अर्जुन प्रसाद की कहानी - आक्रोश

SHARE:

आक्रोश बा त कुछ समय पहले की है सिहोर सरांय के ज्ञानदेव गौड़ शिक्षित और नीतिज्ञ पुरुष थे ।   उनकी पत्‍नी ज्ञानवती भी बहुत ही उज्‍ज्‍वल चरित्...

आक्रोश

बात कुछ समय पहले की है सिहोर सरांय के ज्ञानदेव गौड़ शिक्षित और नीतिज्ञ पुरुष थे  उनकी पत्‍नी ज्ञानवती भी बहुत ही उज्‍ज्‍वल चरित्र की दयालु महिला थीं। संतान के नाम पर ज्ञानदेव के दो बेटे थे। उनके बड़े पुत्र का नाम निर्मलचंद और छोटे का देवांगन था। आपस में उनमें गजब का मेलजोल और अपनापन था। दोनों भाइयों के भी केवल एक-एक ही पुत्र थे। निर्मलचंद पति-पत्‍नी बहुत ही कृपण किस्‍म के इंसान थे। उनके बेटे का नाम शिव मंगल था। जबकि देवांगन गौड़ बचपन से ही खर्चीले स्‍वभाव के थे उनके इकलौते बेटे का नाम मंगर था।

वैसे निर्मलचंद और देवांगन में तो आरंभ से ही खूब पटती थी लेकिन, शिव मंगल और मंगर में कभी न पटी। शिव मंगल को अपने बाप-दादों की दौलत वसीयत में मिल जाने से धन की लालसा न थी। उसके पास चाँदी के सिक्‍के और बर्तन तो थे ही कई पीढ़ियों को खाने के लिए अथाह दौलत भी थी मगर, मंगर को हरदम दौलत पाने की ही चिंता लगी रहती थी। सच कहिए तो मंगर बहुत ही लालची इंसान था।

मंगर की पत्‍नी भावना भी उसी के नक्‍श्‍ो कदम पर चलती थी। निर्धन मंगर, दौलतमंद शिव मंगल को हमेशा अपना शत्रु ही समझता था। उसे चचेरा भाई कदापि न मानता था। यह सच है कि मनुष्‍य अपने दुःखों से नहीं बल्‍कि, दूसरों के सुख से परेशान रहता है। मंगर भी शिवमंगल से काफी परेशान था।

वह शिवमंगल की दौलत पर दाँत गड़ाए हुए था। उसे अपने परिश्रम पर भरोसा न था। उसका मत था कि मेहनत से इंसान कभी स्‍वप्‍न में भी दौलतमंद नहीं बन सकता है। दौलतमंद बनने की खातिर दूसरों की दौलत हड़पता नितांत जरूरी है। इसलिए दिन-रात ईश्‍वर से यही विनती करता कि हे परतात्‍मा! या तो शिवमंगल को इस दुनिया से उठा लो या उसे किसी ऐसी झंझट में फँसा दो कि उसकी सारी पुश्‍तैनी दौलत लेकर मैं रातोंरात अमीर बन जाऊँ।

दौलतमंद बनने के लिए वह हमेशा यथासंभव हर यत्‍न करने में जुटा रहता था। उसकी मंशा थी कि इंसान अधिक से अधिक जितना धन एकत्र कर सकता है उसे अवश्‍य करना चाहिए क्‍योंकि निर्धन और गरीब व्‍यक्‍ति की इस जमाने में कोई औकात ही नहीं है। उसे कोई नहीं पूछता है। धनी मनुष्‍य की चाह हर जगह होती है। उसे समाज में भरपूर मान-सम्‍मान मिलता है।

यह सोचकर मंगर के मन में बड़ी प्रबल इच्‍छा थी कि शिवमंगल किसी बड़ी मुसीबत की गिरफ्‍त में उलझ जाए। उसके उलझने में ही मेरा सुख है। जब तक वह सुखी रहेगा तब तक मुझे सुखमय जीवन नसीब न होगा। ईश्‍वर करे कि शिवमंगल का सारा धन किसी तरह मुझे मिल जाए और बिना महनत के ही मैं बेखटके चैन की बंसी बजाऊँ।

वैसे तो कौओं के मनाने से डाँगर नहीं मरा करते हैं फिर भी दिल से निकली बात का कुछ न कुछ असर अवश्‍य होता है। तभी मानो बिल्‍ली के भाग्‍य से छीका ही टूट गया। दरअसल हुआ यह कि शिवमंगल के जीवन में यकायक एक भयंकर तूफान आ गया। इससे उसका सब कुछ देखते ही देखते तहस-नहस हो गया। शिव मंगल जितना निष्‍कपट था उसकी पत्‍नी सरोज तरुणावस्‍था से ही उतनी कुमार्गी थी। उसे धर्म-अधर्म से कुछ भी लेना-देना न था।

सरोज गजब की सुंदर और रंग-रूप की रानी तो थी ही, अपनी सुंदरता पर उसे बहुत नाज भी था। अपने खूबसूरत गदराए और मदमस्‍त बदन को दिखाकर वह तंदुरुस्‍त, सुंदर, युवकों को ललचाती रहती थी। अनाड़ी नवभ्रमर आशिक कली का रस पीने को उतावले थे। वे उसे देखते ही दीवाने से हो जाते। वे उससे मिलने को बेताब हो उठते।

पर, सरोज के अंदर एक बड़ी कमी भी थी। जो उसके रंग-रूप की तनिक भी खुलकर तारीफ कर देता वह उस पर तन,मन से न्‍यौछावर हो जाती थी। शादी से पहले ही उसने अपने मायके में इतने यार बना लिया कि उसे अब विवाह जैसे सामाजिक संस्‍कार की कोई जरूरत ही न रह गई थी। मानो वह अपनी स्‍वेच्‍छा से आधुनिक शब्‍द लिव इन रिलेशनसिप में यकीन करती थी। अवसर मिलते ही कभी किसी के साथ ऐश करती तो कभी किसी के साथ। उसकी नजर में विवाह जैसे पवित्र बंधन का कोई अर्थ और महत्‍व न था। यही उसकी दिनचर्या थी।

अपने मायके में युवावस्‍था की शुरुआत से ही सरोज बड़ी मनमौजी रंगीली, चालबाज और स्‍वछंद विचार की थी। उसके पीछे आशिकों की कतार लगी रहती थी। तरूणाई की दहलीज पर कदम रखते ही उसने खुल्‍लमखुल्‍ला कामक्रीड़ा का आनंद लेना शुरू कर दिया। वह एक ऐय्‌याशबाज स्‍त्री थी। कामक्रीड़ा में किसी की रोक-टोक उसे कतई पसंद न थी। कामतृप्‍ति के खेल में खुले मन से मौजमस्‍ती करना उसकी आदत थी।

वह सदा अपनी मनमानी करने पर तुली रहती थी। जब सरोज के साथ फकीराबाद में शिवमंगल का विवाह हुआ तक सरोज कई घाटों का पानी पी चुकी थी। बल्‍कि, यह समझिए कि शारीरिक भूख और प्‍यास मिटाते-मिटाते और अधिक बढ़ गई। उसकी तृष्‍णा कभी शांत होने का नाम ही न लेती।

यद्यपि शिव मंगल स्‍वभाव से निहायत ही सीधा-सादा पुरुष था। उसके मन में किसी के प्रति कोई छल-कपट न था। बहुत ही निष्‍छल हृदय का व्‍यक्‍ति था। वह हर प्रकार से तृप्‍त था। अब उसे और किसी चीज की जरूरत न थी। वह पूर्णतया संतुष्‍ट था। धन पाने की लालसा में कभी भूलकर भी हाय-तोबा न करता था।

उसके मन में गजब का संतोष रूपी धन समाया हुआ था। वह दिन भर अपने खेतों में हाड़तोड़ मेहनत करता और शाम को घर आने पर रूखी-सूखी जो मिली उसे खा-पीकर बेफिक्र सो जाता। उसे किसी बात का खटका न रहता था अतएव बिस्‍तर पर जाते ही गहरी नींद आ जाती थी। सरोज को उसकी यह आदत कतई बर्दाश्‍त न थी।

शिवमंगल से ब्‍याह होने के बाद सरोज जब सिहोर सरांय आई तब उसके दो-चार चहेते भ्रमर वहाँ भी आना-जाना शुरू कर दिए। इतना ही नहीं, विवाह के दो-चार महीने बाद ही वह वहाँ भी अपने यारों की टोली बनाने लगी। हाँ इतना अवश्‍य है कि सरोज की गोद में अभी तक कोई संतान न थी। उसकी गोद अभी एकदम सूनी ही थी। आग सुलगती है तो धुआँ उठता ही है नित नए-नए आशिक बदलने से धीरे-धीरे सारे गाँव में सरोज की चर्चा होने लगी।

गाँव के स्‍त्री-पुरुष एक-दूसरे से उसके बारे में कानाफूसी करने लगे। उसकी चाल-चलन को लोग संदेह की नजर से देखने लगे। वे कहने लगे रूप-रंग में यह कितनी सुंदर है मगर, तनिक इसका काम तो देखिए। ऊपर से यह जितनी रूपवती है भीतर से उतनी ही कुरूप है। ऐसे में इसकी सुंदरता के कोई मायने नहीं रह जाते। लगता है यह पूर्व जन्‍म में कोई कुतिया थी। इसका पेट भरने का नाम तक नहीं ले रहा है। सुंदर तो वह होता है जिसका मन भी सुंदर हो। ऐसी बदचलन और छिनाल औरते अपने मर्द को भी मरवा डालती हैं। ऐसी कुल्‍टा स्‍त्रियों का कोई भरोसा थोड़े ही है।

आहिस्‍ता-आहिस्‍ता दावानल की भाँति यह खबर समूचे गाँव में फैल गई। कुछ लोगों ने सरोज की ऐय्‌याशी के प्रति शिवमंगल का कान भी भरना आरंभ कर दिया। यह सुनकर साफ नीयत के भोलेभाले शिवमंगल के दिल में अपार कष्‍ट हुआ। वह सोचने लगा मैं भी एक पूर्ण मर्द हूँ। मेरे अंदर भी पौरुष है। मैं किसी भी स्‍त्री को खुश कर सकता हूँ।

इसके बावजूद यह औरत न जाने क्‍या चाहती है? इसे हरवक्‍त एक ही धुन सवार रहती है। पत्‍नी धर्म से इसे कोई दरकार नहीं है। यह दिन'रात दैहिक सुख में लीन रहती है। वह हमेशा इसी फिक्र में व्‍यस्‍त रहता कि अपनी अर्धांगिनी सरोज की बिगड़ी आदत को कैसे सुधारूँ? पर, उसे कोई कारगर उपाय न सूझ रहा था। वह उसे सुधारने की बहुत माथापच्‍ची करता लेकिन, सब व्‍यर्थ। शिवमंगल ज्‍यों-ज्‍यों दवा करता मर्ज त्‍यों-त्‍यों बढ़ता जाता।

अंत में एक रोज बात यहाँ तक पहुँच गई कि शिवमंगल घर के अंदर बिस्‍तर पर गहरी नींद में सोने का नाटक करते हुए लेटा था। सरोज ने समझा कि मेरे पतिदेव आराम से गहरी नींद में सो रहे हैं। उसके पास मनचलों का आना-जाना लगा ही रहता था इतने में सरोज के दो-तीन दीवाने गुड्‌डू, मोहित और मदन आ पहुँचे। वे उसके इश्‍क में पगलाए हुए थे।

उनके आते ही सरोज कनखियों से उनकी ओर देखकर उदास मन से शिवमंगल की ओर इशारा करके बोली देखिए, मेरी एक अर्ज है इस मुँए के रहते हम लोग खुलकर कभी भी मौज नहीं कर सकते हैं। यह हमारे मार्ग में सबसे बड़ा काँटा है अतः मैं चाहती हूँ कि इसे अब सदैव के लिए अपने रास्‍ते से हटा दीजिए। मेरी तो किस्‍मत ही खराब थी कि इस मरदूद के संग शादी हो गई। औरत क्‍या है और पुरुष से क्‍या चाहती है इसे कुछ अता-पता ही नहीं है। आज मैं कसम खाकर कहती हूँ जब तक यमराज की गोंद में नहीं भेजेंगे तब तक मैं किसी को अपना शरीर स्‍पर्श भी न करने दूँगी।

सरोज का बदला हुआ रूप देखकर गुड्‌डू, मोहित और मदन एक सुर में बोले देवी! टाप एकदम निश्‍चिंत रहिए। आप जैसा चाहती हैं अब वैसा ही होगा। आपकी यह पीड़ा हमसे देखी नहीं जाती। हम इसे एकाध दिन में ही मौत के मुँह में भेजकर दम लेंगे। रात-दिन का यह खटका जल्‍दी ही मिट जाएगा। इतना कहकर वे अपने-अपने घर चले गए और शिवमंगल की हत्‍या करने की साजिश रचने में जुट गए। उनके चले जाने के पश्‍चात सरोज जाकर चुपचाप सो गई। बिस्‍तर पर जाते ही उसे गहरी नींद आ गई और अपने स्‍वप्‍नलोक में खो गई।

शिवमंगल सोने का नाटक तो कर ही रहा था बिस्‍तर पर चुपचाप लेटे-लेटे उसने उनकी सारी बातें अपने कानों से सुन ली। यह सुनकर वह अपने मन में बोला अच्‍छा! तो मेरी बिल्‍ली मुझे ही म्‍याऊँ? इसकी यह मजाल कि जिस थाली में खाए उसी में छेद करने को सोच रही है। यह चुड़ेल अपने रास्‍ते का रोड़ा समझकर मुझे ही हमेशा के लिए हटाने की बात कर रही है।

वह अपने आप से फिर बोला मेरा नाम भी शिवमंगल है। मैं सीधा हूँ तो क्‍या हुआ? जरूरत से ज्‍यादा सीधा-सादा होना भी हानिकर है। मैं इतना भोला और बेवकूफ थोड़े ही हूँ कि यह असमय ही मुझे काल के गाल में पहुँचाने का षड़यंत्र रचती रहे और मैं गूँगे-बहरे की तरह इसकी चाल को कामयाब होने दूँ।

सीधे-सादे इंसान का क्रोधावेश बड़ा ही खतरनाक होता है वह जब तक धैर्य के साथ सब कुछ सहन करता है तब तक सहन करता है मगर, जब वह बिगड़ैल साँड़ की भाँति बिगड़ खड़ा होता है तब उसे फिर सँभालना बहुत कठिन हो जाता है।

ऐसे व्‍यक्‍ति को चुनौती देना कभी-कभार बहुत ही घातक सिद्ध होता है। किसी की बात दिल में लग जाने पर स्‍वाभिमानी पुरुष अत्‍यंत भयानक रूप घारण कर लेता है। वह अपने बल और पौरुष को ललकारते हुए देखकर जान लेने-देने पर उतारु हो जाता है। शिवमंगल के स्‍वाभिमान ने भी उसे ललकार दिया। उसके मासूम दिल पर शैतान सवार हो गया। वह इंसान से पशु बन गया। उसका पारा एकदम गर्म हो गया। उसकी मुट्ठियाँ भिंच गईं। वह अपने दाँत मिसमिसाने लगा।

उसने अपनी धर्मपत्‍नी सरोज को यमपुरी का रास्‍ता दिखाने को ठान लिया। उस रात वह पूरी नींद सो न सका। सारी रात करवटें ही बदलता रहा। दुराशा भय से नींद उसकी आँखों से बहुत दूर जा चुकी थी। उस समय उसके नेत्रों से क्रोध की चिंगारियाँ निकल रही थीं।

सरोज बेफिक्र सो ही रही थी इतने में रात के तीन-साढ़े तीन बज गए। शिवमंगल दबे पाँव उठा और कुल्‍हाड़ी लेकर सोती हुई सरोज को बेसुध होकर टहनी की तरह काटने लगा। उसने उसका काम तमाम इतनी शीघ्रता से किया कि वह चिल्‍ला भी न सकी।

कुल्‍हाड़ी के वार से सरोज पलक झपकते ही संसार से चल बसी। उसके प्राण पखेरु क्षण भर में ही उड़ गए। पत्‍नी के रक्षक पति ने ही भक्षक बनकर उसके प्राणों को हर लिया। परंतु क्रोध और आवेश में लिया गया उसका यह निर्णय गलत ही साबित हुआ। शिवमंगल की आत्‍मा ने उसके कर्म के लिए धिक्‍कार दिया।

अपनी प्रिय पत्‍नी की अनेक टुकड़ों में कटी लाश को देखकर वह अपनी सुधबुध खो बैठा। अपना होश-हवाश खोकर वह खून से लथपथ कुल्‍हाड़ी अपने हाथ में लेकर सरोज के निर्जीव शरीर के पास जमीन पर तपस्‍वी मुद्रा में बैठकर तप में लीन हो गया। शनैः-शनैः रात गुजर गई और सबेरा हो गया।

मंगर अपने दुश्‍मन शिवमंगल को मकड़जाल में उलझने को बेताब था ही सुबह होने पर शिवमंगल के घर से प्रतिदिन की तरह किसी शोरगुल को न सुनकर उसे बड़ा अचंभा हुआ। वह सोचने लगा क्‍या बात है जिस घर में हरदम महाभारत मचा रहता था उस घर में आज इतनी शांति कैसे है। यहाँ मुर्दनी सी क्‍यों छाई हुई है? चलो वहाँ चलकर तनिक पता तो लगाऊँ।

यह सोचकर सच्‍चाई मालूम करने की गरज से मंगर टहलता हुआ उसके दरवाजे पर जा पहुँचा। वहाँ जाकर उसने देखा कि शिवमंगल धरती पर एक रक्‍तरंजित कुल्‍हाड़ी लेकर निद्रामग्‍न बैठा हुआ है। उसकी बगल में चारपाई पर सरोज की कटी हुई लहूलुहान देह पड़ी है।

यह देखते ही मंगर मन ही मन बहुत प्रसन्‍न हुआ। उसकी खुशी का कोई ठिकाना ही न रहा। अंधे को क्‍या चाहिए बस दो आँखें मानो उसे मुँह माँगी मुराद मिल गई। मारे खुशी के वह उछल पड़ा। अपने अरमान पूरे होने की प्रसन्‍नता के अतिरेक में उसके मुख से चीख निकल गई। वह अकस्‍मात हड़बड़ाकर चिल्‍लाता हुआ भागने लगा शिवमंगल ने अपनी बीवी को मार डाला। अरे! शिवमंगल ने उसका कत्‍ल कर दिया उसने सरोज को काट डाला। मंगर सोचने लगा अब इसकी दौलत मुझे जरूर मिल जाएगी। अब यह अभागा अपने ही बिछाए जाल में बुरी तरह फँस चुका है।

यह खबर जंगल की आग की भाँति पलक झपकते ही सारे गाँव में फैल गई। तनिक देर में ही वहाँ स्‍त्री-पुरुष और बच्‍चों का मजमा लग गया। शिवमंगल की कारगुजारी देखकर ग्रामीण दंग रह गए। तदंतर इस वारदात की भनक पुलिस को भी लग गई। पुलिस आई और मौका वारदात का मुआयना करके सरोज की लाश को पोस्‍टमार्टम के लिए सदर अस्‍पताल भेज दिया।

तत्‍पश्‍चात रंगे हाथ गिरफ्‍तार किए गए शिवमंगल को अदालत में पेश करने के बाद बड़े घर रवाना कर दिया। उसके जेल चले जाने से मंगर के अरमानों पर जरा सी देर में पानी फिर गया। उसके हाथ कुछ भी न लगा। उसे एक पाई भी न मिली। वह हाथ ही मलते रह गया। वह सोचने लगा भगवान करे अब शिवमंगल आजीवन जेल में ही पड़ा रहे। वह कभी वहाँ सं मुक्‍त न हो। मैं भी इसी कुनबे का हूँ। अब उसकी सारी दौलत मेरी हो जाएगी।

बाद में सरोज की हत्‍या करने के इल्‍जाम में अदालत ने उसे कठोर कारावास की सजा सुनाते हुए सात साल के लिए काल कोठरी में डाल दिया। सजा की मियाद पूरी हो जाने पर वह जेल से रिहा कर दिया गया। मानसिक विक्षिप्‍तता की अवस्‍था में ही वह पुनः अपने घर गया और सरोज की यादों के सहारे अपना जीवन गुजारने लगा। मंगर कहीं उसके चाँदी के सिक्‍कों को चुरा न ले इसलिए वह उन्‍हें अपनी कमर में बाँधकर रखता था।

उसे अपने किए पर पश्‍चाताप तो हुआ किंतु, कब क्‍या और कैसे हो गया अब उसे कुछ भी याद न था। उसकी याददास्‍त जा चुकी थी। वह भाँग और गाँजे के नशे का आदी हो गया। मंगर ने बहुत कोशिश की कि शिवमंगल अपनी कुछ दौलत उसे दे दे पर, उसने उसे एक फूटी कौड़ी तक न दी।

लोभी मंगर छटपटाकर रह गया। अपनी सोच पर उसे बड़ा पछतावा हुआ। उसी दिन उसने सौगंध खा ली कि अब मैं अपनी मेहनत की कमाई पर ही भरोसा करुँगा। मुफ्‍त में मिली दौलत के सहारे न रहूँगा।

--

राजभाषा सहायक

महाप्रबंधक कार्यालय

उत्‍तर मध्‍य रेलवे मुख्‍यालय

इलाहाबाद

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. बहुत सुन्दर कहानी का अभिप्राय है, की इंसान अपने क्रोध के वश में आकर किये गए कार्यों में ऐसे उलझ जता है की फिर वह चाहकर भी उस जाल से मुक्त नहीं हो पाता

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: अर्जुन प्रसाद की कहानी - आक्रोश
अर्जुन प्रसाद की कहानी - आक्रोश
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/11/blog-post_7765.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/11/blog-post_7765.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content