अखिलेश मिश्रा की कहानी - वापसी

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वापसी दफ़्तर में आज चारों तरफ शालू की ही चर्चा है। सब किसी के मुँह में शालू का ही नाम है। कंपनी की प्रोजेक्ट इंजीनियर शालू वाजपेयी ! करीब ...

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वापसी

दफ़्तर में आज चारों तरफ शालू की ही चर्चा है। सब किसी के मुँह में शालू का ही नाम है। कंपनी की प्रोजेक्ट इंजीनियर शालू वाजपेयी ! करीब एक साल पहले ही कंपनी में आईं थी और अपने काम की वजह से सबके बीच एक अलग जगह बना लिया था। सब लोग आगे बढ़कर शालू को बधाई दे रहें हैं। शालू को अमेरिका में अच्छी खासी तनख्वाह की नौकरी मिल गई है,इसीलिए उसने दफ़्तर में स्तीफ़ा की अर्जी दे दी है। कंपनी से स्तीफ़ा.....मतलब वह सबको छोडकर जा रही हैं। पर अरुण और शालू दोनों आज कुछ अलग से दिख रहे हैं। दोनों के चेहरे में हमेशा दिखने वाली रंगत गायब है। शालू के चेहरे से खुशी यदाकदा झलक भी जाती है,पर अरुण बिल्कुल शांत और दुःखी लग रहा है। इस बात की चर्चा थोड़ा दबी जुबान से चल रही है।

सब कह रहे हैं कि मैडम तो अमेरिका जाने को तैयार हैं पर साहब यहीं रहेंगे। तो क्या........? इसके बाद के विषय को जानने के लिए सब बेचैन और उत्सुक हैं। वैसे भी लोगों को अपने से ज्यादा दूसरों के बारे में जानने की कुछ ज्यादा ही उत्कंठा होती है। दफ़्तर में कार्यरत वर्मा बाबू,अपने बगल के सहकर्मी मित्र के कान में कुछ फुसफुसा रहें हैं । उनकी नजर बातों के साथ-साथ ही इधर-उधर घूम रही है,जैसे कोई सुन तो नहीं रहा है। मजा भी आ जाए और वफ़ादारी पर उँगली भी न उठे,या यों कहिए कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। वर्मा बाबू नंबर एक चापलूस हैं,सभी बॉस के !

खबर रखने वाले यह भी कह रहे हैं कि आज सुबह दोनों बिना नाश्ते किए ही दफ़्तर आ गए हैं। रात को भी घर में कुछ नहीं बना था। वह तो देर रात अरुण साहब ने हल्दीराम की दुकान से दो मसाले डोसे मगाएँ थे पर मैडम ने अरुण साहब के आग्रह के बावजूद भी कुछ नहीं खाया था। बीच-बीच में मैडम की चीखने और चिल्लाने की आवाज आ रही थी। कान को दीवार में लगाकर ध्यान से आवाज सुनने और सावधानी के साथ दूसरों के घर में आग लगाने में माहिर हांडे साहब ने बताया कि मैडम,अरुण साहब से तलाक के लिए कह रहीं थी और साहब हाथ जोड़कर कुछ समझा रहे थे। वह बार-बार यह भी कह रहे थे कि शांत.....शांत....शांत.....आवाज बाहर तक जा रही है। हांडे साहब के कान ऐसे हैं कि दूसरे के छाती की धड़कन को भी वह स्टेथोस्कोप की तरह सुन लेते हैं। सब लोग हांडे साहब से बहुत डरते हैं।

दफ्तर में काम करने वाली नीना अक्सर कहती है..................घरफोड़ू है हांडे बाबू !

दफ़्तर में दोनों को चाहने वाले उनके लिए दुआ माँग रहे हैं लेकिन ज्यादातर लोग समय का सर्वश्रेष्ठ उपयोग यानी परनिंदा कर रहे हैं।

शालू के समझ में नहीं आ रहा है कि वह हँसे की रोए। यदि अरुण साथ में चले तो वह उसको नहीं छोड़ेगी। दोपहर को अरुण और शालू अलग-अलग ही बैठे हैं।

अरुण अकेले ही अपनी कुर्सी में बैठा फ़ाइल के पन्ने पलटा रहा है। मन कहीं और है पर दिखाने के लिए पन्ने उलट रहा है। जिंदगी भी क्या चीज है ?कब किधर अपनी दिशा मोड़ दे,पता ही नहीं चलता है। किस पर विश्वास करें,किस पर नहीं करें ? कौन अपना है और कौन पराया ? किसी ने सच ही कहा है कि जिंदगी से बड़ी न कोई किताब है,न कोई खेल और न कोई छलावा। हे भगवान ! यह कहकर अरुण अपने हाथ को माथे पर रखकर मुँह को छिपा रहा है । अपने आप से....इस दुनिया से .......अपनों से.....गैरों से.......और किससे-किससे नहीं ! जाऊँ भी तो कहाँ जाऊँ ?

शाम के वक्त आसमान से बिजली कडक रही है। बरसात का मौसम होने की वजह से हल्की बूँदाबाँदी भी चालू है। पेंड पौधे हवा के साथ लहरा रहे हैं। दफ़्तर से निकलते समय अरुण ने शालू के केबिन कि तरफ देखा तो वह वहाँ नहीं थी। अरुण कुछ चिंतित हुआ पर फिर कुछ सोचकर घर जाने के लिए निकल पड़ा। उसके कदम आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। मानो वह निराशा की गहरी खाई से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है पर खाई में काई की इतनी चिकनाई है कि वह वापस उसी में फिसल जाता है। आज कई महीनों के बाद वह दफ़्तर से अकेले ही घर वापस जा रहा है।

घर में शालू और अरुण के बीच पूरी बात हो चुकी है अतः शाम को शालू अपने पिता के पास चली गई। उसने अरुण को यह बात सुबह ही बता दिया था।

शालू को देखकर ही समझा जा सकता था कि वह कुछ परेशान है। उसके पिता ने उसके परेशान चेहरे को देखकर पूछा,”क्या हुआ ? बड़े तनाव में दिख रही है ?”

“अरुण नहीं चाहता है कि मैं अमेरिका जाऊँ । ”

“तुम क्या चाहती हो ?”

“पापा ! मैं अमेरिका जरूर जाऊँगी। इसके लिए यदि मुझे तलाक भी लेना पड़ा,तो मुझे मंजूर है। ”

“शाबास ! मैं भी तेरे ही पक्ष में हूँ। ”

“अरुण अपने को समझता क्या है ? मैं उसकी नौकरानी थोड़ी हूँ। मैं पढ़ी-लिखी इंजीनियर हूँ। ”

“हाँ !............वह भी तो तेरे साथ जा सकता है। ”

“मैं भी यही कह रही हूँ। मैंने तो यहाँ तक कहा कि यदि तुम्हें नौकरी नहीं मिलेगी तो तुम घर पर ही रहना,मुझे बहुत पैसे मिलेंगे। पर वह तो अपनी नौकरी और अपने देश को छोड़ना ही नहीं चाहता। और ऊपर से मुझे भी यहीं इंडिया में रहने के लिए कह रहा है। ”

“बेवकूफ़ है। नालायक कहीं का !”

“मैंने तो वकील से मिलकर तलाक का कागज भी तैयार कर लिया है । ”

“ठीक किया है!”

“पापा !....मैं आप लोगों से दूर नहीं जा रही हूँ क्या ?..........बताइए ?वह भी तो ऐसे ही अपने माँ बाप से दूर जा सकता है। आजकल तो पूरी दुनिया ही अपनी है। वह कहता है कि अपने पुरखों की जमीन को छोड़कर कहीं नहीं जाएगा। ”

“तू बिल्कुल सही कह रही है और ठीक कर रही है। पैसे के लिए इंसान क्या-क्या त्याग नहीं करता है ? और यहाँ तो विदेश जाने की बात हो रही है। लड़का प्रगतिशील विचारों का नहीं है। ”

“प्रगतिशील !..............अरे वह तो हजार साल पुराने विचारों वाला है। ”

“तू परेशान मत हो !................भाड़ में जाने दे !”

शालू को अमेरिका में तीन लाख रुपये महीने की नौकरी मिल रही है। भारत में उसे चालीस हजार रुपये महीने ही मिलते हैं। वह दोनों सहपाठी थे और पढ़ाई के दौरान ही दोनों में प्रेम हुआ था। शालू इस शादी से बहुत खुश थी क्योंकि अरुण के पिता पैसे वाले हैं।

शालू गुस्से में अपने आप से कुछ बुदबुदा रही है।

“उसके जैसे सैकड़ों मेरे आगे पीछे घूमेंगे। वह अपने को समझता क्या है?आज उसकी मेरे सामने क्या औकात है ?वह भी तो मेरे साथ जा सकता है। मैंने ही अकेले प्यार थोड़ी किया है। उसने भी तो मुझसे प्यार किया था और तभी हम दोनों ने शादी की थी। एक प्रकार से वह भी मुझे छोड़ रहा है। मान लेते हैं कि उसे उतनी अच्छी नौकरी नहीं मिलेगी,तो वह घर पर रहकर अपना कुछ काम कर लेता और घर की देखभाल कर लेता। वैसे मैं जिस पद पर जा रही हूँ,कोई न कोई नौकरी उसे दिला ही देती। पर उसके दिमाग में तो वही सामंतवादी विचार और भारतीय प्रेम कि राम सीता की कहानी घुसी हुई है। यह लोग कभी नहीं बदलेंगे। कुएं के मेंढक ही रहेंगे सदा ! नहीं आने देंगे खुली हवा को,अपने घर के भीतर खिड़कियों से । गवांर हैं और वही बने रहेंगे। पुरखों की जमीन को छोडकर नहीं जाएँगे,भले ही पत्नी को छोड़ दें ! इसी सोच ने भारत को कभी आगे नहीं बढ़ने दिया ............ईडियट !”

चूँकि मामला गंभीर और परिवार में अपने प्रकार का पहला है,इसलिए शालू के पिता राघव ने सारी बात अपने पिता त्रिलोकीनाथ को बताया ।

“शालू को अमेरिका भेजित हैन। ”

“ठीक करते हये। अरुण के साथ उआ उहाँ खुश रही । ”

“अरुण नहीं जात आय । उआ चाहत है कि शालू इंहय रहय । ”

“त तू काहे का टाँग अड़उते हैं। इया उनके बीच के मामला आय। ”

“शालू जाय चाहत ही । उआ कहत लाग ही कि अरुण का तलाक दै देई । हमहूँ शालू के पक्ष म हैन । ”

“का बात कइ रहे हैं ? तुम्हार बिटिया बाप के दिमाग त ठीक है ?”

“बाबूजी ! बिटिया तीन लाख रुपिया महीना पाई । ”

“लूणा लागय अइसन रुपिया म !अरे पति पत्नी के संबंधव कौनव चीज होत है ?”

“अरुण काहे नहीं चला जात आय ? उहाँ घर के देखभाल करी !”

“तु अपने महेरिया कै कमाई खाय लेहे का ?--------बताबा ?”

“बाबूजी जमाना बदल गा है,तब के बात दूसर रही है। आजकल कैरियर पहिले है। ”

“भाड़ म ग अइसन कैरियर और अइसन रुपिया। आपस म प्रेम होय चाही,रुपिया पैसा थोड़ा बहुत उन्नीस बीस होत रहत है। रुपिया का चबिहा का !”

“शालू त तलाक के कागजात दस्तख़त कइ दिहिस है। ”

“उआ मूरुख का कहि दे कि हमहीं मरि जाय दे................... फेर इया सब करी। ”

“बाबूजी ! बात का समझय के कोशिश करी। ”

“हम कुछू नहीं समझा चाही!अरुण अच्छे घर परिवार के सीध-साध लड़का आय। ओखे साथ तु पचे अन्याय न करा। ”

“उआ काहे शालू के साथ नहीं चला जात आय। ”

“अपने महतारी बाप का छोड़ के,महेरिया के साथ अमेरिका चला जाय अउर ओखर गुलामी करय। हम मानित हैन कि हमरे पास बहुत पइसा नहीं रहा मगर हम तुमहीं इया मेर के संस्कार नहीं दिहेन। दुई रुपिया रही पर ओखा इज्जत के साथ खाएन। तु एतना लोभी कब से होइ गए ?”

“बाबूजी ! आज के युग म पइसय सब कुछ है। इससे सब कुछ खरीदा जा सकता है। ”

“मेरे सामने से दूर हट जा,मूर्ख !”

“बाबूजी !”

“मत बोल बाबूजी मुझे !”

त्रिलोकीनाथ उठकर बाहर चले गए। वह अंदर से बहुत दुःखी हैं। कुछ दिन के पश्चात एक रात वह ऐसे सोए कि नींद के बीच ही उनकी साँस दो चार बार हिच्च-हिच्च करने के बाद बंद हो गई । उनकी मृत्यु हो गई।

राघव के लिए यह बहुत गहरा आघात है। उन्हें ऐसा लग रहा है कि उनकी वजह से ही उनके पिता की जान गई है। शालू को भी दादाजी की मृत्यु पर गहरा दुख हुआ। उसने अपने तरीके से दादाजी को श्रद्धांजलि दी और मन ही मन प्रण लिया कि वह एक दिन अरबपति बनकर दिखाएगी। जिस अभाव को उसके दादाजी ने झेला है,वह उसे फटे कपड़े की तरह फेंक देगी।

अरुण ने शालू के तलाक पेपर पर चुपचाप दस्तख़त कर दिया। वह अंदर से टूट गया। दस्तखत करते समय वह कुछ बोल नहीं पाया। वह किसी को दोष नहीं दे सकता,क्योंकि पसंद उसी की थी।

“क्या वास्तव में इस दुनिया में पैसा ही सब कुछ है ?क्या मेरी विचारधारा में कमी है ? नहीं !मेरे माँ बाप ने जो शिक्षा मुझे दी है,वही सत्य है। मैं अपने को नहीं बद्लूंगा। ” इसी तरह के प्रश्नों से वह उलझ रहा है।

अपने घरवालों की मदद से वह किसी तरह अपने को संभाल रहा है।

शालू अमेरिका जाते समय बहुत खुश है। जिस हवाई जहाज को सिर्फ आकाश में उड़ते हुए ही देखा था,उसमें वह पहली बार बैठकर उड़ रही है। हवाई जहाज की ऊँचाई के साथ-साथ उसके सपने भी और ऊँचाई पर उड़ रहे हैं। वह आकाश से भी ऊपर जाना चाहती है। वह सब कुछ प्राप्त करना चाहती है,इसी जनम में !किसने देखा है,अगला जनम ?किसने देखा है राम सीता का समर्पित प्रेम ?सब कहानी है। जो आज चारों तरफ दिख रहा है,वही सत्य है। अजीब बात है,जो हो रहा है उसे हम स्वीकार नहीं करते और जो किसी ने देखा नहीं है उसे सत्य मानते हैं।

हवाई जहाज से उतरकर बड़ी लंबी सी मोटर से फर्राटा लगाकर वह होटल पहुँची। चमचमाता हुआ कमरा......स्वच्छ बेड कवर......एसी.......टॉइलेट भी ऐसा कि धूल का कोई कण नहीं ।

“कितना सुंदर है अमेरिका ? चमचमाता हुआ । अभावहीन । सब कुछ कल्पना से बाहर......यही दुनिया का स्वर्ग है। जब इसी धरती पर स्वर्ग मौजूद है फिर हम क्यों कल्पना के स्वर्ग के लिए अपने जीवन की आहुति देते हैं ?कहाँ अमेरिका और कहाँ मेरा गाँव तिघरा ? नरक है मेरा गाँव !.....भारत कभी अमेरिका के बराबर नहीं आ सकता। वहाँ अरुण जैसे नौजवान हैं..........आदर्शवादी नौजवान ! सत्यवादी !....भौतिकता के विरोधी । उनका बस चले तो वापस अपने काल्पनिक सतयुग में चले जाएँ। वास्तव में यह लोग पालयनवादी हैं। वर्तमान से असंतुष्ट !”

शालू के साथ भारत,अमेरिका,चीन तथा इंग्लैंड के कई लड़के हैं। उसने चहकते हुए अपने पापा को नौकरी के बारे में सब बताया। उसे एक ईलेक्ट्रोनिक प्रोजेक्ट के बड़े अहम हिस्से का इंचार्ज बनाया गया है।

“पापा ! बहुत अच्छा काम है। आगे चलकर काफी तरक्की हो सकती है। ”

“शाबास ! तू परेशान तो नहीं है ?”

“किस बात के लिए ?”

“अरुण को लेकर ?”

“ही इज माइ पास्ट,…………………आइ एम लुकिंग फार माइ फ्युचर नाऊ। ”

“शाबास !.....................आखिर तू बेटी किसकी है। ”

शालू के विदेश जाने के बाद से राघव के घर में पैसे की बरसात होने लगी। माँ लक्ष्मी ने मानो उन्हीं के घर में डेरा डाल लिया है। किसी भी प्रकार का भौतिक अभाव अब उनके घर के किसी भी कोने में कहीं नहीं दिखता है। उनके कपड़े,जूते,गाड़ी,खाना,सबका स्तर बढ़ गया है। अब वह तीन हजार से नीचे की शर्ट नहीं पहनते हैं। जूता रीबोक्क,वूडलैंड,अदीदास इत्यादि का तो चड्डी बनियान भी विदेशी कंपनी की पहनने लगे हैं। भारतीय ब्रांड से उन्हें नफरत होती है। आजकल वह शहर के रईश इलाक़े में बड़ा घर ढूढ़ रहे हैं। खाने में आइसक्रीम,बर्गर पीज़ा,मौसमी फल,घी इत्यादि की मात्रा बढ़ गई है। प्रयोग के तौर पर वह कभी-कभी चाईनीज और अन्य विदेशी भोजन खाने लगे हैं,घर में ही । गरीब और असहाय व्यक्ति को वह देखना भी पसंद नहीं करते हैं। उनकी नजर में यह लोग जीव जन्तु के ही समान हैं।

वह अक्सर कहते हैं,”साले !...समय रहते पढ़ाई लिखाई किए नहीं और अब रोनी सूरत लेकर घूमते हैं। शालू ने रात दिन मेहनत किया है,तब आज इस पद पर पहुँची है। उसने अपने कैरियर के लिए पति तक को छोड़ दिया। मैंने भी अपने पिता की बात को अनसुना किया और शालू को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। दरिद्रता से बड़ा कोई पाप नहीं होता और दरिद्रता सिर्फ पैसे से ही दूर की जा सकती है। अभी कल ही मैं अपने पुराने दोस्त चन्दन के यहाँ गया था। उसके दोनों बेटे घर में ही निठल्लों की तरह बैठे हैं। कुछ पूछने से दांत दिखाते हुए बोल देते हैं,अंकल !.. जॉब ढूँढ रहा हूँ। अरे इन नालायकों को कौन समझाए कि वह भी यदि शालू की तरह मेहनत किए हुए होते तो आज अमेरिका नहीं तो कम से कम बैंग्लोर में होते ही। एक सप्ताह पहले मिश्रा जी के यहाँ गया तो वह अपने बेटे के लिए रिटायरमेंट के पैसे से बिजनेस खोल रहे हैं। अरे बाप के दम पर व्यापार चालू किया तो कौन सा तीर मार लिया ? शालू तो कभी ट्यूशन कोचिंग भी नहीं गई। स्कूल कालेज की फीस के अलावा एक पैसा इधर-उधर खर्च नहीं किया । इसीलिए मैं जहाँ भी जाता हूँ,बात को घुमाकर शालू पर ला देता हूँ, जिससे लोग कुछ तो सबक लें। ”

राघव अपनी भाषा के बजाए अब अंग्रेजी का उपयोग ज्यादा करने कि कोशिश करते हैं। सप्ताह के दिन,खाने पीने की चीजों,रोज़मर्रा के काम में उपयोग आने वाले घरेलू सामान इत्यादि का नाम वह अँग्रेजी में ही लेते हैं। ऐसा करने से उन्हें कुछ अलगपन का अहसास होता है ।

अलगपन.............अपनों से अलग दिखने की इच्छा !............बड़ा बनने की कामना !

फोन की घण्टी के बजने के साथ ही राघव का अपने आप से बात करना बंद हुआ।

“अरे,यह तो मेरी बिटिया का फोन है। एक सौ बरस जिए मेरी बेटी और खूब पैसा कमाए। ”

फोन उठाकर वह आगे बात करना शुरू करते हैं।

“बोल शालू !..............कैसी है ? ”

“पापा,मेरी तनख्वाह बढ़ गई है । ”

“अरे ग्रेट !इतनी जल्दी .............................आठ महीने ही तो हुए हैं,ज्वाइन किए हुए?”

“हाँ पापा ! प्रोजेक्ट गाइड,मेरे काम से बहुत प्रसन्न है। वह एक भारतीय है और मुझसे चार-पाँच साल सीनियर हैं। ”

"मेहनत करेगी तो लोग ऐसे ही खुश रहेंगे । "

"जी !"

“ऐसे ही तरक्की करती रह बेटा ! तेरी तरक्की और तनख्वाह सुनकर मेरी जीने की इच्छा बढ़ती जा रही है। ”

“पापा आप सौ साल जिएंगे। ”

राघव का खिन्न मन गुलाब की पंखुड़ी की तरह खिल गया। उन्हें अपनी प्यारी बिटिया से अब और ज्यादा प्यार होने लगा है। पैसा इंसान को खुशी और आत्मविश्वासी बनाता है। जिस इंसान ने जीवन भर एक-एक पैसा जोड़कर अपनी आवश्यकताएँ पूरी की हो,वह अचानक हुई पैसे की बरसात से अपने आप को पूरी तरह भिगो लेना चाहता है।

शालू रात दिन अपने काम में जुटी रहती है। इस वजह से उसका समय जल्दी-जल्दी कट रहा है। उसका दिमाग बहुत तेज है। टेकनालोजी में उसकी रुचि है अतः वह चीजों को बहुत जल्दी समझ लेती है। मेहनत की घुट्टी उसे राघव ने पिलाई थी। उसके प्रोजेक्ट्स समय से पहले ही पूरे हो जाते हैं। उसका नाम सब जगह चर्चा में रहने लगा है। वैसे भी मेहनत करने में भारतीयों के सामने दुनिया के बाँकी इंजीनियर टिक नहीं पाते हैं। शालू के गाइड संजय,उससे हर तरह से प्रभावित हो रहे हैं। शालू के कारण उन्हें भी अच्छा नाम मिल रहा है।

“तुममें बहुत क्षमता है..........तुम काफी आगे जा सकती हो !”

“धन्यवाद सर ! यह आपके मार्गदर्शन के कारण हो रहा है। ”

“हमारे सारे प्रोजेक्ट्स समय से पहले ही पूरे हो जाएँगे और इसका पूरा श्रेय तुम्हें जाता है। हम लोगों को बीस-बीस लाख रुपए बोनस के रूप में मिलेंगे। ”

“सर !.....आप मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं। यह सब आपके लीडरशिप के कारण हो रहा है। ” पैसे की बात सुनकर शालू बहुत खुश हो गई। पैसा इंसान के अंदर कभी अभिमान लाता है तो कभी विनम्रता ।

“तुम अपनी मेहनत का श्रेय मुझे दे रही हो ?”

“आप यदि ऐसा सोचते हैं,तो यह आपका बड़प्पन है। ”

“तुम्हारे पति कहाँ काम करते हैं ?”

“मैं तलाकशुदा हूँ। ”

“इतनी कम उम्र में ?”

“यही तो जीवन है। ”

“मैं भी तलाकशुदा हूँ। अरबों की संपत्ति है,बड़ा घर है,पर हूँ बिल्कुल अकेला..........क्या जीवन है ?”

“सर,……………..पता नहीं कैसा समय आ रहा है ?पारिवारिक संबंधों का महत्व दिन-प्रतिदिन घट रहा है। ”

“क्या करोगी ?.....इस समाज को हमारे तुम्हारे जैसे कुछ लोग नहीं सुधार सकते। आज डिनर पर आओ,यदि आपत्ति न हो तो ?”

“जरूर सर !”

शालू के दिमाग में संजय कि अरबों की संपत्ति घूमने लगी। अरब मतलब सौ करोड़ !बाप रे !संजय उसके सबसे बड़े रईस मित्र बनने वाले हैं। उसके दिमाग ने यह सोचना चालू कर दिया कि संजय के घर में कितने कमरे होंगें.......कितने नौकर चाकर होंगे .......कितने महँगे–महँगे सजावट के सामान होंगे .......कितनी मंहगी गाडियाँ होंगी ........कितनी आलमारियाँ होंगी -----कितनी बड़ी तिजोरी होगी .......कितना बैंक बैलेन्स होगा...........कुल कितनी संपत्ति होगी इत्यादि,इत्यादि। यह सब सोचकर उसके शरीर में एक अलग रोमांच उत्पन्न हो रहा है। रोमांच जो चक्रवर्ती सम्राट को दुनिया जीतने के बाद अहसास होता है। उसने दफ़्तर से वापस आकर घर में अपनी पासबुक देखी।

“मात्र बाईस लाख रुपए ! अभी एक करोड़ होने के लिए अठहत्तर लाख और चाहिए ? कहाँ संजय साहब और कहाँ मैं ?.........ऐसे ही है कि कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली .........। तरस आता है खुद पर और अपने जन्म पर ....तरस आता है असभ्य और दरिद्र भारत पर.........तरस आता है ऐसे ख़ानदान में जहाँ मुझ दरिद्र का जनम हुआ तरस आता है अपने गाँव पर.। जरूर पिछले जनम में कुछ पाप किए होंगे.......जरूर किसी के पैसे उधार लेकर नहीं चुकाए होंगें,इसीलिए इस जनम में दरिद्र हूँ। खैर,आज अच्छे से तैयार होऊँगी। इतने बड़े रईश के घर जा रही हूँ,लगना चाहिए कि मैं भी रईश ही हूँ। वैसे भी संजय जी मेरी तरफ कुछ ज्यादा ही खिंच रहें हैं। ”

शालू एक घंटे तक सजती,सँवरती रही और फिर संजय की भेजी हुई महंगी गाड़ी से उसके घर के लिए निकल पड़ी।

संजय का घर देखकर शालू के होश उड़ गए। बाप रे ! यह घर है कि महल ? वह बाहर खड़े होकर घर को देखने लगी। दो मंजिला घर प्रकाश से जगमगा रहा है। उसे एक सेकंड के लिए अपना गाँव तिघरा याद आ गया,जहाँ सोलह घंटे बिजली की कटौती होती है। उसी समय संजय बाहर आया ।

“वाउ !............यू आर लुकिंग वेरी स्मार्ट ?”

शालू ने सिर नीचे करके मुस्कुरा दिया।

संजय,शालू को बाहों में भरकर डांस करने लगा।

शालू को कुछ अटपटा लगा मगर जल्दी ही वह नॉर्मल हो गई । उसे ध्यान आ गया कि यह अमेरिका है,भारत नहीं। यहाँ कौन उसे देखने वाला है। यहाँ लोगों को सिर्फ अपने से मतलब है। इस नई दुनिया में उसने अपने दिमाग से अरुण को पहले ही हटा दिया है। यद्यपि संजय के स्पर्श ने उसे एक बार अरुण की याद दिला दी।

“सर !.............आपका घर बहुत सुंदर है। ”

“सर नहीं,..........संजय कहो । ”

“ओके, संजय जी !”

“आपका घर बहुत सुंदर है। ”

“तुम मेरे घर से कहीं ज्यादा सुंदर हो !”

शालू कुछ शरमा गई। संजय ने आगे कहा,”हम इतना जल्दी नजदीक क्यों आ रहे हैं........लगता है कोई पुराना सम्बन्ध है ?”

“मुझे भी ऐसे ही महसूस हो रहा है। ”

“मैं अपनी पुरानी पत्नी से इतना कभी नहीं घुल मिल पाया था और तुमसे एक महीने की पहचान में ऐसा लग रहा है जैसे ‘कब के बिछुड़े हुए हम आज यहाँ आ के मिले’ । ”

“कहीं हम पिछले जन्म के तलाकशुदा दंपत्ति तो नहीं हैं ?”

“तलाकशुदा क्यों ? स्थाई पति पत्नी रहे होंगे। ”

“हो सकता है। ”

“तुम चाहो तो मेरे साथ यहीं इस घर में रह सकती हो। लिव-इन रिलेसन............आइ मीन ?"

शालू ने शरमाकर मौन स्वीक्रती दे दी। उसकी कुछ सहेलियाँ आज इसी तरह के संबंध के साथ जी रही हैं। बंधन जीवन में एक प्रकार की नीरसता पैदा करता है।

“तुम्हारा सामान कल मँगा लेते हैं। ”

शालू ने शरमाते हुए सिर हिलाकर ‘ठीक है’ कह दिया ।

वह बहुत खुश हो गई। वह जैसा चाहती है,वैसा ही हो रहा है। संजय इतना जल्दी उसके नजदीक आ जाएँगे,यह उसकी कल्पना से परे है। वह इन दिनों की उम्मीद कुछ साल के बाद कर रही थी। अब वह अरुण को भूलकर एक नई जिंदगी शुरू करना चाहती है। हो सकता है भारत में रहकर वह अरुण को इतना जल्दी नहीं भूल पाती। बिना संवाद के लंबे समय की दूरी,संबंध को हृदय के गहरे अंतःस्थल में दबा देती है। यह प्रक्रिया एक तरफ नए संबंधों के लिए रास्ता बनाती है तो दूसरी तरफ पुरानी यादों को मिटाने में मदद करती है।

साथ में रहते हुए कुछ महीने हँसी खुशी से बीत गए। संजय ने अपने रिश्ते को एक सीमा के अंदर बांधा हुआ है लेकिन शालू संजय के प्रति बहुत ज्यादा गंभीर है। वह संजय को बिल्कुल करीब से जानना चाहती है। उसके जिंदगी का हिस्सा बनना चाहती है। वफ़ादार हिस्सा !अपने जिंदगी में दुबारा से अलगाव अब वह किसी कीमत पर नहीं चाहती है।

“इतनी संपत्ति के आप अकेले वारिस हैं ?”

“हाँ !”

“आपके माता पिता कहाँ हैं ?”

“मेरा कोई नहीं है। ”

“मतलब ?”

“मेरे पैरेंट्स गुजर चुके हैं। ”

“भाई,बहन वगैरह ?”

“मैं अकेला हूँ । ”

शालू के दिमाग की घण्टी ज़ोर से बजने लगी।

“लगता है मेरा उज्जवल भविष्य जल्द ही मेरे पास आ रहा है। ”

शालू का दिमाग उसके काम से हटने लगा है। उसकी सारी ऊर्जा अब संजय और उसकी संपत्ति के बारे में सोचने पर खर्च हो रही है। वह संजय को स्थायित्व देना चाहती है। जीवन की सारी खुशियों को संजय की जिंदगी का हिस्सा बनाना चाहती है। उसे महसूस हो रहा है कि घर के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा होता है। वह संजय को खुशहाल घर और जिंदगी देना चाहती है।

“आपने अभी तक दुबारा शादी क्यों नहीं की ?”

“तुम्हारी जैसी होशियार लड़की नहीं मिली थी । ”

“तो फिर मुझसे जल्दी से शादी क्यों नहीं कर लेते ?”

“कर लेंगे ! थोड़ा धीरज रखो !”

शालू चुप हो गई ।

संजय और शालू किसी दिन एक होटल में डिनर करते हैं तो दूसरे दिन किसी और होटल में। कभी-कभी संजय अपने घर में ही बड़ी महफ़िल जमाता है।

“तुम ड्रिंक नहीं लेती...........यह तो आज के सभ्य समाज की निशानी है। ”

“तुम कहते हो तो आज से ही ड्रिंक चालू !”

“ग्रेट !.................यू आर ए मॉडर्न गर्ल । ”

"थैंक्स !"

शालू को संजय के ऊपर पूरा विश्वास है। यदि वह उसे जहर पीने के लिए कहेंगे तो वह उसे भी आधा घूँट घटघटा लेगी ।

“कितना निश्चिंत और सुखी जीवन यहाँ के लोग जीते हैं। कहाँ यह लोग और कहाँ हमारे गाँव के लोग ? हर समय प्रेम मोहब्बत,अपनेपन की बातें करेंगे पर जेब में फूटी कौड़ी भी नहीं रहती है। उन्हें यह नहीं पता है कि पैसे से सब कुछ खरीद सकते हैं। गाँव के किसी भी घर जाने से लोग अपनी समस्याएँ बताने लगते हैं और प्रेम जताने लगते हैं। थोड़ी सी बात में इन लोगों कि आँखों से आँसू निकल आते हैं। ऐसे रहते हैं मानो पूरा गाँव ही अपना घर है। प्रैक्टिकल तो हैं ही नहीं ? जब तक कॉम्पटिशन की भावना नहीं आएगी,तो प्रगति कैसे करेंगे ? कभी नहीं सुधरेंगे यह लोग.......... इन लोगों ने अपने दिमाग को काट दिया है,बाहरी दुनिया से !”

शालू यही सब सोचते-सोचते संजय की बाहों में समा रही है।

“मैं तुम्हें दूसरा प्रोजेक्ट भी देना चाहता हूँ । ”

“मुझे प्रोजेक्ट नहीं तुम्हारा साथ चाहिए। ”

“वह तो मैं दे ही रहा हूँ। ”

“तुम अपने स्वास्थ्य पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते हो !”

“तुम यार अनपढ़ भारतीय लड़कियों की तरह जज़बाती हो रही हो ! डोंट वरी,जस्ट एंजॉय । ”

इंसान जिस रास्ते पर चलता है,अपने को सही साबित करने के लिए उसी दिशा में प्रेरित करने वाली सहायक परिस्थितियों और विचारों की कल्पना करता है। ऐसा करके वह अपनी अंतरात्मा के ऊपर काला पर्दा डाल देता है। शालू को अपने बचपन के दिन याद आने लगे। शालू को दूध पीना बहुत पसंद था पर अभाव बस उसे पर्याप्त दूध नहीं मिलता था। माँ दूध में पानी डालकर पीने के लिए देती थी। शालू घट-घट करते हुए उसे पी जाती थी,और फिर कहती,”माँ दूध पीने में मजा नहीं आया। ”

“बेटा,दूधवाला दूध में पानी मिला देता है । ”

“उसे मारा करो माँ !................उसे बोलो कि यह दूध शालू पीती है । ”

“कल कह दूँगी । ”

शालू की इच्छा नई किताबों से पढ़ने की होती थी पर उसे हमेशा अपने दीदी कि पुरानी किताबों से पढ़ना पड़ता था । यही बात कमोबेश कपड़ों को लेकर भी होती थी। शायद इसीलिए उसे हर पुरानी चीज से नफरत सी होने लगी है। पुराने रीति रिवाज,विचार,परम्पराएँ सब उसे बेमतलब का लगते हैं।

एक बार शालू की इच्छा जलेबी खाने की हुई थी। राघव उस समय किसी काम में व्यस्त थे। शालू ने जिद की तो राघव ने उसे दो थप्पड़ मार दिए। उस दिन राघव के पास पैसे नहीं थे,जलेबी मंगाने के लिए।

अब शालू खूब जलेबी खाती है। उसे जलेबी बहुत पसंद है। वह अपने दोस्तों को भी जलेबी खिलाती रहती है। अरुण जलेबी नहीं खाता था पर शालू की वजह से उसकी भी जलेबी खाने की आदत पड़ गई थी। तलाक के बाद उसने जलेबी को भी तलाक दे दिया। शालू आजकल संजय को जलेबी खाना सिखा रही है। वह जलेबी घर में ही बना लेती है.......बहुत स्वादिष्ट !

“तुम बहुत बढ़िया जलेबी बनाती हो ?”

“धन्यवाद !” शालू मुस्कुराते हुए बोली ।

“तुम्हारी वजह से मेरी भी जलेबी खाने की आदत पड़ गई है । ”

“इसमें बुराई क्या है ? शादी के बाद मैं तुम्हें जिंदगी भर जलेबी खिलाऊंगी । ”

“हाँ,…………..वह तो है । ”

“चलो ! जल्दी से शादी कर लेते हैं । ”

“हम लोग एक साथ ही तो रह रहे हैं। शादी तो बस एक फ़ार्मैलिटि हैं। वह भी हो जाएगी। इतनी भी क्या जल्दी है ?”

शालू ने आगे कुछ नहीं कहा। पर अब वह बहुत बेचैन रहने लगी है। आखिर संजय शादी के लिए क्यों टाल रहा है ? उसका मन काम में बिल्कुल नहीं लगता है। उसके प्रोजेक्ट की प्रगति खराब हो रही है। इस बात की चर्चा चारों तरफ होने लगी है। दफ़्तर में सब सोच रहे हैं कि आखिर शालू को हो क्या गया है ? उससे प्रतिस्पर्धा करने वाले खुश हो रहे हैं। शालू की वजह से संजय की परफॉर्मेंस भी खराब होने लगी है। सब लोग तरह-तरह की बातें कर रहे हैं। संजय भी अपने जॉब को लेकर कुछ चिंतित होने लगा हैं। सर्वोच्च पर पहुँचकर कोई भी इंसान नीचे नहीं आना चाहता।

“तुम आजकल काम में ध्यान नहीं देती हो । ”

“भाड़ में गया काम वाम ! मेरी मंजिल तुम हो !”

“कंपनी वाले तुम्हें नौकरी से निकाल देंगे !”

“निकाल दें ! कहीं और नौकरी कर लेंगे । वैसे भी शादी के बाद मुझे नौकरी नहीं करनी है। ”

“तुम बहुत पढ़ी लिखी हो................अपना कैरियर बरबाद मत करो !”

“मैं एक भारतीय लड़की हूँ। पति से ज्यादा मुझे कुछ भी प्यारा नहीं है। ”

“मान लो,मैंने तुमसे शादी नहीं की,तब क्या करोगी ?”

शालू की आँखों से आँसू झरने लगते हैं। संजय भी थोड़े समय के लिए इन आँसुओं से डर जाता है।

“तुम बहुत भावुक हो रही हो। मुझे लगता है हम लोगों को इतना ज्यादा जज़बाती होने की आवश्यकता नहीं है। यह अमेरिका है,भारत नहीं !”

शालू चुप रहती है। उसे भावनात्मक सहारे की चाह होने लगी है। वह अब भटकना नहीं चाहती। उसे अपने माँ बाप के संबंध याद आने लगे हैं। कैसे वह अभाव की अवस्था में भी प्यार के साथ जिंदगी गुजार रहे थे। उसे अपने दादी की याद आ रही है। कैसे उनकी मृत्यु के बाद उसके दादा जी ने घी खाना छोड़ दिया था क्योंकि वह घी दादी के हाथ का बनाया हुआ ही खाते थे। दादी की मृत्यु के बाद,दादा जी रोज उनकी समाधि में जाते थे और दिया जलाते थे। यही सच्ची भावनाएँ ही तो प्यार है। यही विशिष्ट प्रकार की यादें मृत्यु के बाद भी अपनी उपस्थिति का अहसास कराती रहती हैं। यही तो अमर प्रेम है।

संस्कार परिस्थितिवश थोड़े समय के लिए दब सकते हैं पर कभी खत्म नहीं हो सकते !

शालू को नौकरी से निकाल दिया गया। शाम को घर पहुँचकर उसने संजय से कहा ,“संजय ! अच्छा ही हुआ...... अब मैं तुम्हारा घर देखूंगी और तुम्हारा ख़याल रखूँगी। ”

“मुझे घर देखने के लिए कोई नौकरानी मिल जाएगी। मैं तो प्रोफ़ेशनल लड़की से शादी करूँगा,जो मेरे काम में सहारा बने। तुम्हारी वजह से मेरा प्रोजेक्ट पीछे चला गया है। ”

“संजय आर यू नॉर्मल ?”

“यस,एब्सल्यूट्ली नॉर्मल। ”

“तुम मुझसे प्यार नहीं करते ?”

“तुम मुझसे प्यार करती हो क्या ?”

“हाँ !..............मैं तुम्हें बहुत चाहती हूँ। ”

“मुझे चाहती हो कि मेरी संपत्ति को ? तुम्हारे जैसा प्यार,मुझसे कई लड़कियाँ करती हैं। ”

“व्हाट आर यू टाकिंग ?”

“हाँ !...........तुम्हारे जैसा प्यार,मुझसे कई लड़कियाँ करती हैं । ”

“संजय !............आर यू रिएलि सिरियस ?”

“यस !”

“यू ब्लडी चीटर !”

“तुमने अरुण के साथ क्या किया था ? पहले अपना मुँह आईने में देखो,फिर मुझे कुछ कहना । मैं शुरू से ही तुम्हें समझ गया था। तुम्हारे बारे में सारी जानकारी मुझे तुम्हारी पिछली कंपनी के लोगों से मिल गई थी। ”

शालू रो रही है......................धीरे-धीरे !..............सिसक-सिसककर !

जल्दी ही उसका गुस्सा उतर गया। वह अपने वास्तविक स्वरूप में आ गई। वह अपना सामान उठाकर अपने पुराने किराए के मकान में चली गई।

“मैंने जैसे अरुण के साथ किया,संजय ने वही मेरे साथ कर दिया। बड़ा जल्दी फल मिल जाता है,आज के समय में । पता नहीं अरुण कैसा होगा ?मैंने उसे बहुत बड़ा धोखा दिया है। कहाँ अरुण है और कहाँ साला संजय। ”

थोड़े ही दिनों के पश्चात शालू भारत वापस आने की योजना बनाने लगी।

उसने यह बात अपने पिता को बताई।

“तुम्हारा दिमाग घूम गया है क्या ? इतनी बढ़िया नौकरी और जगह छोडकर कचरे खाने में वापस आ रही हो। ”

“पापा !...................... दिमाग घूमा जरूर है लेकिन घूमकर सही दिशा में आ गया है। ”

“क्या मतलब ?”

“मतलब कि सिर्फ पैसा ही सब कुछ नहीं होता है। मैं शाम को जब काम से घर वापस आती हूँ तो बड़ा अकेलापन महसूस होता है। पासबुक और अन्य महँगी चीजों को देखकर थोड़ी देर के लिए कुछ खुश हो लिया करती हूँ पर पासबुक मुझे स्थायी खुशी नहीं दे पाती है। मुझे अंदर से बहुत असुरक्षा और अकेलापन महसूस होता है.....................सच में !”

“यह क्या पागल की तरह बात कर रही है ? तू तो मेरा सफेद शेर है । ”

“पापा !..................... मैंने अरुण के साथ अन्याय किया है। ”

“तूने कुछ अन्याय वन्याय नहीं किया है। यह बात दिमाग में कभी लाना भी नहीं !”

“नहीं पापा !.......मुझे जीवन की सच्चाई पता चल गई है। पैसा बहुत जरूरी है मगर पैसे की बुनियाद यदि नैतिकता की मजबूत ईंटों पर टिकी हो तभी वह स्थाई सुख और शांति दे सकता है। लालच तो जहर के समान है। ”

“बकवास मत कर बेटा !”

“मैं सच कह रही हूँ,पापा !”

“बेटी ! तुम्हारी बड़ी बहन के ससुराल वाले उसे वापस उसके घर नहीं बुला रहें हैं क्योंकि मेरे पास उनको देने के लिए पर्याप्त दहेज नहीं है। ”

“मैं सब जानती हूँ,पापा ! जो दीदी के साथ हुआ,वह बहुत गलत है पर जो मैंने अरुण के साथ किया वह भी उतना ही गलत है। एक गलती का बदला यदि हम दूसरी गलती से लेंगे तो समस्या वहीं की वहीं रहेगी। हमें समस्या का स्थाई हल ढूँढना चाहिए। हर बुराई को ठीक करना चाहिए बिना किसी दूसरी बुराई का साथ लिए। ”

“तू आज बाबूजी की तरह बात कर रही है। अब आगे क्या सोचा है ?”

“मैं भारत वापस आकर नौकरी करूँगी और पैसा कमाऊँगी। आप लोगों के साथ रहकर सुख शांति का जीवन व्यतीत करूँगी। मैं अब दुबारा किसी और से शादी नहीं करूँगी। ”

“हे भगवान ! तो क्या मेरी दोनों बेटियाँ घर पर ही रहेंगी। ”

“नहीं ! मैंने जीजाजी से बात की है। उन्हें और उनके घरवालों को अपनी गलती का अहसास हो गया है। वह ग्लानि और शर्म के कारण आगे से पहल नहीं कर पा रहे थे। रही बात मेरी,तो मुझे अपने कर्म का फल तो मिलेगा ही !”

“तेरी बातों को सुनकर ऐसा लगता है जैसे बाबूजी,हमारे घर को सही रास्ते पर ला रहे हैं। ”

राघव अंदर जाकर सोचने लगे,”मैंने पिता होने के बाद भी शालू को अरुण के ख़िलाफ़ क्यों उकसाया था ? मैंने पैसे को ही सब कुछ समझ लिया था। संतुलित विचार और संतुलित कर्म ही इंसान को सही मंजिल तक ले जा सकते हैं। आखिर दुनिया के सबसे अमीर देशों के लोग ही तो सबसे ज्यादा दुःखी और परेशान हैं। हमारे यहाँ भले ही गरीबी थी पर उसके बाद भी लोगों में आपसी प्रेम और सुख-शांति की भावना थी। आज के अपने पतन के लिए हम लोग ही जिम्मेदार हैं। दिखावटीपन के चक्कर में हम अपना वास्तविक स्वरूप खो रहें हैं। मैं शालू को उसके अरुण से फिर से मिलाऊंगा । मुझे अपनी बिटिया की खुशहाल जिंदगी चाहिए। भाड़ में गया पैसा !”

भारत वापस आकर शालू अपनी पुरानी कंपनी में आवेदन देने के लिए गई। वहाँ उसे पता चला कि अरुण ने नौकरी छोड़ दिया है। यह जानने के बाद उसने वहाँ आवेदन नहीं दिया।

उसने कई अन्य जगह नौकरी के लिए आवेदन किया। मगर उसकी इच्छा के अनुरूप तनख्वाह उसे कहीं भी नहीं मिल पा रही है। यद्यपि वह किसी जल्दबाजी में नहीं है। विदेश में रहकर उसने बहुत पैसे कमा लिए हैं। उसकी मानसिक दशा भी कुछ विश्राम माँग रही है।

दो महीने के बाद उसे एक कंपनी से काल आया। शालू बड़ी खुश हो गई। उसे यहाँ तीस लाख रुपए सालाना का पैकेज मिल सकता है। वह तैयार होकर इंटरव्यू देने के लिए कंपनी गई ।

काफी देर के इंतजार के बाद जीएम ने उसको अपने चैम्बर में बुलाया ।

“में आइ कम इन सर ?”

“कम इन .......कम इन .............!”

“प्लीज सिट डाउन !”

“थैंक यू सर !”

“अपने कार्य अनुभव के बारे में बताइए ?”

शालू ने अपने कार्य के बारे में बड़े विस्तार से बताया ।

“आर यू मैरीड ?”

“यस सर !.............और मेरा तलाक हो गया है !”

“ओह !आइ अम सॉरी !”

जीएम साहब ने सब कुछ बड़े ध्यान से सुनकर,धैर्य के साथ कहा,”आपको कितना पैकेज चाहिए,जिससे कि आप इस कंपनी को छोड़कर दूसरे में न जाएँ । ”

“सर यदि यहाँ से ज्यादा पैकेज कहीं दूसरी जगह मिलेगा तो मैं यह कंपनी छोड़ दूँगी !”

“आपको भारत में किसी भी कंपनी से अधिकतम कितने पैसे की उम्मीद है ?”

“सर चालीस से पैंतालीस लाख रुपए सालाना !”

“मैं यदि आपको इतने ही पैसे दूंगा तो आप हमारी कंपनी नहीं छोड़ेंगी ?”

“नहीं छोडूंगी !”

“पक्का !”

“हाँ सर......................स्योर !”

“मैं आपको पचास लाख सालाना दूंगा मगर आपको यह लिखकर देना होगा कि आप हमारी कंपनी में कम से कम पाँच साल जरूर काम करेंगी । ”

“मुझे मंजूर है !

“यू में गो नाऊ !”

शालू बहुत खुश हो गई। उसकी कल्पना से कहीं ज्यादा पैसे उसे मिल रहे हैं। शाम को घर लौटते वक्त उसने मंदिर में जाकर भगवान को प्रसाद चढ़ाया। बाजार से उसने सबके लिए नए कपड़े खरीदे।

“पापा ! मुझे पचास लाख का सालाना पैकेज मिला है । ”

“अरे ग्रेट !कंपनी का नाम क्या है ?”

“वाजपेयी इलेक्ट्रॉनिक्स रिसर्च सेंटर !”

“एमडी कौन है ?”

“कोई मिस्टर वाजपेयी हैं। ”

“ज्वाइनिंग लेटर मिल गया है कि बाद में मिलेगा ?”

“आज ही मिल गया है। ”

“ग्रेट ! चल बहुत बढ़िया खबर सुनाई तूने !”

“मैं भी खुश हूँ । जल्दी ही नौकरी मिल गई । ”

शालू ने नौकरी ज्वाइन कर लिया और बड़े लगन से अपने काम में जुट गई। जीएम और एमडी,शालू की पूरी गतिविधियों पर बड़े गौर से ध्यान दे रहे हैं। कुछ ही महीनों में कंपनी के प्रोजेक्ट्स में तेजी आने लगी। सारे टार्गेट समय पर पूरे होने लगे। कंपनी की इमेज बढ़ने लगी,हर तरह से।

शालू को देखकर बाँकी लड़के,लड़कियाँ भी और ज्यादा मेहनत से काम करने लगे हैं।

एक साल के बाद कंपनी का टर्नओवर चालीस प्रतिशत बढ़ गया। एमडी साहब बहुत खुश हुए। शालू चुपचाप काम में लगी रहती है। जरूरत पड़ने पर वह लगातार बारह से चौदह घंटे काम करती है। उसकी मेहनत देखकर एमडी साहब का विश्वास उसके प्रति बढ़ता जा रहा है।

“मैं तो तीस लाख के पैकेज पर नौकरी ज्वाइन करने गई थी पर एमडी साहब ने मुझे पचास लाख का ऑफर दे दिया अतः मेरी भी जिम्मेदारी है कि मैं कंपनी को आगे बढ़ाने में मदद करूँ। ”

शालू को बड़े करीब से लगभग दो साल तक देखने के बाद,एक दिन एमडी साहब ने उसे एक पत्र भिजवाया जिसमें उन्होने उसे अपनी बहू बनाने के लिए पेशकश की। शालू ने पत्र को पढ़कर अपने को इस योग्य पाए जाने के लिए सौभाग्यशाली समझा और फिर अपनी सच्चाई लिखते हुए इसके लिए असमर्थता व्यक्त की।

एमडी साहब ने उस पत्र को अपने पास रख लिया। उनका बेटा अमेरिका से पढ़कर अगले दिन भारत वापस आ रहा था। वह बहुत जल्द उसे ही कंपनी की कमान सौपना चाहते हैं। एमडी साहब ने राघव से मिलकर शालू को समझाने के लिए सोचा। राघव एमडी साहब की पूरी बात सुनकर दो मिनट में इसके लिए राज़ी हो गए। उन्हें विश्वास है कि शालू भी मान जाएगी ।

“बेटी इतना अच्छा रिश्ता आया है,प्लीज तू मान जा !”

“पापा ! मैं अब किसी और से शादी नहीं करूँगी। ”

“लड़का अरुण जैसा ही है !”

“पर अरुण तो नहीं है ?”

अगले दिन शालू ने कंपनी से इस्तीफ़ा दे दिया। एमडी को जब यह पता चला तो उन्होने शालू को अपने कमरे में बुलाया ।

“तो आपने इस्तीफ़ा दे दिया ?” एमडी ने मुँह को पीछे की तरफ करके पूंछा।

“जी सर !” शालू ने सिर नीचे करके जवाब दिया।

“क्यों ?”

“सर मेरे पिताजी आपके प्रभाव में आकर मेरी शादी आपके बेटे के साथ करना चाहते हैं। ”

“आपको आज तक जितनी भी तनख्वाह मिली है,वह पूरे पैसे लौटाने पड़ेंगे और पेनाल्टी भी देनी पड़ेगी। ”

“मुझे सब मंजूर है। ”

एमडी साहब ने अपना चेहरा शालू के सामने कर लिया। शालू चौंक गई ।

“करीब दो साल से मैं तुम्हें देख रहा हूँ। तुममें और पहले की शालू में धरती आसमान का अन्तर है। मेरा बेटा अभी तक तुम्हें भुला नहीं पाया है। वह अमेरिका से कल वापस आ रहा है। ”

शालू की आँखों से आँसू झरने लगे। वह जाकर एमडी साहब के पैर छूने लगी तो उन्होने उसे गले से लगा लिया । उनके आँखों से भी आँसू गिरने लगे......बड़ी-बड़ी बूंदों में !

घर पहुँचने पर उसने राघव से कहा ,”सोच रही हूँ कि एमडी साहब की बहू बन ही जाऊँ । ”

“बहू बनेगी क्या !..................तू तो उनकी बहू पहले से ही है । ”

यह कहकर राघव ने शालू को गले से लगा लिया ।

शालू अगले दिन का बेसब्री से इंतजार करने लगी !

अगला दिन ! उसके जीवन का नया दिन !

--

रचनाकार परिचय ----

नाम- अखिलेश मिश्रा

जन्म स्थान –रीवा मध्यप्रदेश

शिक्षा- एम टेक

संप्रति-भारतीय रेल में कार्यरत

रचनाएँ-हंस,परिकथा,आधारशिला,जनपथ,साक्षात्कार,साहित्य परिक्रमा,परिंदे,साहित्य कुंज इत्यादि पत्रिकाओं में कहानी प्रकाशित

 

पता- क्वार्टर नंबर 26/1,टाइप 5 बी

रेल अफसर कालोनी

बँगला यार्ड बिलासपुर (छत्तीसगढ़ )

पिन-495004

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. ye padhakar mujhe garv hota apne bharatiya riti rivajo sanskaro pe bas chahta hu ki sab mata pita bhi apne bete betiyo ko aisa hi achchaa sanskar de shiksha ke sath jo bhotikata ke sath sath naitikata bhi samajhe

    bahut bahut dhanyvad hai lekhak ko jisne itna achcha lekh likha bhagavan unki lekhani ko takat de taki inki lekhani sabhi ko sahi rasta dikhaye

    jai hind jai bharat

    जवाब देंहटाएं
  2. बेनामी6:37 pm

    dil ko choo lene wali kahani

    जवाब देंहटाएं
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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: अखिलेश मिश्रा की कहानी - वापसी
अखिलेश मिश्रा की कहानी - वापसी
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