असगर वजाहत की कहानी - मछलियां

SHARE:

मछलियां वे एक ही समय में एक ही आदमी से बात करते हुए अपने तेवर बदलते रहने में माहिर हैं । जैसे इसी वक्त अपने घर ठहरे हुए क्षेत्र के एम. पी....

मछलियां

वे एक ही समय में एक ही आदमी से बात करते हुए अपने तेवर बदलते रहने में माहिर हैं जैसे इसी वक्त अपने घर ठहरे हुए क्षेत्र के एम. पी. से पहले खुशामदी अन्दाज में उन्होंने यह बात कहीं कि पार्टी में ए. पी. महोदय की स्थिति इतनी मजबूत है कि वे किसी भी समय मंत्री बनाये जा सकते हैं। उनकी बात सुनका एम. पी. खुश हो हुए। इसलिए नहीं कि वे मंत्री बनाये जा सकते हैं, बल्कि इसलिए कि उनके चुनाव क्षेत्र में लोगों को यह नहीं मालूम है कि पार्टी में उनकी स्थति कितनी खराब हो गई है। फिर अभय सिंह ने तेवर बदले, माथे पर लकीरें पड़ी, चिंता जगी, आंखें लाल हुई, क्रोध आया; फिर उन्होंने जरा कड़ी आवाज में एम. पी. से कहा कि चुनाव क्षेत्र की हालत खराब है और अगल चुनाव में वोट लेना टेढ़ी खीर होगा, क्योंकि क्षेत्र के अधिकारी अपने निजी स्वार्थो के लिए लड़ रहे हैं और जनता की उपेक्षा हो रही है। एम. पी. यह जानकर चिंतित हो गये। उनके चेहरे पर भाव आया कि देखो कैसे नादान लोग हैं, नश्वर संसार के माया-मोह में फंस गये। अभय सिंह को एम. पी. साहब के चेहरे का यह भाव पसंद नहीं आया। वे बोले, ‘‘अफसरों के कान न उमेठे गये तो हाहाकरा मच जायेगा।’’ एम. पी. बात सुनकर हलका-सा मुस्कराये जैसे उनके सामने भरी अदालत में एक-एक सरकारी अफसर को बुलाया जा रहा है और अभय सिंह उनके कान उमेठ-उमेठकर उन्हें आगे चलता कर रहे हैं। लेकिन एम. पी. साहब अपनी मुस्कराहट पी गये और बोले ‘‘किया क्या जाये’’

अभय सिंह यही बात सुनना चाहते थे। उन्होंने मधुर अन्दाज में कहा, ‘‘श्रीमान जी, ये सरकारी अफसर थाली के बैगन होते हैं। थाली आप सही दिशा में घुसा दें तो उधर ही लुढ़क जायेंगे। ‘‘एम. पी. साहब झुंझला गये। सुबह-सुबह चाय की लगातार गर्म-गर्म तीन प्यालियां पीने के बावजूद उन्हें पेट से किसी चीज के बाहर निकलने का दबाव नहीं महसूस हो रहा था। उन्हें शक था कि आज का दिन फिर खराब हो जायेगा। ऐसी स्थिति में वे पहेलियां नहीं बूझना चाहते थे। ‘अरे तो बताओ न के जवाब में अभय सिंह बोले, ‘‘कमिश्नर साहब दौरा करा दीजिए। सब ठीक हो जायेंगे।’’ एम. पी. ने उनकी तरफ देखा जैसे कह रहे हों, अबे उल्लू इतनी सी बात के लिए यह सब कहने की क्या जरूरत थी। सीधे-सीधे कह देते कि जिले के अफसरों पर चड्ढी गांठने की रानें मचल रही हैं।

‘‘तो ये कौन-सी मुश्किल बात है। अगले महीने लो....’’ कहते-कहते एम. पी. साहब बाथरूम की तरफ दौड़े और अभय सिंह सोचने लगे, अभी थोड़ी देर में और मिलने वाले आ जायेंगे। फिर बात न हो पायेगी। इसी वक्त इस साले के पेट में हूक उठने को थी। अब यह तो हो नहीं सकता कि वे बाथरूम के दरवाजे से मुंह लगाकर खड़े हो जायें और एम. पी. साहब से कमिश्नर के बुलाने का कार्यक्रम तय करने लगें। वे वेचैनी से उठे और बाथरूम के सामने टहलने लगे। उन्हीं को मालूम था कि कमिश्नर का आना उनके लिए कितना महत्वपूर्ण है।

एक घंटा पैतालीस मिनट आठ सेकेण्ड बाद एम.पी. साहब बाहर निकले। इस बीच उन्होंने नौकर से कह दिया था कि आने वालों को बाहर बरामदे में बैठाया जाये। तार के तार और बेतार के तार खटखटाये गये और कमिश्नर साहब के आने का कार्यक्रम तय हो गया।

अभय सिंह सरकारी राजनीतिज्ञ नहीं थे, फिर सुखी थे। वे पचड़े में पड़े बिना, कोई पद प्राप्त किये बिना, दिक्कतें उठाये बिना अपना काम निकाल लेना जानते थे। उन्होंने सन् बावन से लेकर पिछले चुनाव तक कांग्रेस के उम्मदीवारों को सपोर्ट किया था। पिछले चुनाव में जनता का रंग एक रात उन्हें ऐसा दिखाई दिया कि वे कांग्रेस के उम्मीदवार से पिछले दस सालों के सम्बन्ध तथा कांग्रेस पार्टी से चालीस सालों के पारिवारिक संबन्धों को छोड़-छाड़, तोड़-ताड़ जनता के आदमी हो गये। यानी अन्तरात्मा की आवाज को उन्होंने सही वक्त पर पहचान लिया और उन्हें उतनी बेशर्मी दिखाने की जरूरत महसूस न हुई जितनी उनके दूसरे दोस्तों को बाद में हुई।

वे चुनाव में कभी खड़े न हुए थे और खड़ा होना भी नहीं चाहते थे। लेकिनहर चुनाव में उनकी पूछ होती थी। उनके घर के सामने जीपें खड़ी रहती थीं। उनके बरामदे में झंडे और पोस्टरों के गट्ठर पड़े रहते थे। उनकी कोठी के कंपाउण्ड में शामयाना लग जाता था और पूड़ी तलने के लिए कढ़ाव चढ़जाता था। उन्हें यह हुनर अच्छी तरह मालूम था कि अपने को किसी दूसरे बड़े आदमी से किसी तीसरे बड़े आदमी का खास आदमी कैसे मनवा लिया जाये।

उन्होंने दो धुरे पकड़ लिये थे। एम. पी. यह समझता था कि ‘जनता’ पर इनका बहुत असर है और ‘जनता’ समझती थी कि एम. पी. पर इनका बहुत असर है। ऐसा मौका कभी नहीं आता था कि ये तीनों आमने सामने हों।

वे लाग-लपेट पसन्द नहीं करते। जनता से उन्होंने साफ कह दिया है कि सरकारी अफसर घूस लेते हैं और उनसे कोई काम घूस दिये बिना नहीं चल सकता। सरकारी अफसरों से उन्होंने कह रखा है कि वे घूस नहीं देते, क्योंकि घूस देना पाप है। जनता के कामों से जब वे दिल्ली जाते हैं तो बात पहले ही साफ कर देते हैं, ‘‘देखो मिनिस्टर का मामला है। दिल्ली में हों, न हों। हों भी, तो मेरे नौकर तो हैं नहीं मुलाकात हो पायें, न हो पाये। हो सकता है हफ्ता लग जाये, हो सकता है पन्द्रह दिन। इन्हीं दिनों मेरे सेशन में चार केस लगे हैं। सौ रुपये रोज का नुकसान मैं उठा नहीं सकता। घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या अब अगर तुम ले चलना चाहो तो मैं चल सकता हूं। इसलिए कि कभी यह न कह सको कि मेरा काम नहीं किया।’’और भी दिल्ली के उनके महीने-दो-महीने में एक-आध चक्कर लग ही जाते थे।

एम.पी. नाश्ता वगैरा करके ‘जाति तोड़ो’ सम्मेलन की अध्यक्षता करने गये तो अभय सिंह ने कमिश्नर साहब के दौरे और उससे जिले के अधिकारियों पर पड़ने वाले प्रभाव पर सोचना शुरू कर दिया। पिछले दिनो डी. एम नयाआ गया है। अभी तक यूनीवर्सिटी की हवा में है। इतना ‘अनसोशल’ है कि क्लब तक नहीं आता। एस. पी. यादव हैं और जिले के यादवों का गुट उसे छापे बैठा है। डी.पी.ओ. हरिजन है। और सिर्फ हरिजनों को पैसा लुटाते रहते हैं। पूरा का पूरा माहौल खराब है। और अभय सिंह को तीन बड़े-छोटे काम निकालते हैं। गफूर ठेके दार को जी. टी. रोड का ठेका मिला। उसने नम्बर चार का माल आधिशासी अभियन्ता से पूछकर लगाया, लेकिन रामरतन ठेकेदार के कहने-सुनने पर अभय सिंह ने अधिशासी अभियन्ता का तबादला करा दिया और अब नया अभियन्ता ठेकेदार अब्दुल गफूर को जेल भिजवा देने पर तुला हुआ है। रामरतन ठेकेदार ने उसकी मुट्ठी गरम जो कर दी है। अब्दुल गफूर यह जानता था कि पुराने अधिशासी अभियन्ता का तबादला अभय सिंह ने कराया था। वह सीधा अभय सिंह के पास आया और बोला, ‘‘भाई साहब, इज्जत जा रही है। पैसे का मोह नहीं है। आपके सुन्दर नगर वाले प्लाट पर बंगला बनेगा। बस, बचा लीजिए। रामरतन ठेकेदार ने सिर्फ मुट्ठी गरम की थी। अब्दुल गफूर शरीफ आदमी है। लेकिन नया अधिशासी अभियन्ता उनकी बात क्यों मानने लगा’ बिन्दू का भाई डाके में फंस गया है। अभी शिनाख्त नहीं हुई है। चौरस का दारोगा पांच हजार मांगता है। यह तो बड़ी रकम है। पुलिस वालों का दिमाग खराब हो जाएगा और थानेदार के पास जाना उनकी बेइज्जती थी।

बच्चों के स्कूल के प्रिसिपल ने पहले एक मास्टर की रोज शाम की ड्यूटी अभय सिंह के घर लगा दी थी। बच्चों को पढ़ाया जाता था। पिछले कई महीनों से कोई नहीं आया। बच्चे बर्बाद हो रहे हैं। प्रिंसिपल से यह थोड़े ही कह सकते हैं कि किसी मास्टर को बच्चे पढ़ाने भेज दिया करो। काम सिर्फ कहने से नहीं होते, वह अच्छी तरह जानते हैं।

वे बाहर से घर के अन्दर चले आये और सीधे पलंग पर लेट गये। लेटे-लेटे पत्नी को चाय बना लाने का आदेश दिया। पत्नी चाय की प्याली लायी तो उन्होंने पत्नी की तरफ गौर से देखा। अब कुछ नहीं रह गया है। उन्हें लगा, पत्नी पर जो कुछ पैसा उठ रहा है वह उसके योग्य बिलकुल नहीं बची है। वे चाय की चुस्कियां लेने लगे। पत्नी सामने बैठ गयी। उन्होंने पत्नी को माचिस और सिगरेट लाने को कहा। पत्नी को कई साल हुए गठिया हो गया था। वह घुटनों पर दोनों हाथ रखे देर तक जोर लगाती रही और फिर उठ खड़ी हुई। माचिस और सिगरेट लाकर दी। सिगरेट का लंबा कश लेकर उन्हें याद आया कि अभी तक दवा नहीं पी है। उन्होंने पत्नी को दवा लाने को कहा। पत्नी फिर उठी और दवा ले आई।

नाश्ते पर उन्होंने दे अंडे, दो टोस्ट, मक्खन की एक टिकिया और एक गिलास दूध लिया। बच्चों ने चार-चार टोस्ट और दूध पिया। पत्नी ने टोस्ट चाय में डुबो कर खाए। जब नाश्ता खत्म होने वाला था तो उन्होंने संयत आवाज में सबको सूचित किया, ‘‘कमिश्नर साहब आ रहे हैं। हमारे घर पर लंच लेंगे।’’

‘‘अच्छा, कमिश्नर साहब...’’

‘‘तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है। कमिश्नर साहब और मैं इलाहाबाद में एक ही हॉस्टल में थे...’’

‘‘खाना-वाना...’’

‘‘सब कुछ मालूम हो जाएगा।’’ वे मेज़ से उठ गए और बच्चे ‘‘कमिश्नर साहब आ रहे हैं, कमिश्नर साहब आ रहे हैं,’’ का शोर मचाते स्कूल चले गए।

वह उठकर बाहरी बैठक में आए। घड़ी देखी। अब तक एम.पी. साहब ने डी.एम. को कमिश्नर के आने वाली बात बता दी होगी। डी.एम. अपने ऑफिस में होंगे। एम.पी. हरिजन कल्याण समिति की बैठक में।

उन्होंने डी.एम. का फोन मिलाया।

‘‘जी नमस्ते हुजूर... मैं अभय सिंह...’’

‘‘कहिए मिस्टर...।’’

‘‘कृपा है जी... वह एम.पी. साहब ने कमिश्नर साहब...’’

‘‘जी हां, जी हां, पता चल गया है। कुछ...’’

‘‘अजी साहब, मैं तो बचना चाहता था। लेकिन एम.पी. साहब का अनुरोध टाल न सका। जबकि कमिश्नर यानी अपने दत्त साहब मेरे हॉस्टल फेलो...’’

‘‘अच्छा, वाह... तो पुरानी...’’

‘‘अजी उनकी शादी में एक गवाह मैं भी था,’’ अभय सिंह जानते थे कि कलक्टर की हिहम्मत कमिश्नर से यह पूछने की नहीं हो सकती कि आपकी शादी में कौन-कौन गवाह थे।

‘‘यह तो हमारा सौभाग्य है अभय सिंह जी...।’’ कलक्टर की आवाज पिघलने लगी।

‘‘एक निवेदन है आपसे...।’’

‘‘कहिए, कहिए...।’’

‘‘बड़ी सुविधा हो जाएगी यदि आप ज़िले के अन्य अधिकारियों को सूचित कर दें कि कमिश्नर...।’’

‘‘अभी लीजिए, अभी...।’’

‘‘धन्यवाद, तो आपके बिना...’’

‘‘हां, मैं तो जरूर ही हूंगा।’’

टेलीफोन का चोगा खकर वे कुर्सी पर अराम से लेट गए। ज़िले के सभी अधिकारियों को सूचना मिलते-मिलते एक घंटा तो लग ही जएगा।

‘‘इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल्स को वे जनते नहीं थे। लेकिन उन्होंने उसके ऑफिस फोन मिलाया।

‘‘अभय सिंह, कौन अभय सिंह’

अभय सिंह इस अपमानजनक सवाल पर बिगड़े नहीं। आवाज को और नम्र बनाकर बोले, ‘‘मैं आपके ही श्हर का एक समाजसेवी हूं। अगले महीने की सतरह तारीख को कमिश्नर महोदय मेरे निमंत्रण पर पधार रहे हैं। दोपहर का भोजन मेरे ही साथ करेंगे। ज़िले के अधिकारियोसे भी मिलेंगे... आपसे निवेदनहै कि आप भी मेरे साथ भोजन करें... जी हां... इसके अतिरिक्त यदि उचित हो तो मॉडल स्कूल से पचास कुर्सियों की व्यवस्था करा दें... जो किराया होगा, मैं दे दूंगा...।’’

‘‘किराया कुर्सियां आपको मिल जाएंगे, पर किराए पर नहीं...।’’

‘‘क्षमा चाहता हूं। मुझे ऐसी ही सूचना मिली थी कि प्रिंसिपल महोदय किराए पर... नहीं-नहीं, मुझे उससे क्या सरोकार। आप कृपया प्रिंसिपल साहब को फोन कर दें कि मैं उनसे संपर्क करूंगा।’’

‘‘मैं अभी उसे फोन करता हूं।’’

‘‘धन्यवाद।’’

उन्होंने फोन रख दिया। कुर्सियां तो आ ही जाएंगी। उन्हें असली चिंता तो मास्टर की है। बच्चों का समय बर्बाद होता है।

एक घंटे से ज़्यादा समय हो चुका था। उन्होंने नौकर को आवाज देकर कहा कि बिंदू को बुला लाए। नौकर चला गया। उन्होंने एम.पी. को फोन मिलाया।

‘‘...अजी बस पीछे पड़ गए एम.पी. साहब... कमिश्नर तुम्हारा दोस्त है, तुम्हारे ही यहां ठहरेगा... मैंने कहा भुगतेंगे साहब... दोस्ती में हज़ार-दो हज़ार का खून ही सही... भाई, वैसे तो सब बंदोेबस्त हो गया है, मछली नहीं मिल रही है। आप आप चौरसिया थाने के एस.ओ. को भेज दें।’’

‘‘बिल्कुल अभय सिंह जी, यह तो सरकारी काम हो गया है...।’’

अगला नम्बर अधिशासी अभियन्ता का था, वह आफिस में नहीं मिला। अभय सिंह ने उसे मोटी-सी गाली दी। घर फोन मिलाया। वहां मिल गया।

‘‘ जी हां कहिए,’’ उसकी आवाज में अकड़ थी।

‘‘कमिश्नर साहब।’’

‘‘जी मुझे पता चल गया है, जरूर....।’’

‘‘एक बात बिशेष है....।’’

‘‘बताइए।’’

‘‘जनता पार्टी के कुछ कार्यकर्त्ता आपके संबंध में कमिश्नर को एक ज्ञापन देना चाहता हैं...।’’

‘‘ज्ञापन....

‘‘हां जी, पता नहीं....मैं तो...सोचा आपके पहले बता दूं।’’

‘‘लेकिन कोई कारण’

‘‘अजी कारण से इस देश में क्या काम होता हे’

‘‘फिर’ अधिशासी अभियन्ता की आवाज में लोच आ गयी।

‘‘अगर आप कहें....तो मैं जनता पार्टी की जिला शाखा के अध्यक्ष तलवार से बात करूं...तलवारजी मेरी बात काट नहीं सकते। बीस साल की दोस्ती हैं...लेकिन मुझे क्या मतलब...।’’

‘‘नहीं, नहीं अभय सिंह जी।’’

‘‘मैं तो यह सोच रहा था किसी का नुकसान....’’

‘‘ठीक है, कृपा है आपकी...’’

‘‘एक कष्ट देना था...था।’’

‘‘कहिए।’’

‘‘अब्दुल गफूर...।’’

‘‘उस संबन्ध में मैं मजबूर हूं।’’

‘‘आप प्रयत्न कीजिए। रास्ता तो भगवान निकालेगा। जरूरी बात है। इज्जतदार आदमी है।’’

‘‘अच्छा....आप।’’

‘‘जी हां...बड़ी कृपा होगी...तलवारजी को मै पक्का कर लूंगा, लेकिन...।’’

उन्होंने लेकिन, पर फोन बंद कर दिया। वे जानते थे कि हर पार्टी में उनके कुछ आदमी ऐसे हैं जो किसी भी तरह का ज्ञापन दे और रोक सकते हैं। वे मुस्कराये। माथे पर हाथ फेरा और अपने मित्र डी. ए. ओ को फोन मिलाया।

‘‘अरे यार...मुझे तो मुर्गे वाली नहीं, मुर्गी वाली दावत दो...याद है अभय बाबू कचड़ी खेड़ा की वह रात....जब कैंप लगा था...।’’

‘‘अर्जी सब याद है...तुम इस पार्टी में आना जरूर...और यार, मैं सामान की लिस्ट गिरधर लाल मनोहर लाल के यहां भिजवा रहा हूं, तुम बड़े बाबू से फोन करा दो।’’

‘‘अभी लो, अभी लो।’’

दो-चार और वाक्य बोलकर वे लिस्ट बनाने लगे। बीस किलो डालडा, बीस किलो चीनी, दस किलो सूजी,....लिस्ट बढ़ती चली गई और वे उसे बढ़ाते चले गए।

शाम होते-होते बिन्दू आया। बिन्दू को उन्होंने बता दिया कि तीन हजार पर काम तय हुआ है। बिन्दू के पास डकैती की कमाई थी। वह तैयार हो गया।

उनकी गणना के अनुसार चौरसिया एक एस.ओ. उसी समय आया, जब बिन्दू बरामदे में बैठा था। दोनों की मुठभेड़ हो गई। दोनों एक-दूसरे को पहचानते थे।

एस.ओ. ने एड़ियां बजाकर अभयजी को प्रणाम किया। उन्होंने उसे बैठने को कहा, ‘‘बैठो भाई, बैठो।’’

‘‘जी, साहब का फोन गया था।’’

‘‘अरे, भाई, तुम्हारे साहब, यानी अपने पूत्तू बाबू से मैंने कई बार कहा कि किसी चीज की जरूरत नहीं है। मछली रह गयी है, इसका इंतजाम भी हो ही जायेगा। लेकिन पीछे पड़ गये। आखिर तुमको कष्ट उठाना पड़ा।’’

‘‘कष्ट की क्या बात जी, हम तो आप ही के बच्चे हैं।’’

अभय मुद्रा में हंसते हुए वे बोले, ‘‘कहो, कोई तकलीफ तो नहीं है’

‘‘न पूछिये सर, जो है सिफारिश लिये चला आता है। छोड़ दो तो फंसो, न छोड़ो तो फंसो।’’

‘‘यही बात मैंनें मुख्यमंत्री जी से कह दी तो बगलें झांकने लगे। जबाब हो तो दें न मैंने कहा, सारे भ्रष्टाचार के जिम्मेदार सरकारी अफसर हैं...तो क्या वहां से हटना चाहते हो’

‘‘ऐसा हो जाए तो कल्याण हो जाए सर...आप जानते हैं डिप्टी मिनिस्टर के चुनाव क्षेत्र का थाना है...रोज़ एक न एक फसाद खड़ा है।’’

‘‘तो कहां भिजवा दें... पुत्तू बाबू से कहूंगा....ईमानदार आदमी की तकलीफ नहीं देखी जाती....बोलो....मऊपुर करा दूं’

‘‘ एस.ओ. जानता था कि मऊपुर के थाने में पांचों उंगलियां घर में रहती हैं कोई पूछने-पाछने वाला नहीं है।

‘‘अरे भाई मज़े की बात यह है कि तुम्हारे एस. पी. साहब यानी हमारे पुत्तू बाबू भी अपना तबादला कराना चाहते हैं। ससुराल से काफी दूर पड़ गये हैं न...कह रहे थे कमिश्नर से कहकर आजमगढ़ के आसपास करा दूं...,’’ अभय सिंह इस तरह हंसे जैसे किसी बच्चे ने प्यारी शरारत कर दी हो। फिर बोले, ‘‘तो भाई मैं उनसे कहूंगा पहले तुम्हारा तबादला कर दें....फिर मैं कमिश्नर...’’वे फिर हंसने लगे।

एस.ओ. ने हाथ जोड़ दिये। इस काम के लिए वह एस. पी. आफिस के बड़े बाबू को पांच हजार रुपये तक देने को तैयार था।

‘‘अच्छा सुनो...’’वे जैसे बेखयाली में बोले ‘‘तुम्हारे क्षेत्र में हमारा एक आदमी बिन्दू रहता है...बड़ा शरीफ आदमी है, उसके भाई को लोगों ने डाके में फांस दिया है...क्या बताऊं, बड़ा दुःख होता है....बेकसूर आदमी...।’’

‘‘अभी तो शिनाख्त तो नहीं हुई है, सर।’’

‘‘अरे भाई, मुझे क्या मालूम, क्या हुआ है और क्या नहीं हुआ। मैं तो यह मान बैठा हूं कि उसे फांसी हो जायेगी...छोटे-छोटे बच्चे...।’’

‘‘नहीं जी, यह कैसे हो सकता है।’’

‘‘भाई बेकसूर आदमी है। बाल-बच्चे भूखे मर जायेंगे।’’

‘‘नहीं जी, यह कैसे हो सकता है। आपका आदमी मेरा आदमी...।’’

‘‘नहीं भाई, नहीं, कानून को अपने हाथ में न लेना। कानून तो धर्म से ज्यादा पवित्र है। बस यदि कुछ...।’’

‘‘आप चिन्ता न करें, सर...दस साल से पुलिस की नौकरी में...।’’

‘‘हां, भाई, वह तो है ही...’’

‘‘सो सर मछली...’’

‘‘नहीं भाई, मछलियां,’’ वे हंसने लगे।

‘‘जी सर, मछलियां।’’

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: असगर वजाहत की कहानी - मछलियां
असगर वजाहत की कहानी - मछलियां
http://lh6.ggpht.com/-R3wdrNlh2B4/U1tOE-wD1FI/AAAAAAAAYHw/x0Mxp-7qk2k/asghar%252520wajahat_thumb.jpg?imgmax=800
http://lh6.ggpht.com/-R3wdrNlh2B4/U1tOE-wD1FI/AAAAAAAAYHw/x0Mxp-7qk2k/s72-c/asghar%252520wajahat_thumb.jpg?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2014/04/blog-post_6338.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2014/04/blog-post_6338.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content