अजय गोयल की कहानी - टेडपोल

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कहानी टेडपोल - अजय गोयल ऊं जय तेरी चाल में ठुमका मैय्या तेरे कान में झुमका मैय्या कमर रे चोटी लटके मैय्या हहे गये दिल के टुकड़े मैय्या को प...

कहानी
टेडपोल
- अजय गोयल


ऊं जय तेरी चाल में ठुमका
मैय्या तेरे कान में झुमका
मैय्या कमर रे चोटी लटके
मैय्या हहे गये दिल के टुकड़े
मैय्या को पच्चासी झटके
बोल मेडिकल वाले की जय।
जयकारा मेडिकल वाली का।
बोल मेडिकल दरबार की जय।

फिल्मी गीत को आरती की लय में गाते हुए मानस घुटनों पर बैठ गया था। उसके हाथ खड़ताल बजाने की मुद्रा में थे।
विस्फारित दृष्टि से तीनों सीनियर लड़कियाँ मानस को देख रही थीं। लाइब्रेरी के बरामदे में उसने यह नाटक सीनियर राहुल के कहने पर शुरू किया था।
मानस को लाइब्रेरी में देख राहुल तैश खा गया। उस वक्त वहाँ शालिनी भी दूसरी तरफ बैठी थी।
राहुल ने मानस को बाहर आने का इशारा किया। बोला, ''क्यों बे पढ़ने आया है। या इश्क लड़ाने। पहले महीने से ही कार्यक्रम शुरू। लौंडिया दूसरी तरफ बैठी है। नयन मटक्का हो रहा है। अब तू उसकी तरफ सरकने लगेगा।
चिपक जाएगा उसकी टांगों से। साले यह दसवीं या बारहवीं नहीं है। सड़ जाएगा। यहाँ फेल होने पर लौंडिया तुझ पर धूकेगी भी नहीं।' ' राहुल का गुस्सा सातवें आसमान पर था। दो तीन सीनियर उसके साथ आ जुटे थे।
लाइब्रेरी के बरामदे में खड़ी तीनों सीनियर लड़कियाँ भी यह सब देख रही थीं।
' 'चल जा। तीन मम्मियाँ खड़ी हैं। अपने लिए पिक्चर के पैसे माँग। कोल्ड ड्रिंक्स मत भूल जाना।'' मानस को राहुल ने धकेला।
मानस जैसे डाल से झड़ गया।
' 'अबे, जाता है कि पीछे से दूँ लात। लाइब्रेरी की तरह देखने की इजाजत नहीं होती रैगिंग पीरियड में। ये तो बॉस निकले। टाका लगाने की सोच रहे हैं।'' राहुल ने दैनिक पंचांग बांच दिया था।
मानस तीनों सीनियर लड़कियों के सामने था। मेमना सा। थर्ड बटन।

- ' 'पंछी ?' ' एक सीनियर लड़की ने पूछा। मानस सर झुकाये खड़ा था।

- ' 'नाम क्या है?' '
- 'मानस।'
- ' 'तुलसी का 'रामचरित्र मानस'? कोई चौपाई कंठ में बिराजी है क्या?''
साधारण कद काठी का मानस धुल गया।
-' 'डिजिटल जमाना है। अंग्रेजी गाना बजाना हो जाए। है भी तू हीमैन टाइप कार्टून। लाइनबाज लगता है।
सटाने के फेर में लाइब्रेरी घूमने आया था क्या पंछी होकर। रैगिंग नहीं होती तो और क्या होगी? चल बता क्यों आया है ?' '
- ''पैसे... फिल्म...''? सूखी जुबान और गले से मुश्किल से दो लफ़्ज बाहर धकेल सका था मानस।
- ' 'कौन सी देखेगा ?' '
-' 'काम-सूत्र या जवानी की भूख।''
सर झुकाये मानस समझ गया कि ये तीनों कब्र में दफनाने से पहले नहीं छोड़ेगी। मरना है तो क्या डरना? अब गर्दन झुकाए और रोनी सूरत बनाए खड़े रहना है। बाकी ये तीनों चिडियाएं अपने आप चहकती रहेंगी।
- ' 'कल कौन सी पिक्चर देखी थी? प्यार किए जा या आ गले लग जा।''
- ' 'बता कितनों को गले लगाया है। हीमैन कार्टून।''
- ' 'चाकलेटी टाइप है। मेडिकल कालिज में आ गया। अपने आस पड़ोस की परियों पर जरूर हाथ साफ किया होगा।' '
-' 'अच्छा बता, हम तीनों में से किस पर लाइन मारेगा।''
ना चाहकर भी मानस मुस्करा पड़ा।
-' 'बड़ा ढीट पंछी है। बन जा मुर्गा।' '
मुर्गा बनने के लिए वह झुका ही था कि सीधे खड़े रहने के लिए कह दिया गया।
-' 'कौन सी पसंद है?''
-' 'सब सड़ियल हैं क्या। हम में से कोई पटाका नहीं है ?''
उसका मन था कह दे, 'कैटवाक' करके दिखाओ तो बताऊँ?
शाम घिरने लगी थी।
- ' 'पैसे चाहिए। चल गाना सुना।''
-' 'गाना तो सुनाना पड़ेगा। फिल्मी। चल उनकी आरती बना के गा।''
' 'मत चूको चौहान' ' मानस के अन्तर्मन ने कहा। छात्रावास में कई बार फिल्मी गानों की बारात रैगिंग के समय निकली थी।
- ' 'बोल मेडिकल वाली की जय। मेडिकल दरबार की जय। जब तक हम वार्ड से वापिस लौटें, यह जयकारा लगाते रहो।'' कह कर तीनों लड़कियाँ हॉस्पिटल की ओर निकल गयीं।
राहुल एक बार फिर सामने था।
-' 'उठ। भाग जा। शालिनी के आसपास भी फटका तो चीर दूँगा,' ' राहुल ने मानस को जाने का इशारा करते हुए कहा।

डॉक्टरी की पढ़ाई शुरूआत धमाकेदार होती। मेडिकल कालिज की कक्षाओं में जाने के लिए लड़की को चटक लाल रंग की टाई झक सफेद रंग की पेन्ट कमीज के साथ बाँधनी पड़ती। फिलहाल हवाओं में चुस्ती दुरुस्ती की धुन तैर रही थी। इसलिए पेन्ट ढीली ढाली होती। लड़कियाँ सदा बहार सलवार कुर्ते में लहराती। दो चोटियों के जमाने की यादें ताजा कराती। कटे बालवालियों को भी हर हाल में सर के किसी खूंटे से लाल रिबन अटकाने पड़ते।
यह सब नये खून का मेडिकल कालिज की मुँडेर पर आ बैठने का शंखनाद होता। जिन्हें पंछी और पंछिन के नामों से चिन्हित किया जाता।
सुबह आठ बजे तक पंछी और पंछिनें मेडिकल कालिज गेट पर मंडराने लगते। सीनियरों के कहर से बचने के लिए यह सामूहिक योजना का कदम होता। हर चिकने चुपड़े चेहरे के आगे सब एक साथ थर्ड बटन में सजदे की मुद्रा में आ जाते। यह बगैर सोचे समझे कि आखिर बन्दा सीनियर जमात का है भी या नहीं


हद होती, लेक्चर के आखिर में प्रोफेसर अन्जान बनकर पूछते, ' 'मेडिकल कालिज में ड्रेस कोड कब से लागू हो गया? आजकल मल्टी मीडिया का जमाना है। आप लोग कहाँ से आऐ हैं?''
क्लास क्या जवाब दे? क्या कहे? बूझता नहीं। लेक्चर थियेटर में उस समय सन्नाटा पसरा होता। क्लास थर्ड बटन होती। थर्ड बटन यानी नजरें, कमीज के तीसरे बटन पर टंगी होती। प्रोफेसर हर साल होने वाले इस कर्मकांड
पर मुस्कराते। चलते बनते।
जल्दी 'ही नये नये पंछियों को मेडिकल कालिज भट्ठी लगने लगता। आठ बजे क्लास शुरू होती। एक बजे लंच होता। अक्सर एनाँटमी डिसेक्शन हॉल से निकल साबुन से हाथ धोकर सीधे खाने की मेज तक पहुँचना होता।
संरक्षित मानव शरीर की चीर फाड़ करने वाले पलों से तुरन्त मुक्त होना पड़ता।
वापस लौटते समय इतिहास दोहराया जाता। एनसीसी इन्चार्ज का ऑफिस मेडिकल कालिज व हॉस्टल के मध्य में था। जिसके सामने से जोर-जोर से 'टोड-टोड' बोल कर गुजरना होता। इन्चार्ज साहब सालों से मेडिकल
कालिज में अटके व पड़े-पड़े भारी भारी भरकम आदमी हो चुके थे। उनकी गर्दन गालों व छाती में समा चुकी थी।
बारहवीं क्तास में पढ़ा बिना गर्दन वाला मेंढ़क प्रजाति का टोड इन्चार्ज को देख सहसा याद आ जाता। मेडिकल कालिज की कई पीढ़ियाँ उन्हें टोड का सम्मान नवाजती आ रही थीं।
एनसीसी. ज्वाइन करने की प्रथम सत्र में अनिवार्यता थी। जिसमें उपस्थिति ना के बराबर रहती। प्रत्येक सत्र में नियमित जाने वाला कोई न कोई उत्माहित बन्दा मिल जाता। जिस पर गाज गिरती। टेडपोल के तमगे के साथ उसे फाँसी दे दी जाती। टेडपोल यानी टोड का बच्चा। इस बार टेडपोल मानस था। जिसकी तलाश में सीनियर रहते।


पिछले कई सालों से रैगिंग को रोकने के लिए उच्चतम न्यायालय सख्त था। वार्डन की चेतावनी थी, ' रेगिंग जरूरी है। यह समझने के लिए दुनिया को वक्त लगेगा। रेगिंग की उम्र केवल छ: महिने है। हमारा साथ जिन्दगी
भर का है। रैगिंग हो रही है। यह मुझे मालूम नहीं पड़ना चाहिए।''
जूनियरों को वार्डन समझाते, सीनियरों से मत डरो। हॉस्पिटल में हाथ पकड़ कर सीनियर बन्दा ही सिखाता है।
जूनियर की हजार गलतियों को अपने पर ओट लेता है। इसलिए एन्जॉय रैगिंग। वे दीक्षा देते, ' रैगिंग जिन्दगी में यादगार लम्हों की खरीज है। जिसकी खनखन कानों में ताजिन्दगी गूंजती है।''
मेडिकल कालिज में प्रवेश का उत्साह कुछ दिनों में पंचर हो जाता।
जहाँ दिन भर कसकर पढ़ाई होती। मसल्स, नर्व, आर्टरी, वेन। इन मानव अंगों में सब कुछ गड्मड हो जाता।

समझना मुश्किल होता कि पढ़ाई की शुरुआत कहाँ से की जाए। और कैसे की जाए? हॉस्टल जैसे तांत्रिकों का जमावड़ा नजर आता। हर कमरे की मेज पर मानव खोपड़ी रखी होती। पढ़ते-पढ़ते झपकी आती तो हाथों से फिसल
कर मानव हाइहुयाँ बिस्तर पर पलट जाती। कुछ मन सोचे समझे सुस्ताए इससे पहले रात्रि में हॉस्टल के जूनियरों के कमरों में ठकठक पहुँच जाती। संकेत होता, सीनियरों का बुलावा है। छत स्टेडियम बन जाती। चाँद गवाह होता।
जहां सब जूनियर दिगम्बर हो जाते। एक-दूसरे का पकड़ कर हैलो कहते। एक दूसरे को झांटू भाई कहकर
सम्बोधित करते। कालिज में यह सम्बन्धों का पहला पायदान होता। इसके बाद सीनियर आते। सीनियर यानी मम्मी-पापा। जितना अधिक सीनियर उतने बड़े मम्मी पापा।


एनथम गाकर झंडा गाड़ा जाता। सब गला फाड़ कर सुर लगाते, ' 'एक दूज के चाँद सी. .. लिए। एक नारी चली।
कोई कहे यह नारी उदासी। कोई कह यह नारी चराती। एक लट्ठ ....... दियो। तब इसकी हो गयी पूरनमासी।' '
जूनियर हॉस्टल की छत से मेडिकल कॉलिज, हॉस्पिटल और अन्य हॉस्टल साफ नजर आते।
- 'रैगिंग झाड़ पूछ है। मस्ती है। यह सीनियर बनने के बाद समझोगे।' ' सीनियर समझाते।
रैगिंग के बीच में जोश भरने के लिए शक्ति पाठ होता। चू ... चू ... की सामूहिक ध्वनि छत पर खन खनाने लगती। यह गान कुछ रातों में नियमित होता। चेहेरे बदलते। परम्परा की सीढ़ी स्थिर रहती। रैगिंग लिटरेचर जूनियरों के बीच संवाद का अवसर होता। यह कंठस्थ करना पड़ता। इसका अभ्यास भी होता। जैसे ही कोई सीनियर दोहा भर कह दे। तुरन्त कंठ से फव्वारा निकल पड़े। ' 'कबीरा खड़ा बजार में। ...दिया लटकाय। जिसकी जितना चाहिए। काट काट ले जाए।' '
इस कर्मकांड का अंतिम पड़ाव सड़का रहता। जिसका नारा होता, ''अपना हाथ। जगन्नाथ।' ' जिसके लिए दोहा होता, हमें क्या दिया? जो कुछ कुदरत ने दिया। लड़कियों को दिया। गाल दिए कटवाने के लिए। ... दिए दबवाने के लिए। हमें ... दिया हिलाने के लिए।''


मानस को राहुल ने छत पर रैगिंग के समय भी पकड़ा था।
जूनियरों की भीड़ में से मानस को उसने इशारे से बुलाया। उस दिन उसका रुख मानस को हड़काने का था।
-' 'साले तू कौन है ?''
-' 'बड़े डॉक्टर साहब की झाँट का पिस्सू।'' मानस का उत्तर था।
-' 'तेने लिटरेचर कंठस्थ कर लिया है।'' व्यंग्य में राहुल बोला
-' 'यह तो इस बैच का टेडपोल है।' ' सीनियरों के बीच में से किसी ने पहचाना। कहा- ' 'साला लौंडियाबाज है। यह तो घूमाने भी लगा है।' '
- ' 'सटा ली लौंडे ने। ''
- ' 'मुर्गा बन जा।''
-' 'लौंडिया का नाम तो बता दे ?''
चुप था मानस।
साथियों की तरफ से हुई खुसर-पुसर ने नाम पहुँचाया। ' 'शालिनी।''
- ' 'चल उसे बांच। उसका पिच कैसा है? टमाटर कैसे है? उसके खरबूजे कैसे हैं ?''
चुप था मानस।

-' 'अबे पढ़ने आया है। या लौंडिया घुमाने।''
राहुल शालिनी पर चर्चा नहीं चाहता था। उसने रुख दूसरे तरफ मोड़ा,'' चल बता मम्मियों में से कौन सी पसंद है ?''
-''साले, सीनियरों छोकरियों का सारा लाट बेकार है।''
- ' 'साले के गले में तख्ती लगा के गर्ल्स हॉस्टल भेजेंगे। लिखेंगे मेरे लायक कोई सीनियर लड़की नहीं है।' '
मुर्गा बना मानस चुप था।
- ' 'साले, शालिनी पर दिल आ गया है बाँस का। उसके साथ फिर देख लिया तो समझ ले। चीर के दो टुकड़े हो जाऐंगे तेरे।' '
मानस की शालिनी से नजदीकी राहुल को कांटा बनकर चुभने लगी थी।


० ० ०
रैगिंग रोकने के लिए कॉलेज प्रशासन ने लगाम कसी हुई थी। इसलिए स्टेडियम बिसुरता। चांद अकेला रहता।
खबरी तक नदारद थे। थोड़ी बहुत रैंगिंग बन्द कमरों तक सीमित थी। अफवाह थी कि सादे कपड़ों में पुलिस कालिज में तैनात हें।
राहुल ने मानस को बुला कर कहा, ' 'यार, बैच के टेडपोल को सीनियर अलग से दावत देते हैं। आज की शाम तेरे नाम। पार्टी का सारा इंतजाम हो गया है।' '
पार्टी में सम्मिलित होने के लिए राजा विक्रम सिंह आए। राजा की ख्याति उन्हें पिछले पाँच साल लगातार फेल होते रहने के कारण मिली थी। सालों से रैंगिग करते-करते उब चुके थे। छात्रावास में अपनी कन्दरा में पड़े रहते।
रात किसी हसीना के अखबारी फोटो के उपर दिगम्बर अवस्था में गुजारते। उस अखबार की चिन्दियों को सुबह बाहर फिंकवाने में उन्हें सुख मिलता। छात्रावास की नयी पीढ़ी उनके बारे में किस्से कहानी गढ़ती। सुनती। सुनाती।
मेडिकल परीक्षा देने के लिए विभागीय बुलावा आता। जिसे गर्मियों में ज्यादा गर्मी कहकर ठुकरा देते। सर्दी में वे अपने हिस्से की धूप छोड़ने के लिए तैयार नहीं होते। परीक्षक को अपना सर खुजलाने के लिए विवश कर देने के किस्से विस्फोट की तरह सुनने वाले को दहला देते। जब राजा साहब एस्प्रीन की एक खुराक एक किलो बताऐंगे तो. ..?


पार्टी छात्रावास के एक कमरे में आरम्भ हुई। चिकन, व्हिस्की के साथ 20-20 आवरों का एक रणनुमा क्रिकेट लीग मैच था।
शुराआत में बाउन्सर था। मानस से राजा साहब ने पूछा, ' 'उसकी चुम्मी वुम्मी ली क्या? पेट के नीचे तक हाथ घूमा क्या? नहीं? या तुझे वो अभी तक टहला रही है ?''
मानस चुप था।
' 'मन्ने तो लागे है, कदम्ब के पेड़ पर चढा है। और आकाश में गुल्ली डंडा पेल रहा है। लौंडियों का हीरो बन गया है। क्यों भई स्पाइडर मैन। हमारी माने तो, नीचे का सुख ले। चलता बन। नहीं तो फाइनल तक कुली बन जाएगा। और वो किसी और की कार में बैठ फुर्र हो जाएगी।'' राजा साहब पार्टी में रंग जमा रहे थे।
थर्ड बटन था मानस। व्हिस्की का गिलास लिए पार्टी में सम्मिलित सीनियर लोट-पोट होने लगे।

क्रिकेट मैच में आयोजक नया से नया नशा भरने में जुटे थे। लूटने के लिए जाल बिछा रहे थे। दर्शकों को मैच से सीधा जोड़ना चाहते। टी.वी. स्क्रीन पर लिखा आया, ' 'बताऐं, कौन जीतेगा? भाग्यशाली विजेता को टीम से मिलने का अवसर दिया जाएगा।
व्हिस्की का गिलास गटक कर राजा साहब फिर शूरू हुए, ' 'तुझे क्रिकेट टीम से मिलने का मौका मिल जाए तो... ?'' मानव चुप रहा।
-' 'कम ऑन यार। पहले अपनी गर्दन सीधी कर। यहाँ रैगिंग नहीं हो रही।' '
- ' 'ही। ही।'' राजा साहब ने भी हलकारा लगाया था।
सहज हुआ मानव। बोला, ' 'उस अवसर को बेच दूँगा। जो ज्यादा पैसा देगा, उसे दे दूँगा।'' कमरे में सन्नाटा पसर गया।
' 'क्यों ?' '
- ' 'यह तो बाजार की लीला है। लूटने वाले बाजार में हजारों हाथों से मोहिनी रूप में ऐसी ही लाखों का शिकार करते हैं।''


सीनियर टीम का नशा काफूर हो गया। सबने राजा साहब की ओर देखा। सबको आश्वस्त रहने की नजरों से राजा साहब ने मैच के कान उमेठ कर नीला खेल दिखाने का इशारा किया।
सी.डी. से नीला नशा कमरे में तैरने लगा। स्क्रीन पर जवान शरीर गड्मड होने लगे। राजा साहब ने चिकन तोड़ा, मानव से पूछा, ' 'असल में चिड़िया का मुआयना करा है क्या''?
ना में मानव ने सर हिला दिया।
-' 'यहाँ भी अपना प्यारा देश मात खा गया। पश्चिम की चिड़िया अपने 13वें साल से ही उड़ने लगती है। वह भी कई-कई चिडों के साथ।' '
पार्टी में जलजला आ गया था।
' 'हम रोजाना पिघलते हैं। अपने को फूंक कर तमाशा बन गये हैं। तू तो अक्षत वीर्य है। अमोघ वीर्य हैं। असली मर्द। दिखा मर्दागनी। देख म्हारा पप्पू तो आँखें खोलने लगा। तू भी जगा। मर्द की जान उसके पप्पू में रहती है।' '
राजा साहब पेन्ट की ओर इशारे करते हुए बोले।
मानव हतप्रभ था। सीनियरों की पूरी टीम ठहाकों में हूब गयी।
नीली फिल्म। चिकन। सिगरेट की धुँध। व्हिस्की का सैलाब। ठहाकों की बरसात। इन सबके वीच मानव मर्दानगी की केटवाक पेश करे?
- ' 'खोल पेन्ट। उतार कच्छा। दिखा पभू। बोल। अपना हाथ जगन्नाथ। लगा सड़का।'' राहुल ने कहा।
धम्म से जमीन पर बैठ गया मानव।
राजा साहब तालियाँ पीटने लगे। ठहाकों में बहने लगे। बोले, ' 'हट्टा कट्टा है। पर बेकार है।''


अगले दिन कालिज में मानव ने कई बार सुना, ' 'हट्टा कट्टा है। पर बेकार है।''
बैच के साथी भी मन्द मन्द मुस्करा कर, ' 'हट्टा कट्टा है। पर बेकार है।'' का गीत अलापते लगते।
कालिज जाना मानव का छूट गया। उसे लगता, बिना अपराध किए उसे खाई में फेंक दिया गया है। वह दलदल में फंस गया हे।
छात्रावास में उसके कमरे के सामने से आते जाते भी आवाजें कसी जाने लगी, ' 'बेचारा बेकार है।' '
एक दिन साथियों से मानव झगड़ भी पड़ा। बोला, ' 'जिसको अपने पर ज्यादा घमंड है, करे कैटवॉक। मर्दानगी दिखाए। आए सामने।''
मानव कमरे में पड़ा रहने लगा। दिन के उजाले में भी उसे अंधेरा पसरा लगता। शालिनी उसे दूर जाती लगती।
आँखों की कोरें पनीली हो जाती।
रूम मेट अविनाश उसे समझाता। ' 'फिलहाल तू क्यों नहीं समझ पा रहा है? यह सब षड्यन्त्र है। सीनियरों का करा धरा है। यहाँ तू मर्दानगी की नुमाइश लगाने नहीं आया है।''
मानव सर हिलाता। अपने अंधेरे में डूब जाना।
आशा की किरण अविनाश ने लाकर दी। बोला, ' 'ठीक है। नहीं सह पाता है तो अपना यहाँ से ट्रान्सफर करा ले। नया मेडिकल कालिज होगा। समस्या अपने आप सुलझ जाएगी।''
जैसे डूबते को किनारा मिल गया। मानव को फिर से एक राह दिखायी थी। प्रधानाचार्य कार्यालय ने उसे पन्द्रह-बीस दिन इंतजार करने के लिए कहा। कारण पूछे जाने पर उसने व्यवहारिक उत्तर दिया था। पिता नौकरी
के कारण अक्सर बाहर रहते हें। वह घर के नजदीक रहना चाहता है। माँ को मनोवैज्ञानिक सहारा मिलेगा।


० ० ०
उच्चतम न्यायालय का आदेश था। कालिज नोटिस बोर्ड पर रेगिंग करते हुए पकड़े जाने पर कालिज से निकासन की सूचना चस्पा कर दी गयी। लटकती तलवार से बचने के लिए सीनियरों ने 'फेशर्स पार्टी' आयोजन की घोषणा कर दी। जिसमें कालिज के अधिकारी भी हिस्सा लेते। इसके साथ सत्र की रैगिंग समाप्ति की घोषणा हो जाती।
फ्रेशर्स पार्टी से पहले अन्तिम सामूहिक रेगिंग का कर्मकांड था। हॉस्टल की छत पर एक बार फिर स्टेडियम बन गयी। गवाह चाँद मुस्कराने लगा।
-' 'कौन लाया है 'ग्रेज एनॉटमी' ' पोथा। सीनियर ने पूछा।
- ' 'कौन सा कार्टून है ?' '
जूनियरों के झुंड में खुसर पुसर हुई। मानव बाहर निकला।
-' 'आइये। आइये। डा. झटका।''
-' 'मेडिकल कालिज में कब तक लटके रहने का इरादा है।''
-' 'डेल्टॉयड की नर्व सप्लाई बता।' '
मानव का जवाब देने का मन नहीं था।
? ' 'चौरासिया को गले लगा ले। नदी पार हो जाएगी। नहीं तो लंगर डाले पड़ा रहेगा। पाँच साल में भी वह पाँच किलो की किताब भेजे में नहीं उतरेगी।''
हँसी के सोते फूटने लगे।


हजारों डॉस्टर साधकों की मानव शरीर संरचना पर उनकी आहुतियों से युक्त, 'ग्रेज एनॉटमी' ' गीता, बाइबल और कुरान से संयुक्त रूप से भारी है। शरीर की प्रत्येक धमनी, तंत्रिका, अस्थि व मांसपेशी की रचना व कार्यों की सूक्ष्मतम जानकारी से युक्त। ' 'चौरासिया'' परीक्षा उत्तीर्ण करने का साधन है। यह 'ग्रेज एनॉटमी की कुंजी है।
''यह तो टेडपोल है।'' छत पर पसरे अंधेरे में किसी सीनियर ने पहचाना।
- ' 'टेडपोल। हट्टा-कट्टा टेडपोल।''
ठहाकों का ज्वार उफान पर आ गया। राजीव आगे आ गया। मानव व राजीव एक बार फिर आमने सामने थे।
' 'बता, ग्रेज एनॉटमी में भारत माता कहाँ विराजती हैं।''
मानव चुप रहा।
वह कहना चाहता, यह सभ्यता का संकट है। जैसे इंटरनेट और वीडियो का नीली फिल्में देखने के लिए स्वर्ग और ईश्वर के लिए भटकने वाले हम सबसे ज्यादा प्रयोग करते है। उसी तरह ग्रेज एनॉटमी में स्त्री योनी का चित्र कहाँ है, पूछ कर यह किताब बंद कर देते हैं।
- ''पेट के नीचे रहने वाली का फोटो कहाँ है? नहीं पता ?'' राजीव ने दोवारा पूछा।
-' 'मुर्गा बन जा।''


तभी मानव चौका। अँधेरे में दूर से जलती दो आँखों को देख चिल्लाया, ' 'पुलिस। मेरे पिता पुलिस में है। मैं बता सकता हूँ यह पुलिस की गाड़ी है। अपने हॉस्टल की तरफ आ रही है।''
भगदड़ मच गयी। स्टेडियम आनन-फानन में खाली था। चांद अकेला रह गया। महफिल की निशानी के रूप में एक हवाई चप्पल सी. ओ. पुलिस ने मौकाए वारदात में निशानी के रूप में हूँढ निकाली। इसी निशानी के सहारे वह रैगिंग करने वालों को चिन्हित करना चाहता था।
-मुझे पक्की खबर थी। हास्टल की छत पर रैगिंग हो रही थी। सब को बुलाऐं। साथ में जोड़ी की दूसरी चप्पल लायी जाए।'' सीओ. ने हॉस्टल वार्डन से कहा।
गद्दार का पता वाद में लगाया जाना था। फिलहाल चप्पल की समस्या से निपटना था। 15 मिनट के अन्दर सबको कॉमन रूप में पहुँचने का आदेश था। उच्चतम न्यायालय का आदेश शेर बन कर सबके सामने खड़ा था।


राजीव का मुँह लटक गया। टाँगें काँपने लगी। हालत ऐसी की छू भर देने से भरभरा कर गिरने को तैयार।
-' 'तू क्यों डर रहा है? कह देना, कौन-कौन तेरे साथ थे। चप्पल की वजह से तू अकेला क्यों पकड़ा जाएगा।
सब डूबेंगे।'' राजीव को उसके रूममेट अमन ने समझाया था।
-' 'कालिज से निकाल दिया गया तो मेरे माँ बाप जीते जी मर जाएँगे। धरती तक बेच दी है उन्होंने मेरे लिए।
मैं... मैं... ?'' राजीव का गला रुँध गया।
जूनियरों में रोमांच भर गया। शिकारी स्वयम् शिकार बन जाने वाले थे। सब सोच रहे थे, ' 'अब आएगा मजा।
महीने से सांस लेना तक मुश्किल किए हुए थे। अब सबकी पूरनमासी हो जाएगी।' '
तभी मानव आगे आया। ' 'जोड़ी की दूसरी चप्पल मुझे दे दो,' ' राजीव से उसने चप्पल ले ली थी।


क्षण में स्थिति बदल गयी। हॉस्टल में शोकगीत के स्थान पर राग मल्हार तैरने लगा।
कॉमन रूम में पहुँचने पर मानव ने कहा, ' 'छत पर मेरी चप्पल छूटी थी। मैं जूनियर बैच से हूँ। शाम को बिजली नहीं थी। गर्मी लग रही थी। छत पर पढ़ने के इरादे से गया था। पीछे से बन्दर आ गया। दौड़कर नीचे आया। उसी समय रह गयी।''

- ' 'सच बोल रहे हो ?' '
- ' 'जी सर।'' मानव ने दूसरी चप्पल दिखाते हुए कहा।
जाल से छूटने की अनुभूति के साथ सब लौटे।
राजीव को यकीन नहीं हो रहा था। आकाश से गिरा था। एक पैराशूट के सहारे धरती तक सुरक्षित पहुँच चुका था।


छत एक बार फिर स्टेडियम बन गयी थी। चाँद मुस्कराने लगा था। छत पर हर किसी ने मानव की पीठ ठोकी।
नारा लगा, ' 'हट्टा-कट्टा है। जानदार है।' '

उस रात मानव को अपने आसपास ज्योति कलश से छलकती किरणों की अनुभूति हुई। सुबह शालिनी का फोन था, ' 'कालिज गेट पर इंतजार कर रही हूँ।''
आँखें मल कर मानव ने मोबाइल स्कीन पर दोबारा झाँका। फोन कॉल आयी? या सपना भर था।

मानव के साथ शालिनी प्रधानाचार्य कार्यालय में उसके स्थानांतरण का प्रार्थना पत्र वापस लेने पहुँची। इस बीच उसने पूछा, ' 'तुमने सीनियरों को क्यों बचाया ?' '
- ' 'निकासन रैगिंग के लिए बहुत बड़ा दंड होता।' ' सीधा सा उत्तर था।
- ' 'तुमने सबको आम माफी दे दी। वह भी चप्पल लहराकर। टेडपोल ने इतिहास रच दिया।'' एक मीठी नजर से देखते हुए शालिनी ने कहा था।

-अजय गोयल
निदान नर्सिग होम
फ्री गंज रोड
हापुड़ - 245101
a.ajaygoyal@rediffmail.com

COMMENTS

BLOGGER: 7
  1. शिक्षा प्रद !
    अच्छी लगी कहानी, खास कर कहने का अंदाज़.

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  2. आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (13-02-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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  3. कहानी अच्छी लगी पर अधिक बड़ी है |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  4. कहानी रैगिंग को हूबहू चित्रित करती है. क्षेत्र विशेष में रैगिंग का यही पैटर्न है जिसे कहानी दिखाती है्

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आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र 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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: अजय गोयल की कहानी - टेडपोल
अजय गोयल की कहानी - टेडपोल
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