प्रमोद भार्गव का आलेख - शैतानी सैंडी : प्राकृतिक आपदाओं से घिरती दुनिया

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शैतानी सैंडीः प्राकृतिक आपदाओं से घिरती दुनिया प्रमोद भार्गव दुनिया की महाशक्‍ति माने जाने वाला देश अमेरिका जिस तरह से शैतानी सैंडी तूफान क...

शैतानी सैंडीः प्राकृतिक आपदाओं से घिरती दुनिया

प्रमोद भार्गव

दुनिया की महाशक्‍ति माने जाने वाला देश अमेरिका जिस तरह से शैतानी सैंडी तूफान की चपेट में है, उससे यह साफ हो जाता है, हम विज्ञान और तकनीकी रूप से चाहे जितने सक्षम हो लें, अंतत प्राकृतिक आपदाओं के समक्ष लाचार ही हैं। सैंडी का कहर 17 राज्‍यों में बरपा। 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्‌तार से चलने वाली बर्फीली हवाओं और 14 फीट उंची समुद्री लहरों ने चंद घंटों में पांच करोड़ लोगों को आफत में डाल दीया। बिजली के अभाव से अपरिचित रहे 76 लाख लोग अंधेरे से जूझ रहे हैं। एक लाख से भी ज्‍यादा बेघर हुए है। 30 लाख घरों में पानी घुस गया है। 18 लोग मारे गए हैं। 15 हजार हवाई उड़ानें रद्‌द की गई हैं। भू - सुरंगों से आवागमन बंद है। विधुत स्‍फूरण से 50 घर आग का गोला बन गए। अमेरिका की आर्थिक नब्‍ज का चौबीसों घंटे हिसाब रखने वाला स्‍टॉक एक्‍सचेंज ठप है। इससे पहले 1888 में बिजार्ड तूफान ने इसकी इस नब्‍ज को थामा था। शुरूआती आकलन में 45 अरब डालर का नुकसान हुआ है और सकल घरेलू उत्‍पाद दर गिरकर न्‍यूनतम स्‍तर पर है। राजधानी वाशिंगटन डीसी वर्ष 2003 के इसाबेला तूफान के बाद सबसे बद्‌तर हाल में है। बिजली गुल है और शहर में अघोषित कफ्‌र्यू लग गया है। अमेरिका का व्‍यापारिक शहर न्‍यूयाँर्क ने इस आपदा के आगे घुटने टेक दिए हैं। यहां के लोग 1960 में आए हरीकेन डोना तूफान की वापिसी से रूबरू होकर आतंकित हैं। सब कुल मिलाकर आधुनिक विकास और पूंजी के दंभ से दुनिया को चकराने वाला देश को प्रलयंकारी चक्रवात ने पंगु बना दिया है।

इस प्राकृतिक प्रकोप को क्‍या मानें, बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण जलवायु परिवर्तन का संकेत ? यह रौद्र रूप प्रकृति के कालचक्र की स्‍वाभाविक प्रक्रिया है अथवा मनुष्‍य द्वारा प्रकृति से किए गए अतिरिक्‍त खिलवाड़ का दुष्‍परिणाम ! इसके बीच एकाएक कोई विभाजक रेखा खींचना मुश्‍किल है। लेकिन बीते ढाई तीन साल के भीतर अमेरिका,ब्रजील, ऑस्‍ट्रे्लिया, सिडनी,फिलीपींस और श्रीलंका में जिस तरह से तूफान, बाढ़, भूकंप, भूस्‍खलन, धूली बवंडर और कोहरे के जो भयावह मंजर देखने में आ रहे हैं, इनकी पृष्‍ठभूमि में प्रकृति से किया गया कोई न कोई तो अन्‍याय अंतर्निहित है। इस भयावहता का आकलन करने वाले जलवायु विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि आपदाओं के यह ताण्‍डव योरूप,एशिया और अफ्रीका के एक बड़े भू भाग की मानव आबादियों को रहने लायक ही नहीं रहने देगा। लिहाजा अपने मूल निवास स्‍थलों से इतनी बड़ी तादाद में विस्‍थापन व पलायन होगा कि एक नई वैश्‍विक समस्‍या ‘पर्यावरण शरणार्थी' के खड़ी होने की आशंका है। क्‍योंकि इतनी बड़ी संख्‍या में इंसानी बस्‍तियों को प्राकृतिक आपदाओं के चलते एक साथ उजड़ना नहीं पड़ा है। यह संकट शहरीकरण की देन भी माना जा रहा है। इस बदलाव के व्‍यापक असर के चलते खाद्यान्‍न उत्‍पादन में भी कमी आएगी। अकेले एशिया में बदहाल हो जाने वाली कृषि को बहाल करने के लिए हरेक साल करीब पांच अरब डालर का अतिरिक्‍त खर्च उठाना होगा। बावजूद दुनिया के करोड़ों स्‍त्री, पुरूष और बच्‍चों को भूख व कुपोषण का अभिशाप झेलना होगा। अकाल के कहर ने हैती और सूडान में ऐसे ही हालात बना दिए हैं।

बीते ढाई तीन साल में दुनिया में कहरबर पाने वाले प्राकृतिक प्रकोप हैरानी में डालने वाले हैं। इनका विस्‍तार और भयावहता इस बात का संकेत है कि प्रकृति के दोहन पर आधारित विकास को बढ़ावा देकर जो हम पारिस्‍थितिकीय असंतुलन पैदा कर रहे हैं, वह मनुष्‍य को खतरे में डाल रहा है। श्रीलंका में समुद्री तूफान से 3,25000 लोग बेघर हुए थे। करीब 50 लोग काल के गाल में समा गए थे। इस ताडंव की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश की थल,जल और वायु सेना के 28 हजार जवानों को राहत कार्य में लगाना पड़ा था। समुद्री तूफान से आस्‍ट्रेलिया में और भी भयानक हालात बने थे। करीब 40 लाख लोग बेघर हुए थे। यहां के ब्रिस्‍बेन शहर में ऐसी कोई बस्‍ती शेष नहीं थी, जो जलमग्‍न न हो। पानी से घिरे लोगों को हेलीकॉप्‍टर से निकालना पड़ा था। तब भी सौ लोग मारे गए थे। फिलीपींस में आई जबरदस्‍त बाढ़ ने लहलहाती फसलों को नष्‍ट कर दिया था। नगर के मध्‍य और दक्षिणी हिस्‍से में पूरा बुनियादी ढ़ांचा ध्‍वस्‍त हो गया था। भूस्‍खलन के कारण करीब 4 लाख लोगों को विस्‍थापित होना पड़ा था। इस कुदरती तबाही का शुरूआती आकलन 23 लाख डाँलर किया गया था।

इन्‍हीं दिनों ब्राजील को बाढ़ भूस्‍खलन और शहरों में मिट्‌टी धंसने के हालातों का एक साथ सामना करना पड़ा था। यहां मिट्टी धंसने और पहाडि़यों से कीचड़ युक्‍त पानी के प्रवाह ने 600 से भी ज्‍यादा लोगों की जानें ले ली थीं। ब्राजील में प्रकृति के प्रकोप का कहर रियो द जेनेरियो नगर में बरपा था। रियो वह नगर है, जिसमें जलवायु परिवर्तन के मद्‌देनजर 1994 में पृथ्‍वी बचाने के लिए पहला अंतरराष्‍ट्रीय सम्‍मेलन हुआ था। लेकिन अपने अपने औद्योगिक हित ध्‍यान में रखते हुए कोई भी विकसित देश काँर्बन कटौती के लिए तैयार नहीं हुआ था। बल्‍कि 1994 के बाद काँर्बन उत्‍सर्जन में और बढ़ोत्‍तरी हुई। जिसका नतीजा अब हमारे सामने है। रियो में हालात कितने दयनीय बने थे, इसकी तस्‍दीक इस बात से होती है कि यहां शुरूआती आपात सहायता राशि 470 करोड़ डाँलर जारी की गई और सात टन दवाएं उपलब्‍ध कराई गई थीं। करीब दो हजार मकान यहां भूस्‍खलन के मलवे में तब्‍दील हो गए थे। कमोवेश ऐसे ही हालात भारत के लद्‌दाख में बने थे।

इसी कालखण्‍ड में मैक्‍सिको के सेलटिलो शहर में कोहरा इतना गहराया था कि सड़को पर एक हजार से भी ज्‍यादा वाहन परस्‍पर टकरा गए थे। इस विचित्र और भीषण हादसे में करीब 25 लोग मारे गए थे और अनगिनत अपाहिज हो गए थे। ठीक इसी दौर में कैंटानिया ज्‍वालामुखी की सौ मीटर उंची लौ ने नगर में राख की परत बिछा दी थी और हवा में घुली राख ने लोगों का जीना दुश्‍वार कर दिया था। इसके ठीक पहले अप्रेल 2010 में उत्‍तरी अटलांटिक समुद्र के पास स्‍थित योरूप के छोटे से देश आइसलैंड में इतना भयंकर ज्‍वालामुखी फटा था कि योरूप जाने वाली 17000 उड़ानें रद्‌द करनी पड़ी थीं। आइसलैंड से उठे इस धुएं ने इग्‍लैंड,नीदरलैंड और जर्मनी को अपने घेरे में ले लिया था। ज्‍वालामुखी का तापमान 1200 डीग्री सेल्‍सियस आंका गया था। 3 लाख 20 हजार की आबादी वाले इस शहर के सभी नागरिकों को प्राण बचाने के लिए तत्‍काल अपने घर छोड़ने पड़े थे। क्‍योंकि वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी कि ज्‍वालामुखी से फूटा लावा बर्फीली चट्टानों को पिघलेगा। लावा और बर्फीला पानी मिलकर एक ऐसी राख उत्‍पन्‍न करेंगे, जिससे हवाई जहाजों के चलते इंजन बंद हो जाएंगे। राख जिस इंसान के फेफड़ों में घुस जाएगी, उसकी सांस वहीं थम जाएगी। आधे से ज्‍यादा योरोपीय देशों के लोगों के घरों के बाहर निकलने से रोक दिया था।

ये प्राकृतिक प्रकोप संकेत दे रहे हैं कि मौसम का कू्र बदलाव ब्रहम्‍माण्‍ड की कोख में अंगडाई ले रहा है। योरूप के कई देशों में तापमान असमान ढ़ंग से गिरते व चढ़ते हुए रिकाँर्ड किया जा रहा है। शून्‍य से 15 डिग्री नीचे खिसका तापमान और हिमालय व अन्‍य पर्वतीय क्षेत्रों में 14 डिग्री सेल्‍सियस तक चढ़े ताप के जो आंकडे मौसम विज्ञानियों ने दर्ज किए हैं, वे इस बात के साफ संकेत हैं कि जलवायु परिर्वतन की आहट सुनाई देने लगी है। इसी आहट के आधार पर वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि 2055 से 2060 के बीच में हिमयुग आ सकता है, जो 45 से 65 साल तक वजूद में रहेगा। 1645 में भी हिमयुग की मार दुनिया झेल चुकी है। ऐसा हुआ तो सूरज की तपिश कम हो जाएगी। पारा गिरने लगेगा ।सूरज की यह स्‍थिति भी जलवायु में बड़े परिवर्तन का कारण बन सकती है। हालांकि सौर चक्र 70 साल का होता है। इस कारण इस बदली स्‍थिति का आकलन एकाएक करना नामुमकिन है।

यदि ये बदलाव होते हैं तो करोड़ों की तादाद में लोग बेघर होंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि दुनियाभर में 2050 तक 25 करोड़ लोगों को अपने मूल निवास स्‍थलों से पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। बदलाव की यह मार मालदीव और प्रशांत महासागर क्षेत्र के कई द्वीपों के वजूद पूरी तरह लील लेगी। इन्‍हीं आशंकाओं के चलते मालदीव की सरकार ने कुछ साल पहले समुद्र की तलहटी में पर्यावरण संरक्षण के लिए एक सम्‍मेलन आयोजित किया था। जिससे औद्योगिक देश कॉर्बन उत्‍सर्जन में कटौती कर दुनिया को बचाएं। अन्‍यथा प्रदूषण और विस्‍थापन के संकट को झेलना मुश्‍किल होगा। साथ ही सुरक्षित आबादी के सामने इनके पुनर्वास की चिंता तो होगी ही, खाद्य और स्‍वास्‍थ्‍य सुरक्षा भी अहम्‌ होगी। क्‍योंकि इस बदलाव का असर कृषि पर भी पड़ेगा। खाद्यान्‍न उत्‍पादन में भारी कमी आएगी। अंतरराष्‍टीय खाद्य नीति शोध संस्‍थान ने योरोपीय देशों में आईं प्राकृतिक आपदाओं का आकलन करते हुए कहा है कि ऐसे ही हालात रहे तो करीब तीन करोड़ लोगों के भूखों मरने की नौबत आ जाएगी

। भारत के विश्‍व प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक स्‍वामीनाथन का कहना है, यदि धरती के तापमान में महज एक डिग्री सेल्‍सियस की ही वृद्धि हो जाती है तो गेहूं का उत्‍पादन 70 लाख टन घट सकता है।

हालांकि वैज्ञानिक इस विकटतम स्‍थिति में भी निराश नहीं हैं। मानव समुदायों को विपरीत हालातों में भी प्राकृतिक परिवेश हासिल करा देने की दृष्‍टि से प्रयत्‍नशील हैं। क्‍योंकि वैज्ञानिकों ने हाल के अनुसंधानों में पाया है कि उच्‍चतम ताप व निम्‍नतम जाड़ा झेलने के बावजूद जीवन की प्रक्रिया का क्रम जारी है। दरअसल जीव वैज्ञानिकों ने 70 डिग्रेी तक चढ़े पारे और 70 डिग्री सेल्‍सियश तक ही नीचे गिरे पारे के बीच सूक्ष्‍म जीवों की आश्‍चर्यजनक पड़ताल की है। अब वे इस अनुसंधान में लगे हैं कि इन जीवों में ऐसे कौनसे विलक्षण तत्‍व हैं, जो इतने विपरीत परिवेश में भी जीवन को गतिशील बनाए रखते हैं। लेकिन जीवन के इस रहस्‍य की पड़ताल कर भी ली जाए तो इसे बड़ी मानव आबादियों तक पहुंचाना कठिन है। लिहाजा सैंडी का शैतानी तांडव देखने के बाद जरुरी हो गया है कि प्रकृति के अंधाधुंध दोहन और औद्योगिक विकास पर अंकुश लगाने के उपायों को तरजीह दी जाए।

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प्रमोद भार्गव

शब्‍दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी

शिवपुरी मप्र

मो 09425488224

फोन 07492 232007, 232008

लेखक प्रिंट और इलेक्‍ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्‍ठ पत्रकार है।

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रचनाकार: प्रमोद भार्गव का आलेख - शैतानी सैंडी : प्राकृतिक आपदाओं से घिरती दुनिया
प्रमोद भार्गव का आलेख - शैतानी सैंडी : प्राकृतिक आपदाओं से घिरती दुनिया
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