लघुकथाएँ

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प्रमोद यादव समाधान एक शहर में एक बहुत ही काली-कलूटी कुरूप लड़की अपनी दो गोरी-गोरी बहनों व माता-पिता के साथ रहती थी.वह अपनी कुरूपता से इस क...

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प्रमोद यादव

समाधान

एक शहर में एक बहुत ही काली-कलूटी कुरूप लड़की अपनी दो गोरी-गोरी बहनों व माता-पिता के साथ रहती थी.वह अपनी कुरूपता से इस कदर दुखी रहती कि दर्पण देखने का साहस भी न जुटा पाती...राह चलते लोग उसे देख ऐसी मुँह बनाते जैसे उन्होंने कोई घृणित चीज देख लिया हो..घरवाले तो कभी कुछ नहीं कहते पर बाहरवालों की टिपण्णी और उपेक्षा से वह जार-जार रोटी...प्रभू के आगे घंटों आँसू बहाती..

एक दिन प्रभू उसकी व्यथा से व्यथित हो प्रगट हुए और बोले- ’ बच्ची..क्यों इतना दुखी होती हो ? तुम्हारी समस्या से मैं वाकिफ हूँ..हर समस्या का समाधान भी होता है..तुमने कभी समाधान की कोशिश की ? ‘

‘ क्या कोशिश नहीं की प्रभू...फेयर एंड लवली, पोंड्स, इमामी, तरह-तरह के क्रीम आदि लगाया पर सबने धोखा दिया..मेरे माता-पिता इतने धनी भी नहीं कि माईकल जेक्शन की तरह मेरी प्लास्टिक सर्जरी करवा सके..’

‘ अरे पगली..इसमें धन की क्या जरुरत ? तुम तो मात्र पच्चीस रुपये में इस समस्या से छुटकारा पा सकती हो....अभी और इसी वक्त..’

‘ वो कैसे प्रभू ? ‘ लड़की विस्मित हुई.

‘ बाजार जाओ और एक सुन्दर सा दुपट्टा खरीदो..उसे सिर से लेकर गले के नीचे तक ऐसे लपेटो कि केवल दीदे भर दिखाई दे..लगे तो उस पर भी चश्मा चढ़ा लो और फर्राटे के साथ स्कूटी या सायकल पर उडो..तुम पर ना कोई टिपण्णी करेगा ना ही उपेक्षा करेगा ..उलटे लोग तुम्हारे पीछे भागेंगे...जाओ..समय मत गवांओ...मैं साल भर बाद तुमसे मिलूंगा..’

साल भर बाद प्रभू प्रगट हुए..

लड़की से पूछे-‘ क्या हाल है बच्ची ? ‘

लड़की ख़ुशी से चहकते बोली- ‘ बहुत खुश हूँ प्रभू..अमन-चैन से हूँ...शुरू-शुरू में थोड़ी दिक्कतें आई..हर कोई दुपट्टे का रहस्य पूछते..मैं सबको एक ही जवाब देती- धूल-धुंवां आदि के प्रदूषण से बचने मुँह बांधती हूँ..लेकिन अब कोई कुछ नहीं पूछता अब तो यह सजगता शत-प्रतिशत लड़कियों के सिर पर सवार है..अब मैं अकेली ही ( कुरूप ) नहीं, शहर की सारी लडकियां मेरे साथ ( कुरूप ) हैं..सबको नकाब में देखती हूँ तो बहुत ख़ुशी होती है.हम सबमें एकरूपता जो आ गई.. थैंक यू प्रभू..यू आर ग्रेट.. थैंक यू ’

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लघु हास्य-व्यंग्य

मेरे पास माँ है

पिछले दिनों संसद के गलियारे में एकाएक पी.एम. ने जब शहजादे को खड़े देखा तो वे उनकी ओर बढे और बेहद ही गर्मजोशी के साथ उनसे हाथ मिलाया. शहजादे ने भी उसी शिद्दत से हाथ मिलाया.दोनों देर तक हाथों को जोड़े रहे. पी.एम..के होठों पर लम्बी मुस्कान खिंची थी तो शहजादे ने भी कोशिश करके उनसे भी दूगुनी मुस्कान बिखेरी थी .. दो ही पलों में आँखों ही आँखों में उन्होंने कई बातें कर डाली. आँखों की भाषा का हिंदी अनुवाद कुछ यूं है –

‘ देखा शहजादे...हम कहते न थे-हमारी सरकार बनेगी..पी.एम.की कुर्सी पर हम ही विराजमान होंगे..तुमने तो इसे मजाक ही समझा ..अब बोलो..?’

‘अब क्या बोलूंजी..’ शहजादे ने राजकपूर वाले अंदाज में कहा- ‘ मैं तो अपनी ही पार्टी में मजाक बन गया हूँ. जोकर बन गया हूँ...हमारे खेमे में एक से एक सुपर-डुपर धुरंधर नेता और मंत्री थे इसलिए डूबने की बात तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था..’

पी.एम. ने बीच में बात काट दी –‘ नहीं शहजादे..वे धुरंधर नहीं-नंबर एक के घोटालेबाज थे..आस्तीन के सांप थे...तुम्हारे पी.एम. भर समझदार थे..उन्होंने पहले ही कुर्सी का मोह त्याग हमें “वाकोवर” दे दिया..अब देखो- मेरे पास पी.एम.की कुर्सी है...सेवन रेसकोर्स का बंगला है.. मंत्रालय है..दरबारी मंत्री है..नौकरशाह है..एस.पी.जी. है..तुम्हारे पास क्या है ? ‘

शहजादे ने भोलेपन से कहा- ‘ मेरे पास माँ है...’

‘ तो अब अपनी माँ को लेकर चार-पांच साल की छुट्टियाँ मना आओ बरखुरदार..ननिहाल हो आओ.. मन बहल जाएगा..तब तक मैं देशवाशियों के लिए “अच्छे दिनों” की व्यवस्था करता हूँ.. अरे हाँ....माँ से याद आया कि मुझे भी माँ के पास जाना है..पडोसी पी.एम. ने उनके लिए सिल्क की साडी भेजी है,उसे देने हैं ..अच्छा.. तो हम चलते हैं..’

शहजादे ने नहीं पूछा कि फिर कब मिलोगे ?

दोनों पीठ मोड़ अपने-अपने रास्ते निकल गये.

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सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

पूजा घर

 

एक अर्से बाद मेरा इस शहर में आना हुआ . बड़ा प्यारा शहर है . इसलिए नहीं कि यहाँ की गलियाँ साफ़ हैं या तरतीब से बसा हुआ है या यहाँ गुंडा - गर्दी नहीं है या यहाँ की पुलीस मुस्तैद है . वो सब तो मेरे शहर जैसा ही है . यह शहर प्यारा इसलिए है क्योंकि यहां मेरा सबसे प्यारा दोस्त श्रीकांत रहता है . श्रीकांत वचन का पक्का है .उसके अपने उसूल हैं , हर हॉल में उन उसूलों पर चलता है . सभी जरूरत मंदों के लिए आगे बढ़कर मदद्त की इच्छा रखता है और विवेक का इस्तमाल किये बिना किसी बात पर यकीन नहीं करता . कहता है घंटे - घड़ियालों में कुछ नहीं रक्खा . बेजान मुर्तिओं की पूजा करने से कुछ नहीं मिलता . ईश्वर की पूजा कर्म में होती है . कर्म करो तो सब कुछ मिल जाता है .

मैं उसे सुचना दिए बिना ही उसके घर जा धमका था क्योंकि मैं उसे सरप्राइज देना चाहता था .उसके घर के हर कोने से सम्पन्नता दमक रही थी . मुझे अच्छा लगा कि उसके पक्के उसूल उसकी भरपूर मदद्त कर कर रहे हैं .

कॉल - बेल बजाई तो द्वार उसकी बिटिया ने खोला . वह मुझे पहचानती थी . उसने मेरा अभिवादन किया और मैंने स्नेह से उसे थपथपाया . बिटिया बोली , " अंकल जी , अंदर आ जाइये ."

मैं ड्राइंग - रूम में जाकर कीमती सोफे पर बैठ गया . श्रीकांत जैसे उसूलों वाले आदमीं के घर में आये सुखद बदलाव से मैं हैरान भी हो रहा था . बैठते ही मैंने पुछा , " बिटिया ! पापा कहीं गए हैं क्या ? "

" नहीं अंकल ! पापा , पूजा - घर में हैं और पूजा कर रहे हैं ."

श्रीकांत के बारे में मुझे मिली ,यह सूचना मेरे लिए विश्व का आठवां आश्चर्य थी . पानी का गिलास पकड़े मेरा हाथ अपनी जगह पर रूक गया . मैं अवाक् दृष्टि से बिटिया को देख ही रहा था कि श्रीकांत ने कमरे में प्रवेश किया और मेरे प्रति उसकी गर्म - जोशी भी अत्यंत आत्मीय थी .

मैं अपनी उत्सुकता संभाल नहीं पा रहा था . मैंने बिना देरी किये पूछ डाला , " अरे भाई घंटे - - घड़ियालों और मुर्तिओं जैसी बेजान चीजों में जरा भी यकीन न रखने वाले श्रीकांत की जिंदगी में पूजा घर और पूजा कहाँ से आ गयी ? "

मेरी जिज्ञासा और बेचैनी पर श्रीकांत बड़े सलीके से मुस्कुराया और बोला , " इतनी दूर से आया है , बता क्या लेगा .... ठंडा या गर्म ? "

" वो सब बाद मैं . पहले मेरी उत्सुकता शांत कर ."

श्रीकांत ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे आत्मीयता से अपने पूजा - घर की ओर ले गया . वहाँ पत्थर का एक छोटा सा कछ था . उस कछ में मानव जैसे तीन बुत थे .

" यह क्या ढकोसला है ? " मैंने पुछा .

" मेरे भाई यह कोई ढकोसला नहीं है , यह तीनों मेरे जीते जागते अन्न - दाता हैं .आज की मेरी भरपूर कामयाबी इन्ही देवताओं की देन है , रोज सबेरे मैं इन्हीं जीवित् हस्तिओं की पूजा करता हूँ ." श्रीकांत बड़ी संजीदगी से बोले जा रहा था .

" क्या बकवास कर रहा है ? " मैं तैश में आ गया .

" ठण्ड रक्ख ठण्ड . पहले पूरी बात को समझ , फिर बोलिओ .

".....................................? मैं चुप रहा .

" देख ! इनमें से पहले वाला बुत विकास - विभाग के इंजीनियर का है जिस पर शहर में किसी भी तरह के अवैद्य निर्माण न करने देने की जिम्मेदारी है , दूसरे वाला बुत नगर निगम के उस अधिकारी का है जो सरकारी जमीनों पर कब्जे करवाने में मदद्त करता है और तीसरे वाला बुत शहर के उस नेता का है जो उस इंजीनियर और उस अधिकारी का गाड - फादर है और उन्हें अपने काम की हर कोताही से बचाता है . "

" तू हर दिन इन कमीनों की पूजा क्यों करता है ?"

" क्योंकि इन्हीं कमीनों की वजह से मेरा धंधा कामयाबी से चलता है ."

" तूने नौकरी छोड़ दी क्या ? "

" हाँ , मैं नौकरी छोड़ कर बिल्ड़र बन गया हूँ और यह सभी शख्स मेरे काम में बड़े मददगार हैं . यह न हों या फिर ये कमीने कानून से काम करें तो मेरा धंधा चौपट हो जायेगा . मैं इन्हे मालामाल करता हूँ और यह मुझे , इसलिए रोज सुबह मैं इन कमीनों की पूजा करता हूँ ."

मैंने पाया श्रीकांत अब भी अपने उसूलों का पक्का है .

सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

D – 184 , Shyam Park Ext. Sahibabad . Pin . 201005 (U.P.)

E. Mail . arorask1951@yahoo.com 06/06/2014

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ललिता भाटिया

 

तमाचा 

दिल्ली जाने वाली एक बस खचाखच भर चुकी थी।
एक बुढिया बस रुकवा कर चढ गई।
कंडक्टर के मना करने पर उस ने कहा मुझे ज़रुरी जाना है।
किसी ने बुढिया को सीट नही दी।
अगले बस स्टैंड से एक युवा सुंदर लडकी बस मे चढी
तो एक दिल फैंक युवक ने अपनी सीट उसे आँफरकर दी
और खुद खडा हो गया।
युवती ने बुढिया को सीट पर बैठा दिया और खुद खडी रही ।
युवक अहिस्ता से बोला: " मैने तो सीट आप को दी थी।"
इस पर युवती बोली, : "धन्यवाद,
लेकिन किसी भी भी चीज पर बहन से ज्यादा मां का हक होता है
युवक के मुह पर मनो तमाचा जड़ दिया । 

 

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हम किसी से कम नहीं 

रोडवेज़ की बस अपनी स्पीड से चल रही थी । दोपहर का समय था सो अधिकतर सवारियां स्कूल ओर कोलेज की थी । सब से आगे की सीट पर तीन मनचले बैठे  थे । तीनो ने सिगरेट सुलगाई ओर धुआं उड़ाने लगे । पूरी बस में धुआं भर गया । सब के कहने पर भी बस के कंडक्टर की हिम्मत नहीं उन से कुछ कहने की । तभी उन के पीछे बैठी एक लड़की ने हिम्मत दिखाई :  प्लीज़ आप ये सिगरेट बुझा दो सब को तकलीफ हो रही हे । 

हां हां क्यों नहीं पर इसे बुझाने के दस रूपय लगेगे । एक लड़का हँसते हुए बोला तो उस के साथी भी हंस पड़े । इस पर लड़की ने तीस रुपए निकल कर देते हुए कहा : अब तो तीनो अपनी सिगरेट खिड़की से बाहर फेंक दो । उन के   सामने कोई रास्ता न था । चुपचाप सिगरेट बाहर फेंक दी । सभी सवारियां उस की हिम्मत की दाद दे रही थी । 

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आशीष त्रिवेदी

 

ताना बाना 

चुनाव के मौसम में  वाद विवाद चर्चाओं का दौर शबाब पर था। टी.वी. स्क्रीन पर एक गोले में समाज को हिन्दू, मुस्लिम, दलित सवर्ण कई वर्गों में बाँट कर किसके कितने वोट हैं इस पर चर्चा चल रही थी।

विभा ने टी.वी. बंद कर दिया। उसकी परेशानी कुछ और ही थी। दो दिन पहले ही वह अपनी ससुराल में शादी का एक कार्यक्रम निपटा कर लौटी थी। वापस आई तो पता चला कि उसकी ग़ैरहाज़िरी में उसके महिला क्लब के सदस्यों ने बच्चों के एक फैंसी ड्रेस कम्पटीशन की योजना बना डाली। जिसका आयोजन परसों शाम ही होना है। वक़्त काम था इसलिए उसने तय किया कि वह अपने चार साल के बेटे आयुष को इस बार प्रतियोगिता में शामिल नहीं करेगी। किंतु उस गोल मटोल से नठखट बालक ने अपनी शैतानियों से सबका मन मोह रखा था। इसलिए उसकी सभी सहेलियां पीछे पड़ गईं कि चाहें जो हो आयुष को प्रतियोगिता के लिए तैयार करना ही होगा।

विभा समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे।  बहुत सोंचने पर एक विचार उसके मन में आया। पिछली बार जन्माष्टमी के अवसर पर कृष्ण मंदिर समिति की ओर से भी ऐसी ही प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। उसने आयुष को कृष्ण की तरह सजाया था। इस बार भी उसे कृष्ण की तरह सजाएगी। उसने अलमारी से वो बक्सा निकाला जिसमें सारा सामान था। 'एक बार देख लेती हूँ कि सब कुछ ठीक है कि नहीं' यह सोंच कर उसने आयुष को तैयार किया। सर पर मोर पंख वाला मुकुट, गले में मोतियों की माला, पीला दुपट्टा सब कुछ सही था। फिर भी कुछ कम लग रहा था। उसने ध्यान से देखा कृष्ण की बंसी नहीं थी। सारा बक्सा छान मारा जहाँ जहाँ उम्मीद थी देख लिया। किंतु बांसुरी नहीं मिली। अब बिना बंसी के कृष्ण का श्रृंगार कैसे पूरा होगा।

ग़फ़्फ़ूर को उम्मीद थी कि आज उसकी कमाई अच्छी होगी। वैसे तो चुनाव के समय रैलियों और रोड शो के कारण माहौल मेले जैसा ही रहता है। किंतु आज जिनकी रैली थी पूरे मुल्क में उनकी लहर ज़ोरों पर थी। उन्हें सुनने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती थी।

पिछली दो पीढ़ियों से उसके यहाँ बांसुरी बनाने का काम किया जा रहा था। बांस के टुकड़े में वह स्वर के प्राण फूंक देता था। आज के लिए उसने ढेर सारी बांसुरी बनाई थीं। उसने बांसुरी से भरा एक थैला ख़ुद उठाया और एक अपने दस साल के बेटे इमरान के कंधे पर लटका दिया। तय हुआ था की दोनों गली मुहल्लों से गुज़रते हुए पैदल उस जगह पहुंचेंगे जहाँ रैली होनी थी। इमरान बांसुरी बजता हुआ आगे आगे चलने लगा। वह बंसी की ऐसी मीठी तान छेड़ता था कि सुनने वाला द्वापर युग में पहुँच जाता था।

विभा का मूड खराब हो गया था। उसकी सारी योजना पर पानी फिर गया था। उदास होकर वह बाहर बरामदे में आकर बैठ गई। तभी बांसुरी की आवाज़ उसके कानों में पड़ी। वह भाग कर दरवाज़े पर आई। देखा तो गली के मोड़ पर एक लड़का बांसुरी बजाता चला आ रहा था। " ए भइया ज़रा इधर आना" उसने ज़ोर से पुकारा।

इमरान ने सुना तो वह उस ओर भगा। एक बांसुरी बिकने की संभावना से वह खुश हो गया। ग़फ़्फ़ूर भी उसके पीछे आ गया।

विभा ने पूंछा " कितने की है"

" दस रूपए की"

" ठीक ठीक बोलो"

" ठीक ही है आंटी, इतनी महंगाई है, दस रुपये बहुत नहीं हैं" इमरान ने समझाया

" एक दे दो" विभा ने उसे दस रूपए का नोट देते हुए कहा

इमरान के हाथ से बांसुरी लेकर नन्हें कान्हा पूरी तरह सज गए थे। खुश होकर ताली बजा बजा कर ठुमकने लगे।

 

आशीष कुमार त्रिवेदी

C -2072 इंदिरा नगर

लखनऊ-226016

E-MAIL OMANAND.1994@GMAIL.COM

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अशोक बाबू

आइसक्रीम 

टन...टन ...टन...टन...आइसक्रीम वाला,आइसक्रीम लेलो I 

अमन खिड़की से झाँका I 

"मम्मा आइसक्रीम वाला,मुझे आइसक्रीम दिलाओ न I" 

"नहीं बेटा आइसक्रीम नहीं खाते, जुखाम हो जाएगा I"

"नहीं होगा,मम्मा आइसक्रीम दिलाओ न I" अमन जिद्द पकड़ते बोला I 

मम्मा ने साड़ी के पल्लू की गाँठ खोली I सिकुड़ा हुआ मैला सा नोट हाथ में थमा दिआ I बोली,"पप्पा से मत कहना कि तूने आइसक्रीम खाई है I 

अमन ने सिर हिल दिआ I 

"अरे ये क्या कर रहा है? पानी नहीं पीते अभी तूने आइसक्रीम खाई है I" जबरन दो चार घूँट पानी पी लिआ I 

"मम्मा मेरा सिर दुःख रहा है I हाथ -पैरों में भी हल्का दर्द हो रहा है I" अचानक छींक I 

"तुझसे पहले ही मना की थी,बेटा आइसक्रीम मत खा पर बेटा थोड़ी मानेगा उसके जी में आएगा वही करेगा I मेरे फजीहते करवाएगा I" 

"क्या हुआ अमन ऐसे क्यों लेटा है ?"

"पप्पा मैं वैसे ही लेटा हूँ I" अचानक छींक I 

"अरे तुझे तो जुखाम हो गया है,क्या खाया था ?"

"आइसक्रीम" मुँह से निकल गयी I 

"पैसे किसने दिए"

"मम्मा ने"

घर में हंगामा हो गया दोनों पति पत्निओं में झगड़ा होने लगा I मम्मा को कई डाँटें सुननी पड़ी I 

अमन पलंग से उठकर चुपचाप कौने में जा बैठा,सिर पर हाथ रखे हुए I      

          ग्राम-कदमन का पुरा,तहसील-अम्बाह,जिला-मुरैना(म. प्र.)476111 

ईमेल.ashokbabu.mahour@gmail.com

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(चित्र – रेखा श्रीवास्तव की कलाकृति)

COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव12:32 pm

    एक से बढ़ कर एक लघु कहानियाँ छोटी पर
    असरदार बड़े बड़े गूढ़ निहितार्थ छुपाये सभी
    लेखक बधाई और शुभकामनाये

    जवाब देंहटाएं
  2. Laghukathao mai Shri Pramod yadav ki Samadhan evm Sushri Lalita Bhatiya ki TAMACHA dono hi achchhi,prerak evm upyogi hai.Badhai.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. श्री शशि जी..मेरी लघु-कथा पसंद करने का शुक्रिया..प्रमोद यादव

      हटाएं
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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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