देते हैं।...... आपके डॉक्टर ने सुझाया नहीं? ......कमाल है!'

डॉ. पिण्टो अपने चिरपरिचित अंदाज में ही पेश आये, 'गॉड इज़ ग्रेट मिस्टर मेहरा! ......आई वुड पुट इट दिस वे कि यूटेरस और ओवरीज़ निकालने की तो कोई ज़रूरत नहीं। दरअसल मैं तो कीमोथेरिपी भी नहीं करता, लेकिन सात नोड में कैंसर पहुंच गया था इसलिए कीमोथेरेपी देनी ही पड़ेगी। नहीं तो हम केवल टेमॉक्सीफिन गोलियों से ही काम चला लेते।'

'टेमॉक्सीफिन!' .............मेरे मन में आशा की एक झलक जाग उठी। हो सकता है डॉ. पिण्टो यही दवा देने के लिए मान जायें।......शायद पूनम को कीमोथेरिपी की परेशानियों से बचाया जा सके - 'डॉ.पिण्टो, यह टेमॉक्सीफ़िन और कीमोथेरिपी में फ़र्क क्या है?'

'यू कैन पुट इट दिस वे, कि कीमोथेरिपी की एक माइल्ड फार्म है टेमोक्सीफ़िन। यह एक हार्मोनल दवाई है। यह दवा शरीर में जाकर फ़ीमेल हार्मोन होने का दिखावा करती है। कैंसर सैल इसकी तरफ अट्रैक्ट होते हैं और इसके कांटेक्ट में आकर मर जाते हैं। इस तरह वह कैंसर को आगे बढ़ने से रोकती है।...... पर नोड में कैंसर पहुंचने पर कीमोथेरिपी जरूरी हो जाती है। अब सोचना यह है कि एड्रियामायसिन दिया जाये या ज्यादा पॉपुलर सी.एम.एफ. की मिली जुली कीमोथेरिपी। एड्रियामायसिन से जो बाल गायब होते हैं, तो वापिस नहीं आते और कई बार यह दिल पर भी बुरा असर करती है। तो हम सी.एम.एफ. ही देंगे।'

कीमोथेरिपी शुरू हो गई। इस बीच बोन स्कैन और अल्ट्रासाउण्ड और लिवर टेस्ट सब चल रहे थे। डॉक्टर, दवाइयों और बीमारी के नाम से ही दहशत होने लगी थी - 'डॉ. पिण्टो, अब पूनम ठीक हो जायेगी न? ......अब दोबारा होने का डर तो नहीं?'

डॉ. पिण्टो की छाती पर फिर से क्रास बना, 'मैं तो बस इलाज करता हूं मिस्टर मेहरा, ठीक तो यह करते हैं! बस इनकी पूजा कीजिए।' फ़ोटो में यीशु मसीह का चेहरा दमक रहा था।

पूजा से पूनम का विश्वास उठता जा रहा था, 'मैंने तो कभी किसी का बुरा नहीं चाहा, किसी की पीठ पीछे तक बुराई नहीं की, शुद्ध शाकाहारी जीवन जीती हूं......फिर......यह बीमारी मुझे ही क्यों?'

पूनम का यह सवाल मेरे विश्वास को हिलाने के लिए काफ़ी था। किंतु चंद्रभान किसी और ही मिट्टी का ही बना था। वह मुझे एक महिला के पास ले गया। महिला बैठी सिर हिला रही थी - 'यह देवी मां हैं, नरेन! यह चाहे तो कुछ भी हो सकता है।'

यंत्रवत मेरे जैसा तार्किक व्यक्ति भी, उस सिर हिलाती देवी के चरणों में झुक गया। 'बहुत देरी कर दी तुमने आने में, बेटा। फिर भी यह प्रसाद ले जाओ। भगवान भला करेंगे।'

प्रसाद के अस्त्र से लैस मैं घर लौटा तो सुशील, उसकी पत्नी लुईज़ा और दो अन्य महिलाएं पूनम के बिस्तर के चारों ओर बैठे पूजा कर रहे थे। 'पूनम भाभी, आपको अपने में विश्वास पैदा करना होगा।......आप केवल ईसा मसीह में विश्वास रखें और पूजा भी उन्हीं की करें।'

'सुशील भैया, बचपन से जो विश्वास बने हुए हैं, क्या उनसे मुक्ति पाना इतना ही आसान है?'

'भाभी, यह तो आपको करना ही होगा - मैं तो कहता हूं कि अगले इतवार आप हमारी प्रार्थना सभा में आयें और देखें हम कैसे पूजा करते है।'

मैं बोल ही पड़ा, 'भइये, हमारे घर से बांद्रा तो काफी दूर है। पर यहां पास में ही जो चर्च है, पूनम को वहीं ले जाऊंगा।'

'नहीं नरेन! ......आना तो तुम्हें हमारे यहां ही पड़ेगा। तुम्हारे घर के पास जो चर्च है वह कैथॅलिक चर्च है। जबकि हम लोग अपने आपको 'बार्न अगेन' कहते हैं। हमारा भगवान जीवित भगवान है......'लिविंग गॉड'। इसलिए तुम हमारे भगवान में ही विश्वास रखो और मैं तो यहां तक कहूंगा कि तुम लोग भी धर्म परिवर्तन करके हमारा धर्म अपना लो।......पूनम की बीमारी का इलाज केवल विश्वास ही है।'

बहुत मुश्किल से अपने आपको रोक पाया था। फिर भी मेरे चेहरे की भंगिमा देखकर सुशील अपने साथियों समेत किसी और के जीवन के लिए प्रार्थना करने निकल पड़ा।

शाम को पूनम के लिए सूप बनाया था। कल के कीमोथिरेपी के इंजेक्शन के विचार से ही त्रस्त, पूनम सूप को निगल नहीं पा रही थी। दरवाजे पर घंटी बजी। 'लीजिए मेहरा जी, हम तो पूनम जी के लिए तावीज़ बनवा लाये। आप देखिएगा, माशा-अल्लाह पूनम जी भली-चंगी हो जायेंगी।......वैसे आप इन्हें गर्म पानी के साथ शहद देते रहिये......आप देखियेगा अल्लाह क्या चमत्कार करते हैं।'

चमत्कार! .....'कार्सीनोमा।......रैडिकल मैसेक्टमी! सपाट छाती! लोगों की नजरें! ......चंद्रभान की देवी! ......सुशील का बार्न अगेन! नजमा जी का तावीज़! डॉ. पिण्टो की छाती पर बार-बार बनता क्रॉस! ......दर्द के मारे फटता सिर!

चमत्कार! ......इसकी आशा तो ऑपरेशन से पहले भी लगाये बैठा था।......पर कहां! विज्ञान ने चमत्कार की छाती काट दी और बीस नोड भी निकाल दिये! कल फिर कीमोथेरिपी।

पूनम भी चमत्कार में कहां विश्वास करती है। उसे तो पुनर्जन्म में भी विश्वास नहीं। वह तो आज, इस पल के बाद अगले पल के बारे में नहीं सोचती।

सोचती है तो बस मेरे बारे में।......उसे यही ग़म खाए जा रहा है कि अपने पति का जीवन कैंसर से ग्रस्त करने की जिम्मेदार बस वही है।......

पूनम को तो यह भी अच्छी तरह मालूम है कि मैं तो भगवान के अस्तित्व के सामने सदा एक प्रश्नचिह्न लगा देता हूं।......मेरे लिए बस कर्म के सिद्धांत के अतिरिक्त जीवन का कोई अर्थ है ही नहीं।

पूनम देख रही है......अपने पति की स्थिति से पूरी तरह वाक़िफ़ है वो। वो देख रही है कि कैसे उसका पति पूरी श्रद्धा से तावीज़ बांध रहा है......कैसे किसी सिर हिलाती देवी के सामने माथा टेककर पूनम के जीवन की भीख मांग रहा है। 'बार्न अगेन' ईसाइयों के सुर में सुर मिलाते देख रही है वह। बेबस, लाचार पड़ी, लेटी है पलंग पर!

पूनम की आंखों में बस एक ही सवाल दिखाई दे रहा है......'मेरा पति मेरे कैंसर का इलाज तो दवा से करवाने की कोशिश कर सकता है......मगर जिस कैंसर ने उसे चारों ओर से जकड़ रखा है......क्या उस कैंसर का भी कहीं कोई इलाज है?

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रचनाकार: तेजेन्द्र शर्मा की कहानी - कैंसर
तेजेन्द्र शर्मा की कहानी - कैंसर
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