असगर वजाहत की कहानी - आदमी से आईएफएस हो जाने के बाद श्री त्रि के जीवन की कुछ उल्लेखनीय घटनायें

SHARE:

आदमी से आईएफएस हो जाने के बाद श्री त्रि के जीवन की कुछ उल्लेखनीय घटनायें (1) जिस साल श्री त्रि, आईएफएस में आये उसी साल कुमारी म भी आईएफ...

आदमी से आईएफएस हो जाने के बाद

श्री त्रि के जीवन की कुछ उल्लेखनीय

घटनायें

(1)

जिस साल श्री त्रि, आईएफएस में आये उसी साल कुमारी म भी आईएफएस में आयी। वे दोनों एक-दूसरे को नहीं जानते थे। उनके दरम्यान सबसे उल्लेखनीय समानता यही थी कि दोनों आईएफएस में थे और सबसे बड़ी असमानता यह थी कि एक मर्द था और दूसरी औरत। इसलिए इन दोनों का विवाह हो गया। एक आध पोस्टिंग तो साथ-साथ मिली लेकिन फिर अलग-अलग पोस्टिंगें मिलती रहीं। रिटायर होने तक यही क्रम चलता रहा। उसके बाद जब उन्हें साथ-साथ रहने का मौका मिला तो उन्होंने बच्चा पैदा किया। बुढ़ापे में बूढ़ी औलाद पैदा हुई। यानी कहुत समझदार। त्रि जब बच्चे के साथ खेलते थे तो बच्चा हंस-हंसकर उनका दिल बढ़ता था।

श्री त्रि और श्रीमती को पूरा विश्वास था कि बच्चा बड़ा होकर आईएफएस में आयेगा और आयी आईएफएस में आयी लड़की से विवाह करके उसी तरह सुखी रहेगा जैसे वे रहे।

(2)

जहां श्री त्रि की नयी पोस्टिंग हुई, वहां एक हरिजन राजदूत था। श्री त्रि पोस्टिंग पर पहुंचते ही हरिजन हो गये। लेकिन राजदूत को विश्वास नहीं हुआ। वह समय-कुसमय कभी शराब के नशे में और कभी पूरे होशो-हवास में श्री त्रि को अपमानित किया करता था। उन्हें उलझन में डालकर मजा लेता था। रोज श्री त्रि से उसके रक्तचाप को खबर लेता था और उसी के अनुसार उन्हें आदेश देता था। एक दिन राजदूत श्री त्रि से कहा कि दिल्ली फोन मिलाकर ज्वाइंट सेक्रेटरी श्री ‘फ’ से फलां-फलां बात पूछो।

श्री त्रि ने कहा,‘‘सर, इस वक्त दिल्ली में रात का दो बज रहा होगा।’’

राजदूत झपटकर बोला, ‘‘मैंने तुमसे यह नहीं पूछा कि इस समय दिल्ली में। क्या बजा होगा।’’

श्री त्रि घबरा गये और बोले, ‘‘मैं तुमसे यह नहीं पूछ रहा हूं। सर इस समय ज्वाइट सेक्रेटरी श्री ‘फ’ सो रहे होंगे।’’

राजदूत ठस्से से बोला, ‘‘मैं तुमसे यह नहीं पूछ रहा हूं कि इस ज्वाइंट सेक्रेटरी श्री ‘फ’ क्या कर रहे होंगे।’’

श्री त्रि अचकचा गए, ‘‘सर ज्वाइंट सेक्रेटरी श्री ‘फ’ को रात में दो बजे उठा दिया गया तो मुझ पर नाराज हो जायेंगे।’’

राजदूत ने आदेश देते हुए कहा,‘‘जाओ फोन करो। क्या तुम जानते हो श्री ‘फ’ को कब्ज रहता है’

‘‘नहीं सर।’’

‘‘कैसे आफीसर हो, यह बात तो मिनिष्ट्री के चपरासी तक जानते हैं। तुम्हें तो यह भी जानना चाहिए कि श्री ‘फ’ को दीगर कौन-कौन सी बीमारियां हैं और कौन-कौन सी दवाएं खाते हैं।’’

‘‘यस सर।’’ श्री त्रि बोले।

‘‘कब्ज होने से पहले श्री ‘फ’ को ‘पाइल्स’ थी। उसके बाद उन्हें ‘एब्सिस’ हुआ था। फिर ‘फेस्टुला’ हो गया था। ‘फेस्टुला’ का आपरेशन कराने के लिए उन्होंने लंदन की पोस्ंिटग ली थी।’’

‘‘यस सर।’’

‘‘क्या यस सर...यस सर किए जा रहे हो...नोट्स क्यों नहीं ले रहे हो।’’

श्री त्रि जल्दी-जल्दी नोट्स लेने लगे।

‘‘लंदन में कामयाब आपरेशन हो जाने के बाद श्री ‘फ’ को कब्ज से छुटकारा नहीं मिला है। मैं सब सोफिया में फर्स्ट सेक्रेटरी था तो एक डेलीगेशन के साथ श्री ‘फ’ वहां आये थे। मैंने उनक ठहरने और मनोरंजन का भरपूर इंतिजाम किया था। लेकिन जाते-जाते उन्होंने राजदूत से मेरी शिकायत कर दी थी और मेरी सी.आर. खराब हो गयी थी। जानते हो उन्होंने शिकायत क्यों की थी’

‘‘यस सर।’’

‘‘तो बताओ न’

‘‘यस सर। श्री त्रि घबरा गये।’’

‘‘शिकायत इसलिए की थी कि उनके कमरे में मैं सत इसबगोल रखवाना भूल गया था।’’

‘‘यस सर।’’

‘‘मुझे मालूम है कि श्री ‘फ’ को अगर रात में जगा दिया जाये तो उन्हें नींद नहीं आती और सुबह कब्ज हो जाता है। ‘मोशन’ नहीं होगा तो उन्हें गुस्सा आ जायेगा गुस्सा आयेगा और कब्ज जो जाता बढ़ेगा। कब्ज बढ़ेगा तो और गुस्सा आयेगा...जाओ श्री ‘फ’ को फाने करो।’’

‘‘यस सर...’’श्री त्रि गिड़गिड़ाये।

‘‘जाओ फोन करो...अगर तुमने फोन न किया तो मुझे कब्ज हो जायेगा...कर दिया तो तुम्हें भी कब्ज हो जायेगा...जाओ फोन करो।’’

(3)

श्री त्रि को जब हरिजन राजदूत ने परेशान करने के हदें खत्म कर दीं तो एक दिन श्री त्रि अपना जनेऊ और कच्छा लेकर राजदूत के पास पहुंच गये।

‘‘ये क्या है त्रि’ राजदूत ने पूछा।

‘‘सर मैं ब्राह्मण नहीं हूं।’’

‘‘तक तुम क्या हो’

‘‘सर पिताजी सपने में आये थे। बोले हम लोग ब्राह्मण कभी नहीं थे...हमारा तो परिवार हरिजन था।’’

‘‘कोई प्रमाण पत्र है तुम्हारे पास’

‘‘सर पिताजी सपने में आये थे।’’

‘‘त्रि अपना जनेऊ और कच्छा उठाओ।’’

‘‘यह जनेऊ और कच्छा तुम्हें सौ-दो सौ साल और पहनना है।’’

(4)

श्री त्रि के कान खराब हो गये। उन्हें कुछ कम सुनाई देने लगा। श्री त्रि के लिए यह कुछ वैसा बुरा न था। घर में पत्नी और आफिस में बॉस की डांट वे जितनी चाहते या जितनी रुचिकर लगती उतनी ही सुनते। कुछ साल बाद उन्होंने योरोप के शहर ‘सर’ में अपनी पोस्टिंग करायी क्योंकि सुना था कि वहां कान का आपरेशन बड़ा अच्छा होता है।

कान का आपरेशन कराने के बाद श्री त्रि को आंखों से कम दिखाई देने लगा। उन्होंने आंखों का भी आपरेशन करा डाला तो दांतों में दर्द रहने लगा। दांत उखड़वा डाले तो उसका असर उनके दिमाग पर पड़ा। दिमाग कमजोर हो गया। यह बात उन्होंने राजदूत को बताई।

राजदूत ने पूरी बात सुनकर कहा, ‘‘तुम्हें यह आपरेशन बहुत पहले कर लेना चाहिए...जितने प्रोमोशन तुम्हें मिले हैं, वे कुछ कम हैं...’’

(5)

श्री त्रि दूतावास के पेशाबखाने से पेशाब करके निकल रहे थे तो उन्होंने देखा कि राजदूत सामने खड़े हैं। राजदूत पेशाब करने जा रहे थे। उन्हें देखकर श्री त्रि सकपका गये।

‘‘क्यों जी तुम भी पेशाब करते हो।’’

‘‘सर सर मेरा ‘रैंक’ बहुत छोटा है सर।’’

‘‘मैं पूछ रहा था तुम भी पेशाब करते हो’ राजदूत ने अकड़ कर पूछा।

‘‘सर, सर आपकी तरह नहीं करता।’’

‘‘क्या मतलब’ राजदूत ने पूछा।

‘‘सर आप पेशाब करते हैं...मैं मूतता हूं सर...जी हां सर मूतता हूं।’’

‘‘ठीक है तो कल से तुम घर ही मूत का आया करोगे और घर ही जाकर मूता करोगे। दूतावास मूतने की जगह नहीं है।’’ राजदूत गुस्से में लौट गये। पेशाब कर लेने के बाद भी त्रि का मूत निकल गया।

(6)

अपने वीजा, अफीसर के कारण एक दिन परेशानी में पड़ गये श्री त्रि।

राजदूत राजपरिवार के व्यक्ति थे, उनकी पत्नी राजकुमारी थीं। श्री त्रि श्री त्रि थे।

राजदूत की पत्नी का एक मुंह लगा माली था। दूतावास में उनका रुतबा राजदूत के बाद नंबर दो था। बीजा अफसर नया-नया आया था। वह माली को माली समझता था। उसने एक दिन पता नहीं माली से क्या कह दिया। माली ने महारानी को जाकर खूब मिर्च-मसाला गया।

राजदूतावास निवास से फोन आया कि श्री त्रि बीजा आफीसर को लेकर तुरंत आ जायें। श्री त्रि ने हनुमान चालीसा पढ़ना शुरू कर दिया।

दुर्भाग्य यह कि नये बीजा आफीसर के बाल कुछ लंबे थे। और श्री त्रि को भी बाल कटाये कुछ महीने हो गये थे क्योंकि योरोप में बाल कटाना वैसे भी अच्छा खासा मंहगा है और जाड़े में पता भी नहीं चलता कि बाल छोटे हैं या बड़े हैं।

बहरहाल महारानी के सामने दोनों पेश हुए। उन्हें देखकर महारानी बोली, ‘‘आप लोग दूतावास में काम करते हैं या हिप्पी हैं।’’

‘‘हिप्पी’ श्री त्रि हकलाये।

‘‘हां हिप्पी...इतने बड़े-बड़े बाल और कौन रखता है...मैं तो तुम लोगों से बात नहीं कर सकती...कल सुबह ठीक नौ बजे...अपने बाल कटवा कर यहां आओ...समझे’

महारानी अंदर चली गयी। श्री त्रि और वीजा अफसर नाई की दुकान चले गये।

(7)

कैसे पत्नी की डांट सहनी पड़ी श्री त्रि को कि वे कुछ न कह सके।

सुबह जल्दी-जल्दी तैयार होकर श्री त्रि घर से निकलने ही वाले थे कि उनकी श्रीमती जी ने कहा, ‘‘सुनो जी तेल खत्म हो गया।’’

श्री त्रि ने कहा, ‘‘ठीक है किसी ड्राइवर के हाथ भिजवा दूंगा।’’

‘‘दोपाहर का खाना नहीं पक पायेगा। जल्दी भिजवाना’’

श्री त्रि दूतावास आ गये। उन्होंने अपने र्क्लक को बुलाया और कहा

‘‘यार शर्मा जरा मार्केट से एक बोतल सन फ्लावर तेल लेकर घर दे आओ।’’

‘‘सर गाड़ी दिलवा दें तो मैं चला जाऊं।’’ शर्मा ने कुटिल मुस्कान के साथ कहा।

श्री त्रि ने एचओसी को फोन किया तो एक चतुर और बददिमाग महिला थी।

‘‘गाड़ी गाड़ी तो गयी हुए एयर पोर्ट...साहब के बेटे को रिसीव करने।’’

‘‘दूसरी गाड़ी मैडम।’’ श्री त्रि गिड़गिड़ाये।

‘‘दूसरी गाड़ी मैडम को लेकर जा रही है। शापिंग कराने।’’

‘‘तीसरी गाड़ी मैडम श्री त्रि रुआंसे हो गये।’’

‘‘तीसरी गाड़ी के ड्राइवर को साहब ने ड्राइ क्लीनर के यहां भेजा है।’’

‘‘चौथी गाड़ी मैडम।’’

‘‘चौथी गाड़ी’

‘‘चौथी गाड़ी तो ‘प्लेग कार’ है...उसका ड्राइवर आप तो जानते ही हैं...मेरे कहने से भी कहीं नहीं जाता...साहब से कहिए।’’

दिन भर श्री त्रि से कोई काम नहीं हुआ। घर से कई फोन आये। हर फोन में डांट-डपट थी। फटकार थी। शाम को चिराग जले तेल लेकर श्री त्रि के घर पहुंचा एक परदेसी।

(8)

श्री त्रि दूतावास के पुस्ताकालय में एक विदेशी महिला का चूम लिया तो क्या हुआ।

विदेशी कन्याओं को देखकर श्री त्रि का सौंन्दर्यबोध इतना उफनने लगा कि वे कविताएं लिखने लगे। कविताएं लिखने का बड़ा खतरनाक प्रभाव उनके व्यक्तित्व पर पड़ा। इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण यह है कि एक दिन अकेला पाकर एक विदेशी महिला को उन्होंने दूतावास के पुस्तकालय में चूम लिया। वैसे तो चूमा-चाटी कोई अपराध नहीं है भारतीय दंड विधान में और योरोपीय संस्कृति में भी। पर पता नहीं क्यों विदेशी महिला ने राजदूत से जाकर शिकायत की और कहा कि देखिये श्री त्रि आपकी बराबरी कर रहे हैं।

(9)

राजदूतावास निवास में एक भव्य पार्टी के समापन के बाद राजदूत ने नशे की हालत में श्री त्रि को अपने पास बुलाया। श्री त्रि समझे की पार्टी का हिसाब-किताब करने के लिए बुलाया है। क्योंकि भोज में बुलाने के लिए राजदूत को प्रति अतिथि जो भत्ता मिलता है उसका हिसाब करने की व्याकुलता रहा करती थी राजदूत के मन में। लेकिन सहसा राजदूत ने श्री त्रि से एक दार्शनिक प्रश्न पूछ कर उन्हें हैरान कर दिया।

‘‘सारे जीवन विदेशों में रहने के बाद क्या तुम रिटायरमेंट के बाद इंडिया में रह सकोगे।’’

विदेश सेवा की पहली शर्त यह है कि यदि आपका उच्च अधिकारी कोई सवाल पूछे तो आपको यह पता होना चाहिए कि वह कैसा उत्तर सुनना चाहता है। श्री त्रि को मालूम था कि राजदूत महोदय रिटायर होने वाले हैं और उनका इरादा योरोप के इसी शहर में बसने का है इसी गरज से उन्होंने यहां एक मकान भी खरीद लिया है जिसे वे फर्निश कर रहे हैं, इतनी पृष्ठभूमि जानने के बाद श्री त्रि ने कहा, ‘‘सर बहुत मुश्किल है।’’

‘‘हां, देखो मैं तो इंडिया में रह सकता हूं लेकिन मैडम और बच्चे’

‘‘जी सर...’’

‘‘कल जरा ये ‘चेक’ करना कि ‘रेजीडेंस’ में कौन-कौन से ‘आइटम’ ऐसे हैं जिन्हे डिस्कार्ड किया जा सकता है...‘रूल्स’ तो तुम जानते ही हो...’’

‘‘यस सर।’’

अगले दिन श्री त्रि ने सूची बनाई कि राजदूत निवास में कौन-कौन सी चीजें मतलब कुकिुंग रेंज, वाशिंग मशीन, एयर कंडीशनर वगैरा-वगैरा कबाड़े में फेंक देने लायक हैं। यह सूची इतनी लंबी बन गयी कि उसमें राजदूत को छोड़कर और सब आ गया।

(10)

राजदूत महोदय की यह अंतिम पोस्ंिटग थी वे ‘फ’ शहर में ही बस रहे थे। रिटायर होने से पहले वे शहर को भारतीय सभ्यता और संस्कृति का एक बेमिसाल तोहफा देना चाहते थे। उन्होंने तय किया कि वे शहर में जो पश्चिमी योरोपीय पर्यटकों से भरा रहता है, एक रेस्त्रा खोलेंगे-मतलब संसार का सबसे बड़ा जनतंत्र खोलेगा।

‘रेस्त्रां’ खुल गया। उसका नाम भी ‘भारत’ रखा गया। बस मिल्कियत में नाम दूसरा था। यानि राजदूत के पुत्र उसके मालिक थे।

गड़बड़ यह हुई कि ‘रेस्त्रां’ खुलने के बाद भी भारत से रसोइया नहीं आया। इस कारण राजदूत चिंतित थे। श्री त्रि का काम राजदूत की चिंताओं को अपनी चिंता बना लेना था। उन्होंने राजदूत से कहा, ‘‘सर मैं खानदानी रसोइया हूं।’’

राजदूत ने उन्हें घूर कर देखा क्योंकि इससे पहले वे अपने-आपको अलग-अलग अवसरों पर खानदानी मोची, खानदानी धोबी, खानदानी माली आदि बता चुके थे। पर राजदूत इतिहास में नहीं गये। कूटनीति का काम इतिहास में जाना नहीं है।

अगले दिन दूतावास में खुसुर-पुसुर मच गयी क्योंकि श्री त्रि की सीट खाली थी, पर वे ‘भारत’ के अपने मातहतों को लगातार फोन पर आदेश दे रहे थे। पिसी मिर्च एक किलो...धनिया साबुत...मीटी चटनी चार किला...पापड़ लिज्जत वाले...

कुटिल, चतुर और ईर्ष्यालु एचओसी से यह नही देखा गया। वह तुरंत राजदूत के पास गयी और बोली सर मैं बहुत अच्छे फुलके बेलती हूं...हां सर...सच सर...देख लीजिए सर...

राजदूत की रिसेप्शनिस्ट ‘भारत’ की रेसेप्शनिस्ट हो गयी। गार्ड ‘भारत’के दरवाजे पर खड़ा होने लगा। क्लर्क सब्जियां काटने और गोश्त धोने लगे। बीजा अधिकार बार अटेंडेंट बन गया।

दूतावास में केवल तिरंगा झंडा बचा। तिरंगा झंडा रात के सन्नाटे और अकेले में कभी-कभी गुनगुना लिया करता था जन गण मन अधिनायक जय हे...

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: असगर वजाहत की कहानी - आदमी से आईएफएस हो जाने के बाद श्री त्रि के जीवन की कुछ उल्लेखनीय घटनायें
असगर वजाहत की कहानी - आदमी से आईएफएस हो जाने के बाद श्री त्रि के जीवन की कुछ उल्लेखनीय घटनायें
http://lh6.ggpht.com/-R3wdrNlh2B4/U1tOE-wD1FI/AAAAAAAAYHw/x0Mxp-7qk2k/asghar%252520wajahat_thumb.jpg?imgmax=800
http://lh6.ggpht.com/-R3wdrNlh2B4/U1tOE-wD1FI/AAAAAAAAYHw/x0Mxp-7qk2k/s72-c/asghar%252520wajahat_thumb.jpg?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2014/04/blog-post_1825.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2014/04/blog-post_1825.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content