सुरेश सर्वेद की कहानी - मौसी माँ नहीं, माँ

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बा रह वर्षीय रंजना आयी. आते ही अवन्ति से कहने लगी- दीदी,आपकी सौतेली मां क्या आपको सचमुच खूब सताती थी ? - हां री मेरी मौसी मां बहुत ही निष्ठ...

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बारह वर्षीय रंजना आयी. आते ही अवन्ति से कहने लगी- दीदी,आपकी सौतेली मां क्या आपको सचमुच खूब सताती थी ?

- हां री मेरी मौसी मां बहुत ही निष्ठुर थी. बात-बात पर मुझसे मारामारी करती थी. दिन-रात काम करके भी मुझे पेट भर खाना नहीं मिलता था.

रंजना वहीं जमीन पर ही बैठ गई. उसने गौर से रंजना की ओर देखा कहा-क्या सभी मौसी मां एक समान होती है ?

अवन्ति की दृष्टि रंजना पर जा टिकी. बच्ची का यह प्रश्न उसे अटपटा लगा. अवन्ति ने रंजना की आंखों में वह भाव पढ़ा जिसे वह भोग चुकी थी. कहा-रंजना,आज तुम इस तरह के प्रश्न करने क्यों लगी ?

- ऐसे ही. . . . ।

रंजना ने सच्चाई दबाने का प्रयास किया. अवन्ति पूरी बात जानने के पक्ष में थी. उसने फिर से कुरेदा. अवन्ति बताना तो नहीं चाहती थी मगर वह बताने लगी-दीदी,मेरे पापा भी मौसी मां लाना चाहते हैं .

- क्या . . . ?

- हां दीदी,मैं चाहती हूं आप पापा को मना करो न . . . . ।

बच्ची की मासूमियत पर अवन्ति को दया आ गई मगर वह उसके पापा को मना करे तो करे क्यों ?अवन्ति पशोपेश में थी . उसने कहा- तुम अपने पापा से क्यों नहीं कहती कि वे दूसरी मां न लाये. . . . ।

- मैंने मना किया पर वे मेरी बात नहीं माने कहने लगे -तुम्हारी ही सुविधा के लिए मैं दूसरी शादी करना चाहता हूं .

- जब तुम्हारी कह नहीं माने तो फिर मेरी कह कैसे मानेंगे । मैं उनसे नहीं कह सकती.

- क्यों दीदी,मेरा एक सहयोग नहीं कर सकती. क्या आप भी चाहती हैं कि मेरी मौसी मां आये और मुझ पर अत्याचार करें. . . ?

- नहीं . . नहीं. . . मैं यह क्यों चाहने लगी . . . ?

३ मौसी मां शब्द अवन्ति के लिए विष बन चुका था. वह कामना करती थी-कभी किसी को मौसी मां का छाया भी न पड़े. वह चाहती तो यहां तक थी कि मौसी मां लाने की प्रथा ही समाप्त हो जाये पर यह क्या संभव है ?कदापि नहीं . . . . ।

अवन्ति बमुश्किल दस साल की रही होगी. उसकी मां जो बीमार पड़ी कि खाट से उसका शव ही उठा. अवन्ति अभी मां की स्मृति से बाहर भी निकल नहीं पायी थी उसके पिता शिशुपाल ने उसके समक्ष मौसी मां लाने का प्रस्ताव रखा. पिता के प्रस्ताव प्रस्ताव नहीं था वे तो दूसरी शादी करने का निर्णय ले चुके थे मात्र वे अवन्ति को बता देना चाहते थे तभी तो मना करने पर भी वे दूसरी शादी करने से नहीं चूके.

अवन्ति की नई मां आ चुकी थी. पहली -पहली तो नई मां अवन्ति की खूब पूछ परख करती रही फिर धीरे-धीरे वह अवन्ति से वही व्यवहार करने लगी जो प्रायः मौसी माये करती है. शुरु में उसने अवन्ति को स्वयं भोजन निकाल कर लेने कहा. फिर छोटे-छोटे काम तियारने लगी. एक समय ऐसा आया कि अवन्ति काम की बोझ तले दबने लगी. वह शुरु में तो समझ नहीं पायी कि मौसी मां उसके साथ क्या व्यवहार करना चाहती है पर समय के साथ वह सब समझने लगी . दिन -दिन मौसी मां का व्यवहार कठोर होता गया. और अवन्ति पर काम का बोझ तो बढ़ा पर खाना में कटौती होती गई.

अवन्ति मौसी मां की शिकायत अपने पिता से करना चाहती थी पर वह साहस नहीं कर पाती थी. उसके पिता भी तो वह पिता नहीं रह गये थे जो उसकी सगी मां के समय थे उनके भी व्यवहार में परिवर्तन आ चुका था. पर अवन्ति अपना दुख रखना चाहती थी. एक दिन बहुत साहस कर उसने मौसी मां की शिकायत पिता से कर ही दी. पति के सामने मौसी मां तो चुप रही पर उनके जाते ही अवन्ति पर बरस पड़ी और उसका अत्याचार दिन-दिन बढ़ता चला गया. जब तब वह पिता के समक्ष अवन्ति की शिकायत करने लगी अब तो अवन्ति के पापा अवन्ति के पिता न होकर सिर्फ उसकी मौसी मां के पति रह गये थे. अवन्ति की मौसी मां तो चाहती थी कि वह पढ़े लिखे मत मगर उसने पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी वह पढ़ लिखकर आगे बढ़ती चली गई. वह तकलीफ सह कर पढ़ी और प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होती गई . उसकी प्रतिभा का सम्मान हुआ उसकी नौकरी लग गई.

अपने बुरे दिनों की तस्वीर को वह अब तक नहीं भूल पायी थी. वह चाह तो रही थी कि रंजना के पापा वह गलती न करे जो उसके पिता ने किए थे. उसने रंजना से कहा- मैं तुम्हारे पापा से बात करुंगी ।

उस दिन रंजना आयी. पूछा - दीदी,क्या आपने मेरे पापा से बात की ?

अवन्ति चुप रही । उसने सोचा तो रंजना के पापा से बात करेगी पर कर नहीं पाई थी. रंजना ने कहा - पापा दूसरी शादी करने जा रहे हैं.

- हां दीदी, वे दूसरी मां लाने चले गये हैं .

रंजना की आँखों में दहशत और शरीर में कंपकपी थी. अवन्ति ने उसे समझाने का प्रयास किया - तुम इतना डर क्यों रही हो ? हर माँ एक समान नहीं होती. तुम अपने घर जाओ.

- नहीं दीदी, मैं अब कभी अपने घर नहीं जाऊंगी. मैं अब आपके ही साथ रहूंगी. नई मां मुझे जीते जी मार डालेगी.

- तुम्हारी मौसी मां ऐसा नहीं करेगी, तुम अपने घर जाओ.

- नहीं, मैं नहीं जाती. . . ।

रंजना ढिठाई पर उतर आयी. एक बार तो अवन्ति की इच्छा उसे अपने ही पास रख लेने की हुई, पर यह संभव नहीं था. एक सामान्य सी जान - पहचान थी. उसने बहला - फुसलाकर रंजना को वापस भेज दी.

रंजना दो - तीन तक अवन्ति के घर नहीं आयी. दरवाजे में जरा सी आहट होती तो अवन्ति को लगता - रंजना आयी होगी. सामने रंजना को न पा कर वह निराश हो जाती. अब उसके मन में रंजना के लिए दया उमड़ने लगी. एक अज्ञात आशंका भी उसके भीतर सिपचने लगी. उसे लगने लगा - कहीं रंजना की नई मां ने तो उसे उसके घर आने से तो मना नहीं कर दी. वह रंजना से मिलना चाहती थी. वह उसके घर जाना चाहती थी. चाह कर भी वह नहीं पा रही थी. चार - पांच दिन बाद रंजना उसके घर आयी. रंजना को देखकर अवन्ति उसकी ओर लपकी. रंजना उसके निकट पहुंच चुकी थी. अवन्ति ने रंजना के चेहरे को गौर से देखा. उसे चेहरे में उसने पढ़ने का प्रयास किया - रंजना दुखी तो नहीं. उसकी नई मां उसे प्रताड़ित तो नहीं करती. अवन्ति के भीतर तरह - तरह के प्रश्न हिचकोले खाने लगे. उसने अपनी जिज्ञासा पूरी करने पूछ ही बैठी - रंजना, तेरी नई मां कैसी है ?

रंजना अनुत्तरित रही. उसकी भाव - भंगिमा से अवन्ति को लगने लगा - वास्तव में रंजना की नई मां उसे तपना शुरु कर दिया है. उसकी दृष्टि रंजना के उस हाथ पर गई जिसमें पट्टी बंधी थी. उसे देख अवन्ति कांप गयी. उसने उसके हाथ को पकड़कर पूछा - क्या तुम्हें नई मां ने चोटिल किया ?

रंजना चुप रही. अवन्ति को लगा - उसकी नई मां ने संभवतः कहीं बताने से मना करी होगी. उसने कहा - रंजना, तुम मेरे साथ रहना चाहती थी न,आज से तुम मेरे साथ रहो. मैं यह नहीं चाहती कि किसी मासूम के साथ अत्याचार हो.

रंजना खिलखिलाकर हंस पड़ी. अवन्ति को कुछ समझ नहीं आया. वह खिलखिलाती रंजना को अपलक देखने लगी. रंजना ने हंसी रोक कर कहा - आप तो व्यर्थ परेशान हो रही है. दीदी, मैं आपको लेने आयी हूं. नई मां ने आपको बुलायी है.

- मगर क्यों ?

- अब चलिए भी . . . ।

रंजना जबर्दस्ती करने लगी. आखिरकार अवन्ति को रंजना के साथ उसके घर जाना ही पड़ा. रंजना ने अपनी नई मां से अवन्ति को मिलवाया. नई मां ने दोनों हाथ जोड़कर अवन्ति को नमस्ते किया. अवन्ति के मन में नई मां के प्रति जो भी घृणित विचार आया था , वह रफू - चक्कर हो गया. नई मां ने कहा - आपसे मिलकर खुशी हुई. रंजना सदैव आपके बारे में बातें करती रहती है. कहती है - आप बहुत अच्छी है. . . आपसे मिलने की इच्छा होती थी, पर काम के अधिकता के कारण नहीं मिल पा रही थी. आप बैठिए. मैं चाय बनाकर लाती हूं.

अवन्ति आज्ञाकारी शिष्या की तरह चुपचाप बैठ गयी. जो भी मलाल नई मां के प्रति उसके मन में था, वह खत्म हो गया. उसने रंजना को अपनी ओर खींची. बोली- तुम्हारी नई मां तो बहुत अच्छी लगती है ?

- हां दीदी, वह मुझसे बहुत प्यार करती है. मुझे लगता ही नहीं कि मेरी अपनी मां न होकर यह मौसी मां है.

- फिर तुम मुझसे छिपायी क्यों ? हाथ में चोट कहां से आयी है ?

नई मां चाय बना लायी थी. चाय का कप अवन्ति को थमाते हुए बोली - यह बहुत ही चंचल है. दिन भर उधम मचाती है. कल मैं सब्जी काटने बैठी थी. कहने लगी - सब्जी मैं सुधारुंगी. मना करने पर भी नहीं मानी और चाकू से अपने हाथ को चोट पहुंचा ली.

- क्यों रंजना, मैं ये क्या सुन रही हूं ?

- दीदी, मुझे मां कुछ काम नहीं करने देतीं. कहती हैं - अभी तुम छोटी हो. तुम्हारे खेलने - खाने के दिन है. यहां मैं काम हूं काम करने वाली. अपना ससुराल जाना, वहां काम करना. दीदी, आप ही बताएं - क्या मैं अपने घर काम नहीं कर सकती ?

- आपने सुना न, यह बहुत जिद्दी है. कहा मानती ही नहीं. महिला जीवन भर तो काम करती ही है. बचपने में ही वह सुख क्यों न भोग लिया जाये जिसे पाने बाद में तरसना पड़े ?

नई मां के शब्दों में वजन थी. अवन्ति ने विचार भी नहीं किया था कि मौसी मां ऐसी भी होती है. उसने रंजना से कहा - मां की कहा क्यों नहीं मानती ? हित की ही तो बात करती है.

नई मां सोप - सुपाड़ी लाने चली गयी. अवन्ति ने कहा - रंजना, तुमने क्यों नहीं बतायी, तुम्हारी मौसी मां इतनी अच्छी है ?

- मैं चाहती थी, आप स्वयं मिल कर देखे कि मेरी मौसी मां, मौसी मां है कि मां. . . . ।

अवन्ति ने मन ही मन विचार किया तो उसे लगा - ऐसी ममतामयी महिला ३ मौसी मां हो ही नहीं सकती. वह संतुष्ट थी कि रंजना को ३ मौसी मां नहीं अपितु ३ मां मिली है. . . ।

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सुरेश सर्वेद

साईं मंदिर के पीछे, वार्ड नं 16,

तुलसीपुर, राजनांदगांव

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रचनाकार: सुरेश सर्वेद की कहानी - मौसी माँ नहीं, माँ
सुरेश सर्वेद की कहानी - मौसी माँ नहीं, माँ
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