राजीव आनंद की कहानी - सच्चा दोस्त

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सच्‍चा दोस्‍त पीठ पर बोरा टांगें कूड़ा-करकट के बीच अपनी काम की वस्‍तुएं चुनता बिरजुआ पोश मोहल्‍ले के एक घर में किसी को नहीं पाया तो हल्‍के ...

सच्‍चा दोस्‍त

पीठ पर बोरा टांगें कूड़ा-करकट के बीच अपनी काम की वस्‍तुएं चुनता बिरजुआ पोश मोहल्‍ले के एक घर में किसी को नहीं पाया तो हल्‍के से गेट खोलकर गमले में करीने से खिला काला गुलाब के एक फूल को अभी तोड़ा ही था कि घर का माली उसे देख लिया और धमकाते हुए उसके पीछे लपका तब तक बिरजुआ भाग खड़ा हुआ. माली ने उसे फटकारते हुए गाली भी दिया, साला, सूअर का पिल्‍ला !

बिरजुआ हंसते हुए दूसरे रास्‍ते पकड़ने के पहले एक हवाई गाली उस माली को दिया, साला, अमीर का कुत्‍ता.

शहर के इस मोहल्‍ले में बहुत दिनों बाद आया था बिरजुआ. इस मोहल्‍ले में एक लड़कियों का कॉलेज है, लड़कियां पढ़ती है इस कॉलेज में. कॉलेज का चपरासी पहचानता था बिरजुआ को. तू ही न उस दिन पीछे के दीवार से झांक रहा था ?झिंझरी मोहल्‍ले में रहता है न साले !यहां फिर क्‍या करने आया है ?

बिरजुआ ने हिम्‍मत कर प्रतिकार किया, गाली काहे देता है ? हम यहां कूड़ा चुन रहे है, किसी का कुछ ले रहे है क्‍या ?

साले, मुंह लगाता है ? मार के टांग तोड़ देंगे. साला कॉलेज के अंदर झांकता है, भागो साले.

उस दिन बिरजुआ अपने दोस्‍त रामू से पूछा था, ये साला कॉलेज का चपरासी हमको काहे को गाली देता है, बिना मतलब ! बिरजुआ रामू के उदास मुंह को देखकर समझ गया था कि रामू का सौतेला बाप उसे आज फिर बिना खाना दिए ही घर से खदेड़ दिया है. अपने दोस्‍त को समझाने के लिए बिरजुआ कहा, अरे तुमको तो खाने कभी-कभी मिल भी जाता है और फिर भी तू हिम्‍मत हार जाता है, मेरा तो अपना बाप है लेकिन मुझे कभी एक शाम भी ठीक से खाना नहीं मिलता है. मार और गाली तो साला सोते-जागते मिलता है, ये लात-जूते, मार-गाली तो अपना नसीब है रामू, बिरजुआ छोटा दार्शनिक की तरह रामू को समझाया.

रामू बोला छोड़ दुख की बात, कॉलेज में लड़की लोग पढ़ने जाती है और तू कॉलेज के अंदर झांकेगा तो चपरासी तुमको डांट और गाली नहीं देगा क्‍या ?

दूसरे दिन मोहनपुर इलाके में बिरजुआ कूड़ा के ढ़ेर को खंगालने पहुंचा. रास्‍ते में चूडीबाबा के मजार जाने वाले रास्‍ते में देखा कुछ बच्‍चों का झूंड़ एक दो बकरियों के गले में घंटी का माला डालकर दौड़ा रहे है, बिरजुआ रूक गया और उसी झुंड में शामिल हो गया, ताली बजा बजाकर बकरियों के पीछे-पीछे दौड़ने लगा. वहां उसकी मित्रता फिरोज से हो गयी जिसे बच्‍चे लोग फिरोजवा कह कर पुकार रहे थे. फिरोजवा उसे देख कर पूछा मजा आया न, क्‍या नाम है तुम्‍हारा, बाप क्‍या करता है, कहां रहते हो, मां, भाई-बहन है ?

बिरजुआ बताया मां उसकी मर चुकी है, बाप दूसरी औरत घर पर रखा लिया है, मुझे बहुत मारती है. बाप दारू पीकर सोता रहता है, कबाड़ी के यहां कबाड़ बेचकर एक-दो रूपया जो होता है, सब छीन लेती है और बासी भात खाने दे देती है, भूख नहीं मिटता, साला घर जाने का मन नहीं करता है.

फिरोजवा सून ही रहा था कि पीछे से उसका बाप आ धमका और कान ऐंठते हुए फिरोजवा को कहा, क्‍यों बे, सारा दिन सड़क पर हरामीगिरी करता रहता है.

फिरोजवा बोला, आज जुम्‍मा है, गैराज में छुट्‌टी है. फिरोजवा के बाप ने आखें लाल करते हुए बोला, छुट्‌टी है तो घर क्‍यों नहीं गया बे, एक दिन साले मार कर चमड़ी उधेड़ देंगे, चल घर जा.

बाप जब चला गया तो फिरोजवा पास के सरकारी नल से बेरोकटोक टपकते पानी से हाथ भिगा कर चेहरे को पोंछ लिया, मानो बाप के डांट, गाली, फटकार को धो कर फेंक दिया हो.

सभी बच्‍चे फिरोजवा के बाप द्वारा फिरोजवा के डांट पड़ने के दौरान ही भाग खड़े हुए थे सिर्फ बिरजुआ खड़ा रह गया था.

बिरजुआ बोला, अच्‍छा दोस्‍त चलते है फिर मिलेंगे.

कहां जा रहा है तू, फिरोजवा पूछा ?

चाची के घर के पास कूड़ों का ढ़ेर है वहीं जा रहा हॅूं, बिरजुआ कहा.

कूड़ा चुनता है क्‍या तू, फिरोजवा पूछा.

हां, हां, पहले भी तो बताया था, बिरजुआ कहा.

चाची तेरी कहां रहती है, फिरोजवा उत्‍सुकता से पूछा.

बोड़ो के पास, बिरजुआ बताया और पूछा तुम कहां रहते हो और किस गैराज में काम करते हो ?

यह रास्‍ता जहां निकलता है न वहीं मेरा घर है और भंडारीडीह में गैराज है जहां हम काम करते है. चलो दोस्‍त देखे तुम्‍हारे चाची का घर, फिरोजवा ने कहा.

तूम ? मेरे चाची के घर तुम क्‍यों जाना चाहते हो ? बिरजुआ ने आश्‍चर्यचकित हो कर पूछा. बिरजुआ नहीं चाहता था कि अभी-अभी फिरोजवा से जान पहचान हुई है, उसे लेकर अपनी चाची के घर जाए, पर फिरोजवा तो गोंद की तरह चिपक गया था. बिरजुआ को एक तरकीब सूझी, सरकारी नल पर वह अपना बोरा एक तरफ रख दिया, नंगधंड़ग होकर फिरोजवा को बोला आओ नहाते है. फिरोजवा अपने पाकेट के पेंट से भीटा साबुन निकालकर अपनी कमीज धोने लगा और धोकर वहीं झाड़ी के उपर सूखने के लिए फैला दिया. उधर से जाने वाले लड़के रूक कर दोनों को देखते, एक लड़के ने कहा कि यहां लंगटे होकर क्‍यों नहा रहा है बे ?

फिरोजवा चुपचाप अधसूखे कमीज पहन लिया और बिरजुआ पजामा पहनते हुए उस लड़के से कहा देखो सुबह से कुछ खाया नहीं है और अभी लड़ने का भी मन नहीं है इसलिए चलते है, बाद में कभी हिसाब कर लेंगे और अपने चाची के घर की तरफ चल दिया. थोडी दूर जाने के बाद देखता है कि फिरोजवा भी पीछे से चला आ रहा है. अब दोनों साथ-साथ चल रहे थे.

फिरोजवा पूछा अरे बिरजुवा तुम तो हिन्‍दू हो फिर यह ताबीज क्‍यों पहना है रे ?

बिरजुआ बोला, कमाई बढ़ाने के लिए चूड़ीबाबा के मजार पर गया था तब वहीं ताबीज लिया था.

पंडित से क्‍यों नहीं मांगा, फिरोजवा ने व्‍यंग्‍य किया.

पंडित के यहां दो-चार आने में कोई ताबीज नहीं मिलती, पंडित तो सोने और चांदी की ताबीज की बात करने लगते है, बिरजुआ ने कहा. अरे हमको पंडित और मौलवी से क्‍या लेना-देना, कमाई बढ़ानी थी सो ले लिया ताबीज, बिरजुआ कह रहा था.

चाची के यहां जब बिरजुआ पहुंचा तो आज उसकी चाची उसपर बहुत गुस्‍सा कर रही थी. ई कौन है रे बिरजुआ ? तुम्‍हारा बाप तुमको पी के पीटता है, दुनिया भर के लुच्‍चों के साथ इधर-उधर घूमता रहता है, कूड़ा तो ठीक से चुनना नहीं है, अरे पैसा नहीं कमाएगा तो सौतेली मां मारेगी नहीं क्‍या ? चल घर जा.

बिरजुआ को समझ में नहीं आ रहा था कि आज चाची उसपर क्‍यों बिगड़ गयी, फिर सोचा शायद फिरोजवा को देखकर बिगड़ी होगी.

फिरोजवा पूछा, अच्‍छा एक बात बताओ दोस्‍त, अंदर जो बैठता था वहीं तुम्‍हारा चाचा था क्‍या ?

नहीं तो, चाचा तो सूरत कमाने गया है, बिरजुआ बोला.

तब अंदर कौन बैठा था रे बिरजुआ, फिरोजवा पूछा.

कहां ? बिरजुआ पूछा.

वहीं बाहर वाला खोली में, हम झांक कर देखे तो तुम्‍हारी चाची बाहर आयी और तुमको डांटने लगी, फिरोजवा बोला.

बिरजुआ कुछ नहीं बोला, चुप हो गया.

थोड़ी दूर साथ चलने के बाद बिरजुआ पूछा अच्‍छा बताओ तुम कितना कमा लेते हो गैराज में ?

एक हजार रूपया महीना, सुबह चाय और दो ननखटाई बिस्‍कुट और शाम को नाश्‍ता और रात 8 बजे गैराज बंद हो जाता है, फिरोजवा बताया.

तू भी काम करेगा क्‍या, फिरोजवा पूछा बिरजुआ से.

रास्‍ते में आने-जाने वालों के मुंह से सुन कर फिरोजवा बोला मस्‍जिद मोड़ पर कुछ हुआ है, चल जल्‍दी चल, दोनों लगभग दौड़ते हुए मस्‍जिद मोड़ पहुंचे तो पता चला, पाकेटमारों के गिरोह का एक नाबालिग बच्‍चा पकड़ा गया था जिसे मोहल्‍ले वाले मारपीट रहे थे, बच्‍चा बेहोश हो गया, कुछ लोगों के सलाह पर नेता टाइप लोग बच्‍चे को अस्‍पताल ले जा चुके थे. दोनों को देर से पहुंचने का पछतावा हो रहा था.

बिरजुआ वहीं एक पान की दूकान से चूना ले रहा था, तब तक फिरोजवा भी वहा आया, क्‍या कर रहा है फिरोजवा ने पूछा ? खैनी बनाने के लिए चूना ले रहा था, खैनी खाएगा, बिरजुआ ने पूछा.

नहीं हम सीगरेट पीते है, फिरोजवा ने कहा.

खैनी खाते ही, बिरजुआ बोला, चलते है दोस्‍त, आज बहुत मजा आया.

सुनो बिरजुआ, हम भी तुम्‍हारे साथ चले, फिरोजवा पूछा ?

अरे नहीं, दोस्‍त, घर पर मेरी सौतेली मां और बाप तुमको भी पीटेगा, बिरजुआ बोला.

तो तू काम करेगा क्‍या गैरेज में, फिरोजवा पूछा.

पूछ कर बाप से बतायेंगे, बिरजुआ बोला और जाने लगा.

रूको दोस्‍त तुम्‍हें छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा, फिरोजवा बोला.

बिरजुआ दांतें दिखाकर हंस दिया.

अरे तुम्‍हारे दांत तो बड़े चमकीले है, किससे दांत मांजते हो, फिरोजवा पूछा.

छाई से और पुटूस के डंडी से चीभ साफ करते है, बिरजुआ बोला.

हम भी कल से छाई से दांत साफ करेंगे, फिरोजवा बोला.

जाते देख बिरजुआ को फिरोजवा रूआंसा सा हो गया, बिरजुआ पूछा, क्‍या हुआ ?

आज हमको मेरा बाप बहुत मारेगा, खाल उधेड़ देगा, फिरोजवा बोला. जब तक बच्‍चे के गिनती में आयेंगे तब तक लात-जूते सहने ही पड़ेंगे. साला घर जाने का मन नहीं करता, फिरोजवा बोले जा रहा था.

मस्‍जिद मोड़ के पास दोनों कुछ देर और खड़े रहे. कहीं पास ही में बैंड़ बाजा किसी के शादी का बनजे लगा. बिरजुआ बोला इस महीने बहुत लगन है. हमारे झिंझरी मोहल्‍ला में तो हर रोज ही किसी न किसी की शादी हो रही है.

फिरोजवा बोला, अरे छोडो दोस्‍त, बेगानी शादी में अब्‍दुल्‍ला दीवाना ! हमलोगों को शादी में क्‍या करना जब तक बच्‍चा है क्‍या शादी और क्‍या बारात, फिरोजवा झुंझलाते हुए बोला.

बिरजुआ जैसे ही जाने को हुआ फिरोजवा ने उसका हाथ पकड़ लिया, मुझे डर सा लग रहा है दोस्‍त.

डर काहे क्‍या, बिरजुआ बोला.

बाप दोपहर में ही घर जाने को कहा था, अभी शाम तक घर नहीं गये है, फिरोजवा बोला.

तो फिर चल मेरे साथ, मेरे घर, जो होगा देखा जाएगा, बिरजुआ बोला.

सच, फिरोजवा खुश हो गया.

दोनों झिंझरी मोहल्‍ला के तरफ जाने लगे.

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राजीव आनंद

प्रोफेसर कॉलोनी, न्‍यू बरगंड़ा, गिरिडीह

झारखंड़, 815301

मोबाइल 9471765417

COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. बहुत सुंदर कहानी ।

    जवाब देंहटाएं
  2. Akhileshchandra srivastava8:12 am

    Rajeev ji gareeb bachpan ka achcha chitran kiya hai jab kahin se pyar aur sahi dekhbhal nahin milti to ve apradh ki duniya men pahunch jate hai.itne marmik chitran ke liye badhai

    जवाब देंहटाएं
  3. maarmik chitran....par bhasha par dheeli pakad mere andar ke pathak ko bandh nahin payi.....samajh nahin aaya kahani hindi ki hai ya kisi aur bhasha ko hindi mein likha gaya

    जवाब देंहटाएं
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रचनाकार: राजीव आनंद की कहानी - सच्चा दोस्त
राजीव आनंद की कहानी - सच्चा दोस्त
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