हंगरी कवि अतिला यूसुफ की कविताएँ

SHARE:

भाषातंर हंगारी कविता अतिला यूसुफ मेरा कोई पिता नहीं, न माँ, न ईश्‍वर, न देश, न झूला, न कफन , न चुंबन और न ही प्‍यार। तीन दिनों से मैंने खाया...

भाषातंर

हंगारी कविता

अतिला यूसुफ

मेरा कोई पिता नहीं, न माँ, न ईश्‍वर, न देश, न झूला, न कफन , न चुंबन और न ही प्‍यार। तीन दिनों से मैंने खाया नहीं, कुछ भी नहीं। मेरे 20 साल एक ताकत हैं। मेरे ये बीस साल बिकाऊ हैं। यदि खरीदनेवाला कोई नहीं तो शैतान उसे खरीद ले जाएगा। मैं सच्‍चे दिल से फूट पडूँगा। ज़रूरत हुई तो मैं किसी को भी मार दूँगा। मैं कैद कर लिया जाऊँगा। और जिस घास से मेरी मौत आएगी, विस्‍मयकारी ढंग से वह मेरे सच्‍चे दिल पर उग आएगी। ये पंक्‍तियाँ हैं 20 वीं शती के उस महान हंगारी कवि की जिसके पिता ने तीन साल की उम्र में घर को छोड़ दिया, 14 साल की उम्र में माँ गुज़र गयी, कविताओं के कारण स्‍कूल-कॉलेजों से निकाला गया, मारक आलोचना के कारण फैलोशिप जाती रही, प्रेमिकाओं ने दगा दिया, वैचारिक स्‍वतंत्रता ने कम्‍यूनिस्‍ट पार्टी से बाहर का रास्‍ता दिखाया। अतिला यूसुफ नाम के इस हंगारी कवि का जन्‍म 11 अप्रैल 1905 को एक साबुन फैक्‍ट्री के मज़दूर ऐरन यूसुफ और किसान की बेटी बोलबला पोज के परिवार में हुआ था। तीन साल की उम्र में पिता के घर त्‍याग देने के बाद दो बेटियों और एक बेटे के निर्वाह में अक्षम माँ बोरबला ने बच्‍चों को अनाथालय में दे दिया। यहाँ अतिला को सूअर चराने तक का काम करना पड़ा। यहाँ के नारकीय जीवन से उकताकर बालक अतिला माँ के पास आ गया। लाचार और अशक्‍त माँ काम के बोझ और कैंसर से सिर्फ 43 साल की उम्र में चल बसीं। बीच के दिनों में नर्वस ब्रेकडाउन के शिकार बालक अतिला ने नौ साल की उम्र में ही खुदकुशी की कोशिश की थी। यथार्थ के गहरे और सघन बोध के साथ वैचारिक स्‍वतंत्रता और अभिव्‍यक्‍ति की प्रखरता से जीवन कभी स्‍थिर और व्‍यवस्‍थित नहीं हो सका। मानसिक अवसाद के घोर दौर में रहते हुए रचनाशीलता कोअक्षुण्‍ण रखकर उन्‍होंने विकट जीवट का उदाहरण दिया। माँ की मृत्‍यु के बाद जीजा ने अभिभावकत्‍व निभाते हुए कवि को एक माध्‍यमिक विद्यालय में डाल दिया। बाद में उसने रोज़ विश्‍वविद्यालय में नामांकन के लिए आवेदन कर दिया। लेकिन शीघ्र ही एक क्रांतिकारी कविता के कारण उसे वहाँ से निकाल दिया गया। इसी के साथ शिक्षक बनने का सारा ख्‍वाब जाता रहा। जीने की जद्दोजहद तो जैसे बालपन से ही शुरू हो गयी थी, पर एक कवि के अर्थ में यहीं से दुविधा, अंतर्द्वंद्व, जोखिम, असुरक्षा के रास्‍ते असंतुलन से होकर मनोविदलता (सिजोफ्रेनिया) तक उनकी यात्रा चलती रही। मनोचिकित्‍सा होने लगी। उन्‍होंने शादी तो कभी नहीं की, पर मनोचिकित्‍सा के क्रम में संपर्क में आनेवाली महिलाओं से कुछ प्रेमप्रसंग ज़रूर चले। अभिव्‍यक्‍ति में बेलौसपन और बेबाकी के साथ वैचारिक स्‍वतंत्रता के कारण कोई भी संपर्क भावनात्‍मक राग-रेशे की हद तक न आ सका। कवि, उपन्‍यासकार तथा आलोचक मिहाली बैबिट्‌स पर एक आक्रामक समीक्षा के कारण बामगार्टेन फाउंडेशन ने उनसे सहयोग का हाथ खींच लिया। वह इससे न तो तिलमिलाए और न उनके लिए यह अचरज का विषय बना। मानो वह इस हश्र के लिए पहले से ही तैयार बैठे थे। आखिर इस फाउंडेशन के अध्‍यक्ष भी तो बैबिट्‌स ही थे। अभिव्‍यक्‍ति के जोखिमों से खेलने की ठान लेने के बाद कोई किसी की किस हद तक मदद कर सकता है इसे भारतीय उपमहाद्वीप निराला, मुक्‍तिबोध, मंटो, नज़रुल, पाश के उदाहरण से अच्‍छी तरह समझ सकता है। विश्‍व साहित्‍य में अतिला इसके निराला उदाहरण न हों, पर उस तरह से भुलानेवाले तो नहीं ही जिस तरह उन्‍हें उनके जन्‍म शती वर्ष में भुला दिया गया। 10 अक्‍टूबर 2006 को तो आत्‍महत्‍या पर नियंत्राण का दिवस ही घोषित कर दिया गया। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की ताज़ा रिपोर्ट तो कहती है दुनिया में प्रतिघंटा 104 लोग खुदकुशी कर रहे हैं। इसका कारण अति महत्त्‍वाकांक्षा, तनाव और हिंसा है, लेकिन अतिला के अंत को इस सरलीकृत खाँचे में नहीं बिठाया जा सकता है। उनका अंत तो अभिव्‍यक्‍ति के उस खतरे से खेलने के कारण हुआ जिसके बिना उनकी रचनाशीलता बची नहीं रह सकती थी। पाश के शब्‍दों में बीच का कोई रास्‍ता नहीं होता। दूधनाथ सिंह के निरालाः आत्‍महंता आस्‍था के इस मार्मिक अंश से अतिला के द्वंद्व और नियति को सहजता से समझा जा सकता हैः कला रचना के प्रति अनंत आस्‍था एक प्रकार के आत्‍महनन का पर्याय होती है, जिससे किसी मौलिक रचनाकार की मुक्‍ति नहीं है। जो जितना अपने को खाता जाता है, बाहर उतना ही रचता जाता है। पर दुनियावी तौर पर वह धीरे-धीरे विनष्‍ट, समाप्‍त, तिरोहित तो होता ही जाता है। महान और मौलिक सर्जना के लिए यह आत्‍मबलि शायद अनिवार्य है। यह महान और मौलिक सर्जना कबीर की लुकाठी ही तो है जिसे लेकर वह कहते फिरते हैःं जो घर जारै आपना चले हमारे साथ। यानी कबीर की तरह आत्‍मबलि का न्‍यौता। स्‍कूल-कॉलेज से निष्‍कासन, प्रेमिकाओं का तिरस्‍कार, अचानक उनके जीवन में नहीं आया। यह उनके चुनावों का नतीजा ही तो था। पर मनोविदलता के खतरनाक दौर में हो या अवसाद के घोर क्षणों में, उनकी क्रांतिकारिता कभी क्षीण नहीं हुई। स्‍कूल से निकाले जाने के बाद कालेज के दिनों में अध्‍ययन की तन्‍मयता और शोधवृत्ति इस कदर सुरक्षित थी कि इस दौरान आस्‍ट्रिया तथा पेरिस में शिक्षार्जन के दौरान उन्‍होंने 15 वीं सदी के फ्रांसीसी साहित्‍य के एक विख्‍यात कवि फ्रैंकोइस विलन की खोज कर डाली। विलन कवि के साथ-साथ शातिर चोर भी था। विवि से निष्‍कासन के बाद अतिला अपनी पांडुलिपियाँ लेकर विएना आ गए। यहाँ उन्‍हें आजीविका के लिए अखबार बेचने से लेकर होटल रेस्‍त्राँ में सफाई तक का काम करना पड़ा। इसी दौरान उन्‍होंने मार्क्‍स ओर हीगेल को पढ़ डाला। इनकी छाप भी उनकी विचारधारा और रचनाओं पर पड़ी। इस दौरान की रचनाओं की सराहना तत्‍कालीन शोधकताओं ओर नामी-गिरामी समीक्षकों ने भी की। 1927 में कई फ्रांसिसी पत्रिकाओं ने उनकी कविताएँ प्रकाशित कीं। 1929 में प्रकाशित कविता संग्रह पर फ्रांसिसी अतियथार्थवाद की छाप देखी जाती है। अगले ही साल अवैध रूप से वह हंगारी कम्‍यूनिस्‍ट पार्टी में शामिल हो गये। 1931 में आया संग्रह जब्‍त कर लिया गया तथा साहित्‍य तथा समाजवाद नामक लेख के कारण उन पर अभियोग तक चला। 1931 से 1936 के दौरान आए संग्रहों से उन्‍हें समीक्षा-आलोचना जगत में व्‍यापक मान्‍यता मिली। भयंकर गरीबी और असुरक्षा से घिरे होने के बावजूद उन्‍होंने अपनी वैचारिक स्‍वतंत्रता को अक्षत रखा और अभिव्‍यक्‍ति की मौलिकता को अक्षुण्‍ण। उनकी वैचारिक स्‍वतंत्रता तथा फ्रायड में दिलचस्‍पी का नतीजा ही था कि वह फ्रायड के मनोविश्‍लेषण तथा मार्क्‍सवाद के संश्‍लेषण करने की योजना पर गंभीरता से काम करने लग गये थे। दरअसल यह दोनों ही विचारधाराएँ जीवन में चरम भौतिकता की प्रतिष्‍ठा करनेवाले सिद्धांतों पर टिकी हैं। अपने स्‍वाभाविक संस्‍कार के तहत ही कम्‍यूनिस्‍ट पार्टी इस नवीनता और मौलिकता की आँच को बर्दाश्‍त नहीं कर सकी और अतिला को निष्‍कासित कर दिया। पाल हेलर ने अपने एक संस्‍मरण में लिखा है कि उनकी विरल बौद्धिक मारकता और अटूट ईमानदारी से उपजी उग्र अद्वितीयता को पार्टी नहीं झेल सकी। निरंतर बढ़ते अकेलेपन में भयंकर मानसिक असंतुलन से वह पार नहीं पा सके। तीन दिसंबर 1937 को सिर्फ 32 साल की उम्र में अतिला ने एक मालगाड़ी से कटकर अपनी जान दे दी। उनकी इस नियति को हिंदी के विख्‍यात कवि रघुवीर सहाय की इस पंक्‍ति से समझा जा सकता है ः सबसे मुश्‍किल और एक ही सही रास्‍ता है कि मैं सब सेनाओं में लडूँ, किसी में ढाल सहित, किसी में निष्‍कवच होकर-मगर अपने को अंत में मरने सिर्फ अपने मोर्चे पर दूँ। (आत्‍महत्‍या के विरुद्ध की भूमिका में)। अतिला ने इसी दशक के शुरू साल में खुदकुशी करनेवाले विख्‍यात रूसी कवि मायकोव्‍स्‍की की कविता सेर्गेई एसेनिन को अपनी मौत से जैसे जीवंत कियाः तुम अगर मुझसे पूछो/मैं पसंद करूँगा पीकर मर जाना बनिस्‍बत मृत्‍यु की प्रतीक्षा में ऊबने/या ऊबते हुए जीने के। (सेर्गेनिन ने भी वर्ष 1925 में खुदकुशी की थी।)

मेरी कर्कश आवाज़ नहीं

यह मेरी कर्कश आवाज़ नहीं, यह पृथ्‍वी है

जो कड़कती है

सावधान, सावधान, शैतान का पागलपन जाग उठा है

अर्द्धपारदर्शी वसंत के साफ धुँधले फर्श के प्रति वफादारी ने

तुम्‍हें शीशे में पिघला दिया

चमकीले हीरे के पीछे छिपा

पत्‍थर के नीचे गोबरैले का चूँ-चूँ

ओ, ताज़ा बने ब्रेड की गंध में खुद को डुबो दो

एक गरीब अभागे, गरीब अभागे

धरती के नालों में बौछार के साथ कीचड़

बेकार ही खुद में अपने चेहरे को डुबोते हो

इसे सिर्फ दूसरों में ही डुबोया जा सकता है

घास के ऊपर की छोटी पत्तियाँ बनोः

पृथ्‍वी की धुरी से बड़ी

यंत्रों, चिडियों, पेड़ की डालों नक्षत्रों!

हमारी बाँझ माँएँ एक बच्‍चे के लिए चीखती हैं

मेरे दोस्‍त, मेरे अज़ीज़, सबसे चहेते दोस्‍त,

चाहे यह भयानक रूप में आए या महत्त्‍वपूर्ण रूप में,

यह मेरी कर्कश आवाज़ नहीं, बस पृथ्‍वी की कड़क है। (1924)

दूत

अब ट्रेन पटरी से नीचे जा रही है

हो सकता है यही मुझे नीचे लाए

शायद तमतमाए चेहरे आज ठंडे हो जाएँ

आप मुझसे बात कर सकते हैं, कह सकते हैं

गर्म पानी बह रहा है, अभी-अभी नहाए

यह तौलिया लेकर पोंछ लें

भट्‌ठी पर माँस चढ़ा है, आपको खिलाया जाएगा!

जहाँ मैं लेटा हूँ वहाँ आपका बिछावन है। (1933)

 

मेरी आँखें उछल-कूद करती हैं

मेरी आँखें उछल-कूद करती हैं,

मैं फिर पगला गया

ऐसा होने पर मुझे दुखाओं (सताओ) मत,

मुझे कसकर पकड़ो

जब मैं आपे से बाहर हो जाऊँ

तो अपने मुक्‍के मत तानो, मेरी बिखरी नज़र

इसे कभी नहीं ताड़ पाएगी

मुझे झकझोरो मत, मज़ाक मत बनाओ

रात के नीरस छोर को दूर करो

सोचो, मैंने सौंपने लायक कुछ भी नहीं छोड़ा है,

थामकर रखनेवाला भी नहीं

अपना कहने लायक कुछ भी नहीं।

मैं उसकी पपड़ी खाता हूँ आज

और इस कविता के पूरी होने पर, जो होगी नहीं

टार्च की रोशनी लायक जगह, जिधर से

मैं नंगी आँखों में घुसा हूँ, यह कौन सा पाप है जो वे देख रहे हैं

कौन बोलेगा नहीं, मैं जो भी करूँ इससे कोई फर्क नहीं पड़ता

जो भी मुझे प्‍यार करेंगे मैं उनपर दावा करूँगा

जिसका मतलब नहीं जानते, उस पाप पर भरोसा मत करें

मेरे कब्र से निकलने और मुक्‍त हो जाने तक।(1936)

उम्‍मीद के बगैर

धीरे-धीरे, सुस्‍ताते हुए

मैं, जैसे कोई आराम फरमाने आया हो

उस उदास, रेतीले, गीले तट पर

और चारों ओर देखता हुआ और घोर दारिद्र्‌य से मुक्‍त

समझदारी से भरा सर डुलाता, और इससे अधिक

की उम्‍मीद नहीं करता

बस इसीलिए अपनी गिरवी को वापस पाने की कोशिश करता हूँ

बिना किसी छल के लापरवाही से

चिनार पेड़ की सफेद पत्ती पर

एक चाँदी की कुल्‍हाड़ी हल्‍के-हल्‍के चलती है

रिक्‍तता की एक डाल पर

बेआवाज़ मेरा काँपता दिल बैठा है

और देखता है, देखता जाता है अनगिनत बार नाजु़क सितारे इसे देखने चारों ओर जुट गए

स्‍वर्ग की नीली गुफा में․․․

स्‍वर्ग की नीली गुफा में घूमता है

एक ठंडा और वार्निश किया डायनेमो

शब्‍द चमकते हैं मेरे दाँतों में, तय करते हैं

उफ्‍फ बेआव़ाज़ नक्षत्रों-इसलिए

अतीत मुझमें पत्‍थर की तरह गिरता है

हवा की तरह बेआवाज़ क्षितिज से होकर

काल, मौन, एकांत की धारा

तलवार चमकती है और मेरे बाल

मेरी मूँछें, एक मोटा प्‍यूपा

अनित्‍यता के मेरे मुँह में जितना स्‍वाद है

मेरा दिल दुखता है, शब्‍द ठंढक पहुँचाते हैं इससे होकर

उन्‍हें, जिन्‍हें, जिनकी आवाज़ मतलब पैदा करती है। (1933)

 

चीत्‍कार

मुझे वहशियाना प्‍यार करो, व्‍याकुलता की हद तक

मेरे भीषण क्‍लेश को डराकर भगा दो

अमूर्तता के पिंजड़े में

मैं एक लंगूर, उछल-कूद करता हूँ,

शाप में मेरे दाँत दिखते हैं

जिसके लिए न तो मुझमें भरोसा है और न ही कल्‍पना

उसकी त्‍योरियों के आतंक में

नश्‍वर, क्‍या तुम मेरा गाना सुनते हो

या सिर्फ प्रकृति की प्रतिध्‍वनि की तरह

मुझे आगोश में ले लो, अनदेखा करते हुए सिर्फ टकटकी मत लगाओ

ज्‍योंही धारदार छुरी नीचे आती है

कोई अभिभावक जिंदा नहीं

जो मेरे गीत सिसकारी सुने

उनकी त्‍योरियों के आतंक में।

जैसे एक नदी के ऊपर लट्‌ठों का बीड़ा

स्‍लाव माँझी, चाहे वह जो भी हो,

इसलिए हमेशा के लिए मानव जाति

व्‍यथित गूँगा, धारा नीचे जाती है-

लेकिन मैं बेकार ही ज़ोर लगाकर चीखता हूँ

मुझे प्‍यार करोः मैं चंगा हो जाऊँगा, मैं थरथराता हूँ

उसकी त्‍योरियों के आतंक में। (1936)

 

बाढ़ से बाहर निकालो

मुझे डराओ मेरे छिपे हुए देवता,

मुझे तुम्‍हारा रोष चाहिए, तुम्‍हारा कोड़ा, तुम्‍हारी कड़क

जल्‍दी करो, आकर बाढ़ से मुझे बाहर निकालो

ऐसा न हो कि हमें नीचे बुहार दिया जाए

धूल में मेरी नजरों तक, एक अंधा

और अभी तक मैं दर्द की छुरी से खेलता हूँ

इंसानी दिल के झेलने के लिए विकट

कितनी आसानी से मैं सुलग रहा हूँ! सूरज

झुलसाने की स्‍थिति में नहीं- डरे रहो-

मुझ पर चीखते हो, आग को अकेला छोड़ दो

तुमने मेरी हथेली पर इजोत देनेवाला बोल्‍ट दे मारा

मुझमें हथौड़े की तरह लगे गुस्‍से से या अनुग्रह से

यह भोलापन ही दुष्‍टता (बुराई) है

यही भोलापन मेरा पिंजड़ा हो सकता है

शैतान से भी बुरी तरह झुलसा सकता है

मैं झूठ बोलता हूँ कि यह भग्‍न पोत का खंडहर है

उपलाते क्रूर विप्‍लव के द्वारा उछाला गया है

अकेले ही मैं दुस्‍साहस करता हूँ, ललकारता हूँ

बमुश्‍किल कुछ भी शिनाख्‍त होता है

मरने के लिए मैं अपनी साँसे रोक लूँगा

तुम्‍हारे छड़ और कारिंदे इस तरह अवज्ञा करेंगे

और साहस के साथ मेरी आँखों में देखो

तुम रिक्‍त हो, मनुष्‍यता से रहित। (1937)

--

हिन्‍दी अनुवाद - उमा

--

(साभार - साक्षात्कार जनवरी 08, प्रधान संपादक देवेन्द्र दीपक, संपादक हरि भटनागर)

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: हंगरी कवि अतिला यूसुफ की कविताएँ
हंगरी कवि अतिला यूसुफ की कविताएँ
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/11/blog-post_423.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/11/blog-post_423.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content