श्याम गुप्त का आलेख - जीव जीवन व मानव -भाग ३...

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जीव जीवन व मानव -भाग ३...

(ब) मानव का सामाजिक विकास

युगों तक प्रारंभिक होमो सेपियन घूमंतू शिकारी-संग्राहक -- के रूप में छोटी टोलियों में रहा करते थे | जैसे जैसे मस्तिष्क व सामाजिकता का विकास होता गया, सांस्कृतिक विकास की प्रक्रिया तीब्रतर होती गयी|

सांस्कृतिक उत्पत्ति व कृषि एवं पशुपालन -- सांस्कृतिक उत्पत्ति ..कृषि व पशुपालन के विकास के साथ सांस्कृतिक विकास ने जैविक उत्पत्ति का स्थान ले लिया| लगभग 8500 और 7000 ईपू के बीच, मध्य पूर्व के उपजाऊ अर्धचन्द्राकार क्षेत्र में रहने वाले मानवों ने वनस्पतियों व पशुओं के व्यवस्थित पालन की व्यवस्था कृषि शुरुआत की जो प्रारम्भ में खानाबदोश थे व विभिन्न क्षेत्रों में घूमते रहते थे |

यह अर्ध-चंद्राकार क्षेत्र वास्तव में भारतीय भूभाग का ब्रह्मावर्त क्षेत्र था जहां सर्वप्रथम कृषि व पशुपालन प्रारम्भ हुआ| मथुरा-गोवर्धन क्षेत्र विश्व में प्रथम पशुपालन व कृषि सभ्यताएं थीं, जिसका वर्णन ऋग्वेद में भी है |

स्थाई बस्तियों का विकासकृषि का प्रभाव दूर दूर तक पड़ोसी क्षेत्रों तक फैला व अन्य स्थानों पर स्वतंत्र रूप से भी विकसित हुआ | कृषि व पशु-पालन की विभिन्न स्थिर पद्धतियों के विकास ने मानव को खानाबदोश जीवन की बजाय एक स्थान पर स्थिर होकर रहने को वाध्य किया और मानव (होमो सेपियन्स ) कृषकों के रूप में स्थाई बस्तियों में स्थानबद्ध हुए |

जनसंख्या वृद्धि - सभी समाजों ने खानाबदोश जीवन का त्याग नहीं किया—अतः वहाँ सभ्यता तेजी से नहीं बढ़ी |  विशेष रूप से जो पृथ्वी के ऐसे क्षेत्रों में निवास करते थे, जहां घरेलू बनाई जा सकने वाली वनस्पतियों व पशु-पालन योग्य प्रजातियां बहुत कम थीं (जैसे ऑस्ट्रलिया, ) ... कृषि को न अपनाने वाली सभ्यताओं में, कृषि द्वारा प्रदान की गई सापेक्ष-स्थिरता व बढ़ी एवं स्थिरता के कारण जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्ति बढ़ी |

पृथ्वी की पहली उन्नत सभ्यता विकसित -- कृषि का एक महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा;  मनुष्य वातावरण को अभूतपूर्व रूप से प्रभावित करने लगे| अतिरिक्त खाद्यान्न ने एक पुरोहिती या संचालक वर्ग को जन्म दिया, जिसके बाद श्रम-विभाजन में वृद्धि हुई| परिणामस्वरूप मध्य पूर्व के सुमेर में 4000 और 3000 ईपू पृथ्वी की पहली सभ्यता विकसित हुई | शीघ्र ही प्राचीन मिस्र, सिंधु नदी की घाटी तथा चीन में अन्य सभ्यताएं विकसित हुईं|

वास्तव में सुमेरु हिमालयन क्षेत्र का केन्द्र-स्थान है, यहीं कैलाश पर्वत व मानसरोवर झील क्षेत्र है जो महादेव का धाम है | यहीं से विश्व की सर्व -प्रथम उन्नत सभ्यता भारतीय सभ्यता देव-सभ्यता के नाम से सर्व-प्रथम विक्सित हुई | पुनः सिंधु-क्षेत्र में आर्य-सभ्यता के नाम से विक्सित हुई व् ब्रह्मावर्त के अर्धचंद्राकार क्षेत्र गंगा-जमुना के दोआब..उत्तर भारत में स्थापित हुई|

आज मानव निवास की सबसे ऊंची चोटी हिमालय की बंदर-पूंछ चोटी है....जिसे सुमेरु भी कहा जाता है.. अर्थात बन्दर की पूंछ लुप्त होकर मानव बनने का स्थान | सुमेरु विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता का स्थान कहा जाता है|

धर्मों का विकास -- 3000 ईपू, हिंदुत्व- विश्व के प्राचीनतम धर्मों में से एक, जिसका पालन आज भी किया जाता है, की रचना शुरु हुई. इसके बाद शीघ्र ही अन्य धर्म भी

विकसित हुए धर्म वस्तुतः ज्ञान व अनुभव के वैज्ञानिक आधार पर रचित सामाजिक व्यवस्थाएं थीं | हिंदुओं के पारंपरिक -मौखिक ज्ञान वैदिक साहित्य ने विश्व-समाज में धर्म, समाज, साहित्य, कला व विज्ञान की उन्नति व विकास में अभूतपूर्व योगदान दिया |

मानव सभ्यता के इतिहास का अंधकार-मय काल..(डार्क पीरियड ऑफ हिस्ट्री)...

वस्तुतः भारतीय विद्वान मानव जाति के स्वर्णिम युग --वैदिक-युग का काल १०००० हज़ार ई.पू. का मानते हैं | महाभारत युद्ध ( महाभारत काल-५५००-३००० ई.पू.) एक विश्व-युद्ध था एवं जैसे वर्णन मिलते हैं वह एक परमाणु-युद्ध था जिसमें भीषण जन-धन-संसाधन व स्थानों व जातियों-कुलों व संस्कृति का विनाश हुआ | सभ्यता के महा-विनाश से इस काल के आगे का इतिहास प्राय: अँधेरे में है| विश्व भर के लिए प्रेरक, उन्नायक व उन्नति-कारक भारतीय-सभ्यता के अज्ञानान्धकार में डूब जाने से सारे विश्व इतिहास का ही यह एक अन्धकार-मय काल रहा | जिसमें विश्व भर में सभ्यता का कोई विकास नहीं हुआ| विश्व भर में छोटे-छोटे स्थानीय स्वायत्तशासी राज्य बच गए थे जो आपस में वर्चस्व व धन के लिए युद्ध किया करते थे, शासक प्रायः निरंकुश व अत्याचारी, विलासी थे, धर्माडंबर, दास-प्रथाएं आदि विभिन्न कुप्रथाएँ फ़ैली हुईं थीं | सारा योरोप लौहयुग में स्थित था| शासक अपने व्यक्तिगत लाभ-हानि एवं आडम्बर हेतु गुलामों से बड़े बड़े निर्माण आदि कराया करते थे | बेबीलोन, असीरिया, मेसोपोटामिया, मिस्र आदि देश अपने अपने में ही स्थित थे | भारत में भी लगभग यही स्थिति थी| स्थानीय स्तरों पर कला व साहित्य, मूर्तिकला व विज्ञान में खोजें भी होती रहीं परन्तु सभी मानव जाति अज्ञानान्धकार के आडम्बर वे आपसी युद्धों आदि में लिप्त रही | सामाजिकता व बाह्य जगत से महत्वपूर्ण संबंधों आदि का अधिक ज़िक्र नहीं मिलता |

.......अंतत लगभग ६००-५०० ई.पू में नई-सभ्यता के चिन्ह प्राप्त होते हैं|

नई सभ्यताओं का विकास( मध्यकाल )

भाषा व लेखन के आविष्कार--- ने जटिल समाजों के विकास को सक्षम बनाया था | मिट्टी की तख्तियों, लौह-पत्र, ताम्र-पत्र, शिला-लेख, चर्म, सिल्क एवं भोज-पत्र का लेखन हेतु उपयोग ने प्राचीन ग्रंथों व ज्ञान के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी | वैदिक युग से महाभारत-काल तक विश्व व भारतीय सभ्यता के स्वर्ण-काल में संस्कृत भाषा व भोजपत्रों पर लिखित ग्रंथों का सभ्यता के विकास में अति-महत्वपूर्ण योगदान था |

महाभारत काल- (५५००-३००० ईपू ) के पश्चात पुनः लगभग ६००-५०० ई.पू. में विज्ञान के प्राचीन रूप में विभिन्न विषय विकसित हुए जो मानव के सुख-सुविधा के हेतु बने | भाषा व लेखन के आविष्कार ने साहित्यिक कृतियाँ इलियड, ओडिसी आदि की रचना में सहयोग दिया | भारत में पाणिनि ने संस्कृत भाषा का व्याकरण रचना कोष की रचना की, योरोप में रोम साम्राज्य का उत्थान, जराथ्रुश्त्र धर्म, भारत में बौद्ध व जैन धर्म का उदय, वैशाली में विश्व का प्रथम गणराज्य की स्थापना, ओलम्पिक खेलों का प्रारम्भ के साथ विविध विकास प्रारम्भ हुए|

साम्राज्यों का विकास ---महाभारत काल- (५५००-३००० ईपू ) के पश्चात पुनः लगभग ६००-५०० ई.पू. में नई सभ्यताओं का उदय हुआ, जो एक दूसरे के साथ व्यापार किया करतीं थीं और अपने इलाके व संसाधनों के लिये युद्ध किया करतीं थीं| ६००-500 ईपू के आस-पास, मध्य पूर्व, इरान, भारत, चीन, योरोप, मध्य-एशिया और ग्रीस, मिस्र में लगभग एक जैसे साम्राज्य थे जो आपस में एक दूसरे से युद्ध में हारते व जीतते रहते थे और देशों के अधिकार क्षेत्र व् सीमा-क्षेत्र घटते व बढ़ते रहते थे | युद्ध के कारण मूलतः व्यापार या प्रयोगार्थ संसाधन हुआ करते थे| कभी-कभी व्यक्तिगत झगड़े व स्त्रियाँ भी |

विश्वविद्यालयों (प्राचीनतम शिक्षा केन्द्रभारतीय वि.वि. तक्षशिला व नालंदा थे ) द्वारा ज्ञान के प्रसार को सक्षम बनाया गया | पुस्तकालयों के उद्भव ने ज्ञान के भण्डार का कार्य किया और ज्ञान व जानकारी के सांस्कृतिक संचरण को आगे बढ़ाया | भारत में इस काल में एक पुनर्जागरण हुआ जिसके कारण इस युग में भी भारत व भारतीय-सभ्यता विश्व में सिरमौर बन चुकी थी| अब मनुष्यों को अपना सारा समय केवल अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिये कार्य करने में खर्च नहीं करना पड़ता था- जिज्ञासा और शिक्षा ने ज्ञान तथा बुद्धि द्वारा नई-नई खोजों की प्रेरणा दी

आधुनिक विज्ञान का युग

प्रथम शताब्दी में कागज़ के आविष्कार (१०५ ई...त्साई लूँ ..चीन का हान-साम्राज्य ) व चौथी शताब्दी से पूर्ण प्रचलन में आने पर एवं मुद्रण-कला (१४३९ई...जर्मनी के गुटेनबर्ग द्वारा ) के आविष्कार से ज्ञान-विज्ञान व उसका संरक्षण तेजी से बढ़ा |

चौदहवीं सदी में, धर्म, कला व विज्ञान में तेजी से हुई उन्नति के साथ ही इटली से पुनर्जागरण काल ( रेनेशां ) का प्रारम्भ हुआ जो पूरे योरोप में फ़ैल गया| पुनर्जागरण सचमुच वर्तमान युग का आरंभ है। सन 1500 ई. में वास्तव में यूरोपीय सभ्यता की नवीनीकरण की शुरुआत हुई, जिसने वैज्ञानिक तथा औद्योगिक क्रांतियों को जन्म दिया, जिसके बल पर उस महाद्वीप द्वारा पूरे ग्रह पर फैले मानवीय समाजों पर राजनैतिक और सांस्कृतिक प्रभुत्व जमाने के प्रयास से सन 1914 से 1918 तथा 1939 से 1945t तक, पूरे विश्व के देश विश्व-युद्धों में उलझे रहे |

यह वास्तव में योरोप द्वारा उच्च-ज्ञान,उन्नत-सभ्यता व सुस्संकारिता का प्रथम स्वाद था जो भारतीय ज्ञान-विज्ञान, लूटे हुए शास्त्रादि-पुस्तकें व अकूत धन, खजाने आदि .. के अरब व्यापारियों, मुस्लिम आक्रान्ताओं व अन्य योरोपीय व ब्रिटिश साम्राज्यवादियों द्वारा मध्य-एशिया से योरोप तक फैलाये जाने से प्राप्त हुआ| जिनके आधार पर व प्रकाश में योरोप में वैज्ञानिक नवोन्नति व औद्योगिक क्रान्ति हुई|

सांस्कृतिक दृष्टि से यह युग अधि-भौतिकता के विरुद्ध भौतिकता का एवं मध्ययुगीन सामंती अंकुशों-अत्याचारों से व्यथित समाज द्वारा सामाजिक अंकुशों के विरुद्ध व्यवस्था है। यह कथित रूप में व्यक्तिवाद व अंधविश्वास के विरुद्ध विज्ञान के संघर्ष का युग था |

यह भारतीय प्रभाव में यूनानी और रोमन शास्त्रीय विचारों के पुनर्जन्म का काल था | परन्तु भारतीय ज्ञान-विज्ञान के दर्शन व धर्म से समन्वय नीति को न समझ पाने के कारण पुनर्जागरण के साथ प्रक्षन्न मानववाद भी पनपा| अर्थात लौकिक मानव के ऊपर अलौकिकता, धर्म और वैराग्य को महत्व नहीं चाहिए। जिसने अंत में उसी व्यक्तिवाद को जन्म दिया जिसके विरुद्ध विज्ञान का संघर्ष प्रारम्भ हुआ था| इसने एक नए शक्तिशाली मध्यवृत्तवर्ग को भी जन्म दिया, बौद्धिक जीवन में एक क्रांति पैदा की। पुनर्जागरण और सुधार आंदोलन दोनों पाश्चात्य प्राचीन पंरपराओं से प्रेरणा लेते थे, और नए सांस्कृतिक मूल्यों का निर्माण करते थे।

18वीं शताब्दी तर्क और रीति का उत्कर्षकाल व पुनर्जागरण काल की समाप्ति है। तर्कवाद और यांत्रिक भौतिकवाद का विकास हुआ| धर्म की जगह, मनुष्य के साधारण सामाजिक जीवन, राजनीति, व्यावहारिक नैतिकता इत्यादि पर जोर | यह आधुनिक गद्य के विकास का युग भी है। दलगत संघर्षों, कॉफी-हाउसों और क्लबों में अपनी शक्ति के प्रति जागरूक मध्यवर्ग की नैतिकता ने इस युग में पत्रकारिता को जन्म दिया।-

19वीं शताब्दी में ---रोमैंटिक युग में फिर व्यक्ति की आत्मा का उन्मेषपूर्ण और उल्लसित स्वर सुन पड़ता है| तर्क की जगह सहज गीतिमय अनुभूति और कल्पना; अभिव्यक्ति में साधारणीकरण की जगह व्यक्तिनिष्ठता, नगरों के कृत्रिम जीवन से प्रकृति और एकांत की ओर मुड़ना स्थूलता की जगह सूक्ष्म आदर्श और स्वप्न, मध्ययुग और प्राचीन इतिहास का आकर्षण;  मनुष्य में आस्था | विक्टोरिया के युग में जहाँ एक ओर जनवादी विचारों और विज्ञान पर अटूट विशवास जन्म हुआ वहीं क्रान्तिवादिता का भी जन्म हुआ|

20वीं शताब्दी---- फासिज्म, रूस की समाजवादी क्रांति, समाजवाद की स्थापना और पराधीन देशों के स्वातंत्र्य संग्राम; प्रकृति पर विज्ञान की विजय व नियंत्रण से सामाजिक विकास की अमित संभावनाएँ और उनके साथ व्यक्ति व जीवन की संगति-समन्वय की समस्यायें- अति-भौतिकतावाद से उत्पन्न..पर्यावरण, प्रदूषण, भ्रष्टाचार, अनैतिकता, अनाचार, स्वच्छंदता आदि...भी उत्पन्न हुईं । व्यक्तिवादी आदर्श का विघटन तेजी से हुआ अतः यौन कुंठाओं के विरुद्ध भी आवाज उठी। जिसमें चिंता, भय और दिशाहीनता और विघटन की प्रवृत्ति की प्रधानता है।

फिर से भारत -----भारतीय दृष्टि से अंधकार-युग के पश्चात विश्व के सामंती युग का प्रभाव भारत पर भी रहा| अपनी सांस्कृतिक धरोहर की विस्मृति से उत्पन्न राजनैतिक अस्थिरता के कारण उत्तरपश्चिम की असभ्य व बर्बर जातियों के अधार्मिक, खूंखार व अनैतिक चालों से देश गुलामी में फंसता चला गया| योरोप के पुनर्जागरण से बीसवीं शताब्दी तक विश्व के सभी देश भारत पर अधिकार को लालायित रहे एवं योजनाबद्ध तरीकों से भारतीय पुस्तकालयों, विश्वविद्यालयों, शैक्षिक केन्द्रों, संस्कृति का विनाश

व प्राचीन शास्त्रों की अनुचित व्याख्याओं द्वारा उन्हें हीन ठहराने के प्रयत्नों में लगे रहे| जिसमें असत्य वैज्ञानिक, दार्शनिक, व साहित्यिक तथ्यों का सहारा भी लिया जाता रहा, ताकि भारतीय अपने गौरव को पुनः प्राप्त न कर पायें एवं उनका साम्राज्य बना रहे| परन्तु १९ वीं सदी में भारतीय नव-जागरण काल प्रारम्भ हुआ और स्वतन्त्रता युद्ध द्वारा १९४७ ई. में विदेशी दासता के जुए को उतार कर भारत एक बार फिर अपने मज़बूत पैरों पर उठ खडा हुआ है अपने समर्थ, सक्षम, सुखद अतीत के ज्ञान-विज्ञान को नव-ज्ञान से समन्वय करके अग्रगण्य देशों की पंक्ति में |

समाज का वैश्वीकरण

प्रथम विश्व युद्ध (१९१४१९१८ ) के बाद स्थापित लीग ऑफ नेशन्स विवादों को शांतिपूर्वक सुलझाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की स्थापना की ओर पहला कदम था. जब यह द्वितीय विश्व युद्ध को रोक पाने में विफल रही, तो इसका स्थान संयुक्त राष्ट्र संघ ने ले लिया| द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद विश्व क्षितिज पर नई शक्ति अमेरिका का उदय हुआ जो संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय भी बना| 1992 में, अनेक यूरोपीय राष्ट्रों ने मिलकर यूरोपीय संघ की स्थापना की. परिवहन व संचार में सुधार होने के कारण, पूरे विश्व में राष्ट्रों के राजनैतिक मामले और अर्थ-व्यवस्थाएं एक-दूसरे के साथ अधिक गुंथी हुई बनतीं गईं. इस वैश्वीकरण ने अक्सर टकराव व सहयोग दोनों ही उत्पन्न किये हैं, जो विभिन्न द्वंद्वों को जन्म देते रहते हैं |

कम्प्युटर युग--

बीसवीं सदी से प्रारम्भ, वर्त्तमान इक्कीसवीं सदी में कम्प्युटर व सुपर-कम्प्युटर के विकास ने मानव व सभ्यता के सर्वांगीण विकास को को नई-नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है | आज मानव सागर के अतल गहराइयों से लेकर आकाश की अपरिमित ऊंचाइयों को छानने में सक्षम है और मानव व्यवहार के दो मूल क्षेत्र विज्ञान व अध्यात्म दोनों ही को यदि अतिवाद से परे ..समन्वित भाव में प्रयोग-उपयोग किया जाय तो वे भविष्य में एक महामानव के विकास की कल्पना को सत्य करने में सक्षम हैं | जो शायद आपसी द्वेष-द्वंद्वों से परे व्यवहार कुशल-सरल व प्रेममय मानव होगा |

सायबॉर्ग या कम्प्युटर मैन..... की कल्पना ... सायबॉर्ग ऐसे काल्पनिक मशीनी मानव हैं, जिनका आधा शरीर मानव और आधा मशीन का बना होता है। ऐसे मानव विज्ञान के क्षेत्र और विज्ञान गल्प में दिखाये जाते हैं | इस शब्द का प्रयोग बाहरी अंतरिक्ष में मानव-मशीनी प्रणाली के प्रयोग के संदर्भ किया जाता है | इस प्रकार सायबॉर्ग की परिकल्पना एक ऐसे जीवित मानव या अन्य प्राणी की है जिसमें तकनीक के कारण कुछ असाधारण क्षमताएं उपलब्ध होती हैं।

विज्ञान कथाओं और फिल्मों में सायबॉर्ग के संबंध में मानवीय और मशीनी अंतर्द्वद्व को दर्शाया गया है। कथा-जगत और फिल्मों में दिखाए जाने वाले सायबॉर्ग प्रायः मानवों से बिल्कुल अलग अधिकतर योद्धाओं की छवि वाला दिखाया जाता है। इसके अतिरिक्त बौद्धिक स्तर पर भी वे मानव से बेहतर दिखाए जाते हैं।

साइबर मानव प्रणाली ( सी एच एस ) अनुसंधान.....मानव केंद्रित कंप्यूटिंग के ज्ञान और अभ्यास और परिणामों का निर्माण करने के लिए अनुभवजन्य तरीकों में निहित है| यह कंप्यूटिंग प्रौद्योगिकी और मानव जीवन और समाज लगातार प्रक्रिया में एक दूसरे को बदलने, सह विकसित, संभावित परिवर्तनकारी और विघटनकारी विचारों, सिद्धांतों को और आगे बढ़ाने के व्यापक लक्ष्य के साथ मनुष्य और कंप्यूटिंग के बीच जटिल संबंधों और हमारी समझ दोनों में तेजी लाने, मानव क्षमताओं, अवधारणात्मक और संज्ञानात्मक, शारीरिक और सामाजिक प्रगति के अनेक रूप प्रदर्शित करता है|

व्यक्ति को युक्ति से, सामाजिक रूप से बुद्धिमान कम्प्यूटिंग के लिए, व्यापक नेटवर्किंग द्वारा समर्थित बड़े, विकसित, विषम सामाजिक, तकनीकी प्रणालियों के लिए तैयार करना | उनके प्रदर्शन में सुधार के लिए अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने, मानव-भलाई के कार्यों के विचारों में सुधार ,रचनात्मक अभिव्यक्ति को बढ़ाने के लिए उन्हें शक्ति प्रदान करना, एक डिवाइस या वातावरण के माध्यम से व्यक्ति मानव क्षमताओं को बढ़ाना ,समाज के सामंजस्य, नवीनता, सुरक्षा और स्थिरता के लिए कंप्यूटिंग का उपयोग करने वाले सिस्टम को विक्सित करना |

चित्र--१..यंत्र मानव...

इस प्रकार यह एक एसे मानव के निर्माण की कल्पना है जो अधिक सामाजिक, समझदार, भलाई के कार्यों व दायित्व को वहन करने वाला, कुशल एवं एक स्वस्थ, सबल द्वंद्व हीन समाज के निर्माण की आधार शिला रखने वाला होगा, तथा भविष्य में एक महामानव के विकास की कल्पना को सत्य करने हेतु एक महत्वपूर्ण कड़ी सिद्ध होगा, यदि हम वास्तव में ही विज्ञान व अध्यात्म दोनों ही के दुरुपयोग से बचें एवं अतिवाद से परे ..समन्वित भाव में प्रयोग-उपयोग कर सकें |

चित्र २ - आधुनिक मानव का सामाजिक विकास

-----------चित्र-गूगल साभार ....

सन्दर्भ....

1-The age of earth... .Donlrymps  G S, Newman williyam.et el. US geological society 1997.

2.-evidence for Ancient bombardment on earth…by Robert rock

3-Evolution of fossils & plants…Taylor et el.

4-Origin of earth & moon.. NASA .by  Taylor

5-Did life come from another world?... wanflesh david  etc scientific American press.

6-cosmic evolution…tufts university by cherssan eric

7-Trends in ecology & evolution…Xiao S, lafflame S…

8-A natural history of first 4 Billions of life on earth New york nature & earth by  Forggy and Richmand…

9- First step on land….mac newton, Robert B and Jeniffer M..

10-The mass Extinction.... science Aug 05…

11- पृथ्वी का इतिहास एवं चन्द्रमा की उत्पत्ति व विशाल संघात अवधारणा…..विकीपीडिया

१२- भारत कोश ..

13. सायबॉर्ग : एवोल्यूशन ऑफ द सुपरमैन  … डी.एस. हेलेसी

-----क्रमश भाग-४..भविष्य का महामानव ( अंतिम) ..अगले अंक में ...

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: श्याम गुप्त का आलेख - जीव जीवन व मानव -भाग ३...
श्याम गुप्त का आलेख - जीव जीवन व मानव -भाग ३...
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