राकेश भ्रमर का व्यंग्य - चिड़ियाघर

SHARE:

व्‍यंग्‍य आलेख चिड़ियाघर -राकेश भ्रमर संसार एक बहुत बड़ा और अनोखा चिड़ियाघर है। इसमें भांति-भांति के जीव आपको मिलेंगे। उनमें से मनुष्‍य नाम...

व्‍यंग्‍य आलेख

चिड़ियाघर

-राकेश भ्रमर

संसार एक बहुत बड़ा और अनोखा चिड़ियाघर है। इसमें भांति-भांति के जीव आपको मिलेंगे। उनमें से मनुष्‍य नाम का जीव तो सबसे अनोखा है। यह प्राणी रिश्‍तों-नातों में विश्‍वास करता है और सबसे ज्‍यादा इन्‍हीं रिश्‍तों से परेशान भी रहता है। बाप अपने बेटे से परेशान है कि वह अध्‍ययन नहीं करता और दिन-रात मोबाइल पर बातें करता रहता है। स्‍कूल-कालेज न जाकर शहर के बाग-बगीचों की सैर करता है या किसी रेस्‍तरां में लड़कियों के साथ बैठकर लजीज दावतें उड़ाता है और बाप की गाढ़ी (बेईमानी) की कमाई को बेरहमी के साथ खर्च करता है। सास अपनी बहू से परेशान रहती है कि वह रात में उसके पैरों में तेल नहीं लगाती। सास के पैरों में तेल लगाना बहू का कर्तव्‍य है, क्‍योंकि वह दहेज कम लाई है। ज्‍यादा लाती तो सास बहू के पैरों में तेल मालिश करती। भाई अपनी बहन से परेशान है कि वह किसी लड़के के साथ गुलछर्रे उडाती फिर रही है। उसको ताकने के चक्‍कर में वह अपनी पे्रमिका के साथ घूमने नहीं जा पाता है।

कुछ बाप इस बात से परेशान रहते हैं कि बेटा शादी के बाद बहू के कहने पर चलने लगा है। मां-बाप की एक नहीं सुनता और अपना सारा वेतन पत्‍नी के हाथ में रख देता है। घर का सारा खर्च बाप की पेन्‍शन से चलता है। बेटे को अलग भी नहीं कर सकते, क्‍योंकि बहू नहीं चाहती। वह बहुत चालाक है। सास-ससुर की संपत्ति पर उसकी नजर है, क्‍योंकि इस घर की वह इकलौती बहू है। शानदार बंगला छोड़कर किराए के मकान में क्‍यों जाए? सास कुछ कहती है तो बहू धमकी देती है कि उसे दहेज प्रताड़ना के मामले में फंसा देगी। सारी उमर चक्‍की पीसते बीत जाएगी। सास डर जाती है। आज तक उसने चक्‍की क्‍या गेहूं तक नहीं देखा था। पति की कमाई में सारी उमर आटा ही मंगाया। अब क्‍या बुढ़ापे में चक्‍की पीसेगी? वही वाली कहावत है कि बुड़ढी पीसे, कुत्त्ो खाएं। जब अपना ही बेटा नालायक हो तो मां-बाप को कष्‍ट झेलना ही पड़ता है।

पत्‍नी अपने पति से दुःखी रहती है कि उसे छोड़कर उसका पति दुनिया की सारी औरतों को प्‍यार भरी नजरों से देखता रहता है और पति इस बात से दुःखी रहता है कि पत्‍नी उसकी सारी कमाई साज-श्रृंगार और गहनों-कपड़ों में खर्च कर देती है तथा घर चलाने के लिए उसे ओवरटाइम में काम करना पड़ता है।

गरीब बूढ़ा बाप इस बात से दुःखी रहता है कि उसने अपना घर गिरवी रखकर बेटे को पढ़ाया-लिखाया, खुद सारी जिन्‍दगी मेहनत मजदूरी करता रहा और मरते दम तक कर्ज में डूबा रहा कि बेटे को कोई कष्‍ट न हो और पढ़-लिखकर वह अफसर बन जाए। बेटा अफसर बन भी गया, परन्‍तु वह अहसानफरामोश निकला। अफसर बनने के बाद अपनी मर्जी से पे्रम-विवाह कर लिया और शहर में बस गया। दुबारा गांव लौटकर नहीं आया और अब बूढ़ा बाप कर्जा उतारने के लिए कोई रास्‍ता ढूंढ़ रहा है। उसकी समझ में कुछ नहीं आता... क्‍या वह बुढ़ापे में दूसरा बेटा पैदा करे जो उसका कर्ज उतारेगा...

मेरे एक परम मित्र हैं। परम इसलिए कि वह अपने सुख-दुख की दास्‍तानों से प्रतिदिन मेरे सिर में दर्द पैदा करते रहते हैं। मेरे सिवा उनकी दुखभरी दास्‍तानें और कोई नहीं सुनता, परन्‍तु उनकी गाथाएं अखण्‍ड रामायण की तरह चलती ही रहती हैं। कभी खत्‍म होने का नाम नहीं लेती। एक दिन यह सृष्‍टि समाप्‍त हो जाएगी, परन्‍तु दुःखी पतियों की गाथाओं का अंत कभी नहीं होगा।

मेरे मित्र पहले इस बात से दुखी थे कि उनकी शादी नहीं हो रही थी। अक्‍सर वह इस विचार में मग्‍न रहते थे कि वह अभी तक अविवाहित क्‍यों थे? लोगों के पूछने पर कहते, ‘‘यार कोई ढंग की लड़की ही नहीं मिल रही है।'' लेकिन असलियत ये थी कि कोई लड़की उन्‍हें ही पसन्‍द नहीं कर रही थी। जब शादी की उम्र लगभग निकल चुकी थी तब एक गरीब लड़की से बिना दहेज के शादी कर ली। न करते तो वह भी हाथ से निकल जाती, परन्‍तु अब वही लड़की उनकी पत्‍नी बनकर उनको हाथ ही धरने नहीं देती थी।

अब वह इस बात से दुखी थे कि उन्‍होंने शादी ही क्‍यों की? न करते तो ज्‍यादा सुखी रहते। पत्‍नी से दुखी रहने का कारण पूछने पर मन मारकर बताते, ‘‘यार आज समझ में आया है कि स्‍त्री सच में एक महाशक्‍ति है। वह जो ठान लेती है, करके ही मानती है। कोई उसे अपने इरादे से नहीं डिगा सकता। वह जो सोचती है, वही कहती है और जो कहती है उसे करके ही मानती है। यह अलग बात है कि जो कुछ वह सोचती, कहती और करती है, वह सदैव सही ही हो, ऐसा नहीं हो सकता।

मैंने तर्क दिया, ‘‘कोई भी स्‍त्री इतनी बुरी नहीं हो सकती, वरना सभी पति अपनी-अपनी पत्‍नियों को तलाक दे देते। दूसरे देशों की अपेक्षा अपने देश में तलाक की दर काफी कम है।''

‘‘इसलिए कि हर पत्‍नी अपने पति को परमेश्‍वर समझती है। स्‍त्रियां काफी धार्मिक और अंधविश्‍वासी होती हैं। उनका मानना है कि पति-पत्‍नी का रिश्‍ता सात जनम का होता है, इसलिए कष्‍टों के साथ जीवन बिताते हुए भी वह अपने पति को छोड़ना नहीं चाहती। उनके लिए उनके पति-परमेश्‍वर से उनका अटूट रिश्‍ता होता है।''

‘‘लेकिन पति-पत्‍नी को पता कैसे चलता है कि वर्तमान जनम उनका कौन सा जनम है? और अभी और कितने जनम तक उन्‍हें एक साथ रहना है।'' मैंने आश्‍चर्य से पूछा।

‘‘शादी कर लो, फिर स्‍वयं पता चल जाएगा।'' उसने गुस्‍से में कहा।

‘‘गुस्‍सा मत करो, साफ-साफ बताओ।'' मैंने उसे सांत्‍वना देते हुए कहा।

‘‘मेरे यार, कुछ भी पता नहीं चलता कि उन दोनों का साथ-साथ यह कौन सा जनम है। सब बकवास है। बस पति जीवन भर भगवान से प्रार्थना करता रहता है कि यह उनका सातवां जनम हो और पत्‍नी यह कहकर पति का सुख चैन लूटती रहती है कि उनका यह पहला जनम है और अगले छः जनमों तक वह पति की छाती में मूंग दलेगी।'' कहते-कहते वह रुआंसा हो गया था।

मुझसे उसका दुख देखा न गया। मैंने उसे सलाह दी, ‘‘यार एक काम करो, आज शाम उससे जाकर कहो, कि एक ज्‍योतिषी ने तुम्‍हें बताया है कि यह जनम तुम दोनों का साथ-साथ सातवां जनम है, और यह अन्‍तिम है। इसके बाद तुम दोनों अलग हो जाओगे। ज्‍योतिषी ने यह भी बताया है कि इस जनम में अगर तुम दोनों एक दूसरे को दुःख दोगे तो कुंभीपाक नरक में यातना भुगतने के बाद अगले जनम में अलग-अलग तो रहोगे ही, बल्‍कि जन्‍म भी एक भयानक घिनौने कीड़े के रूप में होगा।''

मेरा मित्र मुझे आश्‍चर्य से देखता रह गया। आश्‍चर्य से कम, भय से ज्‍यादा... कुछ पल बाद उसका मुंह खुला, ‘‘यार, तुम क्‍या मेरी बीवी को अहमक समझते हो? तुम अभी तक उससे मिले नहीं हो न! एक बार मिल लो, फिर ऐसी सलाह नहीं दोगे। मैं जैसे ही तुम्‍हारी बात उसे बताऊंगा, वह मेरा गला दबा देगी और सीधे उस ज्‍योतिषी के पास ले जाएगी, जिसका इस दुनिया में कोई अता-पता नहीं है।''

मेरे पास अपने मित्र के दुख को दूर करने का दूसरा कोई उपाय नहीं था।

दुःख तो मैं किसी का दूर नहीं कर सकता। इस संसार में कोई किसी का दुख दूर नहीं कर सकता। हम सब एक दूसरे के दुख को बढ़ाते ही रहते हैं। राजनीतिक दल चुनावों के दौरान जनता के दुख दूर करने का बीड़ा उठाते हैं। परन्‍तु चुनाव के बाद जनता के दुखों में और इजाफा हो जाता है। हम केवल आश्‍वासन देते हैं। जो लोग आश्‍वासनों पर विश्‍वास कर लेते हैं, वह सदा कष्‍ट और दुख उठाते हैं। अहमक लोग दूसरों पर जल्‍दी विश्‍वास कर लेते हैं और सदा ठोकर खाते रहते हैं, मन में भी और तन में भी... कई बार तो पीछे चलने वाला भी उन्‍हें ठोकर मारकर गिरा देता है। इस तरह देखा जाए तो हर आदमी स्‍वयं से भी दुखी है और दूसरों से भी।

राजनीतिक दल अगर जनता को झूठे आश्‍वासन देकर दुखी करते हैं, तो जनता भी उन्‍हें अगली बार सत्ताच्‍युत करके दुखी कर देती है। इसीलिए आजकल कोई भी सरकार विकास और प्रगति का काम नहीं करती। वह अच्‍छी तरह जानती है कि अगली बार जनता उन्‍हें सत्ता की गद्दी तक नहीं पहुंचाने वाली है, अतः वह पूरे पांच साल तक नेता अपनी तिजोरियां भरते रहते हैं और इस बात से दुखी रहते हैं कि अभी बहुत कम कमा पाए हैं। पांच साल और मिल जाते तो कुछ और कमा लेते।

साधु महात्‍मा इस बात से सदैव दुखी रहते हैं कि उन्‍होंने माया-मोह और लोभ-लालच को त्‍यागकर सन्‍यास लिया था, परन्‍तु मन से इनको पूरी तरह नहीं निकाल पाए। इन्‍हीं की तरफ इन्‍द्रियों का पलायन होता है। जनता को मीठे-मीठे प्रवचन सुनाकर करोड़ों-अरबों रुपये जमा भी कर लिए, परन्‍तु अब चेले उस पर आंख गड़ाए बैठे हैं। पता नहीं कब गुरूजी का टेंटुटा दबा दें और सारा माल-मत्ता लेकर चम्‍पत हो जाएं। आजकल महात्‍माजी को ठीक से नींद भी नहीं आती। बेचारे बड़े-बड़े आश्रम बनवाकर और अथाह धन-सम्‍पत्ति इकट्ठा करने के बाद भी सुख-चैन से नहीं रह पा रहे हैं। अब बताइए भला, इनके दुख का कोई अंत है?

स्‍कूल प्रबन्‍धन के लोग इस बात से परेशान हैं कि उनके स्‍कूल में बहुत कम बच्‍चे प्रवेश ले रहे हैं। अतः उनके स्‍कूल का कलेक्‍शन काफी कम है। दूसरे स्‍कूल वाले उनसे ज्‍यादा कमा रहे हैं। बच्‍चों को अपने स्‍कूल की तरफ खींचने के लिए वह झूठे आश्‍वासन देते हैं और ऐसा प्रचारित करते हैं कि शहर का वह नम्‍बर वन का स्‍कूल है और वहां प्रवेश आसानी से नहीं मिलता है। किसी बड़े अधिकारी और मंत्री के कहने पर ही वहां प्रवेश मिलता है। यह प्रचारित होते ही वहां प्रवेश लेने के लिए बच्‍चों के अभिभावकों की लंबी कतार लग जाती है। प्रवेश किसी को मिले चाहे न मिले, परन्‍तु प्रवेश पत्र बेचकर ही स्‍कूल करोड़ों रुपये कमा लेता है। बाद में जिन बच्‍चों को प्रवेश मिल जाता है, उनके मां-बाप इस बात से परेशान रहते हैं कि मोटा डोनेशन और फीस देने के बावजूद ठीक से पढ़ाई नहीं होती और जिनके बच्‍चों को प्रवेश नहीं मिलता है, वह इस बात से दुखी रहते हैं कि एक अच्‍छे स्‍कूल में प्रवेश पाने से उनका बच्‍चा वंचित रह गया।

इस तरह देखा जाए तो हर आदमी एक दूसरे से परेशान और दुखी है। इसी कारण वह हर घड़ी पंछियों की तरह चें...चें....करता रहता है।

(राकेश भ्रमर)

ई-15, प्रगति विहार हास्‍टल,

लोधी रोड, नई दिल्‍ली-110003

दूरभाषः 011 24363599

मोबाइल- 9968020930

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. राकेश भ्रमर का आलेख पढने के बाद लगा ये सब कुछ हम सोचते हैं कि इंसान को किसी भी तरह चैन नहीं है , अगर भगवन ने बारिश करा दी तो कहेगे सब कीचड हो गया ... अगर धुप है तो कितनी गर्मी है .. आदि आदि .... पर ये दुनिया एक अजायबघर भी है ये तो सोचा न था .... पढ़कर अच्छा लगा

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: राकेश भ्रमर का व्यंग्य - चिड़ियाघर
राकेश भ्रमर का व्यंग्य - चिड़ियाघर
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2013/05/blog-post_9291.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2013/05/blog-post_9291.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content