‘‘अंकल, चार चाय और चार सिगरेट लाना।‘‘ कमलेश ने ऊंची आवाज लगाते हुए, शंकर चाय वाले को कहा। ‘‘अंकल...लम्बी वाली सिगरेट लाना।‘‘ मित्रों के करी...
‘‘अंकल, चार चाय और चार सिगरेट लाना।‘‘ कमलेश ने ऊंची आवाज लगाते हुए, शंकर चाय वाले को कहा।
‘‘अंकल...लम्बी वाली सिगरेट लाना।‘‘ मित्रों के करीब आता हुआ, सुरेश। शंकर चाय वाले को कहने लगा।
नीम के पेड़ के नीचे शंकर चाय का थैला लगा हुआ था। उच्च शिक्षा अध्ययन करने वाले युवकों के साथ आस-पास की दुकानों व आने-जाने वाले लोगों का विश्राम कुछ समय के लिए यहां होता ही था। चाय व फैशन चलन से जुड़ा उपयोगी सामान जैसे पान, बीड़ी, सिगरेट, गुटखा आदि इस छोटे से कैबिन में सरलता से मिल जाया करता था। शंकर की आमदनी चाय से भी ज्यादा इस सामान के क्रय से होती थी। क्योंकि चाय से ज्यादा इन सामानों का चलन है, इस स्डैंडर्ड युग में।
‘‘अरे, यार। चार सिगरेट क्यों मंगा रहा हैं ? तू जानता है कि सुभाष सिगरेट नहीं पीता।‘‘ मुकेश ने कमलेश को सचेत करते हुए कहा।
‘‘नहीं पीता था। पर आज से पीना शुरू कर दिया। आखिर स्डैंडर्ड मैंटेन भी तो करना पड़ता है। इस युग में इसके बिना जीवन जीने वालों को हीन दृष्टि से देखा जाता है।‘‘ सुरेश ने हल्के हाथ से सुभाष की पीठ अपनी तरफ खींचते हुए कहने लगा।
‘‘अरे, यार। फैशन से ज्यादा प्रभाव तो तेरे व्यंग्य भरी बातों से पड़ा। बैचारा क्या करता। ना चाहकर भी इसे यह स्डैंडर्ड कल्चर स्वीकार करना ही पड़ा।‘‘ मुकेश ने सुरेश की तरफ देखकर कहा।
कमलेश के साथ सुरेश और मुकेश जोरों का ठहाका लगाकर हँसने लगे। हँसी का रूझान इतना ज्यादा था कि आस-पास चाय पीने वाले लोग इनको घूर-घूर कर देख रहे थे।
लम्बी सिगरेट का धुआँ, चक्र बनाता हुआ; मुकेश के मुंह से बाहर निकलकर सुरेश की तरफ बढ़ने लगा। धुआँ, सुदर्शन चक्र के समान नजर आ रहा था। धुएं की शक्ति सुदर्शन चक्र से भी तेज नजर आ रही थी। चक्र सिर्फ शरीर का एक हिस्सा काटकर ही संतुष्ट होता है जबकि धुआँ पुरे शरीर को अपने जाल मेंफंसाकर प्रत्येक हिस्सें को गला-गला कर ही शांत होता है।
सुरेश ने हल्की सांस मुंह में लेते हुए, सिगरेट का कस गले से नीचे उतार कर मुकेश की तरफ जोर से उगलना शुरू किया। धुआँ, क्रिकेट के भगवान के स्टेट ड्राईव शॉट की गति से सामने आ रहे सुदर्शन चक्र के आर-पार होकर चारों तरफ फैल गया।
कमलेश ने लम्बी सिगरेट का, लम्बा कस लगाकर, मुंह व नाक से धुआँ, बाहर देना शुरू किया। तेज गति से निकलता हुआ धुआँ, लम्बी लकीर बनाता हुआ आसमान में जा रहा था। जिसे देखकर यह महसूस हो रहा था जैसे अभी-अभी नासा से अंतरिक्ष के लिए यान भेजा गया हो। क्योंकि सुदर्शन चक्र व स्टेट ड्राईव शॉट को पलक छपकने से पहले ही आर-पार करता हुआ, आसमान में अपनी प्रसिद्धि का झंड़ा फहरा रहा था।
सुभाष के मुंह से धुआँ, रूक-रूक कर बाहर निकल रहा था। पहली बार सिगरेट के कस से खांसी के साथ बाहर आता धुआँ, अलग ही रूप दिखा रही था। जिसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कोई मेढ़क उछलता हुआ चला आ रहा हो।
चारों मित्रों के मुंह से निकलने वाले धुएं अपना-अपना स्थान सुरक्षित करते हैं। आज ही एडमीशन लेने वाले धुएं को अपनी दुनियां व स्वयं की योग्यता और बढ़ती विकास गति को व्यक्त एक-दूसरे के माध्यम से करवाते हैं। जिसे देखकर महसूस हो रहा था जैसे कोई गाईड़ वर्तमान समय की वास्तविक जानकारी दे रहा हो।
‘‘देखों मित्रों! इसका आज ही शरीर के साथ एडमीशन हुआ है।‘‘ सुभाष के मुंह से मेंढक की तरह उछलते धुएं की तरफ संकेत करता हुआ, स्टेट ड्राईव धुआँ, मुकेश व कमलेश के धुएं को कहने लगा।
‘‘तभी यार, मैं सोच रहा हूँ कि ये गले की बदबू कहा से आ रही है। यार, तुम तो जानते ही हो की हमारी दुनियां को फेफडों का कस ही जीवित रखता है।‘‘ कमलेश के मुँह से निकला धुआँ, आसमान में लकीर बनाता हुआ, मुकेश व सुरेश के धुएं को कहता हुआ आसमान छू रहा था।
‘‘सीनियरजी, जल्द ही यह आपकी व हमारी दुनियां की संजीवनी बूटी फेफड़ों से निकाल-निकाल कर लेकर आएगा, बस आप आशीर्वाद बनाए रखे।‘‘ सुदर्शन चक्र, मेंढ़क की सिफारिश कर रहा था। आज के युग में यह सिफारिश ‘तथा अस्तु‘ के आशीर्वाद के समकक्ष अपना काम कर देता है जिसे प्रत्येक स्तर पर सामान्य रूप में देखा जा सकता है। सभी धुएं के समक्ष सुभाष का धुआँ, अपनी स्थिति तुच्छ समझकर जमीन को चीरता हुआ अन्दर ही अन्दर अदृश्य हो रहा था।
मुकेश के मुंह से निकलता धुआँ, अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले धुएं का परिचय, सुभाष के धुएं को देता है-‘‘रॉकेट की तरफ अंतरिक्ष में जाते हुए जिसे तुम देख रहे हो, वह हम सब में सीनियर है। इनका शरीर से एडमीशन विद्यालय लेवल से ही हो गया था। आज शरीर के दाँय व बाँय फेफड़ों पर इनका अधिकार है। जल्दी ही यह अपना शोधकार्य पूरा करके असाध्य उपाधि प्राप्त करेंगे।‘‘
सुभाष का धुआँ, कमलेश के धुएं को देखकर ईर्ष्या में जलने लगा। आखिर सबसे पहले असाध्य उपाधि प्राप्त करने वाला आज ये प्रभाव है तो सम्पूर्ण शरीर पर अधिकार करने के बाद ना जाने किस रूप व नाम की पहचान जोड़कर इस दुनियां पर राज करेंगा।
सुरेश का स्टेट ड्राईव धुआँ, मुकेश के धुएं का परिचय देता है-‘‘ये सुदर्शन चक्र की तरह निकला धुआँ, मेरा सीनियर है। महाविद्यालय के फस्ट ईयर से ही इनका एडमीशन शरीर से हो गया था। महाविद्यालय से ही तेज प्रगति इनकी रही। शरीर के दाँय फेफड़े पर सम्पूर्ण अधिकार कर बाँये फेफड़े का कार्य भी आधा पूरा कर चूके है। देखना सीनियर सर के पीछे-पीछे इनका कार्य भी पूर्ण हो जायेगा। लेवल भी सर से अच्छा रहेगा।‘‘
जमीन पर पड़ा-पड़ा सुभाष का धुआँ अपनी दिन-हीन स्थिति व्यक्त करा रहा था। मेंढ़क की तरह उझल-कूद भी बन्द हो गई थी। मुकेश का धुआँ अपनी योग्यता व परिचय सुनकर लहराता हुआ, नीचे से ऊपर की तरफ उड़ता लगा, अपनी बढ़ती प्रगति बता रहा था।
कमलेश का धुआँ अकड़कर अपने सीनियर होने का अंहकार दिखाते हुआ, सुभाष के धुएं से कहने लगा-‘‘सुन बे, आज तक जो हमारे सामने जूनियर था। आज वो तेरा सीनियर है। उच्च अध्ययन में आते इसने एडमीशन शरीर से लिया। तेरी तरह इन्तजार नहीं करता रहा। इसने हमारे ज्ञान का भरपूर लाभ उठाया और उठा रहा हैं। जिस गले को पार करने में मुझे समय लगा था। उससे भी कम समय अर्थात प्रथम सेमेस्टर में ही इसने प्राप्त कर अपनी योग्यता का परिचय दिया है। आज ये हमसे ज्यादा धुआँ निकालने की क्षमता भी रखता है।‘‘
सीनियर से अपना परिचय सुनकर सुरेश के मुंह से निकला धुआँ कुछ देर सीधा निकलने के बाद लहराता हुआ समग्र फैले धुएं को चीरता हुआ आगे निकलकर हल्की हँसी हँस रहा था। जिसे देख महसूस हो रहा था कि बूढ़ों की दौड़ में जवान जल्दी मंजिल प्राप्त करने की लालसा रखते हैं।
‘‘सीनियरजी। आज आप कुछ ज्यादा ही खुश नजर आ रहे हो। क्या देखा आपने आसमान की यात्रा करते हुए।‘‘ मुकेश का धुआँ जानने की जिज्ञासा लिए पूछने लगा।
‘‘जल्दी ही ये मानव जीवन हमारे शिकंजे में फंसा हुआ होगा। आसमान में मेरी, उपाधि ग्रहण प्रदान कराने वाले स्वामी से बात हुई। मुझसे कह रहे थे ‘‘शिष्य, ये सुनहरी दुनियां जो अलग-अलग नामों से जानी जाती है। बहुत जल्दी ही इसे नया नाम मिलेगा। हमारा लक्ष्य जल्द ही पूरा होगा। हमारा प्रभाव इस दुनियां में खिले फूलों से ज्यादा अधखिले व खिलने को बेकरार कलियों पर राज कर रहा हैं। जो हमे अपनाते नहीं। वो, हमें अपनाने वाले लोगों द्वारा निकालने वाले धुएं के कारण धीरे-धीरे हमारे शिकंज में आ रहे है। आखिर, हमारा धुआँ मानव शरीर को अन्दर से और स्वच्छ वातावरण को बाहर से दूषित करता हुआ अपना प्रभाव जमा रहा है। मानव जीवन रक्षक गैसों को भी नष्ट करने का काम युद्ध स्तर हो रहा है। हमारा धुआँ, परमाणु शक्ति से किसी भी स्तर में कम नहीं‘‘
कमलेश का धुआँ, अपनी दुनियां का ज्ञान बता रहा था। जिसे सुनकर जूनियरों के अंतर्गत उत्साह सुरजमुंखी के फुल से भी ज्यादा खिला हुआ रूप दिखा रहा था।
‘‘आखिर सीनियरजी, हमारे लक्ष्य को ये दुनियां देखकर भी अनदेखा क्यों करती है.....?
‘‘अरे, तू जानता नहीं, हमारे पास इस दुनियां को मोहित करने की शक्ति है।‘‘ सुरेश का धुआँ, झूमता हुआ, मुकेश की बात काटकर बीच में ही बोलने लगा।
अचानक तेज हवा के झोंके ने आपस में बातें कर रहें, सभी धुआँ की सभी उड़ाकर उस तरफ ले गया, जहां से वापसी सम्भव ही नहीं। इस स्थिति को देखकर महसूस हो रहा था कि हवा का झोंका अपने साथ युवापीढ़ी की चेतना लेकर आया हो।
सुभाष की सिगरेट अभी कुछ शेष रह गई थी। जिसे वह मुँह से कम व हवा से ज्यादा खींच रहा था।
कमलेश, सुरेश का उतरा चेहरा देखकर कहने लगा -‘‘क्या हुआ सुरेश, तेरा चेहरा आज उदास नजर आ रहा है ?‘‘
सुरेश चाय की प्याली, टेबल पर रखते हुए कहने लगा-‘‘यार, रह-रह कर प्रदीप की बातें मन को झंझोरती रहती है।‘‘
मुकेश, जोरों का ठहाका लगाकर हँसते हुए कहने लगा-‘‘यार, तू उस सलाहकार केन्द्र की बात से दुःखी है।‘‘
‘क्या कहा, मुकेश। सलाहकार केन्द्र, हाँ...हाँ..।‘‘ मुकेश की बात सुनकर कमलेश को बड़ा मजा आ रहा था। प्रदीप के विषय में बात हो तो, बात ही क्या। प्रदीप व कमलेश की आपस में नहीं बनती। प्रदीप की सच्ची बातें कमलेश को उपदेश लगती है। बार-बार, एक-दूसरे के मध्य मतभेद कसा-कसी का बना रहता है। कमलेश के आँख का काँटा बना हुआ है, प्रदीप।
‘‘अरे, यार मजा आ गया। इस बात पर मेरी तरफ से एक-एक सिगरेट ओर हो जाए।‘‘ कमलेश ने मित्रों को कहते हुए, शंकर चाय वाले को चार सिगरेट लाने का ऑर्डर दे दिया।
मुकेश, सुरेश की तरफ देखकर कहने लगा-‘‘यार, तू तेरी और प्रदीप की बात सुनाए, उससे पहले मैं, मेरी और प्रदीप की एक बात बताना चाहता हूँ।‘‘
‘‘जरूर-जरूर। उसके उपदेश सुनने के लिए, मैं तैयार हूँ।‘‘ कमलेश हँसता हुआ कहने लगा।
‘‘कल प्रदीप से मेरी बात हुई, आधुनिक फैशन को वो, तमाशा कह रहा था। मुझसे कह रहा था कि तमाशे की तरह बार-बार बदलने वाले चलन को फैशन नहीं, तमाशा है।‘‘ मुकेश बात बताते हुए चेहरे का हाव-भाव को कभी खिले गुलाब की तरह खिला रहा था तो कभी आँख की पुतलियों को तरह-तरह अटखेलियां करवाकर नचा रहा था।
सुरेश, मुकेश की बात को सुनकर कुछ हल्की मुस्कान होठों पर फैलाते हुए कहने लगा-‘‘यार, आप लोग तो कैम्पस देरी से ही आते हो। आप लोगों के आने से पहले मैं और प्रदीप यही बैठे थे। प्रदीप कुछ देर तो टकटकी लगाए मेरे सिगरेट पीने की कला को देखता रहा। फिर मुझसे कहने लगा-‘‘मुकेश भाई, आप सिगरेट पीना छोड़ दो।‘‘
‘‘यार, प्रदीप। पीयेंगे नहीं, तो जियेंगे कैसे।‘‘
‘‘जीने के लिए ही आपसे कह रहा हूँ ?‘‘
‘‘तुम कहना क्या, चाहते हो ?‘‘
‘‘अध्ययन के इतने उच्च लेवल में आकर भी आप समझ नहीं पाए तो उन लोगों का क्या होगा ? जिनको हमसे सीखना है।‘‘ प्रदीप के चेहरे पर तेज झलक रहा था।
‘‘देख, यार प्रदीप। तू जानते ही है कि मुझे स्पष्ट बात समझ में आती है। यार, तेरी ये उलझी-उलझी बातें मुझे पहेली सी लगती है। जो भी कहना चाहता है, मुझे स्पष्ट कह दे।‘‘
‘‘मेरी बातें स्पष्ट ही है मुकेश भाई। आपने कभी सोचा है कि आने वाले चार-पांच साल में आपके साथ क्या होगा ?‘‘
‘‘क्या होगा, ये मुझे पता है। तेरी जानकारी के लिए बता रहा हूँ कि शोधकार्य पूरा होने के बाद नाम के आगे डॉक्टर लग जायेगा, जीवन की नई शुरूआत खुशियों के साथ होगी।‘‘ सुरेश के चेहरे पर चार-पाँच साल बाद प्राप्त होने वाली खुशी का अहसास ‘पूनम के चाँद‘ की तरह झलक रहा था।
‘‘मैं, आपको इस उपाधि की शुभकामना देता हूँ। पर जो उपाधि आप न चाहकर भी कर प्राप्त कर रहे हो, उसके प्रति सचेत करना चाहता हूँ।‘‘
‘‘यार, तेरी बातें सुन-सुनकर सिर में दर्द गया। शंकर जी! एक सिगरेट लाना।‘‘ सुरेश के चेहरे पर झुंझलाहट नजर आ रही थी। आँखों में लाल पानी चढ़ रहा था।
‘‘सुरेश भाई, आप दिन में कितनी सिगरेट पी लेते हो ?‘‘
‘‘यह भी कोई गिनने की बात है।‘‘
‘‘फिर भी, बताइये‘‘
‘‘एक पैकेट से ज्यादा हो जाती हैं।‘‘
‘‘अच्छा! दिन की दस...।‘‘
‘‘हाँ...हाँ...पागल, दस से ज्यादा।‘‘ सुरेश हँसता हुआ कहने लगा।
‘‘दिन की दस तो एक माह की तीन सौ और एक वर्ष की छत्तीस सौ, शोध कार्य पुरा करने की सीमा तक अनुमान 18,000 हजार सिगरेट। सुरेश भाई, इन हजारों सिगरेट के धुएं में तुम्हारा शरीर का धुआँ निकल जायेंगा।‘‘ प्रदीप की बातों का प्रभाव सिगरेट के नशे से भी ज्यादा प्रभावशाली था जिसका एहसास सुरेश का चेहरा दिखा रहा था। खुशी के साथ चहकते तोते उड़ गये थे। मुंह से निकलने वाला स्टेट ड्राईव धुआँ चोर की तरह दबे पांव हवा की ओट लिए खिसक रहा था। जिसे देखकर महसूस हो रहा था कि पहली गेंद में ही चारों खाने चीत।
‘‘भईयाजी, ये लो चार सिगरेट‘‘ शंकर चाय वाले ने सुरेश व प्रदीप की बातों का दुश्य समाप्त कर वास्तविक भूमि पर लाकर खड़ा कर किया। जहां चारों दोस्त माठी पत्थर मूर्ति बने, सुरेश व प्रदीप की बातों के भँवर में खोये हुए, अपना-अपना आगामी अच्छे में बुरा देख रह थे।
‘‘सि....ग...रे.ट‘‘ कमलेश के मुंह में घिग्गी बंध गई थी। शब्द भी रूक-रूक के बाहर आ रहे थे।
‘‘हाँ! भईयाजी। आपकी सुनहरी पट्टी वाली लम्बी सिगरेट‘‘ सुरेश को हँसते हुए शंकर चाय वाले ने कहा।
शंकर के चेहरे पर हँसी थी पर सुरेश, मुकेश, कमलेश और सुभाष का चेहरा शंकर के स्थान पर मौत का कुआँ नजर आ रहा था। जिसका रूप इतना विचित्र था कि मानव को हाथ की दो उँगली में पकड़कर आसानी से मौत के कुएं में लिए जा रहा हैं। जाने वाले मानव के मुंह पर भय के स्थान पर खुशी चहक रही हैं। शिकारी के जाल को भूख से व्याकुल पक्षी नहीं देख पाते उसी तरह फैशन के दीवानों को ओट में छुपा मौत का कुआँ दिखाई नहीं देता। धुएं का चक्र तेज गति से प्रत्येक स्तर के मानव को अपने साथ ले जाने के लिए आतुर है। मौत के कुएं का रूप अपनी वेशभूषा को सफेद परकोटे में लिपटाकर मानव को अनभिज्ञ बनकर अपना कार्य तेज गति से सिद्ध कर रहा है। मौत के कुआँ के मुख्य गेट पर असाध्य रोग की उपाधि प्राप्त करने के लिए लम्बी लगी हुई है। लाईन में युवाओं की भीड़ ज्यादा नजर आ रही थी। सफेद परकोटे में लिपटा असाध्य रोग हँसता हुआ रोग का तिलक लगा रहा था जिसे सभी स्तर के व्यक्ति सिर आगे करके लगवा रहे थे। असाध्य रोग अपनी दुनियां का साम्राज्य मानव दुनियां में फैला रहा था। रसात्मक रूप का कवच लगाए मानव जीवन को अपना गुलाम बना रहा था।
‘‘ अरे, भईयाजी। हमे बहुत काम है, देर मत करो।‘‘ शंकर की आवाज ने मौत के कुएं से चारों मित्रों को बाहर निकालकर वास्तविक स्थिति पर खड़ा किया।
‘‘ले रहे हो...?, या ले जाये...?‘‘
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लेखक- गोविन्द बैरवा
पुत्र श्री खेमारामजी बैरवा
आर्य समाज स्कूल के पास, सुमेरपुर
जिला-पाली, राजस्थान 306902
मो. 9928357047, 9427962183
ई. मेल - govindcug@gmail.com
 
							     
							     
							     
							    
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