तेजेन्द्र शर्मा की कहानी - पासपोर्ट का रंग

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(तेजेंद्र शर्मा - जिन्होंने हाल ही में अपने जीवन के 60 वर्ष के पड़ाव को सार्थक और अनवरत सृजनशीलता के साथ पार किया है. उन्हें अनेकानेक बधाई...

(तेजेंद्र शर्मा - जिन्होंने हाल ही में अपने जीवन के 60 वर्ष के पड़ाव को सार्थक और अनवरत सृजनशीलता के साथ पार किया है. उन्हें अनेकानेक बधाईयाँ व हार्दिक शुभकामनाएं - सं.)

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पासपोर्ट का रंग

तेजेन्द्र शर्मा

'मैं भगवान को हाज़िर नाज़िर जान कर कसम खाता हूं कि ब्रिटेन की महारानी के प्रति निष्ठा रखूंगा.........' अंग्रेज़ी में बोले गये यह शब्द एवं इसके बाद के सभी वाक्य पंडित गोपाल दास त्रिखा को बस किसी गहरे कुएं में से आते प्रतीत हो रहे थे। वे हैरो के सिविक सेंटर में बीस पच्चीस गोरे, काले, भूरे और चीनी लोगों के साथ ब्रिटेन की महारानी के प्रति वफ़ादारी की कसमें खा कर ब्रिटेन की नागरिकता ग्रहण कर रहे थे। अपने आप को धिक्कार भी रहे थे।

'पापा, आप भी कमाल करते हैं। अब भला इस वक्त आप पारटीशन की बात ले कर बैठ जाएंगे तो लाइफ़ आगे कैसे बढ़ेगी? किया होगा अंग्रेज़ों ने ज़ुल्म कभी हमारे देशवासियों पर। लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि हम अपने जीवन को रोक कर बस उसी पल को बार बार जिए जाएं।'

'बेटा तूं नहीं समझ सकता। मेरे लिए ब्रिटेन की नागरिकता लेने से मर जाना कहीं बेहतर है। मैंने अपनी सारी जवानी इन गोरे साहबों से लड़ने में बिता दी।...जेलों में रहा। मुझे तो.. फांसी की सज़ा तक हो गई थी।...लेकिन... '

'अब आप दोबारा अपनी रामायण ले कर शुरू मत हो जाइयेगा।'

'बेटा तू मुझे वापस भारत भेज दे। मैं किसी तरह अपनी ज़िन्दगी बिता लूंगा वहां। तुझे कभी किसी चीज़ की शिकायत नहीं करूंगा। मुझे ऐसी मौत मत मार। मैं हिन्दुस्तानी पैदा हुआ था और हिन्दुस्तानी ही मरना चाहता हूं। मैं ऊपर जा कर तेरे दादा जी को तेरी मां को क्या मुंह दिखाऊंगा बेटा?'

'बाऊजी आप किस दुनिया की बातें कर रहे हैं। आप को यहां, इस देश में हमारे साथ रहना है। देखिये बाऊजा, ब्रिटिश पासपोर्ट के लिए लोग दो दो लाख रूपये देते हैं रिश्वत में, तब कहीं जाकर हासिल कर पाते हैं। आपको मुफ्त में मिल रहा है तो आप इसकी कदर ही नहीं कर रहे। ब्रिटिश पासपोर्ट हो तो आपको किसी भी देश का वीज़ा लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती। जब दिल किया जहां जाना हो बस हवाई जहाज़ की टिकट लीजिये और घूम आईये वहां।'

'लेकिन बेटा जी मुझे हिन्दुस्तान के लिए, अपनी जन्मभूमि के लिए तो वीज़ा लेना पड़ेगा न। क्या इससे बड़ी कोई लानत हो सकती है मेरे लिए?... बेटा एक बात बताओ, क्या कोई ऐसा तरीका नहीं हो सकता कि मैं हिन्दुस्तान का नागरिक भी बना रहूं और मुझे तुम अपनी ख़ुशी के लिए ब्रिटेन की नागरिकता भी ले दो...?'

सरोज ने भी इंद्रेश को बहुत समझाने का प्रयास किया था कि जब बाऊजी को पसन्द नहीं तो क्यों उनकी नागरिकता बदलवाई जाए। लेकिन इंद्रेश ने किसी की नहीं सुनी। ब्रिटेन की रानी के प्रति वफ़ादारी की कसम खाने के बाद गोपाल दास जी ने तीन दिन तक कुछ नहीं खाया...पेट में जैसे कसम का अफ़ारा उठ रहा था।

गोपाल दास जी कभी अपने नये पासपोर्ट को देखते, तो कभी अपनी बाईं बाज़ू को। उनकी बाईं बाज़ू में एक गोली लग गई थी, उनकी हड्डी के साथ स्टील की रॉड लगा दी गई थी। इसलिए उनकी बाईं भुजा दाईं भुजा से कुछ इंच छोटी थी। और यह गोली उन्हें एक अंग्रेज़ सिपाही ने मारी थी ... लाहौर में।

लाहौर से दिल्ली आना उनकी मजबूरी थी। अपनी जन्मभूमि को उस समय छोड़ना उन्हें बहुत परेशान कर रहा था। किन्तु कोई चारा नहीं था। वहां किसी पर विश्वास नहीं बचा था। दोस्त दोस्त को मार रहे थे। हर आदमी या तो हिन्दू बन गया था या फिर मुसलमान। रिश्ते जैसे ख़त्म ही हो गये थे। सभी इंसान धार्मिक हो गये थे और जानवर की तरह बरताव कर रहे थे।

मजबूरी तो इंगलैण्ड आना भी थी। लेकिन यह मजबूरी बिछड़ने की नहीं, मिलने की थी, साथ रहने की थी। पत्नी की मृत्यु के बाद का अकेलापन, किसी अपने के साथ रहने की चाह और इकलौता पुत्र ! यही सब गोपाल दास जी को लंदन ले आया था। बेटी विवाह के बाद अमरीका में है और बेटा इंगलैण्ड - बेचारे गोपाल दास जी अकेले फ़रीदाबाद में अपनी बड़ी सी कोठी में कमरे गिनते रहते। अधिकतर रिश्तेदार दिल्ली में। अब तो फ़रीदाबाद से दिल्ली जाने में भी शरीर नाराज़गी ज़ाहिर करने लगता था। ऐसे में ज़ाहिर सी बात है कि इंद्रेश ने अपने पिता की एक नहीं सुनी और उन्हें लंदन ले आया था।

आज यही लंदन गोपाल दास जी को जैसे और अधिक पराया लगने लगा था। आजकल वो विधि और अगस्तय से भी कम बात करते थे। अगस्तय छोटा है, बार बार अपने दादा जी से चिपटता रहता है। विधि महसूस करती थी कि दादा जी परेशान हैं। अपनी मीठी से अंग्रेज़ी में पूछ लेती थी, 'दादा जी, आप हर वक्त क्या सोचते रहते हैं?' दादा जी क्या जवाब दें । अपनी छोटी सी नन्हीं परी को क्या बताएं अपने दिल का दर्द। बस स्टार न्यूज़ और ज़ी टीवी उनके साथी बन गये थे। बार बार वही ख़बरें सुनते रहते। भारत के बारे में भारतवासियों से अधिक गोपाल दास जी को ख़बर रहती थी।

'मुझे सच बाऊजी पर बहुत तरस आता है। सेम सेम ख़बरें सुन कर बोर भी नहीं होते।' सरोज इंद्रेश को बता देती थी। बस यही बार बार सुनने वाली उबाऊ खबरों में से ही एक दिन गोपाल दास जी को एक ख़ास ख़बर सुनाई दे गई थी जिसने उनके जीवन को पूरी तरह से बदल कर रख दिया था। स्टार न्यूज़ ने समाचार दिया कि प्रवासी दिवस के दौरान प्रधान मंत्री ने ऐलान कर दिया है कि पांच देशों के भारतीय मूल के लोगों को दोहरी नागरिकता दी जाएगी।

'सरोज बेटा तुमने सुना। आज तो प्रधानमंत्री ने ऐलान कर दिया है कि हम दोहरी नागरिकता रख सकते हैं। उन्होंने साफ़ साफ़ कहा है कि पांच देशों के इंडियन एन.आर.आई बाकायदा डयूएल नेशनेलटी रख सकते हैं। और उन पांच देशों में इंगलैण्ड भी शामिल है। बेटा तू जल्दी से इंद्रेश को फ़ोन मिला। उसको कह कि आफ़िस से निकलते हुए हाई कमीशन से एक एप्लीकेशन फ़ार्म लेता आवे। हम कल ही अप्लाई कर देंगे। अब मैं वापस इंडियन हो सकता हूं।' बाऊजी बस बोले जा रहे थे। सरोज एकटक उन्हें देखे जा रही थी। विधि और अगस्तय भी मोटी मोटी आंखों से अपने दादाजी को देखे जा रहे थे।

सरोज बाऊजी के साथ लिविंग रूम तक चली आई। बाऊजी के शरीर का रक्त प्रवाह तेज़ होता जा रहा था, 'तू ख़ुद ही सुन लै पुत्तर। अभी मेन न्यूज़ दोबारा आयेगी।' जब तक मुख्य समाचार में सरोज ने सुन नहीं लिया कि बाऊजी ने ठीक सुना है, तब तक वह बाऊजी के चेहरे पर बदलते भाव पढ़ती रही। उसे इंद्रेश पर गुस्सा भी आ रहा था कि उसने बाऊजी को फ़िज़ूल की मुसीबत में डाल दिया है। अगर बाऊजी को वीज़ा लेने जाना होता था तो अपने आप ही जा कर ले आते थे। इसी बहाने अपने आप को बिज़ी भी रखते थे।

इंद्रेश शाम को घर आया।

'पुत्तर तूं फ़ारम लै आया?' बाऊजी की आंखों में उम्मीद की नदी सी बह रही थी।

'बाऊजी, जब तक मेरा आफ़िस बंद होता है तब तक हाई कमीशन के काउंटर बंद हो जाते हैं। मैं आज ही त्रिलोक शर्मा को फ़ोन करता हूं। वोह वहां के वीज़ा सेक्शन में है। उसे सही सिच्युएशन मालूम होगी।'

बातचीत, टी.वी., टेलिफ़ोन या भोजन गोपाल दास जी का मन किसी भी चीज़ में नहीं लग रहा था। बस एक ही इच्छा हो रही थी कि इंद्रेश किसी भी तरह त्रिलोक शर्मा से बात करले। उनकी आंखों में बस एक ही चाह थी - दोहरी नागरिकता ! बैठे बैठे सपना देख रहे थे।

इंद्रेश टेलिफ़ोन पर बात कर रहा था और भावों का सूचकांक बाऊजी के चेहरे पर दिखाई दे रहा था।

'बाऊजी, त्रिलोक कह रहा है कि अभी तो सिर्फ़ प्रधान मंत्री ने घोषणा की है, बस। अभी यह बिल बना कर पार्लियामेंट में पेश होगा, पास होगा, फिर उस पर राष्ट्रपति के दस्तख़त होंगे, फिर एक्ट बनेगा तब जा के लागू होगा फिर उसके फ़ार्म वगैरह बनेंगे तब कहीं जा कर आम आदमी तक पहुंचेगी दोहरी नागरिकता। फ़िलहाल तो यह बस प्रवासियों को ख़ुश करने भर का ड्रामा लगता है।'

'यार ये कोई कांग्रेसी प्रधान मंत्री नहीं है। यह करेक्टर वाला बंदा है। आर.एस.एस. का आदमी है। झूठ नहीं बोल सकदा। त्रिलोके को कह किसी तरह दिल्ली से पता लगवाए ।'

'बाऊजी, पॉलीटीशन सभी एक से होते हैं। आज़ादी के बाद सभी का एक ही उद्देश्य बचा है। बस लूट लो जितना लूट सको। किसी को भी जनता की परवाह नहीं।'

गोपाल दास जी को इस समय राजनीतिज्ञों के चरित्र पर बहस करने में कोई रूचि नहीं थी। ... रात भर परेशान रहे। बस बिस्तर पर करवटें बदलते रहे। सुबह उठे, दिनचर्या से निवृत हुए, नाश्ता किया, तैयार हुए और निकल पड़े। बेकरलू लाईन ले कर सीधे ऑॅक्सफ़र्ड सस, वहीं से सेंट्रल लाईन ले कर होबर्न अंडरग्राउण्ड स्टेशन पहुंचे। होबर्न को वे हमेशा होलबोर्न ही कहते हैं। उसके स्पैलिंग ही ऐसे हैं। अंग्रेज़ी के साईलेण्ट लेटर हमेशा ही उनको परेशान करते हैं। होबर्न से बाहर निकल कर बाएं को मुड़े और आहिस्ता आहिस्ता चल दिए भारतीय उच्चायोग के भवन की ओर। उनके लिए घर बैठे रह पाना संभव नहीं था। वे स्वयं पता करना चाहते थे कि प्रधान मंत्री ने क्या कहा है।

सामने बी.बी.सी. का बुश हाऊस दिखाई दिया। आलडविच इलाके में बस यही दो भवन हैं जिनसे गोपालदास जी को दिली लगाव है। एक तो बी.बी.सी. का बुश हाऊस और दूसरा भारत भवन। बी.बी.सी देख कर गोपाल दास जी को वो सभी महान समाचार वाचक याद आ जाते थे जिनकी आवाज़ सुनने के लिए वे अपने रेडियो पर शार्ट वेव पर बी.बी.सी. सेट करते परेशान होते रहते थे। कभी भी बहुत साफ़ नहीं आता था लेकिन बात साफ़ करता था। ठीक उसी ही तरह गोपाल दास जी भी बात साफ़ और खरी करते हैं चाहे सामने वाले को पसन्द आये या न आये।

भारत भवन के बाहर हमेशा की तरह भीड़ लगी हुई थी। बाहर की खिड़की वाले से नमस्कार करते हुए एक टोकन ले कर हाल के अंदर जा पहुंचे। पहले दिल किया कि त्रिलोक शर्मा को फ़ोन कर लेते हैं। फिर ख्याल आया कि इंद्रेश नाराज़ हो जाएगा। बस सीधे पूछताछ वाले काउंटर पर जा पहुंचे। और उससे सीध सीधे दोहरी नागरिकता का फ़ार्म मांग लिया। सामने एक युवा सी लड़की बैठी थी। बात अंग्रेज़ी में करती थी या फिर अंग्रेज़ीनुमा हिन्दी में। 'सॉरी, हमारे पास ऐसा कोई फ़ार्म नहीं है।.. कहीं आप पी.आई.ओ. फ़ार्म की बात तो नहीं कर रहे'

'जी नहीं, कल ही प्रधान मंत्री ने प्रवासी दिवस समारोह में एलान कीता है कि अब इंगलैण्ड के हिन्दुस्तानी दोनों देशों की नागरिकता रख सकते हैं। मैं उसकी बात कर रहा हूं।'

वह लड़की गड़बड़ा गई, एक्सक्यूज़ मी कह कर अपने अफ़सर को बुलाने चली गई। उसका अफ़सर भारतीय था। सरदार दिलीप सिंह,'देखिये त्रिखा साहब, पालिटिकल स्टेटमेण्ट और सरकारी कार्यवाही में बहुत फ़ होता है। दिल्ली में प्रधान मंत्री ने एक पॉलिसी स्टेटमेण्ट दी है, बस। अब उस पर काम शुरू होते होते कोई छः सात महीने तो लग ही जाएंगे। हमारे स्टाफ़ तक तो अभी यह खबर भी नहीं पहुंची कि प्रधान मंत्री ने ऐसी कोई स्टेटमेण्ट भी दी है।' दिलीप सिंह ने भी वही बात दोहरा दी जो त्रिलोक शर्मा ने कही थी।

निराश से गोपाल दास जी भारी कदमों से बाहर आ गये। भारत भवन से होबर्न तक का जो रास्ता आते समय पांच सात मिनट में तय हो गया था वही अब बीस मिनट से अधिक ले चुका था। होबर्न स्टेशन अचानक इतनी दूर कहां चला गया?

गोपाल दास जी वापिस हैरो एण्ड वील्डस्टोन स्टेशन से सीधे घर न जा कर लायब्रेरी की तरफ़ चल दिये। वहां मधोक साहब और बधवार जी मिल गये। 'भाई लोगो आपने डयूएल नेशनेलिटी वाली खबर पढ़ी है क्या ?'

ख़बर दोनों ने पढ़ ली थी। मधोक साहब का अपना ही अंदाज़ था, 'त्रिखा जी, मैनें तो अभी तीन महीने पहले ही पांच साल के वीज़े पर सौ पाउण्ड खरचे हैं। मुझे तो कोई जलदी पड़ी नहीं है दोहरी नागरिकता की। जब लागू होगी तब देखा जाएगा। अभी से क्यों दिमाग ख़राब करूं। फिर अपना अभी वहां कोई प्रापर्टी वगैरह खरीदने का भी कोई प्रोग्राम है नहीं।'

बुधवार साहब त्रिखा जी की मानसिकता से परिचित थे, 'मैं समझता हूं त्रिखा जी कि आपके लिए दोहरी नागरिकता के अर्थ कुछ और ही हैं। लेकिन आप तो जानते ही हैं कि अपनी भारतीय सरकार हर काम में कितना टाईम लेती है। पचास साल में हिन्दी को भारत की राजभाषा नहीं बना पाई। कहीं यह दोहरी नागरिकता वाला मामला भी पचास साला योजना न हो!'

'मेरे हिसाब से तो यह बस प्रवासियों को खुश करने की एक भोण्डी कोशिश से ज्यादा कुछ भी नहीं है।' यह दवे साहब थे। जो पास ही बैठे तीनों की बातें सुन रहे थे।

दुखी मन लिए गोपाल दास जी घर वापिस आ गये। ... सोच थी कि पीछा नहीं छोड़ रही थी। एक, दो, तीन, चार... आठ महीने बीत चुके थे लेकिन दोहरी नागरिकता अभी तक देहरी लांघ कर त्रिखा जी के घर नहीं पहुंच पाई थी। बीतते बीतते करीब एक वर्ष ही बीत गया। दूसरा प्रवासी दिवस भी आ पहुंचा। पुत्र से बात करके भारत जाने का कार्यक्रम जनवरी महीने का ही बनवा लिया। सोचते थे कि जब प्रवासी दिवस मनाया जा रहा होगा उसी समय शायद कुछ नई बात निकल आए और उनकी बात बन जाए।

गोपाल दास जी पहली बार भारत के लिए वीज़ा लेने जा रहे थे। बहुत शर्म आ रही थी। सुबह नाश्ते के समय इंद्रेश की ओर देखा, 'पुत्तर जी, क्या तुम त्रिलोक को कह कर मेरे लिए वीज़ा नहीं लगवा सकते। ... भारत के लिए वीज़ा अप्लाई करने में बहुत अजीब सा लग रहा है।'

इंद्रेश ने सरोज को कह दिया कि इंटरनेट से आज फ़ार्म डाउनलोड करके बाऊजी से भरवा ले।

'पुत्तर वीज़ा सिर्फ़ सिंगल ऐन्ट्री ही अप्लाई करना है। दूसरे ट्रिप तक तो दोहरी नागरिकता लागू हो ही जाएगी।'

इंद्रेश मुस्कुरा भर दिया, ' बाऊजी आप भी बस....।'

भारत में बाऊजी ने सोचा कि प्रवासी दिवस में शामिल हो आएं। लेकिन उनका मन नहीं मान रहा था कि दो सौ डॉलर की फ़ीस दे कर अपने देश में प्रवासी दिवस में शामिल हों। फिर वोह रिपोर्टें पढ़ते रहे कि सारा का सारा प्रवासी दिवस अंग्रेज़ी में मनाया जा रहा है। हिन्दी बेचारी वहीं खड़ी है जहां बधवार जी बता रहे थे।

प्रधान मंत्री ने दूरदर्शन पर एलान किया कि दोहरी नागरिकता अब पांच से बढ़ा कर सोलह देशों के भारतीयों को दी जा सकेगी। बाऊजी सोच रहे थे कि जब सोलह देशों की बात की जा रही है तो जिनके लिए पहले वर्ष में घोषणा की जा चुकी है उनको तो अवश्य ही इस वर्ष मिल जाएगी। उन्होंने प्रधान मंत्री से मिलने के बहुत प्रयास किये। लेकिन जनता के प्रतिनिधियों को रूबरू मिल पाना क्या इतना आसान होता है।

गोपाल दास जी विदेश मंत्रालय के दफ़तर के भी चक्कर लगाते रहे। श्रीवास्तव जी और स्वरूप सिंह से मुलाकात की। मुस्कुराहटें तो मिलीं, दोहरी नागरिकता बस दूर खड़ी थी दूर ही रही। और गोपाल दास जी वापिस अपने देश आ गये। अपने देश यानि कि लंदन। अब वो इसी देश के नागरिक थे।

वो वापिस आये और भारत में सरकार बदल गई। वही कांग्रेस वापिस जिससे गोपाल दास जी को शिकायत रहती थी। और अबकी बार प्रधान मंत्री भी पंजाबी है। खालसे को प्रधान मंत्री के रूप में देख कर गोपाल दास जी के मन में उम्मीद और गहरी बंधने लगी थी। गूरू साहब ने खालसा बनाया ही इसलिये था कि हमारी रक्षा कर सके।

एक तो यह मीडिया भी गोपालदास जी को आराम से नहीं जीने देता। कभी भी कुछ भी छापता रहता है। इंटरनेट से सरोज ही एक खबर निकाल कर लाई थी कि कांग्रेस सरकार ने एक प्रवासी मंत्रालय बना दिया है। गोपालदास जी को विश्वास हो चला था कि जब सरकार ने मंत्रालय तक बना डाला है तो दोहरी नागरिकता ज्यादा दूर नहीं हो सकती। उनका उत्साह दोगुना बढ़ गया था। लेकिन उनके मित्र अब उनसे दूर ही भागते थे।

'लो वो बोर फिर आ गया। अब सारा टाईम दोहरी नागरिकता की भेंट चढ़ जायेगी।'

'यार इस आदमी को और कोई काम है या नहीं, बस सारा वक्त यही सोचता रहता है। पागल हो जायेगा कुछ दिनों में।'

'ये हो जायेगा क्या होता है जी। हो चुका है। इस तरह की बातें पागल ही कर सकते हैं।'

बस एक बधवार जी थे जो गोपालदास जी की मनोदशा को समझ पा रहे थे। वही उनसे बात भी करते थे और अपनी राय भी देते रहते थे,'गोपालदास जी, आज अखबार में खबर आई है कि प्रवासी मंत्री ने आस्ट्रेलिया में दोहरी नागरिकता देने के फ़ार्म अपने हाथों से बांट कर दोहरी नागरिकता की शुरूआत कर दी है। यह देखिये, अखबार आपके सामने है।'

गोपाल दास जी ने अखबार देखा, समाचार देखा और अखबार वहीं रख दिया। और घर की ओर चल पड़े। उनके साथी हैरान कि इतनी बड़ी खबर और गोपालदास जी बिना कोई टिप्पणी किये चल दिये।

गोपालदास जी पहले सीधे भारतीय कार्नर शॉप की तरफ़ गये। वहां जा कर अख़बार ख़रीदा और उछलते मन को उस अख़बार का सहारा देते हुए घर की ओर चल दिये। अपने कमरे में जा कर पूरा समाचार ठीक से पढ़ा। उम्मीद जागी कि अब मेरा अशोक के शेर वाला नीला पासपोर्ट एक बार फिर से जीवित हो उठेगा। केवल पासपोर्ट का रंग नीले से लाल होने पर इन्सान के भीतर कितनी जद्दोजहद शुरू हो जाती है। आज उन्होंने घर में किसी से बात नहीं की। रात भर करवटें बदलते रहे। सुबह होने का इंतज़ार... बस यही कर सकते थे...करते रहे। सुबह का नाश्ता करने के बाद एक बार फिर भारतीय उच्चायोग के दरवाज़े पर खड़े थे। रास्ते भर सोचते रहे कि हो न हो यह अफ़सर लोग ही दोहरी नागरिकता की राह के सबसे बड़े रोड़े हैं। जब मंत्री और प्रधान मंत्री बार बार दोहरी नागरिकता देने की बात कर रहे हैं तो फिर समस्या किस बात की है। अफ़सरशाही हमेशा ही आम आदमी की राह में रूकावटें पैदा करती रहती है।

अंदर का दृश्य ठीक वैसा ही था जैसा कि पिछली बार था। अबकी बार उन्होंने फ़ार्म मांगने की जगह अपना अखबार काउन्टर कल के सामने रख दिया। काउन्टर पर बैठी महिला परेशान सी हो उठी। पिछली मुलाक़ात उसे याद आ गई। लेकिन आज गोपालदास जी का गुस्सा बहुत उग्र होता जा रहा था,'आप समझती क्या हैं अपने आप को। यहां आपका ही मंत्री आस्ट्रेलिया में जा कर फ़ार्म बांट रहा है, उसकी फ़ोटो तक छपी है और आप कहती हैं कि आपके पास अबतक फ़ार्म नहीं आये हैं। बुलाइये अपने अफ़सर को, कराइये मेरी बात। यह भला कोई तरीका हुआ कि दो साल तक प्रधान मंत्री कहते रहे कि दोहरी नागरिकता दी जायेगी। अब प्रवासी मंत्री फ़ार्म बांटता साफ़ दिखाई दे रहा है और आप कहती हैं कि आपने दिल्ली से क्लैरिफ़िकेशन मांगा है। आप लोग काम करना ही नहीं चाहते। ज़रूर आप लोग कोई नया अलाउंस मांग रहे होंगे। यह ब्यूरोक्रेसी की वजह से कभी कोई काम हो ही नहीं सकता। हमारी दोहरी नागरिकता के रास्ते के सबसे बड़े रोड़े आप लोग ही हैं। '

झगड़े की आवाज़ सुन कर त्रिलोक शर्मा भी बाहर आ गये। गोपालदास जी को देख कर वे हैरान भी हुए। काउन्टरों के ज़रिये ही बाहर चले आये और गोपाल दास जी को सुरक्षा कर्मियों के धकियाने से बचा लिया। समझाते हुए घर जाने को कहा,'आप चिन्ता न करें बाऊजी, मैं ख़ुद ही इंद्रेश से बात कर लूंगा।'

गोपालदास जी हाई कमीशन की इमारत से बाहर आ गये। अपने आप को बहुत पराया सा महसूस कर रहे थे। उनके कदम उन्हें बिना बताए ही वाटरलू पुल की तरफ़ ले गये। नीचे टेम्स का पानी अपनी रफ्तार से बहता जा रहा था। हाई टाईड थी इसलिए पानी भी काफ़ी था। सूर्य सिर पर चमक रहा था और हवा तेज़ चल रही थी। गोपालदास जी की आंखों में से पानी बहने लगा। वे तय नहीं कर पा रहे थे कि यह पानी नमकीन है बस पानी है। मन में एक पल के लिये आया कि इस पुल से नीचे छलांग लगा कर इस टंटे को खतम ही कर दें।

वाटरलू स्टेशन से ही बेकरलू टयूब ले ली। घर पहुंचे। सरोज को देख कर सकपका गये। कहीं त्रिलोक ने फ़ोन न कर दिया हो। सरोज ने बिना कुछ पूछे चाय बना कर आगे रख दी। बिस्कुटों के साथ चाय पी। अपने कमरे में चले गये। इंद्रेश शाम को घर लौटा, 'सरोज, बाऊजी की तबीयत शायद ज्यादा बिगड़ती जा रही है। आज हाई कमीशन में जा कर नाटक कर आये हैं। त्रिलोक का फ़ोन आया था मुझे। '

'क्यों, ऐसा क्या कर आये।' सरोज परेशान हो उठी, 'देखिये आज कुछ कहियेगा मत। हाई कमीशन से बहुत परेशान लौटे हैं। मुझे तो पता नहीं था कि वहां गये थे। लेकिन चेहरा देख कर मुझे लगा कि बहुत निराश दिखाई दे रहे हैं। आप कल समझा दीजियेगा। डिनर टेबल पर कुछ मत कहियेगा।'

विधि बाऊजी को बुलाने गई तो कमरे में अंधेरा था। टेलिविज़न पर स्टार न्यूज़ चल रही थी। उसने आवाज़ दी लेकिन उसकी पतली सी आवाज़ टी.वी. की आवाज़ में दब गई थी उसने बत्ती जलाई। देखा कि बाऊजी एकटक छत को देखे जा रहे थे।

वह घबरा कर बाहर आ गई और ममी पापा को बताया। इंद्रेश और सरोज दोनों एक साथ कमरे में आए। बाऊजी को आवाज़ दी। गोपालदास जी एकटक छत को देखे जा रहे थे। उनके दाएं हाथ में लाल रंग का ब्रिटिश पासपोर्ट था और बाएं हाथ में नीले रंग का भारतीय पासपोर्ट। उन्होंने ऐसे देश की नागरिकता ले ली थी जहां के लिए इन दोनों पासपोर्टों की ज़रूरत नहीं थी।

स्टार न्यूज़ पर पगड़ी पहने नये प्रधान मंत्री अपनी मूंछों में मंद मंद मुस्कुराते हुए घोषणा कर रहे थे कि अब विदेश में बसे सभी भारतीयों को दोहरी नागरिकता प्रदान की जाएगी।

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: तेजेन्द्र शर्मा की कहानी - पासपोर्ट का रंग
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